https://www.profitablecpmrate.com/gtfhp9z6u?key=af9a967ab51882fa8e8eec44994969ec 2. आध्यात्मिकता का नशा की संगत भाग 1: <script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-2948214362517194" crossorigin="anonymous"></script>
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।। श्री ऋगवेद श्री विष्णु पुराण और श्री गरुड़ पुराण आधारित श्राद्ध महिमा ।।

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

।। श्री ऋगवेद श्री विष्णु पुराण और श्री गरुड़ पुराण आधारित श्राद्ध महिमा ।।


श्री ऋगवेद श्री विष्णु पुराण और श्री गरुड़ पुराण आधारित श्राद्ध महिमा के उल्लेख तो
सनातन हिंदू वेद पुराण के अनुसार कार्तिक मास , चैत्र मास और भाद्रपद मास में हीपितृ का पितृ पक्ष कृष्ण पक्ष में होता है ।

जब कार्तिक मास चैत्र मास और भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष में उसका मृत्यु तिथि के अनुसार या तेरस चौदस और अमावसिया के दिन समस्त पितरों के निमित्त श्राद्ध करने की परंपरा है।

सनातन वेद पुराणों अनुसार तो देखे तो समस्त भारत खंड में अलग - अलग स्थानों पर अलग -  अलग पितृ के लिए अलग - अलग स्थान का ज्यादा महत्व होता है ।




उसमे मातृ श्राद्ध व तर्पण के लिए प्रसिद्ध तीर्थ है गुजरात के पाटन जिले में स्थित सिद्धपुर। 

यह एकमात्र ऐसा तीर्थ है जहां सिर्फ मातृ श्राद्ध का प्रावधान है। 

सिद्धपुर में सबसे महत्वपूर्ण स्थल बिंदु सरोवर है। 

श्राद्ध पक्ष में यहां लोगों की भीड़ उमड़ती है। 

यही सिद्धपुर में मातृ मतलब मातृश्रीजी , बड़ा बहन , दादी मां , मासी , चाची के यह ही सिद्धपुर का वर्णन कई धर्म ग्रंथों में मिलता है।

कपिल मुनि ने भी यही किया था उनका माता का श्राद्ध ।

पौराणिक काल में भगवान विष्णु ने कपिल मुनि के रूप में अवतार लिया था। 

उनकी माता का नाम देवहुति और पिता का कर्दम था। 

एक समय ऋषि कर्दम तपस्या के लिए वन में चले गए तो देवहुति काफी दुखी हो गई। 

ऐसे में पुत्र कपिल मुनि ने सांख्य दर्शन की विवेचना करते हुए उनका ध्यान भगवान विष्णु में केन्द्रित किया। 

ऐसे में श्रीहरी में ध्यान लगाते हुए माता देवहुति देवलोकगमन कर गई।

मान्यता है कि बिंदु सरोवर के तट पर माता के देहावसान के पश्चात कपिल मुनि ने उनकी मोक्ष प्राप्ति के लिए अनुष्ठान किया था। 

इस के बाद से यह स्थान मातृ मोक्ष स्थल के रूप में प्रसिद्ध हुआ। 

कपिल मुनि ने कार्तिक महीने में यह अनुष्ठान किया था।

इस लिए हर साल यहाँ पर कार्तिक महीने में विशाल मेले का आयोजन होता है और दूरदराज से लोग अपनी मां ( बड़ी बहन , बड़ी बुआ , दादी मां , चाची , ताई , मासी ) का श्राद्ध करने के लिए आते हैं।

पितृपक्ष में श्राद्ध से सारे कष्ट हो जाते हैं दूर
पितृपक्ष के दौरान जो लोग पितृपक्ष में दौरान सच्ची श्रद्धा से अपने पितरों का श्राद्ध करते हैं उनके सारे कष्ट दूर हो जाते हैं। 

श्राद्ध के दौरान पूर्वज अपने परिजनों के हाथों से ही तर्पण स्वीकार करते हैं। 

इस दौरान पितरों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान अवश्य करना चाहिए।

माता के श्राद्ध के लिए प्रसिद्ध है ये तीर्थ स्थान, यहां स्थित पीपल को कहते हैं मोक्ष पीपल कहा जाता है ।

एक कथा ये भी है ।


एक मान्यता यह भी है कि भगवान परशुराम ने भी अपनी माता का श्राद्ध सिद्धपुर में बिंदु सरोवर के तट पर किया था। 

मातृ हन्ता के पाप से मुक्त होने के ऋषि परशुराम ने यहां पर कर्मकांड किया था। 

सिद्धुपुर में एक पीपल का पवित्र वृक्ष है, जिसको मोक्ष पीपल कहा जाता है और मोक्ष पीपल पर पुत्र माँ की मोक्ष के लिए प्रार्थना करते है।

गुजरात का ( पिण्डारक ) पिंडारा भी है श्राद्ध के लिए प्रसिद्ध तीर्थ, यहां पिंड पानी में डूबते नहीं बल्कि तैरते हैं।

आज में आपको एक ऐसे प्रसिद्ध तीर्थ स्थान के बारे में बता रहे हैं, जिससे कई पौराणिक कहानियां जुड़ी हैं। 

मान्यता है कि इस स्थान पर श्राद्ध, पिंडदान और तर्पण करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्त होती है। 
ये स्थान है गुजरात में स्थित ( पिण्डारक ) पिंडारा । 

इस क्षेत्र का प्राचीन नाम पिण्डारक ( पिंडारा) या पिण्डतारक है। 

यह जगह गुजरात में द्वारिका से लगभग 30 किलोमीटर दूरी और भाटिया से 20 किलोमीटर दूरी पर है। 

