https://www.profitablecpmrate.com/gtfhp9z6u?key=af9a967ab51882fa8e8eec44994969ec 2. आध्यात्मिकता का नशा की संगत भाग 1: <script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-2948214362517194" crossorigin="anonymous"></script>
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*🙏🏻🚩गुरु और भगवान में अंतर🚩🙏🏻**गुरु और भगवान में- एक अंतर है।**एक आदमी के घर भगवान और गुरु दोनो पहुंच गये, वह बाहर आया और चरणों में गिरने लगा।*

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

*🙏🏻🚩गुरु और भगवान में अंतर🚩🙏🏻*


*गुरु और भगवान में- एक अंतर है।*

*एक आदमी के घर भगवान और गुरु दोनो पहुंच गये, वह बाहर आया और चरणों में गिरने लगा।*

*वह भगवान के चरणों में गिरा तो भगवान बोले- रुको-रुको पहले गुरु के चरणों में जाओ।*

*वह दौड़ कर गुरु के चरणों में गया। गुरु बोले- मैं भगवान को लाया हूँ,*
*पहले भगवान के चरणों में जाओ।*


*वह भगवान के चरणों में गया तो भगवान बोले- इस भगवान को गुरु ही लाया है न,*

*गुरु ने ही बताया है न, तो पहले गुरु के चरणों में जाओ।*
*फिर वह गुरु के चरणों में गया।*

*गुरु बोले- नहीं-नहीं मैंने तो तुम्हें बताया ही है न, लेकिन तुमको बनाया किसने?*

*भगवान ने ही तो बनाया है न, इसलिये पहले भगवान के चरणों में जाओ।*

*वो फिर वह भगवान के चरणों में गया।*

*भगवान बोले- रुको मैंने तुम्हें बनाया, यह सब ठीक है। तुम मेरे चरणों में आ गये हो।*

*लेकिन मेरे यहाँ न्याय की  पद्धति है। अगर तुमने अच्छा किया है,*
*अच्छे कर्म किये हैं, तो तुमको स्वर्ग मिलेगा।*

*फिर अच्छा जन्म मिलेगा, अच्छी योनि मिलेगी।*

*लेकिन अगर तुम बुरे कर्म करके आए हो,*
*तो मेरे यहाँ दंड का प्रावधान भी है, दंड मिलेगा।*

*चौरासी लाख योनियों में भटकाए जाओगे, फिर अटकोगे, फिर तुम्हारी आत्मा को कष्ट होगा।*

*फिर नरक मिलेगा, और अटक जाओगे।*

 *लेकिन यह गुरु है ना, यह बहुत भोला है।*

*इनके पास, इसके चरणों में पहले चले गये तो तुम जैसे भी हो,* *जिस तरह से भी हो*
*यह तुम्हें गले लगा लेगा।*

*और तुमको शुद्ध करके मेरे चरणों में रख जायेगा। जहाँ ईनाम ही ईनाम है।*

*यही कारण है कि गुरु कभी किसी को भगाता नहीं।*
*गुरु निखारता है, जो भी मिलता है उसको गले लगाता है।*

*उस पतित को पावन  करता है और सदा के लिए जन्म-मरण के आवागमन से मुक्ति दिलाकर भगवान के चरणों में भेज देता है*
===========


।। श्री रामचरित्रमानस प्रवचन ।।


क्षीरसागर में भगवान विष्णु शेष शैया पर विश्राम कर रहे हैं और लक्ष्मी जी उनके पैर दबा रही हैं। 

विष्णु जी के एक पैर का अंगूठा शैया के बाहर आ गया और लहरें उससे खिलवाड़ करने लगीं। 




.
क्षीरसागर के एक कछुवे ने इस दृश्य को देखा और मन में यह विचार कर कि मैं यदि भगवान विष्णु के अंगूठे को अपनी जिव्ह्या से स्पर्श कर लूँ तो मेरा मोक्ष हो जायेगा उनकी ओर बढ़ा। 
.
उसे भगवान विष्णु की ओर आते हुये शेषनाग जी ने देख लिया और कछुवे को भगाने के लिये जोर से फुँफकारा। 

फुँफकार सुन कर कछुवा भाग कर छुप गया। 
.
कुछ समय पश्चात् जब शेष जी का ध्यान हट गया तो उसने पुनः प्रयास किया। 

इस बार लक्ष्मी देवी की दृष्टि उस पर पड़ गई और उन्होंने उसे भगा दिया। 
.
इस प्रकार उस कछुवे ने अनेकों प्रयास किये पर शेष जी और लक्ष्मी माता के कारण उसे कभी सफलता नहीं मिली। 

यहाँ तक कि सृष्टि की रचना हो गई और सत्युग बीत जाने के बाद त्रेता युग आ गया। 
.
इस मध्य उस कछुवे ने अनेक बार अनेक योनियों में जन्म लिया और प्रत्येक जन्म में भगवान की प्राप्ति का प्रयत्न करता रहा।

अपने तपोबल से उसने दिव्य दृष्टि को प्राप्त कर लिया था। 
.
कछुवे को पता था ।

कि त्रेता युग में वही क्षीरसागर में शयन करने वाले विष्णु राम का वही शेष जी लक्ष्मण का और वही लक्ष्मी देवी सीता के रूप में अवतरित होंगे ।

तथा वनवास के समय उन्हें गंगा पार उतरने की आवश्यकता पड़ेगी। 

इसी लिये वह भी केवट बन कर वहाँ आ गया था।
.
एक युग से भी अधिक काल तक तपस्या करने के कारण उसने प्रभु के सारे मर्म जान लिये थे ।

इसी लिये उसने राम से कहा था ।

कि मैं आपका मर्म जानता हूँ। 



.
संत श्री तुलसी दास जी भी इस तथ्य को जानते थे ।

इस लिये अपनी चौपाई में केवट के मुख से कहलवाया है ।

कि 
.
“कहहि तुम्हार मरमु मैं जाना”।
.
केवल इतना ही नहीं ।

इस बार केवट इस अवसर को किसी भी प्रकार हाथ से जाने नहीं देना चाहता था। 

उसे याद था ।

कि शेषनाग क्रोध कर के फुँफकारते थे और मैं डर जाता था। 
.
अबकी बार वे लक्ष्मण के रूप में मुझ पर अपना बाण भी चला सकते हैं पर इस बार उसने अपने भय को त्याग दिया था ।

लक्ष्मण के तीर से मर जाना उसे स्वीकार था पर इस अवसर को खो देना नहीं। 
.
इसीलिये विद्वान संत श्री तुलसी दास जी ने लिखा है -
.
( हे नाथ ! 

मैं चरणकमल धोकर आप लोगों को नाव पर चढ़ा लूँगा; 

मैं आपसे उतराई भी नहीं चाहता। 

हे राम ! 

मुझे आपकी दुहाई और दशरथ जी की सौगंध है ।

मैं आपसे बिल्कुल सच कह रहा हूँ। 

भले ही लक्ष्मण जी मुझे तीर मार दें ।

पर जब तक मैं आपके पैरों को पखार नहीं लूँगा ।

तब तक हे ।

तुलसीदास के नाथ !

हे कृपालु ! 

