https://www.profitablecpmrate.com/gtfhp9z6u?key=af9a967ab51882fa8e8eec44994969ec 2. आध्यात्मिकता का नशा की संगत भाग 1: 08/12/20

।। शास्त्रों के अनुसार कौनसा समिध हवन यज्ञ में उपयोग किया जाता है , *🔹 आत्म संतुष्टि 🔹* ।।

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

।। शास्त्रों के अनुसार कौनसा समिध हवन यज्ञ में उपयोग किया जाता है  , *🔹 आत्म संतुष्टि 🔹* ।।  


।। शास्त्रों के अनुसार कौनसा समिध हवन यज्ञ में उपयोग किया जाता है ।।

हवन में कौन सी लकड़ी ले और कौन सी लकड़ी ना ले है

सामवेदकी ध्वनि सुनाई दे रही हो तब ऋग्वेद व यजुर्वेदको नहीं पढ़ना चाहिए, यह शास्त्रीय सिद्धांत है। 

परंतु ऐसा क्यों है???




*निम्न कारणोंमेंसे कौनसा समुचित है???*

1 सामवेदकी मधुर ध्वनि शमें व्यवधान न हो।

2 ऋग्वेद व यजुर्वेदका सामवेदसे विरोध है।

3 सभी वेदोंमें सामवेद श्रेष्ठ है, उसके सामने अन्य वेदोंका बोलना ठीक नहीं है।

4 सामवेदकी ही ध्वनि अपवित्र है।

5 सामवेद स्वतंत्र है अन्योंके बोलने पर उसका अपमान होता है।

यज्ञादि कर्मोंमें आमकी समिधासे हवन नहीं करना चाहिए।

परंतु लोगोंको न जाने कहांसे यह भ्रम हो गया है कि हवनमें आमकी समिधा अत्यंत उपयोगी है।

*#प्रमाण*-

*#यज्ञीयवृक्ष*-

*1 पलाशफल्गुन्यग्रोधाः प्लक्षाश्वत्थविकंकिताः।*
*उदुंबरस्तथा बिल्वश्चंदनो यज्ञियाश्च ये।।*

*सरलो देवदारुश्च शालश्च खदिरस्तथा।* 
*समिदर्थे प्रशस्ताः स्युरेते वृक्षा विशेषतः।।*
(#आह्निकसूत्रावल्यां_वायुपुराणे)

*2 शमीपलाशन्यग्रोधप्लक्षवैकङ्कितोद्भवाः।*
*वैतसौदुंबरौ बिल्वश्चंदनः सरलस्तथा।।*
*शालश्च देवदारुश्च खदिरश्चेति याज्ञिकाः।।*
(#संस्कारभास्करे_ब्रह्मपुराणे)

*#अर्थ*-
1पलाश /ढाक/छौला 
2फल्गु 
3वट 
4पाकर 
5पीपल 
6विकंकत /कठेर 
7गूलर 
8बेल
9चंदन 
10सरल 
11देवदारू 
12शाल 
13खैर 
14शमी
15बेंत

उपर्युक्त ये सभी वृक्ष यज्ञीय हैं, यज्ञोंमें इनका इद्ध्म (काष्ठ) तथा इनकी समिधाओंका उपयोग करना चाहिए।

शमी व बेल आदि वृक्ष कांँटेदार होने पर भी वचनबलात् यज्ञमें ग्राह्य हैं।

*परंतु इन वृक्षोंमें आमका नाम नहीं है।*

*#यज्ञीयवृक्षोंके_न_मिलनेपर*-

यदि उपर्युक्त वृक्षोंकी समिधा संभव न होसके तो, शास्त्रोंमें बताया गया है कि, और सभी वृक्षोंसे भी हवन कर सकते हैं-

*एतेषामप्यलाभे तु सर्वेषामेव यज्ञियाः।।*
(#यम:,#शौनकश्च)

*तदलाभे सर्ववनस्पतीनाम्*
(#आह्निकसूत्रावल्याम्)

