सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता, किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश
।। श्री ऋगवेद श्री यजुर्वेद और श्री विष्णु पुराण आधारित सुंदर प्रवचन ।।
श्री ऋगवेद श्री यजुर्वेद और श्री विष्णु पुराण आधारित सुंदर प्रवचन
श्री ऋगवेद श्री यजुर्वेद और श्री विष्णु पुराण आधारित सुंदर प्रवचन में लोभ से क्रोध उत्पन्न होता है।
क्रोध से द्रोह होता है...!
द्रोह से शास्त्र ज्ञानी भी नरकगति को प्राप्त हो जाता है ।
जब भी ईश्वर का ही डर और दुनिया की शर्म ये दो वो चीजें है जो अधिकांश इंसानो को इंसान बनाए रखती है ।
सुकरात महान दार्शनिक थे |
एक दिन एक अमीर और धनवान जमींदार सुकरात के पास आया ।
उसे अपने धन दौलत और ऐश्वर्य का बहुत अभिमान था ।
वह सुकरात के पास आकर अपनी धन - दौलत और वैभव की डींगे हाँकने लगा ।
सुकरात कुछ समय तक तो उस जमींदार की बात चुपचाप सुनते रहे।
फिर कुछ देर बाद सुकरात ने दुनिया का नक्शा मंगाया....!
एक बार नक्शा फैलाकर सुकरात ने उस जमींदार से पूछा -
"जरा इस नक्शे में अपना देश बताइएँ"
तभी जमींदार ने उसे नक्शे पर एक जगह अंगुली रखकर कहाँ-
" यह रहा"
" और आपका राज्य कहा है ? "
सुकरात ने फिर पूछा…..!
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बड़ी कठिनाई से और काफी देर की कोशिश के बाद जमींदार ने नक्शे में अपने छोटे से राज्य को खोज कर बताया।
सुकरात बोले-"
अब जरा इस नक्शे में अपना नगर ढूंढ कर मुझे बता दीजिए "
जमींदार नक्शे में अपना नगर नहीं ढूंढ सका तो सुकरात ने कहाँ-
"क्या आप इस नक्शे में से अपनी जागीर और भूमि मुझे बता सकते हैं ?"
" नहीं !
भला इस नक्शे में मैं अपनी छोटी सी जागीर कैसे बता सकता हूं ।"
जमीदार ने झिझकते हुए कहाँ ....!
अब सुकरात ने मुस्कुराते हुए कहाँ - भाई !
इतने बड़े नक्शे में जिस भूमि के लिए बिंदु भी नहीं रखा जा सकता ।
उस थोड़ी सी जमीन जायदाद पर क्यों इतना घमंड करते हो ?
इस संसार में तुम और तुम्हारी भूमि क्या अस्तित्व रखती है ?
आखिर यह अभिमान किस बात का ?
आखिर यह घमंड किस बात पर ?"
सुकरात के यह शब्द सुनकर जमींदार का घमंड चूर चूर हो गया।
उसकी आंखें खुल गयी ।
अब तोउसका सिर सुकरात के आगे झुका हुआ था ।
सुकरात के शब्दों आज उसे नया जीवन दर्शन दिया था.....!
जब भी इस पृथ्वी पर मृत्यु का जन्म का चक्कर काटना ही पड़ता है।
क्यों और कैसे -
जिसने जन्म लिया है उसे एक ना एक दिन मृत्यु तो मिलनी ही है।
लेकिन क्या आपने कभी यह सोचा है कि हर इंसान की मृत्यु होना क्यों अनिवार्य है और कैसे इस मृत्यु का जन्म हुआ ?
अगर नही तो आइए जानते हैं...!
मृत्यु का जन्म कैसे हुआ - परम पिता ब्रह्मा जी ने ही इस पृथ्वी की रचना की है।
इस धरती पर के सभी प्राणियों को जीवनदान दिया है।
लेकिन इस समय हम जीवन की नहीं बल्कि मृत्यु की बात कर रहे हैं।
मृत्यु का जन्म...!
जब से ब्रह्मा जी ने आज से अरबों साल पहले इस सृष्टि की रचना की थी।
ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना के कई करोड़ों साल बाद यह देखा कि पृथ्वी पर जीवन का बोझ बढ़ता चला जा रहा है!
