https://www.profitablecpmrate.com/gtfhp9z6u?key=af9a967ab51882fa8e8eec44994969ec 2. आध्यात्मिकता का नशा की संगत भाग 1: 12/19/22

।। मनुष्य के जीवन में गुरु कृपा चार प्रकार से होती है ।।

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता, किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

।। मनुष्य के जीवन में गुरु कृपा चार प्रकार से होती है ।।


श्री ऋग्वेद श्री विष्णु पुराण , श्री नारद पुराण और श्री शिव महापुराण के अनुसार देखे ।

जीवन के चार भाग :


बाल्य काल , 
जवान काल , 
अधेड़ काल और 
वृद्ध काल होता हे । 

इनको भी अधिक सरल रीत से देखे :

बच्चपन काल , 
किशोरावस्था काल , 
 जवानी काल , और 
बुठापा काल होता है।

जीवन के चार भाग :

विधा काल , 
काम काल , 
सेवा काल , ओर 
अध्यात्म काल होता है ।

जीवन के चार भाग :

धर्म काल , 
अर्थ काल , 
काम काल , और 
मोक्ष काल होता है ।

जीवन के चार गुरु : 

जन्म दाता माता पिता , शिक्षक , 
संस्कार और 
दीक्षा होता है।

जीवन के चार भाग :

ब्रह्मचर्य ,  
ग्रहस्थ , 
वानप्रस्थ और 
सन्यास होता है ।

जीवन के चार वर्ण : 

ब्राह्मण 
क्षत्रिय 
वैश्य और 
शूद्र होता हे ।

शास्त्रों के नियम अनुसार तो स्त्री का जीवन में दो ही गुरु का ज्यादा महत्व होता है।

पहला गुरु जन्म दाता माता पिता दूसरा गुरु पति होता है स्त्री उसका पूर्ण जीवन काल के समय में माता पिता और पति के शिवाय किसी को भी गुरु धारण नही कर शक्ति वही उसका स्वामी वहीं उसका गुरु होता है ।

स्मरण से....!

दृष्टि से....!

शब्द से और 

स्पर्श से होता है...!

जैसे कछुवी रेत के भीतर अंडा देती है पर खुद पानी के भीतर रहती हुई उस अंडे को याद करती रहती है तो उसके स्मरण से अंडा पक जाता है।

ऐसे ही गुरु की याद करने मात्र से शिष्य को ज्ञान हो जाता है।

यह है स्मरण दीक्षा।

दूसरा जैसे मछली जल में अपने अंडे को थोड़ी थोड़ी देर में देखती रहती है ।

तो देखने मात्र से अंडा पक जाता है।

ऐसे ही गुरु की कृपा दृष्टि से शिष्य को ज्ञान हो जाता है।

यह दृष्टि दीक्षा है।

तीसरा जैसे कुररी पृथ्वी पर अंडा देती है ।

और आकाश में शब्द करती हुई घूमती है तो उसके शब्द से अंडा पक जाता है। 

ऐसे ही गुरु अपने शब्दों से शिष्य को ज्ञान करा देता है। यह शब्द दीक्षा है ।।


चौथा जैसे मयूरी अपने अंडे पर बैठी रहती है तो उसके स्पर्श से अंडा पक जाता है ।


ऐसे ही गुरु के हाथ के स्पर्श से शिष्य को ज्ञान हो जाता है । 

यह स्पर्श दीक्षा है।।

जब मनुष्य उसका माता पिता के गर्भगृह के अंदर होता है उसी समय ही जातक के माता पिता का जुवानी वस्था या संस्कार वस्था समय चल रहा होता है । 

उसी नव मास के समय में ही जातक का माता पिता जो कुछ भी लाइव कार्य कर रहे होते वही जातक के मेमरी में ही सीधा रेकोड असर होता रहता है ।

उसमे जातक के माता पिता का चोबीसे घंटा का कार्य शैली का वर्णन जैसा के आहार प्रवाही , खान पान , माता पिता के साथ हेतु मित्रो , संगा संधधिओ , रिश्तेदारो, परिवार जनों और माता पिता के सामने वर्तन और वर्णन का सीधा असर जातक के गर्भ काल के समय उसका दिमाग में ही रेकॉर्ड हो जाता हे ।

बाद जैसे जातक का माता पिता ने किए हुवे कार्य का ही जातक बाल्य वस्था से ही सुक्ष्म देखकर अनुकरण करने लगते ही है ।

सामान्य रीत से देखे तो बाल रूप को भगवान की संज्ञा दी जाती है ।

क्योंकि इस रूप में उसका चेतन व अवचेतन मन उस पर ज्यादा प्रभाव नहीं डाल पाते हैं ।

इस समय उसके अंदर केवल पवित्र आत्मा का प्रकाश प्रकाशित होता है। 

धीरे - धीरे जब वही बालक बड़ा होने लगता है तभी जातक के माता पिता ने जो पहले किए हुवे कार्य का रेकॉर्ड तो पहले ही खुल ही जाता है ।

बाद जातक उसके मस्तिष्क का विकास होने के कारण बुद्धि विकसित होने लगती है और इसके द्वारा संसार के दुर्गुण आने लगते हैं। 

आत्मा का प्रभाव गौण हो जाता है और वही बालक चेतन व अवचेतन मन के द्वारा अपने संबंध व क्रियाकलापों को करने लगता है। 

चेतन मन के द्वारा वह जागृत अवस्था में संचालित होता है और अवचेतन मन के द्वारा उसकी आदतें व विभिन्न परिस्थितियों में उसके द्वारा लिए गए निर्णय भी इसी अवचेतन मन के द्वारा निर्धारित किए जाते हैं। 

हर मनुष्य संसार में चार अवस्थाओं के द्वारा अपना जीवन व्यतीत करता है। 
 
जागृत...!

स्वप्न,...!

सुसुप्ति और 

तुरीय...!

हमारे सब कष्टों का सूत्रधार केवल जागृत अवस्था है। 

उसी के अनुभव व प्रभावों के द्वारा ही हमारा मन चलायमान रहता है। 

जब हमें किसी बीमारी के कारण का पता चल गया तो उसका निदान आसान हो जाता है। 

जैसा जातक के माता पिता के व्यवहार , संस्कार , कार्य शैली और वर्तन होता है ऐसा ही सीधा असर संतान पर जरूर हो ही जाता है वही जीवन की सत्य सचोट बात है ।

★★

         !!!!! शुभमस्तु !!!

🙏हर हर महादेव हर...!!
जय माँ अंबे ...!!!🙏🙏

पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 
" Opp. Shri Dhanlakshmi Strits , Marwar Strits, RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
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आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद.. 
नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏

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