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जय द्वारकाधीश
।। श्री ऋगवेद श्री विष्णु पुराण और श्री गरुड़ पुराण आधारित श्राद्ध महिमा ।।
श्री ऋगवेद श्री विष्णु पुराण और श्री गरुड़ पुराण आधारित श्राद्ध महिमा के उल्लेख तो
सनातन हिंदू वेद पुराण के अनुसार कार्तिक मास , चैत्र मास और भाद्रपद मास में हीपितृ का पितृ पक्ष कृष्ण पक्ष में होता है ।
जब कार्तिक मास चैत्र मास और भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष में उसका मृत्यु तिथि के अनुसार या तेरस चौदस और अमावसिया के दिन समस्त पितरों के निमित्त श्राद्ध करने की परंपरा है।
सनातन वेद पुराणों अनुसार तो देखे तो समस्त भारत खंड में अलग - अलग स्थानों पर अलग - अलग पितृ के लिए अलग - अलग स्थान का ज्यादा महत्व होता है ।
उसमे मातृ श्राद्ध व तर्पण के लिए प्रसिद्ध तीर्थ है गुजरात के पाटन जिले में स्थित सिद्धपुर।
यह एकमात्र ऐसा तीर्थ है जहां सिर्फ मातृ श्राद्ध का प्रावधान है।
सिद्धपुर में सबसे महत्वपूर्ण स्थल बिंदु सरोवर है।
श्राद्ध पक्ष में यहां लोगों की भीड़ उमड़ती है।
यही सिद्धपुर में मातृ मतलब मातृश्रीजी , बड़ा बहन , दादी मां , मासी , चाची के यह ही सिद्धपुर का वर्णन कई धर्म ग्रंथों में मिलता है।
कपिल मुनि ने भी यही किया था उनका माता का श्राद्ध ।
पौराणिक काल में भगवान विष्णु ने कपिल मुनि के रूप में अवतार लिया था।
उनकी माता का नाम देवहुति और पिता का कर्दम था।
एक समय ऋषि कर्दम तपस्या के लिए वन में चले गए तो देवहुति काफी दुखी हो गई।
ऐसे में पुत्र कपिल मुनि ने सांख्य दर्शन की विवेचना करते हुए उनका ध्यान भगवान विष्णु में केन्द्रित किया।
ऐसे में श्रीहरी में ध्यान लगाते हुए माता देवहुति देवलोकगमन कर गई।
मान्यता है कि बिंदु सरोवर के तट पर माता के देहावसान के पश्चात कपिल मुनि ने उनकी मोक्ष प्राप्ति के लिए अनुष्ठान किया था।
इस के बाद से यह स्थान मातृ मोक्ष स्थल के रूप में प्रसिद्ध हुआ।
कपिल मुनि ने कार्तिक महीने में यह अनुष्ठान किया था।
इस लिए हर साल यहाँ पर कार्तिक महीने में विशाल मेले का आयोजन होता है और दूरदराज से लोग अपनी मां ( बड़ी बहन , बड़ी बुआ , दादी मां , चाची , ताई , मासी ) का श्राद्ध करने के लिए आते हैं।
पितृपक्ष में श्राद्ध से सारे कष्ट हो जाते हैं दूर
पितृपक्ष के दौरान जो लोग पितृपक्ष में दौरान सच्ची श्रद्धा से अपने पितरों का श्राद्ध करते हैं उनके सारे कष्ट दूर हो जाते हैं।
श्राद्ध के दौरान पूर्वज अपने परिजनों के हाथों से ही तर्पण स्वीकार करते हैं।
इस दौरान पितरों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान अवश्य करना चाहिए।
माता के श्राद्ध के लिए प्रसिद्ध है ये तीर्थ स्थान, यहां स्थित पीपल को कहते हैं मोक्ष पीपल कहा जाता है ।
एक कथा ये भी है ।
एक मान्यता यह भी है कि भगवान परशुराम ने भी अपनी माता का श्राद्ध सिद्धपुर में बिंदु सरोवर के तट पर किया था।
मातृ हन्ता के पाप से मुक्त होने के ऋषि परशुराम ने यहां पर कर्मकांड किया था।
सिद्धुपुर में एक पीपल का पवित्र वृक्ष है, जिसको मोक्ष पीपल कहा जाता है और मोक्ष पीपल पर पुत्र माँ की मोक्ष के लिए प्रार्थना करते है।
गुजरात का ( पिण्डारक ) पिंडारा भी है श्राद्ध के लिए प्रसिद्ध तीर्थ, यहां पिंड पानी में डूबते नहीं बल्कि तैरते हैं।
आज में आपको एक ऐसे प्रसिद्ध तीर्थ स्थान के बारे में बता रहे हैं, जिससे कई पौराणिक कहानियां जुड़ी हैं।
