https://www.profitablecpmrate.com/gtfhp9z6u?key=af9a967ab51882fa8e8eec44994969ec 2. आध्यात्मिकता का नशा की संगत भाग 1: 05/26/25

वट सावित्री व्रत :

वट सावित्री व्रत :

 वट सावित्री (अमावस्या) व्रत सोमवार 26 मई विशेष


वट सावित्रि व्रत का महत्व :


जैसा कि इस व्रत के नाम और कथा से ही ज्ञात होता है कि यह पर्व हर परिस्थिति में अपने जीवनसाथी का साथ देने का संदेश देता है। 

इससे ज्ञात होता है कि पतिव्रता स्त्री में इतनी ताकत होती है कि वह यमराज से भी अपने पति के प्राण वापस ला सकती है। 

वहीं सास - ससुर की सेवा और पत्नी धर्म की सीख भी इस पर्व से मिलती है। 

मान्यता है कि इस दिन सौभाग्यवती स्त्रियां अपने पति की लंबी आयु, स्वास्थ्य और उन्नति और संतान प्राप्ति के लिये यह व्रत रखती हैं।




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स्कन्द और भविष्य पुराण अनुसार यह व्रत ज्येष्ठ पूर्णिमा और निर्णयामृतादि अनुसार ज्येष्ठ अमावस्या को किया जाता है। दोनों परम्पराओं में यह व्रत पूर्व ( चतुर्दशी ) विद्धा अमावस्या या पूर्णिमा के दिन किया जाता है।


भारतीय पञ्चाङ्ग अनुसार वट सावित्री अमावस्या की पूजा और व्रत इस वर्ष 26 मई को मनाया जाएगा। इस वर्ष विशेष बात यह है कि वट सावित्री व्रत के दिन वृषभ राशि में सूर्य, चंद्रमा विराजमान रहेंगे। 


वट सावित्री व्रत समय :


ज्योतिष गणना के अनुसार, इस वर्ष यह पर्व 26 मई के दिन सोमवार को कृतिका नक्षत्र और अतिगण्ड योग में पड़ रहा है, जो ज्योतिषीय गणना के अनुसार उत्तम योग है। ज्येष्ठ अमावस्या तिथि का प्रारंभ 26 मई दिन सोमवार को दोपहर 12 बजकर 11 मिनट पर हो रहा है, जो 27 मई को प्रातः 08:31 बजे तक रहेगी।


वट सावित्रि व्रत पूजा विधि :




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सामग्री :


सावित्री-सत्यवान की मूर्ति, 

कच्चा सूत, 

बांस का पंखा, 

लाल कलावा, 

बरगद का फल,

धूप

मिट्टी का दीपक 

घी, 

फल (आम, लीची और अन्य फल)

सत्यवान-सावित्री की मूर्ति,, कपड़े की बनी हुई

बाँस का पंखा

लाल धागा

धूप

मिट्टी का दीपक

घी

फूल

फल( आम, लीची तथा अन्य फल)

कपड़ा – 1.25 मीटर का दो

सिंदूर

इत्र

सुपारी

पान

नारियल

लाल कपड़ा

दूर्वा घास

चावल (अक्षत)

सुहाग का सामान, 

नकद रुपए

पूड़ि‍यां, 

भिगोया हुआ चना, 

स्टील या कांसे की थाली

मिठाई

घर में बना हुआ पकवान

जल से भरा कलश आदि।


पूजा विधि :


वट सावित्रि व्रत में वट यानि बरगद के वृक्ष के साथ-साथ सत्यवान-सावित्रि और यमराज की पूजा की जाती है। 

माना जाता है कि वटवृक्ष में ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों देव वास करते हैं। 

अतः वट वृक्ष के समक्ष बैठकर पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। 

