सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता, किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश
।। एक अनमोल मर्मस्पर्शी दृष्टांत नाम जप " जीवन को विवेकशील कैसे बनाएं...! बहुत सुंदर कहानी ।।
एक अनमोल मर्मस्पर्शी दृष्टांत...नाम जप.... " जीवन को विवेकशील कैसे बनाएं...!
बड़े से बड़े शुभकर्म में भी इतनी सामर्थ्य नही की वह हमें प्रभु की प्राप्ति करा सके।
प्रभु की प्राप्ति कराने में उनका नाम ही समर्थ है।
जिनको भी हम महापुरुष मानते है ऐसे जिन भी सन्त से अगर उनके हृदय की बात पूछो तो वे एकमात्र नाम जपने को कहते है।
क्योकि उनका काम भी नाम से ही बना है।
इस लिए " सबका सार है निरन्तर नाम जप करना "।
और कोई साधन बने तो ठीक है, न बने तो आवश्यक नही है।
" एक मात्र नाम जप से ही सब काम बन जायेगा "।
नाम जप करोगे तो इष्ट की सेवा हो जाएगी।
नाम जप करोगे तो जहाँ आप सोच भी नही सकते हो उस प्रेम देश मे आपका प्रवेश हो जाएगा।
जब तक नाम जप नही होगा तब तक इस माया पर विजय प्राप्त नही होगी औऱ यदि नाम जप हो रहा है तो डरने की जरूरत नही है।
वह नाम अपने प्रभाव से समस्त वासनाओं को नष्ट कर देगा।
आप निरन्तर नामजप में लगे रहिए।
जब नाम का प्रभाव हृदय में उदय होगा तो आपको ऐसा बल ऐसा ज्ञान कि आप माया में फँसेंगे ही नही।
" अतः आप एक एक क्षण नामजप में लगावें "।
सब शास्त्रों एवं समस्त सिद्धान्तों की ये सार बात है।
" जीवन को विवेकशील कैसे बनाएं...! "
अग्नि चाहे दीपक की हो, चिराग की हो अथवा मोमबत्ती की लौ से हो, इसके दो ही कार्य हैं।
जलाना और प्रकाश करना।
यह हमारे विवेक के ऊपर निर्भर करता है कि हम इसका कहाँ उपयोग करते हैं।
यही लौ किसी के घर में आग भी लगा देती है और यही लौ अन्धकार को दूर कर सम्पूर्ण जगत को प्रकाशमय भी कर देती है।
यह हमारे उपयोग करने के ऊपर निर्भर है कि हम किस वस्तु का किस कार्य में उपयोग करते हैं।
व्यक्ति जिस वस्तु के उपयोग से पुण्यार्जन कर सकता है तो थोड़ी चूक होने पर पापार्जन का कारण भी बन जाती है।
संसार में किसी भी वस्तु को, व्यक्ति को, स्थिति को कोसने की आवश्यकता नहीं है।
जरुरत है उसका गुण, स्वभाव और प्रकृति समझकर समाज के हित में उपयोग करने की।
दुनिया बड़ी खूबसूरत है इसे अपने विवेक , चिन्तन और शुभ आचरण से और अधिक सुन्दर बनाया जाए, यही विवेकी पुरुष का लक्षण है।
- जब से मनुष्यो की बुध्दि, इन्द्रिय , मन और उनके विषयों के रूप में उनका अधिष्ठान, ज्ञानस्वरूप आत्मा ही भासित हो रही है।
उन सबका तो आदि भी है और अन्त भी इस लिए वे सब सत्य नही है।
वे दृश्य हैं और अपने अधिष्ठान से भिन्न उनकी सत्ता भी नही है।
इस लिए वे सर्वथा मिथ्या व माया मात्र हैं।
जैसे रज्जुरूप अधिष्ठान में अध्यस्त सर्प अपने अधिष्ठान से पृथक नही है।
परन्तु अध्यस्त सर्प से अधिष्ठान का कोई संबध ही है।
जाग्रत, स्वप्न और सुषुप्ति ये तीनो बुध्दि की अवस्थाएं है।
अत: इनके कारण आत्मा मे जगत, स्वप्न और दोनों का अभाव की जो प्रतीति होती है।
वह केवल माया मात्र हैं उनका आत्मा से कोई सम्बन्ध नही है।
एक अनमोल मर्मस्पर्शी दृष्टांत...