मैं पार नहीं उतारूँगा। )
.
तुलसीदास जी आगे और लिखते हैं -
.
केवट के प्रेम से लपेटे हुये अटपटे वचन को सुन कर करुणा के धाम श्री रामचन्द्र जी जानकी जी और लक्ष्मण जी की ओर देख कर हँसे। 

जैसे वे उनसे पूछ रहे हैं ।

कहो अब क्या करूँ । 

उस समय तो केवल अँगूठे को स्पर्श करना चाहता था और तुम लोग इसे भगा देते थे ।

पर अब तो यह दोनों पैर माँग रहा है।
.
केवट बहुत चतुर था। 

उसने अपने साथ ही साथ अपने परिवार और पितरों को भी मोक्ष प्रदान करवा दिया। 

तुलसी दास जी लिखते हैं -.

चरणों को धोकर पूरे परिवार सहित उस चरणामृत का पान करके उसी जल से पितरों का तर्पण करके ।

अपने पितरों को भवसागर से पार कर ।

फिर आनन्दपूर्वक प्रभु श्री रामचन्द्र को गंगा के पार ले गया।

उस समय का प्रसंग है ... 

जब केवट भगवान् के चरण धो रहे है ।
.
बड़ा प्यारा दृश्य है ।

भगवान् का एक पैर धोकर उसे निकलकर कठौती से बाहर रख देते है ।

और जब दूसरा धोने लगते है,...
.
तो पहला वाला पैर गीला होने से जमीन पर रखने से धूल भरा हो जाता है ।
.
केवट दूसरा पैर बाहर रखते है।

फिर पहले वाले को धोते है ।

एक-एक पैर को सात-सात बार धोते है ।

फिर ये सब देखकर कहते है, प्रभु एक पैर कठौती मे रखिये दूसरा मेरे हाथ पर रखिये ।

ताकि मैला ना हो ।
.
जब भगवान् ऐसा ही करते है। 

तो जरा सोचिये ... 

क्या स्थिति होगी ।

यदि एक पैर कठौती में है दूसरा केवट के हाथो में, 
.
भगवान् दोनों पैरों से खड़े नहीं हो पाते बोले - 

केवट मै गिर जाऊँगा ?
.
केवट बोला - 

चिंता क्यों करते हो भगवन् !.

दोनों हाथो को मेरे सिर पर रख कर खड़े हो जाईये ।

फिर नहीं गिरेगे ।
.
जैसे कोई छोटा बच्चा है ।

जब उसकी माँ उसे स्नान कराती है ।

तो बच्चा माँ के सिर पर हाथ रखकर खड़ा हो जाता है ।

भगवान् भी आज वैसे ही खड़े है। 
.
भगवान् केवट से बोले - 

भईया केवट ! 

मेरे अंदर का अभिमान आज टूट गया...
.
केवट बोला - 

प्रभु ! 

क्या कह रहे है ?.

भगवान् बोले - 

सच कह रहा हूँ केवट, 

अभी तक मेरे अंदर अभिमान था, कि .... 

मै भक्तो को गिरने से बचाता हूँ पर.. 
.
आज पता चला कि, भक्त भी भगवान् को गिरने से बचाता है।।

🚩🚩🚩जय श्री राम राम  राम सीताराम🚩🚩🚩
#धर्मो_रक्षति_रक्षितः
🙏🏼

*🙏🏻🚩जय जय श्री राज  🚩🙏🏻*

पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 
" Opp. Shri Dhanlakshmi Strits , Marwar Strits, RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
सेल नंबर: . + 91- 7010668409 / + 91- 7598240825 WHATSAPP नंबर : + 91 7598240825 ( तमिलनाडु )
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आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद.. 
नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏

*#अद्भुत कहानी**एक दिन,* *मेरे पिता ने हलवे के 2 कटोरे बनाये और उन्हें मेज़ पर रख दिया।*

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

*#अद्भुत कहानी*

*एक दिन,* *मेरे पिता ने हलवे के 2 कटोरे बनाये और उन्हें मेज़ पर रख दिया।*


     *एक के ऊपर 2 बादाम थे,जबकि दूसरे कटोरे में हलवे के ऊपर कुछ नहीं था।*

     *फिर उन्होंने मुझे हलवे का कोई एक कटोरा चुनने के लिए कहा, क्योंकि उन दिनों तक हम गरीबों के घर बादाम आना मुश्किल था.... मैंने 2 बादाम वाले कटोरे को चुना!*





      *मैं अपने बुद्धिमान विकल्प / निर्णय पर खुद को बधाई दे रहा था, और जल्दी जल्दी मुझे मिले 2 बादाम हलवा खा रहा था।*

      *परंतु मेरे आश्चर्य का ठिकाना नही था, जब मैंने देखा कि की मेरे पिता वाले कटोरे के नीचे*  *8 बादाम*  *छिपे थे!*

     *बहुत पछतावे के साथ,मैंने अपने निर्णय में जल्दबाजी करने के लिए खुद को डांटा।*

      *मेरे पिता मुस्कुराए और मुझे यह याद रखना सिखाया कि,*  *आपकी आँखें जो देखती हैं वह हरदम सच नहीं हो सकता,*  *उन्होंने कहा कि यदि आप स्वार्थ की आदत की अपनी आदत बना लेते हैं तो आप जीत कर भी हार जाएंगे।*


*अगले दिन, मेरे पिता ने फिर से हलवे के 2 कटोरे पकाए और टेबल पर रक्खे एक कटोरा के शीर्ष पर 2 बादाम और दूसरा कटोरा जिसके ऊपर कोई बादाम नहीं था।*

     *फिर से उन्होंने मुझे अपने लिए कटोरा चुनने को कहा। इस बार मुझे कल का संदेश याद था, इसलिए मैंने शीर्ष पर बिना किसी बादाम कटोरी को चुना।*

     *परंतु मेरे आश्चर्य करने के लिए इस बार इस कटोरे के नीचे एक भी बादाम नहीं छिपा था!* 

     *फिर से,मेरे पिता ने मुस्कुराते हुए मुझसे कहा,*  *"मेरे बच्चे,आपको हमेशा अनुभवों पर भरोसा नहीं करना चाहिए, क्योंकि कभी-कभी,जीवन आपको धोखा दे सकता है या आप पर चालें खेल सकता है स्थितियों से कभी भी ज्यादा परेशान या दुखी न हों, बस अनुभव को एक सबक अनुभव के रूप में समझें, जो किसी भी पाठ्यपुस्तकों से प्राप्त नहीं किया जा सकता है।*


*तीसरे दिन,मेरे पिता ने फिर से हलवे के 2 कटोरे पकाए पहले 2 दिन की ही तरह, एक कटोरे के ऊपर 2 बादाम, और दूसरे के शीर्ष पर कोई बादाम नहीं। मुझे उस कटोरे को चुनने के लिए कहा जो मुझे चाहिए था।*

     *लेकिन इस बार, मैंने अपने पिता से कहा, *पिताजी, आप पहले चुनें, आप परिवार के मुखिया हैं और आप परिवार में सबसे ज्यादा योगदान देते हैं । आप मेरे लिए जो अच्छा होगा वही चुनेंगे।*

      *मेरे पिता मेरे लिए खुश थे।*

*उन्होंने शीर्ष पर 2 बादाम के साथ कटोरा चुना, लेकिन जैसा कि मैंने अपने कटोरे का हलवा खाया! कटोरे के हलवे के एकदम नीचे 4 बादाम और थे।*

      *मेरे पिता मुस्कुराए और मेरी आँखों में प्यार से देखते हुए, उन्होंने कहा*  *मेरे बच्चे,तुम्हें याद रखना होगा कि, जब तुम भगवान पर सब कुछ छोड़ देते हो, तो वे हमेशा तुम्हारे लिए सर्वोत्तम का चयन करेंगे।*

    *और जब तुम दूसरों की भलाई के लिए सोचते हो,अच्छी चीजें स्वाभाविक तौर पर आपके साथ भी हमेशा होती रहेंगी ।*


*#शिक्षा: बड़ों का सम्मान करते हुए उन्हें पहले मौका व स्थान देवें, बड़ों का आदर-सम्मान करोगे तो कभी भी खाली हाथ नही लौटोगे।*

 "*अनुभव व दृष्टि का ज्ञान व विवेक के साथ सामंजस्य हो जाये बस यही सार्थक जीवन है।"*🚩🙏

। श्री रामचरित्रमानस प्रवचन ।।

🙏🐘🦜🙏

महाराज दशरथ को जब संतान प्राप्ति नहीं हो रही थी तब वो बड़े दुःखी रहते थे...

