सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता, किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश.....
।। श्रीमद भगवद चिन्तन ।।
भगवान शिव इस लिये देवों के देव हैं ।
क्योंकि उन्होंने काम को भस्म किया है।
अधिकतर देव काम के आधीन हैं पर भगवान शिव राम के आधीन हैं।
उनके जीवन में वासना नहीं उपासना है।
शिव पूर्ण काम हैं ।
तृप्त काम हैं।
काम माने वासना ही नहीं अपितु कामना भी है ।
लेकिन शंकर जी ने तो हर प्रकार के काम, इच्छाओं को नष्ट कर दिया।
शिवजी को कोई लोभ नहीं ।
बस राम दर्शन का ।
राम कथा सुनने का लोभ और राम नाम जपने का लोभ ही उन्हें लगा रहता है।
भगवान शिव बहिर्मुखी नहीं अंतर्मुखी रहते हैं।
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अंतर्मुखी रहने वाला साधक ही ।
शांत,
प्रसन्न चित्त,
परमार्थी ,
सम्मान मुक्त,
क्षमावान और लोक मंगल के शिव संकल्पों को पूर्ण करने की सामर्थ्य रखता है।
आत्म विश्वास::
8 साल का एक बच्चा 1 रूपये का सिक्का मुट्ठी में लेकर एक दुकान पर जाकर पूछने लगा ।
--क्या आपकी दुकान में ईश्वर मिलेंगे?
दुकानदार ने यह बात सुनकर सिक्का नीचे फेंक दिया और बच्चे को निकाल दिया।
बच्चा पास की दुकान में जाकर 1 रूपये का सिक्का लेकर चुपचाप खड़ा रहा!
-- ए लड़के.. 1 रूपये में तुम क्या चाहते हो?
-- मुझे ईश्वर चाहिए।
आपकी दुकान में है?
दूसरे दुकानदार ने भी भगा दिया।
लेकिन, उस अबोध बालक ने हार नहीं मानी।
एक दुकान से दूसरी दुकान, दूसरी से तीसरी, ऐसा करते करते कुल चालीस दुकानों के चक्कर काटने के बाद एक बूढ़े दुकानदार के पास पहुंचा।
उस बूढ़े दुकानदार ने पूछा,
-- तुम ईश्वर को क्यों खरीदना चाहते हो?
क्या करोगे ईश्वर लेकर?
पहली बार एक दुकानदार के मुंह से यह प्रश्न सुनकर बच्चे के चेहरे पर आशा की किरणें लहराईं ৷
लगता है इसी दुकान पर ही ईश्वर मिलेंगे !
बच्चे ने बड़े उत्साह से उत्तर दिया,
----इस दुनिया में मां के अलावा मेरा और कोई नहीं है।
मेरी मां दिनभर काम करके मेरे लिए खाना लाती है।
मेरी मां अब अस्पताल में हैं।
अगर मेरी मां मर गई तो मुझे कौन खिलाएगा ?
डाक्टर ने कहा है कि अब सिर्फ ईश्वर ही तुम्हारी मां को बचा सकते हैं।
क्या आपकी दुकान में ईश्वर मिलेंगे?
-- हां, मिलेंगे...!
कितने पैसे हैं तुम्हारे पास?
-- सिर्फ एक रूपए।
-- कोई दिक्कत नहीं है।
एक रूपए में ही ईश्वर मिल सकते हैं।
दुकानदार बच्चे के हाथ से एक रूपए लेकर उसने पाया कि एक रूपए में एक गिलास पानी के अलावा बेचने के लिए और कुछ भी नहीं है।
इस लिए उस बच्चे को फिल्टर से एक गिलास पानी भरकर दिया और कहा ।
यह पानी पिलाने से ही तुम्हारी मां ठीक हो जाएगी।
अगले दिन कुछ मेडिकल स्पेशलिस्ट उस अस्पताल में गए।
बच्चे की मां का आप्रेशन हुआ और बहुत जल्दी ही वह स्वस्थ हो उठीं।
डिस्चार्ज के कागज़ पर अस्पताल का बिल देखकर उस महिला के होश उड़ गए।
डॉक्टर ने उन्हें आश्वासन देकर कहा, "टेंशन की कोई बात नहीं है।
एक वृद्ध सज्जन ने आपके सारे बिल चुका दिए हैं।
साथ में एक चिट्ठी भी दी है"।
महिला चिट्ठी खोलकर पढ़ने लगी ।
उसमें लिखा था-
"मुझे धन्यवाद देने की कोई आवश्यकता नहीं है।
आपको तो स्वयं ईश्वर ने ही बचाया है ...