मान्यता है कि इस स्थान पर श्राद्ध, पिंडदान और तर्पण करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्त होती है।
ये स्थान है गुजरात में स्थित ( पिण्डारक ) पिंडारा ।
इस क्षेत्र का प्राचीन नाम पिण्डारक ( पिंडारा) या पिण्डतारक है।
यह जगह गुजरात में द्वारिका से लगभग 30 किलोमीटर दूरी और भाटिया से 20 किलोमीटर दूरी पर है।
यहां एक सरोवर है, जिसमें यात्री श्राद्ध करके दिए हुए पिंड सरोवर में डाल देते हैं।
वे पिण्ड सरोवर में डूबते नहीं बल्कि तैरते रहते हैं।
इस चमत्कार को देखने को लिए लोगों की भीड़ उमड़ती है।
यहां कपालमोचन महादेव, मोटेश्वर महादेव और ब्रह्माजी के मंदिर हैं।
साथ ही श्रीवल्लभाचार्य महाप्रभु की बैठक भी है।
कहा जाता है कि यहां महर्षि दुर्वासा का आश्रम था।
इस स्थान से एक मान्यता ये भी जुड़ी है कि महाभारत युद्ध के पश्चात पांडव सभी तीर्थों में अपने मृत बांधवों का श्राद्ध करने आए थे।
पांडव यहां आए तो उन्होंने लोहे का एक पिण्ड बनाया और जब वह पिंड भी जल पर तैर गया तब उन्हें इस बात का विश्वास हुआ कि उनके बंधु-बांधव मुक्त हो गये हैं।
कहते हैं कि महर्षि दुर्वासा के वरदान से इस तीर्थ में पिंड तैरते रहते हैं।
केवल असमर्थ के लिये
गरूड़ पुराण में श्राद्ध महिमा, श्राद्ध नहीं कर सकते तो क्या करें?
श्राद्धकर्म से देवता और पितर तृप्त होते हैं और श्राद्ध करनेवाले का अंतःकरण भी तृप्ति-संतुष्टि का अनुभव करता है।
बूढ़े - बुजुर्गों ने हमारी उन्नति के लिए बहुत कुछ किया है तो उनकी सद्गति के लिए हम भी कुछ करेंगे तो हमारे हृदय में भी तृप्ति-संतुष्टि का अनुभव होगा।
गरुड़ पुराण में महिमा:
कुर्वीत समये श्राद्धं कुले कश्चिन्न सीदति।
आयुः पुत्रान् यशः स्वर्गं कीर्तिं पुष्टिं बलं श्रियम्।।
पशून् सौख्यं धनं धान्यं प्राप्नुयात् पितृपूजनात्।
देवकार्यादपि सदा पितृकार्यं विशिष्यते।।
देवताभ्यः पितृणां हि पूर्वमाप्यायनं शुभम्।
"समयानुसार श्राद्ध करने से कुल में कोई दुःखी नहीं रहता।
पितरों की पूजा करके मनुष्य आयु, पुत्र, यश, स्वर्ग, कीर्ति, पुष्टि, बल, श्री, पशु, सुख और धन-धान्य प्राप्त करता है।
देवकार्य से भी पितृकार्य का विशेष महत्त्व है।
देवताओं से पहले पितरों को प्रसन्न करना अधिक कल्याणकारी है।"
(10.57.59)
"अमावस्या के दिन पितृगण वायुरूप में घर के दरवाजे पर उपस्थित रहते हैं और अपने स्वजनों से श्राद्ध की अभिलाषा करते हैं।
जब तक सूर्यास्त नहीं हो जाता, तब तक वे भूख-प्यास से व्याकुल होकर वहीं खड़े रहते हैं।
सूर्यास्त हो जाने के पश्चात वे निराश होकर दुःखित मन से अपने-अपने लोकों को चले जाते हैं।
अतः अमावस्या के दिन प्रयत्नपूर्वक श्राद्ध अवश्य करना चाहिए।
यदि पितृजनों के पुत्र तथा बन्धु-बान्धव उनका श्राद्ध करते हैं और गया - तीर्थ में जाकर इस कार्य में प्रवृत्त होते हैं तो वे उन्ही पितरों के साथ ब्रह्मलोक में निवास करने का अधिकार प्राप्त करते हैं।
उन्हें भूख - प्यास कभी नहीं लगती।
इसी लिए विद्वान को प्रयत्नपूर्वक यथाविधि शाकपात से भी अपने पितरों के लिए श्राद्ध अवश्य करना चाहिए।
जो लोग अपने पितृगण, देवगण, ब्राह्मण तथा अग्नि की पूजा करते हैं, वे सभी प्राणियों की अन्तरात्मा में समाविष्ट मेरी ही पूजा करते हैं।
शक्ति के अनुसार विधिपूर्वक श्राद्ध करके मनुष्य ब्रह्मपर्यंत समस्त चराचर जगत को प्रसन्न कर देता है।
हे आकाशचारिन् गरूड़ !
