https://www.profitablecpmrate.com/gtfhp9z6u?key=af9a967ab51882fa8e8eec44994969ec 2. आध्यात्मिकता का नशा की संगत भाग 1: 08/03/20

*सर्वप्रथम किसने बांधी राखी किस को और क्यों ??*

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

सर्वप्रथम किसने बांधी राखी किस को और क्यों ??



*लक्ष्मी जी ने सर्वप्रथम बलि को बांधी थी।*


ये बात हैं जब की...!
 
जब दानबेन्द्र राजा बलि अश्वमेध यज्ञ करा रहें थे...! 

तब नारायण ने राजा बलि को छलने के लिये *वामन अवतार* लिया और तीन पग में सब कुछ ले लिया...!


 
तब उसे भगवान ने पाताल लोक का राज्य रहने के लिये दें दिया...!
 
तब उसने प्रभु से कहा की कोई बात नहीँ मैं रहने के लिये तैयार हूँ...! 

पर मेरी भी एक शर्त होगी....!
 
भगवान अपने भक्तो की बात कभी टाल नहीँ सकते...! 

उन्होने कहा ऐसे नहीँ प्रभु आप छलिया हो पहले मुझे वचन दें की जो मांगूँगा वो आप दोगे...! 

नारायण ने कहा दूँगा दूँगा दूँगा...! 

जब  *त्रिबाचा*  करा लिया तब बोले बलि की -

*मैं जब सोने जाऊँ तो जब उठूं तो जिधर भी नजर जाये उधर आपको ही देखूं...!*

*नारायण ने अपना माथा ठोका और बोले इसने तो मुझे पहरेदार बना दिया हैं ये सब कुछ हार के भी जीत गया है...!*

पर कर भी क्या सकते थे वचन जो दें चुके थे...! 

ऐसे होते होते काफी समय बीत गया....!
 
उधर *बैकुंठ में लक्ष्मी जी को चिंता होने लगी*  नारायण के बिना...! 

उधर नारद जी का आना हुआ...!
 
लक्ष्मी जी ने कहा नारद जी आप तो तीनों लोकों में घूमते हैं क्या नारायण को कहीँ देखा आपने तब नारद जी बोले की पाताल लोक में हैं राजा बलि की पहरेदार बने हुये हैं...! 



तब लक्ष्मी जी ने कहा मुझे आप ही राह दिखाये की कैसे मिलेंगे...! 

तब नारद ने कहा आप राजा बलि को भाई बना लो और रक्षा का वचन लो और *पहले तिर्बाचा* करा लेना दक्षिणा में जो मांगुगी वो देंगे...!
 
और दक्षिणा में अपने *नारायण को माँग लेना..!*

लक्ष्मी जी सुन्दर स्त्री के भेष में रोते हुये पहुँची..! 

बलि ने कहा क्यों रो रहीं हैं आप..!
 
तब लक्ष्मी जी बोली की मेरा कोई भाई नहीँ हैं इसलिए मैं दुखी हूँ...!
 
तब बलि बोले की तुम मेरी धरम की बहिन बन जाओ..! 

तब लक्ष्मी ने तिर्बाचा कराया..!
 
और बोली मुझे आपका ये पहरेदार चाहिये..!
 
जब  ये माँगा तो *बलि पीटने लगे अपना माथा और सोचा..!*

धन्य हो माता पति आये सब कुछ लें गये और ये  *महारानी ऐसी आयीं की उन्हे भी लें गयीं..!*

तब से ये  *रक्षाबन्धन* शुरू हुआ था...!
 
और इसी लिये जब कलावा बाँधते समय मंत्र बोला जाता हैं...! 

*येन बद्धो राजा बलि दानबेन्द्रो महाबल:* 
*तेन त्वाम प्रपद्यये रक्षे माचल माचल:*

ये मंत्र हैं 

*रक्षा बन्धन अर्थात बह बन्धन जो हमें सुरक्षा प्रदान करे..!*

सुरक्षा किस से...!
 
*हमारे आंतरिक और बाहरी शत्रुओं से रोग ऋण से।*

*राखी का मान करे।*
🙏🏼🙏🏼जय श्री कृष्ण जय श्री कृष्ण जय श्री कृष्ण 🙏🙏
पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 
" Opp. Shri Dhanlakshmi Strits , Marwar Strits, RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
सेल नंबर: . + 91- 7010668409 / + 91- 7598240825 WHATSAPP नंबर : + 91 7598240825 ( तमिलनाडु )
Skype : astrologer85
Email: prabhurajyguru@gmail.com
आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद.. 
नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏

*राखी की लाज**एक बीर बालक की कहानी*

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*राखी की लाज*


*एक बीर बालक की कहानी*


दोपहर का समय था रामनगर के लोग इकठा हुए थे | 

गाव से कुछ दूरी पर एक नदी थी , जिसमे तैराक गोता लगाकर अपनी कला का प्रदर्सन करते थे | 

एक सैलानी घूमता – फिरता वहां आया , अपने कपडे उतारे और स्नान करने लगा लेकिन उसको यह नहीं पता था की यहाँ पानी बहुत जादा गहरा है | 

पलक झपटे ही वह पानी की लहरों की चपेट मे आ गया और जोर - जोर से चिलाने लगा बचवो - बचवो | 

भाग्य वश वहां करन नाम का एक लड़का खड़ा था | 

उसकी आवाज सुनकर वह नदी मे कूद पड़ा |

कुछ ही देर मे वह डूबते हुए सैलानी के निकट पहुंच गया और उसके बालों को पकड़ कर नदी के किनारे पर लाया |


सभी लोग उस बीर बालक की साहस को देख कर दंग रह गए | 

करन ने गर्व से बताया की *आज मैंने राखी की लाज रख ली |*

वो कैसे – करन की बहन ने पूछा |

करन ने बताया – 

आज मैंने एक डूबते आदमी को बचा लिया | 

राखी भी तो इसलिए ही बांधी जाती है | 

यह सुनकर वहां खड़े सब लोग तालिया बजाने लगे और अपने घर चले गए |

*जानी परिवार की तरफ से आप सभी को* *रक्षाबंधन* के  पावन पर्व की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं   

*रक्षा के पवित्र बंधन को सदा निभाइये,*
*अनमोल है बहन, सदा स्नेह लुटाइये।*

*🙏🏻🌷🥀"जय लक्ष्मीनारायण"🥀🌷🥀🙏*   *🙏🏻🌹🌾🥀जय श्री कृष्ण🌹🥀🌾🙏🏻*
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*क्रोध पर नियंत्रण* / *मेरा मा रिटायर्ड प्राथमिक शिक्षक ९२ वर्ष से अधिक आयु के से प्राप्त संदेश।**कृपया अंत तक पढ़िए...*

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

।। सुंदर कहानी ।।

*क्रोध पर नियंत्रण* / *मेरा मा रिटायर्ड प्राथमिक शिक्षक ९२  वर्ष से अधिक आयु के  से प्राप्त संदेश।**कृपया अंत तक पढ़िए...!*


