https://www.profitablecpmrate.com/gtfhp9z6u?key=af9a967ab51882fa8e8eec44994969ec 2. आध्यात्मिकता का नशा की संगत भाग 1: <script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-2948214362517194" crossorigin="anonymous"></script>
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।। स्वामी विवेकानंद के इस सवांद " स्वयं पर विश्वास और मनुष्यों की महजब " का सुंदर प्रर्वचन। ।।

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

।। स्वामी विवेकानंद के इस सवांद   " स्वयं पर विश्वास और मनुष्यों की महजब " का सुंदर प्रर्वचन। ।।


स्वामी विवेकानंद के इस सवांद   " स्वयं पर विश्वास और मनुष्यों की महजब " का सुंदर प्रर्वचन।

स्वामी  विवेकानंद जी से किसी ने पूछा कि वो क्या है सब कुछ चले जाने के बाद जिसके भरोसे पुनः सब कुछ पाया जा सकता है।

उन्होंने कहा " विश्वास "। 

स्वयं पर विश्वास, अपने कर्म पर विश्वास, और परमात्मा पर विश्वास रखने से सब कुछ पुनः प्राप्त किया जा सकता है।




याद रखना ये दुनिया भी बिना विश्वास के कुछ भी नहीं मिल सकती।

हम हॉस्पीटल जाते हैं और चुपचाप बैड पर लेट जाते हैं। 

हमें दिख रहा है कि डाक्टर के हाथों में चाकू, कैंची आदि है फिर भी हमारा उसके प्रति विश्वास ही है।

कि आप्रेशन या अन्य शल्य चिकित्सा के लिए हम बिना घबराहट पड़े रहते हैं।

अपने में विश्वास हो, अपनों में विश्वास हो, और प्रभु में विश्वास हो तो समझ जाना आपका जीवन आनंदमय बनने वाला है।

विश्वास में अदभुत सामर्थ्य है कहते हैं।

कि विश्वास से तो ईश्वर भी प्राप्त हो जाते हैं फिर भला अपनों का प्यार क्यों प्राप्त नहीं होगा ? 

अगर विश्वास है तो बंद द्वार भी खुल जाता है।

स्वामी विवेकानंद के इस सवांद में मनुष्यो का महजब ।

मुशीं फैज अली ने स्वामी विवेकानन्द से पूछा।

" स्वामी जी हमें बताया गया है कि अल्लहा एक ही है। "

" यदि वह एक ही है, तो फिर संसार उसी ने बनाया होगा ? "

" स्वामी जी बोले, "सत्य है। ".

मुशी जी बोले...!

" तो फिर इतने प्रकार के मनुष्य क्यों बनाये। "

जैसे कि हिन्दु, मुसलमान, सिख्ख, ईसाइ और सभी को अलग - अलग धार्मिक ग्रंथ भी दिये।

एक ही जैसे इंसान बनाने में उसे यानि की अल्लाह को क्या एतराज था।

सब एक होते तो न कोई लङाई और न कोई झगङा होता।

".स्वामी हँसते हुए बोले...!"

" मुंशी जी वो सृष्टी कैसी होती जिसमें एक ही प्रकार के फूल होते।"

" केवल गुलाब होता, कमल या रंजनिगंधा या गेंदा जैसे फूल न होते! ".

फैज अली ने कहा सच कहा आपने..!

यदि एक ही दाल होती तो खाने का स्वाद भी एक ही होता। 

दुनिया तो बङी फीकी सी हो जाती!

स्वामी जी ने कहा...!

मुंशीजी...! 

इसी लिये तो ऊपर वाले ने अनेक प्रकार के जीव - जंतु और इंसान बनाए ताकि हम पिंजरे का भेद भूलकर जीव की एकता को पहचाने।

मुशी जी ने पूछा...!

इतने मजहब क्यों ?

स्वामी जी ने कहा....!

" मजहब तो मनुष्य ने बनाए हैं....! "

प्रभु ने तो केवल धर्म बनाया है।

" मुशी जी ने कहा कि...! " 

ऐसा क्यों है कि एक मजहब में कहा गया है कि गाय और सुअर खाओ और दूसरे में कहा गया है कि गाय मत खाओ, सुअर खाओ एवं तीसरे में कहा गया कि गाय खाओ सुअर न खाओ...!

" इतना ही नही कुछ लोग तो ये भी कहते हैं कि मना करने पर जो इसे खाये उसे अपना दुश्मन समझो। "

स्वामी जी जोर से हँसते हुए मुंशी जी से पूछे कि ,"क्या ये सब प्रभु ने कहा है ?"

मुंशी जी बोले नही....!

" मजहबी लोग यही कहते हैं। "

स्वामी जी बोले....!

 "मित्र!"

किसी भी देश या प्रदेश का भोजन वहाँ की जलवायु की देन है। 

सागरतट पर बसने वाला व्यक्ति वहाँ खेती नही कर सकता, वह सागर से पकङ कर मछलियां ही खायेगा।

उपजाऊ भूमि के प्रदेश में खेती हो सकती है।

वहाँ अन्न फल एवं शाक - भाजी उगाई जा सकती है। 

उन्हे अपनी खेती के लिए गाय और बैल बहुत उपयोगी लगे। 

उन्होने गाय को अपनी माता माना, धरती को अपनी माता माना और नदी को माता माना ।

" क्योंकि ये सब उनका पालन पोषण माता के समान ही करती हैं।"

"अब जहाँ मरुभूमि है वहाँ खेती कैसे होगी? "

खेती नही होगी तो वे गाय और बैल का क्या करेंगे ?
 
अन्न है नही तो खाद्य के रूप में पशु को ही खायेंगे।

तिब्बत में कोई शाकाहारी कैसे हो सकता है ?