परंतु निषिद्ध वृक्षोंको छोड़ करके अन्य सभी वृक्ष ग्राह्य हैं।

तो निषिद्ध वृक्ष कौन से हैं देखिए-

*#हवनमें_निषिद्धवृक्ष*-

*#तिन्दुकधवलाम्रनिम्बराजवृक्षशाल्मल्यरत्नकपित्थकोविदारबिभीतकश्लेष्मातकसर्वकण्टकवृक्षविवर्जितम्।।*
(#आह्निकसूत्रावल्याम्)

*#अर्थ*-
1 तेंदू 
2 धौ/धव
*3 #आम*
4 नीम 
5 राजवृक्ष 
6 सैमर 
7 रत्न 
8 कैंथ
9 कचनार
10बहेड़ा 
11लभेरा/लिसोडा़ और 
12सभी प्रकारके कांटेदार वृक्ष यज्ञमें वर्जित है।

*#विशेष*-

*1 #उत्तम_यज्ञीयवृक्ष*- शास्त्रोंमें जिन वृक्षोंका ग्रहण किया गया है, उन सभी वृक्षोंका प्रयोग सर्वश्रेष्ठ है।

*2 #मध्यम_यज्ञीयवृक्ष*- शास्त्रोंमें जिन वृक्षोंका ग्रहण भी नहीं किया गया है, और ना ही जिनका निषेध किया गया है ऐसे सभी वृक्षोंका उपयोग मध्यम है।

*3 #अधम_यज्ञीयवृक्ष*-
जिन वृक्षोंका शास्त्रोंमें निषेध किया गया है, उन वृक्षोंको यज्ञमें कभी भी उपयोगमें नहीं लाना चाहिए,ये सभी वृक्ष यज्ञमें अधम/त्याज्य हैं।

#यज्ञीयवृक्षका_मतलब है— जिन वृक्षोंका यज्ञमें हवन/ पूजन संबंधित सभी कार्योंमें पत्र ,पुष्प ,समिधा आदिका ग्रहण करना शास्त्रोंमें विहित बताया गया है ।

और निषिद्ध वृक्षोंका ये सब त्यागना चाहिए।

*जहां यज्ञीयवृक्ष बताए गए हैं वहां आमके वृक्षका ग्रहण नहीं किया गया है*

*और जहां निषेध वृक्षोंकी गणना है वहां आमकी गणना है। इससे आप लोग विचार कर सकते हैं।*

आमकी समिधा तो यज्ञकर्ममें सर्वथा त्याज्य है, जिसका लोग जानबूझकरके संयोग करते हैं, कितनी दुखद और विचारणीय बात है।

*#नोट*- इस लेखमें शुद्ध वैदिक एवं स्मार्त यज्ञोंमें शान्तिक , पौष्टिक सात्विक हवनकी विधिका उल्लेख किया गया है।

तांत्रिक विधिमें और उसमें भी षडभिचार - मारण, मोहन, वशीकरण, उच्चाटनादिमें तो बहुत ऐसी चीजोंका हवन लिखा हुआ है जिनकी आप कल्पना भी नहीं कर सकते

#जैसे- मिर्चीसे, लोहेकी कीलोंसे, विषादिसे भी हवन करना लिखा हुआ है।
तो वहां कई निषिद्ध वृक्षोंका भी ग्रहण हो सकता है, उसकी यहां चर्चा नहीं है।

*#होमीयसमिल्लक्षण*-

*प्रादेशमात्राः सशिखाः सवल्काश्च पलासिनीः।*
*समिधः कल्पयेत् प्राज्ञः सर्व्वकर्म्मसु सर्व्वदा॥*

*नाङ्गुष्ठादधिका न्यूना समित् स्थूलतया क्वचित्।*
*न निर्म्मुक्तत्वचा चैव न सकीटा न पाटिता॥*

*प्रादेशात् नाधिका नोना न तथा स्याद्विशाखिका।*
*न सपत्रा न निर्वीर्य्या होमेषु च विजानता ॥*
(#छन्दोगपरिशिष्टम्)

#निषिद्ध_समिधा-

*विशीर्णा विदला ह्रस्वा वक्राः स्थूला द्विधाकृताः।*
*कृमिदष्टाश्च दीर्घाश्च समिधो नैव कारयेत्॥*
(#संस्कारतत्त्वम्)

