https://www.profitablecpmrate.com/gtfhp9z6u?key=af9a967ab51882fa8e8eec44994969ec 2. आध्यात्मिकता का नशा की संगत भाग 1: 10/15/20

। श्री ऋगवेद श्री यजुर्वेद और श्री विष्णु पुराण आधारित प्रवचन ।।

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

। श्री ऋगवेद श्री यजुर्वेद और श्री विष्णु पुराण आधारित प्रवचन ।।


श्री ऋगवेद श्री यजुर्वेद और श्री विष्णु पुराण आधारित प्रवचन में कहा गया है की करवा चौथ या किसी शुभ प्रसंगों के दिन घर को औरत ही गढ़ती ( सजाती ) है।

एक गांव में एक जमींदार था। 

उसके कई नौकरों में जग्गू भी था। 

गांव से लगी बस्ती में ।

बाकी मजदूरों के साथ जग्गू भी अपने पांच लड़कों के साथ रहता था। 

जग्गू की पत्नी बहुत पहले गुजर गई थी। 

एक झोंपड़े में वह बच्चों को पाल रहा था। 





बच्चे बड़े होते गये और जमींदार के घर नौकरी में लगते गये।

सब मजदूरों को शाम को मजूरी मिलती। 

जग्गू और उसके लड़के चना और गुड़ लेते थे। 

चना भून कर गुड़ के साथ खा लेते थे।

बस्ती वालों ने जग्गू को बड़े लड़के की शादी कर देने की सलाह दी।

उसकी शादी हो गई और कुछ दिन बाद गौना भी आ गया। 

उस दिन जग्गू की झोंपड़ी के सामने बड़ी बमचक मची। 

बहुत लोग इकठ्ठा हुये नई बहू देखने को। 

फिर धीरे धीरे भीड़ छंटी। 

आदमी काम पर चले गये। 

औरतें अपने अपने घर। 

जाते जाते एक बुढ़िया बहू से कहती गई –-- 

पास ही घर है। 

किसी चीज की जरूरत हो तो संकोच मत करना । 

आ जाना लेने। 

सबके जाने के बाद बहू ने घूंघट उठा कर अपनी ससुराल को देखा तो उसका कलेजा मुंह को आ गया।

जर्जर सी झोंपड़ी ।

खूंटी पर टंगी कुछ पोटलियां और झोंपड़ी के बाहर बने छः चूल्हे ( जग्गू और उसके सभी बच्चे अलग अलग चना भूनते थे ) । 

बहू का मन हुआ कि उठे और सरपट अपने गांव भाग चले।

 पर अचानक उसे सोच कर धचका लगा– 

वहां कौन से नूर गड़े हैं। 

मां है नहीं। 

भाई भौजाई के राज में नौकरानी जैसी जिंदगी ही तो गुजारनी होगी। 

यह सोचते हुये वह बुक्का फाड़ रोने लगी। 

रोते-रोते थक कर शान्त हुई। 

मन में कुछ सोचा। 

पड़ोसन के घर जा कर पूछा –

अम्मां एक झाड़ू मिलेगा? 

बुढ़िया अम्मा ने झाड़ू, गोबर और मिट्टी दी।

साथ मेंअपनी पोती को भेज दिया।

वापस आ कर बहू ने...!

एक चूल्हा छोड़ बाकी फोड़ दिये।सफाई कर गोबर - मिट्टी से झोंपड़ी और दुआर लीपा। 

फिर उसने सभी पोटलियों के चने एक साथ किये और अम्मा के घर जा कर चना पीसा।

अम्मा ने उसे साग और चटनी भी दी। 

वापस आ कर बहू ने चने के आटे की रोटियां बनाई और इन्तजार करने लगी।

जग्गू और उसके लड़के जब लौटे तो एक ही चूल्हा देख भड़क गये।

चिल्लाने लगे कि इसने तो आते ही सत्यानाश कर दिया। 

अपने आदमी का छोड़ बाकी सब का चूल्हा फोड़ दिया। 

झगड़े की आवाज सुन बहू झोंपड़ी से  निकली। 

बोली –- 

आप लोग हाथ मुंह धो कर बैठिये, मैं खाना
निकालती हूं। 

सब अचकचा गये! 

