https://www.profitablecpmrate.com/gtfhp9z6u?key=af9a967ab51882fa8e8eec44994969ec 2. आध्यात्मिकता का नशा की संगत भाग 1: 12/26/22

।। जीवन में यह लोभ , मोह क्या है? उससे इतना ज्यादा दुख पैदा होता है, फिर भी वह छूटता ही क्यों नहीं है..? ।।

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

। जीवन में यह लोभ , मोह क्या है?  
उससे इतना ज्यादा दुख पैदा होता है, फिर भी वह छूटता ही क्यों नहीं है..? ।।


एक बात खयाल में लेना, जब तुम बुद्धपुरुषों के पास होते हो ।


तो उनकी आंखें, उनका व्यक्तित्व, उनकी भाव भंगिमा, उनके जीवन का प्रसाद, उनका संगीत सब प्रमाण देता है।

कि वे ठीक हैं ।

तुम गलत हो।

लेकिन बुद्धपुरुष कितने हैं? 

कभी कभी उनसे मिलना होता है। 

और मिलकर भी कितने लोग उन्हें देख पाते हैं और पहचान पाते हैं? 

सुनकर भी कितने लोग उन्हें सुन पाते हैं? 

आंखें कहां हैं जो उन्हें देखें? 

और कान कहां हैं जो उन्हें सुनें? 

और हृदय कहां हैं, जो उन्हें अनुभव करें? 

और कभी कभी विरल उनसे मिलना होता है।

जिनसे तुम्हारा रोज मिलना होता है सुबह से सांझ तक करोड़ो करोड़ो लोग वें सब तुम जैसे ही दुखी हैं। 

और वे सब संसार में भागे जा रहे हैं; 

तृष्णा में दौड़े जा रहे हैं, मोह में, लोभ में। 

इनकी भीड़ भी प्रमाण बनती है कि जब इतने लोग जा रहे हैं।

इस संसार की तरफ, जब सब दिल्ली जा रहे हैं।

तो गलती कैसे हो सकती है? 

इतने लोग गलत हो सकते हैं? 

इतने लोग नहीं गलत हो सकते।

अधिकतम लोग गलत होंगे? 

और इक्का दुक्का आदमी कभी सही हो जाता है! 



यह बात जंचती नहीं।

इनमें बहुत समझदार हैं। 

पढ़े लिखे हैं। 

बुद्धिमान हैं। 

प्रतिष्ठित हैं। 

इनमें सब तरह के लोग हैं। 

गरीब हैं, अमीर हैं। 

सब भागे जा रहे .हैं! 

इतनी बड़ी भीड़ जब जा रही हो, तो फिर भीतर के स्वर सुगबुगाने लगते हैं। 

वे कहते हैं....!

एक कोशिश और कर लो। 

जहां सब जा रहे हैं...!

वहां कुछ होगा। 

नहीं तो इतने लोग अनंत अनंत काल से उस तरफ जाते क्यों? 

अब तक रुक न जाते?

तो बुद्धपुरुष फिर, तुम्हारे भीतर उनका स्वर धीमा पड़ जाता है। 

भीड़ की आवाज फिर वजनी हो जाती है। 

और भीड़ की आवाज इस लिए वजनी हो जाती है कि अंतस्तल में तुम भीड़ से ही राजी हो ।

क्योंकि तुम भीड़ के हिस्से हो; तुम भीड़ हो। 

बुद्धपुरुषों से तो तुम किसी किसी क्षण में राजी होते हो। 

कभी। 

बड़ी मुश्किल से। 

एक क्षणभर को तालमेल बैठ जाता है। 

उनकी वीणा का छोटा सा स्वर तुम्हारे कानों में गज जाता है। 

मगर यह जो नक्कारखाना है ।

जिसमें भयंकर शोरगुल मच रहा है ।

यह तुम्हें चौबीस घंटे सुनायी पड़ता है।

तुम्हारे पिता मोह से भरे हैं।

तुम्हारी मां मोह से भरी है।

तुम्हारे भाई, तुम्हारी बहन, तुम्हारे शिक्षक, तुम्हारे धर्मगुरु सब मोह से भरे हैं। 

सबको पकड़ है कि कुछ मिल जाए। 

और जो मिल जाता है, उसे पकड़कर रख लें। 

और जो नहीं मिला है, उसे भी खोज लें


मोह का अर्थ क्या होता है? 

मोह का अर्थ होता है मेरा, ममत्व; जो मुझे मिल गया है, वह छूट न जाए। 

लोभ का क्या अर्थ होता है? 

लोभ का अर्थ होता है।

जो मुझे अभी नहीं मिला है।

वह मिले। 

और मोह का अर्थ होता है. जो मुझे मिल गया है।

वह मेरे पास टिके। ये दोनों एक ही पक्षी के दो पंख हैं। 

उस पक्षी का नाम है तृष्णा, वासना, कामना।

इन दो पंखों पर तृष्णा उड़ती है। 

जो है, उसे पकड़ रखूं; वह छूट न जाए। 

और जो नहीं है, वह भी मेरी पकड़ में आ जाए। 

एक हाथ में, जो है ।

उसे सम्हाले रखूं; 

