सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता, किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश
।। श्री ऋगवेद श्री यजुर्वेद और श्री विष्णु पुराण आधारित प्रवचन ।।
श्री ऋगवेद श्री यजुर्वेद और श्री विष्णु पुराण आधारित प्रवचन में कहा गया है की करवा चौथ या किसी शुभ प्रसंगों के दिन घर को औरत ही गढ़ती ( सजाती ) है।
एक गांव में एक जमींदार था।
उसके कई नौकरों में जग्गू भी था।
गांव से लगी बस्ती में ।
बाकी मजदूरों के साथ जग्गू भी अपने पांच लड़कों के साथ रहता था।
जग्गू की पत्नी बहुत पहले गुजर गई थी।
एक झोंपड़े में वह बच्चों को पाल रहा था।
बच्चे बड़े होते गये और जमींदार के घर नौकरी में लगते गये।
सब मजदूरों को शाम को मजूरी मिलती।
जग्गू और उसके लड़के चना और गुड़ लेते थे।
चना भून कर गुड़ के साथ खा लेते थे।
बस्ती वालों ने जग्गू को बड़े लड़के की शादी कर देने की सलाह दी।
उसकी शादी हो गई और कुछ दिन बाद गौना भी आ गया।
उस दिन जग्गू की झोंपड़ी के सामने बड़ी बमचक मची।
बहुत लोग इकठ्ठा हुये नई बहू देखने को।
फिर धीरे धीरे भीड़ छंटी।
आदमी काम पर चले गये।
औरतें अपने अपने घर।
जाते जाते एक बुढ़िया बहू से कहती गई –--
पास ही घर है।
किसी चीज की जरूरत हो तो संकोच मत करना ।
आ जाना लेने।
सबके जाने के बाद बहू ने घूंघट उठा कर अपनी ससुराल को देखा तो उसका कलेजा मुंह को आ गया।
जर्जर सी झोंपड़ी ।
खूंटी पर टंगी कुछ पोटलियां और झोंपड़ी के बाहर बने छः चूल्हे ( जग्गू और उसके सभी बच्चे अलग अलग चना भूनते थे ) ।
बहू का मन हुआ कि उठे और सरपट अपने गांव भाग चले।
पर अचानक उसे सोच कर धचका लगा–
वहां कौन से नूर गड़े हैं।
मां है नहीं।
भाई भौजाई के राज में नौकरानी जैसी जिंदगी ही तो गुजारनी होगी।
यह सोचते हुये वह बुक्का फाड़ रोने लगी।
रोते-रोते थक कर शान्त हुई।
मन में कुछ सोचा।
पड़ोसन के घर जा कर पूछा –
अम्मां एक झाड़ू मिलेगा?
बुढ़िया अम्मा ने झाड़ू, गोबर और मिट्टी दी।
साथ मेंअपनी पोती को भेज दिया।
वापस आ कर बहू ने...!
एक चूल्हा छोड़ बाकी फोड़ दिये।सफाई कर गोबर - मिट्टी से झोंपड़ी और दुआर लीपा।
फिर उसने सभी पोटलियों के चने एक साथ किये और अम्मा के घर जा कर चना पीसा।
अम्मा ने उसे साग और चटनी भी दी।
वापस आ कर बहू ने चने के आटे की रोटियां बनाई और इन्तजार करने लगी।
जग्गू और उसके लड़के जब लौटे तो एक ही चूल्हा देख भड़क गये।
चिल्लाने लगे कि इसने तो आते ही सत्यानाश कर दिया।
अपने आदमी का छोड़ बाकी सब का चूल्हा फोड़ दिया।
झगड़े की आवाज सुन बहू झोंपड़ी से निकली।
बोली –-
आप लोग हाथ मुंह धो कर बैठिये, मैं खाना
निकालती हूं।
सब अचकचा गये!
हाथ मुंह धो कर बैठे।
बहू ने पत्तल पर खाना परोसा – रोटी, साग, चटनी।
मुद्दत बाद उन्हें ऐसा खाना मिला था।
खा कर अपनी अपनी कथरी ले वे सोने चले गये।
सुबह काम पर जाते समय बहू ने उन्हें एक एक रोटी और गुड़ दिया।
चलते समय जग्गू से उसने पूछा – बाबूजी ।
मालिक आप लोगों को चना और गुड़ ही देता है क्या?