पर ऐसे समय में उनको एक ही बात से हौंसला मिलता था जो कभी उन्हें आशाहीन नहीं होने देता था...

और वह था श्रवण के पिता का श्राप....

दशरथ जब-जब दुःखी होते थे तो उन्हें श्रवण के पिता का दिया श्राप याद आ जाता था...

( कालिदास ने रघुवंशम में इसका वर्णन किया है )

श्रवण के पिता ने ये श्राप दिया था ।

कि....

''जैसे मैं पुत्र वियोग में तड़प-तड़प के मर रहा हूँ वैसे ही तू भी तड़प-तड़प कर मरेगा.....''

दशरथ को पता था कि ये श्राप अवश्य फलीभूत होगा और इसका मतलब है कि मुझे इस जन्म में तो जरूर पुत्र प्राप्त होगा.... 

( तभी तो उसके शोक में मैं तड़प के मरूँगा )

यानि यह श्राप दशरथ के लिए संतान प्राप्ति का सौभाग्य लेकर आया....

ऐसी ही एक घटना सुग्रीव के साथ भी हुई....

वाल्मीकि रामायण में वर्णन है कि सुग्रीव जब माता सीता की खोज में वानर वीरों को पृथ्वी की अलग - अलग दिशाओं में भेज रहे थे....

तो उसके साथ-साथ उन्हें ये भी बता रहे थे कि किस दिशा में तुम्हें कौन सा स्थान या देश मिलेगा और किस दिशा में तुम्हें जाना चाहिए या नहीं जाना चाहिये....

प्रभु श्रीराम सुग्रीव का ये भगौलिक ज्ञान देखकर हतप्रभ थे...

उन्होंने सुग्रीव से पूछा कि सुग्रीव तुमको ये सब कैसे पता...?

तो सुग्रीव ने उनसे कहा कि...

 ''मैं बाली के भय से जब मारा-मारा फिर रहा था तब पूरी पृथ्वी पर कहीं शरण न मिली... 

और इस चक्कर में मैंने पूरी पृथ्वी छान मारी और इसी दौरान मुझे सारे भूगोल का ज्ञान हो गया....''

अब अगर सुग्रीव पर ये संकट न आया होता तो उन्हें भूगोल का ज्ञान नहीं होता और माता जानकी को खोजना कितना कठिन हो जाता...

इसीलिए किसी ने बड़ा सुंदर कहा है :-

"अनुकूलता भोजन है, प्रतिकूलता विटामिन है और चुनौतियाँ वरदान है और जो उनके अनुसार व्यवहार करें....

वही पुरुषार्थी है...."

ईश्वर की तरफ से मिलने वाला हर एक पुष्प अगर वरदान है.......

तो हर एक काँटा भी वरदान ही समझें....

मतलब.....

अगर आज मिले सुख से आप खुश हो...

तो कभी अगर कोई दुख, विपदा, अड़चन आजाये.....

तो घबरायें नहीं.... 

क्या पता वो अगले किसी सुख की तैयारी हो....

*सदैव सकारात्मक रहें..*
🙏🙏🌹जय श्री राम राम राम सीता राम 🌹🙏🙏

पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 
" Opp. Shri Dhanlakshmi Strits , Marwar Strits, RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
सेल नंबर: . + 91- 7010668409 / + 91- 7598240825 WHATSAPP नंबर : + 91 7598240825 ( तमिलनाडु )
Skype : astrologer85
Email: prabhurajyguru@gmail.com
आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद.. 
नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏

।। हिदी भाषा मे सांस्कृतिक दर्शन ।।*विवाह उपरांत जीवन साथी को छोड़ने के लिए इन शब्दों का प्रयोग किया जाता है*

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

।। हिदी भाषा मे सांस्कृतिक दर्शन ।।

*विवाह उपरांत जीवन साथी को छोड़ने के लिए इन शब्दों का प्रयोग किया जाता है*

*1-अंग्रेजी में 'Divorce'*
*2-उर्दू में 'तलाक'
*3-और हिन्दी में....? कृपया हिन्दी का शब्द बताएँ..??*

कहानी आजतक के Editor संजय सिन्हा की लिखी है :

तब मैं जनसत्ता में नौकरी करता था।  एक दिन खबर आई कि एक आदमी ने झगड़े के बाद अपनी पत्नी की हत्या कर दी।  मैंने खब़र में हेडिंग लगाई कि पति ने अपनी बीवी को मार डाला।  खबर छप गई।  किसी को आपत्ति नहीं थी।  पर शाम को दफ्तर से घर के लिए निकलते हुए प्रधान संपादक श्री प्रभाष जोशी जी सीढ़ी के पास मिल गए।  मैंने उन्हें नमस्कार किया तो कहने लगे कि संजय जी, पति की बीवी नहीं होती। 




“पति की बीवी नहीं होती?” मैं चौंका था
“बीवी तो शौहर की होती है, मियाँ की होती है।  पति की तो पत्नी होती है"

भाषा के मामले में प्रभाष जी के सामने मेरा टिकना मुमकिन नहीं था।  हालाँकि मैं कहना चाह रहा था कि भाव तो साफ है न ?  बीवी कहें या पत्नी या फिर वाइफ, सब एक ही तो हैं।  लेकिन मेरे कहने से पहले ही उन्होंने मुझसे कहा कि "भाव अपनी जगह है, शब्द अपनी जगह"।  कुछ शब्द कुछ जगहों के लिए बने ही नहीं होते, ऐसे में शब्दों का घालमेल गड़बड़ी पैदा करता है। 

प्रभाष जी आमतौर पर उपसंपादकों से लंबी बातें नहीं किया करते थे।  लेकिन उस दिन उन्होंने मुझे टोका था और तब से मेरे मन में ये बात बैठ गई थी कि शब्द बहुत सोच समझ कर गढ़े गए होते हैं। 

खैर, आज मैं भाषा की कक्षा लगाने नहीं आया।  आज मैं रिश्तों के एक अलग अध्याय को जीने के लिए आपके पास आया हूँ।  लेकिन इसके लिए आपको मेरे साथ निधि के पास चलना होगा। 

निधि मेरी दोस्त है।  कल उसने मुझे फोन करके अपने घर बुलाया था।  फोन पर उसकी आवाज़ से मेरे मन में खटका हो चुका था कि कुछ न कुछ गड़बड़ है।  मैं शाम को उसके घर पहुँचा।  उसने चाय बनाई और मुझसे बात करने लगी।  पहले तो इधर-उधर की बातें हुईं, फिर उसने कहना शुरू कर दिया कि नितिन से उसकी नहीं बन रही और उसने उसे तलाक देने का फैसला कर लिया है।

मैंने पूछा कि नितिन कहाँ है, तो उसने कहा कि अभी कहीं गए हैं, बता कर नहीं गए।  उसने कहा कि बात-बात पर झगड़ा होता है, और अब ये झगड़ा बहुत बढ़ गया है, ऐसे में अब एक ही रास्ता बचा है कि अलग हो जाएँ, तलाक ले लें। 

निधि जब काफी देर बोल चुकी तो मैंने उससे कहा कि तुम नितिन को फोन करो और घर बुलाओ, कहो कि संजय सिन्हा आए हैं। 

निधि ने बताया कि उनकी तो बातचीत नहीं होती, फिर वो फोन कैसे करे?