🌹🌹 *क्रोध पर नियंत्रण*🌹🌹


एक बार एक राजा घने जंगल में भटक जाता है जहाँ उसको बहुत ही प्यास लगती है। 

इधर उधर हर जगह तलाश करने पर भी उसे कहीं पानी नही मिलता। 




प्यास से उसका गला सुखा जा रहा था तभी उसकी नजर एक वृक्ष पर पड़ी जहाँ एक डाली से टप टप करती थोड़ी - थोड़ी पानी की बून्द गिर रही थी।

वह राजा उस वृक्ष के पास जाकर नीचे पड़े पत्तों का दोना बनाकर उन बूंदों से दोने को भरने लगा जैसे तैसे लगभग बहुत समय लगने पर वह दोना भर गया और राजा प्रसन्न होते हुए ।

जैसे ही उस पानी को पीने के लिए दोने को मुँह के पास ऊचा करता है तब ही वहाँ सामने बैठा हुआ एक तोता टेटे की आवाज करता हुआ।

 आया उस दोने को झपट्टा मार के वापस सामने की और बैठ गया उस दोने का पूरा पानी नीचे गिर गया।

राजा निराश हुआ कि बड़ी मुश्किल से पानी नसीब हुआ और वो भी इस पक्षी ने गिरा दिया लेकिन अब क्या हो सकता है।

 ऐसा सोचकर वह वापस उस खाली दोने को भरने लगता है।

काफी मशक्कत के बाद वह दोना फिर भर गया और राजा पुनः हर्षचित्त होकर जैसे ही उस पानी को पीने दोने को उठाया तो वही सामने बैठा तोता टे टे करता हुआ आया और दोने को झपट्टा मार के गिराके वापस सामने बैठ गया।

अब राजा हताशा के वशीभूत हो क्रोधित हो उठा कि मुझे जोर से प्यास लगी है। 

मैं इतनी मेहनत से पानी इकट्ठा कर रहा हूँ और ये दुष्ट पक्षी मेरी सारी मेहनत को आकर गिरा देता है।

अब मैं इसे नही छोड़ूंगा अब ये जब वापस आएगा तो  इसे खत्म कर दूंगा।

इसप्रकार वह राजा अपने हाथ में चाबुक लेकर वापस उस दोने को भरने लगता है। 

काफी समय बाद उस दोने में पानी भर जाता है तब राजा पीने के लिए उस दोने को ऊँचा करता है और वह तोता पुनः टे टे करता हुआ ।

जैसे ही उस दोने को झपट्टा मारने पास आता है वैसे ही राजा उस चाबुक को तोते के ऊपर दे मारता है और उस तोते के वहीं प्राण पखेरू उड़ जाते हैं।

तब राजा सोचता है कि इस तोते से तो पीछा छूंट गया लेकिन ऐसे बून्द - बून्द से कब वापस दोना भरूँगा और कब अपनी प्यास बुझा पाउँगा 

इस लिए जहा से ये पानी टपक रहा है वहीं जाकर झट से पानी भर लूँ ऐसा सोचकर वह राजा उस डाली के पास जाता है ।

जहां से पानी टपक रहा था वहाँ जाकर जब राजा देखता है तो उसके पाँवो के नीचे की जमीन खिसक जाती है।

क्योकि उस डाली पर एक भयंकर अजगर सोया हुआ था और उस अजगर के मुँह से लार टपक रही थी राजा जिसको पानी समझ रहा था वह अजगर की जहरीली लार थी।

राजा के मन में पश्चॉत्ताप  का समन्दर उठने लगता है की हे प्रभु! 

मैने यह  क्या कर दिया। 

जो पक्षी बार बार मुझे जहर पीने से बचा रहा था क्रोध के वशीभूत होकर मैने उसे ही मार दिया।

काश मैने सन्तों  के बताये उत्तम क्षमा मार्ग को धारण किया होता, अपने क्रोध पर नियंत्रण किया होता तो ये मेरे हितैषी निर्दोष पक्षी की जान नही जाती। 

हे भगवान मैने अज्ञानता में कितना बड़ा पाप कर दिया? 

हाय ये मेरे द्वारा क्या हो गया ऐसे घोर पाश्चाताप से प्रेरित हो वह राजा दुखी हो उठता है।

इसीलिये कहते हैं कि..

क्षमा औऱ दया धारण करने वाला सच्चा वीर होता है।

क्रोध में व्यक्ति दुसरो के साथ साथ अपने खुद का ही बहुत नुकसान कर देता है। 

क्रोध वो जहर है जिसकी उत्पत्ति अज्ञानता से होती है और अंत पाश्चाताप से होता है। 

इसलिए हमेशा क्रोध पर नियंत्रण रखिये। 

🌹 *राधे राधे जी*🌹

*मेरा मा रिटायर्ड प्राथमिक शिक्षक ९२  वर्ष से अधिक आयु के  से प्राप्त संदेश।*


*कृपया अंत तक पढ़िए...*


●  *जीवन मर्यादित है और उसका जब अंत होगा, तब इस लोक की कोई भी वस्तु साथ नही जाएगी !* 

● *फिर ऐसे में कंजूसी कर, पेट काट कर बचत क्यों कि जाए? आवश्यकतानुसार खर्च क्यों ना करें? जिन बातों में आनंद मिलता है, वे करना ही चाहिए।*

●  *हमारे जाने के पश्चात क्या होगा, कौन क्या कहेगा, इसकी चिंता छोड़ दें, क्योंकि देह के पंचतत्व में विलीन होने के बाद कोई तारीफ करें, या टीका टिप्पणी करें, क्या फर्क पड़ता है?*   
     
●  *उस समय जीवन का और महत्प्रयासों से कमाए हुए धन का आनंद लेने का वक्त निकल चुका होगा।*

●  *अपने बच्चों की जरूरत से अधिक फिक्र ना करें। उन्हें अपना मार्ग स्वयं खोजने दें। अपना भविष्य स्वयं बनाने दें। उनकी ईच्छा आकांक्षाओं और सपनों के गुलाम आप ना बनें।* 

 ●  *बच्चों पर प्रेम करें, उनकी परवरिश करें, उन्हें भेंट वस्तुएं भी दें, लेकिन कुछ आवश्यक खर्च स्वयं अपनी आकांक्षाओं पर भी करें।*


●  *जन्म से लेकर मृत्यु तक सिर्फ कष्ट करते रहना ही जीवन नही है, यह ध्यान रखें।*

 ● *आप पाँच दशक पूरे कर चुके हैं, अब जीवन और आरोग्य से खिलवाड़ कर के पैसे कमाना अनुचित है, क्योंकि अब इसके बाद पैसे खर्च करके भी आप आरोग्य खरीद नही सकते।*

●  *इस आयु में दो प्रश्न महत्वपूर्ण है। पैसा कमाने का कार्य कब बन्द करें; और कितने पैसे से अब बचा हुआ जीवन सुरक्षित रूप से कट जाएगा।*

 ●  *आपके पास यदि हजारों एकड़ उपजाऊ जमीन भी हो, तो भी पेट भरने के लिए कितना अनाज चाहिए? आपके पास अनेक मकान हो, तो भी रात में सोने के लिए एक ही कमरा चाहिए।* 

●  *एक दिन बिना आनंद के बीते, तो आपने जीवन का एक दिन गवाँ दिया और एक दिन आनंद में बीता तो एक दिन आपने कमा लिया है, यह ध्यान में रखें।*