अशोक जी अपनी पत्नी के साथ अपनी रिटायर्ड जिंदगी बहुत हँसी खुशी गुजा़र रहे थे...!
उनके तीनों बेटे अलग अलग शहरों में अपने अपने परिवारों के साथ थे...!
उन्होनें नियम बना रखा था....!
दीपावली पर तीनों बेटे सपरिवार उनके पास आते थे...!
वो एक सप्ताह कैसे मस्ती में बीत जाता था...!
कुछ पता ही नही चलता था।
कैसे क्या हुआ...!
उनकी खुशियों को जैसे नज़र ही लग गई...!
अचानक शीला जी को दिल का दौरा पड़ा ...!
एक झटके में उनकी सारी खुशियाँ बिखर गईं।
तीनों बेटे दुखद समाचार पाकर दौड़े आए...!
उनके सब क्रिया कर्म के बाद सब शाम को एकत्रित हो गए...!
बड़ी बहू ने बात उठाई , " बाबूजी, अब आप यहाँ अकेले कैसे रह पाऐंगे...! "
" आप हमारे साथ चलिऐ। "
"नही बहू, अभी यही रहने दो...!
यहाँ अपनापन लगता है...!
बच्चों की गृहस्थी में...।"
कहते कहते वो चुप से हो गए...!
बड़ा पोता कुछ बोलने को हुआ...!
उन्होंने हाथ के इशारे से उसे चुप कर दिया...!
" बच्चों, अब तुम लोगों की माँ हम सबको छोड़ कर जा चुकी हैं... ! "
उनकी कुछ चीजें हैं... !
वो तुम लोग आपस में बांट लो...!
" हमसे अब उनकी साजसम्हाल नही हो पाऐगी। "
कहते हुए अल्मारी से कुछ निकाल कर लाए....!
मखमल के थैले में बहुत सुंदर चाँदी का श्रंगारदान था...!
एक बहुत सुंदर सोने के पट्टे वाली पुरानी रिस्टवाच थी...!
सब इतनी खूबसूरत चीजों पर लपक से पड़े।
छोटा बेटा जोश में बोला, " अरे ये घड़ी तो अम्मा सरिता को देना चाहती थी। "
अशोकजी धीरे से बोले, " और सब तो मैं तुम लोगों को बराबर से दे ही चुका हूँ...! "
इन दो चीजों से उन्हें बहुत लगाव था...!
बेहद चाव से कभी कभी निकाल कर देखती थीं...!
" लेकिन अब कैसे उनकी दो चीजों को तुम तीनों में बांटू ? "
सब एक दूसरे का मुँह देखने लगे...!
तभी मंझला बेटा बड़े संकोच से बोला...!
" ये श्रंगारदान वो मीरा को देने की बात करती थी। "
पर समस्या तो बनी ही थी...!
वो मन में सोच रहे थे...!
बड़ी बहू को क्या दूँ....!
उनके मन के भाव शायद उसने पढ़ लिए...!
"बाबू जी, आप शायद मेरे विषय में सोच ही रहे हैं...! "
आप श्रंगारदान मीरा को दे दिजिए...!
और रिस्टवाच सरिता को दे दीजिए...!
" अम्मा भी तो यही चाहती थी। "
" पर नन्दिनी, तुझे मै क्या दूँ...! "
" मुझे कुछ समझ में ही नही आ रहा है। "
" आपके पास एक और अनमोल चीज़ है ...! "
और " वो अम्माजी मुझे ही देना चाहती थीं। "
सबके मुँह हैरानी से खुले रह गए...!
दोनों बहुऐं तो बहुत हैरान परेशान हो गईं...!
अब कौन सा पिटारा खुलेगा...!