जग्गू ने बताया कि मिलता तो सभी अन्न है पर वे चना-गुड़ ही लेते हैं।
आसान रहता है खाने में।
बहू ने समझाया कि सब
अलग अलग प्रकार का अनाज लिया करें।
देवर ने बताया कि उसका काम लकड़ी चीरना है।
बहू ने उसे घर के ईंधन के लिये भी कुछ लकड़ी लाने को कहा।
बहू सब की मजदूरी के अनाज से एक- एक मुठ्ठी अन्न अलग रखती।
उससे बनिये की दुकान से बाकी जरूरत की चीजें लाती।
जग्गू की गृहस्थी धड़ल्ले से चल पड़ी।
एक दिन सभी भाइयों और बाप ने तालाब की मिट्टी से झोंपड़ी के आगे बाड़ बनाया।
बहू के गुण गांव में चर्चित होने लगे।
जमींदार तक यह बात पंहुची।
वह कभी कभी बस्ती में आया करता था।
आज वह जग्गू के घर उसकी बहू को आशीर्वाद देने आया।
बहू ने पैर छू कर नमस्कार करके...!
प्रणाम किया तो जमींदार ने उसे एक हार दिया।
हार माथे से लगा बहू ने कहा कि मालिक यह हमारे किस काम आयेगा।
इससे अच्छा होता कि मालिक हमें चार लाठी जमीन दिये होते झोंपड़ी के दायें - बायें ।
तो एक कोठरी बन जाती।
बहू की चतुराई पर जमींदार हंस पड़ा।
बोला –
ठीक ।
जमीन तो जग्गू को मिलेगी ही।
यह हार तो तुम्हारा हुआ।
यह कहानी मैरी नानी मुझे सुनाती थीं।
फिर हमें सीख देती थीं –
औरत चाहे घर को स्वर्ग बना दे, चाहे नर्क!
प्रेम के प्रवाह
भौंरा काहे को भयो उदासी ।
बपु तेरो कारो, बदनऊ पीरो,
तू कलि सो कइ आसी ॥
सब कलिका कौ रस लैकै,
पुनि वेऊ करी निरासी ।
सांचो 'सूरस्याम' को सेवक,
योग युगति सु उपासी ॥
भावार्थ -
अरे भौंरे, तू उदासी ( विरक्त साधु ) क्यों हो गया है।
तेरा शरीर काला है, तेरा मुँह भी पीला है।
तू कली से आशा करता है।
तू हर कली का रस ले लेता है और फिर उसे निराश भी कर देता है, उन्हें छोड़कर उड़ जाता है।
तू श्याम का सच्चा सेवक है, सच्चा अनुगामी है।
इसी लिए तू योग - युक्ति का उपासक है।
स्याम तो हमें छोड़कर भाग गए, तू कलियों को छोड़ उड़ जाता है।
सेवक और स्वामी दोनों एक जैसे हैं।*
स्वास्थ्य सबसे बड़ा उपहार है।
सन्तुष्टि सबसे बड़ी संपत्ति है।
मुस्कुराहट सबसे बड़ी ताकत है और वफादारी सबसे उत्तम रिश्ता है।
रास्ते मे धर्मस्थल दिखे औऱ आप प्रार्थना ना करो तो चलेगा पर रास्ते मे एम्बुलेंस मिले तब प्रार्थना जरूर करना क्या पता शायद कोई जिंदगी आपकी दुआओं से बच जाये जिस दिन आपके हिस्से की रोटी किसी और का पेट भरे समझ लेना कि आपको ईश्वर मिल गया है !
हे कालकाल मृड सर्व सदासहाय
हे भूतनाथ भवबाधक हे त्रिनेत्र।
हे यज्ञशासक यमान्तक योगि-वन्द्य
संसार- दु:ख - गहनाज्जगदीश रक्ष।।
हे वेदवेद्य शशिशेखर हे दयालो
हे सर्वभूतप्रतिपालक शूलपाणे।
हे चन्द्रसूर्य शिखिनेत्र चिदेकरूप
संसार-दु:ख-गहनाज्जगदीश रक्ष।।
हे काल के भी महाकाल स्वरूप! मृड ( सुख ) रूप तथा सर्वरूप, अपने भक्तों के सदा सहायक, हे ।
भूतनाथ...!
भव की बाधा के विनाशक,त्रिनेत्रधारी,यज्ञ के शासक, यम के भी विनाशक,परम योगियों द्वारा वन्दनीय हे ।
वो जगदीश....!
इस संसार के गहन दुखों से मेरी रक्षा करें।
वेद, प्रतिपाद्य, हे शशिशेखर! हे दयालु , प्राणिमात्र की रक्षा करने में निरन्तर तत्पर, अपने कर -कमलों में त्रिशूल धारण किये हुए।
चन्द्र,सूर्य एवं अग्निरूप, त्रिनेत्रधारी, चित् रूप,हे।
जगदीश....!
इस संसार के अतिप्रबल कष्टों से आप मेरी रक्षा करें।
|| हर हर महादेव शंभो हर ||
।| जय श्री राधे श्याम ||
जय माँ अंबे
पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:-
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science)
" Opp. Shri Dhanlakshmi Strits , Marwar Strits, RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
सेल नंबर: . + 91- 7010668409 WHATSAPP नंबर : + 91 7598240825 ( तमिलनाडु )
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आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद..
नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