पिशाच योनि में उत्पन्न हुए पितर मनुष्यों के द्वारा श्राद्ध में पृथ्वी पर जो अन्न बिखेरा जाता है उससे संतृप्त होते हैं।
श्राद्ध में स्नान करने से भीगे हुए वस्त्रों द्वारा जी जल पृथ्वी पर गिरता है।
उससे वृक्ष योनि को प्राप्त हुए पितरों की संतुष्टि होती है।
उस समय जो गन्ध तथा जल भूमि पर गिरता है, उससे देव योनि को प्राप्त पितरों को सुख प्राप्त होता है।
जो पितर अपने कुल से बहिष्कृत हैं, क्रिया के योग्य नहीं हैं।
संस्कारहीन और विपन्न हैं, वे सभी श्राद्ध में विकिरान्न और मार्जन के जल का भक्षण करते हैं।
श्राद्ध में भोजन करने के बाद आचमन एवं जलपान करने के लिए ब्राह्मणों द्वारा जो जल ग्रहण किया जाता है।
उस जल से पितरों को संतृप्ति प्राप्त होती है।
जिन्हें पिशाच, कृमि और कीट की योनि मिली है तथा जिन पितरों को मनुष्य योनि प्राप्त हुई है।
वे सभी पृथ्वी पर श्राद्ध में दिये गये पिण्डों में प्रयुक्त अन्न की अभिलाषा करते हैं।
उसी से उन्हें संतृप्ति प्राप्त होती है।
इस प्रकार ब्राह्मण, क्षत्रिय एवं वेश्यों के द्वारा विधिपूर्वक श्राद्ध किये जाने पर जो शुद्ध या अशुद्ध अन्न जल फेंका जाता है।
उससे उन पितरों की तृप्ति होती है जिन्होंने अन्य जाति में जाकर जन्म लिया है।
जो मनुष्य अन्यायपूर्वक अर्जित किये गये पदार्थों के श्राद्ध करते हैं।
उस श्राद्ध से नीच योनियों में जन्म ग्रहण करने वाले चाण्डाल पितरों की तृप्ति होती है।
हे पक्षिन् !
इस संसार में श्राद्ध के निमित्त जो कुछ भी अन्न, धन आदि का दान अपने बन्धु-बान्धवों के द्वारा किया जाता है, वह सब पितरों को प्राप्त होता है।
अन्न जल और शाकपात आदि के द्वारा यथासामर्थ्य जो श्राद्ध किया जाता है, वह सब पितरों की तृप्ति का हेतु है। - गरूड़ पुराण
श्राद्घ नहीं कर सकते है तो....
अगर पंडित से श्राद्ध नहीं करा पाते तो सूर्य नारायण के आगे अपने बगल खुले करके (दोनों हाथ ऊपर करके) बोलें -
हे सूर्य नारायण !
मेरे पिता (नाम), अमुक (नाम) का बेटा, अमुक जाति (नाम), (अगर जाति, कुल, गोत्र नहीं याद तो ब्रह्म गोत्र बोल दें) को आप संतुष्ट/सुखी रखें ।
इस निमित मैं आपको अर्घ्य व भोजन कराता हूँ ।
”ऐसा करके आप सूर्य भगवान को अर्घ्य दें और भोग लगाएं ।*
श्राद्ध पक्ष में रोज भगवदगीता के सातवें अध्याय का पाठ और 1 माला द्वादश मंत्र ”ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” और 1 माला "ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं स्वधादेव्यै स्वाहा" की करनी चाहिए और उस पाठ एवं माला का फल नित्य अपने पितृ को अर्पण करना चाहिए ।
जय श्री कृष्ण.....!
पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:-
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science)
" Opp. Shri Dhanlakshmi Strits , Marwar Strits, RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
सेल नंबर: . + 91- 7010668409 / + 91- 7598240825 WHATSAPP नंबर : + 91 7598240825 ( तमिलनाडु )
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आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद..
नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