हाथ मुंह धो कर बैठे। 

बहू ने पत्तल पर खाना परोसा – रोटी, साग, चटनी। 

मुद्दत बाद उन्हें ऐसा खाना मिला था। 

खा कर अपनी अपनी कथरी ले वे सोने चले गये।

सुबह काम पर जाते समय बहू ने उन्हें एक एक रोटी और गुड़ दिया।

चलते समय जग्गू से उसने पूछा – बाबूजी ।

मालिक आप लोगों को चना और गुड़ ही देता है क्या? 

जग्गू ने बताया कि मिलता तो सभी अन्न है पर वे चना-गुड़ ही लेते हैं।


आसान रहता है खाने में। 

बहू ने समझाया कि सब
अलग अलग प्रकार का अनाज लिया करें। 

देवर ने बताया कि उसका काम लकड़ी चीरना है।

बहू ने उसे घर के ईंधन के लिये भी कुछ लकड़ी लाने को कहा।

बहू सब की मजदूरी के अनाज से एक- एक मुठ्ठी अन्न अलग रखती। 

उससे बनिये की दुकान से बाकी जरूरत की चीजें लाती। 

जग्गू की गृहस्थी धड़ल्ले से चल पड़ी। 

एक दिन सभी भाइयों और बाप ने तालाब की मिट्टी से झोंपड़ी के आगे बाड़ बनाया। 

बहू के गुण गांव में चर्चित होने लगे।

जमींदार तक यह बात पंहुची। 

वह कभी कभी बस्ती में आया करता था।

आज वह जग्गू के घर उसकी बहू को आशीर्वाद देने आया। 

बहू ने पैर छू कर नमस्कार करके...!

प्रणाम किया तो जमींदार ने उसे एक हार दिया। 

हार माथे से लगा बहू ने कहा कि मालिक यह हमारे किस काम आयेगा।

 इससे अच्छा होता कि मालिक हमें चार लाठी जमीन दिये होते झोंपड़ी के दायें - बायें ।

तो एक कोठरी बन जाती। 

बहू की चतुराई पर जमींदार हंस पड़ा। 

बोला –

ठीक ।

जमीन तो जग्गू को मिलेगी ही। 

यह हार तो तुम्हारा हुआ।

यह कहानी मैरी नानी मुझे सुनाती थीं। 

फिर हमें सीख देती थीं –

औरत चाहे घर को स्वर्ग बना दे, चाहे नर्क!

 प्रेम के प्रवाह 

भौंरा काहे को भयो उदासी ।
बपु तेरो कारो, बदनऊ पीरो,
    तू कलि सो कइ आसी ॥

सब कलिका कौ रस लैकै,
  पुनि वेऊ करी निरासी ।
सांचो 'सूरस्याम' को सेवक,
   योग युगति सु उपासी ॥

 भावार्थ -

अरे भौंरे, तू उदासी ( विरक्त साधु ) क्यों हो गया है। 
तेरा शरीर काला है, तेरा मुँह भी पीला है। 

तू कली से आशा करता है। 

तू हर कली का रस ले लेता है और फिर उसे निराश भी कर देता है, उन्हें छोड़कर उड़ जाता है। 

तू श्याम का सच्चा सेवक है, सच्चा अनुगामी है। 

इसी लिए तू योग - युक्ति का उपासक है। 

स्याम तो हमें छोड़कर भाग गए, तू कलियों को छोड़ उड़ जाता है। 

सेवक और स्वामी दोनों एक जैसे हैं।*

स्वास्थ्य सबसे बड़ा उपहार है।

सन्तुष्टि सबसे बड़ी संपत्ति है।

मुस्कुराहट सबसे बड़ी ताकत है और वफादारी सबसे उत्तम रिश्ता है।

रास्ते मे धर्मस्थल दिखे औऱ आप प्रार्थना ना करो तो चलेगा पर रास्ते मे एम्बुलेंस मिले तब प्रार्थना जरूर करना क्या पता शायद कोई जिंदगी आपकी दुआओं से बच जाये जिस दिन आपके हिस्से की रोटी किसी और का पेट भरे समझ लेना कि आपको ईश्वर मिल गया है !