●  *एक और बात, यदि आप खिलाड़ी प्रवृत्ति के और खुशमिजाज हैं, तो बीमार होने पर भी बहुत जल्द स्वस्थ होंगे और यदि सदा प्रफुल्लित रहते हैं, तो कभी बीमार ही नही होंगे।*
 
●  *सबसे महत्वपूर्ण यह है कि, अपने आसपास जो भी अच्छाई है, शुभ है, उदात्त है, उसका आनंद लें और उसे संभालकर रखें।*

●  *अपने मित्रों को कभी न भूलें। उनसे हमेशा अच्छे संबंध बनाकर रखें। अगर इसमें सफल हुए, तो हमेशा दिल से युवा रहेंगे और सबके चहेते रहेंगे।*

●  *मित्र न हो, तो अकेले पड़ जाएंगे और यह अकेलापन बहुत भारी पड़ेगा।*

●  *इसलिए रोज व्हाट्स एप के माध्यम से संपर्क में रहें, हँसते हँसाते रहें, एक दूसरे की तारीफ करें। जितनी आयु बची है, उतनी आनंद में व्यतीत करें।* 

● *प्रेम मधुर है, उसकी लज्जत का आनंद लें।*

●  *क्रोध घातक है, उसे हमेशा के लिए जमीन में गाड़ दें।*

● *संकट क्षणिक होते हैं, उनका सामना करें।*

●  *पर्वत शिखर के परे जाकर सूर्य वापिस आ जाता है, लेकिन दिल से दूर गए हुए प्रियजन वापिस नही आते।*

● *रिश्तों को संभालकर रखें, सभी में आदर और प्रेम बाँटें। नही तो जीवन क्षणभंगुर है, कब खत्म होगा, समझ में भी नही आएगा। इसलिए आनंद दें, आनंद लें।*

 *दोस्ती और दोस्त संभाल कर रखें।* 

*जितना हो सके उतना गेट टूगेदर करते रहें!*

*सबको जय श्री कृष्ण जय श्री कृष्ण जय श्री कृष्ण कहे।*
🙏🤝🏻🤝🏻🤝🏻🤝🏻🤝🏻🙏
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रक्षा बंधन का शास्त्रोउक्त तातपर्य का दर्शन 2

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रक्षा बंधन का शास्त्रोउक्त तातपर्य का दर्शन 2

जानिए क्यों बांधती है बहन भाई की कलाई पर राखी, पढ़िए कथा
श्रावण शुक्ल पक्ष पूर्णिमा ,जिसे श्रावणी पूर्णिमा भी कहा जाता है। स्नान दान एवं व्रत सहित श्रावणी पूर्णिमा एवं रक्षा बंधन का त्योहार 3 अगस्त 2020 दिन सोमवार को मनाया जाएगा. रक्षाबंधन भाई और बहन का त्यौहार है. इस दिन बहनें भाईयों की कलाई पर राखी बांध कर उनकी लंबी आयु की कामना करती हैं. इसकी कथा भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्टिर को सुनाई थी. महाभारत काल में रक्षा सूत्र का वर्णन आता है. एक बार द्रौपदी ने अपने आंचल का टुकड़ा फाड़कर भगवान श्रीकृष्ण की उंगली में बांध दिया था. जब उन्हें चोट लगी थी. इसके बाद श्रीकृष्ण ने उन्हें रक्षा का वचन दिया था और इसी के चलते भगवान श्रीकृष्ण ने चीर हरण के समय उनकी रक्षा की थी.।
रक्षाबंधन की कथा
धर्मराज युधिष्ठिर के आग्रह पर भगवान श्रीकृष्ण ने रक्षाबंधन की कथा सुनाई थी जो इस प्रकार है. एक बार राक्षसों और देवताओं में भयंकर युद्ध छिड़ गया जो करीब 12 वर्षों तक चलता रहा. कोई भी कम नहीं पड़ रहा था. एक समय ऐसा भी आया जब असुरों ने देवराज इंद्र को भी पराजित कर दिया.
पराजित होने के बाद देवराज इंद्र अपने देवगणों को लेकर अमरावती नामक स्थान पर चले गए. इंद्र के जाते ही दैत्यराज ने तीनों लोकों पर अपना राज स्थापित कर लिया. इसके साथ ही राक्षसराज ने यह मुनादी करा दी की कोई भी देवता उसके राज्य में प्रवेश न करे और कोई भी व्यक्ति धर्म-कर्म के कार्यों में हिस्सा न ले. अब से सिर्फ राक्षस राज की ही पूजा होगी. राक्षस की इस आज्ञा के बाद धार्मिक कार्यों पर पूरी तरह से रोक लग गई. धर्म की हानि होने से देवताओं की शक्ति क्षीण होने लगी.
तब देवराज इंद्र देवगुरु वृहस्पति की शरण ली और इस समस्या का हल निकालने के लिए कहा. तब देवगुरु बृहस्पति ने इंद्र को रक्षा सूत्र का विधान करने के लिए कहा. इसके लिए उन्होंने कहा कि रक्षा सूत्र का विधान पंचांग के अनुसार श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को शुभ मुहूर्त में ही किया जाना चाहिए. रक्षा सूत्र बांधते समय इस मंत्र का पाठ करना चाहिए-
येन बद्धो बलिर्राजा दानवेन्द्रो महाबल:।
तेन त्वामभिवध्नामि रक्षे मा चल मा चल:।
देवगुरु बृहस्पति के कहे अनुसार इंद्राणी ने सावन मास की श्रावणी पूर्णिमा के शुभ मुहूर्त पर इंद्र की दाहिनी कलाई पर विधि विधान से रक्षा सूत्र बांधा और युद्धभूमि में लड़ने के लिए भेज दिया. रक्षा सूत्र यानि रक्षा बंधन के प्रभाव से राक्षस पराजित हुए और देवराज इंद्र को पुन: खोया हुआ राज्य और सम्मान प्राप्त हुआ. मान्यता है कि इस दिन से रक्षाबंधन की परंपरा का आरंभ हुआ.
कथा का महत्व
मान्यता है कि रक्षाबंधन के दिन बहनों को इस कथा का पाठ करना चाहिए और राखी बांधने से पूर्व इस कथा को भाई को भी सुनाना चाहिए. इस कथा को सुनने और पढ़ने से पुण्य प्राप्त होता है और जीवन कई बाधाओं से मुक्ति मिलती है और कार्यों में सफलता प्राप्त होती है.