सबकी हैरानी और परेशानी को भाँप कर बड़ी बहू मुस्कुरा कर बोली, " वो सबसे अनमोल तो आप स्वयं ही हैं बाबूजी....! "
पिछली बार अम्माजी ने मुझसे कह दिया था...!
मेरे बाद बाबूजी की देखरेख तेरे ही जिम्मे पर होगी...!
" बस अब आप उनकी इच्छा का पालन करें और हमारे साथ चलें। "
अगर आप साधना कर रहे हैं पर फल नहीं मिल रहा तो निराश मत होना क्योंकि भगवान को तो पता है ही कि आप साधना कर रहे है।
इस लिये फल तो अवश्य ही देगा।
हाँ कब कितना और किस काल देगा यह उस पर निर्भर है अतः साधकजनों जुट जाईयेगा साधना में !
कुछ ऐसी ही मिलती जुलती घटना साधकजनों एक साधक जोकि व्यवसाय से शिक्षक है के साथ चंद रोज ही हुए है घटित हुई है !
अपने पास पढ़ने वाले बच्चो को यह साधक राम नाम जपने के लिये प्रेरित भी किया करते है !
बच्चो को स्वामी जी महाराज का यह दोहा भी कंठस्थ करवाया हुआ है।
सर्वशक्तिमय राम जी अखिल विश्व के नाथ।
शुचिता सत्य सुविश्वास दे सिर पर धर कर हाथ ।।
कई बच्चो को परमात्मा अपना प्यार अपना दुलार अपना वरदहस्त फेर कर प्रदान किया करता है !
एक बच्ची साधकजनों काफी समय से इस दोहे का प्रेमपूर्वक पाठ किया करती पर उसे परमात्मा का प्यार उसकी कृपा का अहसास नही हो पा रहा था सो काफी मायूस रहा करती !
कुछ ही दिन पूर्व रात्रि 11 से ऊपर का ही समय होगा सोए - सोए इस दोहे का मन ही मन उच्चारण कर रही थी !
रोना भी आ था कि हे परमात्मा मेरे साथ पढ़ने वाली कई लड़कियों को आप अपना अहसास करवाते हो ; मुझे क्यो नही...!
क्या मैं आपकी बच्ची नही इत्यादि - इत्यादि विचार मन मे आ रहे थे कि अचानक उसे अपने कमरे में किसी की आहट किसी की आवाज़ सुनाई दी !
वह मासूम बच्ची डर गई ; हिम्मत करके तो उठी और लाइट चालू करके चारो तरफ देखा पर कमरे में कोई नही था !
पुनः सोने के लिये लाइट बंध करकेे बिस्तर पर आ गई !
लेटते - लेटते पुनः अश्रुओं की झड़ी सी लग गई सिर से लेकर पाँव तक कंपकपी सी छा गयी मानो कोई सिर पर बड़े ही प्यार से हाथ फेर कर पुचकार रहा हो !
सहसा ईश्वरीय नाद ( आवाज़ ) भी सुनाई दिया - कविता बेटे रोओ मत !
यह जो तुम्हे अहसास हो रहा है अपने सिर को बता देना !
ईश्वरीय नाद सुनकर तो वह लड़की और भी सहम सी गयी और अपने आपको चादर में समेट लिया !
हृदय में अपार प्रसन्नता तो थी कि उस देवाधिदेव का आज स्नेह प्राप्त हुआ पर थोड़ा सा अनजान सा भय भी अज्ञानवश उसे महसूस हुआ !
खैर जैसे तैसे रात बीती सुबह फिर स्नेह भरा वरदहस्त सिर पर महसूस हुआ !
स्कूल समय में वह उन साधक के पास अपनी सहेली को लेकर जा पहुँची और सारी घटना से उन्हें अवगत करवाया !
साधक बहुत ही प्रसन्न हुए ;हृदय में दिव्य आनंद की लहरें हिलोरे मारने लगी !
उस बच्ची को अहसास होना आरम्भ हुआ यह खुशी तो थी ही पर यह कि अपने सिर को बता देना।
यह ईश्वरीय सन्देश मानो साधक के लिये संजीवनी बूटी का काम कर रहा था !
