सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता, किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद
जय द्वारकाधीश
।।श्री ऋगवेद श्री विष्णु पुराण आधरित जब सुदर्शन चक्र के भय से भागे दुर्वासा।।
श्री ऋगवेद श्री विष्णु पुराण आधरित जब सुदर्शन चक्र के भय से भागे दुर्वासा अम्बरीष बड़े धर्मात्मा राजा थे।
उनके राज्य में बड़ी सुख शांति थी।
धन, वैभव,राज्य, सुख, अधिकार, लोभ, लालच से दूर निश्चिन्त होकर वह अपना अधिकतर समय ईश्वर भक्ति में लगाते थे।
अपनी सारी सम्पदा, राज्य आदि सब कुछ वे भगवान विष्णु की समझते थे।
उन्हीं के नाम पर वह सबकी देखभाल करते और स्वयं भगवान के भक्त रूप में सरल जीवन बिताते।
दान - पुण्य, परोपकार करते हुए उन्हें ऐसा लगता जैसे वह सब कार्य स्वयं भगवान उनके हाथों से सम्पन्न करा रहे है।
उन्हें लगता था कि ये भौतिक सुख - साधना, सामग्री सब एक दिन नष्ट हो जाएगी, पर भगवान की भक्ति, उन पर विश्वास, उन्हें इस लोक, परलोक तथा सर्वत्र उनके साथ रहेगी।
अम्बरीष की ऐसी विरक्ति तथा भक्ति से प्रसन्न हो भगवान श्री कृष्ण ने अपना सुदर्शन चक्र उनकी रक्षा के लिए नियुक्त कर दिया था।
एक बार की बात है कि अम्बरीष ने एक वर्ष तक द्वादशी प्रधान व्रत रखने का नियम बनाया। हर द्वादशी को व्रत करते।
ब्राह्मणों को भोजन कराते तथा दान करते।
उसके पश्चात अन्न, जल ग्रहण कर व्रत का पारण करते।
एक बार उन्होंने वर्ष की अंतिम द्वादशी को व्रत की समाप्ति पर भगवान विष्णु की पूजा की महाभिषेक की विधि से सब प्रकार की सामग्री तथा सम्पत्ति से भगवान का अभिषेक किया तथा ब्राह्मणों, पुरोहितों को भोजन कराया, खूब दान दिया।
ब्राह्मण - देवों की आज्ञा से जब व्रत की समाप्ति पर पारण करने बैठे ही थे तो अचानक महर्षि दुर्वासा आ पधारे।
अम्बरीष ने खड़े होकर आदर से उन्हें बैठाया और भोजन करने के लिए प्रार्थना करने लगे।
दुर्वासा ने कहा -
“ भूख तो बड़ी जोर की लगी है राजन ! "
" पर थोड़ा रुको, मैं नदी में स्नान करके आ रहा हूँ, तब भोजन करूँगा।”
ऐसा कहकर दुर्वासा वहा से चले गए।
वहां स्नान - ध्यान में इतना डूबे कि उन्हें याद ही न रहा कि अम्बरीष बिना उनको भोजन कराएं अपना व्रत का पारण नहीं करेंगे।
बहुत देर होने लगी।
द्वादशी समाप्त होने जा रही थी।
द्वादशी के रहते पारण न करने से व्रत खण्डित होता और उधर दुर्वासा को खिलाएं बिना पारण किया नहीं जा सकता था।
बड़ी विकट स्थिति थी।
अम्बरीष दोनों स्थितियों से परेशान थे।
अंत में ब्राह्मणों ने परामर्श दिया कि द्वादशी समाप्त होने में थोड़ा ही समय शेष है।
पारण द्वादशी तिथि के अंदर ही होना चाहिए।
दुर्वासा अभी नहीं आए।
इसी लिए राजन !
आप केवल जल पीकर पारण कर लीजिये।
जल पीने से भोजन कर लेने का कोई दोष नहीं लगेगा और द्वादशी समाप्त न होने से व्रत खण्डित भी नहीं होगा।
शास्त्रो के विधान के अनुसार ब्राह्मणों की आज्ञा से उन्होंने व्रत का पारण कर लिया।
अभी वह जल पी ही रहे थे कि दुर्वासा आ पहुंचे।
दुर्वासा ने देखा कि मुझ ब्राह्मण को भोजन कराएं बिना अम्बरीष ने जल पीकर व्रत का पारण कर लिया।
बस फिर क्या था, क्रोध में भरकर शाप देने के लिए हाथ उठाया ही था कि अम्बरीष ने विनयपूर्वक कहा -
“ ऋषिवर ! "
" द्वादशी समाप्त होने जा रही थी।
आप तब तक आए नहीं।
वर्ष भर का व्रत खण्डित न हो जाए, इसी लिए ब्राह्मणों ने केवल जल ग्रहण कर पारण की आज्ञा दी थी।
जल के सिवा मैने कुछ भी ग्रहण नहीं किया है।”
पर दुर्वासा क्रोधित हो जाने पर तो किसी की सुनते नहीं थे।
अपनी जटा से एक बाल उखाड़कर जमीन पर पटक कर कहा -
“ लो, मुझे भोजन कराए बिना पारण कर लेने का फल भुगतो।
इस बाल से पैदा होने वाली कृत्या !