यहां एक सरोवर है, जिसमें यात्री श्राद्ध करके दिए हुए पिंड सरोवर में डाल देते हैं। 

वे पिण्ड सरोवर में डूबते नहीं बल्कि तैरते रहते हैं। 

इस चमत्कार को देखने को लिए लोगों की भीड़ उमड़ती है।

यहां कपालमोचन महादेव, मोटेश्वर महादेव और ब्रह्माजी के मंदिर हैं। 

साथ ही श्रीवल्लभाचार्य महाप्रभु की बैठक भी है। 

कहा जाता है कि यहां महर्षि दुर्वासा का आश्रम था। 

इस स्थान से एक मान्यता ये भी जुड़ी है कि महाभारत युद्ध के पश्चात पांडव सभी तीर्थों में अपने मृत बांधवों का श्राद्ध करने आए थे। 

पांडव यहां आए तो उन्होंने लोहे का एक पिण्ड बनाया और जब वह पिंड भी जल पर तैर गया तब उन्हें इस बात का विश्वास हुआ कि उनके बंधु-बांधव मुक्त हो गये हैं। 

कहते हैं कि महर्षि दुर्वासा के वरदान से इस तीर्थ में पिंड तैरते रहते हैं।

केवल असमर्थ के लिये

गरूड़ पुराण में श्राद्ध महिमा, श्राद्ध नहीं कर सकते तो क्या करें?

श्राद्धकर्म से देवता और पितर तृप्त होते हैं और श्राद्ध करनेवाले का अंतःकरण भी तृप्ति-संतुष्टि का अनुभव करता है। 

बूढ़े - बुजुर्गों ने हमारी उन्नति के लिए बहुत कुछ किया है तो उनकी सद्गति के लिए हम भी कुछ करेंगे तो हमारे हृदय में भी तृप्ति-संतुष्टि का अनुभव होगा।

गरुड़ पुराण में महिमा:

कुर्वीत समये श्राद्धं कुले कश्चिन्न सीदति।
आयुः पुत्रान् यशः स्वर्गं कीर्तिं पुष्टिं बलं श्रियम्।।

पशून् सौख्यं धनं धान्यं प्राप्नुयात् पितृपूजनात्।
देवकार्यादपि सदा पितृकार्यं विशिष्यते।।

देवताभ्यः पितृणां हि पूर्वमाप्यायनं शुभम्।


"समयानुसार श्राद्ध करने से कुल में कोई दुःखी नहीं रहता। 

पितरों की पूजा करके मनुष्य आयु, पुत्र, यश, स्वर्ग, कीर्ति, पुष्टि, बल, श्री, पशु, सुख और धन-धान्य प्राप्त करता है। 

देवकार्य से भी पितृकार्य का विशेष महत्त्व है। 

देवताओं से पहले पितरों को प्रसन्न करना अधिक कल्याणकारी है।"
(10.57.59)

"अमावस्या के दिन पितृगण वायुरूप में घर के दरवाजे पर उपस्थित रहते हैं और अपने स्वजनों से श्राद्ध की अभिलाषा करते हैं। 

जब तक सूर्यास्त नहीं हो जाता, तब तक वे भूख-प्यास से व्याकुल होकर वहीं खड़े रहते हैं। 

सूर्यास्त हो जाने के पश्चात वे निराश होकर दुःखित मन से अपने-अपने लोकों को चले जाते हैं। 

अतः अमावस्या के दिन प्रयत्नपूर्वक श्राद्ध अवश्य करना चाहिए। 

यदि पितृजनों के पुत्र तथा बन्धु-बान्धव उनका श्राद्ध करते हैं और गया - तीर्थ में जाकर इस कार्य में प्रवृत्त होते हैं तो वे उन्ही पितरों के साथ ब्रह्मलोक में निवास करने का अधिकार प्राप्त करते हैं। 

उन्हें भूख - प्यास कभी नहीं लगती। 

इसी लिए विद्वान को प्रयत्नपूर्वक यथाविधि शाकपात से भी अपने पितरों के लिए श्राद्ध अवश्य करना चाहिए।

जो लोग अपने पितृगण, देवगण, ब्राह्मण तथा अग्नि की पूजा करते हैं, वे सभी प्राणियों की अन्तरात्मा में समाविष्ट मेरी ही पूजा करते हैं। 

शक्ति के अनुसार विधिपूर्वक श्राद्ध करके मनुष्य ब्रह्मपर्यंत समस्त चराचर जगत को प्रसन्न कर देता है।

हे आकाशचारिन् गरूड़ ! 

पिशाच योनि में उत्पन्न हुए पितर मनुष्यों के द्वारा श्राद्ध में पृथ्वी पर जो अन्न बिखेरा जाता है उससे संतृप्त होते हैं। 

श्राद्ध में स्नान करने से भीगे हुए वस्त्रों द्वारा जी जल पृथ्वी पर गिरता है।

उससे वृक्ष योनि को प्राप्त हुए पितरों की संतुष्टि होती है। 

उस समय जो गन्ध तथा जल भूमि पर गिरता है, उससे देव योनि को प्राप्त पितरों को सुख प्राप्त होता है। 

जो पितर अपने कुल से बहिष्कृत हैं, क्रिया के योग्य नहीं हैं।

संस्कारहीन और विपन्न हैं, वे सभी श्राद्ध में विकिरान्न और मार्जन के जल का भक्षण करते हैं। 

श्राद्ध में भोजन करने के बाद आचमन एवं जलपान करने के लिए ब्राह्मणों द्वारा जो जल ग्रहण किया जाता है।

