https://www.profitablecpmrate.com/gtfhp9z6u?key=af9a967ab51882fa8e8eec44994969ec 2. आध्यात्मिकता का नशा की संगत भाग 1: 08/06/20

।। श्रीमददेवीभागवत प्रवचन / असली गहना ।।

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

।।  श्रीमददेवीभागवत प्रवचन / असली गहना ।।


।। श्रीमददेवीभागवत प्रवचन ।।

एक बार प्रजापति दक्ष ने एक बहुत बड़ा यज्ञ किया। 

इसमें उन्होंने सारे देवताओं को अपना-अपना यज्ञ-भाग प्राप्त करने के लिए निमंत्रित किया ।



किन्तु शंकरजी को उन्होंने इस यज्ञ में निमंत्रित नहीं किया। 

सती ने जब सुना कि उनके पिता एक अत्यंत विशाल यज्ञ का अनुष्ठान कर रहे हैं ।

तब वहाँ जाने के लिए उनका मन विकल हो उठा।

अपनी यह इच्छा उन्होंने शंकरजी को बताई। 

सारी बातों पर विचार करने के बाद उन्होंने कहा- प्रजापति दक्ष किसी कारणवश हमसे रुष्ट हैं। 

अपने यज्ञ में उन्होंने सारे देवताओं को निमंत्रित किया है। 

उनके यज्ञ-भाग भी उन्हें समर्पित किए हैं, किन्तु हमें जान-बूझकर नहीं बुलाया है। 

कोई सूचना तक नहीं भेजी है। 

ऐसी स्थिति में तुम्हारा वहाँ जाना किसी प्रकार भी श्रेयस्कर नहीं होगा।'

शंकरजी के इस उपदेश से सती का प्रबोध नहीं हुआ। 

पिता का यज्ञ देखने, वहाँ जाकर माता और बहनों से मिलने की उनकी व्यग्रता किसी प्रकार भी कम न हो सकी। 

उनका प्रबल आग्रह देखकर भगवान शंकरजी ने उन्हें वहाँ जाने की अनुमति दे दी।

सती ने पिता के घर पहुँचकर देखा कि कोई भी उनसे आदर और प्रेम के साथ बातचीत नहीं कर रहा है। 

सारे लोग मुँह फेरे हुए हैं। 

केवल उनकी माता ने स्नेह से उन्हें गले लगाया। 

बहनों की बातों में व्यंग्य और उपहास के भाव भरे हुए थे।

परिजनों के इस व्यवहार से उनके मन को बहुत क्लेश पहुँचा। 

उन्होंने यह भी देखा कि वहाँ चतुर्दिक भगवान शंकरजी के प्रति तिरस्कार का भाव भरा हुआ है। 

दक्ष ने उनके प्रति कुछ अपमानजनक वचन भी कहे। 

यह सब देखकर सती का हृदय क्षोभ, ग्लानि और क्रोध से संतप्त हो उठा। 

उन्होंने सोचा भगवान शंकरजी की बात न मान, यहाँ आकर मैंने बहुत बड़ी गलती की है।

वे अपने पति भगवान शंकर के इस अपमान को सह न सकीं। 

उन्होंने अपने उस रूप को तत्क्षण वहीं योगाग्नि द्वारा जलाकर भस्म कर दिया। 

वज्रपात के समान इस दारुण-दुःखद घटना को सुनकर शंकरजी ने क्रुद्ध होअपने गणों को भेजकर दक्ष के उस यज्ञ का पूर्णतः विध्वंस करा दिया।

सती ने योगाग्नि द्वारा अपने शरीर को भस्म कर अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया। 

इस बार वे 'शैलपुत्री' नाम से विख्यात हुर्ईं।

पार्वती, हैमवती भी उन्हीं के नाम हैं। 

उपनिषद् की एक कथा के अनुसार इन्हीं ने हैमवती स्वरूप से देवताओं का गर्व-भंजन किया था।
जय माँ अंबे..!!!!

।। असली गहना ।।

एक राजा थे , उनका नाम था चक्ववेण , वह बड़े ही धर्मात्मा थे। 

राजा जनता से जो भी कर लेते थे सब जनहित में ही खर्च करते थे उस धन से अपना कोई कार्य नहीं करते थे। 

अपने  जीविकोपार्जन हेतु राजा और रानी दोनोँ खेती किया करते थे। 

उसी से जो पैदावार हो जाता उसी से अपनी गृहस्थी चलाते , अपना जीवन निर्वाह करते थे। 

राजा रानी होकर भी साधारण से वस्त्र और साधारण सात्विक भोजन करते थे। 

एक दिन नगर में कोई उत्सव था 

तो राज्य की तमाम महिलाएं बहुत अच्छे वस्त्र और गहने धारण किये हुए जिसमें रेशमी वस्त्र तथा हीरे , पन्ने , जवाहरात आदि के जेवर आदि पहने थीँ आई और जब रानी को साधारण वस्त्रों में देखा तो कहने लगी कि आपतो हमारी मालकिन हो और इतने साधरण वस्त्रों में बिना गहनों के जबकि आपको तो हम लोगों से अच्छे वस्त्रों और गहनों में होना चाहिए। 

यह बात रानी के कोमल हृदय को छू गई और रात में जब राजा रनिवास में आये तो रानी ने सारी बात बताते हुए कहा कि आज तो हमारी बहुत फजीहत बेइज्जती हुई। 

सारी बात सुनने के बाद राजा ने कहा क्या करूँ मैं खेती करता हूँ जितना कमाई होती है घर गृहस्थी में ही खर्च हो जाता है , क्या करूँ ? 

प्रजा से आया धन मैं उन्हीं पर खर्च कर देता हूँ , फिर भी आप परेशान न हों , मैं आपके लिए गहनों की ब्यवस्था कर दूंगा। 

तुम धैर्य रखो।

     
दूसरे दिन राजा ने अपने एक आदमी को बुलाया और कहा कि तुम लंकापति रावण के पास जाओ और कहो कि राजा चक्रवेणु ने आपसे कर मांगा है और उससे सोना ले आओ। 

वह ब्यक्ति रावण के दरबार मे गया और अपना मन्तब्य बताया इस पर रावण अट्टहास करते हुए बोला अब भी कितने मूर्ख लोग भरे पड़े है , मेरे घर देवता पानी भरते हैं और मैं कर दूंगा। 

उस ब्यक्ति ने कहा कि कर तो आप को अब देना ही पड़ेगा , अगर स्वयं दे दो तो ठीक है , इस पर रावण क्रोधित होकर बोला कि ऐसा कहने की तेरी हिम्मत कैसे हुई , जा चला जा यहां से -,

रात में रावण मन्दोदरी से मिला तो यह कहानी बताई मन्दोदरी पूर्णरूपेण एक पतिव्रता स्त्री थीँ , यह सुनकर उनको चिन्ता हुई और पूँछी कि फिर आपने कर दिया या नहीं ? 