अम्बरीष को खा जा।”
बाल के जमीन पर पड़ते ही एक भयंकर आवाज के साथ कृत्या राक्षसी प्रकट होकर अम्बरीष को खाने के लिए दौड़ी।
भक्त पर निरपराध कष्ट आया देख उनकी रक्षा के लिए नियुक्त सुदर्शन चक्र सक्रिय हो उठा।
चमक कर चक्राकार घूमते हुए कृत्या राक्षसी को मारा, फिर दुर्वासा की ओर बढ़ा।
भगवान के सुदर्शन चक्र को अपनी ओर आते देख दुर्वासा घबराकर भागे, पर चक्र उनके पीछे लग गया।
कहां शाप देकर अम्बरीष को मारने चले थे, कहां उनकी अपनी जान पर आ पड़ी।
चक्र से बचने के लिए वे भागने लगे।
जहां कही भी छिपने का प्रयास करते, वहीं चक्र उनका पीछा करता।
भागते - भागते ब्रह्मलोक में ब्रह्मा के पास पहुंचे और चक्र से रक्षा करने के लिए गुहार लगाई।
ब्रह्मा बोले-
“ दुर्वासा !
मैं तो सृष्टि को बनाने वाला हूं।
किसी की मृत्यु से मेरा कोई सम्बन्ध नहीं।
आप शिव के पास जाए, वे महाकाल है।
वह शायद आपकी रक्षा करे।”
दुर्वासा शिव के पास आए और अपनी विपदा सुनाई।
दुर्वासा की दशा सुनकर शिव को हंसी आ गई।
बोले -
“दुर्वासा !
तुम सबको शाप ही देते फिरते हो।
ऋषि होकर क्रोध करते हो।
मैं इस चक्र से तुम्हारी रक्षा नहीं कर सकता, क्योंकि यह विष्णु का चक्र है, इस लिए अच्छा हो कि तुम विष्णु के पास जाओ।
वही चाहे तो अपने चक्र को वापस कर सकते है।”
दुर्वासा की जान पर आ पड़ी थी।
भागे - भागे भगवान विष्णु के पास पहुंचे।
चक्र भी वहां चक्कर लगाता पहुंचा।
दुर्वासा ने विष्णु से अपनी प्राण - रक्षा की प्रार्थना की।
विष्णु बोले -
“दुर्वासा !
तुमने तप से अब तक जितनी भी शक्ति प्राप्त की, वह सब क्रोध तथा शाप देने में नष्ट करते रहे।
तनिक सी बात पर नाराज होकर झट से शाप दे देते हो।
तुम तपस्वी हो।
तपस्वी का गुण - धर्म क्षमा करना होता है।
तुम्हीं विचार करो, अम्बरीष का क्या अपराध था ?
मैं तो अपने भक्तो के ह्रदय में रहता हूं।
अम्बरीष के प्राण पर संकट आया तो मेरे चक्र ने उनकी रक्षा की।
अब यह चक्र तो मेरे हाथ से निकल चुका है इस लिए जिसकी रक्षा के लिए यह तुम्हारे पीछे घूम रहा है, अब उसी की शरण में जाओ।
केवल अम्बरीष ही इसे रोक सकते है।”
दुर्वासा भागते - भागते थक गए।
भगवान विष्णु ने दुर्वासा को स्वयं नहीं बचाया, बल्कि उपाय बताया।
दुर्वासा उल्टे पाँव फिर भागे और आए अम्बरीष के पास।
अम्बरीष अभी भी बिना अन्न ग्रहण किए, उनकी प्रतीक्षा कर रहे थे।
दुर्वासा को देखते ही उनको प्रणाम कर बोले -
“ मुनिदेव !
मैं तब से आपकी प्रतीक्षा में बिना अन्न ग्रहण किए केवल वही जल पिया है, आप कहां चले गए थे ?
दुर्वासा ने चक्र की ओर इशारा करके कहा - "
अम्बरीष !
" पहले इससे मेरी जान बचाओ।
यह मेरे पीछे पड़ा है।
तीनो लोको में मैं भागता फिरा, पर ब्रह्मा, विष्णु, महेश किसी ने मेरी रक्षा नहीं की।
अब तुम ही इस चक्र से मेरे प्राण बचाओ।”
अम्बरीष हाथ जोड़कर बोले -
“ मुनिवर !
आप अपना क्रोध शांत करे और मुझे क्षमा करे।
भगवान विष्णु का यह चक्र भी आपको क्षमा करेगा। ”
जय श्री कृष्ण..! जय श्री कृष्ण..! जय श्री कृष्ण️
🙏🙏🙏【【【【【{{{{ (((( मेरा पोस्ट पर होने वाली ऐडवताइस के ऊपर होने वाली इनकम का 50 % के आसपास का भाग पशु पक्षी ओर जनकल्याण धार्मिक कार्यो में किया जाता है.... जय जय परशुरामजी ))))) }}}}}】】】】】🙏🙏🙏
पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:-
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science)
" Opp. Shri Dhanlakshmi Strits , Marwar Strits, RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
सेल नंबर: . + 91- 7010668409 WHATSAPP नंबर : + 91 7598240825 ( तमिलनाडु )
Skype : astrologer85
Web :http://sarswatijyotish.com
Email: prabhurajyguru@gmail.com
आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद..
नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