वही स्थिति अरब देशों में है। 

जापान में भी इतनी भूमि नही है कि कृषि पर निर्भर रह सकें।

" स्वामी जी फैज अलि की तरफ मुखातिब होते हुए बोले....! "

 " हिन्दु कहते हैं कि मंदिर में जाने से पहले या पूजा करने से पहले स्नान करो। "

मुसलमान नमाज पढने से पहले वाजु करते हैं। 

क्या अल्लहा ने कहा है कि नहाओ मत,केवल लोटे भर पानी से हांथ - मुँह धो लो ?

"फैज अलि बोला...!"

क्या पता कहा ही होगा!

स्वामी जी ने आगे कहा...!

नहीं, अल्लहा ने नही कहा...!

अरब देश में इतना पानी कहाँ है कि वहाँ पाँच समय नहाया जाए। 

जहाँ पीने के लिए पानी बङी मुश्किल से मिलता हो वहाँ कोई पाँच समय कैसे नहा सकता है।

यह तो भारत में ही संभव है, जहाँ नदियां बहती हैं, झरने बहते हैं, कुएँ जल देते हैं।

तिब्बत में यदि पानी हो तो वहाँ पाँच बार व्यक्ति यदि नहाता है तो ठंड के कारण ही मर जायेगा।

यह सब प्रकृति ने सबको समझाने के लिये किया है।

"स्वामी विवेका नंद जी ने आगे समझाते हुए कहा कि," मनुष्य की मृत्यु होती है।

उसके शव का अंतिम संस्कार करना होता है। 

अरब देशों में वृक्ष नही होते थे, केवल रेत थी।

अतः वहाँ मृतिका समाधी का प्रचलन हुआ, जिसे आप दफनाना कहते हैं। 

भारत में वृक्ष बहुत बङी संख्या में थे, लकडी. पर्याप्त उपलब्ध थी अतः भारत में अग्नि संस्कार का प्रचलन हुआ। 

जिस देश में जो सुविधा थी वहाँ उसी का प्रचलन बढा। 

वहाँ जो मजहब पनपा उसने उसे अपने दर्शन से जोङ लिया।

"फैज अलि विस्मित होते हुए बोला..! "

"स्वामी जी इसका मतलब है कि हमें शव का अंतिम संस्कार प्रदेश और देश के अनुसार करना चाहिये।"

 मजहब के अनुसार नही।

"स्वामी जी बोले , " हाँ! यही उचित है।

" किन्तु अब लोगों ने उसके साथ धर्म को जोङ दिया।

 मुसलमान ये मानता है कि उसका ये शरीर कयामत के दिन उठेगा इस लिए वह शरीर को जलाकर समाप्त नही करना चाहता। 

हिन्दु मानता है कि उसकी आत्मा फिर से नया शरीर धारण करेगी इस लिए उसे मृत शरीर से 
एक क्षंण भी मोह नही होता।

" फैज अलि ने पूछा...! "

कि, "एक मुसलमान के शव को जलाया जाए और एक हिन्दु के शव को दफनाया जाए 
तो क्या प्रभु नाराज नही होंगे?

"स्वामी जी ने कहा," प्रकृति के नियम ही प्रभु का आदेश होता हैं। "

वैसे प्रभु कभी रुष्ट नही होते वे प्रेमसागर हैं, करुणा सागर है।

"फैज अलि ने पूछा...! "

तो हमें उनसे डरना नही चाहिए ?

स्वामी जी बोले, "नही! 

हमें तो ईश्वर से प्रेम करना चाहिए वो तो पिता समान है, दया का सागर है फिर उससे भय कैसा। 

डरते तो उससे हैं हम जिससे हम प्यार नही करते।

" फैज अलि ने हाँथ जोङकर स्वामी विवेकानंद जी से पूछा, " तो फिर मजहबों के कठघरों से मुक्त कैसे हुआ जा सकता है ? 

"स्वामी जी ने फैज अलि की तरफ देखते हुए 
मुस्कराकर कहा...! "

"क्या तुम सचमुच कठघरों से मुक्त होना चाहते हो?" 

फैज अलि ने स्वीकार करने की स्थिति में अपना सर हिला दिया।

स्वामी जी ने आगे समझाते हुए कहा...!

"फल की दुकान पर जाओ, तुम देखोगे वहाँ 
आम, नारियल, केले, संतरे,अंगूर आदि अनेक फल बिकते हैं; किंतु वो दुकान तो फल की दुकान ही कहलाती है।"

वहाँ अलग - अलग नाम से फल ही रखे होते हैं। 

" फैज अलि ने हाँ में सर हिला दिया। "

स्वामी विवेकानंद जी ने आगे कहा कि ,"अंश से अंशी की ओर चलो। 

तुम पाओगे कि सब उसी प्रभु के रूप हैं।

" फैज अलि अविरल आश्चर्य से स्वामी विवेकानंद जी को देखते रहे और बोले " " स्वामी जी मनुष्य ये सब क्यों नही समझता ? "

" स्वामी विवेकानंद जी ने शांत स्वर में कहा, मित्र! प्रभु की माया को कोई नही समझता। "

मेरा मानना तो यही है कि, " सभी धर्मों का गंतव्य स्थान एक है।"

जिस प्रकार विभिन्न मार्गो से बहती हुई नदियां समुंद्र में जाकर गिरती हैं, उसी प्रकार सब मतमतान्तर परमात्मा की ओर ले जाते हैं। 

" मानव धर्म एक है, मानव जाति एक है।" ...


पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 
" Opp. Shri Dhanlakshmi Strits , Marwar Strits, RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
सेल नंबर: . + 91- 7010668409 / + 91- 7598240825 WHATSAPP नंबर : + 91 7598240825 ( तमिलनाडु )
Skype : astrologer85
Email: prabhurajyguru@gmail.com
आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद.. 
नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏

।। " गौ रक्षा-हमारा परम कर्तव्य " हांजी हांजी कहना इसी गांव में रहना और एक छोटी सी मां .का सुंदर कहानी ।।

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

।। " गौ रक्षा-हमारा परम कर्तव्य " हांजी हांजी कहना इसी गांव में रहना और एक छोटी सी मां .का सुंदर कहानी ।।


गौ रक्षा-हमारा परम कर्तव्य " हांजी हांजी कहना इसी गांव में रहना और एक छोटी सी मां .का सुंदर कहानी की पस्तुति दिए गए है।

हांजी हांजी कहना इसी गांव में रहना की कहानी पर भक्ति या भजन का प्रथम लक्षण है अपने आप में दीनता का भाव आ जाना ।

इसका एक कारण भी है । 

भक्ति क्या है ।




भक्ति है श्रीकृष्ण चरणों की सेवा।

वैष्णवों की सेवा
तुलसी की सेवा
गुरुदेव की सेवा
ग्रंथ की सेवा
गौ माता की सेवा 

अर्थात  :-

सेवा सेवा सेवा और सेवा..!

जब भक्तों का मुख्य कार्य सेवा हो गया तो भक्तों का स्वरूप क्या निकल कर आया । 

एक सेवक का ने कहा भी है कि जीव श्रीकृष्ण का नित्य दास है ।

और जब हम एक सेवक ही होते हैं, हम एक नौकर ही होते हैं, हम एक दास ही होते हैं तो फिर अकड़ किस बात की करनी चहिए।

नौकर या दास या सेवक तो दीन ही होता है
हांजी हांजी कहना इसी गांव में रहना । 

सेवक में अभिमान कैसा, सेवक का गुमान कैसा, सेवक की श्रेष्ठता कैसी, वह तो सभी का सेवक ही है सभी की सेवा ही करनी है ।

यह भाव सदैव एक वैष्णव को पुष्ट करना चाहिए यदि यह भाव दृढ़ता से पुष्ट हो जाएगा तो आप सच मानिए भक्ति का जो प्रथम लक्षण वैष्णवोंमें आता है वह आता है दैन्य ।

 वह आ जाएगा ।

भक्ति का प्रथम लक्षण जो वातावरण में आता है वह आता है क्लेषघ्नी । 

समस्त क्लेशों को नष्ट कर देती है सच्ची भक्ति।

आज कल उल्टा हो रहा है भक्ति प्रारंभ हुई और घर में कलेश प्रारंभ हुए । 

यदि ऐसा है तो हम भक्ति या भजन नहीं कर रहे हैं ।

हम भक्ति के नाम पर नाटक, अहंकार पोषण एवं अपनी श्रेष्ठता का प्रदर्शन कर रहे हैं ।

कर के देखिए अंतर महसूस होगा।

वक्त की कीमत तब तक नहीं समझा मैं स्वास्थ की कीमत भी नहीं समझा जब तक दोनों ही का नाश नहीं हुआ लोगो ने समझाया वक्त बदलता है।

वक्त ने समझाया ये लोग बदलते है।

समझा नहीं तब तक इस जीवन में जब तक मैने इन्हें बदलते न देखा वक्त मूझें या कभी उसे बदलता है।

वे लोग खोलते है आँखें मेरी जिन पे आँख बंद कर मैंने ही भरोसा किया।

शातिर वक्त ने उन्हें बनाया जेबकतरा वक्त गया ख़ुद मुझे से लड़ते झगड़ते अब मैं खुद से सुलह करना चाहता हूँ।

" गौ रक्षा-हमारा परम कर्तव्य की बात  " 

सभी साधु - संतोंसे मेरी प्रार्थना है कि अभी गायोंकी हत्या जिस निर्ममतासे हो रही है।

वैसी तो अंग्रेजों व मुसलमानों के साम्राज्य में भी नहीं होती थी ।

अब हम सभी को मिलकर इसे रोकने का पूर्णरुपसे प्रयास करना चाहिये।

इस कार्य को करनेका अभी अवसर है और इसका होना भी सम्भव है ।

गायके महत्वको आप लोगोंको बतायें, क्योंकि आप तो स्वयं दूसरों को बतानेमें समर्थ हैं ।

यदि प्रत्येक महन्तजी व मण्डलेश्वरजी चाहें तो हजारों आदमियोंको गोरक्षाके कार्यहेतु प्रेरित कर सकते हैं ।

आप सभी मिलकर सरकारके समक्ष प्रदर्शन कर शीघ्र ही गोवंशके वधको पूरे देशमें रोकनेका कानून बनवा सकते हैं। 

यदि साधु समाज इस पुनीत कार्यको हिन्दू - धर्मकी रक्षाहेतु शीघ्र कर लें तो यह विश्वमात्र के लिये बड़ा कल्याणकारी होगा ।

आप सभी एकमत होकर यह प्रस्ताव पारित कर प्रदर्शन व विचार करें कि हर भारतीय इस बार अन्य मुद्दोंको दरकिनार कर केवल उसी नेता या दलको अपना मत दे।

जो गोवंश-वध अविलम्ब रोकनेका लिखित वायदा करे तथा आश्वस्त करे कि सत्तामें आते ही वे स्वयं एवं उनका दल सबसे पहला कार्य समूचे देशमें गोवंश-वध बंद करानेका करेगा।

देशी नस्लकी विशेष उपकारी गायोंके वशंतकके नष्ट होनेकी स्थिति पैदा हो रही है।

ऐसी स्थितिमें यदि समय रहते चेत नहीं किया गया तो अपने और अपने देशवासियोंकी क्या दुर्दशा होगी ? 