     हर हर महादेव
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रक्षा-बन्धन का शास्त्रोक्त तात्पर्य या दर्शनः-

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
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रक्षा-बन्धन का शास्त्रोक्त तात्पर्य या दर्शनः-

येन बद्धो बलि राजा दानवेन्द्रो महाबलः।
तेन त्वाम् अनुबध्नामि, रक्ष मा चल मा चल।।
भारतीय अध्यात्म एवं दर्शन में श्री अर्थात् श्रेय की देवी है लक्ष्मी। देवी का अर्थ है प्रकाशित करने वाली ज्योति अर्थात् वह ज्ञानरश्मि जो हमें इस तथ्य का बोध प्रदान करे कि क्या करने, जानने, मानने, चिन्तन-मनन आदि करने से तथा किस दृष्टिकोण से वस्तु, व्यक्ति, देश काल, द्रव्य, कर्म, भोग, पद, सम्बन्ध, उपाधि आदि प्रपंच की प्रतीतियों को देखने से श्रेय की प्राप्ति होती है, प्रेय के बन्धन से मुक्ति मिलती है, उस श्रेयस्कर ज्ञान की उद्भासिका देवी का नाम है श्री या लक्ष्मी।
उक्त श्री की देवी के पति, सिरमौर, आधार एवं रक्षक हैं भगवान विष्णु अर्थात् वह सत्ता जो कि सर्वव्याप्त है, कण-कण, क्षण-क्षण, चराचर, व्यक्ताव्यक्त, दृश्यादृश्य में सर्वत्र समाई हुई है, व्याप्त है, ओतप्रोत है, ठीक वैसे ही जैसे कि कपड़े में सूत अथवा धागा ओतप्रोत रहता है।
भारतीय दर्शन एवं प्रतीकशास्त्र बताता है कि वे विष्णु भगवान शेष नाग पर विराजमान हैं। अब प्रश्न है कि यह शेष कौन है? और नाग कौन है? वेदान्त बताता है कि जिज्ञासु जब अपनी नित्यानित्य विवेक दृष्टि से प्रपंच की प्रत्येक प्रतीति के सत्यत्व का निषेध कर देता है, उसके मिथ्यात्व को जान लेता है, तो उन सबके निषेध के उपरान्त केवल स्वयं निषेधकर्ता ही अन्तिम सत्य के रूप में शेष रह जाता है, क्यों? क्योंकि इस निषेधकर्ता का निषेध वैसे ही संभव नहीं है, जैसे कि कोई कहे कि मेरे मुँह में जीभ नहीं है। इस प्रकार समस्त प्रपंच के अशेष निषेध के उपरान्त जो निषेधकर्ता स्वयमेव शेष रहता है, वही सर्वव्याप्त आत्मसत्ता या विष्णु है, और उस निर्विकार शेष सत्ता में कोई आग नहीं है अर्थात् राद-द्वेषादि पंचक्लेशों की आग उसमें नहीं है, और इसलिए, वह नाग (न+आग) है। इस प्रकार, इस केवल शेषनाग-स्वरूप, अपरोक्ष-बोधाधार पर प्रतिष्ठित, विराजमान एवं अभिव्यक्त व्यावहारिक साकार विवर्त का नाम है विष्णु भगवान।
रूपक का अगला पात्र है महाबली दानवेन्द्र राजा बली। राजा बली दानवों के त्रिलोकजयी सम्राट थे अपनी दानशीलता के लिए सर्वत्र प्रसिद्ध थे और उसी दानशीलता के कारण महाबली भी थे। दानशीलता में सर्वोत्कृष्ट गुण सतोगुण की चरम अभिव्यक्ति होती है। तमोगुणी अहंकार बहुत बलवान होता है किन्तु सतोगुण का अहंकार, दानशीलता का अहंकार, अच्छे कार्यों का अहंकार तो महाबली होने के साथ-साथ छद्म-श्रेष्ठता, छद्म-श्रेय या छद्म-श्री के भाव से भी पुष्ट होता है। तमोगुण एवं रजोगुण को हेय जानने के कारण, इन्हें दुर्गण समझने के कारण, इनका त्याग तो सभी करना चाहते हैं, किन्तु सतोगुण में श्रेष्ठता या श्रेय का भाव होने से, इसका त्याग दुष्कर है और फलस्वरूप सतोगुणी कर्मों के अहंकार से जिज्ञासु के स्वरूपज्ञान का, अपरोक्ष-बोध का, विष्णुत्व का, आत्मा के सर्वव्यापकत्व का हरण हो जाता है, आत्मज्ञान पर अहंकार का आवरण आजाता है, बन्धनग्रस्त हो जाता है। इसी का नाम दानवराज बली द्वारा विष्णु भगवान को पाताल में अपने द्वार पर नियुक्त कर देना है अर्थात् आत्मज्ञान का दिखावा करना है, जिसका परिणाम उस अपरोक्ष बोध का, स्वरूपज्ञान का, आत्मा के विष्णुत्व का असुरक्षित हो जाना है।
ऐसी स्थिति में श्रेय की देवी लक्ष्मी अर्थात् श्रेयदात्री आत्मनिष्ठ बुद्धि सतोगुण के अहंकार से दर्पित तथा जीवभाव से भावित राजा बली को अपने सर्वोत्कृष्ठ, सिरमौर, पतिस्वरूप आत्मज्ञान या अपरोक्षबोध को अक्षुण्य रखने की, उसे सुरक्षित रखने की, अहंकारमुक्त रखने की, श्री या श्रेयभाव के भक्षक से रक्षक होने की अभ्यर्थना करती है, सतोगुण के अहंकार के फैलाव या प्रसार का ऋतम्भरा प्रज्ञा से शमन करती है। ऋतम्भरा प्रज्ञा के द्वारा अहंकार को नित्यानित्य विवेक, वैराग्य, षट-सम्पत्ति एवं तीव्र मुमुक्षा रूपी रक्षासूत्रों द्वारा आवेष्ठित करती है, ब्रह्मसूत्र बांधती है और इसी सूत्रबन्धन का नाम आत्मभाव की अहंकार से रक्षा-बन्धन करना है। रक्षा-बन्धन का यही शास्त्रिय दर्शन है। अस्तु।

     हर हर महादेव
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*💥रक्षाबंधन मौली या कलावा बांधने के 10 प्रमुख कारण💥*

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*💥रक्षाबंधन मौली या कलावा बांधने के 10 प्रमुख कारण💥*

मौली बांधना वैदिक परंपरा का हिस्सा है। मौली को कलाई में बांधने के कारण इसे कलावा भी कहते हैं। इसका वैदिक नाम उप मणिबंध भी है। मौली बांधने के 3 कारण हैं- पहला आध्यात्मिक, दूसरा चिकित्सीय और तीसरा मनोवैज्ञानिक। हालांकि आज मौली, कलावा और राखी के स्वरूप में फर्क है। आओ जानते हैं इसे बांधे जाने के 10 प्रमुख कारण।


1. किसी की रक्षा हेतु : सबसे पहले इंद्र की पत्नी शचि ने वृत्तसुर से युद्ध में इंद्र की रक्षा के लिए रक्षा सूत्र बांधा था। इसलिए जब भी कोई युद्ध में जाता है तो उसकी कलाई पर कलाया, मौली या रक्षा सूत्र बांधकर उसकी पूजा की जाती है।

2. किसी को वचन देने हेतु : असुरों के दानवीर राजा बलि ने दान देने से पूर्व यज्ञ में रक्षा सूत्र बांधा था और फिर जब दान में तीन पग भूमि दे दी तक प्रसन्न होकर उसकी अमरता के लिए भगवान वामन ने उसकी कलाई पर रक्षा-सूत्र बांधकर उसे उसकी रक्षा करने का वचन दिया और सदा उसके पास रहने का वचन दिया था।

3. भाई बहन का एक दूसरे की रक्षा हेतु बंधन : इसे रक्षाबंधन का भी प्रतीक माना जाता है, ‍जबकि देवी लक्ष्मी ने राजा बलि के हाथों में अपने पति की रक्षा के लिए यह बंधन बांधा था और अपने पति को अपने साथ ले गई थी।