और एक हाथ उस पर फैलाता रहूं ।

जो मेरे पास नहीं है। 

मोह लोभ की छाया है। 

क्योंकि अगर उसे पाना है।

जो तुम्हें नहीं मिला है ।

तो उसको तो पकड़कर रखना ही होगा ।

जो तुम्हें मिल गया है।

तो जो है ।

उस पर जमाकर पैर खड़े रहो। 

और जो नहीं है ।

उसकी तरफ मेहनत करे दियामं और हाथों को बढाते रहो। 

इन्हीं दो के बीच आदमी खिंचा खिंचा मर जाता है। 

ये दो पंख वासना के हैं, और ये ही दो पंख तुम्हें नर्क में भी उतार देते हैं। 

वासना तो उड़ती है इनके द्वारा, तुम भ्रष्ट हो जाते हो। तुम नष्ट हो जाते हो।

लेकिन यह अनुभव तुम्हारा अपना होना चाहिए। 

मैं क्या कहता हूं इसकी फिकर मत करो। 

तुम्हारा अनुभव क्या कहता है कुरेदो अपने अनुभव को। 

जब भी तुमने कुछ पकड़ना चाहा, तभी तुम दुखी हुए हो।


क्यों दुख आता है पकड़ने से? 


क्योंकि इस संसार में सब क्षणभंगुर है। 

पकड़ा कुछ जा नहीं सकता। 

और तुम पकड़ना चाहते हो। 

तुम प्रकृति के विपरीत चलते हो तो जरूर हारते ही हो। 

हारने में दुख है। 

जैसे कोई आदमी नदी के धार के विपरीत तैरने लगे। 

तो शायद हाथ दो हाथ तैर भी जाए। 

लेकिन कितना तैर सकेगा? 

थकेगा। 

टूटेगा। 

विपरीत धार में कितनी देर तैरेगा? 

धार इस तरफ जा रही है ।

वह उलटा जा रहा है। 

थोड़ी ही देर में धार की विराट शक्ति उसकी शक्ति को छिन्न भिन्न कर देगी। 

थकेगा। 

हारेगा। 

और जब थकेगा ।

हारेगा और ‘पैर उखड़ने लगेंगे और नीचे की तरफ बहने लगेगा ।

तब विषाद घेरेगा कि हार गया ।

पराजित हो गया। 

जो चाहिए था, नहीं पा सका। 

जो मिलना था, नहीं मिल सका। 

तब चित्त में बड़ी ग्लानि होगी। 

आत्मघात के भाव उठेंगे। 

दुख गहन होगा।


जो जानता है ।

वह नदी की धार के साथ बहता है। 

वह कभी हारता ही नहीं, दुख हो क्यों! 

वह नदी की धार को शत्रु नहीं मानता, मैत्री साधता है। बुद्धत्व आता कैसे है? 

बुद्धत्व आता है उसका स्वभाव के साथ मैत्री को साधने जैसा है।

जैसा होता है ।

उससे विपरीत की आकांक्षा मत करना अन्यथा दुख ही होगा।

खूबसूरत है वो हाथ....!

जो मुश्किल के वक़्त....!

किसी का सहारा बन जाये...!

खूबसूरत है वो जज्बात.....!

जो दूसरों की भावनाओं....!

को समझ जाये...!

खूबसूरत है वो दिल....

जो किसी के दुःख मे....!

शामिल हो जाये....!

सच्चे और शुभचिंतक लोग..!

हमारे जीवन में...!

सितारों की तरह होते है...!!

वो चमकते तो सदैव ही रहते है।

परंतु...!

दिखायी तभी देते है।

जब अंधकार छा जाता है।

चाय के साथ बिस्कुट ने एक तो सबक जरूर पक्का सीखा ही दिया है।

हम किसी के प्यार , प्रेम , मोहित इतना हो ही जाते कि किसी में ज्यादा डुबोगे तो टूट ही जाओगे।


दूसरों की छांव में खड़े होकर हम अपनी परछाई खो भी देते हैं।


अपनी ही परछाई के लिए हमें खुद धूप में खड़ा ही होना पड़ता है।

 इस दुनियाँ में लोग तो अच्छे बुरे होते ही हैं ।

लेकिन हमारे वक्त का अच्छा होना ज्यादा मायने रखता है।

इस लिये आप अपनी जेब कभी खाली मत होने देना, वरना आपके अपने भी आपको पहचानने से इंकार कर देंगे l

जिंदगी में दो व्यक्ति जीवन को नई दिशा देकर जाते हैं।

एक वह जो "मौका" देता है और एक वह जो "धोखा" देता है।

हमारा घर बदल जाए या हमारा समय बदल जाए कोई गम नहीं...!

लेकिन सबसे ज्यादा दुख तब होता है।

जब कोई अपना बदल जाता है l

हमारा बुरा वक्त तो जैसे - तैसे निकल जाता है।

लेकिन वो बदले हुए लोग जीवन भर याद रहते हैं। 

वैसे जिंदगी में कुछ जख्म ऐसे भी होते हैं जो कभी नहीं भरते...!

बस इंसान उन जख्मों को छुपाने का हुनर सीख जाता है।

चापलूस  और आलोचक मे केवल इतना अन्तर है कि...!

चापलूस अच्छा बनकर बुरा करता है.........!

और आलोचक बुरा बनकर अच्छा करता है......!

       !!!!! शुभमस्तु !!!

🙏हर हर महादेव हर...!!
जय माँ अंबे ...!!!🙏🙏
पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 
" Opp. Shri Dhanlakshmi Strits , Marwar Strits, RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
सेल नंबर: + 91- 7010668409 
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आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद.. 
नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏

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