https://www.profitablecpmrate.com/gtfhp9z6u?key=af9a967ab51882fa8e8eec44994969ec 2. आध्यात्मिकता का नशा की संगत भाग 1: 12/25/22

।। क्या शास्त्रों के मत अनुशार व्यासपीठ पर आसीन होने वाले कथावाचकों का आज कल का लक्षण सही हे ? ।।

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

।। क्या शास्त्रों के मत अनुशार व्यासपीठ पर आसीन होने वाले कथावाचकों का आज कल का लक्षण सही हे ? ।। 


आप शास्त्रों को पढ़ लेंगे ।


रट लेंगे ।

कंठस्थ कर लेंगे ।

बड़े बड़े आयोजन भी करवा लेंगे ।
उसका पाठ करवाकर , 24 घण्टे में ही , श्री शिव महापुराण ,श्रीमद देवी भागवत , श्रीमद रामचरितमानस और एक सप्ताह में श्रीमद भागवद का पाठ तक करवा लेंगे ।

शट शास्त्री बन जायेंगे , वेदपाठी बन जाएँगे 
लेकिन .......!

शास्त्रों को समझने की बुद्धि कहाँ से लायेंगे ? 

शास्त्रों के शब्दों के अंदर व्याप्त कल्याणपरक अर्थों , गूढ़ रहस्यों, छिपे ज्ञान और सार को समझने और आत्मसात करने हेतु वह बुद्धि , विवेक और समझ कहाँ से लायेंगे ??? 

प्रधानमंत्री की कुर्सी घर पर बनवा लेंगे।

प्रधानमंत्री की तरह भाषण और अभिनय तो कर लेंगे ।

परन्तु प्रधानमंत्री की शक्तियाँ ।
Power और authority कहाँ से लायेंगे ??? 

आद्य जगद्गुरु मूल "आचार्य शंकर" की तरह वस्त्र धारण कर दंड लेकर उन्हीं का नाम "शंकराचार्य" पीछे लगाकर उन्हीं की तरह दिखने तो लग जायेंगे ।

परन्तु आचार्य शंकर की तरह अपरिमित ज्ञान , ब्रह्मतेज , वैराग्य और समस्त शास्त्रों के एकीकरण कर उसके मूल अर्थ को प्रतिपादित करने का ज्ञान और सामर्थ्य कहाँ से लायेंगे ???

पौंड्रक की तरह श्रीकृष्ण का वेश धारण तो कर लेंगे ।

पर श्रीकृष्ण की तरह अनुपम रूप लावण्य माधुरी , परमहंसों के चित्त को बरबस   चुरा लेने वाला गुण , सुदर्शन चक्र धारण करने की शक्ति , समस्त विश्व को नचा देने वाली शक्ति , वह ऐश्वर्य , वह ज्ञान , वह पराक्रम कहाँ से लायेंगे ??? 

भागवत कथा कहने के लिए व्यासनन्दन परमहंस शुकदेव जैसे पुस्तकों से कथा वाचन कर लेंगे और परीक्षित बनकर कथा सुन भी लेंगे ।

परन्तु  परमहंस शुकदेव जैसा ज्ञान , रस का आस्वादन कर परीक्षित बने श्रोताओं का उद्धार भला कैसे कर पायेंगे ? 



और परीक्षित की तरह श्रोता उस स्थिति पर पहुँचकर उन सब गूढ बातों को कैसे समझ पायेंगे ??  

बस कहानी किस्सा सुनना भागवद ग्रहण करना नहीं होता । 

24 घण्टे की सीमा लगाकर बड़े बड़े लाउडस्पीकर पर श्री शिव महापुराण, श्री श्रीमद भागवत , श्रीमद् देवी भागवत या श्रीमद् रामचरितमानस के शब्दों को जोर जोर जल्दी जल्दी गाकर पूरा तो कर लेंगे ।

पर गोस्वामी जी ने जीव कल्याणार्थ जिस ग्रंथ की रचना की है ।

उसके भाव और सारज्ञान को कैसे आत्मसात कर पायेंगे ??? 