#अशास्त्रीय_समिधाके_दुष्परिणाम-

*विशीर्णायुःक्षयं कुर्य्याद्बिदला पुत्त्रनाशिनी।*
*ह्रस्वा नाशयते पत्नीं वक्रा बन्धुविनाशिनी॥*

*कृमिदष्टा रोगकरी विद्वेषकरणी द्विधा।* 
*पशून् मारयते दीर्घा स्थूला चार्थविनाशिनी॥*
(#इतितन्त्रम्)

#नवग्रहसमिधा -
*अर्कः पलाशः खदिरस्त्वपामार्गोऽथ पिप्पलः।* 
*उदुम्बरः शमी दूर्व्वाः कुशाश्च समिधः क्रमात्॥*
(#संस्कारतत्त्वे_याज्ञवल्क्यवचनम्)

ॐ नमः पार्वतीपतये हर हर महादेव हर....। 


*🔹 आत्म संतुष्टि 🔹*


एक कौआ था जो अपनी जिंदगी से बहुत खुश और संतुष्ट था। 

एक बार वह एक तालाब पर पानी पीने रुका। 

वहां पर उसने सफ़ेद रंग के पक्षी हंस को देखा। 

उसने सोचा मैं बहुत काला हूँ और हंस इतना सुन्दर इसलिए शायद हंस इस दुनिया का सबसे खुश पक्षी होगा। 

कौआ हंस के पास गया और बोला तुम दुनिया के सबसे खुश प्राणी हो। 
हंस बोला – 

मैं भी यही सोचा करता था कि मैं दुनिया का सबसे खुश पक्षी हूँ जब तक कि मैंने तोते को न देखा था। 
तोते को देखने के बाद मुझे लगता है कि तोता ही दुनिया का सबसे खुश पक्षी है क्योंकि तोते के दो खूबसूरत रंग होते है इसलिए वही दुनिया का सबसे खुश पक्षी होना चाहिए।


कौआ तोते के पास गया और बोला – 

तुम ही इस दुनिया के सबसे खुश पक्षी हो।
तोता ने कहा – 

मैं पहले बहुत खुश था और सोचा करता था कि मैं ही दुनिया का सबसे खूबसूरत पक्षी हूँ...!

लेकिन जब से मैंने मोर को देखा है, मुझे लगता है कि वो ही दुनिया का सबसे खुश पक्षी है क्योंकि उसके कई तरह के रंग है और वह मुझसे भी खूबसूरत है।

कौआ चिड़ियाघर में मोर के पास गया और देखा कि सैकड़ों लोग मोर को देखने के लिए आए है। 

कौआ मोर के पास गया और बोला – 

तुम दुनिया के सबसे सुन्दर पक्षी हो और हजारों लोग तुम्हें देखने के लिए आते है....!

इस लिए तुम ही दुनिया के सबसे खुश पक्षी हो।

मोर ने कहा – 

मैं हमेशा सोचता था कि मैं दुनिया का सबसे खूबसूरत और खुश पक्षी हूँ लेकिन मेरी खूबसूरती के कारण मुझे यहाँ पिंजरे में कैद कर लिया गया है। 

मैं खुश नहीं हूँ और मैं अब यह चाहता हूँ कि काश मैं भी कौआ होता तो मैं आज आसमान में आजाद उड़ता। 

चिड़ियाघर में आने के बाद मुझे यही लगता है कि कौआ ही सबसे खुश पक्षी होता है।

“हम लोगों की जिंदगी भी कुछ ऐसी ही हो गयी है। 

हम अपनी तुलना दूसरों से करते रहते है और दूसरों को देखकर हमें लगता है कि वो शायद हम से अधिक खुश है। 

इस कारण हम दु:खी हो जाते हैं ।
🙏🌹🙏जय श्री कृष्ण🙏🌹🙏
पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 
" Opp. Shri Dhanlakshmi Strits , Marwar Strits, RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
सेल नंबर: . + 91- 7010668409 / + 91- 7598240825 WHATSAPP नंबर : + 91 7598240825 ( तमिलनाडु )
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आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद.. 
नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏

*अच्छाई पलट-पलट कर आती रहती है....!!*

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

*अच्छाई पलट-पलट कर आती रहती है....!!*


*ब्रिटेन के स्कॉटलैंड* में *फ्लेमिंग* नाम का एक गरीब किसान था। 

एक दिन वह अपने खेत पर काम कर रहा था। 

अचानक पास में से किसी के चीखने की आवाज सुनाई पड़ी । 



किसान ने अपना साजो सामान व औजार फेंका और तेजी से आवाज की तरफ लपका।

आवाज की दिशा में जाने पर उसने देखा कि *एक बच्चा दलदल में डूब रहा था* । 

वह बालक कमर तक कीचड़ में फंसा हुआ बाहर निकलने के लिए संघर्ष कर रहा था। 

वह डर के मारे बुरी तरह कांप पर रहा था और चिल्ला रहा था। किसान ने आनन - फानन में लंबी टहनी ढूंढी। 

अपनी जान पर खेलकर उस टहनी के सहारे बच्चे को बाहर निकाला।

अगले दिन उस किसान की छोटी सी झोपड़ी के सामने एक शानदार गाड़ी आकर खड़ी हुई।

उसमें से कीमती वस्त्र पहने हुए एक सज्जन उतरे। 

उन्होंने किसान को अपना परिचय देते हुए कहा- 

*"मैं उस बालक का पिता* हूं और मेरा नाम *राँडॉल्फ चर्चिल* है।"

फिर उस अमीर *राँडाल्फ चर्चिल* ने कहा कि वह इस एहसान का बदला चुकाने आए हैं ।

*फ्लेमिंग* नामक उस किसान ने उन सज्जन के ऑफर को ठुकरा दिया ।

 उसने कहा, "मैंने जो कुछ किया उसके बदले में कोई पैसा नहीं लूंगा।

किसी को बचाना मेरा कर्तव्य है, मानवता है...!

इंसानियत है और उस मानवता इंसानियत का कोई मोल नहीं होता ।"

इसी बीच *फ्लेमिंग का बेटा झोपड़ी के दरवाजे पर आया*।

उस अमीर सज्जन की नजर अचानक उस पर गई तो उसे एक विचार सूझा । 

उसने पूछा - 

*"क्या यह आपका बेटा है ?"*

किसान ने गर्व से कहा- 

*"हां !"*

उस व्यक्ति ने अब नए सिरे से बात शुरू करते हुए किसान से कहा- 

" ठीक है अगर आपको मेरी कीमत मंजूर नहीं है तो ऐसा करते हैं कि आपके बेटे की शिक्षा का भार मैं अपने ऊपर लेता हूं । " 

मैं उसे उसी स्तर की शिक्षा दिलवाने की व्यवस्था करूंगा जो अपने बेटे को दिलवा रहा हूं। 

" फिर आपका बेटा आगे चलकर एक ऐसा इंसान बनेगा , *जिस पर हम दोनों गर्व महसूस करेंगे।"*

किसान ने सोचा "मैं तो अपने पुत्र को उच्च शिक्षा दिला पाऊंगा नहीं और ना ही सारी सुविधाएं जुटा पाऊंगा, जिससे कि यह बड़ा आदमी बन सके । 

अतः इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लेता हूँ।"

बच्चे के भविष्य की खातिर फ्लेमिंग तैयार हो गया ।

अब फ्लेमिंग के बेटे को सर्वश्रेष्ठ स्कूल में पढ़ने का मौका मिला।

आगे बढ़ते हुए *उसने लंदन के प्रतिष्ठित सेंट मेरीज मेडिकल स्कूल से स्नातक डिग्री* हासिल की। 




फिर किसान का *यही बेटा* पूरी दुनिया में *"पेनिसिलिन" का आविष्कारक महान वैज्ञानिक सर अलेक्जेंडर फ्लेमिंग* के नाम से विख्यात हुआ।

*यह कहानी यहीं खत्म नहीं होती*! 

कुछ वर्षों बाद, *उस अमीर के बेटे को निमोनिया* हो गया.....!

और *उसकी जान पेनिसिलीन के इंजेक्शन* से ही बची। 

उस अमीर *राँडाल्फ चर्चिल के बेटे* का नाम था- *विंस्टन चर्चिल* , जो दो बार *ब्रिटेन के प्रधानमंत्री रहे !

