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मीराबाई की कल्पना :

||मीराबाई की कल्पना में श्याम सुन्दर जी / राधा रानी की शक्ति ||


मीराबाई की कल्पना में श्याम सुन्दर जी....!

मीराबाई यमुना किनारे जल लेकर लौट रही है धीरे - धीरे भाव जगत में खो गयी उनके नेत्र इधर उधर निहार कर अपना धन खोज रही है । 

निराशा ,आशा उनके पद उठने नही देती। 






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निराशा कहती है की अब नही आयेंगे वो चल घर चल और आशा कहती है की यही कही होंगे अभी आ जायेंगे। 

नैन मन ठंडे कर ले मीराबाई जी सोच रही की घर जाने पर संध्या पूर्व दर्शन - लाभ की आशा नहीं! 

इसी भाव से दो पद शीघ्र और चार पद धीमे चलती जा रही थी की किसी ने उसके सर से कलशी उठा ली।




मीराबाई ने अचकचाकर उपर देखा तो एक कदम्ब पर एक हाथ से डाल पकड़े और एक हाथ में कलशी लटकाए श्याम सुन्दर जी बेठे हंस रहे हैं। 

हीरक दन्त प्रवाल अधरों की आभा पा तनिक रक्ताम्भ हो उठे है और अधरों पर दन्त पंक्ति की उज्ज्वलता झलक रही है।

नेत्रों में अचगरि जैसे मूरत हो गयी। 

लाज के मारे मीराबाई जी की द्रष्टि ठहरती नही, लजा निचे और प्रेम - उत्सुकता उपर देखने को विवश कर रही है।

कलशी से ढले पानी से वस्त्र और सर्वांग आर्द्र हैं। 

कलशी दे दो यह कहते हुए भी नहीं बन पा रहा है। 

श्याम सुन्दर जी एकदम वृक्ष से उसके समुख कूद पड़े मीराबाई जी चोंक कर चीख पड़ी साथ ही उन्हें देख कर लजा गयी।

मीराबाई जी के गाल कर्ण लाल हो गए।

श्री श्याम सुन्दर जी बोले- 

डर गयी न ? 

उन्होंने हंस कर पूछा और हाथ पकड कर कहा चल आ थोड़ी देर बैठ कर बातें करे। 

वृक्ष ताल की एक शिला पर दोनों बैठ गए।

श्याम सुन्दर जी बोले- 

क्या लगा तुझे कोई वानर अथवा भल्लुक कूद पड़ा है न। 

श्याम सुन्दर जी ने उनकी मुखडा थोड़ी ऊँची करते हुए पूछा - 

मैं क्या करूँ । 

बोलेगी नहीं तो मैं और सताउंगो। 

तेरी यह मटुकिया हे न याको फोड़ दे उंगो और और का करुंगो ?

श्याम सुन्दर जी ने सोचते हुए एक दम से कहा - 

तेरी नाक खीच दुंगो और श्याम सुन्दर जी की ऐसी बातो पर मीराबाई जी को हसीं आ गयी,और श्याम सुन्दर जी भी हसने लगे!

मीराबाई से पूछा -

अभी क्या पानी भरने का समय है? 

दोपहर में घाट नितांत सुने रहते है,जो कहूँ सचमुच भल्लुक आ गयो तो ? 

मीराबाई जी बोली - 

तुम हो न श्याम सुन्दर जी ने कहा - 

मैं क्या यहाँ बैठा ही रहूँगा? 

गाये नहीं चरानी मुझे ?

मीराबाई जी ने सर झुकाते हुए कहा - 

एक बात कहूँ ? 

श्याम सुन्दर जी बोले - 

एक नहीं सॊ कह। 

पर सर तो उचा कर। 

तेरो मुख ही नहीं दिखे रहो मोहे। 

मीराबाई जी ने मुख ऊँचा किया और फिर से लाज ने आ घेरा।

श्याम सुन्दर जी ने कहा -

अच्छा ! 

अच्छा ! 

मुख निचे ही रहने दे,कह क्या बात है?

मीराबाई ने बहुत कठिनाई से बोंला- 

तुम्हे कैसे प्रसन्न किया जा सकता है ?

श्याम सुन्दर जी ने कहा - 

तो सखी मैं तुम्हे अप्रसन्न दिखाई दे रहा हूँ ? 