तो रावण ने कहा तुम पागल हो मैं रावण हूँ , क्या तुम मेरी महिमा को जानती नहीं। 

क्या रावण कर देगा। 

इस पर मन्दोदरी ने कहा कि महाराज आप कर दे दो वरना इसका परिणाम अच्छा नहीं होगा। 

मन्दोदरी राजा चक्रवेणु के प्रभाव को जानती थी क्योंकि वह एक पतिव्रता स्त्री थी। 

रावण नहीं माना , जब सुबह उठकर रावण जाने लगा तो मन्दोदरी ने कहा कि महाराज आप थोड़ी देर ठहरो मैं आपको एक तमाशा दिखाती हूँ। 

रावण ठहर गया , मन्दोदरी प्रतिदिन छत पर कबूतरों को दाना डाला क़रतीं थी , उस दिन भी डाली और जब कबूतर दाना चुगने लगे तो बोलीं कि अगर तुम सब एक भी दाना चुगे तो तुम्हें महाराजाधिराज रावण की दुहाई है , कसम है। 

रानी की इस बात का कबूतरों पर कोई असर नहीं हुआ और वह दाना चुगते रहे। 

मन्दोदरी ने रावण से कहा कि देख लिया न आपका प्रभाव , रावण ने कहा तू कैसी पागल है पक्षी क्या समझें कि क्या है रावण का प्रभाव तो मन्दोदरी ने कहा कि ठीक है अब दिखाती हूँ आपको फिर उसने कबूतरों से कहा कि अब एक भी दाना चुना तो राजा चक्रवेणु की दुहाई है। 

सारे कबूतर तुरन्त दाना चुगना बन्द कर दिया। 

केवल एक कबूतरी ने दाना चुना तो उसका सर फट गया , क्योंकि वह बहरी थी सुन नही पाई थी। 

रावण ने कहा कि ये तो तेरा कोई जादू है ,मैं नही मानता इसे। 

और ये कहता हुआ वहां से चला गया ।

      
रावण दरबार मे जाकर गद्दी पर बैठ गया तभी राजा चक्रवेणु का वही व्यक्ति पुनः दरबार मे आकर पूंछा की आपने मेरी बात पर रात में विचार किया या नहीं। 

आपको कर रूप में सोना देना पड़ेगा। रावण हंसकर बोला कि कैसे आदमी हो तुम देवता हमारे यहां पानी भरते है और हम कर देंगे। 

तब उस ब्यक्ति ने कहा कि ठीक है आप हमारे साथ थोड़ी देर के लिए समुद्र के किनारे चलिये , रावण किसी से डरता ही नही था सो कहा चलो और उसके साथ चला गया। 

उसने समुद्र के किनारे पहुंचकर लंका की आकृति बना दी और जैसे चार दरवाजे लंका में थे वैसे दरवाजे बना दिये और रावण से पूंछा की लंका ऐसी ही है न ? 

तो रावण ने कहा हाँ ऐसी ही है तो ? 

तुम तो बड़े कारीगर हो। 

वह आदमी बोला कि अब आप ध्यान से देखें , 

" महाराज चक्रवेणु की दुहाई है " 

ऐसा कहकर उसने अपना हाथ मारा और एक दरवाजे को गिरा दिया। 

इधर बालू से बनी लंका का एक एक हिस्सा बिखरा उधर असली लंका का भी वही हिस्सा बिखर गया। 

अब वह आदमी बोला कि कर देते हो या नहीं?  

नहीं तो मैं अभी हाथ मारकर सारी लंका बिखेरता हूँ। 

रावण डर गया और बोला हल्ला मत कर ! 

तेरे को जितना चाहिए चुपचाप लेकर चला जा। 

रावण उस ब्यक्ति को लेजाकर कर के रूप में बहुत सारा सोना दे दिया। 

रावण से कर लेकर वह आदमी राजा चक्रवेणु के पास पहुंचा और उनके सामने सारा सोना रख दिया चक्ववेण ने वह सोना रानी के सामने रख दिया कि जितना चाहिए उतने गहने बनवा लो। 

रानी ने पूंछा कि इतना सोना कहाँ से लाये ? 

राजा चक्ववेण ने कहा कि यह रावण के यहां से कर रूप में मिला है। 

रानी को बड़ा भारी आश्चर्य हुआ कि रावण ने कर कैसे दे दिया? 

रानी ने कर लाने वाले आदमी को बुलाया और पूंछा कि कर कैसे लाये तो उस ब्यक्ति ने सारी कथा सुना दी। 

कथा सुनकर रानी चकरा गई और बोली कि मेरे असली गहना तो मेरे पतिदेव जी हैं , 

दूसरा गहना मुझे नहीं चाहिए। गहनों की शोभा पति के कारण ही है। 

पति के बिना गहनों की क्या शोभा ? 

जिनका इतना प्रभाव है कि रावण भी भयभीत होता है , 

उनसे बढ़कर गहना मेरे लिए और हो ही नहीं सकता। 

रानी ने उस आदमी से कहा कि जाओ यह सब सोना रावण को लौटा दो और कहो कि महाराज चक्ववेण तुम्हारा कर स्वीकार नहीं करते। 

कथा का सार है कि मनुष्य को देखा देखी पाप देखादेखी पुण्य नहीं करना चाहिए और सात्विक रूप से सत्यता की शास्त्रोक्त विधि से कमाई हुई दौलत में ही सन्तोष करना चाहिए। 

दूसरे को देखकर मन को बढ़ावा या पश्चाताप नहीं करना चाहिए। 

धर्म मे बहुत बड़ी शक्ति आज भी है। 

करके देखिए निश्चित शांति मिलेगी । 

आवश्यकताओं को कम कर दीजिए जो आवश्यक आवश्यकता है उतना ही खर्च करिये शेष परोपकार में लगाइए। 

भगवान तो हमारे इन्हीं कार्यो की समीक्षा में बैठे हैं, मुक्ति का द्वार खोले , किन्तु यदि हम स्वयं नरकगामी बनना चाहें तो उनका क्या दोष ? 