वट सावित्री व्रत के दिन सुहागिन स्त्रियों को प्रातःकाल उठकर स्नान करना चाहिये इसके बाद रेत से भरी एक बांस की टोकरी लें और उसमें ब्रहमदेव की मूर्ति के साथ सावित्री की मूर्ति स्थापित करें। 

इसी प्रकार दूसरी टोकरी में सत्यवान और सावित्री की मूर्तियाँ स्थापित करें दोनों टोकरियों को वट के वृक्ष के नीचे रखे और ब्रहमदेव और सावित्री की मूर्तियों की पूजा करें। 

तत्पश्चात सत्यवान और सावित्री की मूर्तियों की पूजा करे और वट वृक्ष को जल दे वट-वृक्ष की पूजा हेतु जल, फूल, रोली-मौली, कच्चा सूत, भीगा चना, गुड़ इत्यादि चढ़ाएं और जलाभिषेक करे। 




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फिर निम्न श्लोक से सावित्री को अर्घ्य दें :


अवैधव्यं च सौभाग्यं देहि त्वं मम सुव्रते।

पुत्रान्‌ पौत्रांश्च सौख्यं च गृहाणार्घ्यं नमोऽस्तु ते॥ 


इसके बाद निम्न श्लोक से वटवृक्ष की प्रार्थना करें :


यथा शाखाप्रशाखाभिर्वृद्धोऽसि त्वं महीतले।

तथा पुत्रैश्च पौत्रैश्च सम्पन्नं कुरु मा सदा॥

पूजा में जल, मौली, रोली, कच्चा सूत, भिगोया हुआ चना, फूल तथा धूप का प्रयोग करें।


जल से वटवृक्ष को सींचकर उसके तने के चारों ओर कच्चा धागा लपेटकर तीन बार अथवा यथा शक्ति 5,11,21,51, या 108 बार परिक्रमा करें।  

बड़ के पत्तों के गहने पहनकर वट सावित्री की कथा सुनें। 

फिर बाँस के पंखे से सत्यवान-सावित्री को हवा करें। बरगद के पत्ते को अपने बालों में लगायें। 

भीगे हुए चनों का बायना निकालकर, नकद रुपए रखकर सासुजी के चरण-स्पर्श करें। 

यदि सास वहां न हो तो बायना बनाकर उन तक पहुंचाएं। 

वट तथा सावित्री की पूजा के पश्चात प्रतिदिन पान, सिन्दूर तथा कुंमकुंम से सौभाग्यवती स्त्री के पूजन का भी विधान है। यही सौभाग्य पिटारी के नाम से जानी जाती है। 

सौभाग्यवती स्त्रियों का भी पूजन होता है। 

कुछ महिलाएं केवल अमावस्या को एक दिन का ही व्रत रखती हैं अपनी सामर्थ्य के हिसाब से पूजा समाप्ति पर ब्राह्मणों को वस्त्र तथा फल आदि वस्तुएं बांस के पात्र में रखकर दान करें। 

घर में आकर पूजा वाले पंखें से अपने पति को हवा करें तथा उनका आशीर्वाद लें। 


अंत में निम्न संकल्प लेकर उपवास रखें।


मम वैधव्यादिसकलदोषपरिहारार्थं ब्रह्मसावित्रीप्रीत्यर्थं

सत्यवत्सावित्रीप्रीत्यर्थं च वटसावित्रीव्रतमहं करिष्ये।


उसके बाद शाम के वक्त मीठा भोजन करे।




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वट सावित्रि व्रत की कथा :


वट सावित्रि व्रत की यह कथा सत्यवान-सावित्रि के नाम से उत्तर भारत में विशेष रूप से प्रचलित हैं। 

कथा के अनुसार एक समय की बात है कि मद्रदेश में अश्वपति नाम के धर्मात्मा राजा का राज था। 