सोचा - वाह मेरे परमात्मा वाह तो तू मुझ जैसे कीड़े को जानता है !
जानता तो वैसे तू हरेक को है पर तूने जो आज मुझे जताया कि तू मुझे जानता है मेरे तो पूरे हो गये मेरा जीवन सफल अति सफल धन्य - धन्य हो गया !
जिसे तू जानता है परमात्मा उसी का जीवन ही जीने योग्य हुआ करता है !
ऐसी नेक कमाई परमात्मा के पतित पावन प्रेम की कमाई हम सब गरीबो को भी प्राप्त हो ऐसी सतत मांग परमात्मा एवं गुरुजनो के दरबार में किया की जियेगा !
पितरों के लिए श्राद्ध, नदियों में स्नान, दान-पुण्य करने की परंपराएं, इस बार रहेगी सोमवती अमावस्या
सोमवार, 30 दिसंबर को पौष मास की अमावस्या है।
जब सोमवार को अमावस्या होती है तो इसे सोमवती कहा जाता है।
सोमवती अमावस पर शिव जी का रुद्राभिषेक करने की परंपरा है।
इसके साथ ही इस दिन पितरों के लिए धूप-ध्यान और दान-पुण्य किए जाते हैं।
मान्यता है कि इस दिन गंगा, यमुना, नर्मदा, शिप्रा, कावेरी, गोदावरी, सरस्वती जैसी पवित्र नदियों में स्नान करने से जाने - अनजाने में किए गए सभी पापों का असर कम हो जाता है।
जानिए सोमवती अमावस्या पर कौन - कौन से शुभ काम करते हैं...
ऐसे कर सकते हैं पितरों के लिए धूप-ध्यान :
अमावस्या के स्वामी पितर देव माने गए हैं,
इस लिए इस तिथि पर पितरों के लिए धूप - ध्यान करते
धूप - ध्यान के लिए सबसे अच्छा समय दोपहर का रहता है।
दोपहर में कंडे ( उपले ) जलाएं और कंडों के अंगारों पर पितरों का ध्यान करते हुए गुड़-घी डालें।
ऊँ पितृदेवेभ्यो नम: मंत्र का जप करें।
हथेली में जल लेकर अंगूठे की ओर से पितरों को अर्पित करें।
धूप - ध्यान करने के बाद पितरों के निमित्त तिल - गुड़, धन, कपड़े, जूते-चप्पल, खाना भी दान करना चाहिए।
नदी स्नान और सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा :
अमावस्या पर सूर्योदय के समयपवित्र नदियों में स्नान करने की परंपरा है।
स्नान के बाद नदी किनारे पर ही सूर्य को जल अर्पित करते हैं।
पूर्व दिशा की ओर मुंह करके नदी का जल दोनों हथेलियों में लेकर ऊँ सूर्याय नम: मंत्र जपते हुए सूर्यदेव को अर्घ्य देते हैं।
जो लोग नदी स्नान नहीं कर पा रहे हैं, वे घर पर ही पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान कर सकते हैं।
स्नान करते समय नदियों का और तीर्थों का ध्यान करना चाहिए।
स्नान के बाद सूर्य को अर्घ्य दें और दान-पुण्य करें।
अमावस्या पर करें मंत्र और चंद्र पूजा :
इस दिन मंत्र जप और ध्यान करने से लाभ मिलता है।
गणेश मंत्र, गायत्री मंत्र, महामृत्युंजय मंत्र, कृष्ण मंत्र, भगवान विष्णु, हनुमान मंत्र और नामों का जप कर सकते हैं।
इस दिन व्रत रखने की भी परंपरा है।
भक्त दिनभर व्रत करते हैं।
इस दिन चंद्र देव की प्रतिमा की पूजा करें।
चंद्र देव की प्रतिमा न हो तो शिवलिंग पर स्थापित चंद्र की पूजा कर सकते हैं।
चंद्र देव का दूध से अभिषेक करना चाहिए।
🙏🌹🙏जय श्री कृष्ण🙏🌹🙏
पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:-
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science)
" Opp. Shri Dhanlakshmi Strits , Marwar Strits, RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
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जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