🙏🌹🙏🌹🙏🌹🙏
।।।।।। जय जय परशुरामजी ।।।।।।।।
पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 
" Opp. Shri Dhanlakshmi Strits , Marwar Strits, RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
सेल नंबर: . + 91- 7010668409 / + 91- 7598240825 WHATSAPP नंबर : + 91 7598240825 ( तमिलनाडु )
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आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद.. 
नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
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।। श्रीमददेवीभागवत प्रवचन / श्री रामचन्द्रजी महिमा गुणगान ।।

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।। श्रीमददेवीभागवत प्रवचन ।।

🌼🌺💥ॐ💥🌺🌼

🌼दीपावली स्पेशल🌺



💥दीपावली में हर व्यक्ति चाहता है की लक्ष्मी उस पर मेहरबान हो लक्ष्मी देवी को प्रसन्न करने और दीवाली पर धन पाने के कुछ अचूक उपाय बतलाये जा रहे है आशा है इनका प्रयोग कर पाठक गण इसका लाभ उठा सकेंगे ये उपाय इस प्रकार है।


(
 1 ) -  दीपावली पूजन में 11 कोड़ियां, 21 कमलगट्टा, 25 ग्राम पीली सरसों लक्ष्मीजी को चढ़ाएं ( एक प्लेट में रखकर अर्पण करें )। 

अगले दिन तीनों चीजें लाल या पीले कपड़े में बांधकर तिजौरी में या जहां पैसा रखते हों वहां, रख दें।

( 2 ) - दीपावली के दिन अशोक वृक्ष की जड़ का पूजन करने से घर में धन - संपत्ति की वृद्धि होती है।

( 3 ) - दीपावली के दिन पानी का नया घड़ा लाकर पानी भरकर रसोई में कपड़े से ढंककर रखने से घर में बरक्कत और खुशहाली बनी रहती है।

( 4 ) - धनतेरस के दिन हल्दी और चावल पीसकर उसके घोल से घर के मुख्य दरवाजे पर ऊँ बनाने से घर में लक्ष्मीजी ( धन ) का आगमन बना ही रहता है।

( 5 ) - नरक चतुर्दशी छोटी दीपावली को प्रात:काल अगर हाथी मिल जाए तो उसे गन्ना या मीठा जरूर खिलाने से अनिष्ठों, जटिल मुसीबतों से मुक्ति मिलती हह्य। अनहोनी से सदेव रक्षा होती है।

( 6 ) - दीपावली के पूजन के बाद शंख और डमरू बजाने से घर की दरिद्रता दूर होती है और लक्ष्मीजी का आगमन बना रहता है ।

( 7 ) - दीपावली के दिन पति-पत्नी सुबह लक्ष्मी - नारायण विष्णु मंदिर जाएं और एक साथ लक्ष्मी - नारायणजी को वस्त्र अर्पण करने से कभी भी धन की कमी नहीं रहेगी। 

संतान दिन दूनी, रात चौगुनी तरक्की करेगी।

( 8 ) - दीपावली के दिन इमली के पेड़ की छोटी टहनी लाकर अपनी तिजेरी या धन रखने के स्थान पर रखने से धन में दिनोंदिन वृद्धि होती है।

( 9 ) - दीपावली के दिन काली हल्दी को सिंदूर और धूप दीप से पूजन करने के बाद 2 चाँदी के सिक्कों के साथ लाल कपड़े में लपेटकर धन स्थान पर रखने से आर्थिक समस्याएं कभी नहीं रहतीं।

( 10 ) - दीपावली के अगले दिन गाय के गोबर का दीपक बनाकर उसमें पुराने गुड़ की एक डेली और मीठा तेल डालकर दीपक जलाकर घर के मुख्य द्वार के बीचोंबीच रख दें। 

इससे घर में सुख - समृद्धि दिनों दिन बढ़ती रहेगी।

( 11) - दीपावली के दिन मुक्तिधाम ( श्मशानभूमि ) में स्थित शिव मंदिर में जाकर दूध में शहर मिलाकर चढ़ाने से सट्टे और शेयर बाजार से धन अवश्य ही मिलता है।

( 12 ) - दीपावली के दिन नया झाड़ू खरीदकर लाएं। 

पूजा से पहले उससे पूजा स्थान की सफाई कर उसे छुपाकर एक तरफ रख दें। 

अगले दिन से उसका उपयोग करें ।
इससे दरिद्रता का नाश होगा और लक्ष्मीजी का आगमन बना रहेगा।

( 13 ) - दीपावली के दिन एक चाँदी की बाँसुरी राधा - कृष्णजी के मंदिर में चढ़ाने के बाद 43 दिन लगातार भगवान श्रीकृष्णजी के कोई भी मंत्र का जाप करें।

गाय को चारा खिलाएं और संतान प्राप्ति के लिए प्रार्थना करें।

निश्चय ही भगवान श्रीकृष्णजी की कृपा से आपको संतान प्राप्ति अवश्य ही होगी।

( 14 ) - दीपावली पर गणेश - लक्ष्मीजी की मूर्ति खरीदते समय यह अवश्य ही देखें कि गणेशजी की सूड़ गणेशजी की दांयी भुजा की ओर जरूर मुड़ी हो। 

इनकी पूजा दीपावली में करने से घर में रिद्धि - सिद्धि धनसंपदा में बढ़ोत्तरी, संतान की प्रतिष्ठा दिनोंदिन बढ़ती है।

( 15 ) - भाईदूज के एक दिन एक मुट्ठी साबुत बासमती चावल बहते हुए पानी में महालक्ष्मीजी का स्मरण करते हुए छोड़ने से धन्य  - धान्य में दिन - प्रतिदिन वृद्धि होती है।

(16) - आंवले के फल में, गाय के गोबर में, शंख में, कमल में, सफेद वस्त्रों में लक्ष्मीजी का वास होता है ।

इनका हमेशा ही प्रयोग करें। 

आंवला घर में या गल्ले में अवश्य ही रखें।

( 17 ) - दीपावली के दिन हनुमान मंदिर में लाल पताका चढ़ाने से घर - परिवार की उन्नति के साथ ख्याति धन संपदा बढ़ाती है।

( 18 ) - नरक चतुर्दशी की संध्या के समय घर की पश्चिम दिशा में खुले स्थान में या घर के पश्चिम में 14 दीपक पूर्वजों के नाम से जलाएं ।

इससे पितृ दोषों का नाश होता है तथा पितरों के आशीर्वाद से धन - समृद्धि  बढ़ोत्तरी होती है। 

🙏जय श्री लक्ष्मीनारायण 🙏

।। श्री रामचन्द्रजी महिमा गुणगान ।


है कौशल्या नंदन ...
हर देह में बसने वाले राम !
तुम करुणामय ,तुम ही  पालनहार !
तुम ही पुरातन संस्कृति ...
तुमसे सनातन धर्म और धाम !
आज बज रही घण्टियाँ ...
सजे तोरण ,द्वारम द्वार !
अयोध्या नगरी सज रही ...
ज्यूँ मंडप सजे हर बार !
बड़े पुण्य जो दृश्य ये देखा ...
पुलकित हृदय और दरबार !


