https://www.profitablecpmrate.com/gtfhp9z6u?key=af9a967ab51882fa8e8eec44994969ec 2. आध्यात्मिकता का नशा की संगत भाग 1: 10/07/20

।। श्री ऋगवेद श्री सामवेद और श्रीमद्भागवत गीता आधारित प्रर्वचन ।।

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

।। श्री ऋगवेद श्री सामवेद और श्रीमद्भागवत गीता आधारित प्रर्वचन ।।

 श्रीमद्भागवत गीता आधारित प्रर्वचन


श्री ऋगवेद श्री सामवेद और श्रीमदभागवत 
गीता अध्याय: 18 श्लोक 33

श्लोक:

धृत्या यया धारयते मनःप्राणेन्द्रियक्रियाः।
 योगेनाव्यभिचारिण्या धृतिः सा पार्थ सात्त्विकी॥


भावार्थ:

हे पार्थ! जिस अव्यभिचारिणी धारण शक्ति 
( भगवद्विषय के सिवाय अन्य सांसारिक विषयों को धारण करना ही व्यभिचार दोष है, उस दोष से जो रहित है वह 'अव्यभिचारिणी धारणा' है )।

जब से मनुष्य ध्यान योग के द्वारा मन, प्राण और इंद्रियों की क्रियाओं...!

( मन, प्राण और इंद्रियों को भगवत्प्राप्ति के लिए भजन, ध्यान और निष्काम कर्मों में लगाने का नाम 'उनकी क्रियाओं को धारण करना' है )।

को धारण करता है, वह धृति सात्त्विकी है।

भगवान श्रीकृष्ण जब अपने प्रेमीभक्त पर कृपा करते हैं तो भक्त का द्वैतपन नष्ट कर देते हैं ।

तब भक्त अपने - आप को कृष्णरूप मे ही देखता है। 

समस्त प्राणियों जैसे चीटी, मच्छर, पक्षी, सभी प्राणी, वृक्ष, पत्थर, पहाड़, नदियां, दीवारें आदि सभी मे एक भगवान श्रीकृष्ण ही दिखाई देते हैं।

ऐसी स्थिति मे भक्त कभी पत्थर को भगवान समझकर प्रणाम करता है।

कभी कुत्ता, विल्ली आदि को भगवान समझकर प्रणाम करता है।

चीटी व मच्छरों मे भगवान श्रीकृष्ण को देखने पर वह कीड़े - मकोड़ों को कभी नही मारता, पैरों के नीचे कोई चीटी आदि प्राणी कुचलकर मर न जाय इसमे वह बहुत सावधान रहता है।

भले ही लोग ऐसे भक्त को पागल समझते हैं लेकिन वह उच्चकोटि का भक्त होता है।

सभी वस्तुओं मे व सभी प्राणियों मे भगवान के दर्शन करना ही भागवत धर्म कहलाता है।

यह भागवतधर्म इतना शुध्द होता है कि इसमे मनुष्यों की वह विषमबुध्दि नही होती कि ' यह मैं हूं ' , ' यह मेरा है ' , ' यह तू है ' , ' यह तेरा है।'

किसी भी वस्तु मे अहंता, ममता न रखनेवाले व मोक्ष को प्राप्त करने की इच्छावाले इसी भागवत धर्म का आश्रय लेते हैं।

भागवतधर्मी व्यक्ति कभी भी परमार्थ से विचलित नही होता।

वास्तविक स्वरूप...!

पानी को कितना भी गर्म कर लें पर वह थोड़ी देर बाद अपने मूल स्वभाव में आकर शीतल हो जायेगा। 

इसी प्रकार हम कितने भी क्रोध में, भय में अशांति में रह लें पर थोड़ी देर बाद बोध में, निर्भयता में और प्रसन्नता में हमें आना ही होगा क्योंकि यही हमारा मूल स्वभाव है।
         
इतना ऊर्जा सम्पन्न जीवन परमात्मा ने हमें दिया है स्वयं का तो क्या लाखों - लाखों लोगों का कल्याण करने के निमित्त भी हम बन सकते हैं।

जरुरत है, स्वयं की शक्ति और स्वभाव को समझने की।

यदि जीवन पथ में सबसे बड़ी कोई बाधा है तो वह है, निराशा। 

हम थोड़ी देर में ही परिस्थिति के आगे घुटने टेक कर उसे अपने ऊपर हावी कर लेते हैं। 

किसी संग दोष के कारण, किन्हीं बातों के प्रभाव में आकर निराश हो जाना, यह संयोग जन्य स्थिति है। 

आनंद , प्रसन्नता, उत्साह, उल्लास और सात्विकता यही हमारा मूल स्वभाव है।

यही हमारा वास्तविक स्वरूप है।

जय श्री कृष्ण

पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 
" Opp. Shri Dhanlakshmi Strits , Marwar Strits, RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
सेल नंबर: . + 91- 7010668409 WHATSAPP नंबर : + 91 7598240825 ( तमिलनाडु )
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आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद.. 
नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏

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