मैं तो सिर्फ एक ज़रिया हूं।
यदि आप धन्यवाद देना ही चाहती हैं तो अपने अबोध बच्चे को दीजिए जो सिर्फ एक रूपए लेकर ना समझों की तरह ईश्वर को ढूंढने निकल पड़ा।
उसके मन में यह दृढ़ विश्वास था कि एक मात्र ईश्वर ही आपको बचा सकते है।
विश्वास इसी को ही कहते हैं।
ईश्वर को ढूंढने के लिए करोड़ों रुपए दान करने की ज़रूरत नहीं होती ।
यदि मन में अटूट विश्वास हो तो वे एक रूपए में भी मिल सकते हैं।"
प्रभु की असीम अनुकम्पा हम सभी पर सदैव बनी रहे।
🌹🌹🙏हर हर महादेव हर 🙏🌹🌹
🌹🚩श्रीमद्भगवद्गीता :
अर्जुन के प्रश्नों में से पहले प्रश्न के उत्तर में भगवान् आगे के दो श्लोकों में गुणातीत मनुष्य के लक्षणों का वर्णन करते हैं।
श्रीभगवानुवाच
प्रकाशं च प्रवृत्तिं च मोहमेव च पाण्डव।
न द्वेष्टि सम्प्रवृत्तानि न निवृत्तानि काङ्क्षति॥१४।२२॥
श्रीभगवान् बोले —
हे पाण्डव !
प्रकाश और प्रवृत्ति तथा मोह ( ये सभी ) अच्छी तरह से प्रवृत्त ( स्वभाव ) हो जायँ तो भी गुणातीत मनुष्य इनसे द्वेष नहीं करता और ये सभी निवृत्त ( वापिस लौटना ) हो जायँ तो इनकी इच्छा नहीं करता।
गुणातीत मनुष्य में ‘अनुकूलता बनी रहे, प्रतिकूलता चली जाये’ ऐसी इच्छा नहीं होती।
निर्विकारता का अनुभव होने पर उसको अनुकूलता - प्रतिकूलता का ज्ञान तो होता है....!
पर स्वयं पर उनका असर नहीं पड़ता।
अन्त:करण में वृत्तियाँ बदलती हैं, पर स्वयं उनसे निर्लिप्त रहता है।
साधक पर भी वृत्तियों का असर नहीं पड़ना चाहिये;
क्योंकि गुणातीत मनुष्य साधक का आदर्श होता है....!
साधक उसका अनुयायी होता है।
साधक मात्र के लिये यह आवश्यक है कि वह देह का धर्म अपने में न माने।
वृत्तियाँ अन्त:करण में हैं, अपने में नहीं हैं।
अत: साधक वृत्तियों को न अच्छा माने, न बुरा माने और न अपने में माने।
कारण कि वृत्तियाँ तो आने - जाने वाली हैं....!
पर स्वयं निरन्तर रहने वाला है।
अगर वृत्तियाँ हमारे में होतीं तो जब तक हम रहते....!
तब तक वृत्तियाँ भी रहतीं।
परन्तु यह सबका अनुभव है कि हम तो निरन्तर रहते हैं....!
पर वृत्तियाँ आती - जाती रहती हैं।
वृत्तियों का सम्बन्ध प्रकृति के साथ है और हमारा ( स्वयं का ) सम्बन्ध परमात्मा के साथ है।
इस लिये वृत्तियों के परिवर्तन का अनुभव करने वाला स्वयं एक ही रहता है।
प्रभु के साथ नित्य सम्बन्ध
याद रखो — तुम्हारे अन्दर जो सत्ता, स्फूर्ति, शक्ति, चेतना है, वह सब प्रभु से ही मिली है।
प्रभु ही तुम्हारे जीवन में पुष्टि - तुष्टि, शान्ति - कान्ति, क्षेम - प्रेम, ज्ञान - विज्ञान के रूप अभिव्यक्त हैं।
तुम ऊपर की चीजों को देखते हो...!
इसी लिये सबके मूल, सब के सत्तारूप प्रभु को देख नहीं पा रहे हो।
उधर तुम्हारी दृष्टि ही नहीं है, इसी से तुम्हारे सामने सत्य छिपा है।
तुम किसी भी क्षण दृष्टि को भीतर ले जाकर, अपने विचारों के प्रवाह को प्रभु की ओर मोड़ कर उन्हें जान सकते हो।
🌹🚩जय श्रीकृष्ण
पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:-
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science)
" Opp. Shri Dhanlakshmi Strits , Marwar Strits, RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
सेल नंबर: . + 91- 7010668409
WHATSAPP नंबर : + 91 7598240825 ( तमिलनाडु )
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Email: prabhurajyguru@gmail.com
Web: https://sarswatijyotish.com/
आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद..
नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