अज़ीब संकट था।  निधि को मैं बहुत पहले से जानता हूँ।  मैं जानता हूँ कि नितिन से शादी करने के लिए उसने घर में कितना संघर्ष किया था।  बहुत मुश्किल से दोनों के घर वाले राज़ी हुए थे, फिर धूमधाम से शादी हुई थी, ढेर सारी रस्म पूरी की गईं थीं।  ऐसा लगता था कि ये जोड़ी ऊपर से बन कर आई है।  पर शादी के कुछ ही साल बाद दोनों के बीच झगड़े होने लगे दोनों एक-दूसरे को खरी-खोटी सुनाने लगे और आज उसी का नतीज़ा था कि संजय सिन्हा निधि के सामने बैठे थे उनके बीच के टूटते रिश्तों को बचाने के लिए। 

खैर, निधि ने फोन नहीं किया मैंने ही फोन किया और पूछा कि तुम कहाँ हो,  मैं तुम्हारे घर पर हूँ, आ जाओ।  नितिन पहले तो आनाकानी करता रहा, पर वो जल्दी ही मान गया और घर चला आया। 

अब दोनों के चेहरों पर तनातनी साफ नज़र आ रही थी, ऐसा लग रहा था कि कभी दो जिस्म-एक जान कहे जाने वाले ये पति-पत्नी आँखों ही आँखों में एक दूसरे की जान ले लेंगे।  दोनों के बीच कई दिनों से बातचीत नहीं हुई थी। 

नितिन मेरे सामने बैठा था।  मैंने उससे कहा कि सुना है कि तुम निधि से तलाक लेना चाहते हो। 

उसने कहा, “हाँ, बिल्कुल सही सुना है, अब हम साथ नहीं रह सकते"

मैंने कहा कि "तुम चाहो तो अलग रह सकते हो, पर तलाक नहीं ले सकते"

“क्यों?"

“क्योंकि तुमने निकाह तो किया ही नहीं है”

अरे यार, हमने शादी तो की है

हाँ, शादी तो की है।  लेकिन, शादी में पति-पत्नी के बीच इस तरह अलग होने का कोई प्रावधान नहीं है।  अगर तुमने "मैरिज़" की होती तो तुम "डाइवोर्स" ले सकते थे, अगर तुमने "निकाह" किया होता तो तुम "तलाक" ले सकते थे।  लेकिन क्योंकि तुमने शादी की है, इसका मतलब ये हुआ कि हिंदू धर्म और हिंदी में कहीं भी पति-पत्नी के एक हो जाने के बाद अलग होने का कोई प्रावधान है ही नहीं..

मैंने इतनी-सी बात पूरी गंभीरता से कही थी, पर दोनों हँस पड़े थे।  दोनों को साथ-साथ हँसते देख कर मुझे बहुत खुशी हुई थी, मैंने समझ लिया था कि रिश्तों पर पड़ी बर्फ अब पिघलने लगी है।  वो हँसे, लेकिन मैं गंभीर बना रहा..

मैंने फिर निधि से पूछा कि ये तुम्हारे कौन हैं?  निधि ने नज़रे झुका कर कहा कि पति हैं।  
मैंने यही सवाल नितिन से किया कि ये तुम्हारी कौन हैं? उसने भी नज़रें इधर-उधर घुमाते हुए कहा कि बीवी हैं। 

मैंने तुरंत टोका ये तुम्हारी बीवी नहीं हैं।  ये तुम्हारी बीवी इसलिए नहीं हैं क्योंकि तुम इनके शौहर नहीं।  तुम इनके शौहर नहीं, क्योंकि तुमने इनसे साथ निकाह नहीं किया।  तुमने शादी की है शादी के बाद ये तुम्हारी पत्नी हुईं।  हमारे यहाँ जोड़ी ऊपर से बन कर आती है।  तुम भले सोचो कि शादी तुमने की है, पर ये सत्य नहीं है, तुम शादी का एलबम निकाल कर लाओ, मैं सब कुछ अभी इसी वक्त साबित कर दूंगा

बात अलग दिशा में चल पड़ी थी।  मेरे एक-दो बार कहने के बाद निधि शादी का एलबम निकाल लाई।  अब तक माहौल थोड़ा ठंडा हो चुका था, एलबम लाते हुए उसने कहा कि कॉफी बना कर लाती हूँ

मैंने कहा कि अभी बैठो, इन तस्वीरों को देखो।  कई तस्वीरों को देखते हुए मेरी निगाह एक तस्वीर पर गई जहाँ निधि और नितिन शादी के जोड़े में बैठे थे, और पांव-पूजन की रस्म चल रही थी।  मैंने वो तस्वीर एलबम से निकाली और उनसे कहा कि इस तस्वीर को गौर से देखो

उन्होंने तस्वीर देखी और साथ-साथ पूछ बैठे कि इसमें खास क्या है?

मैंने कहा कि ये पैर-पूजन का रस्म है।  तुम दोनों इन सभी लोगों से छोटे हो, जो तुम्हारे पांव छू रहे हैं


“हाँ, तो?"

“ये एक रस्म है, ऐसी रस्म संसार के किसी धर्म में नहीं होती, जहाँ छोटों के पांव बड़े छूते हों।  लेकिन हमारे यहाँ शादी को ईश्वरीय विधान माना गया है।  इसलिए ऐसा माना जाता है कि शादी के दिन पति-पत्नी दोनों विष्णु और लक्ष्मी के रूप हो जाते हैं, दोनों के भीतर ईश्वर का निवास हो जाता है।  अब तुम दोनों खुद सोचो कि क्या हज़ारों-लाखों साल से विष्णु जी और लक्ष्मी जी कभी अलग हुए हैं, दोनों के बीच कभी झिकझिक हुई भी हो तो क्या कभी तुम सोच सकते हो कि दोनों अलग हो जाएंगे?  नहीं होंगे।  हमारे यहाँ इस रिश्ते में ये प्रावधान है ही नहीं।  "तलाक" शब्द हमारा नहीं है, और "डाइवोर्स" शब्द भी हमारा नहीं है

यहीं दोनों से मैंने ये भी पूछा कि : बताओ कि हिंदी में "तलाक" को क्या कहते हैं?

दोनों मेरी ओर देखने लगे, उनके पास कोई जवाब था ही नहीं।  फिर मैंने ही कहा कि दरअसल हिंदी में "तलाक" शब्द  का कोई विकल्प है ही नहीं।  हमारे यहाँ तो ऐसा माना जाता है कि एक बार एक हो गए तो कई जन्मों के लिए एक हो गए।  तो प्लीज़ जो हो ही नहीं सकता, उसे करने की कोशिश भी मत करो, या फिर पहले एक दूसरे से निकाह कर लो, फिर तलाक ले लेना

अब तक रिश्तों पर जमी बर्फ काफी पिघल चुकी थी

निधि चुपचाप मेरी बातें सुन रही थी फिर उसने कहा कि

भैया, मैं कॉफी लेकर आती हूँ..  