अखण्ड ज्योत रामनाम की ...
मिटे क्लेश  और अंधकार!
नील वर्ण , सजी नील छवि ..
सबकी अँखिया रही निहार !
सबकी पंगुता दूर हुई अब ...
आया वही अयोध्या राज ...
ऐसे  जननायक राजा राम को ..
सरयू नदी के तीर बसे ..
पावन अयोध्या धाम को ..
बारंबार प्रणाम ..बारम्बार प्रणाम!!
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।। कार्तिक मास महात्म्य / कभी सत्य सुन्ना भी बुरा लग जाता है ।।

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।। कार्तिक मास महात्म्य / कभी सत्य सुन्ना भी बुरा लग जाता है ।।


।। श्री स्कंद पुराण प्रवचन ।।

*⛳🕉️🦚ॐ श्री गणेशाय नमः🦚🕉️⛳*

 *कार्तिक मास महात्म्य* 


📚 _*संदर्भ:- स्कंद पुराण-वैष्णवखण्ड*_

👉🏻 *भाग- ५*



_*( विभिन्न देवताओं के संतोष के लिये कार्तिक स्नान की विधि तथा स्नान के लिये श्रेष्ठ तीर्थो का वर्णन )*_

कुछ रात बाकी रहे तभी स्नान किया जाय तो वह उत्तम और भगवान् विष्णु को सन्तुष्ट करने वाला है। 

सूर्योदयकाल में किया हुआ स्नान मध्यम श्रेणी का है ।

जब तक कृत्तिका अस्त नहो ।

तभी तक स्नान का उत्तम समय है ।

अन्यथा बहुत विलम्ब करके किया हुआ स्नान कार्तिक स्नान की श्रेणी में नहीं आता। 

स्त्रियों को पति की आज्ञा लेकर कार्तिक स्नान करना चाहिये। 

क्योंकि पति से बिना पूछे जो धर्मकार्य किया जाता है ।

वह पति की आयु को क्षीण कर देता है। 

स्त्रियों के लिये पति की सेवा छोड़कर दूसरा कोई धर्म नहीं है?। 

जो पति की आज्ञा का पालन करे । 

वही इस संसार में धर्मवती है ।

केवल व्रत आदि से धर्मवती नहीं होती। 

पति यदि दरिद्र, पतित,मुर्ख अथवा दीन भी हो ।

तो वह वैसा होता हुआ भी स्त्री का आश्रय है। 

उसके त्याग से स्त्री नरक में गिरती है। 

जिसके दोनों हाथ, दोनों पैर, वाणी और मन - ये काबू में रहें तथा जिसमें विद्या, तप एवं कीर्ति हो ।

वही मनुष्य तीर्थ के फल का भागी होता है। 

जिसकी तीर्थो में श्रद्धा न हो ।

जो तीर्थ में भी पाप की ही बात सोचता हो ।

नास्तिक हो ।

जिसका मन दुविधा में पड़ा हो तथा जो कोरा तर्कवादी हो -

ये पाँच प्रकार के मनुष्य तीर्थफल के भागी नहीं होते। 

जो ब्राह्मण प्रतिदिन प्रात:काल उठकर तीर्थ में स्नान करता है ।

वह सब पापों से मुक्त हो परब्रह्म परमात्मा को प्राप्त होता है। 

स्नान का तत्त्व जानने वाले मनीषी पुरुषों ने चार प्रकार के स्नान बतलाये हैं -

वायव्य, वारुण, ब्राह्म और दिव्य। 

गोधूलि से किया हुआ स्नान वायव्य कहलाता है। 

समुद्र आदि के जल में जो स्नान किया जाता है ।

उसे वारुण कहते हैं। 

वेद मन्त्रों कि उच्चारणपूर्वक जो स्नान होता है।

उसका नाम ब्राह्म है ।

तथा मेघों अथवा सूर्य की किरणों द्वारा जो जल अपने शरीर पर गिरता है ।

उसे दिव्य स्नान कहा गया है। 

इन सभी स्नानों में वारुण स्नान सबसे उत्तम है। 

ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य को  मन्त्रोच्चारणपूर्वक स्नान करना चाहिये। 

स्त्री और शूद्र के लिये बिना मन्त्र के ही स्नान का विधान है। 

प्राचीन समय में श्रेष्ठ तीर्थ पुष्कर में जहाँ नन्दा-संगम है ।

वहीं नन्दा के कहने से राजा प्रभंजन कार्तिक मास में पुष्कर स्नान करके व्याघ्रयोनि से मुक्त हुए थे और नन्दा भी कार्तिक में पुष्कर का स्पर्श पाकर परम धाम को प्राप्त हुई थी।

_*क्रमशः........*_ ▶️
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*जनजागृति हेतु लेख प्रसारण अवश्य करें*⛳🙏🏻

*🙏🏻ॐ जय श्री कृष्ण🚩:*
_*⛳⚜️*जय द्वारकाधीश*_⚜⛳

।। कभी सत्य सुन्ना भी बुरा लग जाता है ।।


आप पसीने से तर बतर हैं।  बहुत प्यासे, पर कहीं भी पानी नहीं मिल सकता है।  ऐसे में तुम वृक्ष की छाया में थकान मिटाने के लिए खड़े होते हो!

 तभी सामने की एक इमारत की पहली मंजिल की खिड़की खुलती है और आपकी  उस व्यक्ति से आंखों मिलती है।  आपकी स्थिति देखकर, वह व्यक्ति हाथ के इशारे से आपको पानी के लिए पूछता है।  अब आप उस व्यक्ति के बारे में कैसी राय होगी?

यह आपकी पहली राय है!

आदमी  नीचे आने का इशारा करता है और खिड़की बंद कर देता है।  नीचे का दरवाजा 15 मिनट बाद भी नहीं खुलता।  अब उस व्यक्ति के बारे में आपकी क्या राय है?

 यह आपकी दूसरी राय है!

थोड़ी देर बाद दरवाजा खुलता है और आदमी कहता है: 'मुझे देरी के लिए खेद है, लेकिन आपकी हालत देखकर, मैंने आपको पानी के बजाय नींबू पानी देना सबसे अच्छा समझा!  इसलिए थोड़ा लंबा समय लगा! '

अब उस व्यक्ति के बारे में आपकी क्या राय है?

 याद रखें कि आपको अभी तक कोई पानी या शर्बत नहीं मिला है और अपनी तीसरी राय को ध्यान में रखें।

अब जैसे ही आप शर्बत को अपनी जीभ पर लगाते हैं, आपको पता चलता है कि इसमें चीनी नहीं है।


अब आप उस व्यक्ति के बारे में कैसा महसूस करते हैं?

आपके चेहरे को खट्टेपन से भरा हुआ देखकर, व्यक्ति धीरे से चीनी का एक पाऊच निकालता है और कहता है, आप जितना चाहें उतना डाल लें।

अब उसी व्यक्ति के बारे में आपकी क्या राय होगी?