उस जल से पितरों को संतृप्ति प्राप्त होती है। 

जिन्हें पिशाच, कृमि और कीट की योनि मिली है तथा जिन पितरों को मनुष्य योनि प्राप्त हुई है।

वे सभी पृथ्वी पर श्राद्ध में दिये गये पिण्डों में प्रयुक्त अन्न की अभिलाषा करते हैं।

उसी से उन्हें संतृप्ति प्राप्त होती है।

इस प्रकार ब्राह्मण, क्षत्रिय एवं वेश्यों के द्वारा विधिपूर्वक श्राद्ध किये जाने पर जो शुद्ध या अशुद्ध अन्न जल फेंका जाता है।

उससे उन पितरों की तृप्ति होती है जिन्होंने अन्य जाति में जाकर जन्म लिया है। 

जो मनुष्य अन्यायपूर्वक अर्जित किये गये पदार्थों के श्राद्ध करते हैं।

उस श्राद्ध से नीच योनियों में जन्म ग्रहण करने वाले चाण्डाल पितरों की तृप्ति होती है।

हे पक्षिन् ! 

इस संसार में श्राद्ध के निमित्त जो कुछ भी अन्न, धन आदि का दान अपने बन्धु-बान्धवों के द्वारा किया जाता है, वह सब पितरों को प्राप्त होता है। 
अन्न जल और शाकपात आदि के द्वारा यथासामर्थ्य जो श्राद्ध किया जाता है, वह सब पितरों की तृप्ति का हेतु है। - गरूड़ पुराण

श्राद्घ नहीं कर सकते है तो....

अगर पंडित से श्राद्ध नहीं करा पाते तो सूर्य नारायण के आगे अपने बगल खुले करके (दोनों हाथ ऊपर करके) बोलें -

हे सूर्य नारायण ! 

मेरे पिता (नाम), अमुक (नाम) का बेटा, अमुक जाति (नाम), (अगर जाति, कुल, गोत्र नहीं याद तो ब्रह्म गोत्र बोल दें) को आप संतुष्ट/सुखी रखें । 
इस निमित मैं आपको अर्घ्य व भोजन कराता हूँ ।

”ऐसा करके आप सूर्य भगवान को अर्घ्य दें और भोग लगाएं ।*

श्राद्ध पक्ष में रोज भगवदगीता के सातवें अध्याय का पाठ और 1 माला द्वादश मंत्र ”ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” और 1 माला "ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं स्वधादेव्यै स्वाहा" की करनी चाहिए और उस पाठ एवं माला का फल नित्य अपने पितृ को अर्पण करना चाहिए ।


जय श्री कृष्ण.....!

पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 
" Opp. Shri Dhanlakshmi Strits , Marwar Strits, RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
सेल नंबर: . + 91- 7010668409 / + 91- 7598240825 WHATSAPP नंबर : + 91 7598240825 ( तमिलनाडु )
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Email: prabhurajyguru@gmail.com
आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद.. 
नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏

*🙏🏻🚩गुरु और भगवान में अंतर🚩🙏🏻**गुरु और भगवान में- एक अंतर है।**एक आदमी के घर भगवान और गुरु दोनो पहुंच गये, वह बाहर आया और चरणों में गिरने लगा।*

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

*🙏🏻🚩गुरु और भगवान में अंतर🚩🙏🏻*


*गुरु और भगवान में- एक अंतर है।*

*एक आदमी के घर भगवान और गुरु दोनो पहुंच गये, वह बाहर आया और चरणों में गिरने लगा।*

*वह भगवान के चरणों में गिरा तो भगवान बोले- रुको-रुको पहले गुरु के चरणों में जाओ।*

*वह दौड़ कर गुरु के चरणों में गया। गुरु बोले- मैं भगवान को लाया हूँ,*
*पहले भगवान के चरणों में जाओ।*


*वह भगवान के चरणों में गया तो भगवान बोले- इस भगवान को गुरु ही लाया है न,*

*गुरु ने ही बताया है न, तो पहले गुरु के चरणों में जाओ।*
*फिर वह गुरु के चरणों में गया।*

*गुरु बोले- नहीं-नहीं मैंने तो तुम्हें बताया ही है न, लेकिन तुमको बनाया किसने?*

*भगवान ने ही तो बनाया है न, इसलिये पहले भगवान के चरणों में जाओ।*

*वो फिर वह भगवान के चरणों में गया।*

*भगवान बोले- रुको मैंने तुम्हें बनाया, यह सब ठीक है। तुम मेरे चरणों में आ गये हो।*

*लेकिन मेरे यहाँ न्याय की  पद्धति है। अगर तुमने अच्छा किया है,*
*अच्छे कर्म किये हैं, तो तुमको स्वर्ग मिलेगा।*

*फिर अच्छा जन्म मिलेगा, अच्छी योनि मिलेगी।*

*लेकिन अगर तुम बुरे कर्म करके आए हो,*
*तो मेरे यहाँ दंड का प्रावधान भी है, दंड मिलेगा।*

*चौरासी लाख योनियों में भटकाए जाओगे, फिर अटकोगे, फिर तुम्हारी आत्मा को कष्ट होगा।*

*फिर नरक मिलेगा, और अटक जाओगे।*

 *लेकिन यह गुरु है ना, यह बहुत भोला है।*

*इनके पास, इसके चरणों में पहले चले गये तो तुम जैसे भी हो,* *जिस तरह से भी हो*
*यह तुम्हें गले लगा लेगा।*