हैं न आश्चर्यजनक संजोग।*

इस लिए ही कहते हैं कि *व्यक्ति को हमेशा अच्छे काम* करते रहना चाहिए । 

क्योंकि *आपका किया हुआ काम आखिरकार लौटकर आपके ही पास आता है* ! 

यानी *अच्छाई पलट - पलट कर आती रहती* है! 

यकीन मानिए *मानवता की दिशा में उठाया गया प्रत्येक कदम* आपकी  स्वयं की *चिंताओं को कम करने में मील का पत्थर साबित* होगा ।

*कुँए में उतरने* के बाद 

*बाल्टी झुकती* है, लेकिन *झुकने के बाद,भर कर* ही *बाहर निकलती* है।

यही जिन्दगी जीने का सार हैं *।

जीवन भी कुछ ऐसा ही है,जो झुकता है वो अवश्य, कुछ न कुछ लेकर ही उठता है।*
।।।।जय श्री कृष्ण।।।।।।।

।। श्री रामचरित्रमानस प्रवचन ।।

प्रति वर्ष दशहरे के बाद ठीक 21 दिन बाद ही दीपावली क्यों आती है ? 

क्या कभी आपने इस पर विचार किया है। 

विश्वास न हो तो कैलेंडर देख लीजिएगा। 





रामायण में वाल्मिकी ऋषि ने लिखा है कि प्रभु श्री राम को अपनी पूरी सेना को श्रीलंका से अयोध्या तक पैदल चलकर आने में 21दिन...! 

(इक्कीस दिन यानी 504 घंटे) लगे!!!!

अब हम 504 घंटे को 24घंटे से भाग दें तो उत्तर 21  आता है यानी इक्कीस दिन !!! 

मुझे भी आश्चर्य हुआ । 

कुछ भी बताया है ।

यह सोचकर कौतूहल वश गूगल मैप पर सर्च किया। 

उसमें दर्शाता है ।

कि श्रीलंका से अयोध्या की पैदल दूरी 3145 किलोमीटर और लगने वाला समय 504 घंटे।।। 

हैं न......!

आश्चर्यजनक बात। 

वर्तमान समय में गूगल मैप को पूरी तरह विश्वनीय माना जाता है। 

लेकिन हम भारतीय लोग तो दशहरा और दीपावली त्रेतायुग से चली आ रही परंपरानुसार मनाते आ रहे हैं।

समय के इस गणित पर आपको विश्वास न हो रहा हो तो गूगल सर्च कर देख सकते हैं ।

तथा औरों को भी दीजिए यह रोचक जानकारी।

और वाल्मिकी ऋषि ने तो रामायण की रचना श्रीराम के जन्म से पहले ही कर दी थी।!!! 

उनका भविष्यवाणी और आगे घटने वाली घटनाओं का वर्णन कितना सटीक था। 

अपनी सनातन हिन्दू संस्कृति कितनी महान है। 

हमें गर्व है ऐसी महान हिन्दू संस्कृति में जन्म लेने पर।

जय श्री राम राम राम सीता राम 🚩 

 है न रोचक और आश्चर्य जनक।🚩
🙏 जय श्री राम राम राम सीता राम 🙏
पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
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नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏

परम अर्थ , प्रेरणायुक्त सत्य कहानी , *मैं ही कृष्ण मैं ही कंस हुँ।*( दिल को छूने वाली कहानी )

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

परम  अर्थ   , प्रेरणायुक्त सत्य कहानी  , *मैं ही कृष्ण मैं ही कंस हुँ।*(दिल को छूने वाली कहानी)


परम  अर्थ : 

मनुष्य   का   मूल  रिपु   कौन   ?  

कभी   अहंकार   लगता   है , कभी   अविद्या  , तो   कभी   मोह   लगता   है  !   

निर्णय   करना   कठिन   है  ! 

भिन्न   भिन्न    दृष्टी   से   भिन्न   भिन्न    जबाब   मिलेगा   ! 




लेकिन  इसमे   यंहा   मोह   को   प्रथम   स्थान   दिया  है  !  

चित्त   मे   विविध   प्रकार   का  मल   चिपका   हुवा   दिखाई  देता   है  ! 

लेकिन   यह  सब   मोह  मे  से   ही   निकलता  है  !   

करोडो   प्रकार  से   प्रयत्न   करने  पर  भी   नही   जाता  !  
 
अनेक   जन्मों   के   स्वभाव   के   कारण  वह   मल   पक्का  हो    चुका   है  ! 

चित्त   अनेक   जन्मों   का   अभ्यस्त   होता   है   यह   अपने   यंहा  का   अनुभवाधारित   विशेष    सिद्धान्त   है  !  

प्रयत्न    करते   है   तो   कुछ   मल  कम   होता  है   फिर   भी  अपेक्षित   परिणाम   नही   मिलता  ! 

सफलता   कम   ही   मीलती    है  !  

ऐसा   होता   तो  भी   ठीक   था   लेकिन   यंहा  तो   और  उलटा    ही  होता   है  !   

चित्त   का   मल  और  बढ़ते   ही   जाता    है  !  

लेकिन   मनुष्य  को  हार  नही   माननी   चाहिये  !   

प्रबल   भक्ति   ही   इस   बीमारी   पर  रामबाण    इलाज   है  ! 

जय द्वारकाधीश  

 प्रेरणायुक्त सत्य कहानी 


❇️ एक आदमी ने एक बहुत ही खूबसूरत लड़की से शादी की।

 शादी के बाद दोनो की ज़िन्दगी बहुत प्यार से गुजर रही थी। 

वह उसे बहुत चाहता था और उसकी खूबसूरती की हमेशा तारीफ़  किया करता था। 

लेकिन कुछ महीनों के बाद लड़की चर्मरोग (skinDisease) से ग्रसित हो गई और धीरे-धीरे उसकी खूबसूरती जाने लगी। 

खुद को इस तरह देख उसके मन में डर सताने लगा कि यदि वह बदसूरत हो गई।

तो उसका पति उससे नफ़रत करने लगेगा और वह उसकी नफ़रत बर्दाशत नहीं कर पाएगी।

❇️ इस बीच एकदिन पति को किसी काम से शहर से बाहर जाना पड़ा। 

काम ख़त्म कर जब वह घर वापस लौट रहा था, उसका एक्सीडेंट हो गया।

 एक्सीडेंट में उसने अपनी दोनो आँखें खो दी। 

लेकिन इसके बावजूद भी उन दोनो की जिंदगी सामान्य तरीके से आगे बढ़ती रही। 

समय गुजरता रहा और अपने चर्मरोग के कारण लड़की ने अपनी खूबसूरती पूरी तरह गंवा दी। 

वह बदसूरत हो गई।

 लेकिन अंधे पति को इस बारे में कुछ भी पता नहीं था। 

इसलिए इसका उनके खुशहाल विवाहित जीवन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा।

❇️ वह उसे उसी तरह प्यार करता रहा। 

एकदिन उस लड़की की मौत हो गई। 

पति अब अकेला हो गया था।

वह बहुत दु:खी था. वह उस शहर को छोड़कर जाना चाहता था।

उसने अंतिम संस्कार की सारी क्रियाविधि पूर्ण की और शहर छोड़कर जाने लगा।

तभी एक आदमी ने पीछे से उसे पुकारा और पास आकर कहा।

 “अब तुम बिना सहारे के अकेले कैसे चल पाओगे? 

इतने साल तो तुम्हारी पत्नितुम्हारी मदद किया करती थी.” 

❇️ पति ने जवाब दिया।

दोस्त

मैं अंधा नहीं हूँ। 

मैं बस अंधा होने का नाटक कर रहा था। 

क्योंकि यदि मेरी पत्नि को पता चल जाता कि मैं उसकी बदसूरती देख सकता हूँ ।

तो यह उसे उसके रोग से ज्यादा दर्द देता।

🙏  इसलिए मैंने इतने साल अंधे होने का दिखावा किया ।

वह बहुत अच्छी पत्नि थी।

मैं बस उसे खुश रखना चाहता था.” .. ...!

🙏🙏*सीख*-- 

खुश रहने के लिए हमें भी एक दूसरे की कमियो के प्रति आंखे बंद कर लेनी चाहिए.. 