एक सामान्य स्थिति में भी, अगर हमारी राय इतनी खोखली है और लगातार बदलती जा रही है, तो क्या हमें किसी भी बारे में राय देने के लायक है या नहीं!

*वास्तव में, दुनिया में इतना समझ आया कि अगर कोई व्यक्ति आपकी अपेक्षाओं के अनुरूप व्यवहार करता है तो वह अच्छा है अन्यथा वह बुरा है!*

दिलचस्प बिंदु है स्वयं विचार करें...🌹                                                                        
🙏🌹🙏🌹🙏🌹🙏
पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
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।। हनुमानजी की दिव्य उधारी / पूरा विश्व मे भगवान रामचन्द्रजी की महिमा ।।

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
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।। हनुमानजी की दिव्य उधारी /  पूरा विश्व मे भगवान रामचन्द्रजी की महिमा ।।


।। श्री रामचरित्रमानस प्रवचन ।।

*हनुमानजी की दिव्य उधारी !!!!!


*पढ़ कर आनन्द ही आनन्द होगा जी,*सब पर कर्जा हनुमान जी का,सब ऋणी हनुमानजी महाराज के।* 



*रामजी लंका पर विजय प्राप्त करके आए तो ।* 

*भगवान ने विभीषण जी, जामवंत जी, अंगद जी, सुग्रीव जी सब को अयोध्या से विदा किया।* 

*तो सब ने सोचा हनुमान जी को प्रभु बाद में बिदा करेंगे ।* 

*लेकिन रामजी ने हनुमानजी को विदा ही नहीं किया ।* 

*अब प्रजा बात बनाने लगी कि क्या बात सब गए हनुमानजी नहीं गए अयोध्या से!*

*अब दरबार में काना फूसी शुरू हुई कि हनुमानजी से कौन कहे जाने के लिए ।* 

*तो सबसे पहले माता सीता की बारी आई कि आप ही बोलो कि हनुमानजी चले जाएं।*

*माता सीता बोलीं मैं तो लंका में विकल पड़ी थी ।* 

*मेरा तो एक एक दिन एक एक कल्प के समान बीत रहा था ।* 

*वो तो हनुमानजी थे ।* 

*जो प्रभु मुद्रिका लेके गए, और धीरज बंधवाया कि...!*

*कछुक दिवस जननी धरु धीरा।*
*कपिन्ह सहित अइहहिं रघुबीरा।।*

*निसिचर मारि तोहि लै जैहहिं।*
*तिहुँ पुर नारदादि जसु गैहहिं॥*

*मै तो अपने बेटे से बिल्कुल भी नहीं बोलूंगी अयोध्या छोड़कर जाने के लिए ।* 

*आप किसी और से बुलवा लो।*

*अब बारी आई लक्षमण जी की तो लक्ष्मण जी ने कहा, मै तो लंका के रणभूमि में वैसे ही मरणासन्न अवस्था में पड़ा था, पूरा रामदल विलाप कर रहा था।*

*प्रभु प्रलाप सुनि कान बिकल भए बानर निकर।*
*आइ गयउ हनुमान जिमि करुना महँ बीर रस।।*

*ये जो खड़ा है ना , वो हनुमानजी का लक्ष्मण है।* 

*मै कैसे बोलूं, किस मुंह से बोलूं कि हनुमानजी अयोध्या से चले जाएं!*

*अब बारी आई भरत जी की, अरे!* 

*भरत जी तो इतना रोए ।* 

*कि रामजी को अयोध्या से निकलवाने का कलंक तो वैसे ही लगा है ।* 

*मुझ पर, हनुमान जी का सब मिलके और लगवा दो!*

*और दूसरी बात ये कि...!*

*बीतें अवधि रहहिं जौं प्राना।* 
*अधम कवन जग मोहि समाना॥*

*मैंने तो नंदीग्राम में ही अपनी चिता लगा ली थी ।* 

*वो तो हनुमानजी थे जिन्होंने आकर ये खबर दी कि...!*

*रिपु रन जीति सुजस सुर गावत।*
*सीता सहित अनुज प्रभु आवत॥*

*मैं तो बिल्कुल न बोलूं हनुमानजी से अयोध्या छोड़कर चले जाओ ।* 

*आप किसी और से बुलवा लो।*

*अब बचा कौन..?* 

*सिर्फ शत्रुघ्न भैया।* 

*जैसे ही सब ने उनकी तरफ देखा ।* 

*तो शत्रुघ्न भैया बोल पड़े मैंने तो पूरी रामायण में कहीं नहीं बोला ।* 

*तो आज ही क्यों बुलवा रहे हो ।* 

*और वो भी हनुमानजी को अयोध्या से निकालने के लिए ।*

*जिन्होंने ने माता सीता, लक्षमण भैया, भरत भैया सब के प्राणों को संकट से उबारा हो!* 

*किसी अच्छे काम के लिए कहते तो बोल भी देता।* 

*मै तो बिल्कुल भी न बोलूं।*

*अब बचे तो मेरे राघवेन्द्र सरकार,* 
*माता सीता ने कहा प्रभु!*

*आप तो तीनों लोकों ये स्वामी है, और देखती हूं आप हनुमानजी से सकुचाते है।* 

*और आप खुद भी कहते हो कि...!*

*प्रति उपकार करौं का तोरा।* 
*सनमुख होइ न सकत मन मोरा॥*

*आखिर आप के लिए क्या अदेय है प्रभु!* 

*राघवजी ने कहा देवी कर्जदार जो हूं, हनुमान जी का, इसीलिए तो*

*सनमुख होइ न सकत मन मोरा*

*देवी!* 

*हनुमानजी का कर्जा उतारना आसान नहीं है, इतनी सामर्थ्य राम में नहीं है, जो "राम नाम" में है।* 

*क्योंकि कर्जा उतारना भी तो बराबरी का ही पड़ेगा न...!* 

*यदि सुनना चाहती हो तो सुनो हनुमानजी का कर्जा कैसे उतारा जा सकता है।*

*पहले हनुमान विवाह करें*,
*लंकेश हरें इनकी जब नारी।*

*मुदरी लै रघुनाथ चलै,निज पौरुष लांघि अगम्य जे वारी।*

*अायि कहें, सुधि सोच हरें, तन से, मन से होई जाएं उपकारी।*
*तब रघुनाथ चुकायि सकें, ऐसी हनुमान की दिव्य उधारी।।*

*देवी!* 

*इतना आसान नहीं है, हनुमान जी का कर्जा चुकाना। मैंने ऐसे ही नहीं कहा था कि...!*

*"सुनु सुत तोहि उरिन मैं नाहीं"*

*मैंने बहुत सोच विचार कर कहा था।* 

*लेकिन यदि आप कहती हो तो कल राज्य सभा में बोलूंगा कि हनुमानजी भी कुछ मांग लें।*

*दूसरे दिन राज्य सभा में सब एकत्र हुए,सब बड़े उत्सुक थे कि हनुमानजी क्या मांगेंगे, और रामजी क्या देंगे।*