हे कालकाल मृड सर्व सदासहाय
  हे भूतनाथ भवबाधक हे  त्रिनेत्र।

हे यज्ञशासक यमान्तक योगि-वन्द्य
 संसार- दु:ख - गहनाज्जगदीश रक्ष।।

हे वेदवेद्य शशिशेखर हे दयालो
  हे सर्वभूतप्रतिपालक शूलपाणे।

हे चन्द्रसूर्य शिखिनेत्र चिदेकरूप
  संसार-दु:ख-गहनाज्जगदीश रक्ष।।

हे काल के भी महाकाल स्वरूप! मृड ( सुख ) रूप तथा सर्वरूप, अपने भक्तों के सदा सहायक, हे ।

भूतनाथ...!

भव की बाधा के विनाशक,त्रिनेत्रधारी,यज्ञ के शासक, यम के भी विनाशक,परम योगियों द्वारा वन्दनीय हे ।

वो जगदीश....!

इस संसार के गहन दुखों से मेरी रक्षा करें।

वेद, प्रतिपाद्य, हे शशिशेखर! हे दयालु , प्राणिमात्र की रक्षा करने में निरन्तर तत्पर, अपने कर -कमलों में त्रिशूल धारण किये हुए।

चन्द्र,सूर्य एवं अग्निरूप, त्रिनेत्रधारी, चित् रूप,हे।

जगदीश....!

इस संसार के अतिप्रबल कष्टों से आप मेरी रक्षा करें।

  || हर हर महादेव शंभो हर ||

    ।| जय श्री राधे श्याम ||

जय माँ अंबे

पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 
" Opp. Shri Dhanlakshmi Strits , Marwar Strits, RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
सेल नंबर: . + 91- 7010668409 WHATSAPP नंबर : + 91 7598240825 ( तमिलनाडु )
Skype : astrologer85
Web : https://sarswatijyotish.com/
Email: prabhurajyguru@gmail.com
आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद.. 
नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏

।। श्री ऋगवेद श्री यजुर्वेद और श्री रामचरित्रमानस आधारित प्रवचन ।।

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
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।। श्री ऋगवेद श्री यजुर्वेद और श्री रामचरित्रमानस आधारित प्रवचन ।।


श्री ऋगवेद श्री यजुर्वेद और श्री रामचरित्रमानस विस्तृत प्रर्वचन 

गुरु कृपा की महिमा

भले ही आपके भाग्य में कुछ नहीं लिखा हो पर अगर "गुरु की कृपा" आप पर हो जाए तो आप वो भी पा सकते है । 

जो आपके भाग्य में नही है।

काशी नगर के एक धनी सेठ थे, जिनके कोई संतान नही थी। 




बड़े - बड़े विद्वान् ज्योतिषियो से सलाह - मशवरा करने के बाद भी उन्हें कोई लाभ नही मिला। 

सभी उपायों से निराश होने के बाद सेठजी को किसी ने सलाह दी की आप गोस्वामी तुलसीदास जी के पास जाइये वे रोज़ रामायण पढ़ते है । 

तब भगवान "राम" स्वयं कथा सुनने आते हैं। 

इस लिये उनसे कहना कि भगवान् से पूछे की आपके संतान कब होगी?

सेठजी गोस्वामी जी के पास जाते है और अपनी समस्या के बारे में भगवान् से बात करने को कहते हैं। 

कथा समाप्त होने के बाद गोस्वामी जी भगवान से पूछते है।

कि प्रभु वो सेठजी आये थे ।

जो अपनी संतान के बारे में पूछ रहे थे। 

तब भगवान् ने कहा कि गोवास्वामी जी उन्होंने पिछले जन्मों में अपनी संतान को बहुत दुःख दिए हैं । 

इस कारण उनके तो सात जन्मो तक संतान नही लिखी हुई हैं।

दूसरे दिन गोस्वामी जी ।

सेठ जी को सारी बात बता देते हैं। 

सेठ जी मायूस होकर ईश्वर की मर्जी मानकर चले जाते है।

थोड़े दिनों बाद सेठजी के घर एक संत आते है और वो भिक्षा मांगते हुए कहते है कि भिक्षा दो फिर जो मांगोगे वो मिलेगा। 