उसमे और अगर इसे नहीं रोका गया तो पृथ्वी समुद्रतल में डूब जाएगी तब ब्रह्मा जी पृथ्वी पर बाहर का संतुलन बनाने के विषय में सोचने लगे।
बहुत अधिक सोचने के बाद ब्रह्मा जी को जब कोई उपाय नही सूझा तो उन्हें बेहद क्रोध आ गया।
जिसके कारण एक अग्नि प्रकट हुई और ब्रह्मा जी ने उस अग्नि को समस्त संसार को जलाने का आदेश दिया।
यह देखकर सभी देवता, ब्रह्मा जी के पास पहुंचे और उनसे पूछा कि...!
‘हे ब्रह्मा जी आप इस संसार का विनाश क्यों कर रहे है...!’
तब उस समय ब्रह्मा जी ने उत्तर दिया कि देवी पृथ्वी - जगत के वजन से चिंतित हो रही थी।
उनकी इस पीड़ा ने ही मुझे प्राणियों के विनाश के लिए प्रेरित किया है।
यह विनाश देखकर भगवान शिवजी ने ब्रह्मा जी से प्रार्थना की और उन्हें कहा कि...!
आप इस प्रकार पृथ्वी का भी विनाश कर देंगे...!
आप कोई दूसरा उपाय सोचिए।
यह सुनकर ब्रह्मा जी का क्रोध शांत हुआ और उस समय उनकी इंद्रियो में से एक स्त्री उत्पन्न हुई।
ब्रह्मा जी ने उस स्त्री को मृत्यु कह कर पुकारा।इस संसार में मृत्यु का जन्म हुआ।
इस से आगे दुसरा भाग में पढ़े कि मृत्यु क्या है?
जय माँ अंबे....!
श्रीसूक्त पाठ विधि :
धन की कामना के लिए श्री सूक्त का पाठ अत्यन्त लाभकारी रहता है।
( श्रीसूक्त के इस प्रयोग को हृदय अथवा आज्ञा चक्र में करने से सर्वोत्तम लाभ होगा, अन्यथा सामान्य पूजा प्रकरण से ही संपन्न करें . )
प्राणायाम आचमन आदि कर आसन पूजन करें :-
ॐ अस्य श्री आसन पूजन महामन्त्रस्य कूर्मो देवता मेरूपृष्ठ ऋषि पृथ्वी सुतलं छंद: आसन पूजने विनियोग: । विनियोग हेतु जल भूमि पर गिरा दें ।
पृथ्वी पर रोली से त्रिकोण का निर्माण कर इस मन्त्र से पंचोपचार पूजन करें –
ॐ पृथ्वी त्वया धृता लोका देवी त्वं विष्णुनां धृता त्वां च धारय मां देवी पवित्रां कुरू च आसनं ।
ॐ आधारशक्तये नम: । ॐ कूर्मासनायै नम: । ॐ पद्मासनायै नम: । ॐ सिद्धासनाय नम: । ॐ साध्य सिद्धसिद्धासनाय नम: ।
तदुपरांत गुरू गणपति गौरी पित्र व स्थान देवता आदि का स्मरण व पंचोपचार पूजन कर श्री चक्र के सम्मुख पुरुष सूक्त का एक बार पाठ करें ।
निम्न मन्त्रों से करन्यास करें :-
1 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं ऐं क ए ई ल ह्रीं अंगुष्ठाभ्याम नमः ।
2 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं ह स क ह ल ह्रीं तर्जनीभ्यां स्वाहा ।
3 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं सौं स क ल ह्रीं मध्यमाभ्यां वष्ट ।
4 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं ऐं क ए ई ल ह्रीं अनामिकाभ्यां हुम् ।
5 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं ह स क ह ल ह्रीं कनिष्ठिकाभ्यां वौषट ।
6 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं सौं स क ल ह्रीं करतल करपृष्ठाभ्यां फट् ।
निम्न मन्त्रों से षड़ांग न्यास करें :-
1 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं ऐं क ए ई ल ह्रीं हृदयाय नमः ।
2 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं ह स क ह ल ह्रीं शिरसे स्वाहा ।
3 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं सौं स क ल ह्रीं शिखायै वष्ट ।
4 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं ऐं क ए ई ल ह्रीं कवचायै हुम् ।
5 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं ह स क ह ल ह्रीं नेत्रत्रयाय वौषट ।