4. मन्नत के लिए : मौली को मन्नत के लिए किसी देवी-देवता के स्थान पर भी बांधा जाता है और जब मन्नत पूरी हो जाती है तो इसे खोल दिया जाता है।

5. सभी की रक्षा हेतु : इसे घर में लाई गई नई वस्तु को भी बांधा जाता और इसे पशुओं को भी बांधा जाता है। इसके अलावा पालतू पशुओं में हमारे गाय, बैल और भैंस को भी पड़वा, गोवर्धन और होली के दिन मौली बांधी जाती है।
6. किसी शुभ कार्य की शुरुआत हेतु : किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत करते समय या नई वस्तु खरीदने पर हम उसे मौली बांधते हैं ताकि वह हमारे जीवन में शुभता प्रदान करे। किसी अच्छे कार्य की शुरुआत में संकल्प के लिए भी भी मौली बांधते हैं।

7. प्रत्येक धार्मिक क्रिया कर्म में : हिन्दू धर्म में प्रत्येक धार्मिक कर्म यानी पूजा-पाठ, उद्घाटन, यज्ञ, हवन, संस्कार, मांगलिक कार्य, आदि के पूर्व पुरोहितों द्वारा यजमान के दाएं हाथ में मौली बांधी जाती है।

8. मौली करती है रक्षा : मौली को कलाई में बांधने पर कलावा या उप मणिबंध करते हैं। हाथ के मूल में 3 रेखाएं होती हैं जिनको मणिबंध कहते हैं। भाग्य व जीवनरेखा का उद्गम स्थल भी मणिबंध ही है। इन तीनों रेखाओं में दैहिक, दैविक व भौतिक जैसे त्रिविध तापों को देने व मुक्त करने की शक्ति रहती है।

इन मणिबंधों के नाम शिव, विष्णु व ब्रह्मा हैं। इसी तरह शक्ति, लक्ष्मी व सरस्वती का भी यहां साक्षात वास रहता है। जब हम कलावा का मंत्र रक्षा हेतु पढ़कर कलाई में बांधते हैं तो यह तीन धागों का सूत्र त्रिदेवों व त्रिशक्तियों को समर्पित हो जाता है जिससे रक्षा-सूत्र धारण करने वाले प्राणी की सब प्रकार से रक्षा होती है। इस रक्षा-सूत्र को संकल्पपूर्वक बांधने से व्यक्ति पर मारण, मोहन, विद्वेषण, उच्चाटन, भूत-प्रेत और जादू-टोने का असर नहीं होता।

शास्त्रों का ऐसा मत है कि मौली बांधने से त्रिदेव- ब्रह्मा, विष्णु व महेश तथा तीनों देवियों- लक्ष्मी, पार्वती व सरस्वती की कृपा प्राप्त होती है। ब्रह्मा की कृपा से कीर्ति, विष्णु की कृपा से रक्षा तथा शिव की कृपा से दुर्गुणों का नाश होता है। इसी प्रकार लक्ष्मी से धन, दुर्गा से शक्ति एवं सरस्वती की कृपा से बुद्धि प्राप्त होती है। यह मौली किसी देवी या देवता के नाम पर भी बांधी जाती है जिससे संकटों और विपत्तियों से व्यक्ति की रक्षा होती है। यह मंदिरों में मन्नत के लिए भी बांधी जाती है।

इसमें संकल्प निहित होता है। मौली बांधकर किए गए संकल्प का उल्लंघन करना अनुचित और संकट में डालने वाला सिद्ध हो सकता है। यदि आपने किसी देवी या देवता के नाम की यह मौली बांधी है तो उसकी पवित्रता का ध्यान रखना भी जरूरी हो जाता है। कमर पर बांधी गई मौली के संबंध में विद्वान लोग कहते हैं कि इससे सूक्ष्म शरीर स्थिर रहता है और कोई दूसरी बुरी आत्मा आपके शरीर में प्रवेश नहीं कर सकती है। बच्चों को अक्सर कमर में मौली बांधी जाती है। यह काला धागा भी होता है। इससे पेट में किसी भी प्रकार के रोग नहीं होते।

9. सेहत के लिए मौली : प्राचीनकाल से ही कलाई, पैर, कमर और गले में भी मौली बांधे जाने की परंपरा के ‍चिकित्सीय लाभ भी हैं। शरीर विज्ञान के अनुसार इससे त्रिदोष अर्थात वात, पित्त और कफ का संतुलन बना रहता है। पुराने वैद्य और घर-परिवार के बुजुर्ग लोग हाथ, कमर, गले व पैर के अंगूठे में मौली का उपयोग करते थे, जो शरीर के लिए लाभकारी था। ब्लड प्रेशर, हार्टअटैक, डायबिटीज और लकवा जैसे रोगों से बचाव के लिए मौली बांधना हितकर बताया गया है।

शरीर की संरचना का प्रमुख नियंत्रण हाथ की कलाई में होता है अतः यहां मौली बांधने से व्यक्ति स्वस्थ रहता है। उसकी ऊर्जा का ज्यादा क्षय नहीं होता है। शरीर विज्ञान के अनुसार शरीर के कई प्रमुख अंगों तक पहुंचने वाली नसें कलाई से होकर गुजरती हैं। कलाई पर कलावा बांधने से इन नसों की क्रिया नियंत्रित रहती है। कमर पर बांधी गई मौली के संबंध में विद्वान लोग कहते हैं कि इससे सूक्ष्म शरीर स्थिर रहता है और कोई दूसरी बुरी आत्मा आपके शरीर में प्रवेश नहीं कर सकती है। बच्चों को अक्सर कमर में मौली बांधी जाती है। यह काला धागा भी होता है। इससे पेट में किसी भी प्रकार के रोग नहीं होते।

10. मनोवैज्ञानिक लाभ : मौली बांधने से उसके पवित्र और शक्तिशाली बंधन होने का अहसास होता रहता है और इससे मन में शांति और पवित्रता बनी रहती है। व्यक्ति के मन और मस्तिष्क में बुरे विचार नहीं आते और वह गलत रास्तों पर नहीं भटकता है। कई मौकों पर इससे व्यक्ति गलत कार्य करने से बच जाता है।
।।। जय अंबे ।।। जय अंबे ।।। जय अंबे ।।।
पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
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*सुगम यज्ञोपवीत धारण विधि* / *समर्पण*

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

*सुगम  यज्ञोपवीत धारण विधि* 

बन्धुओं जैसा की आप सभी को ज्ञात है कि *श्रावणी पर्व ( रक्षा बंधन ) श्रावण शुक्ल पूर्णिमा  दि.०३/०८/२०२०  सोमवार* को मनाया जायगा । 


हर वर्ष हम सभी एक साथ या अपने -२ समूह मे  उपाकर्म करते थे।  

किन्तु इस साल हम कोरोना वैश्विक महामारी के चलते एकत्रित नही हो सकते और हमें कर्म का लोप भी नहीं करना है अत: आप सभी नीचे दी हुई सरल विधि से घर पर यज्ञोपवीत धारण कर सकते है ।