वो कॉफी लाने गई, मैंने नितिन से बातें शुरू कर दीं।  बहुत जल्दी पता चल गया कि बहुत ही छोटी-छोटी बातें हैं, बहुत ही छोटी-छोटी इच्छाएँ हैं, जिनकी वज़ह से झगड़े हो रहे हैं

खैर, कॉफी आई मैंने एक चम्मच चीनी अपने कप में डाली, नितिन के कप में चीनी डाल ही रहा था कि निधि ने रोक लिया, “भैया इन्हें शुगर है, चीनी नहीं लेंगे"

लो जी, घंटा भर पहले ये इनसे अलग होने की सोच रही थीं और अब इनके स्वास्थ्य की सोच रही हैं

मैं हँस पड़ा।  मुझे हँसते देख निधि थोड़ा झेंपी।  कॉफी पी कर मैंने कहा कि अब तुम लोग अगले हफ़्ते निकाह कर लो, फिर तलाक में मैं तुम दोनों की मदद करूँगा

लेकिन, शायद अब दोनों समझ चुके थे........ 
---------

*🙏 कृपया ध्यान रखिए........*
*हिन्दी एक भाषा ही नहीं - संस्कृति है*
*इसी तरह हिन्दू भी धर्म नहीं - सभ्यता है*

👆उपरोक्त लेख मुझे बहुत ही अच्छा लगा, तो में आपके सामने दे रहा हु ।
जो सनातन धर्म और संस्कृति से जुड़ा है।  
आप सभी से निवेदन है कि समय निकाल कर इसे पढ़ें, गौर करें।  
अच्छा लगे तो आप अपने मित्रों व आपके पास जो भी ग्रुप हैं उनमें प्रेषित करे👏👏
जय श्री कृष्ण.....!!!

पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
-: 25 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 
" Opp. Shri Dhanlakshmi Strits , Marwar Strits, RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
सेल नंबर: . + 91- 7010668409 / + 91- 7598240825 WHATSAPP नंबर : + 91 7598240825 ( तमिलनाडु )
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Email: prabhurajyguru@gmail.com
आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद.. 
नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏

।। श्री कृष्ण के परम भक्त नरसिह महेता ।।

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

।। श्री कृष्ण के परम भक्त नरसिह महेता ।।


**नरसी भगत**

एक बार जूनागढ़ में कवि नरसी जी महेता का बड़ा भाई भाई नरसी जी के घर आया।

पिता जी का वार्षिक श्राद्ध करना था।

भाई ने नरसी जी से कहा :- 




'कल पिताजी का वार्षिक श्राद्ध करना है।

कहीं अड्डेबाजी मत करना बहु को लेकर मेरे यहाँ आ जाना।

काम-काज में हाथ बटाओगे तो तुम्हारी भाभी को आराम मिलेगा।'

नरसी जी ने कहा :- 

'पूजा पाठ करके ही आ
सकूँगा।'

इतना सुनना था कि बड़ा भाई उखड गए और बोले :-

 'जिन्दगी भर यही सब करते रहना।

जिसकी गृहस्थी भिक्षा से चलती है, उसकी सहायता की मुझे जरूरत नहीं है।

तुम पिताजी का श्राद्ध अपने घर पर अपने हिसाब से कर लेना।'

नरसी जी ने कहा :-

``नाराज क्यों होते हो भैया?'

मेरे पास जो कुछ भी है, मैं उसी से श्राद्ध कर लूँगा।

'दोनों भाईयों के बीच श्राद्ध को लेकर झगडा हो गया है, नागर-मंडली को मालूम हो गया।'

नरसी अलग से श्राद्ध करेगा, ये सुनकर नागर मंडली ने बदला लेने की सोची।

पुरोहित प्रसन्न राय ने सात सौ ब्राह्मणों को नरसी के यहाँ आयोजित श्राद्ध में आने के लिए आमंत्रित कर दिया।

अब कहीं से इस षड्यंत्र का पता नरसी मेहता जी की पत्नी मानिकबाई जी को लग गया वह चिंतित हो उठी।

अब दुसरे दिन नरसी जी स्नान के बाद श्राद्ध के लिए घी लेने बाज़ार गए।

नरसी जी घी उधार में चाहते थे पर किसी ने उनको घी नहीं दिया।

अंत में एक दुकानदार राजी हो गया पर ये शर्त

रख दी कि नरसी को भजन सुनाना पड़ेगा।

बस फिर क्या था, मन पसंद काम और उसके बदले घी मिलेगा, ये तो आनंद हो गया।

अब हुआ ये कि नरसी जी भगवान का भजन सुनाने में इतने तल्लीन हो गए कि ध्यान ही नहीं रहा कि घर में श्राद्ध है।

अब नरसी मेहता जी गाते गए भजन उधर नरसी के रूप में *भगवान कृष्ण* 
श्राद्ध कराते रहे।

यानी की दुकानदार के यहाँ नरसी जी भजन गा रहे हैं और वहां श्राद्ध 

*"कृष्ण भगवान"*

 नरसी जी के भेस में करवा रहे हैं।


जय हो, जय हो वाह प्रभू क्या माया है.....

वो कहते हैं ना की :-

*"अपना मान भले टल जाए, भक्त का मान न टलते देखा।*
*प्रबल प्रेम के पाले पड़ कर, प्रभु को नियम बदलते देखा,*
*अपना मान भले टल जाये, भक्त मान नहीं टलते देखा।"*

तो महाराज सात सौ ब्राह्मणों ने छककर भोजन किया।

दक्षिणा में एक एक अशर्फी भी प्राप्त की।

सात सौ ब्राह्मण आये तो थे नरसी जी का अपमान करने और कहाँ बदले में सुस्वादु भोजन और अशर्फी दक्षिणा के रूप में...
नरसी जी को होश आया तो घर आए और बोले आने में ज़रा देर हो गयी।

क्या करता, कोई उधार का घी भी नहीं दे रहा पत्नि बोली स्वयं खड़े होकर तुमने श्राद्ध का सारा कार्य किया।

ब्राह्मणों को भोजन करवाया, दक्षिणा दी।

ये बात सुनते ही नरसी जी समझ गए कि उनके इष्ट स्वयं उनका मान रख गए।

गरीब के मान को, भक्त की लाज को परम प्रेमी करूणामय भगवान् ने बचा ली।

मन भर कर गाते रहे :-

**दिल कभी ना लगाना दुनिया से *दर्द ही पाओगे
बीती बातेँ याद करके रोते ही रह जाओगे।।

   करना ही है तो करो भजन श्याम का
      हमेशा उम्मीद से दुगुना ही पाओगे।।

*बंधन मुक्ति..!!*



    
*राजा परीक्षित को श्रीमद्भागवत पुराण सुनातें हुए जब शुकदेव जी महाराज को छह दिन बीत गए और तक्षक ( सर्प ) के काटने से मृत्यु होने का एक दिन शेष रह गया, तब भी राजा परीक्षित का शोक और मृत्यु का भय दूर नहीं हुआ।*

*अपने मरने की घड़ी निकट आती देखकर राजा का मन क्षुब्ध हो रहा था।* 

*तब शुकदेव जी महाराज ने परीक्षित को एक कथा सुनानी आरंभ की।* 

*राजन !*

*बहुत समय पहले की बात है, एक राजा किसी जंगल में शिकार खेलने गया।* 

*संयोगवश वह रास्ता भूलकर बड़े घने जंगल में जा पहुँचा।*

*उसे रास्ता ढूंढते-ढूंढते रात्रि पड़ गई और भारी वर्षा पड़ने लगी।*

*जंगल में सिंह व्याघ्र आदि बोलने लगे।* 

*वह राजा बहुत डर गया और किसी प्रकार उस भयानक जंगल में रात्रि बिताने के लिए विश्राम का स्थान ढूंढने लगा।* 