*रामजी ने हनुमान जी से कहा!* 

*सब लोगों ने मेरी बहुत सहायता की और मैंने, सब को कोई न कोई पद दे दिया।*

*विभीषण और सुग्रीव को क्रमशः लंका और किष्कन्धा का राजपद,अंगद को युवराज पद।* 

*तो तुम भी अपनी इच्छा बताओ...?*

*हनुमानजी बोले!* 

*प्रभु आप ने जितने नाम गिनाए, उन सब को एक एक पद मिला है, और आप कहते हो...!*

*"तैं मम प्रिय लछिमन ते दूना"*

*तो फिर यदि मै दो पद मांगू तो..?*

*सब लोग सोचने लगे बात तो हनुमानजी भी ठीक ही कह रहे हैं।* 

*रामजी ने कहा!* 

*ठीक है, मांग लो, सब लोग बहुत खुश हुए कि आज हनुमानजी का कर्जा चुकता हुआ।*

*हनुमानजी ने कहा!* 

*प्रभु जो पद आप ने सबको दिए हैं, उनके पद में राजमद हो सकता है ।* 

*तो मुझे उस तरह के पद नहीं चाहिए, जिसमे राजमद की शंका हो, तो फिर...!* 

*आप को कौन सा पद चाहिए...?*

*हनुमानजी ने रामजी के दोनों चरण पकड़ लिए, प्रभु ..!*

*हनुमान को तो बस यही दो पद चाहिए।*

*हनुमत सम नहीं कोउ बड़भागी।*
*नहीं कोउ रामचरण अनुरागी।।*

*जानकी जी की तरफ देखकर मुस्कुराते हुए राघवजी बोले, लो उतर गया हनुमानजी का कर्जा!*

*और अभी तक जिसको बोलना था, सब बोल चुके है, अब जो मै बोलता हूं ।* 

*उसे सब सुनो, रामजी भरत भैया की तरफ देखते हुए बोले...!*

*"हे! भरत भैया' कपि से उऋण हम नाही"*........

*हम चारों भाई चाहे जितनी बार जन्म लेे लें, हनुमानजी से उऋण नही हो सकते।* 

*जय श्री हनुमान जी महाराज की जय*

।। पूरा विश्व मे भगवान रामचन्द्रजी की महिमा ।।

वाल्मीकि रामायण 
आनंद रामायण 
वशिष्ठ रामायण 
याज्ञवल्क्य रामायण 
रामचरितमानस 
कंब रामायण, 
कृत्तिवास रामायण, 
अद्भुत रामायण, तत्वार्थ रामायण, संजीवनी रामायण, सर्वार्थ रामायण, उत्तर रामचरितम्, प्रतिमानाटकम्, राघवेन्द्र चरितम्, हनुमन्नाटकम्, रघुवंशम, अभिषेक नाटकम्, जानकी हरणं, राधेश्याम रामायण के अतिरिक्त 
लोमश संहिता में रामायण 
हनुमत् संहिता में रामायण 
शुक संहिता, 
बृहत्कौशल खंड, 
भुशुण्डी रामायण, 
अद्भुत रामायण, 
विलंका रामायण(सारलादास कृतं उड़िया), 
के साथ साथ 

दशरथ जातकम्, अनामक जातकम्, दशरथ कहानम् आदि (बौद्ध ग्रन्थों में रामायण), 

पउमचरिउ(21 ई.), विमलसूरि कृत रामायण(प्राकृत में), रविवेषणाचार्य कृत रामचरित(संस्कृत में), स्वयं भू कृत पउमचरिउ अपभ्रंश (नवम्, 21ई. ), अभिनव पम्पकृत(कन्नड़), रामचन्द्र चरित पुराण(11, 21ई.), गुणभद्र कृत रामायण (संस्कृत) तथा उत्तर पुराण (नवम् -21 ई. ) आदि (जैन ग्रन्थों में रामायण) के साथ साथ-

हिंदी भाषा में 11, मराठी भाषा में 8, बांग्ला भाषा में 25, तमिल भाषा में 12, तेलगू भाषा में 12 तथा उड़िया लिपि में 6 रामायण प्राप्त हैं। 

"राम चरित शतकोटि अपारा" ----
सहस्रों करोड़ बार रामायण लिखी-गाई गई है। 

 अन्य देशों के उदाहरण देखें तो-

नेपाल में भानुभक्त कृत 'नेपाली रामायण', 

भूटान में पदमपाहुस रामायण

श्री लंका में कुमार दास रचित "जानकी हरण" रामायण है (512-521ई.) तथा सिंहली भाषा में राम कथा "मलेराज़ की कथा" नाम से  700 bc)थी।  

बर्मा में 'रामवत्थु' रामायण है। 

चीन में यूतोकी रामयागन, इंडोचीन क्षेत्र में खमैर रामायण प्राप्त हुई। 

तुर्की में खोतानी रामायण, 

जावा में रामकैलिंग,  सेरतराम, सैरीराम नाम से रामायण। 

थाईलैंड में रामकियैन रामायण। 

फिलीपींस की मारनव भाषा मे संकलित 'मसलादिया लाबन' है जो विकृत रामायण है। 


इंडोनेशिया में सबसे प्राचीन शास्त्रीय भाषा कावी मे काकावीन द्वारा रचित 'रामायण काकावीन'है।  

कतर के दोहा में मुगल रामायण नाम से रामायण का अरेबिक अनुवाद जिसे हमीदा बानो ने अनुवाद कराया था, जो 16 मई 1594 को पूर्ण हुआ था। 

मलेशिया के इस्लामीकरण के बाद 1633 में मलय रामायण की सबसे प्राचीन पांडुलिपि बोडलियन पुस्तकालय में संरक्षित कर दी गई थी। मलेशिया में 'हिकायत सेरीराम' रामायण है। 

जापान में कथा संग्रह ग्रन्थ 'होबुत्सुशू' में राम कथा संकलित है। 

मंगोलिया में अनेक रामायण प्राप्त हुई हैं। मंगोलियन भाषा मे लिखित चार रामायण दम्दिन सुरेन ने खोजी थीं। इनमें 'राजा जीवक की कथा' सबसे प्रसिद्ध है। वर्तमान में लेनिनगार्द में मंगोलियन रामायण सुरक्षित हैं। 

तिब्बत में "किंरस-पुंस-पा"  नाम से रामायण । 

इनके अतिरिक्त संसार भर से तीन सौ से अधिक रामायण प्राप्त हुई हैं। 
अन्त में पुनः 

"राम चरित शतकोटि अपारा।
श्रुति सारदा न बरने पारा  ।।"
 