हमने आँनलाइन भी विधि की व्यवस्था की है । 

उस दीन भद्रा भी है जो प्रात: ०९:३० को समाप्त होगी । 

भद्रोपरान्त ही यज्ञोपवीत बदले । 

विधि-

१.स्नान करके श्वेत वस्त्र धोती व भस्म इत्यादि धारण करके पूर्वाभिमुख आसन पर बैठ जावे ।

२.सामने नवीन यज्ञोपवीत पात्र मे रखकर उस पर जल छिड़के ।

३.जनेऊ को बायें हाथ मे रखकर सीधे हाथ से ढक ले व दस बार गायत्री मंत्र का पाठ करे।

0. तत्पश्चात जनेऊ को पात्र मे रखकर , बायें हाथ मे अक्षत लेकर सीधे हाथ से अक्षत के २-४ दाने तंतु देवता का नाम लेते हुये छोड़ते रहे । 

१. *ॐकाराय नम: आवाहयामि स्थापयामि*

२. *अग्नये नम: आवाहयामि स्थापयामि*

३. *नागेभ्यो नम: आवाहयामि स्थापयामि*

४. *सोमाय नम: आवाहयामि स्थापयामि*

५. *पितृभ्यो नम: आवाहयामि स्थापयामि*

६. *प्रजापतये नम:आवाहयामि स्थापयामि*

७. *अनिलाय नम: आवाहयामि स्थापयामि*

८. *यमाय नम: आवाहयामि स्थापयामि*

९. *विश्वेभ्यो देवेभ्यो नम: आवाहयामि स्थापयामि*

१०. *ब्रह्माविष्णुरूद्रेभ्यो  नम: आवाहयामि स्थापयामि*

0. पश्चात जनेऊ की गंध अक्षत पुष्प से पूजा करे ।

0. जनेऊ खोलकर दोनों हाथो को ऊँचा करके सूर्य का दर्शन करावे । 

0. *यज्ञोपवीतं परमं पवित्रं प्रजापतेर्यत् सहजं पुरस्तात्* *।
आयुष्यमग्रयं प्रतिमुंच शुभ्रं यज्ञोपवीतं बलमस्तु तेज़:* ।।

इस मंत्र का पाठ करके जनेऊ धारण करे ।

0. धारण करके एक बार आचमन करे ।

0. जीर्ण जनेऊ को सिरमार्ग से निकालकर स्वच्छ स्थान पर रखे ।

0. यथाशक्ति गायत्री मंत्र का पाठ करे , आसन के सामने जल छोड़कर नेत्रों से लगा लेवे।
।।।।।। हर हर हर महादेव हर ।।।।

।। श्रीमद्भागवत गीता प्रवचन ।।

*समर्पण*

निष्क्रिय पड़ी हुई इच्छाएं धीरे-धीरे सपने बनकर खो जाती हैं। 

जिसके पीछे हम अपनी शक्ति लगा देते हैं ।


अपने को लगा देते हैं । 

वह इच्छा संकल्प बन जाती है।

संकल्प का अर्थ है, जिस इच्छा को पूरा करने के लिए हमने अपने को दांव पर लगा दिया।

तब वह डिजायर न रही, विल हो गई। 

और जब कोई संकल्प से भरता है, तब और भी गहन खतरे में उतर जाता है। 

क्योंकि अब इच्छा, मात्र इच्छा न रही कि मन में उसने सोचा हो कि महल बन जाए। 

अब वह महल बनाने के लिए जिद्द पर भी अड़ गया। 

जिद्द पर अड़ने का अर्थ है कि अब इस इच्छा के साथ उसने अपने अहंकार को जोड़ा। 

अब वह कहता है कि अगर इच्छा पूरी होगी, तो ही मैं हूं। 

अगर इच्छा पूरी न हुई, तो मैं बेकार हूं। 

अब उसका अहंकार इच्छा को पूरा करके अपने को सिद्ध करने की कोशिश करेगा। 

जब इच्छा के साथ अहंकार संयुक्त होता है, तो संकल्प निर्मित होता है।

अहंकार, मैं, जिस इच्छा को पकड़ लेता है, फिर हम उसके पीछे पागल हो जाते हैं। 

फिर हम सब कुछ गंवा दें, लेकिन इस इच्छा को पूरा करना बंद नहीं कर सकते। 

हम मिट जाएं। 

अक्सर ऐसा होता है कि अगर आदमी का संकल्प पूरा न हो पाए, तो आदमी आत्महत्या कर ले। 

कहे कि इस जीने से तो न जीना बेहतर है। 

पागल हो जाए। 

कहे कि इस मस्तिष्क का क्या उपयोग है! 

संकल्प

लेकिन साधारणतः हम सभी को सिखाते हैं संकल्प को मजबूत करने की बात। 

अगर स्कूल में बच्चा परीक्षा उत्तीर्ण नहीं कर पा रहा है, तो शिक्षक कहता है, संकल्पवान बनो। 

मजबूत करो संकल्प को। 

कहो कि मैं पूरा करके रहूंगा। 

दांव पर लगाओ अपने को। 

अगर बेटा सफल नहीं हो पा रहा है, तो बाप कहता है कि संकल्प की कमी है। 

चारों तरफ हम संकल्प की शिक्षा देते हैं। 

हमारा पूरा तथाकथित संसार संकल्प के ही ऊपर खड़ा हुआ चलता है।

कृष्ण बिलकुल उलटी बात कहते हैं। 

वे कहते हैं, संकल्पों को जो छोड़ दे बिलकुल। 

संकल्प को जो छोड़ दे, वही प्रभु को उपलब्ध होता है। 

संकल्प को छोड़ने का मतलब हुआ, समर्पण हो जाए।

कह दे कि जो तेरी मर्जी। 

मैं नहीं हूं। 

समर्पण का अर्थ है कि जो हारने को, असफल होने को राजी हो जाए।

ध्यान रखें ।

फलाकांक्षा छोड़ना और असफल होने के लिए राजी होना, एक ही बात है। 

असफल होने के लिए राजी होना और फलाकांक्षा छोड़ना, एक ही बात है। 

जो जो भी हो, उसके लिए राजी हो जाए।

जो कहे कि मैं हूं ही नहीं सिवाय राजी होने के, एक्सेप्टिबिलिटी के अतिरिक्त मैं कुछ भी नहीं हूं। 

जो भी होगा, उसके लिए मैं राजी हूं। 

ऐसा ही व्यक्ति संन्यासी है।

गीता दर्शन 
जय श्री कृष्ण

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।। स्वयं प्रभु मूर्तिमान होकर जनाबाई का हाथ बंटाते / श्री रामचरित्रमानस प्रवचन / एक सुंदर पंक्ति ।।

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।। सुंदर कहानी ।।

।। स्वयं प्रभु मूर्तिमान होकर जनाबाई का हाथ बंटाते / श्री रामचरित्रमानस प्रवचन  / एक सुंदर पंक्ति ।।