*और तुमको शुद्ध करके मेरे चरणों में रख जायेगा। जहाँ ईनाम ही ईनाम है।*

*यही कारण है कि गुरु कभी किसी को भगाता नहीं।*
*गुरु निखारता है, जो भी मिलता है उसको गले लगाता है।*

*उस पतित को पावन  करता है और सदा के लिए जन्म-मरण के आवागमन से मुक्ति दिलाकर भगवान के चरणों में भेज देता है*
===========


।। श्री रामचरित्रमानस प्रवचन ।।


क्षीरसागर में भगवान विष्णु शेष शैया पर विश्राम कर रहे हैं और लक्ष्मी जी उनके पैर दबा रही हैं। 

विष्णु जी के एक पैर का अंगूठा शैया के बाहर आ गया और लहरें उससे खिलवाड़ करने लगीं। 




.
क्षीरसागर के एक कछुवे ने इस दृश्य को देखा और मन में यह विचार कर कि मैं यदि भगवान विष्णु के अंगूठे को अपनी जिव्ह्या से स्पर्श कर लूँ तो मेरा मोक्ष हो जायेगा उनकी ओर बढ़ा। 
.
उसे भगवान विष्णु की ओर आते हुये शेषनाग जी ने देख लिया और कछुवे को भगाने के लिये जोर से फुँफकारा। 

फुँफकार सुन कर कछुवा भाग कर छुप गया। 
.
कुछ समय पश्चात् जब शेष जी का ध्यान हट गया तो उसने पुनः प्रयास किया। 

इस बार लक्ष्मी देवी की दृष्टि उस पर पड़ गई और उन्होंने उसे भगा दिया। 
.
इस प्रकार उस कछुवे ने अनेकों प्रयास किये पर शेष जी और लक्ष्मी माता के कारण उसे कभी सफलता नहीं मिली। 

यहाँ तक कि सृष्टि की रचना हो गई और सत्युग बीत जाने के बाद त्रेता युग आ गया। 
.
इस मध्य उस कछुवे ने अनेक बार अनेक योनियों में जन्म लिया और प्रत्येक जन्म में भगवान की प्राप्ति का प्रयत्न करता रहा।

अपने तपोबल से उसने दिव्य दृष्टि को प्राप्त कर लिया था। 
.
कछुवे को पता था ।

कि त्रेता युग में वही क्षीरसागर में शयन करने वाले विष्णु राम का वही शेष जी लक्ष्मण का और वही लक्ष्मी देवी सीता के रूप में अवतरित होंगे ।

तथा वनवास के समय उन्हें गंगा पार उतरने की आवश्यकता पड़ेगी। 

इसी लिये वह भी केवट बन कर वहाँ आ गया था।
.
एक युग से भी अधिक काल तक तपस्या करने के कारण उसने प्रभु के सारे मर्म जान लिये थे ।

इसी लिये उसने राम से कहा था ।

कि मैं आपका मर्म जानता हूँ। 



.
संत श्री तुलसी दास जी भी इस तथ्य को जानते थे ।

इस लिये अपनी चौपाई में केवट के मुख से कहलवाया है ।

कि 
.
“कहहि तुम्हार मरमु मैं जाना”।
.
केवल इतना ही नहीं ।

इस बार केवट इस अवसर को किसी भी प्रकार हाथ से जाने नहीं देना चाहता था। 

उसे याद था ।

कि शेषनाग क्रोध कर के फुँफकारते थे और मैं डर जाता था। 
.
अबकी बार वे लक्ष्मण के रूप में मुझ पर अपना बाण भी चला सकते हैं पर इस बार उसने अपने भय को त्याग दिया था ।

लक्ष्मण के तीर से मर जाना उसे स्वीकार था पर इस अवसर को खो देना नहीं। 
.
इसीलिये विद्वान संत श्री तुलसी दास जी ने लिखा है -
.
( हे नाथ ! 

मैं चरणकमल धोकर आप लोगों को नाव पर चढ़ा लूँगा; 

मैं आपसे उतराई भी नहीं चाहता। 

हे राम ! 

मुझे आपकी दुहाई और दशरथ जी की सौगंध है ।

मैं आपसे बिल्कुल सच कह रहा हूँ। 

भले ही लक्ष्मण जी मुझे तीर मार दें ।

पर जब तक मैं आपके पैरों को पखार नहीं लूँगा ।

तब तक हे ।

तुलसीदास के नाथ !

हे कृपालु ! 

मैं पार नहीं उतारूँगा। )
.
तुलसीदास जी आगे और लिखते हैं -
.
केवट के प्रेम से लपेटे हुये अटपटे वचन को सुन कर करुणा के धाम श्री रामचन्द्र जी जानकी जी और लक्ष्मण जी की ओर देख कर हँसे। 

जैसे वे उनसे पूछ रहे हैं ।

कहो अब क्या करूँ । 

उस समय तो केवल अँगूठे को स्पर्श करना चाहता था और तुम लोग इसे भगा देते थे ।

पर अब तो यह दोनों पैर माँग रहा है।
.
केवट बहुत चतुर था। 

उसने अपने साथ ही साथ अपने परिवार और पितरों को भी मोक्ष प्रदान करवा दिया। 

तुलसी दास जी लिखते हैं -.

चरणों को धोकर पूरे परिवार सहित उस चरणामृत का पान करके उसी जल से पितरों का तर्पण करके ।

अपने पितरों को भवसागर से पार कर ।

फिर आनन्दपूर्वक प्रभु श्री रामचन्द्र को गंगा के पार ले गया।

उस समय का प्रसंग है ... 