विध विध रूपों में, अनेकों देशों, अनेकों भाषाओं में राम कथा का प्राप्त होना ही ये सिद्ध करता है कि राम पूरे विश्व के है और उनकी कीर्ति अपार है।
प्रेम से बोलिए जय जय श्री राम। 
राजा राम चन्द्र भगवान की जय। 
ॐ नमः पार्वती पतये हर हर महादेव।। राधे राधे...! ।।
पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 
" Opp. Shri Dhanlakshmi Strits , Marwar Strits, RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
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Email: prabhurajyguru@gmail.com
आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद.. 
नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏

।। श्री विष्णुपुराण प्रवचन / इन 12 पापों को कभी क्षमा नहीं करते भगवान ।।

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

।।  श्री विष्णुपुराण प्रवचन / इन 12 पापों को कभी क्षमा नहीं करते भगवान ।।


।। श्री विष्णुपुराण प्रवचन ।।


👌बहूत सुंदर कथा👌

             
 एक राजा ने भगवान कृष्ण का एक मंदिर बनवाया
और पूजा के लिए एक पुजारी को लगा दिया ।




पुजारी बड़े भाव से
बिहारीजी की सेवा करने लगे ।

 भगवान की पूजा-अर्चना और
सेवा-टहल करते पुजारी की उम्र बीत गई ।

राजा रोज एक फूलों की
माला सेवक के हाथ से भेजा करता था।

पुजारी वह माला बिहारीजी
को पहना देते थे ।

जब राजा दर्शन करने आता तो पुजारी वह माला बिहारीजी के गले से उतारकर राजा को पहना देते थे।

 यह रोज का
नियम था।

 एक दिन राजा किसी वजह से मंदिर नहीं जा सका।

उसने एक सेवक से कहा- माला लेकर मंदिर जाओ ।

पुजारी से कहना ।

आज मैं नहीं आ पाउंगा ।

सेवक ने जाकर माला पुजारी को दे दी और बता दिया कि आज महाराज का इंतजार न करें ।

सेवक वापस आ गया।

 पुजारी ने माला बिहारीजी को पहना दी ।

फिर उन्हें विचार आया कि आज तक मैं अपने बिहारीजी की चढ़ी माला राजा को ही पहनाता रहा।

 कभी ये सौभाग्य मुझे नहीं
मिला ।

जीवन का कोई भरोसा नहीं कब रूठ जाए।

 आज मेरे प्रभु ने
मुझ पर बड़ी कृपा की है ।

राजा आज आएंगे नहीं ।

तो क्यों न माला

मैं पहन लूं ।

यह सोचकर पुजारी ने बिहारीजी के गले से माला उतारकर स्वयं पहन ली।

 इतने में सेवक आया और उसने बताया कि राजा की सवारी बस मंदिर में पहुंचने ही वाली है.यह सुनकर पुजारी कांप गए ।

उन्होंने सोचा अगर राजा ने माला मेरे गले में देख ली तो मुझ पर क्रोधित होंगे ।

इस भय से उन्होंने अपने गले से
माला उतारकर बिहारीजी को फिर से पहना दी।

जैसे ही राजा दर्शन को आया तो पुजारी ने नियम अुसार फिर से वह माला उतार कर राजा के गले में पहना दी ।

माला पहना रहे थे तभी राजा को माला में एक सफ़ेद बाल दिखा।

राजा को सारा माजरा समझ गया
कि पुजारी ने माला स्वयं पहन ली थी और फिर निकालकर
वापस डाल दी होगी ।

पुजारी ऐसाछल करता है।

 यह सोचकर राजा
को बहुत गुस्सा आया।

 उसने पुजारी जी से पूछा- पुजारीजी यह सफ़ेद बाल किसका है.? 

पुजारी को लगा कि अगर सच बोलता हूं ।

तो राजा दंड दे देंगे इसलिए जान छुड़ाने के लिए पुजारी ने कहा- महाराज यह सफ़ेद बाल तो बिहारीजी का है. 

अब तो राजा गुस्से
से आग- बबूला हो गया कि ये पुजारी झूठ पर झूठ बोले जा रहा
है। 

भला बिहारीजी के बाल भी कहीं सफ़ेद होते हैं ।

राजा ने कहा-

पुजारी अगर यह सफेद बाल बिहारीजी का है तो सुबह शृंगार के समय मैं आउंगा और देखूंगा कि बिहारीजी के बाल सफ़ेद है या 
काले ।

अगर बिहारीजी के बाल काले निकले तो आपको फांसी हो जाएगी ।

राजा हुक्म सुनाकर चला गया।

अब पुजारी रोकर
बिहारीजी से विनती करने लगे- प्रभु मैं जानता हूं ।

आपके सम्मुख मैंने झूठ बोलने का अपराध किया।

 अपने गले में डाली माला पुनः 

आपको पहना दी।

आपकी सेवा करते-करते वृद्ध हो
गया ।

यह लालसा ही रही कि कभी आपको चढ़ी माला पहनने का सौभाग्य मिले।

 इसी लोभ में यह सब अपराध हुआ ।

मेरे ठाकुरजी पहली बार यह लोभ हुआ और ऐसी विपत्ति आ पड़ी है ।

मेरे नाथ अब नहींहोगा ऐसा अपराध ।

 अब आप ही बचाइए नहीं तो
कल सुबह मुझे फाँसी पर चढा दिया जाएगा।

 पुजारी सारी रात रोते रहे ।

सुबह होते ही राजा मंदिर में आ गया।

 उसने कहा कि आज
प्रभु का शृंगार वह स्वयं करेगा।

 इतना कहकर राजा ने जैसे ही मुकुट हटाया तो हैरान रह गया।

 बिहारीजी के सारे बाल सफ़ेद थे. राजा को लगा ।

 पुजारी ने जान बचाने के लिए बिहारीजी के बाल रंग दिए होंगे ।

 गुस्से से तमतमाते हुए उसने बाल की जांच करनी चाही ।

बाल असली हैं या नकली यब समझने के लिए उसने जैसे
ही बिहारी जी के बाल तोडे।

 बिहारीजी के सिर से खून
कीधार बहने लगी।

 राजा ने प्रभु के चरण पकड़ लिए और क्षमा मांगने लगा।

बिहारीजी की मूर्ति से आवाज आई- राजा तुमने आज तक मुझे केवल मूर्ति ही समझा इसलिए आज से मैं तुम्हारे
लिए मूर्ति ही हूँ।

 पुजारीजी मुझे साक्षात भगवान् समझते हैं।

उनकी श्रद्धा की लाज रखने के लिए आज मुझे अपने बाल सफेद
करने पड़े व रक्त की धार भी बहानी पड़ी तुझे समझाने के लिए।