*"स्वयं प्रभु मूर्तिमान होकर जनाबाई का हाथ बंटाते"*


इस प्रसंग के बाद भगवान के प्रति जनाबाई का प्रेम बहुत बढ़ गया। 

भगवान समय - समय पर उसे दर्शन देने लगे। 


जनाबाई चक्की पीसते समय भगवान के ‘अभंग’ गाया करती थी ।

गाते - गाते जब वह अपनी सुध - बुध भूल जाती ।

तब उसके बदले में भगवान स्वयं चक्की पीसते और जनाबाई के अभंग सुनकर प्रसन्न होते।

जनाबाई की काव्य-भाषा सर्वसामान्य लोगों के हृदय को छू लेती है। 

महाराष्ट्र के गांव-गांव में स्त्रियां चक्की पीसते हुए ।

ओखली में धान कूटते हुए उन्हीं की रचनाएं गाती हैं।

भगवान विट्ठलनाथ के दरबार में जनाबाई का क्या स्थान है ।

यह इससे सिद्ध होता है कि नदी से पानी लाते समय ।

चक्की से आटा पीसते समय ।

घर की झाड़ू लगाते समय । 

और कपड़े धोते समय भगवान स्वयं जनाबाई का हाथ बंटाते थे।

अपने भक्त और अनन्यचिन्तक के योगक्षेम का वहन वह दयामय स्वयं करता है। 

किसी दूसरे पर वह इसे छोड़ कैसे सकता है। 

जिसे एक बार भी वह अपना लेते हैं ।

जिसकी बांह पकड़ लेते हैं ।

उसे एक क्षण के लिए भी छोड़ते नहीं। 

भगवान ऊंच - नीच नहीं देखते । 

जहां भक्ति देखते हैं ।

वहीं ठहर जाते हैं–

जहां कहीं भी कृष्ण नाम का उच्चारण होता है । 

वहां वहां स्वयं कृष्ण अपने को व्यक्त करते हैं। 

नाम के साथ स्वयं श्रीहरि सदा रहते हैं।

रैदास के साथ वे चमड़ा रंगा करते थे ।

कबीर से छिपकर उनके वस्त्र बुन दिया करते थे ।

धर्मा के घर पानी भरते थे ।

एकनाथजी के यहां श्रीखंडमा बन - कर चौका - बर्तन करते थे,

ज्ञानदेव की दीवार खींचते थे । 

नरहरि सुनार के साथ सुनारी करते थे और जनाबाई के साथ गोबर बटोरते थे।

जप-कीर्तन के माध्यम से मनुष्य क्या कुछ बन सकता है, 

एक दिन भगवान के गले का रत्न - पदक ( आभूषण ) चोरी हो गया। 

मन्दिर के पुजारियों को जनाबाई पर संदेह हुआ क्योंकि मन्दिर में सबसे अधिक आना - जाना जनाबाई का लगा रहता था। 

जनाबाई ने भगवान की शपथ लेकर पुजारियों को विश्वास दिलाया कि आभूषण मैंने नहीं लिया है ।

पर किसी ने इन पर विश्वास नहीं किया। 

लोग उसे सूली पर चढ़ाने के लिए चन्द्रभागा नदी के तट पर ले गए। 

जनाबाई विकल होकर ‘विट्ठल-विट्ठल’ पुकारने लगी। 

देखते - ही-देखते सूली पिघल कर पानी हो गयी। 

तब लोगों ने जाना कि भगवान के दरबार में जनाबाई का कितना उच्च स्थान है। 

यह है भगवान का प्रेमानुबन्ध

जिस क्षण मनुष्य भगवान का पूर्ण आश्रय ले लेता है ।

उसी क्षण परमेश्वर उसकी रक्षा का भार अपने ऊपर ले लेते है। 

भगवान का कथन है–

 ‘अपने भक्तों का एकमात्र आश्रय मैं ही हूँ।

इसलिए अपने साधुस्वभाव भक्तों को छोड़कर मैं न तो अपने - आपको चाहता हूँ और न अपनी अर्धांगिनी विनाशरहित लक्ष्मी को।’

‘हौं भक्तन को भक्त हमारे’ भगवान की यह प्रतिज्ञा है।

पूर्ण शरणागति और अखण्ड प्रेम से सब कुछ सम्भव है। 

संसारी मनुष्यों के लिए यह असम्भव लगता है ।

परन्तु भक्तों के लिए बहुत साधारण सी बात है।

एक बार कबीरदासजी जनाबाई का दर्शन करने पंढरपुर गए। 

उन्होंने वहां देखा कि दो स्त्रियां गोबर के उपलों के लिए लड़ रहीं थीं। 

कबीरदासजी वहीं खड़े हो गए और वह दृश्य देखने लगे। 

फिर उन्होंने एक महिला से पूछा–

’आप कौन हैं?’ 

उसने कहा–

मेरा नाम जनाबाई है।’

कबीरदासजी को बड़ा आश्चर्य हुआ। 

हम तो परम भक्त जनाबाई का नाम सुनकर उनका दर्शन करने आए हैं और ये गोबर से बने उपलों के लिए झगड़ रही हैं।

उन्होंने जनाबाई से पूछा–

’आपको अपने उपलों की कोई पहचान है।’ 

जनाबाई ने उत्तर दिया–

 ’जिन उपलों से.....

 ‘विट्ठल-विट्ठल’ की ध्वनि निकलती हो ।

वे हमारे हैं।’

कबीरदासजी ने उन उपलों को अपने कान के पास ले जाकर देखा तो उन्हें वह ध्वनि सुनाई पड़ी। 

यह देखकर कबीरदासजी आश्चर्यचकित रह गए और जनाबाई की भक्ति के कायल हो गए।

नामदेवजी के साथ जनाबाई का कुछ पारलौकिक सम्बन्ध था। 

संवत १४०७ में नामदेवजी ने समाधि ली ।

उसी दिन उनके पीछे-पीछे कीर्तन करती हुई जनाबाई भी विठ्ठल भगवान में विलीन हो गईं

   🌹🙏🏻🚩 *जय राम राम राम सियाराम* 🚩🙏🏻🌹
      🚩🙏🏻 *जय विठ्ठल विठ्ठल विठ्ठला हरि ॐ विठ्ठला* 🙏🏻🚩
    🌹🙏🏻 *जय द्वारकाधीश* 🙏🏻🌹

।। श्री रामचरित्रमानस प्रवचन ।।

राम  राम राम।।🍁

         🍁 *सुगम साधन* 🍁


जो मेरी दृष्टि में महापुरुष हैं, उनसे भी मैंने पूछा है । 

उन्होंने कहा है कि

 *जो मनुष्य परमात्मा को अपना मान लेता है ।* 

*उसे जनाने की जिम्मेदारी परमात्मा पर आ जाती है*,

 क्योंकि परमात्मा ही जना सकते हैं, हम नहीं जान सकते।  

जहां हम असमर्थ होते हैं ।

वहां भगवान् की सामर्थ्य काम करती है। 

कितनी बढ़िया बात है कि 'मैं भगवान् का हूँ और भगवान् मेरे हैं।

मैं संसार का नहीं और संसार मेरा नहीं,-- 

यह मानने की योग्यता आप में है! 