*रात के समय में अंधेरा होने की वजह से उसे एक दीपक दिखाई दिया।*

*वहाँ पहुँचकर उसने एक गंदे बहेलिये की झोंपड़ी देखी ।* 

*वह बहेलिया ज्यादा चल-फिर नहीं सकता था, इसलिए झोंपड़ी में ही एक ओर उसने मल-मूत्र त्यागने का स्थान बना रखा था।* 

*अपने खाने के लिए जानवरों का मांस उसने झोंपड़ी की छत पर लटका रखा था।* 

*बड़ी गंदी, छोटी, अंधेरी और दुर्गंधयुक्त वह झोंपड़ी थी।* 

*उस झोंपड़ी को देखकर पहले तो राजा ठिठका, लेकिन पीछे उसने सिर छिपाने का कोई और आश्रय न देखकर उस बहेलिये से अपनी झोंपड़ी में रात भर ठहर जाने देने के लिए प्रार्थना की।*

*बहेलिये ने कहा कि आश्रय के लोभी राहगीर कभी-कभी यहाँ आ भटकते हैं।* 

*मैं उन्हें ठहरा तो लेता हूँ, लेकिन दूसरे दिन जाते समय वे बहुत झंझट करते हैं।*

*इस झोंपड़ी की गंध उन्हें ऐसी भा जाती है कि फिर वे उसे छोड़ना ही नहीं चाहते और इसी में ही रहने की कोशिश करते हैं एवं अपना कब्जा जमाते हैं।* 

*ऐसे झंझट में मैं कई बार पड़ चुका हूँ।*

*इसलिए मैं अब किसी को भी यहां नहीं ठहरने देता।* 
 
*मैं आपको भी इसमें नहीं ठहरने दूंगा।*

*राजा ने प्रतिज्ञा की कि वह सुबह होते ही इस झोंपड़ी को अवश्य खाली कर देगा।*

*उसका काम तो बहुत बड़ा है, यहाँ तो वह संयोगवश भटकते हुए आया है, सिर्फ एक रात्रि ही काटनी है।*

*बहेलिये ने राजा को ठहरने की अनुमति दे दी l*

*बहेलिये ने सुबह होते ही बिना कोई झंझट किए झोंपड़ी खाली कर देने की शर्त को फिर दोहरा दिया ।*

*राजा रात भर एक कोने में पड़ा सोता रहा।*

*सोने पर झोंपड़ी की दुर्गंध उसके मस्तिष्क में ऐसी बस गई कि सुबह उठा तो वही सब परमप्रिय लगने लगा।* 

*अपने जीवन के वास्तविक उद्देश्य को भूलकर वह वहीं निवास करने की बात सोचने लगा।* 

*वह बहेलिये से अपने और ठहरने की प्रार्थना करने लगा।*

*इस पर बहेलिया भड़क गया और राजा को भला-बुरा कहने लगा।* 

*राजा को अब वह जगह छोड़ना झंझट लगने लगा और दोनों के बीच उस स्थान को लेकर विवाद खड़ा हो गया ।*  

*कथा सुनाकर शुकदेव जी महाराज ने परीक्षित से पूछा,"परीक्षित !* 

*बताओ, उस राजा का उस स्थान पर सदा रहने के लिए झंझट करना उचित था ?"*

*परीक्षित ने उत्तर दिया," भगवन् !* 

*वह कौन राजा था, उसका नाम तो बताइये?*

*वह तो बड़ा भारी मूर्ख जान पड़ता है, जो ऐसी गंदी झोंपड़ी में, अपनी प्रतिज्ञा तोड़कर एवं अपना वास्तविक उद्देश्य भूलकर, नियत अवधि से भी अधिक रहना चाहता है।*

*उसकी मूर्खता पर तो मुझे आश्चर्य होता है।*

*"श्री शुकदेव जी महाराज ने कहा," हे राजा परीक्षित ! 

वह बड़े भारी मूर्ख तो स्वयं आप ही हैं। 

इस मल-मूल की गठरी देह ( शरीर ) में जितने समय आपकी आत्मा को रहना आवश्यक था, वह अवधि तो कल समाप्त हो रही है। 

अब आपको उस लोक जाना है, जहाँ से आप आएं हैं। 

फिर भी आप झंझट फैला रहे हैं और मरना नहीं चाहते। 

क्या यह आपकी मूर्खता नहीं है.??*

*राजा परीक्षित का ज्ञान जाग पड़ा और वे बंधन मुक्ति के लिए सहर्ष तैयार हो गए।*

*वास्तव में यही सत्य है।* 

*जब एक जीव अपनी माँ की कोख से जन्म लेता है तो अपनी माँ की कोख के अन्दर भगवान से प्रार्थना करता है कि हे भगवन् !* 

*मुझे यहाँ ( इस कोख ) से मुक्त कीजिए, मैं आपका भजन-सुमिरन करूँगा और जब वह जन्म लेकर इस संसार में आता है  पैदा होते ही रोने लगता है।* 

*फिर उस गंध से भरी झोंपड़ी की तरह उसे यहाँ की खुशबू ऐसी भा जाती है कि वह अपना वास्तविक उद्देश्य भूलकर यहाँ से जाना ही नहीं चाहता ।* 

*अतः संसार में आने के अपने वास्तविक उद्देश्य को पहचाने और उसको प्राप्त करें ऐसा कर लेने पर आपको मृत्यु का भय नहीं सताएगा..!!*
जय श्री कृष्ण

प्रेम से बोलो राधे राधे. 🙏🙏🌹🌹

पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
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सबसे बडा रोग , विधि का विधान कोई टाल नहीं सकता , श्री राधा - माधव - प्रर्वचन

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

सबसे बडा रोग , विधि का विधान कोई टाल नहीं सकता ,  श्री राधा - माधव - प्रर्वचन


श्री राधा - माधव - प्रर्वचन

*वृषभानुनन्दी*

( श्रीराधाजी का भाव ) 
           

श्रीकृष्णको आह्वादित करती है...!

और उसी शक्तिके द्वारा उस सुखका आस्वाद स्वयं करते है....!

श्रीकृष्णको आह्वादित करके स्वयं आह्वादित होती है । 

'' *त्तसुखे सुखित्वम* " 

यह प्रेमका स्वरूप है, बड़ी सुन्दर चीज है । 

जहाँ अपने सुखकी बांछा है...!

किसीके द्वारा, भगवानके द्वारा भी; मोक्षकी भी प्रेम नहीं है, काम है ।

 "*निजेन्द्रिय प्रीती इच्छा, तार नाम काम* । " 

कामना और प्रेममें यही अन्तर है, कामना चाहती ही अपना सुख और प्रेम चाहता है प्रेमास्पदका सुख । 

यही भेद है । 

इसी लिये गोपियोंका ' काम ' शब्द प्रेमका ही वाचक है...!