वेदमन्त्रों को रटते हुए हाथ ऊपर नीचे कर उदात्त अनुदात्त के अनुसार उच्च स्वर से पाठ तो कर सकते हैं ।

लेकिन वेदमन्त्रों के कल्याण करने हेतु जो उद्देश्य है।

उसे कैसे प्राप्त कर पायेंगे ??? 

एक एक घण्टे बड़ी बड़ी लाइन में लगकर एक गोल से पत्थर पर एक लोटा जल डाल कर या दूध तो चढ़ा कर उसको अभिषेक का नाम तो दे देंगे ।

पर वह गोलाकार पत्थर क्या है।

उस पर दूध क्यों डाल जाता है ।

उसका आकार ऐसा क्यों है ।

उसकी समझ आप कहाँ से ला पायेंगे ??? 

बड़ी सी थाली में बड़े से कटोरे में घी डालकर उसको जलाकर मूर्ति को ऊपर नीचे घुमाकर उसे आरती नाम देकर इतिश्री तो कर लेंगे ।

परन्तु यह क्यों किया जाता है।

इसका उद्देश्य क्या है ।

इसकी समझ कहाँ से ला पायेंगे ??? 

बड़े बड़े जटा धारण कर , भस्म रमाकर , त्रिपुंड लगाकर , नग्न रहकर , न नहाकर , अपने आप को साधु तो दिखा सकते हैं ।


लेकिन परमहंसिय और अवधूत अवस्था , वह तप , वह निरन्तर भगवान में निमग्न होने के कारण बाह्य आवरण और परिवेश भुला देने वाली स्थिति , मान अपमान से परे , जगत को भ्रम और स्वप्न समझ लेने वाली स्थिति कहाँ से लायेंगे ??? 

बस इसी लिए इन सब तत्वों को समझाने हेतु और इनके निहितार्थ मूल तत्व को समझाने हेतु किसी तत्ववेत्ता महापुरुष की आवश्यकता पड़ती है ।

जो इन कथा कथानकों , शास्त्रों के शब्दों के अंदर छिपे गूढ़ अर्थों और भावार्थों को सही सही आपको समझा सके जिसको समझ कर आप निवृत्ति मार्ग पर आरूढ़ होकर अपना कल्याण कर सकें !!! 

व्यासपीठ के शास्त्रोक मत -

भगवत्कथा को वाचने वाले वक्ताओं के लिए शास्त्र ने कुछ अर्हता अथवा योग्यता निर्धारित की है।

वक्ताओं के क्या लक्षण होने चाहिऐ ।

कैसे पुरूष का वक्ता के रूप मे वरण करना चाहिऐ।

शास्त्रों में इसका विशद विवेचन हुआ है।

यह सभी को सम्यक रूपेण विदित होना चाहिए ।

ताकि भगवान् की कथा और प्रवचन के नाम पर छद्मवेशधारी इन कालनेमियों की पहचान हो सकें ।

जो कथा व धर्म के नाम पर भोले - भाले श्रद्धालु हिन्दुओं को लूटकर जगत् की व्यथा में फंसाकर पतन के गर्त में धकेल देते हैं।

ऐसे पाखण्डियों की अत्यन्त भर्त्सना की गई है ।

और ऐसे वैडालव्रतिक दुष्टों का वाणी मात्र से भी सम्मान नही करने को कहा गया है-

वाङ्मात्रेणापि नार्चयेत्।

और निःस्पृह भगवद्भक्त पुराणवेत्ता को महान् गुरू बताया गया है।

गुरवः सन्ति लोकस्य जन्मतो गुणतश्च ये।
  तेषामपि च सर्वेषां पुराणज्ञः परो गुरुः।।

नीचबुद्धिं न कुर्वीत् पुराणज्ञे कदाचन।
 यस्यवक्त्रोद्गता वाणी कामधेनु शरीरिणाम्।।
            
कुछ पौराणिक वचनों को यहाँ संग्रहीत किया गया है ।

सत्यता से परिचित होईऐ।-

विरक्तो वैष्णवो विप्र वेदशास्त्र विशुद्धिकृत्।
 दृष्टान्तकुशलो धीरो वक्ता,कार्योऽतिनिःस्पृहः।।

श्रीपद्मपुराणे उत्तरखण्डे  
   (श्रीमद्भागवतमहात्म्ये6/20)

