https://www.profitablecpmrate.com/gtfhp9z6u?key=af9a967ab51882fa8e8eec44994969ec 2. आध्यात्मिकता का नशा की संगत भाग 1: श्री यजुर्वेद और ऋग्वेद के अनुसार होली के पूजन फल https://sarswatijyotish.com/india
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।। श्री यजुर्वेद और ऋग्वेद के अनुसार होली के पूजन फल ।।

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

।। श्री यजुर्वेद और ऋग्वेद के अनुसार होली के पूजन फल ।।


श्री यजुर्वेद और ऋग्वेद के अनुसार होली के पूजन फल

हमारे वेदों पुराणों के अनुसार होली के पूजन और फल के बारे में सोचना मजबूर भी कर देता है।

इस त्यौहार का नाम सुनते ही अनेक रंग हमारी आंखों के सामने फैलने लगते हैं। 

हम खुदको भी विभिन्न रंगों में पुता हुआ महसूस करते हैं। 

लेकिन इस रंगीली होली को तो असल में धुलंडी कहा जाता है।

होली तो असल में होलीका दहन का उत्सव है जिसे बुराई पर अच्छाई की जीत के रुप में मनाया जाता है। 

यह त्यौहार भगवान के प्रति हमारी आस्था को मजबूत बनाने व हमें आध्यात्मिकता की और उन्मुख होने की प्रेरणा देता है। 

क्योंकि इसी दिन भगवान ने अपने भक्त प्रह्लाद की रक्षा की और उसे मारने के लिये छल का सहारा लेने वाली होलीका खुद जल बैठी। 

तभी से हर साल फाल्गुन पूर्णिमा के दिन होलिका दहन किया जाता है। 


कई स्थानों पर इस त्योहार को छोटी होली भी कहा जाता है।


कैसे बनाते हैं होली :

होलिका दहन से पहले होली बनाई जाती है ।

इसकी प्रक्रिया एक महीने पहले ही माघ पूर्णिमा के दिन शुरु हो जाती है। 

इस दिन गुलर वृक्ष की टहनी को गांव या मोहल्ले में किसी खुली जगह पर गाड़ दिया जाता है।

इसे होली का डंडा गाड़ना भी कहते हैं। 

इसके बाद कंटीली झाड़ियां या लकड़ियां इसके इर्द गिर्द इकट्ठा की जाती हैं।

घनी आबादी वाले गांवों में तो मोहल्ले के अनुसार अलग - अलग होलियां भी बनाई जाती हैं। 

उनमें यह भी प्रतिस्पर्धा होती है।

कि किसकी होली ज्यादा बड़ी होगी। 

हालांकि वर्तमान में इस चलन में थोड़ी कमी आयी है।

इसका कारण इस काम को करने वाले बच्चे, युवाओं की अन्य चीजों में बढ़ती व्यस्तताएं भी हैं। 

फिर फाल्गुन पूर्णिमा के दिन गांव की महिलाएं, लड़कियां होली का पूजन करती हैं। 

महिलाएं और लड़कियां भी सात दिन पहले से गाय के गोबर से ढाल, बिड़कले आदि बनाती हैं।

गोबर से ही अन्य आकार के खिलौने भी बनाए जाते हैं।

फिर इनकी मालाएं बनाकर पूजा के बाद इन्हें होली में डालती हैं। 

इस तरह होलिका दहन के लिये तैयार होती है। 

होलिका दहन के दौरान जो डंडा पहले गड़ा था उसे जलती होली से बाहर निकालकर तालाब आदि में डाला जाता है ।

इस तरह इसे प्रह्लाद का रुप मानकर उसकी रक्षा की जाती है। 

निकालने वाले को पुरस्कृत भी किया जाता है। 

लेकिन जोखिम होने से यह चलन भी धीरे - धीरे समाप्त हो रहा है।

होलिका दहन का शुभ मुहूर्त :

जिसका समापन देर रात 12 बजकर 17 मिनट पर होगा। 

ऐसे में होलिका दहन को होगा। 

इस दिन आपको होलिका दहन के लिए 02 घंटे 20 मिनट का समय प्राप्त होगा। 

इस दिन होलिका दहन मुहूर्त शाम को 06 बजकर 37 मिनट से रात 08 बजकर 56 मिनट तक है।

होली पूजा विधि :

होलिका दहन से पहले होली का पूजन किया जाता है। 

पूजा सामग्री में एक लोटा गंगाजल यदि उपलब्ध न हो।

तो ताजा जल भी लिया जा सकता है।

रोली, माला, रंगीन अक्षत, गंध के लिये धूप या अगरबत्ती, पुष्प, गुड़, कच्चे सूत का धागा, साबूत हल्दी, मूंग, बताशे, नारियल एवं नई फसल के अनाज गेंहू की बालियां, पके चने आदि।

पूजा सामग्री के साथ होलिका के पास गोबर से बनी ढाल भी रखी जाती है। 

होलिका दहन के शुभ मुहूर्त के समय चार मालाएं अलग से रख ली जाती हैं। 

जो मौली, फूल, गुलाल, ढाल और खिलौनों से बनाई जाती हैं। 

इसमें एक माला पितरों के नाम की, दूसरी श्री हनुमान जी के लिये, तीसरी शीतला माता, और चौथी घर परिवार के नाम की रखी जाती है। 

इसके पश्चात पूरी श्रद्धा से होली के चारों और परिक्रमा करते हुए कच्चे सूत के धागे को लपेटा जाता है। 

