सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता, किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश.....
।। मन की आवाज़ / भगवन्नामय जीवन ।।
।। सुंदर कहानी ।।
*!! मन की आवाज़ !!*
एक बुढ़िया बड़ी सी गठरी लिए चली जा रही थी।
चलते - चलते वह थक गई थी।
तभी उसने देखा कि एक घुड़सवार चला आ रहा है।
उसे देख बुढ़िया ने आवाज दी.....
‘अरे बेटा, एक बात तो सुन।’ घुड़सवार रुक गया।
उसने पूछा, ‘क्या बात है माई?’
बुढ़िया ने कहा, ‘बेटा,....
मुझे उस सामने वाले गांव में जाना है।
बहुत थक गई हूं।
यह गठरी उठाई नहीं जाती।
तू भी शायद उधर ही जा रहा है।
यह गठरी घोड़े पर रख ले।
मुझे चलने में आसानी हो जाएगी।’
उस व्यक्ति ने कहा, ‘माई तू पैदल है।
मैं घोड़े पर हूं।
गांव अभी बहुत दूर है।
पता नहीं तू कब तक वहां पहुंचेगी।
मैं तो थोड़ी ही देर में पहुंच जाऊंगा।
वहां पहुंचकर क्या तेरी प्रतीक्षा करता रहूंगा?’
यह कहकर वह चल पड़ा।
कुछ ही दूर जाने के बाद उसने अपने आप से कहा,....
‘तू भी कितना मूर्ख है।
वह वृद्धा है,....
ठीक से चल भी नहीं सकती।
क्या पता उसे ठीक से दिखाई भी देता हो या नहीं।
तुझे गठरी दे रही थी।
संभव है उस गठरी में कोई कीमती सामान हो।
तू उसे लेकर भाग जाता तो कौन पूछता।
चल वापस,....
गठरी ले ले।
‘ वह घूमकर वापस आ गया और बुढ़िया से बोला, ‘माई, ला अपनी गठरी।
मैं ले चलता हूं।
गांव में रुककर तेरी राह देखूंगा।’
बुढ़िया ने कहा.....,
‘न बेटा.....
अब तू जा......
मुझे गठरी नहीं देनी।’
घुड़सवार ने कहा,....
‘अभी तो तू कह रही थी कि ले चल।
अब ले चलने को तैयार हुआ तो गठरी दे नहीं रही।
ऐसा क्यों?
यह उल्टी बात तुझे किसने समझाई है?’
बुढ़िया मुस्कराकर बोली, ‘उसी ने समझाई है ।
जिसने तुझे यह समझाया कि माई की गठरी ले ले।
जो तेरे भीतर बैठा है वही मेरे भीतर भी बैठा है।
तुझे उसने कहा कि गठरी ले और भाग जा।
मुझे उसने समझाया कि गठरी न दे ।
नहीं तो वह भाग जाएगा।
तूने भी अपने मन की आवाज सुनी और मैंने भी सुनी।’
जय श्री कृष्ण
।। भगवन्नामय जीवन ।।
लोग उन्हों ने काछी बाबा कहते थे ।
वे जाती का ही काछी थे और साधु होने से नही , वृद्ध होने से उस प्रदेश की प्रथा के अनुसार बाबा कहलाते थे ।
वैसे वे बग़ीचेमे मजदूरी का काम करते थे , दिन भर परिश्रम करते थे ।
साम को सरोवर के किनारे मालती -- कुंज के नीचे रोटियां सेककर खा लेते और वही सो रहते थे ।
रात्री में किसी को शौच जाने हो तो मालती कुंज वाले घाट पर ही हाथ धोने का सुविधाओं थी ।
घाट पर ही पहुचते ही स्पष्ट सुनाई पड़ता था --- ' राम... राम... राम... ' ।
यह किसी की जप -- ध्वनि नही थी ।
निद्रामग्न काछी बाबा के श्वास से यह स्पष्ट ध्वनि आया करती थी ।
एक दिन काछी बाबा ने नगर में आकर बगीचे के स्वामी से रसगुल्ला खाने की इच्छा प्रकट की ।
भर -- पेट रसगुल्ला खिलाया गया उन्हें ।
दुशरा दिन फिर किसी ने काछी बाबा से पूछा गया -- ' काछी बाबा !
रसगुल्ला खाओगे ? '
काछी बाबा बोले --- ' बाबू ! ऐसा पाप में अब फिर कभी नही करूँगा ।
मिठाई खाने से मेरे रामजी रात नही आये । '
नित्य वे वृद्ध श्रीरामजी के दर्शन पाते थे ।
उन्हों ने फिर कभी मिठाई खाई ही भी नही ।
।।।। जय श्री राम ।।। जय श्री राम ।।।
पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:-
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science)
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नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