https://www.profitablecpmrate.com/gtfhp9z6u?key=af9a967ab51882fa8e8eec44994969ec 2. आध्यात्मिकता का नशा की संगत भाग 1: 09/21/20

।। श्रीरामचरित्रमानस प्रर्वचन ।।

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

।। श्रीरामचरित्रमानस प्रर्वचन ।।


‼️राम कृपा ही केवलम्‼️

|| मानस के प्रति भाव ||

श्रीरामायण के सातों,काण्डों की महिमा।

श्री रामायण में श्रीराम का रामस्वरुप हैं। 

श्री रामायण का एक - एक काण्ड श्री राम जी का अंग ही  है।

बालकाण्ड...!

श्रीराम का चरण हैं।

अयोध्या काण्ड..!

श्रीराम की जंघा हैं।

अरण्यकाण्ड...!

श्रीराम का उदर हैं।

किष्किन्धाकाण्ड...!

श्रीराम का ह्रदय हैं।

सुन्दरकाण्ड..!
   
श्रीराम का कंठ हैं।

लंकाकाण्ड..!
     
श्रीराम का मुख हैं।

उत्तरकाण्ड..!
    
श्रीराम का मस्तक हैं।




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संतों के मुख से सुना

प्रत्येक क्षण, प्रत्ये श्वाँस काल रूपी अग्नि में लगातार जल रहा है। 

उस पर दृष्टि रख, जीवन की आशा को त्याग, मरने से पहले जीते - जी मर जाना चाहिए।

अर्थात् जीवन तथा मृत्यु के स्वरूप में भेद मिटा देना चाहिए।

 ऐसा होने पर आपको अपने वास्तविक स्वरूप का बोध अवश्य होगा और ऐसा होने से यह सर्व जगत् ।

प्रतीत होता है।

लय हो जाता है।

वही आपका वास्तविक स्वरूप है। 

इसमें कुछ भी सन्देह नहीं। 

देह में आत्म-बुद्धि का त्याग होने पर जीवन और मृत्यु में भेद नहीं रहता।

ऐसा अनुभव करने वाले महापुरुषों का कथन है।

विचार-दृष्टि से देखिए।

 ‘मैं शरीर हूँ’-

यह भाव होने पर अनेक वासनाओं की उत्पत्ति होती है और वासनाओं के अनुरूप बुद्धि की प्रवृत्ति होती है।

और बुद्धि की आज्ञानुसार मन, इन्द्रिय आदि कार्य करते हैं।

 परन्तु ‘मैं शरीर हूँ...!

यह भाव नष्ट होने पर वासनाओं का अन्त हो जाता है और वासनाओं के अन्त होने पर बुद्धि क्रिया - रहित हो स्थिरता प्राप्त करती है और जिससे फिर सत्य का अनुभव स्वयं हो जाता है।

सत्य के अनुभव के लिए किसी बाहर सहायता की खोज करना भूल है।

क्योंकि सत्य अनेक नहीं हो सकते और असत्य से सत्य जाना जा नहीं सकता।

बल्कि जब हम असत्य का सहारा पकड़ते हैं।

जब सत्य से विमुख हो जाते हैं। 

असत्य से ऊपर उठने पर सत्य का अनुभव स्वयं हो जाता है।

एक पर ही पूरा विश्वास करो।

जीवन तथा मृत्यु में भेद न समझो।

वर्तमान समय में जो कार्य उपस्थित हो उसको पूरा कर, आगे और पीछे का व्यर्थ चिन्तन मत करो। 

यह सदा ध्यान रखो कि जीवन-यात्रा भगवत् सेवा तथा भगवत्-स्मरण के सिवाय और किसी भी कार्य में न लगे, अर्थात् प्रत्येक कार्य का स्वरूप भगवत्-सेवा हो जाना चाहिए। 

ऐसा होने पर भगवत्-ध्यान अपने आप हो जाता है। 

देखिए, जब हम किसी काम को भगवत्-सेवा के भाव से करते हैं।

तब फिर उस काम का प्रभाव मन पर भवगत्-अनुराग के सिवाय और कुछ नहीं पड़ता, और न फिर किसी छोटे तथा बड़े काम में भेद ही प्रतीत होता है। 


 


भगवत्-सेवा करने वालों का ऐसा अनुभव है।

भगवत्-प्रेमियों का जीवन तथा काम अपने लिए कुछ नहीं रह जाता।

बल्कि अन्त में प्रेमी और प्रेम-पात्र में किसी प्रकार की दूरी तथा भेद नहीं रहता।

अर्थात् अखण्ड अभेदता प्राप्त होती है।

प्रसिद्ध धार्मिक ग्रंथ 'रामचरित मानस' के आधार पर श्रीराम ने अपने भाइयों के साथ पतंग उड़ाई थी। 