आपमें जितनी योग्यता है उतनी आप लगा दें।  

जो नहीं है ।  

उसकी पूर्ति भगवान् करेंगे-- 

*_सुने री मैंने निरबल के बल राम।_* 

जितने अंश में आप निर्बल हैं, उतने अंश में भगवान् का बल काम करता है।  

परंतु जितने अंश में आप सबल हैं  उतना बल आप नहीं लगाते तो इसमें दोष आपका है ।

इसकी जिम्मेदारी भगवान् पर नहीं है।

 ( *साधन-सुधा-सिंधु* पृष्ठ २६८)

।। एक सुंदर पंक्ति ।।


☝🏼जब  भी  बैठो  मालिक  के  आगे , अरदास  करो ,  कहो  कि  हे  परमात्मा 
मेरा  भजन-सिमरन  में  मन  लगे 
अन्दर  का  रस  आये 
मेरे  में  इतनी  ताकत  नहीं  कि  मैं  भजन-सिमरन  में  बैठ  सकूँ ।


तू  ही  मुझे  नींद  से  उठाकर भजन-सिमरन  पर  बैठा  सकता  है 
मेरे  में  इतनी  हिम्मत  नहीं  कि  मैं  खुद  उठ  सकूँ  
दया  करो  मालिक ,  कृपा  करो , मेहर  करो ...
मुझे  वो  नहीं  देना  जो  मुझे  अच्छा  लगता  हो
बल्कि  वो  देना  जो  मेरे  लिये  सही  हो  ...
 🙏🙏राम राम -राम राम राम🙏🙏
पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
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*आप भगवान हो...?*

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जय द्वारकाधीश

एक बच्चा दोपहर में मंदिर के सामने तपती सड़क पर नंगे पैर फूल बेच रहा था , लोग मोलभाव कर रहे थे।

एक सज्जन ने उसके पैर देखें बहुत दुखी हुए वह भाग कर पास ही की एक दुकान से जूते लेकर आये और कहा बेटा जूते पहन ले , लड़के ने फटाफट जूते पहने ,बड़ा खुश हुआ और उस आदमी का हाथ पकड़ के कहने लगा 

*आप भगवान हो...?*


🙏🏻💐🎉🕉️🕉️🎉💐🙏🏻
 
   वह आदमी घबरा कर बोला नहीं, नहीं बेटा, मैं भगवान नहीं, फिर लड़का बोला, जरूर आप भगवान के दोस्त होंगे...

*क्योंकि, मैंने कल रात ही भगवान से प्रार्थना की थी कि भगवानजी मेरे पैर बहुत जलते हैं , मुझे जूते ले करके दो ...*

वह आदमी आंखों में पानी लिए मुस्कुराता हुआ चला गया पर *वो जान गया था कि भगवान का दोस्त बनना ज्यादा मुश्किल नहीं है।*

 कुदरत ने दो रास्ते बनाए हैं ।
*(1)  देकर  जाओ*
*(2)  या  फिर  छोड़  कर  जाओ* 

*साथ लेकर के जाने की कोई व्यवस्था नहीं है*

*🎄🌹꧁!! जीवन का सत्य !!꧂🌹🎄​*

*प्रसन्नता कभी कोई नहीं दे सकता, ना ही बाजार में किसी दुकान पर जाकर पैसे देकर आप खरीद सकते हैं।* 

*अगर पैसे से प्रसन्नता मिलती तो दुनिया के सारे अमीर खरीद लेते।*
 

    
*प्रसन्नता जीवन जीने के ढंग से आती है।* 

*जिंदगी भले ही खूबसूरत हो लेकिन जीने का अंदाज खूबसूरत ना हो तो जिंदगी को बदसूरत होते देर नहीं लगती।* 

*झोंपड़ी में भी कोई आदमी आनन्द से लबालब मिल सकता है और कोठियों में भी दुखी, अशांत, परेशान आदमी मिल जायेगा।*
         
*आज से ही सोचने का ढंग बदल ले, जिंदगी उत्सव बन जायेगी।* 

*स्मरण रखिए संसार जुड़ता है त्याग से और बिखरता है स्वार्थ से।* 

*त्याग के मार्ग पर चलेगे तो सबका अनुराग बिना माँगे ही मिलेगा और जीवन बाग़ बनता चला जायेगा..!!*
  *🙏🏾🙏🏽🙏🏿जय जय श्री राधे  राधे*🙏🙏🏻🙏🏼
जय श्री कृष्ण जय श्री कृष्ण जय श्री कृष्ण

*प्रेरक प्रसंग*

    *! !  सम्मान  ! !*

 एक वृद्ध माँ रात को 11:30 बजे रसोई में बर्तन साफ कर रही है, घर में दो बहुएँ हैं । 

जो बर्तनों की आवाज से परेशान होकर अपने पतियों को सास को उल्हाना देने को कहती हैं। 

वो कहती है- आपकी माँ को मना करो इतनी रात को बर्तन धोने के लिये हमारी नींद खराब होती है।

 साथ ही सुबह 4 बजे उठकर फिर खट्टर पट्टर शुरू कर देती है सुबह 5 बजे पूजा-आरती करके हमे सोने नहीं देती ना रात को ना ही सुबह। 

जाओ सोच क्या रहे हो जाकर माँ को मना करो।

 बड़ा बेटा खड़ा होता है और रसोई की तरफ जाता है। 

रास्ते में छोटे भाई के कमरे में से भी वही बातें सुनाई पड़ती जो उसके कमरे में हो रही थी वो छोटे भाई के कमरे को खटखटा देता है छोटा भाई बाहर आता है।

 दोनो भाई रसोई में जाते हैं, और माँ को बर्तन साफ करने में मदद करने लगते हैं ।

माँ मना करती पर वो नहीं मानते, बर्तन साफ हो जाने के बाद दोनों भाई माँ को बड़े प्यार से उसके कमरे में ले जाते हैं ।

 तो देखते हैं पिताजी भी जागे हुए हैं।

 दोनो भाई माँ को बिस्तर पर बैठा कर कहते हैं, माँ सुबह जल्दी उठा देना, हमें भी पूजा करनी है और सुबह पिताजी के साथ योगा भी करेंगे।

 माँ बोली ठीक है बच्चों, दोनो बेटे सुबह जल्दी उठने लगे, रात को 9:30 पर ही बर्तन मांजने लगे, तो पत्नियां बोलीं माता जी करती तो हैं । 

आप क्यों कर रहे हो बर्तन साफ, तो बेटे बोले हम लोगों की शादी करने के पीछे एक कारण यह भी था कि माँ की सहायता हो जायेगी पर तुम लोग ये कार्य नहीं कर रही हो कोई बात नहीं हम अपनी माँ की सहायता कर देते हैं।

 हमारी तो माँ है इसमें क्या बुराई है, अगले तीन दिनों में घर में पूरा बदलाव आ गया बहुएँ जल्दी बर्तन इसलिये साफ करने लगी की नहीं तो उनके पति बर्तन साफ करने लगेंगे। 

साथ ही सुबह भी वो भी पतियों के साथ ही उठने लगी और पूजा आरती में शामिल होने लगी

 कुछ दिनों में पूरे घर के वातावरण में पूरा बदलाव आ गया। 

बहुएँ सास ससुर को पूरा सम्मान देने लगी।

*शिक्षा:-*

माँ का सम्मान तब कम नहीं होता जब बहुएं उनका सम्मान नहीं करती, 

माँ का सम्मान तब कम होता है जब बेटे माँ का सम्मान नहीं करें या माँ के कार्य में सहयोग ना करें।
जय श्री कृष्ण
...जय श्री कृष्ण....जय श्री कृष्ण... जय श्री कृष्ण....
पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 
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नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏

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