जब केवट भगवान् के चरण धो रहे है ।
.
बड़ा प्यारा दृश्य है ।

भगवान् का एक पैर धोकर उसे निकलकर कठौती से बाहर रख देते है ।

और जब दूसरा धोने लगते है,...
.
तो पहला वाला पैर गीला होने से जमीन पर रखने से धूल भरा हो जाता है ।
.
केवट दूसरा पैर बाहर रखते है।

फिर पहले वाले को धोते है ।

एक-एक पैर को सात-सात बार धोते है ।

फिर ये सब देखकर कहते है, प्रभु एक पैर कठौती मे रखिये दूसरा मेरे हाथ पर रखिये ।

ताकि मैला ना हो ।
.
जब भगवान् ऐसा ही करते है। 

तो जरा सोचिये ... 

क्या स्थिति होगी ।

यदि एक पैर कठौती में है दूसरा केवट के हाथो में, 
.
भगवान् दोनों पैरों से खड़े नहीं हो पाते बोले - 

केवट मै गिर जाऊँगा ?
.
केवट बोला - 

चिंता क्यों करते हो भगवन् !.

दोनों हाथो को मेरे सिर पर रख कर खड़े हो जाईये ।

फिर नहीं गिरेगे ।
.
जैसे कोई छोटा बच्चा है ।

जब उसकी माँ उसे स्नान कराती है ।

तो बच्चा माँ के सिर पर हाथ रखकर खड़ा हो जाता है ।

भगवान् भी आज वैसे ही खड़े है। 
.
भगवान् केवट से बोले - 

भईया केवट ! 

मेरे अंदर का अभिमान आज टूट गया...
.
केवट बोला - 

प्रभु ! 

क्या कह रहे है ?.

भगवान् बोले - 

सच कह रहा हूँ केवट, 

अभी तक मेरे अंदर अभिमान था, कि .... 

मै भक्तो को गिरने से बचाता हूँ पर.. 
.
आज पता चला कि, भक्त भी भगवान् को गिरने से बचाता है।।

🚩🚩🚩जय श्री राम राम  राम सीताराम🚩🚩🚩
#धर्मो_रक्षति_रक्षितः
🙏🏼

*🙏🏻🚩जय जय श्री राज  🚩🙏🏻*

पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
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जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏

*🌺सुखी रहने के लिए जीवन में समता अपनायें🌺**✍️जीवन में उतार-चढ़ाव आते रहते हैं । कभी सुख आता है तो कभी दुख भी आता है ।*

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

*🌺सुखी रहने के लिए जीवन में समता अपनायें🌺*


*✍️जीवन में उतार-चढ़ाव आते रहते हैं । कभी सुख आता है तो कभी दुख भी आता है ।*
*प्रायः ऐसा देखा जाता है कि सुख के अवसर पर व्यक्ति नाचने कूदने लगता है और जब दुख आता है , तो बहुत हैरान परेशान हो जाता है। ये दोनों ही स्थितियां अच्छी नहीं हैं।*


*जब सुख का अवसर आए , तो उसे  सामान्य रूप से निभाने का प्रयत्न करें, बहुत अधिक खुश न हों। यदि आप सुख के अवसर पर ऐसा कर लेंगे , तो जिस दिन दुख आएगा,  तब आप उसे भी सामान्य रूप से निभा लेंगे,  और बहुत रोना चिल्लाना आदि नहीं करेंगे। इसी समत्व का नाम उत्तम जीवन है।*

 *यह समत्व ईश्वर की कृपा तथा उसके न्याय पर भरोसा रखने से प्राप्त होता है ।*

*जो लोग ईश्वर की कृपा तथा न्याय पर विश्वास करते हैं,तो ये दोनों चीजें मिलकर उनके जीवन में समता को उत्पन्न कर देती हैं। इस समता के सहारे वे बड़े आनंद से जीवन जीते हैं!*

*आप भी इस विषय में विचार करें । हो सके तो इसका पालन करके अपने जीवन को सुखी और सफल बनाएं!!*
                                                           
*◆●स्वयं विचार करें​●◆*

🌹🌹 *प्रभु जो करते हैं,अच्छे के लिए करते*🌹🌹

*👉जीवन मे जो होता है वह अच्छे के लिए होता है।*

*👉भगवान किसी का बुरा कभी नही करते ।*

*👉 कभी कभी देवता भी बंध जाते है।*

*💫यह कहानी प्रत्येक इंसान को पढ़ना चाहिए ,कहानी लंबी है आराम से पढ़े समय मिले तब पढ़े आँखें खोलने वाली कहानी।*

*मृत्यु के देवता ने अपने एक दूत को पृथ्वी पर भेजा ।* 

*एक स्त्री मर गयी थी, उसकी आत्मा को लाना था।*

*देवदूत आया, लेकिन चिंता में पड़ गया।* 

*क्योंकि तीन छोटी-छोटी लड़कियां जुड़वां–एक अभी भी उस मृत स्त्री के स्तन से लगी है।* 

*एक चीख रही है, पुकार रही है।* 

*एक रोते-रोते सो गयी है, उसके आंसू उसकी आंखों के पास सूख गए हैं ।*

*तीन छोटी जुड़वां बच्चियां और स्त्री मर गयी है, और कोई देखने वाला नहीं है।* 

*पति पहले मर चुका है।* 

*परिवार में और कोई भी नहीं है।* 

*इन तीन छोटी बच्चियों का क्या होगा?*

*उस देवदूत को यह खयाल आ गया, तो वह खाली हाथ वापस लौट गया।* 

*उसने जा कर अपने प्रधान को कहा कि मैं न ला सका, मुझे क्षमा करें ।* 

*लेकिन आपको स्थिति का पता ही नहीं है।* 

*तीन जुड़वां बच्चियां हैं–* 

*छोटी-छोटी, दूध पीती।* 

*एक अभी भी मृत स्तन से लगी है, एक रोते-रोते सो गयी है, दूसरी अभी चीख-पुकार रही है।* 