इसका अन्दाजा मुश्किल है ।

आप इस बातपर विचार करें कि वर्तमानमें जो स्थिति गायोंकी अवहेलना करनेसे उत्पन्न हो रही है।

उसके कितने भयंकर दुष्परिणाम होंगे । 

अगर स्वतन्त्र भारतमें गायोंकी हत्या-जैसा जघन्य अपराध भी नहीं रोका जा सकता तो यह कितने आश्चर्य और दु:खका विषय होगा।

आप सभी भगवान्‌को याद करके इस सत्कार्यमें लग जावें कि हमें तो सर्व प्रथम गोहत्या बन्द करवानी है जिससे सभीका मंगल होगा। 

इससे बढ़कर धर्म-प्रचारका और क्या पुण्य-कार्य हो सकता है ।

पुन: सभीसे मेरी विनम्र प्रार्थना है कि आप सभी शीघ्र ही इस उचित समयमें गायोंकी हत्या रोकने का एक जनजागरण अभियान चलाते हुए सभी गोभक्तों व राष्ट्रभक्तोंको जोड़कर सरकारको बाध्य करके बता देवें कि अब तो गोहत्या बन्द करनेके अतिरिक्त सत्तामें आरुढ़ होने का कोई दूसरा उपाय नहीं है । 

साथ ही यह भी स्पष्ट कर दें कि जनता - जनार्दनने देशमें गोहत्या बंद कराने का दृढ़ संकल्प ले लिया है।

गायके दर्शन, स्पर्श, छाया, हुँकार व सेवासे तो कुटुंब कलेश घर में अच्छी सेवरकत मेहनत की कमाई में अच्छी वृद्धि बरकत सुख शांति समृद्धि 
शरीर निरोगी हुष्ट पुष्ट और कल्याण, सुखद - अनुभव, सद्भाव एवं अन्त:करणकी पवित्रता प्राप्त होती है । 

गायके घी, दूध, दही, मक्खन व छाछ से शरीरकी पुष्टि होती है व निरोगता आती है ।

गोमूत्र व गोबर से पञ्चगव्य और विविध औषधियाँ बनाकर काममें लेनेसे अन्न, फल व साग - सब्जियोंको रासायनिक विषसे बचाया जा सकता है । 

गायोंके खुरसे उड़नेवाली रज भी पवित्र होती है; जिसे गोधूलि-वेला कहते हैं, उसमें विवाह आदि शुभकार्य उचित माना जाता है । 

जन्मसे लेकर अन्तकालतकके सभी धार्मिक संस्कारोंमें पवित्रताहेतु गोमूत्र व गोबरका बड़ा महत्व है ।

गाय की महिमा तो आप और हम जितनी बतायें उतनी ही थोड़ी है, आश्चर्य तो यह है सब कुछ जानते हुए भी गायोंकी रक्षामें हमारे द्वारा विलम्ब क्यों हो रहा है ?

गायकी रक्षा करनेसे भौतिक विकासके साथ - साथ आर्थिक, व्यावहारिक, सामाजिक, नैतिक, सांस्कृतिक एवं अनेकों प्रकारके विकास सम्भव हैं।

लेकिन गायकी हत्यासे विनाशके सिवाय कुछ भी नहीं दिखता है ।

अत: अब भी यदि हम जागें तो गोहत्याको सभी प्रकारसे रोककर मानवको होनेवाले विनाशसे बचा सकते हैं_

गो - सेवा, रक्षा, संवर्धन तथा गोचर भूमिकी रक्षा करनेसे पूरे संसारका विकास सम्भव है ।

आज गोवध करके गोमांस के निर्यातसे जो धन प्राप्त होता है उससे बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है ।

इस लिये ऐसे गोहत्यासे प्राप्त पापमय धनके उपयोग से कथित विकास ही विनाशकारी हो रहा है । 

यह बहुत ही गम्भीर चिन्ताका विषय है ।

अन्तमें सभी साधु समाजसे मेरी विनम्र प्रार्थना है कि अब शीघ्र ही आप सभी और जनता मिलकर गोहत्या बन्द कराने का दृढ़ संकल्प लेनेकी कृपा करें तो हमारा व आपका तथा विश्वमात्रका कल्याण सुनिश्चित है । 

इसी में धर्मकी वास्तविक रक्षा है और धर्म - रक्षामें ही हम सबकी रक्षा है ।

{ ‘कल्याण’ वर्ष-७८, अंक ४, ऊपर से मै पुजारी प्रभु राज्यगुरु ने पूरा लेख लिये है }

आशा करता हूँ कि प्रभु राज्यगुरु की यह दर्द भरी प्रार्थना आपके हृदयको गौमाताकी वर्तमान - स्थिति दूषित वायु पदुष्ण कोरोना जैसा विविध विचित्र रोगों से व्यथित करके, आपके हृदयमें करुणा, दया और सेवा का भाव पैदा करके आपको गौ-सेवाके लिये प्रेरित करें । 

परम श्रद्धेय पुजारी पंडित प्रभु राज्यगुरु  के विचार

प्रश्न—गोरक्षाके लिये क्या करना चाहिये?

उत्तर— गायों की रक्षाके लिये उनको अपने घरोंमें रखना चाहिये और उनका पालन करना चाहिये। 

गायके ही दूध - घीका सेवन करना चाहिये, भैंस आदिका नहीं।

गायों की रक्षाके उद्देश्यसे ही गोशालाएँ बनानी चाहिये, दूधके उद्देश्यसे नहीं।

जितनी गोचर - भूमियाँ हैं, उनकी रक्षा करनी चाहिये तथा सरकारसे और गोचर-भूमियाँ छुड़ाई जानी चाहिये। 

सरकारकी गोहत्या - नीतिका कड़ा विरोध करना चाहिये और वोट उनको ही देना चाहिये, जो पूरे देशमें पूर्णरूपसे गोहत्या बंद करनेका वचन दें।

खेती करनेवाले सज्जनोंको चाहिये कि वे गाय, बछड़ा, बैल आदिको बेचे नहीं।

गाय और माय बेचनेकी नहीं होती।

जबतक गाय दूध और बछड़ा देती है, बैल काम करता है, तबतक उनको रखते हैं। 

जब वे बूढ़े हो जाते हैं, तब उनको बेच देते हैं— यह कितनी कृतघ्नताकी।

 पाप की बात है! 