इस संदर्भ में 'बालकांड' में उल्लेख मिलता है।

राम इक दिन चंग उड़ाई।,
इन्द्रलोक में पहुंची जाई ।। 

 बड़ा ही रोचक प्रसंग है। 

पंपापुर से हनुमानजी को बुलवाया गया था।

तब हनुमानजी बालरूप में थे। 

जब वे आए, तब यहां 'मकर संक्रांति' का ही पर्व था। 

श्रीराम भाइयों और मित्र मंडली के साथ वे पतंग उड़ाने लगे। 

कहा गया है कि वह पतंग उड़ते हुए देवलोक तक जा पहुंची। 

उस पतंग को देखकर इंद्र के पुत्र जयंत की पत्नी बहुत आकर्षित हो गई। 

वह उस पतंग और पतंग उड़ाने वाले के प्रति सोचने लगी-
 
जासु चंग अस सुन्दरताई।
सो पुरुष जग में अधिकाई।।

इस भाव के मन में आते ही उसने पतंग को हस्तगत कर लिया और सोचने लगी कि पतंग उड़ाने वाला अपनी पतंग लेने के लिए अवश्य आएगा। 

वह प्रतीक्षा करने लगी। 

उधर पतंग पकड़ लिए जाने के कारण पतंग दिखाई नहीं दी, 

तब बालक श्रीराम ने बालहनुमान को उसका पता लगाने के लिए रवाना किया।

पवनपुत्र हनुमान आकाश में उड़ते हुए इंद्रलोक पहुंच- गए। 

वहां जाकर उन्होंने देखा कि एक स्त्री उस पतंग को अपने हाथ में पकड़े हुए हैं। 

उन्होंने उस पतंग की उससे मांग की। 

उस स्त्री ने पूछा- 

'यह पतंग किसकी है?' 

हनुमानजी ने रामचंद्रजी का नाम बताया। 

इस पर उसने उनके दर्शन करने की अभिलाषा प्रकट की।

 || जय श्री राम जय हनुमान ||


।। श्रीमद्भागवत प्रवचन ।।       






जिस प्रकार आप किसी वस्तु को लेने बाजार जाते हो तो उसका एक उचित मूल्य अदा करने पर ही उसे प्राप्त करते हो। 

इसी प्रकार जीवन में भी हम जो प्राप्त करते हैं सबका कुछ ना कुछ मूल्य चुकाना ही पड़ता है। 

🌼विवेकानन्द जी कहा करते थे कि महान त्याग के बिना महान लक्ष्य को पाना संभव नहीं। 

अगर आपके जीवन का लक्ष्य महान है तो यह ख्याल तो भूल जाओ कि बिना त्याग और समर्पण के उसे प्राप्त कर लेंगे।
 
🌼बड़ा लक्ष्य बड़े त्याग के बिना नहीं मिलता। 

कई प्रहार सहने के बाद पत्थर के भीतर छिपा हुआ ईश्वर का रूप प्रगट होता है।

अगर चोटी तक पहुँचना है तो रास्ते के कंकड़ पत्थरों से होने वाले कष्ट को भूलना ही होगा।

वाल्मिकी रामायण में सीता माता द्वारा पिंडदान देकर राजा दशरथ की आत्मा को मोक्ष मिलने का संदर्भ आता है वनवास के दौरान भगवान राम, लक्ष्मण और माता सीता पितृ पक्ष के वक़्त श्राद्ध करने के लिए गया धाम पहुंचे वहाँ ब्राह्मण द्वारा बताए श्राद्ध कर्म के लिए आवश्यक सामग्री जुटाने हेतु श्री राम और लक्ष्मण नगर की ओर चल दिए।
 
ब्राह्मण देव ने माता सीता को आग्रह किया कि पिंडदान का कुतप समय निकलता जा रहा है यह सुनकर सीता जी की व्यग्रता भी बढ़ती जा रही थी क्योंकि श्री राम और लक्ष्मण अभी नहीं लौटे थे।

इसी उपरांत दशरथ जी की आत्मा ने उन्हें आभास कराया की पिंड दान का वक़्त बीता जा रहा है।

यह जानकर माता सीता असमंजस में पड़ गई।तब माता सीता ने समय के महत्व को समझते हुए यह निर्णय लिया कि वह स्वयं अपने ससुर राजा दशरथ का पिंडदान करेंगी।

उन्होंने फल्गू नदी के साथ साथ वहाँ उपसथित वटवृक्ष, कौआ, तुलसी, ब्राह्मण और गाय को साक्षी मानकर स्वर्गीय राजा दशरथ का का पिंडदान पुरी विधि विधान के साथ किया...! 

