सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता, किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश
।। जीवन की सत्य घटना।।
प्रार्थना बड़े गहरे अनुभव से प्रकट होती है।
प्रार्थना बड़े गहरे अनुभव से प्रकट होती है।
एक ब्राह्मण रोज अपनी प्रार्थना में परमात्मा को धन्यवाद देता था :
कि अहा,
तू भी खूब है...!
मुझ नाकुछ को इतना देता है कि मैं कैसे तेरा धन्यवाद करूं?
किस जबां से तेरा धन्यवाद करूं?
ब्राह्मण...!
उसके पास कुछ था भी नहीं।
और रोज धन्यवाद दे।
उसके गांव में नया और पुराना परिवारिक कुटुब मोशल प्रॉब्लम से हद से ज्यादा गहरा संकटो से भी थक गए थे उसकी बातें सुन — सुनकर।
फिर एक दिन तो ऐसा हुआ कि उसने उसके घर परिवार वालो को बोल दिया कि मुझे भगवान इधर बुला रहा है में वहां सेटिंग हो जावूगा बाद आपको भी उधर बुला लिया जाएगा ।
एक समय वो उसका वतन से हजारों किलोमीटर की यात्रा पर निकले थे, वो भी टिकट जितना ही पैसा को लेकर रास्ता में रेलवे के कोच में टिकिट तो कम्प्लीट ही था लेकिन ओरिजनल आई डी प्रूफ साथ मे नही था ।
चलती रेलवे में एक कोच से दुशरा कोच पर रेलवे के टीटी के पीछे पीछे धूमते रहते थे रेलवे के टीटी इसको दंड वसूल कर में लगा रहता था ये बोल रहा था कि मेरा पास कुछ पैसा भी नही है क्या दु आपको मेरा टिकिट तो कंप्लीट है ।
रेलवे के टीटी और ब्राह्मण दोनों एक दुशरो कि भाषा मे परिचित भी नही था टीटी बोल रहा था तो वो समझ नही रहे थे और वो बोल रहे थे तब टीटी समझ नही रहे थे ।
जैसा तीर्थयात्रा अंतिम स्टेशन नजदीक आ रहा था ब्राह्मण भगवान को प्रार्थना पर प्रार्थना करता रहता और टीटी के पीछे पीछे धूमता रहता था ।
इसी समय वहां एक कोच में टीटी को एक यात्री पूछताछ करते है कि ये ब्राह्मण आपके पीछे पीछे क्यों घूम रहे है क्या आपका प्रॉब्लम है ।
तब टीटी उस यात्री को सब बात बोल देता है तब यात्री ब्राह्मण को उसके बगल में बैठाकर सब बात पुछ लेता है कि तुम किस लिए यात्रा पर आए हो क्या घर छोड़कर आये हो तब ब्राह्मण बोलता है कि में काम की तलाश में भगवान की भक्ति के लिए ही आया हु घूमने के लिए नही ।
यात्री टीटी के पास से ब्राह्मण का पीछा छुड़वा लेता है बाद वही यात्री उस ब्राह्मण को खुद के होटल में थोड़ाक दिन रुकता भी है ।
बाद वही यात्री ब्राह्मण को उसका होटल से ब्राह्मण को निकाल देता है और ब्राह्मण गांव के अंदर रोज के किराया पर रूम पकड़ लेता है लेकिन भगवान का स्थान नही छोड़ता ।
थोड़ा ज्यादा कभी काम भी ब्राह्मण को मिल भी जाता है और यहां के राजकीय आदमी के पास ब्राह्मण के वतन का राजकीय आदमी धूमने के लिए आता है और लिकल वाले राजकीय आदमी उस ब्राह्मण का राजकिय आदमी को बोल रहा है कि ये अलका वतन का ब्राह्मण है आप हमारे साथ आये मंदिर के ऑफिस में आप इसका नाम पर ज़िमेदारी पत्र पर आपकी सही कर दे तो इसको इधर ही काम अच्छा मिल जाएगा आपका पास हौदों है पावर है तो आपकी सही इस ब्राह्मण की जीवन सुधार देगी लेकिन वो राजकीय आदमी उसका अहंकार में इतना मस्त था कि उसने सही करने को मना बोल दिया ।
उस ब्राह्मण ने ऐसा प्रार्थना कर के भगवान को धन्यवाद कर दिया कि तीन से चार ही मास में उसका बड़ा लड़का 45 साल का हदयरोग के हुमला आ गया फिर जैसा थोड़ाक दिन हुवा तो वही राजकीय आदमी के ऊपर कोर्ट कचहरी के चक्कर काटने का समय आ गया वो भी बहुत खर्च करने के बाद कोर्ट कचहरी ने उसके हाथ मे सस्पेंड का ओडर तो थमा ही दिया लेकिन उस ब्राह्मण तो भगवान को धन्यवाद पर धन्यवाद करता रहता है ।
पर।
कभी कभी आज के दिन पर भी उस ब्राह्मण को न खाना पूरा मिला कभी कभी तीन दिन सात दिन एकविस दिन तक पानी पर दिन गुजरता रहता है ।
गांव के ज्यादातर लोग उस ब्राह्मण के खिलाफ थे, जैसे लोग परदेशी लोगो के खिलाफ सदा से रहे हैं।
लोग कहते थे, वह बाहर का हिंदी भाषी परदेशी ब्राह्मण है ।
इस लिए इसको मंदिर के अंदर का पुजारी ब्राह्मणों ने ज्यादातर काम करने के लिए रखा भी नही था और लोकल वाले दुशरा लोगो को उसकेरकर इस ब्राह्मण को मारपीट खिलाकर मंदिर बाहर करवा दिया था ।