तब सेठजी की पत्नी संत से बोलती हैं कि गुरूजी मेरे संतान नही हैं। 

तो संत बोले तू एक रोटी देगी तो तेरे एक संतान जरुर होगी। 

व्यापारी की पत्नी उसे दो रोटी दे देती है। 

उससे प्रसन्न होकर संत ये कहकर चला जाता है कि जाओ तुम्हारे दो संतान होगी।

एक वर्ष बाद सेठजी के दो जुड़वाँ संताने हो जाती है। 

कुछ समय बाद गोस्वामी जी का उधर से निकलना होता हैं। 

व्यापारी के दोनों बच्चे घर के बाहर खेल रहे होते है। 

उन्हें देखकर वे व्यापारी से पूछते है कि ये बच्चे किसके है।
 
व्यापारी बोलता है गोस्वामी जी ये बच्चे मेरे ही है। 

आपने तो झूठ बोल दिया कि भगवान् ने कहा कि मेरे संतान नही होगी ।

पर ये देखो गोस्वामी जी मेरे दो जुड़वा संताने हुई हैं।
 
गोस्वामी जी ये सुन कर आश्चर्यचकित हो जाते है। 

फिर व्यापारी उन्हें उस संत के वचन के बारे में बताता हैं। 

उसकी बात सुनकर गोस्वामी जी चले जाते है।

शाम को गोस्वामीजी कुछ चितिंत मुद्रा में रामायण पढते हैं । 

तो भगवान् उनसे पूछते है कि गोस्वामी जी आज क्या बात है?

 चिन्तित मुद्रा में क्यों हो? 

तो गोस्वामी जी कहते है कि प्रभु आपने मुझे उस व्यापारी के सामने झूठा पटक दिया। 


आपने तो कहा था कि व्यापारी के सात जन्म तक कोई संतान नही लिखी है फिर उसके दो संताने कैसे हो गई।

तब भगवान् बोले कि उसके पूर्व जन्म के बुरे कर्मो के कारण में उसे सात जन्म तक संतान नही दे सकता क्योकि मैं नियमो की मर्यादा में बंधा हूँ।

पर अगर.. 

मेरे किसी भक्त ने उन्हें कह दिया कि तुम्हारे संतान होगी । 

तो उस समय मैं भी कुछ नही कर सकता गोस्वामी जी। 

क्योकि मैं भी मेरे भक्तों की मर्यादा से बंधा हूँ। 

मैं मेरे भक्तो के वचनों को काट नही सकता। 

मुझे मेरे भक्तों की बात रखनी पड़ती हैं। 

इस लिए गोस्वामी जी अगर आप भी उसे कह देते कि जा तेरे संतान हो जायेगी तो मुझे आप जैसे भक्तों के वचनों की रक्षा के लिए भी अपनी मर्यादा को तोड़ कर वो सब कुछ देना पड़ता हैं जो उसके भाग्य मे नही लिखा है।

मित्रों कहानी से तात्पर्य यही है कि भले ही विधाता ने आपके भाग्य में कुछ ना लिखा हो । 

पर अगर किसी गुरु की आप पर कृपा हो जाये तो आपको वो भी मिल सकता है जो आपके किस्मत में नही।

श्रीराम कथा का एक रहस्यमयी प्रसंग का भी खुलासा-

राम पुत्र कुश को कुश से ही क्यो बनाया गया?

जैसा कि हम सभी जानते हैं कि श्रीराम जी और सीता मईया को दो पुत्र रत्न थे | 

जहॉ मानस और वाल्मिकी रामायण आदि मे दो पुत्र का विवरण है ।

वही कई ऐसे साहित्य है जिसमे यह है कि सीता मईया ने केवल लव को ही जन्म दिया था।

और कुश वाल्मीकि जी द्वारा प्रदत्त था या उनके द्वारा निर्मित वो भी कुश से बनने के कारण ही वो कुश कहलाए आखिर कुश से ही क्यो बने लव के भाई चलिए देखते हैं-।

एक कथा मिलती है कि  सीता त्याग के बाद मईया वाल्मीकि जी के आश्रम मे रहती थी वही जब लव का जन्म हुआ था। 