*हृदय मेरा ला न सका।* 

*क्या यह नहीं हो सकता कि इस स्त्री को कुछ दिन और जीवन के दे दिए जाएं?* 

*कम से कम लड़कियां थोड़ी बड़ी हो जाएं।* 

*और कोई देखने वाला नहीं है।*

*मृत्यु के देवता ने कहा, तो तू फिर समझदार हो गया;* 

*उससे ज्यादा, जिसकी मर्जी से मौत होती है, जिसकी मर्जी से जीवन होता है!*

*तो तूने पहला पाप कर दिया, और इसकी तुझे सजा मिलेगी।* 

*और सजा यह है कि तुझे पृथ्वी पर चले जाना पड़ेगा।* 

*और जब तक तू तीन बार न हंस लेगा अपनी मूर्खता पर, तब तक वापस न आ सकेगा।*

*इसे थोड़ा समझना।* 

*तीन बार न हंस लेगा अपनी मूर्खता पर–* 

*क्योंकि दूसरे की मूर्खता पर तो अहंकार हंसता है।* 

*जब तुम अपनी मूर्खता पर हंसते हो तब अहंकार टूटता है।*

*देवदूत को लगा नहीं।* 

*वह राजी हो गया दंड भोगने को, लेकिन फिर भी उसे लगा कि सही तो मैं ही हूं।* 

*और हंसने का मौका कैसे आएगा?*

*उसे जमीन पर फेंक दिया गया।* 

*एक मोची, सर्दियों के दिन करीब आ रहे थे और बच्चों के लिए कोट और कंबल खरीदने शहर गया था, कुछ रुपए इकट्ठे कर के।* 

*जब वह शहर जा रहा था तो उसने राह के किनारे एक नंगे आदमी को पड़े हुए, ठिठुरते हुए देखा।* 

*यह नंगा आदमी वही देवदूत था ।* 

*जो पृथ्वी पर फेंक दिया गया था।* 

*उस को दया आ गयी।*

*और बजाय अपने बच्चों के लिए कपड़े खरीदने के, उसने इस आदमी के लिए कंबल और कपड़े खरीद लिए।* 

*इस आदमी को कुछ खाने-पीने को भी न था ।* 

*घर भी न था, छप्पर भी न था जहां रुक सके।* 

*तो मोची ने कहा कि अब तुम मेरे साथ ही आ जाओ।* 

*लेकिन अगर मेरी पत्नी नाराज हो–* 

*जो कि वह निश्चित होगी ।*

*क्योंकि बच्चों के लिए कपड़े खरीदने लाया था ।* 

*वह पैसे तो खर्च हो गए–* 

*वह अगर नाराज हो, चिल्लाए, तो तुम परेशान मत होना।* 

*थोड़े दिन में सब ठीक हो जाएगा।*

*उस देवदूत को ले कर मोची घर लौटा।* 

*न तो मोची को पता है कि देवदूत घर में आ रहा है, न पत्नी को पता है।* 

*जैसे ही देवदूत को ले कर मोची घर में पहुंचा, पत्नी एकदम पागल हो गयी।* 

*बहुत नाराज हुई, बहुत चीखी-चिल्लायी।*

*और देवदूत पहली दफा हंसा।* 

*मोची ने उससे कहा, हंसते हो, बात क्या है?* 

*उसने कहा, मैं जब तीन बार हंस लूंगा तब बता दूंगा।*

*देवदूत हंसा पहली बार, क्योंकि उसने देखा कि इस पत्नी को पता ही नहीं है ।* 

*कि मोची देवदूत को घर में ले आया है ।* 

*जिसके आते ही घर में हजारों खुशियां आ जाएंगी।* 

*लेकिन आदमी देख ही कितनी दूर तक सकता है!* 

*पत्नी तो इतना ही देख पा रही है कि एक कंबल और बच्चों के कपड़े नहीं बचे।* 

*जो खो गया है वह देख पा रही है, जो मिला है उसका उसे अंदाज ही नहीं है–मुफ्त!* 

*घर में देवदूत आ गया है।* 

*जिसके आते ही हजारों खुशियों के द्वार खुल जाएंगे।* 

*तो देवदूत हंसा।* 

*उसे लगा, अपनी मूर्खता–क्योंकि यह पत्नी भी नहीं देख पा रही है कि क्या घट रहा है!*

*जल्दी ही, क्योंकि वह देवदूत था, सात दिन में ही उसने मोची का सब काम सीख लिया।* 

*और उसके जूते इतने प्रसिद्ध हो गए कि मोची महीनों के भीतर धनी होने लगा।* 

*आधा साल होते-होते तो उसकी ख्याति सारे लोक में पहुंच गयी कि उस जैसा जूते बनाने वाला कोई भी नहीं, क्योंकि वह जूते देवदूत बनाता था।* 

*सम्राटों के जूते वहां बनने लगे।* 

*धन अपरंपार बरसने लगा।*

*एक दिन सम्राट का आदमी आया।* 

*और उसने कहा कि यह चमड़ा बहुत कीमती है, आसानी से मिलता नहीं, कोई भूल-चूक नहीं करना।* 