गाँधीजीने ‘नवजीवन’ अखबारमें लिखा था कि ‘बूढ़ा बैल जितना घास ( चारा ) खाता है उतना गोबर और गोमूत्र पैदा कर देता है अर्थात् अपना खर्चा आप ही चुका देता है।’

जो गायों और बैलोंको बेचते हैं, उनको यह हत्या लगती है! 

अतः अपनी पूरी शक्ति लगाकर हर हालतमें गायोंकी रक्षा करना, उनको कत्लखानोंमें जानेसे रोकना तथा उनका पालन करना, उनकी वृद्धि करना हमारा परम कर्तव्य है।

प्रश्न — लोगोंमें गोरक्षाकी भावना कम क्यों हो रही है?

उत्तर — गायके कलेजे, मांस, खून आदिसे बहुत - सी अँग्रेजी दवाइयाँ बनती हैं। 

उन दवाइयोंका सेवन करनेसे गायके मांस, खून आदिका अंश लोगोंके पेटमें चला गया है।

जिससे उनकी बुद्धि मलिन हो गयी है और उनकी गायके प्रति श्रद्धा, भावना नहीं रही है।

लोग पाप से ज्यादा पैसा कमाते हैं और उन्हीं पैसों का अन्न खाते हैं, फिर उनकी बुद्धि शुद्ध कैसे होगी और बुद्धि शुद्ध हुए बिना सच्ची, हितकर बात अच्छी कैसे लगेगी?

स्वार्थ बुद्धि अधिक होनेसे मनुष्य की बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है, बुद्धि तामसी हो जाती है, फिर उसको अच्छी बातें भी विपरीत दीखने लगती हैं। 

आज कल मनुष्योंमें स्वार्थ - भावना बहुत ज्यादा बढ़ गयी है, जिससे उनमें गोरक्षाकी भावना कम हो रही है।

जैसे भगवान्‌की सेवा करने से त्रिलोकीकी सेवा होती है, ऐसे ही निष्कामभावसे गायकी सेवा करनेसे विश्वमात्रकी सेवा होती है; क्योंकि गाय विश्वकी माता है।
गायकी सेवासे लौकिक और पारलौकिक — दोनों तरहके लाभ होते हैं। 

गायकी सेवासे अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष — ये चारों पुरुषार्थ सिद्ध होते हैं। 

रघुवंश भी गायकी सेवासे ही चला था।

अब थोड़ा इस पर विचार डाले कि हमारे हाथ की बात क्या है।

हमारे करने योग्य सर्वप्रथम कोई कार्य इस संबंध में यह होना चाहिए कि जन - जन को गाय के और भैंस के दूध का शरीर पर पड़ने वाला प्रभाव समझाया जाय।

गांधीजी ने खादी का महत्व समझाने के लिए प्रबल आन्दोलन किया था और मोटी और महंगी खादी के दूरगामी परिणामों की जानकारी कराते हुए गले उतारा था। 

साथ ही उत्पादन का कारगर तंत्र खड़ा किया था।

तब कहीं खादी ने जड़ पकड़ी थी। 

इस से सौ वर्ष पूर्व चाय के व्यापारियों ने उसका प्रचार करने के लिए घर-घर जाने और बनी हुई चाय एक पैसे में बेचने तथा एक पैकिट चाय मुफ्त देने का व्यापक क्रम चलाया था। 

उस प्रचार ने बढ़ते - बढ़ते आज चाय को जन जीवन का अंग बना दिया है।

जन साधारण को गाय के दूध घी की महत्ता समझाई जाय। 

किसान को कहा जाय कि वह बछड़ों के बिना कृषि और यातायात परिवहन की समस्या हल न कर सकेगा। 

इस लिए गौपालन उसके जीवन मरण का प्रश्न है। 

उसे श्रद्धा ही नहीं सावधानी पूर्वक अर्थ व्यवस्था को ध्यान में रखते हुए नए सिरे से रुचिपूर्वक अपनाना चाहिए और तदनुरूप ही पशु पालने की नई नीति निर्धारित करनी चाहिए।

यह अर्थ प्रधान युग है। 

इसमें जो उपयोगी है उसका विकास और संरक्षण किया जाता है और जो प्रत्यक्षतः उतना उपयोगी नहीं दीखता उसे रास्ते से हटा दिया जाता है। 

वृद्ध पशुओं का अन्तिम आश्रय मात्र कसाईखाना ही रह गया है। 

उन निठल्ले पर खर्च करने के लिए किसी का मन नहीं होता। 

यह अर्थ लाभ यदि मनुष्य ने अपनी बिरादरी पर भी प्रयुक्त करना शुरू कर दिया तो समझना चाहिए वृद्धों और वृद्धाओं की, अपंगों और निराश्रितों की भी खैर नहीं।

गौ - वध बन्द करने के लिए प्रयत्न तो किया जाना चाहिए, पर साथ ही यह भी ध्यान रखना चाहिए कि उपयोगिता और अर्थ लाभ की दृष्टि से ही उन्हें सहज और चिरस्थाई सुरक्षा मिल सकती है।

हम सच्चे हृदय से परमात्मा से प्रार्थना करें तो वह प्रार्थना अवश्य सुनी जाएगी,,

सच्चे हृदय से प्रार्थना जो भक्त सच्चा गाए हैं।

भक्तवत्सल कान में वह पहुंच झट ही जाए हैं।

और साथ ही जितने अंश में परमात्मा ने हमें सबल बनाया है और हम विश्व में उपद्रव फेलानी वाली कोरोना जैसी भयंकर बीमारियों से मुक्त करने में हम सक्षम हैं।

उसका सदुपयोग कर गौ रक्षा और गोपालन करें।

एक छोटी सी मां।

एक छोटी सी मां की कहानी देखे तो मां का कोई रूप भी नहीं होगा वो मां जन्नी होगी छोटी या बड़ी बहन भी मां का स्थान निर्धारित कर शक्ति है।

एक दीन - हीन आठ - दस वर्ष की लड़की से दुकान वाला बोला कि...!