      *प्रेमव गोपरामाणां काम इत्यगमतपरतथाम*

         गोपियों को काम - काम नहीं था । 

उसका नाम है, पर वहाँ काम - गन्ध-लेश भी नहीं है, यही दिव्य प्रेम है ।

           जो आह्वादीनि शक्ति है । 

वह श्रीकृष्ण को आह्वादित करती है और '*आह्वादनीर सार अंश प्रेम तार नाम*' जो उसका सार अंश है, उसका नाम प्रेम है । 

वह प्रेम आनन्द - चिन्मय रस है और  इस प्रेमका जो परम् सार है वह  महाभाव है । 



इसी महाभाव की मूर्तिमती प्रतिमा महाभावरूपा ये राधारानीजी है, एक मूर्तिमती प्रेम-देवी है । 


कहते है कि यह प्रेमका जो सार है वही राधा बन गया है । 

ये श्रीकृष्णकी परमोत्कृष्ट प्रेयसी है, श्रीकृष्णवांछा पूर्ण करना ही इनके जीवनका कार्य है । 

इनमें काम-क्रोध, बन्ध - मोक्ष, भक्ति  - मुक्ति कुछ भी नही है । 

श्रीकृष्णकी इच्छा को पूर्ण करना यहीं इनका सबरूप -स्वभाव है । 

यह बडी भारी अनोखी चीज है भगवान इच्छारहित है, वे इच्छावाले बन जाते है ।

छोटे लोग....

      ऑफिस जाने के लिए मैं घर से निकला, तो देखा, कार पंचर थी. मुझे बेहद झुंझलाहट हुई. ठंड की वजह से आज मैं पहले ही लेट हो गया था. 11 बजे ऑफिस में एक आवश्यक मीटिंग थी, उस पर यह कार में पंचर… मैं सोसायटी के गेट पर आ खड़ा हुआ, सोचा टैक्सी बुला लूं. तभी सामने से ऑटो आता दिखाई दिया. उसे हाथ से रुकने का संकेत देते हुए मन में हिचकिचाहट-सी महसूस हुई. 

     इतनी बड़ी कंपनी का जनरल मैनेजर और ऑटो से ऑफिस जाए, किंतु इस समय विवशता थी. मीटिंग में डायरेक्टर भी सम्मलित होनेवाले थे. देर से पहुंचा, तो इम्प्रैशन ख़राब होने का डर था. ऑटो रुका. कंपनी का नाम बताकर मैं फुरती से उसमें बैठ गया. थोड़ी दूर पहुंचकर यकायक ऑटोवाले ने ब्रेक लगा दिए.

‘‘अरे क्या हुआ? 
रुक क्यों गए?" 
मैंने पूछा.
‘‘एक मिनट साहब, वह सोसायटी के गेट पर जो सज्जन खड़े हैं, उन्हें थोड़ी दूर पर छोड़ना है.’’ ऑटो चालक ने विनम्रता से कहा.
‘‘नहीं, तुम ऐसा नहीं कर सकते.’’ मैं क्रोध में चिल्लाया.

‘‘एक तो मुझे देर हो रही है, दूसरे मैं पूरे ऑटो के पैसे दे रहा हूं, फिर क्यों किसी के साथ सीट शेयर करुंगा?"

‘‘साहब, मुझे इन्हें सिटी लाइब्रेरी पर उतारना है, जो आपके ऑफिस के रास्ते में ही पड़ेगी. अगर आपको फिर भी ऐतराज़ है, तो आप दूसरा ऑटो पकड़ने के लिए स्वतंत्र हैं. मैं आपसे यहां तक के पैसे नहीं लूंगा.’’ ऑटो चालक के स्वर की दृढ़ता महसूस कर मैं ख़ामोश हो गया. यूं भी ऐसे छोटे लोगों के मुंह लगना मैं पसंद नहीं करता था.

     उसने सड़क के किनारे खड़े सज्जन को बहुत आदर के साथ अपने बगलवाली सीट पर बैठाया और आगे बढ़ गया. उन सम्भ्रांत से दिखनेवाले सज्जन के लिए मेरे मन में एक पल को विचार कौंधा कि मैं उन्हें अपने पास बैठा लूं फिर यह सोचकर कि पता नहीं कौन हैं… मैंने तुरंत यह विचार मन से झटक दिया. कुछ किलोमीटर दूर जाकर सिटी लाइब्रेरी आ गई. ऑटोवाले ने उन्हें वहां उतारा और आगे बढ़ गया.

‘‘कौन हैं यह सज्जन?" 
उसका आदरभाव देख मेरे मन में जिज्ञासा जागी.

उसने बताया, ‘‘साहब, ये यहां के डिग्री कॉलेज के रिटायर्ड प्रिंसिपल डॉक्टर खन्ना हैं. सर के मेरे ऊपर बहुत उपकार हैं. मैं कॉमर्स में बहुत कमज़ोर था. घर की आर्थिक स्थिति अच्छी न होने के कारण ट्यूशन फीस देने में असमर्थ था. दो साल तक सर ने मुझे बिना फीस लिए कॉमर्स पढ़ाया, जिसकी बदौलत मैंने बी काॅम 80 प्रतिशत मार्क्स से पास किया. अब सर की ही प्रेरणा से मैं बैंक की परीक्षाएं दे रहा हूं.’’ ‘‘वैरी गुड,’’ मैं उसकी प्रशंसा किए बिना नहीं रह सका.

‘‘तुम्हारा नाम क्या है?" 
मैंने पूछा.

‘‘संदीप नाम है मेरा. तीन साल पूर्व सर रिटायर हो गए थे. पिछले साल इनकी पत्नी का स्वर्गवास हो गया. 

हालांकि बेटे बहू साथ रहते हैं, फिर भी अकेलापन तो लगता ही होगा इसीलिए रोज सुबह दस बजे लाइब्रेरी चले जाते हैं. साहब, मैं शहर में कहीं भी होऊं, सुबह दस बजे सर को लाइब्रेरी छोड़ना और दोपहर दो बजे वापिस घर पहुंचाना नहीं भूलता. सर तो कहते भी हैं कि वह स्वयं चले जाएंगे, किंतु मेरा मन नहीं मानता. जब भी वह साथ जाने से इंकार करते हैं, मैं उनसे कहता हूं कि यह मेरी उनके प्रति गुरुदक्षिणा है और सर की आंखें भीग जाती हैं. न जाने कितने बहानों से वह मेरी मदद करते ही रहते हैं. साहब, मेरा मानना है, हम अपने मां-बाप और गुरु के ऋण से कभी उऋण नहीं हो सकते.’

मैं निःशब्द मौन संदीप के कहे शब्दों का प्रहार अपनी आत्मा पर झेलता रहा. ज़ेहन में कौंध गए वे दिन जब मैं भी इसी डिग्री कॉलेज का छात्र था. साथ ही डॉ. खन्ना का फेवरेट स्टूडेंट भी. एम एस सी मैथ्स में एडमीशन लेना चाहता था. उन्हीं दिनों पापा को सीवियर हार्टअटैक पड़ा. मैं और मम्मी बदहवास से हॉस्पिटल के चक्कर लगाते रहे.

डॉक्टरों के अथक प्रयास के पश्चात् पापा की जान बची. इस परेशानी में कई दिन बीत गए और फार्म भरने की अंतिम तिथि निकल गई. उस समय मैंने डा. खन्ना को अपनी परेशानी बताई और उनसे अनुरोध किया कि वह मेरी मदद करें. डॉ. खन्ना ने मैनेजमैन्ट से बात करके स्पेशल केस के अन्तर्गत मेरा एडमीशन करवाया और मेरा साल ख़राब होने से बच गया था. कॉलेज छोड़ने के पश्चात् मैं इस बात को बिल्कुल ही भूला दिया. 

यहां तक कि आज जब डॉ. खन्ना मेरे सम्मुख आए, तो अपने पद के अभिमान में चूर मैंने उनकी तरफ़ ध्यान भी नहीं दिया.

