https://www.profitablecpmrate.com/gtfhp9z6u?key=af9a967ab51882fa8e8eec44994969ec 2. आध्यात्मिकता का नशा की संगत भाग 1: 12/29/22

।। जीवन की करुणापूर्ण होने से ही जड़ता टूटेगी सुंदर कहानी ।।

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

।। जीवन की करुणापूर्ण होने से ही जड़ता टूटेगी सुंदर कहानी ।।


एक बार बादशाह अकबर ने तो बीरबल से पूछा - 

तुम्हारे भगवान और हमारे खुदा में बहुत फर्क है !

हमारा खुदा तो अपना पैगम्बर भेजता है।

जबकि तुम्हारा भगवान बार - बार आता है।

 तो यह क्या बात है ?





बीरबल ने मुस्करा कर कहा - 

जहाँपनाह इस बात का कभी व्यवहारिक तौर पर अनुभव करवा दिया जायेगा।

आप जरा थोड़े दिनों की मोहलत दे दी जिये !

कुछ दिनों उपरांत बीरबल बादशाह अकबर को यमुना जी में नौका - विहार कराने ले गये।

नावों की व्यवस्था पहले से ही करवा दी गयी थी।

उस समय यमुना जी में अथाह जल था।

जिस नाव में बादशाह अकबर बैठा था उसी नाव में एक दासी को बादशाह अकबर के नवजात शिशु के साथ बैठा दिया गया।

नाव जब बीच मंझधार में पहुँची और हिलने लगी तब दासी के हाथ से बच्चा पानी में जा गिरा और वह रोने बिलखने लगी।

अपने बालक को बचाने लिये बादशाह अकबर धड़ाम से यमुना जी में कूद पड़ा।

इधर - उधर खूब गोते मारकर बड़ी मुश्किल से उसने बच्चे को पानी में से निकाला।

पर यह क्या ?

वह बच्चा न हो कर तो मोम का पुतला था।

बादशाह अकबर को तुरंत समझ में आ गया।

बीरबल से क्रोधपूर्वक कहा - 

बीरबल तो यह सारी शरारत तुम्हारी है।

तुमने मेरी बेइज्जती करवाने के लिये ही ऐसा किया।

बीरबल ने सिर झुका कर आदरपूर्वक कहा - 

जहाँपनाह आपकी बेइज्जती के लिये नहीं बल्कि आपके प्रश्न का उत्तर देने के लिये ऐसा किया गया था।

आप इस मोम के पुतले को अपना शिशु समझकर नदी में कूद पड़े जबकि उस समय आपको पता तो था ही न कि इन सब नावों में कई सुघढ़ तैराक बैठे है नाविक भी बैठे है और हम भी तो थे।

आपने हमको आदेश क्यों नहीं दिया ?

हम यमुना जी में कूदकर आपके बेटे की रक्षा कर देते।

बादशाह अकबर ने कहा -

बीरबल यदि अपना बेटा डूबता हो तो अपने मंत्रियों को या तैराकों को कहने की फुरसत कहाँ रहती है ?


खुद ही कूदा जाता है।


बीरबल ने मुस्कराते हुए कहा - 

जहाँपनाह जैसे अपने बेटे की रक्षा के लिए आप खुद कूद पड़े ऐसे ही हमारे भगवान जब अपने बालकों को संसार एवं संसार की मुसीबतों में डूबता हुआ देखते हैं तो वे पैगम्बर को नहीं भेजते।

वे खुद ही प्रकट हो जाते हैं ।

वे अपने शरणागत की रक्षा के लिये आप ही अवतार ग्रहण करते है और संसार को आनंद तथा प्रेम के प्रसाद से धन्य करते हैं।

बीरबल का कथन सुनकर बादशाह अकबर का सिर शर्म से झुक गया।

एक जर्मन विचारक था।

हेरिगेल । 

वह जापान गया हुआ था । 

एक फकीर से मिलने गया । 

जल्दी में था।

जाकर जूते पटक कर जोर से उतारे ।

दरवाजे को धक्का दिया।

भीतर पहुंचा । 

उस फकीर को नमस्कार किया और कहा कि मैं जल्दी में हूं । 

कुछ पूछने आया हूं । 

उस फकीर ने कहा बातचीत पीछे होगी । 

पहले दरवाजे के साथ दुर्व्यवहार किया है उससे क्षमा मांग कर आओ। 

वे जूते तुमने इतने क्रोध से उतारे हैं । 

नहीं — नहीं...!

यह नहीं हो सकता है। 

यह दुर्व्यवहार मैं पसंद नहीं कर सकता । 

पहले क्षमा मांग आओ...!

फिर भीतर आओ...!

फिर कुछ बात हो सकती है । 

तुम तो अभी जूते से भी व्यवहार करना नहीं जानते...!

तो तुम आदमी से व्यवहार कैसे करोगे ?

वह हेरिगेल तो बहुत जल्दी में था । 

इस फकीर से दूर से मिलने आया था। 

यह क्या पागलपन की बात है । 

लेकिन मिलना जरूर था और यह आदमी अब बात भी नहीं करने को राजी है आगे । 

तो मजबूरी में उसे दरवाजे पर जाकर क्षमा मांगनी पड़ी उस द्वार से...!

क्षमा मांगनी पड़ी उन जूतों से । 

लेकिन हेरिगेल ने लिखा है कि जब मैं क्षमा मांग रहा था तब मुझे ऐसा अनुभव हुआ जैसा जीवन में कभी भी नहीं हुआ था । 

जैसे अचानक कोई बोझ मेरे ही मन से उतर गया । 

जैसे एक हलका पन, एक शांति भीतर दौड़ गई ।

पहले तो पागलपन लगा...!