उनकी कोई भी संतान नहीं थी। 

राजा ने संतान हेतु यज्ञ करवाया। 

कुछ समय बाद उन्हें एक कन्या की प्राप्ति हुई जिसका नाम उन्होंने सावित्री रखा। 

विवाह योग्य होने पर सावित्री के लिए द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान को पतिरूप में वरण किया। 

सत्यवान वैसे तो राजा का पुत्र था लेकिन उनका राज-पाट छिन गया था और अब वह बहुत ही द्ररिद्रता का जीवन जी रहे थे। 

उसके माता-पिता की भी आंखो की रोशनी चली गई थी। 

सत्यवान जंगल से लकड़ियां काटकर लाता और उन्हें बेचकर जैसे-तैसे अपना गुजारा कर रहा था। 

जब सावित्रि और सत्यवान के विवाह की बात चली तो नारद मुनि ने सावित्रि के पिता राजा अश्वपति को बताया कि सत्यवान अल्पायु हैं और विवाह के एक वर्ष बाद ही उनकी मृत्यु हो जाएगी। 

हालांकि राजा अश्वपति सत्यवान की गरीबी को देखकर पहले ही चिंतित थे और सावित्रि को समझाने की कोशिश में लगे थे। 

नारद की बात ने उन्हें और चिंता में डाल दिया लेकिन सावित्रि ने एक न सुनी और अपने निर्णय पर अडिग रही। 

अंततः सावित्री और सत्यवान का विवाह हो गया। 

सावित्री सास-ससुर और पति की सेवा में लगी रही। 

नारद मुनि ने सत्यवान की मृत्यु का जो दिन बताया था, उसी दिन सावित्री भी सत्यवान के साथ वन को चली गई। 

वन में सत्यवान लकड़ी काटने के लिए जैसे ही पेड़ पर चढ़ने लगा, उसके सिर में असहनीय पीड़ा होने लगी और वह सावित्री की गोद में सिर रखकर लेट गया। 

कुछ देर बाद उनके समक्ष अनेक दूतों के साथ स्वयं यमराज खड़े हुए थे। 

जब यमराज सत्यवान के जीवात्मा को लेकर दक्षिण दिशा की ओर चलने लगे, पतिव्रता सावित्री भी उनके पीछे चलने लगी। 

आगे जाकर यमराज ने सावित्री से कहा, ‘हे पतिव्रता नारी! जहां तक मनुष्य साथ दे सकता है, तुमने अपने पति का साथ दे दिया। 

अब तुम लौट जाओ’ इस पर सावित्री ने कहा, ‘जहां तक मेरे पति जाएंगे, वहां तक मुझे जाना चाहिए। 

यही सनातन सत्य है’ यमराज सावित्री की वाणी सुनकर प्रसन्न हुए और उसे वर मांगने को कहा। 

सावित्री ने कहा, ‘मेरे सास-ससुर अंधे हैं, उन्हें नेत्र-ज्योति दें’ यमराज ने ‘तथास्तु’ कहकर उसे लौट जाने को कहा और आगे बढ़ने लगे किंतु सावित्री यम के पीछे ही चलती रही यमराज ने प्रसन्न होकर पुन: वर मांगने को कहा। 

सावित्री ने वर मांगा, ‘मेरे ससुर का खोया हुआ राज्य उन्हें वापस मिल जाए’ यमराज ने ‘तथास्तु’ कहकर पुनः उसे लौट जाने को कहा, परंतु सावित्री अपनी बात पर अटल रही और वापस नहीं गयी। 

सावित्री की पति भक्ति देखकर यमराज पिघल गए और उन्होंने सावित्री से एक और वर मांगने के लिए कहा तब सावित्री ने वर मांगा, ‘मैं सत्यवान के सौ पुत्रों की मां बनना चाहती हूं। 

कृपा कर आप मुझे यह वरदान दें’ सावित्री की पति-भक्ति से प्रसन्न हो इस अंतिम वरदान को देते हुए यमराज ने सत्यवान की जीवात्मा को पाश से मुक्त कर दिया और अदृश्य हो गए। 

सावित्री जब उसी वट वृक्ष के पास आई तो उसने पाया कि वट वृक्ष के नीचे पड़े सत्यवान के मृत शरीर में जीव का संचार हो रहा है। 

कुछ देर में सत्यवान उठकर बैठ गया। 

उधर सत्यवान के माता-पिता की आंखें भी ठीक हो गईं और उनका खोया हुआ राज्य भी वापस मिल गया।




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वट सावित्री व्रत :


सनातन धर्म में व्रत और त्योहारों का विशेष स्थान है, जो पारिवारिक जीवन में भी संतुलन और समृद्धि लाते हैं। 

इन्हीं विशेष व्रतों में से एक है वट सावित्री व्रत, जिसे विवाहित महिलाएं पूरे श्रद्धा-भाव से अपने पति की लंबी उम्र और दांपत्य जीवन की सुख-शांति के लिए करती हैं।

हिंदू पंचांग के अनुसार, यह व्रत ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को मनाया जाता है। 

इस बार यह पर्व 26 मई को पड़ रहा है। 

व्रती महिलाएं इस दिन विशेष रूप से वट वृक्ष ( बरगद के पेड़ ) की पूजा करती हैं, क्योंकि इसे अखंड सौभाग्य और पवित्रता का प्रतीक माना जाता है। 

लेकिन कई बार घर के आस - पास वट वृक्ष मौजूद नहीं होता है।


वट सावित्री व्रत की तिथि :


हिंदू पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ महीने की अमावस्या तिथि 26 मई को दोपहर 12 बजकर 11 मिनट पर शुरू होगी। 

वहीं, इसका समापन अगले दिन यानी 26 मई को सुबह 08 बजकर 31 मिनट पर होगा। 

सनातन धर्म में उदया तिथि का महत्व है। 

ऐसे में वट सावित्री व्रत 26 मई को रखा जाएगा।


पूजा विधि :


सुबह जल्दी उठें स्नान करें और पूजा घर की सफाई करें।

इस व्रत में बरगद के पेड़ का विशेष महत्व होता है।

बरगद के पेड़ के नीचे साफ-सफाई करें और मंडप बनाएं।

वट वृक्ष के नीचे सफाई करें और पूजा स्थल तैयार करें।

सावित्री और सत्यवान की पूजा करें, और वट वृक्ष को जल चढ़ाएं।

लाल धागे से वट वृक्ष को बांधें और 7 बार परिक्रमा करें।

व्रत कथा का पाठ करें या सुनें और अंत में आरती करें।

गरीबों और ब्राह्मणों को दान दें और उनसे आशीर्वाद लें।

व्रत का पारण अगले दिन सूर्योदय के बाद करें।


वट वृक्ष की पूजा का महत्व :


पौराणिक कथाओं के अनुसार सावित्री ने वट वृक्ष के नीचे बैठकर कठिन तपस्या से अपने पति सत्यवान को यमराज से पुनः जीवनदान दिलवाया था। 

तभी से इस वृक्ष की पूजा करने की परंपरा चली आ रही है। 

व्रत तभी पूर्ण माना जाता है जब इस वृक्ष की पूजा विधिपूर्वक की जाए।


बरगद का पेड़ पास में न हो तो क्या करें ?


आज के समय में खासकर शहरी क्षेत्रों में वट वृक्ष हर जगह आसानी से उपलब्ध नहीं होता। 

यदि आपके आस - पास बरगद का पेड़ नहीं है, तो आप एक दिन पहले किसी परिचित से बरगद की एक टहनी मंगवा सकती हैं। 

पूजा के दिन उस टहनी को स्वच्छ स्थान पर स्थापित कर विधिपूर्वक पूजन किया जा सकता है। 

ऐसा करने से भी व्रत का पूरा फल प्राप्त होता है। पंडारामा प्रभु राज्यगुरु

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