" छुटकी जा देख तेरा छोटा भाई रो रहा है तुमने दूध नहीं पलाया क्या ? "

" नहीं सेठ जी मैंने तो सुबह ही दूध पिला दिया था "

" अच्छा तू जा, जाकर देख में ग्राहक संभालता हूं। "

एक ग्राहक सेठ से - 

" अरे भाई ये कौन लड़की है जिसे तुमने इतनी छूट दे रखी है। "

" परसों सारे ग्लास तोड़ दिये , कल एक आदमी पर चाय गिरा दी और तुमने इसे कुछ नहीं कहा। "

सेठ - " भाई साहब ये वो लड़की है , जो शायद तुम्हें आज के कलयुग में देखने को ना मिले। "

ग्राहक - " मैं समझा नहीं "

सेठ " चलो तुम्हें शुरू से बताता हूं। 

एक दिन दुकान पर बहुत भीड़ थी और कोई नौकर भी नहीं था । 

ये लड़की,अपने छोटे भाई को गोद में लिए काम मांगने आई " और इसकी शर्त सुनेगा . इसने शर्त रखी।" 

मुझे काम के पैसे नहीं चाहिए, बस काम के बीच में मेरा भाई रोया तो मैं भाई को पहले देखूंगी। 

सुबह , दोपहर , शाम , रात चार टाइम दूध चाहिए।

रहने के लिए मैं इसी होटल के किचन पर रहूंगी।

खाने के लिए जो बचेगा, उसे खा लूंगी, मेरे भाई के रोने पर आप चिल्लाओगे नहीं।

अगर कुछ काम बच गया तो मेरे भाई के सोने के बाद मैं रात को होटल के सारे काम कर दूंगी, अगर मंजूर हो तो बताओ।

 ग्राहक -" फिर तुमने क्या कहा। 

 सेठ _ 

" मैं तो हंस पड़ा और कहा कि कुछ पैसों की खास डिमांड वगैरह तो इसने कहा - " 

बस इतना ही , कि मुझे काम मिले, मैं सड़को पर भीख नही माँगना चाहती और ना ही अपने भाई को भिखारी बनाना चाहती हूं। 

दिल लगाकर काम करूंगी।

उसे पढा़ऊँगी , बड़ा आदमी बनाऊंगी। 

" उतने में छुटकी आ गई। "

सेठ जी उसने चड्डी में सुसु कर दिया था इस लिए रो रहा था ।

अब सो गया है, अब नहीं रोयेगा । 

मैं अब काम पर लगती हूं . . .।

ग्राहक - 

" तुमने उसे फिर क्यों कुछ नहीं बोला? " 

सेठ मुस्कुराते हुए -

 " अरे जनाब , आप बस किताबों में ही पढ़ते हो क्या अच्छी चीजें . . ? 

जरा इस को देखा तो ,नन्ही सी जान, छोटी सी उमर , काम करना चाहती है।

हाथ फैलाना नहीं , कोई तो होना चाहिए ना , उसे अपने पैरों पर खड़े करने के लिए ।

शायद बंसीवाले ने  यह काम मुझे सौंपा है कि मैं उसे एक रास्ता दिखाऊं और फिक्र इस बात की है ना कि वो ग्लास ही तोड़ती है।

विश्वास नहीं तोड़ेगी और जरा ये भी तो सोच , बच्ची कहाँ जाती।

यहीं पड़ी है दोस्त, जब तक प्रभु की मर्जी है , मैं कौन होता हूं  उसकी कहानी में उसका लिखा बदलने वाला . . . ।

छुटकी फिर दौड़ते हुए उस ग्राहक की चाय गिराते हुए बोली -

 " सेठ भाई रो रहा है , आप आर्डर लो इस बार ग्राहक भी हंस पड़ा और कहने लगा। "

"जाइये सेठजी , महारानी ने आदेश दिया है लग जाइए  काम पर।"

दोनों मुस्कुराने लगे, वहीं छुटकी अपने छोटे भाई को संभालने में लग गयी...!!!

!!बहुत ही सुन्दर एवम् प्रेरणा दायक कहानी!!

जय मुरलीधर
जय द्वारकाधीश
 धन्यवाद।🙏🏻🙏🏻
🙏🙏🙏【【【【【{{{{ (((( मेरा पोस्ट पर होने वाली ऐडवताइस के ऊपर होने वाली इनकम का 50 % के आसपास का भाग पशु पक्षी ओर जनकल्याण धार्मिक कार्यो में किया जाता है.... जय जय परशुरामजी ))))) }}}}}】】】】】🙏🙏🙏

पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 
" Opp. Shri Dhanlakshmi Strits , Marwar Strits, RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
सेल नंबर: . + 91- 7010668409 WHATSAPP नंबर : + 91 7598240825 ( तमिलनाडु )
Skype : astrologer85
Web : https://sarswatijyotish.com/
Email: prabhurajyguru@gmail.com
आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद.. 
नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏

।।श्री ऋगवेद श्री यजुर्वेद और श्री रामचरित्रमानस विस्तृत प्रवचन , हिन्दू धार्मिक तीर्थ स्थानों के पण्डे ।।

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

।। श्री ऋगवेद श्री यजुर्वेद और श्री रामचरित्रमानस आधारित प्रवचन ।।



श्री ऋगवेद श्री यजुर्वेद और श्री रामचरित्रमानस  आधारित विस्तृत प्रवचन का एक भाग मेंश्री राम कृपा ही केवलम् में धीरता और सिद्धि की सुंदर रचना पस्तूत किए गए हैं।

धीरके माने यह है कि दुनियामें जो कुछ होता जाता है, उसको जरा सहते चलो । 

इतने असहिष्णु मत बनो कि तेज हवा आज क्यों चल रही है, ईश्वरको गाली देना शुरू कर दो; 

तो ईश्वरको गाली देनेमें जब लग जाओगे तब तुम्हें अपने स्वरूपका ज्ञान कैसे होगा ?

