https://www.profitablecpmrate.com/gtfhp9z6u?key=af9a967ab51882fa8e8eec44994969ec 2. आध्यात्मिकता का नशा की संगत भाग 1: 09/09/20

।। श्री कृष्ण के परम भक्त नरसिह महेता ।।

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

।। श्री कृष्ण के परम भक्त नरसिह महेता ।।


**नरसी भगत**

एक बार जूनागढ़ में कवि नरसी जी महेता का बड़ा भाई भाई नरसी जी के घर आया।

पिता जी का वार्षिक श्राद्ध करना था।

भाई ने नरसी जी से कहा :- 




'कल पिताजी का वार्षिक श्राद्ध करना है।

कहीं अड्डेबाजी मत करना बहु को लेकर मेरे यहाँ आ जाना।

काम-काज में हाथ बटाओगे तो तुम्हारी भाभी को आराम मिलेगा।'

नरसी जी ने कहा :- 

'पूजा पाठ करके ही आ
सकूँगा।'

इतना सुनना था कि बड़ा भाई उखड गए और बोले :-

 'जिन्दगी भर यही सब करते रहना।

जिसकी गृहस्थी भिक्षा से चलती है, उसकी सहायता की मुझे जरूरत नहीं है।

तुम पिताजी का श्राद्ध अपने घर पर अपने हिसाब से कर लेना।'

नरसी जी ने कहा :-

``नाराज क्यों होते हो भैया?'

मेरे पास जो कुछ भी है, मैं उसी से श्राद्ध कर लूँगा।

'दोनों भाईयों के बीच श्राद्ध को लेकर झगडा हो गया है, नागर-मंडली को मालूम हो गया।'

नरसी अलग से श्राद्ध करेगा, ये सुनकर नागर मंडली ने बदला लेने की सोची।

पुरोहित प्रसन्न राय ने सात सौ ब्राह्मणों को नरसी के यहाँ आयोजित श्राद्ध में आने के लिए आमंत्रित कर दिया।

अब कहीं से इस षड्यंत्र का पता नरसी मेहता जी की पत्नी मानिकबाई जी को लग गया वह चिंतित हो उठी।

अब दुसरे दिन नरसी जी स्नान के बाद श्राद्ध के लिए घी लेने बाज़ार गए।

नरसी जी घी उधार में चाहते थे पर किसी ने उनको घी नहीं दिया।

अंत में एक दुकानदार राजी हो गया पर ये शर्त

रख दी कि नरसी को भजन सुनाना पड़ेगा।

बस फिर क्या था, मन पसंद काम और उसके बदले घी मिलेगा, ये तो आनंद हो गया।

अब हुआ ये कि नरसी जी भगवान का भजन सुनाने में इतने तल्लीन हो गए कि ध्यान ही नहीं रहा कि घर में श्राद्ध है।

अब नरसी मेहता जी गाते गए भजन उधर नरसी के रूप में *भगवान कृष्ण* 
श्राद्ध कराते रहे।

यानी की दुकानदार के यहाँ नरसी जी भजन गा रहे हैं और वहां श्राद्ध 

*"कृष्ण भगवान"*

 नरसी जी के भेस में करवा रहे हैं।


जय हो, जय हो वाह प्रभू क्या माया है.....

वो कहते हैं ना की :-

*"अपना मान भले टल जाए, भक्त का मान न टलते देखा।*
*प्रबल प्रेम के पाले पड़ कर, प्रभु को नियम बदलते देखा,*
*अपना मान भले टल जाये, भक्त मान नहीं टलते देखा।"*

तो महाराज सात सौ ब्राह्मणों ने छककर भोजन किया।

दक्षिणा में एक एक अशर्फी भी प्राप्त की।

सात सौ ब्राह्मण आये तो थे नरसी जी का अपमान करने और कहाँ बदले में सुस्वादु भोजन और अशर्फी दक्षिणा के रूप में...
नरसी जी को होश आया तो घर आए और बोले आने में ज़रा देर हो गयी।