फिर पीछे मुझे खयाल आया कि ठीक ही है। 

इतने क्रोध में...!

इतने आवेश में...!

मैं हेरिगेल को समझता भी क्या...!

सुनता भी क्या ?

फिर लौट कर आकर वह हंसने लगा और कहने लगा...!

क्षमा करना...!

पहले तो मुझे लगा कि यह निहायत पागलपन है कि मैं जूते और दरवाजे से क्षमा मांग । 


लेकिन फिर मुझे खयाल आया कि जब मैं जूते और दरवाजे पर नाराज हो सकता हूं क्रोध कर सकता हूं तो क्षमा क्यों नहीं मांग सकता हूं ? 

अगर करुणा की दिशा में बढ़ना है तो सबसे पहले हमारे आसपास जिसे हम जड़ कहते हैं उसका जो जगत है।

यद्यपि जड़ कुछ भी नहीं है।

लेकिन हमारी समझ के भीतर अभी जो जड़ मालूम पड़ता है।

उस जड़ से ही शुरू करना पड़ेगा । 

उस जड़ जगत के प्रति ही करुणापूर्ण होना पड़ेगा...!

तभी हमारी जड़ता टूटेगी । 

उससे कम में हमारी जड़ता नहीं टूट सकती।

सनातन मार्ग शुक्ल मार्गवाला व्यक्ति मृत्यु के बाद परमपद को प्राप्त होता है।
और कृष्णमार्ग वाला व्यक्ति मृत्यु के बाद स्वर्गलोक ( चन्द्र लोक ) को प्राप्त होता है।

इसका कारण यह है ।

कि शुक्लमार्ग पर आरूढ़ व्यक्ति ब्रह्मप्राप्ति की इच्छावाला होता है ।

इस लिए वह ब्रह्म को प्राप्त करता है तथा कृष्णमार्ग पर आरूढ़ व्यक्ति विभिन्न कामना ओंवाला होता है।

इस लिए मृत्यु के पश्चात वह स्वर्गलोक पहुंचकर अपनी शुभकामनाओं का फल भोगकर पुन: मृत्युलोक मे वापिस आ जाता है।

सूर्य का सम्बन्ध आत्मा से है।

और चन्द्रमा का सम्बन्ध मन से है।

शुक्लमार्ग मे आरूढ़ व्यक्ति सूर्यलोक ( आत्मा ) को प्राप्त होता है।

सूर्य तेजोमय अग्नि ही है।

जो प्रकाश और ऊर्जा प्रदान करता है।

इस लिए इसे शुक्ल मार्ग कहा जाता है।

चन्द्रमा का स्वयम् का कोई प्रकाश नही होता है।

इस लिए कामनाओं से ग्रसित व्यक्ति कृष्णमार्ग से चन्द्रलोक को प्राप्त होते है।


आध्यात्मिक दृष्टि से धूम का अर्थ अहंकार है और चन्द्रमा का अर्थ मन है।


विभिन्न कामनाओं से ग्रसित पुरुष अहंकार पर आरूढ़ होकर अहंकार मन मे विलीन होकर मन को प्राप्त होते है।

मन कर्म संस्कारों का पुंज है।

इस लिए शुभ संस्कारों के फल भोगकर जीव पुन: अहंकार ( मृत्युलोक ) को प्राप्त हो जाता है।

स्वामी जी! कोई कहते हैं गीता पढ़ो। 

कोई कहते हैं रामायण पढ़ो। 

कोई कहते हैं- 

मन्दिर जाओ, जप करो, यज्ञ करो, दान दो, तप करो। 

समझ में नहीं आता, क्या करें?

कृपया आप बतलाइए क्या करूँ?

जानी हुई बुराई छोड़ दो...!

कि हुई बुराई दोहराओ मत।

बुराई को छोड़ने के बाद क्या करूँ?

सबके प्रति सद्भाव रखो और यथा शक्ति क्रियात्मक सहयोग दो।

स्वामी जी! इसके बाद क्या करूँ?

सद्भाव और सहयोग के बदले में किसी से कुछ मत चाहो। 

न अभी...!

न कभी।

फिर इसके बाद क्या करूँ?

पहले ये तीन कर लो...!

चौथी बात स्वयं मालूम हो जाएगी।

स्वतः ही?

हाँ...!

स्वयं ही। 

अरे तुम यह क्यों चाहते हो कि हम यहाँ से तुम्हारे घर तक बिजली के खम्भे लगा दें? 

इतनी मेहनत मत करवाओ यार...!

अरे भैया...!

हमने तुम्हें टार्च दे दी है। 

इसकी रोशनी जहाँ तक जाती है।

वहाँ तक जाओ...!

आगे स्वतः मार्ग मिल जाएगा। 

अगर तुम केवल पहली बात कर लो।

अर्थात् जानी हुई बुराई को छोड़ दो।

तो तुम्हें सब कुछ मिलेगा - शान्ति, मुक्ति, भक्ति। 

इस से जीवन बुराई - रहित होगा।

तो स्वतः ही सारे काम होंगे।

       !!!!! शुभमस्तु !!!

🙏हर हर महादेव हर...!!
जय माँ अंबे ...!!!🙏🙏

पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 
" Opp. Shri Dhanlakshmi Strits , Marwar Strits, RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
सेल नंबर: + 91- 7010668409 
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नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏

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