इनके जन्म होने के बाद एक दिन सीता जी वाल्मिकि आश्रम मे वाल्मिकि जी के पास लव  को रखकर पानी के लिए नदी पर जाने लगती है ।

आधे रास्ते मे जब मईया पहुचती है तब सोचती है कि मै तो लव को वाल्मिकी जी के पास रख आयी हू पर कही मुनि समाधिस्थ हो गए है।

तब लव को कोई जानवर न उठा ले यह मन मे भाव आते ही वो वापस आश्रम आती है ।

और देखती है कि वास्तव मे मुनि समाधिस्थ हो गए है।

और लव वही लेटे हूए खेल रहे है वो मुनि को उसी अवस्था मे बिना कुछ कहे छोडकर लव को गोद मे उठाकर चल देती हैं ।

वापस नदी की ओर इसके बाद मुनि की समाधि टुटती है तब वो लव को नही पाते हैं। 

तब वो परेशान हो जाते है कि सीताजी आएगी तो वो उन्हे लव कहॉ से देगे इस लिए वो वही कुश से एक लव समान पुत्र बनाकर पालने मे रख देते है।

तभी मईया आती है और एक बच्चे को देखती है इधर मईया के गोद मे मुनि लव को देखते है ।

मईया आश्चर्य से पूरी बात पूछती है जिसे जानकर कुश से बने बच्चे को भी मईया लव के समान पुत्र मानकर पालने लगती है ।

आखिर कुश से क्यो बने लव के भाई जो कुश कहलाए -

वाराह अवतार मे विष्णु रुपी वाराह ने जब रसातल से पृथ्वी का उद्धार करते हुए अपना शरीर कपकपाया ,तो जो रोम झडकर या टूट कर गिरे वो कुश और काश बने |

कुश वाराह रुपी विष्णु जी का ही अंश था और वही विष्णु आज  श्री राम रुप मे आए है यह बात वाल्मिकी जी जानते थे अत: सीता जी के लिए लव की जगह पर जो पुत्र बनाया वो कुश से बनाया था ।

क्योकि सीता जी और राम जी का पुत्र उनके अंश से ही होना चाहिए था 

और कुष से यह पूर्ति हो रही थी अत: कुश से ही कुश का निर्माण करना जरुरी था | 

संयोग वश कुश का निर्माण करते समय वाल्मिकी जी कुशासनी पर ही बैठे थे |

वाल्मिकी रामायण मे कथा भेद है?

गलत सोच और गलत अंदाजा इंसान को हर रिश्ते से गुमराह कर देता है।

नाराज़गी भी एक खूबसूरत रिश्ता है।

जिससे होती है ।

वह व्यक्ति दिल और दिमाग दोनों में रहता है।

इंसानी रिश्तों में आपस में जितनी सहन शीलता क्षमाशीलता और समझदारी होगी।

*आपसी रिश्तोंकी उम्र उतनी ही लंबी होगी।

मनुष्य के पास सबसे बड़ी पूंजी अच्छे विचार हैं ।

क्योंकि धन और बल किसी को भी गलत राह पर ले जा सकते हैं ।

किन्तु अच्छे विचार सदैव अच्छे कार्यो के लिए ही प्रेरित करेंगे।

विचार और व्यवहार हमारे बगीचेके वो फ़ूल हैं।

जो हमारे पूरे व्यक्तित्व को महका देतें हैं।

जिंदगी में ऐसे लोग भी मिलते हैं।

जो वादे तो नहीं करते।

लेकिन निभा बहुत कुछ जाते हैं।

अक्सर वही रिश्ते, अनुपम होते हैं।

जो एहसानों से नहीं एहसासों से बनते हैं।

यह कथा आप विस्तृत रुप से कल्याण नारी अंक- जनवरी 1948 मे भी पढ सकते है जो गीता प्रेस की है |

❤ 卐 जय श्री राम 卐 ❤
🙏जय जय श्री द्वारकाधीश जी👏

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महाभारत की कथा का सार

महाभारत की कथा का सार| कृष्ण वन्दे जगतगुरुं  समय नें कृष्ण के बाद 5000 साल गुजार लिए हैं ।  तो क्या अब बरसाने से राधा कृष्ण को नहीँ पुकारती ...

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