और उन कमियो को नजरन्दाज कर देना चाहिए...

🙏🙏 पति-पत्नी अपने जीवन में अपनी गाड़ी के दो चक्के  होते हैं। 

 हमारे सनातन संस्कृति में आपसी प्रेम ही कल्याण का मार्ग प्रशस्त करता है। 

एक कहावत है कि 

# जो विंध्य गया वो मोती # । 

🙏🙏हमारे सनातन संस्कृति में डाइभोस एवं तलाक की कोई जगह नही है। 

माता-पिता अपने बच्चों का संबंध बहुत सोच समझकर ही करते हैं। 

विवाह होने के बाद माता पिता का फ़र्ज़ कुशल क्षेम जानने का होता है। 

छोटी-मोटी बातों को अपने अभिभावकों तक नहीं पहुंचनी चाहिए। 

क्योंकि हम उच्च कुल के ( ऋषि-मुनीयों ) की संतान हैं।

 विशेष आप खुद समझदार है। धन्यवाद।
🙏🙏 जय श्री राधे कृष्णा 🙏🙏

*मैं ही कृष्ण मैं ही कंस हुँ।*

(दिल को छूने वाली कहानी)

एक चित्रकार था, जो अद्धभुत चित्र बनाता था।
*लोग उसकी चित्रकारी की तारीफ़ करते थे।*

एक दिन कृष्ण मंदिर के भक्तों ने उनसे कृष्ण और कंस का एक चित्र बनाने की इच्छा प्रगट की।

चित्रकार तैयार हो गया आखिर भगवान् का काम था, पर उसने कुछ शर्ते रखी।

उसने कहा _कृष्ण के चित्र लिए नटखट बालक और कंस के लिए एक क्रूर भाव वाला व्यक्ति लाकर दे,_
*मुझे योग्य पात्र चाहिए, अगर वे मिल जाए तो में आसानी से चित्र बना दूंगा।*


क्त एक सुन्दर बालक ले आये।
चित्रकार ने *उस बालक को सामने रख बाल कृष्ण का एक सुंदर चित्र बनाया।*

अब बारी कंस की थी पर क्रूर भाव वाले व्यक्ति को ढूंढना थोडा मुस्किल था।
*जो व्यक्ति कृष्ण मंदिर वालो को पसंद आता वो चित्रकार को पसंद नहीं आता उसे वो भाव मिल नहीं रहे थे...*

वक्त गुजरता गया।
आखिरकार थक-हार कर सालों बाद वो अब जेल में चित्रकार को ले गए, जहा उम्र कैद काट रहे अपराधी थे।
*उन अपराधीयों में से एक को चित्रकार ने पसंद किया और उसे सामने रखकर उसने कंस का चित्र बनाया।*

कृष्ण और कंस की वो तस्वीर आज सालों के बाद पूर्ण हुई।

*कृष्ण मंदिर के भक्त वो तस्वीरे देखकर मंत्रमुग्ध हो गए।*

उस अपराधी ने भी वह तस्वीरे देखने की इच्छा व्यक्त की।
*उस अपराधी ने जब वो तस्वीरे देखी तो वो फुट-फुटकर रोने लगा।*

सभी ये देख अचंभित हो गए।
चित्रकार ने उससे इसका कारण पूछा,

तब वह अपराधी बोला *"शायद आपने मुझे पहचाना नहीं,*
मैं वो ही बच्चा हुँ जिसे सालों पहले आपने बालकृष्ण के चित्र के लिए पसंद किया था।
*मेरे कुकर्मो से आज में कंस बन गया, इस तस्वीर में मैं ही कृष्ण, मैं ही कंस हुँ।*

*हमारे कर्म ही हमे अच्छा*
*और बुरा इंसान बनाते है।*

*_🙏🏻जय श्री कृष्णा🙏🏻_*
पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
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जय द्वारकाधीश....
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महाभारत की कथा का सार

महाभारत की कथा का सार| कृष्ण वन्दे जगतगुरुं  समय नें कृष्ण के बाद 5000 साल गुजार लिए हैं ।  तो क्या अब बरसाने से राधा कृष्ण को नहीँ पुकारती ...

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