आज मेरी अंतरात्मा मुझसे प्रश्न कर रही थी कि हम दोनों में से छोटा कौन था, वह इंसान जो अपनी आमदनी की परवाह न करके गुरुदक्षिणा चुका रहा था या फिर एक कंपनी का जनरल मैनेजर, जो अपने गुरु को पहचान तक न सका था.....!!

                   । श्री राधे राधे जी ।
                  । श्रीकृष्णम शरणम ।
                   । जय द्वारकाधीश ।।

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विधि का विधान कोई टाल नहीं सकता🔥*



*भगवान विष्णु गरुड़ पर बैठ कर कैलाश पर्वत पर गए।* 

*द्वार पर गरुड़ को छोड़ कर खुद शिव से मिलने अंदर चले गए।* 

*तब कैलाश की अपूर्व प्राकृतिक शोभा को देख कर गरुड़ मंत्रमुग्ध थे कि तभी उनकी नजर एक खूबसूरत छोटी सी चिड़िया पर पड़ी।*

       *चिड़िया कुछ इतनी सुंदर थी कि गरुड़ के सारे विचार उसकी तरफ आकर्षित होने लगे।* 

*उसी समय कैलाश पर यम देव पधारे और अंदर जाने से पहले उन्होंने उस छोटे से पक्षी को आश्चर्य की द्रष्टि से देखा।* 

*गरुड़ समझ गए उस चिड़िया का अंत निकट है और यमदेव कैलाश से निकलते ही उसे अपने साथ यमलोक ले जाएँगे।*

 *गरूड़ को दया आ गई।* 

*इतनी छोटी और सुंदर चिड़िया को मरता हुआ नहीं देख सकते थे।* 

*उसे अपने पंजों में दबाया और कैलाश से हजारो कोश दूर एक जंगल में एक चट्टान के ऊपर छोड़ दिया, और खुद वापिस कैलाश पर आ गया।* 

*आखिर जब यम बाहर आए तो गरुड़ ने पूछ ही लिया कि उन्होंने उस चिड़िया को इतनी आश्चर्य भरी नजर से क्यों देखा था।* 

*यम देव बोले....*

*" गरुड़ जब मैंने उस चिड़िया को देखा तो मुझे ज्ञात हुआ कि वो चिड़िया कुछ ही पल बाद यहाँ से हजारों कोस दूर एक नाग द्वारा खा ली जाएगी।* 

*मैं सोच रहा था कि वो इतनी जलदी इतनी दूर कैसे जाएगी, पर अब जब वो यहाँ नहीं है तो निश्चित ही वो मर चुकी होगी।* 

*"गरुड़ समझ गये " मृत्यु टाले नहीं टलती चाहे कितनी भी चतुराई की जाए।"*

  *इस लिए प्रभु कहते है।* 

*करता तू वह है जो तू चाहता है परन्तु होता वह है जो में चाहता हूँ कर तू वह जो में चाहता हूँ फिर होगा वो जो तू चाहेगा ।*

*जीवन के 6 सत्य:-*

*1. कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप कितने खूबसूरत हैं ?* 

*क्योंकि..* 

*लँगूर और गोरिल्ला भी अपनी ओर लोगों का ध्यान आकर्षित कर लेते हैं..*

*2. कोई फर्क नहीं पड़ता कि आपका शरीर कितना विशाल और मज़बूत है ।*

*क्योंकि...*

*श्मशान तक आप अपने आपको नहीं ले जा सकते....*

*3. आप कितने भी लम्बे क्यों न हों , मगर आने वाले कल को आप नहीं देख सकते....*

*4. कोई फर्क नहीं पड़ता कि , आपकी त्वचा कितनी गोरी और चमकदार है ।*

*क्योंकि...* 

*अँधेरे में रोशनी की जरूरत पड़ती ही है...*

*5 . कोई फर्क नहीं पड़ता कि " आप " नहीं हँसेंगे तो सभ्य कहलायेंगे ?* 

*क्यूंकि ...* 

*" आप " पर हंसने के लिए दुनिया खड़ी है ?*

*6. कोई फर्क नहीं पड़ता कि , आप कितने अमीर हैं ?*

*और दर्जनों गाड़ियाँ आपके पास हैं ?*

*क्योंकि...*

*घर के बाथरूम तक आपको चल के ही जाना पड़ेगा इस लिए संभल के चलिए ज़िन्दगी का सफर छोटा है , हँसते हँसते काटिये , आनंद आएगा ।।*
जय जय श्री कृष्ण...!!!!

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*🌳🦚आज की कहानी🦚🌳*

*💐💐सबसे बडा रोग, क्या कहेंगे लोग*💐💐

बौद्ध भिक्षुक किसी नदी के पनघट पर गया और पानी पीकर पत्थर पर सिर रखकर सो गया। पनघट पर पनिहारिन आती-जाती रहती हैं तो तीन-चार पनिहारिनें पानी के लिए आईं तो एक पनिहारिन ने कहा, आहा! साधु हो गया, फिर भी तकिए का मोह नहीं गया। पत्थर का ही सही, लेकिन रखा तो है। पनिहारिन की बात साधु ने सुन ली। उसने तुरंत पत्थर फेंक दिया। दूसरी बोली, साधु हुआ, लेकिन खीज नहीं गई। अभी रोष नहीं गया, तकिया फेंक दिया। तब साधु सोचने लगा, अब वह क्या करें?

तब तीसरी पनिहारिन बोली, बाबा! यह तो पनघट है, यहां तो हमारी जैसी पनिहारिनें आती ही रहेंगी, बोलती ही रहेंगी, उनके कहने पर तुम बार-बार परिवर्तन करोगे तो साधना कब करोगे? लेकिन एक चौथी पनिहारिन ने बहुत ही सुन्दर और एक बड़ी अद्भुत बात कह दी, साधु, क्षमा करना, लेकिन हमको लगता है, तूने सब कुछ छोड़ा लेकिन अपना चित्त नहीं छोड़ा है, अभी तक वहीं का वहीं बना हुआ है। दुनिया पाखण्डी कहे तो कहे, तू जैसा भी है, हरिनाम लेता रह।

सच है दुनिया का तो काम ही है कहना। ऊपर देखकर चलोगे तो कहेंगे…अभिमानी हो गए।नीचे देखकर चलोगे तो कहेंगे…बस किसी के सामने देखते ही नहीं। आंखे बंद कर दोगे तो कहेंगे कि… ध्यान का नाटक कर रहा है। चारो ओर देखोगे तो कहेंगे कि… निगाह का ठिकाना नहीं। निगाह घूमती ही रहती है और परेशान होकर आंख फोड़ लोगे तो यही दुनिया कहेगी कि… किया हुआ भोगना ही पड़ता है। ईश्वर को राजी करना आसान है, लेकिन संसार को राजी करना असंभव है। दुनिया क्या कहेगी, उस पर ध्यान दोगे तो भजन नहीं कर पाओगे। यह नियम है।

*🚩🚩जय श्री राम🚩🚩*
*सदैव प्रसन्न रहिये!!*
*जो प्राप्त है-पर्याप्त है!!*
🙏🙏🙏🙏🙏🌳जय द्वारकाधीश🌳🙏🙏🙏🙏
पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
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aadhyatmikta ka nasha

एक लोटा पानी।

 श्रीहरिः एक लोटा पानी।  मूर्तिमान् परोपकार...! वह आपादमस्तक गंदा आदमी था।  मैली धोती और फटा हुआ कुर्ता उसका परिधान था।  सिरपर कपड़ेकी एक पु...

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