इस क्रिया के उपरांत जैसे ही उन्होंने हाथ जोड़कर प्रार्थना की तो राजा दशरथ ने माता सीता का पिंड दान स्वीकार किया।

माता सीता को इस बात से प्रफुल्लित हुई कि उनकी पूजा दशरथ जी ने स्वीकार कर ली है।पर वह यह भी जानती थी कि प्रभु राम इस बात को नहीं मानेंगे....! 

क्योंकि पिंड दान पुत्र के बिना नहीं हो सकता है।
 
थोड़ी देर बाद भगवान राम और लक्ष्मण सामग्री लेकर आए और पिंड दान के विषय में पूछा तब माता सीता ने कहा कि समय निकल जाने के कारण मैंने स्वयं पिंडदान कर दिया प्रभु राम को इस बात का विश्वास नहीं हो रहा था....! 

कि बिना पुत्र और बिना सामग्री के पिंडदान कैसे संपन्न और स्वीकार हो सकता है।

तब सीता जी ने कहा कि वहाँ उपस्थित फल्गू नदी, तुलसी, कौआ,गाय, वटवृक्ष और ब्राह्मण उनके द्वारा किए गए श्राद्धकर्म की गवाही दे सकते हैं।

भगवान राम ने जब इन सब से पिंडदान किये जाने की बात सच है या नहीं यह पूछा,तब फल्गू नदी, गाय,कौआ, तुलसी और ब्राह्मण पांचों ने प्रभु राम का क्रोध देखकर झूठ बोल दिया कि माता सीता ने कोई पिंडदान नहीं किया सिर्फ वटवृक्ष ने सत्य कहा कि माता सीता ने सबको साक्षी रखकर विधि पूर्वक राजा दशरथ का पिंड दान किया।पांचों साक्षी द्वारा झूठ बोलने पर माता सीता ने क्रोधित होकर उन्हें आजीवन श्राप दिया।
 
फल्गू नदी को श्राप दिया कि वोह सिर्फ नाम की नदी रहेगी...! 

उसमें पानी नहीं रहेगा इसी कारण फल्गू नदी आज भी गया में सूखी है।

गाय को श्राप दिया कि गाय पूजनीय होकर भी सिर्फ उसके पिछले हिस्से की पूजा की जाएगी और गाय को खाने के लिए दर बदर भटकना पड़ेगा...! 

आज भी हिन्दू धर्म में गाय के सिर्फ पिछले हिस्से की पूजा की जाती है...!

माता सीता ने ब्राह्मण को कभी भी संतुष्ट न होने और कितना भी मिले उसकी दरिद्रता हमेशा बनी रहेगी का श्राप दिया।

इसी कारण ब्राह्मण कभी दान दक्षिणा के बाद भी संतुष्ट नहीं होते हैं...! 

सीताजी ने तुलसी को श्राप दिया कि वह कभी भी गया कि मिट्टी में नहीं उगेगी यह आज तक सत्य है कि गया कि मिट्टी में तुलसी नहीं फलती और कौवे को हमेशा लड़ झगड कर खाने का श्राप दिया था।

अतः कौआ आज भी खाना अकेले नहीं खाता है।
 
सीता माता द्वारा दिए गए इन श्रापों का प्रभाव आज भी इन पांचों में देखा जा सकता है...!

जहाँ इन पांचों को श्राप मिला वहीं सच बोलने पर माता सीता ने वट वृक्ष को आशीर्वाद दिया कि उसे लंबी आयु प्राप्त होगी और वह दूसरों को छाया प्रदान करेगा तथा पतिव्रता स्त्री उनका स्मरण करके अपने पति की दीर्घायु की कामना करेगी।

जय द्वारकाधीश !
जय श्री राधे कृष्ण !!
🌹🙏🌹🙏🌹

पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 
" Opp. Shri Ramanatha Swami Covil Car Parking Ariya Strits , Nr. Maghamaya Amman Covil Strits , V.O.C.Nagar , RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
सेल नंबर: . + 91- 7010668409 / + 91- 7598240825 WHATSAPP नंबर : + 91 7598240825 ( तमिलनाडु )
Skype : astrologer85
Email: prabhurajyguru@gmail.com
आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद.. 
नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏

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