होलिका की परिक्रमा तीन या सात बार की जाती है। 

इसके बाद शुद्ध जल सहित अन्य पूजा सामग्रियों को एक एक कर होलिका को अर्पित किया जाता है। 

पंचोपचार विधि से होली का पूजन कर जल से अर्घ्य दिया जाता है। 

होलिका दहन के बाद होलिका में कच्चे आम, नारियल, सतनाज, चीनी के खिलौने, नई फसल इत्यादि की आहुति दी जाती है। 

सतनाज में गेहूं, उड़द, मूंग, चना, चावल जौ और मसूर मिश्रित करके इसकी आहुति दी जाती है।

नारद पुराण के अनुसार होलिका दहन के अगले दिन ( रंग वाली होली के दिन ) प्रात: काल उठकर आवश्यक नित्यक्रिया से निवृत्त होकर पितरों और देवताओं के लिए तर्पण - पूजन करना चाहिए। 

साथ ही सभी दोषों की शांति के लिए होलिका की विभूति की वंदना कर उसे अपने शरीर में लगाना चाहिए। 

घर के आंगन को गोबर से लीपकर उसमें एक चौकोर मण्डल बनाना चाहिए और उसे रंगीन अक्षतों से अलंकृत कर उसमें पूजा - अर्चना करनी चाहिए। 

ऐसा करने से आयु की वृ्द्धि, आरोग्य की प्राप्ति तथा समस्त इच्छाओं की पूर्ति होती है।

कब करें होली का दहन :

हिन्दू धर्मग्रंथों एवं रीतियों के अनुसार होलिका दहन पूर्णमासी तिथि में प्रदोष काल के दौरान करना बताया है। 

भद्रा रहित, प्रदोष व्यापिनी पूर्णिमा तिथि, होलिका दहन के लिये उत्तम मानी जाती है। 

यदि ऐसा योग नहीं बैठ रहा हो तो भद्रा समाप्त होने पर होलिका दहन किया जा सकता है। 

यदि भद्रा मध्य रात्रि तक हो तो ऐसी परिस्थिति में भद्रा पूंछ के दौरान होलिका दहन करने का विधान है। 

लेकिन भद्रा मुख में किसी भी सूरत में होलिका दहन नहीं किया जाता। 

धर्मसिंधु में भी इस मान्यता का समर्थन किया गया है। 

शास्त्रों के अनुसार भद्रा मुख में होली दहन से न केवल दहन करने वाले का अहित होता है ।

बल्कि यह पूरे गांव, शहर और देशवासियों के लिये भी अनिष्टकारी होता है। 

विशेष परिस्थितियों में यदि प्रदोष और भद्रा पूंछ दोनों में ही होलिका दहन संभव न हो तो प्रदोष के पश्चात होलिका दहन करना चाहिये।

यदि भद्रा पूँछ प्रदोष से पहले और मध्य रात्रि के पश्चात व्याप्त हो तो उसे होलिका दहन के लिये नहीं लिया जा सकता ।

क्योंकि होलिका दहन का मुहूर्त सूर्यास्त और मध्य रात्रि के बीच ही निर्धारित किया जाता है।

नमो  देवि विश्वेश्वरि प्राणनाथे
सदानन्दरूपे सुरानन्ददे ते।
नमो दानवान्तप्रदे मानवाना-
 मनेकार्थदे भक्तिगम्यस्वरूपे ।।

हे  विश्वेश्वरि! 

हे प्राणों की स्वामिनी! सदा आनन्दरूप में रहने वाली तथा देवताओं को आनंद प्रदान करने वाली हे।

देवि! आपको नमस्कार है। 

दानवों का अन्त करने वाली, मनुष्यों को समस्त कामनाएं पूर्ण करने वाली तथा भक्ति के द्वारा अपने रूप का दर्शन करने वाली हे।

देवि! आपको नमस्कार है।'

वरं न राज्यं न कुराजराज्यं,
वरं न मित्रं न कुमित्रमित्रम्।
वरं न शिष्यो न कुशिष्यशिष्यो,
वरं न दारा न कुदआरदाराः।।

भावार्थः - 

जिस राज्य में पापों एवं पापियों का वास हो, वहाँ निवास करने से अच्छा यही है।

कि मनुष्य किसी एकांत स्थान में वास करे। 

जो मित्र अविश्वासी, कपटी और दुष्ट हो।

उसकी मित्रता की अपेक्षा मित्रहीन रहना अधिक उचित है। 

अन्यथा - एक दिन मित्रता ही मनुष्य का सर्वनाश कर देगी। 

इसी प्रकार बुरे एवं चरित्रहीन शिष्यों तथा व्यभिचारिणी पत्नी के बिना रहना अधिक श्रेयस्कर है।

ऐसे लोग उस कोयले के समान होते हैं।

जो सत्पुरुषों के आश्रय में रहकर उनके व्यक्तित्व को ही कलंकित करते हैं। 

जो मनुष्य इनसे दूर रहता है वही जीवन के वास्तविक सुखों को भोगता है।

         !!!!! शुभमस्तु !!!

🙏हर हर महादेव हर...!!
जय माँ अंबे ...!!!🙏🙏

पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 
" Opp. Shri Dhanlakshmi Strits , Marwar Strits, RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
सेल नंबर: . + 91- 7010668409 / + 91- 7598240825 ( तमिलनाडु )
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आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद.. 
नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏

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