सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता, किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश
।। जीवन की हकीकत को उजागर करने वाली सुंदर कहानी पगड़ी का मोल ।।
एक बार कबीर जी ने बड़ी कुशलता से पगड़ी बनाई।
झीना - झीना कपडा बुना और उसे गोलाई में लपेट कर पगड़ी तैयार की।
पगड़ी को हर कोई बड़ी शान से अपने सिर सजाता हैं।
यह नई नवेली पगड़ी लेकर कबीर जी दुनिया की हाट में जा बैठे।
ऊँची - ऊँची पुकार उठाई-
'शानदार पगड़ी!
जानदार पगड़ी!
दो टके की भाई!
दो टके की भाई!'
एक खरीददार निकट आया।
उसने घुमा - घुमाकर पगड़ी का निरीक्षण किया।
फिर कबीर जी से प्रश्न किया-
'क्यों महाशय एक टके में दोगे क्या?'
कबीर जी ने अस्वीकार कर दिया-
'न भाई!
दो टके की है।
दो टके में ही सौदा होना चाहिए।'
खरीददार भी नट गया।
पगड़ी छोड़कर आगे बढ़ गया।
यही प्रतिक्रिया हर खरीददार की रही।
सुबह से शाम हो गई।
कबीर जी अपनी पगड़ी बगल में दबाकर खाली जेब वापिस लौट आए।
थके - माँदे कदमों से घर में प्रवेश करने ही वाले थे कि तभी...!
एक पड़ोसी से भेंट हो गई।
उसकी दृष्टि पगड़ी पर पड गई।
'क्या हुआ संत जी...!
इसकी बिक्री नहीं हुई ?
पड़ोसी ने जिज्ञासा की।
कबीर जी ने दिन भर का क्रम कह सुनाया।
पड़ोसी ने कबीर जी से पगड़ी ले ली-
'आप इसे बेचने की सेवा मुझे दे दीजिए।
मैं कल प्रातः ही बाजार चला जाऊँगा।
अगली सुबह कबीर जी के पड़ोसी ने ऊँची - ऊँची बोली लगाई-
'शानदार पगड़ी!
जानदार पगड़ी!
आठ टके की भाई!
आठ टके की भाई!
पहला खरीददार निकट आया ।
बोला बड़ी महंगी पगड़ी हैं दिखाना जरा!
पडोसी-
पगड़ी भी तो शानदार है।
ऐसी और कही नहीं मिलेगी।
खरीददार-
ठीक दाम लगा लो..!
भईया।
पड़ोसी-
चलो, आपके लिए-
छह टका लगा देते हैं!
खरीददार -
ये लो पाँच टका।
पगड़ी दे दो।
एक घंटे के भीतर - भीतर पड़ोसी वापस लौट आया।
कबीर जी के चरणों में पाँच टके अर्पित किए।
पैसे देखकर कबीर जी के मुख से अनायास ही निकल पड़ा।
सत्य गया पाताल में झूठ रहा जग छाए।
यही इस जगत का व्यावहारिक सत्य है।
सत्य के पारखी इस जगत में बहुत कम होते हैं।
संसार में अक्सर सत्य का सही मूल्य तो नहीं मिलता ।
लेकिन असत्य बहुत ज्यादा कीमत पर बिकता हैं।
इस लिए कबीर साहिब ने कहा-
सच्चे का कोई ग्राहक नही, झूठा जगत में पूजा ही जाता है ।
आशा और विश्वास कभी गलत नहीं होते बस ये हम पर निर्भर करता है ।
कि हमने आशा किससे की ओर विश्वास किस पर किया।
रिश्तों में समझदार बनो, वफादार बनो, असरदार बनो पर दुकानदार मत बनो।
बाकी मन की बात कह देने से फैसले हो जाते हैं, और मन में रख लेने से, फासले हो जाते हैं।
चर्चा और आरोप ये दोनों ही सिर्फ सफल व्यक्ति के भाग्य में ही होते हैं।
इस लिए नमक की तरह अपना एक अनोखा किरदार रखें, क्योंकि इसकी उपस्थिति महसूस नहीं होती है ।
लेकिन इसके बिना सब कुछ स्वादहीन हो जाता है।
आश्चर्यजनक, किन्तु जीवन की हकीकत सत्य ..!
दादा परदादाओं के ज़माने से तो ये कहा जाता रहा है कि...!
समय चाहे कोई भी रहा हो..!
एक तोला सोने का जो भाव होता है ।
एक महीने के घर ख़र्च में ही लगता है...!!
कभी कभी तो सही वक्त पर पिये गए कड़वे घूट अक्सर जिंदगी को मीठी कर दिया करते हैं।
जीवन में कभी भी सही वक्त का इंतजार नहीं करें ।
क्योंकि सही वक्त आता नहीं लाना पड़ता है ।
इस लिये आज कुछ ऐसा करें कि कल आप खुद को उसके लिए धन्यवाद दे सके।
अच्छे किरदार, अच्छे संस्कार और अच्छे विचार वाले लोग हमेशा साथ रहते हैं...!
दिलों में भी ..!
लफ्ज़ों में भी और दुवाओ में भी..!
इस लिये हमेशा अच्छे लोगों की संगत में रहें ।
क्योंकि सुनार का कचरा भी बनिए के बादाम से महंगा होता है।
हमारी आदतें और हमारे संस्कार ही बताते हैं ।
कि हम दो कौड़ी के हैं या सौ कौड़ी के।
कभी किसी का हक नहीं छीनना चाहिए ।
जो दुसरो का हक छीनता है उसे कभी भी सम्मान तो नहीं मिलता।
ज़िन्दगी तब ही "बेहतर" होती है ।
जब हम खुश होते हैं ।
लेकिन यकीन करो ज़िन्दगी तब "बेहतरीन" हो जाती है...!
जब हमारी वजह से सब खुश होते हैं।
तभी तो कहते हैं ।
की "व्यक्तित्व" की भी अपनी वाणी होती है ।
जो "कलम"' या "जीभ" के इस्तेमाल के बिना भी, लोगों के "अंर्तमन" को छू जाती है।
क्या प्रकृति की शक्तियां हमारी मदद करती हैं?
हां...!
जरूर ने जरूर करना चाहती होगी ।
बशर्तें हमारी सोच व्यवहार ओर वर्तन सकारात्मक हो यदि आंखें प्रतिदिन ब्रह्म मुहूर्त में अचानक ही खुल जाती हैं तो समझें जाएं की प्रकृति हमारे साथ हैं।
पूर्वाभास, पारिवारिक प्रेम खुली हवा में होता है।
राहत की सांस ले सकते है तो समझें कि प्रकृति हमारे पास पास ही है।
हमें समझना होगा कि हमारे हर कार्य को प्रकृति निहार रही है।
और उसके प्रति प्रतिक्रिया भी करती है।
हमें सदैव ध्यान रखना चाहिए कि प्रकृति के साथ जुड़े रहें....!
!!!!! शुभमस्तु !!!
🙏हर हर महादेव हर...!!
जय माँ अंबे ...!!!🙏🙏
पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:-
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science)
" Opp. Shri Dhanlakshmi Strits , Marwar Strits, RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
सेल नंबर: + 91- 7010668409
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आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद..
नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