6 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं सौं स क ल ह्रीं अस्त्राय फट् ।
श्री पादुकां पूजयामि नमः बोलकर शंख के जल से अर्घ्य प्रदान करते रहें ।
श्री चक्र के बिन्दु चक्र में निम्न मन्त्रों से गुरू पूजन करें :-
1 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री गुरू पादुकां पूजयामि नमः ।
2 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री परम गुरू पादुकां पूजयामि नमः ।
3 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री परात्पर गुरू पादुकां पूजयामि नमः ।
श्री चक्र महात्रिपुरसुन्दरी का ध्यान करके योनि मुद्रा का प्रदर्शन करते हुए पुन: इस मन्त्र से तीन बार पूजन करें :-
ॐ श्री ललिता महात्रिपुर सुन्दरी श्री विद्या राज राजेश्वरी श्री पादुकां पूजयामि नमः ।
अब श्रीसूक्त का विधिवत पाठ करें :-
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ॐ हिरण्यवर्णा हरिणीं सुवर्णरजतस्रजाम् ।
चन्द्रां हिरण्यमयींलक्ष्मींजातवेदो मऽआवह ।।1।।
तांम आवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम् ।
यस्या हिरण्यं विन्देयंगामश्वं पुरुषानहम् ।।2।।
अश्वपूर्वां रथमध्यांहस्तिनादप्रबोधिनीम् ।
श्रियं देवीमुपह्वये श्रीर्मा देवीजुषताम् ।।3।।
कांसोस्मितां हिरण्यप्राकारामाद्रां ज्वलन्तींतृप्तां तर्पयन्तीम् ।
पद्मेस्थितांपद्मवर्णा तामिहोपह्वयेश्रियम् ।।4।।
चन्द्रां प्रभासांयशसां ज्वलन्तीं श्रियं लोके देवीजुष्टामुदाराम् ।
तांपद्मिनींमीं शरण प्रपद्येऽलक्ष्मीर्मे नश्यतांत्वां वृणे ।।5।।
आदित्यवर्णे तपसोऽधिजातो वनस्पतिस्तव वृक्षोऽथ बिल्वः ।
तस्य फ़लानि तपसानुदन्तुमायान्तरा याश्चबाह्या अलक्ष्मीः ।।6।।
उपैतु मां देवसखःकीर्तिश्चमणिना सह ।
प्रादुर्भूतोसुराष्ट्रेऽस्मिन्कीर्तिमृद्धिं ददातु मे ।। 7।।
क्षुत्पिपासामलां ज्येष्ठामलक्ष्मींनाशयाम्यहम् ।
अभूतिमसमृद्धिं च सर्वा निर्णुद मे गृहात् ।।8।।
गन्धद्वारांदुराधर्षां नित्यपुष्टांकरीषिणीम् ।
ईश्वरींसर्वभूतानां तामिहोपह्वये श्रियम् ।।9।।
मनसः काममाकूतिं वाचःसत्यमशीमहि ।
पशुनांरुपमन्नस्य मयिश्रीःश्रयतांयशः ।।10।।
कर्दमेन प्रजाभूता मयिसम्भवकर्दम ।
श्रियं वासय मे कुले मातरं पद्ममालिनीम् ।।11।।
आपःसृजन्तु स्निग्धानिचिक्लीतवस मे गृहे ।
नि च देवी मातरं श्रियं वासय मे कुले ।।12।।
आर्द्रा पुष्करिणीं पुष्टिं पिंगलां पद्मालिनीम् ।
चन्द्रां हिरण्मयींलक्ष्मी जातवेदो मेंआवह ।।13।।
आर्द्रा यःकरिणींयष्टिं सुवर्णा हेममालिनीम् ।
सूर्या हिरण्मयींलक्ष्मींजातवेदो म आवह ।।14।।
तां मऽआवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम् ।
यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावो दास्योऽश्वन्विन्देयं पुरुषानहम् ।।15।।
यःशुचिः प्रयतोभूत्वा जुहुयादाज्यमन्वहम् ।
सूक्तमं पंचदशर्च श्रीकामःसततं जपेत् ।।16।।
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पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
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-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science)
" Opp. Shri Dhanlakshmi Strits , Marwar Strits, RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
सेल नंबर: . + 91- 7010668409 WHATSAPP नंबर : + 91 7598240825 ( तमिलनाडु )
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जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏

