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जय द्वारकाधीश
।। श्री रामचरित्र मानस रामायण की सर्वश्रेष्ठ दस चौपाई अर्थ सहित की सिद्ध चौपाई ।।
1. मंगल भवन अमंगल हारी ।
द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी॥ 1॥
भावार्थ:-
जो मंगल करने वाले और अमंगल को दूर करने वाले हैं ।
वो दशरथ नंदन श्री राम हैं वो मुझपर अपनी कृपा करें।॥ 1॥
॥जय श्री राम॥
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2. होइहि सोइ जो राम रचि राखा।
को करि तर्क बढ़ावै साखा॥ 2॥
भावार्थ:-
जो भगवान श्रीराम ने पहले से ही रच रखा है ।
वही होगा।
तुम्हारे कुछ करने से वो बदल नहीं सकता।। 2॥
॥जय श्री राम॥
3. हो धीरज धरम मित्र अरु नारी।
आपद काल परखिये चारी॥ 3॥
भावार्थ : -
बुरे समय में यह चार चीजे हमेशा परखी जाती हैं, धैर्य, मित्र, पत्नी और धर्म। ॥ 3॥
॥जय श्री राम॥
4. जेहिके जेहि पर सत्य सनेहू ।
सो तेहि मिलय न कछु सन्देहू॥ 4॥
भावार्थ : -
सत्य को कोई छिपा नहीं सकता, सत्य का सूर्य उदय जरूर होता है। ॥ 4॥
॥जय श्री राम॥
5. हो, जाकी रही भावना जैसी ।
प्रभु मूरति देखी तिन तैसी॥ 5॥
भावार्थ : -
जिनकी जैसी प्रभु के लिए भावना है ।
उन्हें प्रभु उसकी रूप में दिखाई देते हैं। ॥ 5॥
॥जय श्री राम॥
6. रघुकुल रीत सदा चली आई ।
प्राण जाए पर वचन न जाई॥ 6॥
भावार्थ : -
रघुकुल परम्परा में हमेशा वचनों को प्राणों से ज्यादा महत्त्व दिया गया है। ॥6
॥जय श्री राम॥
7. हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता ।
कहहि सुनहि बहुविधि सब संता॥ 7॥
भावार्थ : -
प्रभु श्रीराम भी अनंत हो और उनकी कीर्ति भी अपरम्पार है ।
इसका कोई अंत नहीं है।
बहुत सारे संतो ने प्रभु की कीर्ति का अलग - अलग वर्णन किया है। ॥ 7॥
॥जय श्री राम॥
रामायण की ज्ञानवर्धक चौपाई
सुरूचि सुबास सरस अनुरागा॥
अमिअ मूरिमय चूरन चारु।
समन सकल भव रूज परिवारू॥ 8॥
भावार्थ : -
मैं गुरु महाराज के चरण कमलों की रज की वन्दना करता हूं ।
जो सुरुचि ( सुंदर स्वाद ) सुगंध तथा अनुराग रूपी रस से पूर्ण है।
वह अमर मुल ( संजीवनी जड़ी ) का सुंदर चूर्ण है ।
जो सम्पूर्ण भव रोगों के परिवार को नाश करने वाला है। ॥ 8॥
॥जय श्री राम॥
9. सुकृति संभु तन बिमल बिभूती।
मंजुल मंगल मोद प्रसूती॥
जन मन मंजु मुकुर मल हरनी।
किएँ तिलक गुन गन बस करनी॥ 9॥
भावार्थ : -
वह रज सुकृति ( पुण्यवान् पुरुष ) रूपी शिवजी के शरीर पर सुशोभित निर्मल विभूति है और सुंदर कल्याण और आनन्द की जननी है ।
भक्त के मन रूपी सुंदर दर्पण के मैल को दूर करने वाली और तिलक करने से गुणों के समूह को वश में करने वाली है। ॥ 9॥
॥जय श्री राम॥
10. श्री गुर पद नख मनि गन जोति।
सुमिरत दिब्य दृष्टि हियँ होती॥
दलन मोह तन सो सप्रकासू।
बड़े भाग उर आवइ जासू॥ 10॥
भावार्थ : -
श्री गुरु महाराज के चरण - नखों की ज्योति मणियों के प्रकाश के समान है ।
जिसके स्मरण करते ही हृदय में दिव्य दृष्टि उत्पन्न हो जाती है।
वह प्रकाश अज्ञान रूपी अंधकार का नाश करने वाला है ।
वह जिसके हृदय में आ जाता है ।
उसके बड़े भाग्य हैं। ॥ 10॥
॥जय श्री राम॥
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हनुमानजी की कितनी परिक्रमा करें.?
कलयुग में हनुमानजी की भक्ति सभी मनोकामनाओं को शीघ्र पूर्ण करने वाली मानी गई है।
इसी वजह से आज इनके भक्तों की संख्या काफी अधिक है।
ऐसा माना जाता है हनुमानजी बहुत जल्द अपने भक्तों के सभी दुखों को दूर करके सुख - समृद्धि प्रदान करते हैं।
हनुमान जी के पूजन में एक महत्वपूर्ण क्रिया है परिक्रमा/
किसी भी भगवान के पूजन कर्म में एक महत्वपूण क्रिया है प्रतिमा की परिक्रमा।
वैसे तो सामान्यत: सभी देवी - देवताओं की एक ही परिक्रमा की जाती है परंतु शास्त्रों के अनुसार अलग - अलग देवी - देवताओं के लिए परिक्रमा की अलग संख्या निर्धारित की गई है/
धर्म शास्त्रों के अनुसार आरती और पूजा - अर्चना आदि के बाद भगवान की मूर्ति के आसपास सकारात्मक ऊर्जा एकत्रित हो जाती है, इस ऊर्जा को ग्रहण करने के लिए परिक्रमा की जाती है।
सभी देवी - देवताओं की परिक्रमा की अलग - अलग संख्या है।
वेद - पुराण के अनुसार श्रीराम के परम भक्त पवनपुत्र श्री हनुमानजी की तीन परिक्रमा करने का विधान है।
भक्तों को इनकी तीन परिक्रमा ही करनी चाहिए//
☀परिक्रमा के संबंध में नियम-:
परिक्रमा शुरु करने के पश्चात बीच में रुकना नहीं चाहिए।
साथ परिक्रमा वहीं खत्म करें जहां से शुरु की गई थी।
ध्यान रखें कि परिक्रमा बीच में रोकने से वह पूर्ण नही मानी जाती।
परिक्रमा के दौरान किसी से बातचीत कतई ना करें।
जिस देवता की परिक्रमा कर रहे हैं, उनका ही ध्यान करें व उनके मंत्रों का जप करें।
इस प्रकार परिक्रमा करने से पूर्ण लाभ की प्राप्ती होती है//
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|| चित्रकूट धाम की महिमा ||
भारतीय साहित्य और पवित्र ग्रन्थों में प्रख्यात, वनवास काल में साढ़े ग्यारह वर्षों तक भगवान राम, माता सीता तथा श्रीराम के अनुज लक्ष्मण की निवास स्थली रहा चित्रकूट, मानव हृदय को शुद्ध करने और प्रकृति के आकर्षण से पर्यटकों को आकर्षित करने में सक्षम है।
चित्रकूट एक प्राकृतिक स्थान है जो प्राकृतिक दृश्यों के साथ-साथ अपने आध्यात्मिक महत्त्व के लिए प्रसिद्ध है।
एक पर्यटक यहाँ के खूबसूरत झरने, चंचल युवा हिरण और नाचते मोर को देखकर रोमांचित होता है, तो एक तीर्थयात्री पयस्वनी / मन्दाकिनी में डुबकी लेकर और कामदगिरी की धूल में तल्लीन होकर अभिभूत होता है।
प्राचीन काल से चित्रकूट क्षेत्र ब्रह्मांडीय चेतना के लिए प्रेरणा का एक जीवंत केंद्र रहा है।
हजारों भिक्षुओं, साधुओं और संतों ने यहाँ उच्च आध्यात्मिक स्थिति प्राप्त की है और अपनी तपस्या, साधना, योग, तपस्या और विभिन्न कठिन आध्यात्मिक प्रयासों के माध्यम से विश्व पर लाभदायक प्रभाव डाला है।
प्रकृति ने इस क्षेत्र को बहुत उदारतापूर्वक अपने सभी उपहार प्रदान किये हैं, जो इसे दुनिया भर से तीर्थयात्रियों और पर्यटकों को आकर्षित करने में सक्षम बनाता है।
अत्री, अनुसूया, दत्तात्रेय, महर्षि मार्कंडेय, सरभंग, सुतीक्ष्ण और विभिन्न अन्य ऋषि, संत,भक्त और विचारक सभी ने इस क्षेत्र में अपनी आयु व्यतीत की और जानकारों के अनुसार ऐसे अनेक लोग आज भी यहाँ की विभिन्न गुफाओं और अन्य क्षेत्रों में तपस्यारत हैं।
इस प्रकार इस क्षेत्र की एक आध्यात्मिक सुगंध है, जो पूरे वातावरण में व्याप्त है और यहाँ के प्रत्येक दिन को आध्यात्मिक रूप से जीवंत बनाती है।
|| जय श्री राम जय हनुमान ||
|| चूडामणि का अदभुत रहस्य ||
आज हम रामायण में वर्णित चूडामणि की
कथा बता रहे है।
इस कथा में आप जानेंगे की-
1–कहाँ से आई चूडा मणि ?
2–किसने दी सीता जी को चूडामणि ?
3- लंका में हनुमानजी को सीता जी ने चूडामणि दी ?
4–कैसे हुआ वैष्णो माता का जन्म?
चौपाई -मातु मोहि दीजे कछु चीन्हा।
जैसे रघुनायक मोहि दीन्हा।।
चौ–चूडामनि उतारि तब दयऊ।
हरष समेत पवनसुत लयऊ।।
चूडामणि कहाँ से आई?
सागर मंथन से चौदह रत्न निकले उसी
समय सागर से दो देवियों का जन्म हुआ –
1– रत्नाकर नन्दिनी
2– महालक्ष्मी
रत्नाकर नन्दिनी ने अपना तन मन श्री हरि ( विष्णु जी ) को देखते ही समर्पित कर दिया !
जब उनसे मिलने के लिए आगे बढीं तो सागर ने अपनी पुत्री को विश्वकर्मा द्वारा निर्मित दिव्य रत्न जटित चूडा मणि प्रदान की ( जो सुर पूजित मणि से बनी) थी।
इतने में महालक्षमी का प्रादुर्भाव हो गया और लक्षमी जी ने विष्णु जी को देखा और मन ही मन वरण कर लिया यह देखकर रत्नाकर नन्दिनी मन ही मन अकुलाकर रह गईं सब के मन की बात जानने वाले श्रीहरि रत्नाकर नन्दिनी के पास पहुँचे और धीरे से बोले....!
मैं तुम्हारा भाव जानता हूँ....!
पृथ्वी को भार - निवृत करने के लिए जब – जब मैं अवतार ग्रहण करूँगा , तब - तब तुम मेरी संहारिणी शक्ति के रूप मे धरती पे अवतार लोगी.....!
सम्पूर्ण रूप से तुम्हे कलियुग मे श्री कल्कि रूप में अंगीकार करूँगा अभी सतयुग है तुम त्रेता, द्वापर में, त्रिकूट शिखरपर, वैष्णवी नाम से अपने अर्चकों की मनोकामना की पूर्ति करती हुई तपस्या करो।
तपस्या के लिए बिदा होते हुए रत्नाकर नन्दिनी ने अपने केश पास से चूडामणि निकाल कर निशानी के तौर पर श्री विष्णु जी को दे दिया वहीं पर साथ में इन्द्र देव खडे थे.....!
इन्द्र चूडा मणि पाने के लिए लालायित हो गये, विष्णु जी ने वो चूडा मणि इन्द्र देव को दे दिया, इन्द्र देव ने उसे इन्द्राणी के जूडे में स्थापित कर दिया।
शम्बरासुर नाम का एक असुर हुआ जिसने स्वर्ग पर चढाई कर दी इन्द्र और सारे देवता युद्ध में उससे हार के छुप गये कुछ दिन बाद इन्द्र देव अयोध्या राजा दशरथ के पास पहुँचे सहायता पाने के लिए इन्द्र की ओर से राजा दशरथ कैकेई के साथ शम्बरासुर से युद्ध करने के लिए स्वर्ग आये और युद्ध में शम्बरासुर दशरथ के हाथों मारा गया।
युद्ध जीतने की खुशी में इन्द्र देव तथा इन्द्राणी ने दशरथ तथा कैकेई का भव्य स्वागत किया और उपहार भेंट किये।
इन्द्र देव ने दशरथ जी को स्वर्ग गंगा मन्दाकिनी के दिव्य हंसों के चार पंख प्रदान किये।
इन्द्राणी ने कैकेई को वही दिव्य चूडामणि भेंट की और वरदान दिया जिस नारी के केशपास में ये चूडामणि रहेगी उसका सौभाग्य अक्षत – अक्षय तथा अखन्ड रहेगा ,और जिस राज्य में वो नारी रहे गी उस राज्य को कोई भी शत्रु पराजित नही कर पायेगा।
उपहार प्राप्त कर राजा दशरथ और कैकेई अयोध्या वापस आ गये।
रानी सुमित्रा के अदभुत प्रेम को देख कर कैकेई ने वह चूडामणि सुमित्रा को भेंट कर दिया।
इस चूडामणि की समानता विश्वभर के किसी भी आभूषण से नही हो सकती।
जब श्री राम जी का व्याह माता सीता के साथ सम्पन्न हुआ ।
सीता जी को व्याह कर श्री राम जी अयोध्या धाम आये सारे रीति - रिवाज सम्पन्न हुए।
तीनों माताओं ने मुह दिखाई की प्रथा निभाई।
सर्व प्रथम रानी सुमित्रा ने मुँह दिखाई में सीता जी को वही चूडामणि प्रदान कर दी।
कैकेई ने सीता जी को मुँह दिखाई में कनक भवन प्रदान किया।
अंत में कौशिल्या जी ने सीता जी को मुँह दिखाई में प्रभु श्री राम जी का हाथ सीता जी के हाथ में सौंप दिया।
संसार में इससे बडी मुँह दिखाई और क्या होगी।
जनक जीने सीता जी का हाथ राम को सौंपा और कौशिल्या जीने राम का हाथ सीता जी को सौंप दिया।
राम की महिमा राम ही जाने हम जैसे तुछ दीन हीन अग्यानी व्यक्ति कौशिल्या की सीता राम के प्रति ममता का बखान नही कर सकते।
सीताहरण के पश्चात माता का पता लगाने के लिए जब हनुमान जी लंका पहुँचते हैं हनुमान जी की भेंट अशोक वाटिका में सीता जी से होती है।
हनुमान जी ने प्रभु की दी हुई मुद्रिका सीतामाता को देते हैं और कहते हैं –
मातु मोहि दीजे कछु चीन्हा
जैसे रघुनायक मोहि दीन्हा।
चूडामणि उतारि तब दयऊ
हरष समेत पवन सुत लयऊ।
सीता जी ने वही चूडा मणि उतार कर हनुमान जी को दे दिया,यह सोंच कर यदि मेरे साथ ये चूडामणि रहेगी तो रावण का विनाश होना सम्भव नही है।
हनुमान जी लंका से वापस आकर वो चूडामणि भगवान श्री राम को दे कर माताजी के वियोग का हाल बताया।
|| जय श्री राम जय हनुमान ||
★★
!!!!! शुभमस्तु !!!
🙏हर हर महादेव हर...!!
जय माँ अंबे ...!!!🙏🙏
पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:-
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science)
" Opp. Shri Dhanlakshmi Strits , Marwar Strits, RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
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जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