विरक्त, वैष्णव, वेद शास्त्र के ज्ञाता, जन्मना ब्राह्मण, विशुद्ध धैर्यशाली और दृष्टान्त देने में कुशल व्यक्ति को ही वक्ता के रूप में वर्णित करना चाहिऐ।

अनेकधर्मविभ्रान्ताः स्त्रैणाःपाखण्डवादिनः।
शुकशास्त्रकथोच्चारे त्याज्यास्ते यदि पण्डिताः।।
           (श्रीपद्मपु•उ•श्रीमद्भा•मा6/22)

जो अनेक मत - मतान्तरों से विभ्रान्त स्त्रैण्य, पाखण्डी हो।

उसे भागवत कथा में नियुक्त नही करना चाहिऐ।

चाहे वह विद्वान् ही क्यों न हो।



शुचिशीलान्विताचारःशुक्लवासा जितेन्द्रियः।  
संस्कृतःसर्वशास्त्रज्ञःश्रद्दधानोऽनसूयकः।।

रूपवान सुभगो दान्तः सत्यवादी जितेन्द्रियः।
दानमानगृहीतश्च कार्यो भवति वाचकः।।

(हरिवंशपुराण भविष्यपर्वणि145/19,20)

जो बाहर - भीतर से पवित्र।

विद्वान सदाचारी।

शुद्धवस्त्र धारण करने वाला।

जितेन्द्रिय ।

संस्कार सम्पन्न ।

सम्पूर्ण शास्त्रों का ज्ञाता श्रद्धालु ।

दोषदृष्टि से रहित रूपवान् ( सकलाङ्ग )।

सौभाग्यशाली ।

मन को वश में रखने वाला सत्यवादी और जितेन्द्रिय हो।

ऐसे विद्वान् पुरूष को दान और मान से अनुगृहित करके ।

कथा वाचक बनाना चाहिऐ।

कथावाचक जन्म,विद्या और संस्कार तीनों से संस्कृत ( विशुद्ध ) ।

सदाचार परायण, शुद्ध उच्चारण वाला, क्रोध विहीन और वाद - विवाद से रहित होना चाहिऐ।

दान्तं यशस्विनं कान्तं शुचिं स्पष्टाक्षरब्रुवम्। त्रिशुक्लमाचारपरमक्रोधमवादिनम्।।

(श्रीपद्मपुराणेहरिवंशमहात्म्ये2/14)

जो अनेक मत - मतान्तरों से दिग्भ्रमित हों ।
स्त्रैण्य, पाखण्ड वादी हो उसे धर्ममयी हरि कथा का वक्ता कदापि न बनाऐं चाहे वह कितना ही बड़ा विद्वान् हों।
 
अनेकधर्मविभ्रान्ताः स्त्रैणाःपाखण्डवादिनः।
शुकशास्त्रकथोच्चारे त्याज्यास्ते यदि पण्डिताः।।

     (श्रीपद्मपु•हरिवंशमाहात्म्ये2/17)

पुराणवेत्ता द्विज जब व्यासासन पर आरूढ़ हो जाऐ तब से कथा समाप्ति पर्यन्त किसी भी दूसरे को नमस्कार न करें।

स्त्रियों से वार्तालाप न करें।

बच्चों से लाड़ न करें।

कोई भी हास - परिहास की बात न करें।

किसी भी प्रकार से कथा में विच्छेद न हो। 

यदि कोई वक्ता कथा मध्ये विषय वासनाओं की बाते करें शेरो - शायरी, कव्वाली करें ।

विधर्मियों का गान करें तो वह धर्मघातक दुष्ट नरकगामी होगा।
 
व्यासासनमारूढ़ो यदा पौराणिको द्विजः।
असमाप्ते प्रसङ्गस्य नमस्कुर्यान्न कस्यचित्।।
 (श्रीपद्मपुराणहरिवंशमहात्म्ये2/37)

मध्ये वार्तां न कुर्वीत् चेत् कुर्यान्निरयं व्रजेत्।
 कथायां श्रूयमाणायां न कुर्याच्छिशुलालनम्।

नर्मवादान् वदेन्नैव स्त्रिया सम्भाषणं तथा।
 न कर्त्तव्यं प्रयत्नेन कथा विच्छेदकारणम्।।