पर मेने तेरी मटकिया ले ली तो कौन्सो गंगा स्नान कराय दियो,यही ? 

मीरा यह नही !

श्याम सुन्दर जी- 

फिर कहा भयो ? 

तेरो घडोफोड़ दुंगो यही ?

मीराबाई नाय !

श्याम सुन्दर जी- 

तो फिर तू बतावे क्यों नाय ? 

कबकी यह नाय वह नाय किया जा रही है ?

मीराबाई जी ने शर्माते हुए कहा - 

सुना है तुम प्रेम से वस होते हो ?

श्याम सुन्दर जी- 

मोकु वश करके का करेगी सखी ! 

नाथ डालोगी के पैर बंदोगी ? 

मेरे वश हुए बिना तेरो के काज अटक्यो है भला ?

मीराबाई वो नाय।

श्याम सुन्दर जी- 

बाबा रे बाबा ! 

तो से तो भगवान ही हार जायं श्याम सुन्दर जी कहने लगे- 

कासे पूछ रयो हूँ ? 

पुरो मुख ही नाय खुले बात पूरी नाय कहोगी तो में भोरो , भारो कैसे समझुंगो ?

मीराबाई जी ने आँख मूँदकर पूरा जोर लगाकर कहा दिया - 

की सुनो श्याम सुन्दर ! 

मुझे तुम्हारे चरणों में अनुराग चाहिए। 

श्याम सुन्दर जी ने अनजान हो कर पूछा - 

सो कहा होय सखी ?

मीराबाई जी की विश्वता पर अपनी आखों में आँसू भर आये,घुटनों में सिर देकर रो पड़ी ।

श्याम सुन्दर जी बोले - 

रोवै मत ना ये कहते हुए अपनी बहो मे भर मीराबाई के सिर पर अपना कपोल रखते हुए कहा - 

और अनुराग कैसो होवे री ? 

श्याम सुन्दर जी ने कहा - 

अब तुम्हारे सुख की इच्छा क्या है ? 

अब तू मोको दुःख दे रही हो श्याम सुन्दर जी हंस कर दूर जा खड़े हुए.....! 

मीराबाई ने आश्चर्य से देखा। 

श्याम सुन्दर जी- 

ऐ ? 

ले अपनी कलशी बावरी कही की ये कहते हुए कलशी मीरा के सर पर रख कर वन की और दोड़ गए,और मीराबाई जी ठगी सी बैठ रही !!
             
|| मेरे तो गिरधर गोपाल ||

राधा रानी  की शक्ति  

गोवर्धन लीला के बाद समस्त ब्रजमंडल के कृष्ण के नाम की चर्चा होने लगी.....! 

सभी ब्रजवासी कृष्ण की जय - जयकार कर रहे थे और उनकी महिमा का गान कर रहे थे। 

ब्रज के गोप - गोपियों के मध्य कृष्ण की ही चर्चा थी। 

एक स्थान पर कुछ गोप और गोपियाँ एकत्रित थी और यही चर्चा चल रही थी तभी एक गोप मधुमंगल बोला इसमें कृष्ण की क्या विशेषता है.....! 

यह कार्य तो हम लोग भी कर सकते है।

वहां राधा रानी की सखी ललीता भी उपस्थित थी वह तुरंत बोल उठी ...!

" हां हां देखी है तुम्हारी योग्यता....! 

जब कृष्ण ने पर्वत उठाया था तो तुम सभी ने अपनी - अपनी लाठियां पर्वत के नीचे लगा थी ...!

और कान्हा से हाथ हठा लेने के लिए कहा था, हाथ हठाना तो दूर कान्हा ने थोड़ी से अंगुली टेढ़ी की और तुम सब की लाठियां चटाचट टूट गई थी....! 

तब तुम सब मिलकर यही यही बोले थे कान्हा तुम्ही संभालो....! 

तब कान्हा ने ही पर्वत संभाला था....! "

यह सुनकर मधुमंगल बोला.....! 

" हाँ हाँ मान लिया की कान्हा ने ही संभाला....! 

किन्तु हम ने प्रयास तो किया तुमने क्या किया....! "

यह सुनकर ललीता बोली....! 

" हां हां देखी है तुम्हारे कान्हा की भी शक्ति....! 

माना हमने कुछ नहीं किया किन्तु हमारी सखी राधा रानी ने तो किया....! "

मधुमंगल बोला....! 