क्या करता, कोई उधार का घी भी नहीं दे रहा पत्नि बोली स्वयं खड़े होकर तुमने श्राद्ध का सारा कार्य किया।

ब्राह्मणों को भोजन करवाया, दक्षिणा दी।

ये बात सुनते ही नरसी जी समझ गए कि उनके इष्ट स्वयं उनका मान रख गए।

गरीब के मान को, भक्त की लाज को परम प्रेमी करूणामय भगवान् ने बचा ली।

मन भर कर गाते रहे :-

**दिल कभी ना लगाना दुनिया से *दर्द ही पाओगे
बीती बातेँ याद करके रोते ही रह जाओगे।।

   करना ही है तो करो भजन श्याम का
      हमेशा उम्मीद से दुगुना ही पाओगे।।

*बंधन मुक्ति..!!*



    
*राजा परीक्षित को श्रीमद्भागवत पुराण सुनातें हुए जब शुकदेव जी महाराज को छह दिन बीत गए और तक्षक ( सर्प ) के काटने से मृत्यु होने का एक दिन शेष रह गया, तब भी राजा परीक्षित का शोक और मृत्यु का भय दूर नहीं हुआ।*

*अपने मरने की घड़ी निकट आती देखकर राजा का मन क्षुब्ध हो रहा था।* 

*तब शुकदेव जी महाराज ने परीक्षित को एक कथा सुनानी आरंभ की।* 

*राजन !*

*बहुत समय पहले की बात है, एक राजा किसी जंगल में शिकार खेलने गया।* 

*संयोगवश वह रास्ता भूलकर बड़े घने जंगल में जा पहुँचा।*

*उसे रास्ता ढूंढते-ढूंढते रात्रि पड़ गई और भारी वर्षा पड़ने लगी।*

*जंगल में सिंह व्याघ्र आदि बोलने लगे।* 

*वह राजा बहुत डर गया और किसी प्रकार उस भयानक जंगल में रात्रि बिताने के लिए विश्राम का स्थान ढूंढने लगा।* 

*रात के समय में अंधेरा होने की वजह से उसे एक दीपक दिखाई दिया।*

*वहाँ पहुँचकर उसने एक गंदे बहेलिये की झोंपड़ी देखी ।* 

*वह बहेलिया ज्यादा चल-फिर नहीं सकता था, इसलिए झोंपड़ी में ही एक ओर उसने मल-मूत्र त्यागने का स्थान बना रखा था।* 

*अपने खाने के लिए जानवरों का मांस उसने झोंपड़ी की छत पर लटका रखा था।* 

*बड़ी गंदी, छोटी, अंधेरी और दुर्गंधयुक्त वह झोंपड़ी थी।* 

*उस झोंपड़ी को देखकर पहले तो राजा ठिठका, लेकिन पीछे उसने सिर छिपाने का कोई और आश्रय न देखकर उस बहेलिये से अपनी झोंपड़ी में रात भर ठहर जाने देने के लिए प्रार्थना की।*

*बहेलिये ने कहा कि आश्रय के लोभी राहगीर कभी-कभी यहाँ आ भटकते हैं।* 

*मैं उन्हें ठहरा तो लेता हूँ, लेकिन दूसरे दिन जाते समय वे बहुत झंझट करते हैं।*

*इस झोंपड़ी की गंध उन्हें ऐसी भा जाती है कि फिर वे उसे छोड़ना ही नहीं चाहते और इसी में ही रहने की कोशिश करते हैं एवं अपना कब्जा जमाते हैं।* 

*ऐसे झंझट में मैं कई बार पड़ चुका हूँ।*

*इसलिए मैं अब किसी को भी यहां नहीं ठहरने देता।* 
 
*मैं आपको भी इसमें नहीं ठहरने दूंगा।*

*राजा ने प्रतिज्ञा की कि वह सुबह होते ही इस झोंपड़ी को अवश्य खाली कर देगा।*

*उसका काम तो बहुत बड़ा है, यहाँ तो वह संयोगवश भटकते हुए आया है, सिर्फ एक रात्रि ही काटनी है।*