लेकिन इसने गांव के दुशरा ब्राह्मणों के साथ काम करना भी शुरू भी कर दिया थोड़ा ज्यादा काम भी मिल जाते थे इस मे मंदिर का ब्राह्मणों ने फिर गांव के लोकल लोगो को उसकेरकर गांव के ब्राह्मणों का साथ लड़ाई झगड़े करके उस ब्राह्मण को काम पर रखने को मना बोल दिया था ।
अब वह ब्राह्मण अपने ही घर मे अकेला अकेला पूराकर बैठा रहता है गांव के अमुक उसका दोस्तो के बीच कहता है बैठकर :
"अनलहक' ——
कि मुझे भगवान इधर लाये है में आया इधर हूं।
यह बात ठीक भी है कि ये ब्राह्मण रॉड पर खड़ा रहता तो एक दो यात्री भी मिल जाते है उसको अगल बगल के स्थान भी घुमा देता है तो कुछ मिल जाते है इसको इसका खर्च जितना लेकिन अमुक लोग लोग ऐसा करने ही नहीं देते है।
यह किसी को कुछ नही कहेगा भगवान की मर्जी ऐसा हो तो ऐसा ही होता है।
उस ब्राह्मण के पास ठहरने की जग्या तो है लेकिन आवक का कोई साधन भी नही है किराया जितना पैसा कोई न कोई भेज देता भी देगा लेकिन कोई दुशरा आवक जितना पैसा नहीं देगा।
दुशरा आवक ही नही होगा तो भोजन भीं कहा से मिलेगा।
फिर उस ब्राह्मण ने कभी भी किसी के पास लंबा हाथ तो किया ही नही करता भी नही वो तो एक ही बात उसका दोस्तो को बोलता रहता है कि भूखा रहना अच्छा है लेकिन किसी के पास हाथ लंबा नही करना भगवान मुझे इधर लाये है क्यों में सामने से तो आया नही हु ।
मगर उस ब्राह्मण ने फिर वही कहा कि हे प्रभु!
उसकी आंखें चमक रही हैं आनंद से।
उसके चेहरे पर फिर वही आनंद का भाव, फिर वही प्रार्थना :
"हे प्रभु!
तेरा बड़ा धन्यवाद है।
तू सदा मुझे जिस चीज की जरूरत होती है, पहुंचा देता है।'
एक दोस्त ने कहा कि अब बस, ठहरो!
अब हद हो गई।
जिस चीज की जरूरत होती है, पहुंचा देता है।
और कभी कभी तीन दिन सात दिन पन्द्र दिन बिस दिन से हम भी तुम्हारे साथ हैं, जिस चीज की जरूरत है, वही नहीं मिली है। रोटी नहीं मिली, पानी पीकर दिन रात गुजारने को तो मिला।
अब और क्या है?
मिला क्या है इतना सालों में?
उस ब्राह्मण ने कहा, तुम बीच में मत बोलो।
वह मेरी जरूरत का खयाल रखता है।
इतना दिन तक भूखे रखना, इतना दिन तक भूखे रहना मेरे लिए लाभ का हुआ है।
इतना दिन तक भूख और अपमान खाने के बाद भी मैं प्रार्थना कर सकूं, यही मेरी जरूरत थी।
उसने अवसर दिया।
सुख मिले तब धन्यवाद देना तो बहुत आसान है पागलो!
जब दुःख मिले तब धन्यवाद देने की क्षमता प्रार्थना की ही छाती में होती है।
उसने मुझे एक मौका दिया। उसने मुझे एक अवसर दिया।
मगर मैं भी समझ गया कि अवसर क्यों दे रहा है।
वह इसलिए दे रहा है कि अब देखूं।
एक दिन उसने कुछ भी न दिया, भूखा रखा, फिर भी मैंने प्रार्थना की।
दूसरे दिन भी उसने कहा, अच्छा ठीक है, एक दिन तूने कर ली, दूसरे दिन?
दूसरा दिन भी बीत गया, अब यह तीसरा दिन भी आ गया।
उसने फिर एक मौका दिया कि आज तीसरा दिन फिर आ गया।
अब तू बिल्कुल भूखा है...!
जीर्ण — जर्जर है, गिरा पड़ता है, अब तू धन्यवाद देगा कि नहीं देगा?
अब तो रुकेगा न?
अब तो बंद कर देगा प्रार्थना।
मगर मैंने कहा कि तू मुझे हरा न सकेगा।
मैं धन्यवाद देता ही जाऊंगा।
अंतिम घड़ी तक धन्यवाद देता चला जाऊंगा।
जब तक श्वास है, धन्यवाद उठेगा।
श्वास ही न रहे तो फिर बात और।
मरते क्षण तक ओंठ पर धन्यवाद होगा।
तू अगर मौत भी देगा तो वह मेरी जरूरत है तो ही देगा; नहीं तो क्यों देगा?
इसका नाम श्रद्धा है।
इसका नाम प्रार्थना है।
प्रार्थना की नहीं जाती।
प्रार्थना बड़े गहरे अनुभव से प्रकट होती है !!
!! एक ब्राह्मण ऐसा भी.., !!
!!!!! शुभमस्तु !!!
🙏हर हर महादेव हर...!!
जय माँ अंबे ...!!!🙏🙏
पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:-
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science)
" Opp. Shri Dhanlakshmi Strits , Marwar Strits, RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
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नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