न कुर्यात् तु कथामध्ये त्वन्यवार्ताः प्रयत्नतः।
 (पद्मपुराणेहरिवंशमहात्म्ये4/35,36,38)

ऐसा ही आज कल तो बस लोग सुबह नव बजे व्यासपीठ बिराजेगा बाद शायरी कवाली अलक मलक की पंचात राजनीतिक विवादो करते रहेंगे उसमे भी समय निकाल कर ये लोग हास्य व्यंग बनकर उल्ट सुल्ट के टचुकलो , कवाली , जोक्स और फिल्मी गानों को सुनाते रहते है ।

वेद पुराण शास्त्रों में कहा ऐसा लिखा है की आप ट्चूकले , फिल्मी गानों , कवाली  अलक मलक की पंचात राजनीतिक विवादो को व्यासपीठ बिराज मान होकर करते रहेंगे l

वेद शास्त्रों का मत अनुसार तो व्यस्पीठ पर परायण जिसके पीछे किए हो वही चाहे किसी भी जीव आत्मा हो गाय ,  देव या पितृ हो उसको शास्त्र का अनुशार तोअंखड़ परायण सुनाने का नियम ही है तभी उसका कुटुंब की उन्नति और आत्मा को शांति प्रदान या मोक्ष प्रदान मिलेगा ।

जो यही लोग अंखड़ परायण करेगा तो रात्री का समय उसका विज्ञापन करने वाले चमचों के आयोजन कौन करेगा ।

सुबह सात बजे से साम सात बजे तक ऐसा सात दिन तक पूरा परायण पर चिपक कर बेठे रहेगा तो गांव की हर गल्ली - गल्ली , मौहल्ला - मोहल्ला में उंधा शर से कौन घूमेगा ।

यह तो बस सुबह नव से साढ़े नव बजे परायण शुरू करेगा उसमे भी शास्त्रों के अनुसार तो बस दस या बीस मिनिट ज्यादा से ज्यादा तीस मिनिट ही लेगा बाद तो पंचात करना हास्य व्यंग , कवाली , जोक्स , टचुकलो और राजनीति विवादो , फिल्मी गीतों पर जल्दी जल्दी एक या डेढ़ बजा देगा बाद तो सो जायेगा ।

दूपोर को आराम से तीन बजे उठेगा चार बजे तक चाय पीकर निकल जायेगा की रात नव दस बजे तक गांव की एक गल्ली मोहल्ला नही छोड़ेगा उतना घूमता रहेगा ।

बाद उसका रात्री पोग्राम वाले इसका तारीफों के पुल सजाने के लिए तो आगे पीछे घूमते - घूमते तारीफ पर तारीफ करता ही रहेगा ।

क्युकी रात्री पोग्राम ही इसका हस्तक तो उसको मिलेगा इस लिए वो भी इसकी तारीफों में कंजूसाई थोड़ी छोड़ेगा ।

यह तो बस सब लोग फेसनेबल ही है वो तो बस पैसा का कमाई करने के लिए और खुद का पैसे से घूमने में ज्यादा तकलीप होती रहती है ।

इस लिए परायण के नाम पर सात आठ दिन तक बिचारा घूमने के लिए तो आते ही है ।

थोड़ी किसी के जीव - आत्मा के कल्याण उनका कुटुंब परिवार का कल्याण के लिए आते है ।

ऐसा सप्ताह परायण का आयोजन में तो न कराने वाले का कुटुंब परिवार को सुख शांति मिलती होगी के न जिस जीव - आत्मा पीछे परायण किए वही जीव - आत्मा का कल्याण हुवा होगा ।

कथा करवाने वालो का तो जो होने वाले ही वही होगा लेकिन यह तो सब लोग सात आठ दिन तक दो पैसा का कमाई कर लेगे और सात आठ दिन तक पूरा गांव घूम लेने।

 || सनातन धर्म की जय हो ||


★★

         !!!!! शुभमस्तु !!!

🙏हर हर महादेव हर...!!
जय माँ अंबे ...!!!🙏🙏
पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 
" Opp. Shri Dhanlakshmi Strits , Marwar Strits, RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
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नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏

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