 कहते हैं- 

समझो तो देव नहीं तो पत्थर.श्रद्धा हो तो उन्हीं पत्थरों में भगवान सप्राण
होकर भक्त से मिलने आ जाएंगे ।।

*जय जय श्री कृष्ण*

🌹इन 12 पापों को कभी क्षमा नहीं करते भगवान शिव, सुखी जीवन चाहिए तो कभी ना करें 

     🌹औघड़ भोलेनाथ🌹
भगवान शिव को औघड़ और भोलेनाथ भी कहा जाता है, लेकिन शिव जितने भोले और आसानी से प्रसन्न होने वाले हैं, उनका गुस्सा भी उतना ही प्रलयंकारी है। कहते हैं कि जिस दिन शिव ने अपनी तीसरी आंख खोल दी, उसी दिन दुनिया का अंत निश्चित है

         🌺शिव पुराण🌺
शिव पुराण में कार्य, बात-व्यवहार और सोच द्वारा किए गए 12 पाप वर्णित हैं जिसे भगवान शिव कभी क्षमा नहीं करते। ऐसा व्यक्ति हमेशा ही शिव के कोप का भाजन होगा और कभी भी सुखी जीवन व्यतीत नहीं कर सकता.
औघड़ भोलेनाथ
भगवान शिव को औघड़ और भोलेनाथ भी कहा जाता है, लेकिन शिव जितने भोले और आसानी से प्रसन्न होने वाले हैं, उनका गुस्सा भी उतना ही प्रलयंकारी है। कहते हैं कि जिस दिन शिव ने अपनी तीसरी आंख खोल दी, उसी दिन दुनिया का अंत निश्चित है।

           🌹शिव पुराण🌹
शिव पुराण में कार्य, बात-व्यवहार और सोच द्वारा किए गए 12 पाप वर्णित हैं जिसे भगवान शिव कभी क्षमा नहीं करते। ऐसा व्यक्ति हमेशा ही शिव के कोप का भाजन होगा और कभी भी सुखी जीवन व्यतीत नहीं कर सकता.
सोच से किए जाने वाले पाप
आपने सुना होगा कि ऊपरवाले से कुछ छुपा नहीं होता। यहां तक कि आप अपने मस्तिष्क में जो सोच रहे होते हैं, वह भी भगवान से छुपा नहीं है। इसलिए भले ही बात और व्यवहार में आपने किसी को नुकसान ना पहुंचाया हो, लेकिन अगर मन में किसी के प्रति कोई दुर्भावना है या आपने किसी का अहित सोचा हो, तो यह भी पाप की श्रेणी में आता है।

1🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺
दूसरों के पति या पत्नी पर बुरी नजर रखना, या उसे पाने की इच्छा करना भी पाप की श्रेणी में रखा गया है

2🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
दूसरों का धन अपना बनाने की चाह रखना भी भगवान शिव की नजर में अक्षम्य अपराध और पाप है

3🍋🍋🍋🍋🍋🙉🙉🍋🍋
किसी भोलेभाले और निरपराध इंसान को कष्ट देना, उसे नुकसान पहुंचाने, या धन-संपत्ति लूटने, उसके लिए बाधाएं पैदा करने की योजना बनाना या ऐसी सोच रखना भगवान शिव की नजरों में हर हाल में माफी ना देने योग्य पाप है

4🍋🍋🍋🍋🍋🍋🍋🍋
अच्छी बातें भूलकर बुरी राह को स्वयं चुनने वाले के पाप अक्षम्य होते हैं।
बोली के द्वारा किए जाने वाले अक्षम्य पाप
शिव पुराण के अनुसार जिस प्रकार आप किसी का बुरा नहीं करने के बावजूद, उसके लिए बुरी सोच रखने के कारण भी पाप के हकदार और दंड की श्रेणी में आ जाते हैं, उसी प्रकार भले ही आपने अपने कार्य से किसी का बुरा ना किया हो, लेकिन आपकी बोली अक्षम्य पापों का हकदार भी बना सकती है। खासतौर से इन तीन हालातों में

5🍋🍋🍋🍋🍋🍋🍋🍋
किसी गर्भवती महिला या मासिक के दौरान किसी महिला को कटु वचन कहना या अपनी बातों से उनका दिल दुखाना शिव की नजरों में अक्षम्य अपराध और पाप है।


6🙉🙉🙉🙉🙉🙉🙉🐄
किसी के सम्मान को हानि पहुंचने की नीयत से झूठ बोलना ‘छल’ की श्रेणी में आता है और अक्षम्य पाप का भागीदार बनाता है।

7🌲🌲🌲🌲🌲🌲🌲🌲
समाज में किसी के मान-सम्मान को हानि पहुंचाने की नीयत से या उसकी पीठ पीछे बातें करना या अफवाह फैलाना भी एक अक्षम्य पाप है। 

8 🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺
धर्म अनुसार मना की गई चीजें खाना या धर्म के विपरीत कार्य करना किसी हाल में व्यक्त के लिए स्वीकार्य नहीं होना चाहिए, वरना आप भगवान शिव की नजरों में हमेशा ही अपराधी रहेंगे।

9🥜🥜🥜🥜🥜🥜🥜🥜
बच्चों, महिलाओं या किसी भी कमजोर जीव के खिलाफ हिंसा और असामाजिक कार्यों में लिप्तता मनुष्य को पाप का दोषी बनाता है।

10🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
गलत तरीके से दूसरे की संपत्ति हड़पना, ब्राह्मण या मंदिर की चीजें चुराना या गलत तरीके से हथियाना भी आपको इस श्रेणी में लाता है।

11🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒
गुरु, माता-पिता, पत्नी या पूर्वजों का अपमान भी आपको भूलकर भी नहीं करनी चाहिए

12🐚🐚🐚🐚🐚🐚
शराब पीना, गुरु की पत्नी के साथ संबंध बनाना, दान की हुई चीजें या धन वापस लेना महापाप माने जाते हैं जिसे भगवान शिव कभी भी क्षमा नहीं करते।
।।।।।।।।। हर हर महादेव हर ।।।।।।।।।
पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 
" Opp. Shri Dhanlakshmi Strits , Marwar Strits, RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
सेल नंबर: . + 91- 7010668409 / + 91- 7598240825 WHATSAPP नंबर : + 91 7598240825 ( तमिलनाडु )
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जय द्वारकाधीश....
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महाभारत की कथा का सार

महाभारत की कथा का सार| कृष्ण वन्दे जगतगुरुं  समय नें कृष्ण के बाद 5000 साल गुजार लिए हैं ।  तो क्या अब बरसाने से राधा कृष्ण को नहीँ पुकारती ...

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