 बोले…आज वर्षा क्यों हुई ? 

आज वर्षा क्यों ना हुई ? 

रोज ईश्वरसे जब हर काममें जवाब-तलब ही करते रहोगे कि तुमने ऐसा क्यों नहीं किया और ऐसा तुमने क्यों किया-- 

अगर ईश्वरसे मतभेद करते रहोगे तो ईश्वर तुम्हें अपना रहस्य नहीं बतलावेगा । 


देखो,  यह बात हम तुमको बता देते हैं । 

अगर हमारा - तुम्हारा मतभेद है तो हम कोई - न - कोई बात तुमसे गुप्त रख लेंगे । 

तुम तो ईश्वरसे मतभेद रखते हो तब ईश्वर अपने को तुम्हारे सामने काहेको जाहिर करेगा ? 

यह ईश्वरसे मतभेद न रखना माने- ईश्वर जो भी कर रहा है, उसमें मंगल ही है- यह बुद्धि रखना । 

स देवो यदेव कुरुते तदेव मङ्गलाय । 

र्ईश्वर जो कर रहा है उसमें हमारा मङ्गल है।

उसमें हमारा कल्याण है-  

कुटिया पर गाय आ गयी कि बहुत बढ़िया दूध देगी ! 

कोई चुरा ले गया तो बोले गोबर उठाने से जान बची ! 

मतलब इसका यह है कि बाह्य जो परिस्थितियाँ हैं।

घटनाएँ हैं उनसे यदि तुम क्षण - क्षण पर प्रभावित होते रहोगे और उन्हींके स्वागतमें या उन्हींका विरोध करने में लगे रहोगे तो तुम्हें ईश्वरके बारेमें सोचनेका अवसर ही कब मिलेगा ?

श्रीउड़िया बाबाजी महाराज कहा करते थे- 

मैंने पूछा था, स्वयं पूछा था कि सिद्धि क्या है महाराज? 

आपके बारेमें लोग बताते हैं कि बड़ी - बड़ी सिद्धियाँ आपको हैं ! 

तो बोलते कि बर्दाश्त करना सिद्धि है- 

सहिष्णुता ही सिद्धि है । 

एक गाली दी और छह महीने की तपस्या गयी ! 

यह तपस्या ऐसी ही हल्की-फुल्की चीज है । 

एक बार गुस्सा आया ओर छह महीनेके भजनसे बना हुआ शरीरमें जो रस है….!

मनका निर्माण करने वाला, जिससे मनमें मिठास आती है,...!

मधुरता आती है,...!

आनन्द आता है -वह गया !

मनमें ही तो क्रोध आता है न, तो क्रोधकी आगमें भजनका रस भस्म हो गया । 

उन्होंने इसका उदाहरण देकर बताया- 

कि देखो, तुम भूख सहनेकी आदत डालो । 

उनके पास अन्नकी सिद्धि थी, ऐसा लोगोंमें प्रसिद्ध था । 

वे बोले कि तुम किसी भी अन्जान - से - अन्जान गॉवमें चले जाओ और तुम्हारे अन्दर केवल भूख सहनेकी शक्ति हो।

पेड़के नीचे बैठ जाओ या मन्दिरपर बैठ जाओ।

लेकिन भूख सहो...!

माँगो मत किसीसे- 

अन्न मत माँगो...!

रोटी मत माँगो - एक दिन, दो दिन, तीन दिन, चार दिन- 

फिर देखना उसी गाँवके लोग तुम्हारे लिए जिन्दगी भरको भोजनका बन्दोबस्त कर देंगे।

कि बाबाजी, तुम यहाँ रहो और तुमको रोटी मिल जायेगी।

और यदि तुम किसीके घर रोटी माँगनेको गये और दाल ठीक नहीं आयी...!

कि साग ठीक नहीं आया और तुमने चार गाली सुना दी।

तो गाँव वाले लोग क्या कहेंगे कि यह बाबाजी बड़े गुस्सावाला है भाई !

इससे जितनी जल्दी पिण्ड छूटे उतना ही अच्छा है।

यह चला जाये यहाँसे ! 

सहिष्णुतामें सिद्धि है- 

बर्दाश्त करने में सिद्धि है...!

उबलनेमें, उफ़ननेमें सिद्धि नहीं है ।

यह जो तुम समझते हो कि हम लड़ाई करके अपना मत सिद्ध कर लेंगे।

वाद-विवाद करके हम अपना प्रयोजन सिद्ध कर लेंगे तो नहीं कर सकोगे । 

आप जिससे अपनी मैत्री बनाये रखना चाहते हैं।

जिसको अपने अनुकूल रखना चाहते हैं।

उसको वाद - विवादमें हरावें नहीं । 

यदि पत्नी चाहती है कि पति हमारे अनुकूल होवे तो वाद - विवादमें उसको हरावे नहीं;

पति यदि चाहता हो कि पत्नी हमारे अनुकूल रहे तो बात - बातमें उसको बेवकूफ सिद्ध न करे।

उसकी समझदारीका आदर करे । 

आपसमें मुस्कुरा करके बोले, एक-दूसरेके सद्भावका आदर करे तब न संगति चलेगी । 

दो मन हमेशा एक सरीखे नहीं हो सकते- कभी नहीं एक सरीखे हो सकते- 

यदि एक मन दूसरे मनको सहकर चलनेको तैयार नहीं है तो संसारके व्यवहारमें कभी सफलता नहीं मिल सकती- 

बेटेका सहना पड़ेगा...!

पति का सहना पड़ेगा...!

सास का सहना पड़ेगा....!

बाप का सहना पड़ेगा ।

इसी को बोलते हैं सहिष्णुता, धैर्य - मत्वा धीरो न शोचति।   

धीर शब्दका अर्थ है...!