*बहेलिये ने राजा को ठहरने की अनुमति दे दी l*

*बहेलिये ने सुबह होते ही बिना कोई झंझट किए झोंपड़ी खाली कर देने की शर्त को फिर दोहरा दिया ।*

*राजा रात भर एक कोने में पड़ा सोता रहा।*

*सोने पर झोंपड़ी की दुर्गंध उसके मस्तिष्क में ऐसी बस गई कि सुबह उठा तो वही सब परमप्रिय लगने लगा।* 

*अपने जीवन के वास्तविक उद्देश्य को भूलकर वह वहीं निवास करने की बात सोचने लगा।* 

*वह बहेलिये से अपने और ठहरने की प्रार्थना करने लगा।*

*इस पर बहेलिया भड़क गया और राजा को भला-बुरा कहने लगा।* 

*राजा को अब वह जगह छोड़ना झंझट लगने लगा और दोनों के बीच उस स्थान को लेकर विवाद खड़ा हो गया ।*  

*कथा सुनाकर शुकदेव जी महाराज ने परीक्षित से पूछा,"परीक्षित !* 

*बताओ, उस राजा का उस स्थान पर सदा रहने के लिए झंझट करना उचित था ?"*

*परीक्षित ने उत्तर दिया," भगवन् !* 

*वह कौन राजा था, उसका नाम तो बताइये?*

*वह तो बड़ा भारी मूर्ख जान पड़ता है, जो ऐसी गंदी झोंपड़ी में, अपनी प्रतिज्ञा तोड़कर एवं अपना वास्तविक उद्देश्य भूलकर, नियत अवधि से भी अधिक रहना चाहता है।*

*उसकी मूर्खता पर तो मुझे आश्चर्य होता है।*

*"श्री शुकदेव जी महाराज ने कहा," हे राजा परीक्षित ! 

वह बड़े भारी मूर्ख तो स्वयं आप ही हैं। 

इस मल-मूल की गठरी देह ( शरीर ) में जितने समय आपकी आत्मा को रहना आवश्यक था, वह अवधि तो कल समाप्त हो रही है। 

अब आपको उस लोक जाना है, जहाँ से आप आएं हैं। 

फिर भी आप झंझट फैला रहे हैं और मरना नहीं चाहते। 

क्या यह आपकी मूर्खता नहीं है.??*

*राजा परीक्षित का ज्ञान जाग पड़ा और वे बंधन मुक्ति के लिए सहर्ष तैयार हो गए।*

*वास्तव में यही सत्य है।* 

*जब एक जीव अपनी माँ की कोख से जन्म लेता है तो अपनी माँ की कोख के अन्दर भगवान से प्रार्थना करता है कि हे भगवन् !* 

*मुझे यहाँ ( इस कोख ) से मुक्त कीजिए, मैं आपका भजन-सुमिरन करूँगा और जब वह जन्म लेकर इस संसार में आता है  पैदा होते ही रोने लगता है।* 

*फिर उस गंध से भरी झोंपड़ी की तरह उसे यहाँ की खुशबू ऐसी भा जाती है कि वह अपना वास्तविक उद्देश्य भूलकर यहाँ से जाना ही नहीं चाहता ।* 

*अतः संसार में आने के अपने वास्तविक उद्देश्य को पहचाने और उसको प्राप्त करें ऐसा कर लेने पर आपको मृत्यु का भय नहीं सताएगा..!!*
जय श्री कृष्ण

प्रेम से बोलो राधे राधे. 🙏🙏🌹🌹

पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 
" Opp. Shri Dhanlakshmi Strits , Marwar Strits, RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
सेल नंबर: . + 91- 7010668409 / + 91- 7598240825 WHATSAPP नंबर : + 91 7598240825 ( तमिलनाडु )
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जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏

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