" अच्छा जी राधा रानी ने क्या करा तनिक यह तो बताओ....! "

ललीता ने उत्तर दिया....! 

" पर्वत तो हमारी राधा रानी ने ही उठाया था....! 

कृष्ण का तो बस नाम हो गया...! "

यह सुनकर सभी गोप सखा हंसने लगे और बोले.....! 

" लो जी अब यह राधा रानी कहाँ से आ गई....! 

पर्वत उठाया कान्हा ने....! 

हाथ दुखे कान्हा के....!

पूरे सात दिन एक स्थान पर खड़े रहे कान्हा....! 

ना भूंख की चिंता ना प्यास की....! 

ना थकान का कोई भाव....! 

ना कोई दर्द, सब कुछ किया कान्हा ने और बीच में आ गई राधा रानी....! "

तब ललीता बोली..! 

लगता है....! 

जिस समय कान्हा ने पर्वत उठाया था....! 

उस समय तुम लोग कही और थे....! 

अन्यथा तुमको भी पता चल जाता कि पर्वत तो हमारी राधा रानी ने ही उठाया था....! "

या सुनकर सभी गोप सखा बोले....! 

" ऐसी प्रलयकारी स्थिति में कही और जा कर हमको क्या मरना था....! 

एक कृष्ण ही तो हम सबका आश्रय थे.....! 

जिन्होंने सबके प्राणों की रक्षा की....! "

ललीता बोली....! 

" तब भी तुमको यह नहीं.....! 

पता चला कि.....! 

पर्वत हमारी राधा रानी ने उठाया था....! "

सभी गोप सखा बोले....!  

" हमने तो ऐसा कुछ भी नहीं देखा....! "

तब ललीता बोली....! 

" अच्छा यह बताओ कि.....! 

कान्हा ने पर्वत किस हाथ से उठाया था....! "

मधुमंगल बोला....!  

" कान्हा ने तो पर्वत अपने बायें हाथ से ही उठा दिया था....! 

दायें हाथ की तो आवश्यकता ही नहीं पड़ी....! "

तब ललीता बोली..! 

तभी तो में कहती हूँ की....! 

पर्वत हमारी राधा रानी ने उठाया....! 

कृष्ण ने नहीं, यदि कृष्ण अपनी शक्ति से पर्वत उठाते तो.....! 

वह दायें हाथ से उठाते...!

किन्तु उन्होंने पर्वत बायें हाथ से उठाया....! 

क्योकि किसी भी पुरुष का दायां भाग उसका स्वयं का तथा बायाँ भाग स्त्री का प्रतीक होता है...! 

जब कान्हा ने पर्वत उठाया....! 

तब उन्होंने श्री राधा रानी का स्मरण किया और तब पर्वत उठाया...! 

इसी कारण उन्होंने पर्वत बाएं हाथ से उठाया.....! 

कृष्ण के स्मरण करने पर श्री राधा रानी ने उनकी शक्ति बन कर पर्वत को धारण किया। " 

अब किसी भी बाल गोपाल के पास ललीता के इस तर्क का कोई उत्तर नहीं था....! 

सभी निरुत्तर हो गए और ललीता राधे - राधे गुनगुनाती वहां से चली गई।

यह सत्य है....! 

कि राधे रानी ही भगवान श्री कृष्ण की आद्यशक्ति है....! 

जब भी भगवान कृष्ण ने कोई विशेष कार्य किया पहले अपनी शक्ति का स्मरण किया....!
 
श्री राधा रानी कृष्ण की शक्ति के रूप में सदा कृष्ण के साथ रही....! 

इस लिए कहा जाता है....! 

कि श्री कृष्ण को प्राप्त करना है तो श्रीराधा रानी को प्रसन्न करना चाहिए। 

जहाँ राधा रानी होंगी वहां श्री कृष्ण स्वयं ही चले आते हैं। 

यही कारण है....! 

कि भक्त लोग कृष्ण से बन पहले राधा का नाम लेते है। 
पंडारामा प्रभु राज्यगुरू 
( द्रविड़ ब्राह्मण )

aadhyatmikta ka nasha

एक लोटा पानी।

 श्रीहरिः एक लोटा पानी।  मूर्तिमान् परोपकार...! वह आपादमस्तक गंदा आदमी था।  मैली धोती और फटा हुआ कुर्ता उसका परिधान था।  सिरपर कपड़ेकी एक पु...

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