कि तुम हो ब्रह्म और तुम्हारे अन्दर यह प्रपञ्च है- 

रज्जुमें अभ्यस्त सर्पकी तरह, मालाकी तरह, डंडेकी तरह; 

तो जैसे रस्सी - कोई उसको सॉप कहे तो भी सह लेती है और माला कहे तो भो सह लेती है- 

माला कहनेसे अभिमान नहीं करती कि मैं सुन्दर हूँ और सर्प कहनेसे विरोध करने नहीं जाती ।

 रज्जु जितनी सहिष्णु है उतने सहिष्णु ब्रह्म तुम हो ! 

🌹🙏जय श्री राम सीताराम राम राम राम🙏🌹

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हिन्दू धार्मिक तीर्थ स्थानों के पण्डे 

हिन्दू धार्मिक तीर्थ स्थानों के पण्डे –

क्या कभी आप जगन्नाथपुरी , द्वारका , हरिद्वार, काशी , वाराणसी , बद्रीनाथ या  केदारनाथ आदि की यात्रा पर गए हैं???



यहां दक्षिण भारत के धार्मिक तीर्थ यात्रा स्थानों में थोड़ाक ले भागु बहार के इतर जाती के लोग ब्राह्मण पंडा लोगो को दान दक्षिणा पैसा के लिए परेशान करने लग गया तो दक्षिण भारत के ब्राह्मण पंडा लोग प्रत्युत्तर हरेक यात्री लोगो का पैठियो दर पैठियो का नामावली लिखने का काम ज्यादातर बहुत कम ही कर दिया है....

कि यात्री तो नाम लिखवाकर चला जाता है.....

बाद इत्तर जाती के लोकल लोग ब्राह्मण लोगो को बहुत परेशानी करने लग जाता है....

इस लोकल वालो के साथ लड़ाई झगड़े न ही करना पड़े तो यात्री को बुलाकर नामांकन करवाया जाए तो उसका साथ लड़ाई झगड़े करने लग जाता है....

लेकिन खास कोई अंगत यात्री पहेचान वाला सीधा पंडा ब्राह्मणों के पास आएगा उसका ही नामकरण होता है....

बाकी सब यात्री के लिए कोई ब्राह्मण अब नामकरण करके इत्तर जाती के लोगो का साथ लड़ाई झगड़े करने से खुश नही है.....

इस लिए इधर इत्तर जाती के लोग ज्यादा पंडा शब्दों का प्रयोग करने लग गया है....

लेकिन इधर तो पंडा मतलब ओरिझनल ब्राह्मण हो ऐसा जरूरी भी नही है....

लेकिन यात्री के पास दान पुण्य के पैसा पडवाने के लिए इत्तर जाती के लोगो ने पंडा शब्द प्रयोग करना शुरू कर दिया है...

जो यहां के ओरिझनल ब्राह्मण पंडा लोग अब ज्यादा यात्री के पास जाता भी नही है....

पूछताछ भी नही करता लेकिन इत्तर जाती के लोग ही यात्री का पास पंडा शब्द का प्रयोग करके यात्री लोगो का आगे पीछे घूमकर खुला लूट जरूर चलाते रहते है....

इधर दक्षिण भारत मे सब ब्राह्मणों को मालूम भी है कि ये लोग गलत कर रहा है...

लेकिन जीवन जोखम में कौन डालेगा ये इत्तर जाती के लोगो को लड़ाई झगड़े करना नॉर्मल आम छोटी सी बात है....

सब लोग भगवान के विश्वास पर दुशरा काम करता रहता है...

लेकिन ये नामकरण का काम तो बहुत कम ही कर दिया है.....

ये अब प्रथा आपको दक्षिण भारत के अलावा किसी भी तीर्थ स्थान पर दिखाई देगा वहां के पण्डे आपके आते ही आपके पास पहुँच कर आपसे सवाल करेंगे...

आप किस जगह से आये है?? 

मूल निवास? 

आदि पूछेंगे और धीरे धीरे पूछते पूछते आपके दादा, परदादा ही नहीं बल्कि परदादा के परदादा से भी आगे की पीढ़ियों के नाम बता देंगे जिन्हें आपने कभी सुना भी नहीं होगा...

और ये सब उनकी सैंकड़ो सालों से चली आ रही किताबो में सुरक्षित है...

विश्वास कीजिये ये अदभुत विज्ञान और कला का संगम है...

आप रोमांचित हो जाते हैं जब वो आपके पूर्वजों तक का बहीखाता सामने रख देते हैं....

आपके पूर्वज कभी वहाँ आए थे और उन्होंने क्या क्या दान आदि किया....

लेकिन आजकल के शहरी इन सब बातों को फ़िज़ूल समझते हैं... 

उन्हें लगता है कि ये पण्डे सिर्फ लूटने बैठे हैं जबकि ऐसा नहीं है....

यात्रा के दौरान एक व्यक्ति के पैसे चोरी हो गए थे या गिर गए थे वो बहुत घबरा गया कि घर कैसे जाएगा ।

कहाँ रहेगा खायेगा आदि, तो पण्डे ने तत्काल पूछा कितने पैसे चाहिए आपको?? 

और पण्डे जी ने ना सिर्फ पैसे दिए बल्कि रहने और खाने की व्यवस्था भी करवाई....

ये तीर्थो के पण्डे हमारी सभ्यता, संस्कृति के अटूट अंग हैं...

इनका अस्तित्व हमारे पर ही है... 

अपनी संस्कृति बचाइए और इन्हें सम्मान दीजिये....

वैसे हिन्दुओ के नागरिकता रजिस्टर हैं ये लोग....

पीढ़ियों के डेटा इन्होंने मेहनत से बनाया और संजोया है....
इन्हें मान सम्मान दीजिये.....
जय श्री कृष्ण....!!!

पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
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-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
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