*जूते ठीक इस तरह के बनने हैं।* 

*और ध्यान रखना जूते बनाने हैं, स्लीपर नहीं।* 

*क्योंकि रूस में जब कोई आदमी मर जाता है तब उसको स्लीपर पहना कर मरघट तक ले जाते हैं।* 

*मोची ने भी देवदूत को कहा कि स्लीपर मत बना देना।* 

*जूते बनाने हैं, स्पष्ट आज्ञा है, और चमड़ा इतना ही है।* 

*अगर गड़बड़ हो गयी तो हम मुसीबत में फंसेंगे।*

*लेकिन फिर भी देवदूत ने स्लीपर ही बनाए।* 

*जब मोची ने देखे कि स्लीपर बने हैं तो वह क्रोध से आगबबूला हो गया।* 

*वह लकड़ी उठा कर उसको मारने को तैयार हो गया कि तू हमारी फांसी लगवा देगा!* 

*और तुझे बार-बार कहा था कि स्लीपर बनाने ही नहीं हैं, फिर स्लीपर किस लिए?*

*देवदूत फिर खिलखिला कर हंसा। तभी आदमी सम्राट के घर से भागा हुआ आया।* 

*उसने कहा, जूते मत बनाना, स्लीपर बनाना।* 

*क्योंकि सम्राट की मृत्यु हो गयी है।*

*भविष्य अज्ञात है।* 

*सिवाय उसके और किसी को ज्ञात नहीं।* 

*और आदमी तो अतीत के आधार पर निर्णय लेता है।*

*सम्राट जिंदा था तो जूते चाहिए थे, मर गया तो स्लीपर चाहिए।* 

*तब वह मोची उसके पैर पकड़ कर माफी मांगने लगा कि मुझे माफ कर दे, मैंने तुझे मारा।* 

*पर उसने कहा, कोई हर्ज नहीं।* 

*मैं अपना दंड भोग रहा हूं।*

*लेकिन वह हंसा आज दुबारा।*

*मोची ने फिर पूछा कि हंसी का कारण?* 

*उसने कहा कि जब मैं तीन बार हंस लूं…।*

*दुबारा हंसा इसलिए कि भविष्य हमें ज्ञात नहीं है।* 

*इस लिए हम आकांक्षाएं करते हैं जो कि व्यर्थ हैं।* 

*हम अभीप्साएं करते हैं जो कि कभी पूरी न होंगी।* 

*हम मांगते हैं जो कभी नहीं घटेगा।*

*क्योंकि कुछ और ही घटना तय है।* 

*हमसे बिना पूछे हमारी नियति घूम रही है।* 

*और हम व्यर्थ ही बीच में शोरगुल मचाते हैं।* 

*चाहिए स्लीपर और हम जूते बनवाते हैं।* 

*मरने का वक्त करीब आ रहा है और जिंदगी का हम आयोजन करते हैं।*

*तो देवदूत को लगा कि वे बच्चियां!* 

*मुझे क्या पता, भविष्य उनका क्या होने वाला है?* 

*मैं नाहक बीच में आया।*

*और तीसरी घटना घटी कि एक दिन तीन लड़कियां आयीं जवान।* 

*उन तीनों की शादी हो रही थी ।* 

*और उन तीनों ने जूतों के आर्डर दिए कि उनके लिए जूते बनाए जाएं।* 

*एक बूढ़ी महिला उनके साथ आयी थी जो बड़ी धनी थी।* 

*देवदूत पहचान गया, ये वे ही तीन लड़कियां हैं, जिनको वह मृत मां के पास छोड़ गया था और जिनकी वजह से वह दंड भोग रहा है।* 

*वे सब स्वस्थ हैं, सुंदर हैं उसने पूछा कि क्या हुआ?* 

*यह बूढ़ी औरत कौन है?* 

*उस बूढ़ी औरत ने कहा कि ये मेरी पड़ोसिन की लड़कियां हैं।* 

*गरीब औरत थी, उसके शरीर में दूध भी न था।* 

*उसके पास पैसे-लत्ते भी नहीं थे।* 

*और तीन बच्चे जुड़वां।* 

*वह इन्हीं को दूध पिलाते-पिलाते मर गयी।* 

*लेकिन मुझे दया आ गयी, मेरे कोई बच्चे नहीं हैं, और मैंने इन तीनों बच्चियों को पाल लिया।*

*अगर मां जिंदा रहती तो ये तीनों बच्चियां गरीबी, भूख और दीनता और दरिद्रता में बड़ी होतीं।* 

*मां मर गयी, इसलिए ये बच्चियां तीनों बहुत बड़े धन-वैभव में, संपदा में पलीं।* 

*और अब उस बूढ़ी की सारी संपदा की ये ही तीन मालिक हैं।* 

*और इनका सम्राट के परिवार में विवाह हो रहा है।*

*देवदूत तीसरी बार हंसा।* 

*और मोची को उसने कहा कि ये तीन कारण हैं।* 

*भूल मेरी थी।* 

*नियति बड़ी है।* 

*और हम उतना ही देखते हैं, जितना देख पाते हैं।* 

*जो नहीं देख पाते, बहुत विस्तार है उसका।* 

*और हम जो देख पाते हैं उससे हम कोई अंदाज नहीं लगा सकते, जो होने वाला है, जो होगा।* 

*मैं अपनी मूर्खता पर तीन बार हंस लिया हूं।* 

*अब मेरा दंड पूरा हो गया और अब मैं जाता हूं ।*

*जो प्रभु करते है अच्छे के  लिए करते है ।*
🌹 *राधे राधे जी*🌹

   *🙏जय द्वारकाधीश 🙏*
  *🙏जय श्री कृष्णा🙏*

पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 
" Opp. Shri Dhanlakshmi Strits , Marwar Strits, RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
सेल नंबर: . + 91- 7010668409 / + 91- 7598240825 WHATSAPP नंबर : + 91 7598240825 ( तमिलनाडु )
Skype : astrologer85
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आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद.. 
नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏

*#अद्भुत कहानी**एक दिन,* *मेरे पिता ने हलवे के 2 कटोरे बनाये और उन्हें मेज़ पर रख दिया।*

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

*#अद्भुत कहानी*

*एक दिन,* *मेरे पिता ने हलवे के 2 कटोरे बनाये और उन्हें मेज़ पर रख दिया।*


     *एक के ऊपर 2 बादाम थे,जबकि दूसरे कटोरे में हलवे के ऊपर कुछ नहीं था।*

     *फिर उन्होंने मुझे हलवे का कोई एक कटोरा चुनने के लिए कहा, क्योंकि उन दिनों तक हम गरीबों के घर बादाम आना मुश्किल था.... मैंने 2 बादाम वाले कटोरे को चुना!*





      *मैं अपने बुद्धिमान विकल्प / निर्णय पर खुद को बधाई दे रहा था, और जल्दी जल्दी मुझे मिले 2 बादाम हलवा खा रहा था।*

      *परंतु मेरे आश्चर्य का ठिकाना नही था, जब मैंने देखा कि की मेरे पिता वाले कटोरे के नीचे*  *8 बादाम*  *छिपे थे!*

     *बहुत पछतावे के साथ,मैंने अपने निर्णय में जल्दबाजी करने के लिए खुद को डांटा।*

      *मेरे पिता मुस्कुराए और मुझे यह याद रखना सिखाया कि,*  *आपकी आँखें जो देखती हैं वह हरदम सच नहीं हो सकता,*  *उन्होंने कहा कि यदि आप स्वार्थ की आदत की अपनी आदत बना लेते हैं तो आप जीत कर भी हार जाएंगे।*


*अगले दिन, मेरे पिता ने फिर से हलवे के 2 कटोरे पकाए और टेबल पर रक्खे एक कटोरा के शीर्ष पर 2 बादाम और दूसरा कटोरा जिसके ऊपर कोई बादाम नहीं था।*

     *फिर से उन्होंने मुझे अपने लिए कटोरा चुनने को कहा। इस बार मुझे कल का संदेश याद था, इसलिए मैंने शीर्ष पर बिना किसी बादाम कटोरी को चुना।*

     *परंतु मेरे आश्चर्य करने के लिए इस बार इस कटोरे के नीचे एक भी बादाम नहीं छिपा था!* 

     *फिर से,मेरे पिता ने मुस्कुराते हुए मुझसे कहा,*  *"मेरे बच्चे,आपको हमेशा अनुभवों पर भरोसा नहीं करना चाहिए, क्योंकि कभी-कभी,जीवन आपको धोखा दे सकता है या आप पर चालें खेल सकता है स्थितियों से कभी भी ज्यादा परेशान या दुखी न हों, बस अनुभव को एक सबक अनुभव के रूप में समझें, जो किसी भी पाठ्यपुस्तकों से प्राप्त नहीं किया जा सकता है।*


*तीसरे दिन,मेरे पिता ने फिर से हलवे के 2 कटोरे पकाए पहले 2 दिन की ही तरह, एक कटोरे के ऊपर 2 बादाम, और दूसरे के शीर्ष पर कोई बादाम नहीं। मुझे उस कटोरे को चुनने के लिए कहा जो मुझे चाहिए था।*

     *लेकिन इस बार, मैंने अपने पिता से कहा, *पिताजी, आप पहले चुनें, आप परिवार के मुखिया हैं और आप परिवार में सबसे ज्यादा योगदान देते हैं । आप मेरे लिए जो अच्छा होगा वही चुनेंगे।*

      *मेरे पिता मेरे लिए खुश थे।*

*उन्होंने शीर्ष पर 2 बादाम के साथ कटोरा चुना, लेकिन जैसा कि मैंने अपने कटोरे का हलवा खाया! कटोरे के हलवे के एकदम नीचे 4 बादाम और थे।*

      *मेरे पिता मुस्कुराए और मेरी आँखों में प्यार से देखते हुए, उन्होंने कहा*  *मेरे बच्चे,तुम्हें याद रखना होगा कि, जब तुम भगवान पर सब कुछ छोड़ देते हो, तो वे हमेशा तुम्हारे लिए सर्वोत्तम का चयन करेंगे।*

    *और जब तुम दूसरों की भलाई के लिए सोचते हो,अच्छी चीजें स्वाभाविक तौर पर आपके साथ भी हमेशा होती रहेंगी ।*


*#शिक्षा: बड़ों का सम्मान करते हुए उन्हें पहले मौका व स्थान देवें, बड़ों का आदर-सम्मान करोगे तो कभी भी खाली हाथ नही लौटोगे।*

 "*अनुभव व दृष्टि का ज्ञान व विवेक के साथ सामंजस्य हो जाये बस यही सार्थक जीवन है।"*🚩🙏

। श्री रामचरित्रमानस प्रवचन ।।

🙏🐘🦜🙏

महाराज दशरथ को जब संतान प्राप्ति नहीं हो रही थी तब वो बड़े दुःखी रहते थे...

पर ऐसे समय में उनको एक ही बात से हौंसला मिलता था जो कभी उन्हें आशाहीन नहीं होने देता था...

और वह था श्रवण के पिता का श्राप....

दशरथ जब-जब दुःखी होते थे तो उन्हें श्रवण के पिता का दिया श्राप याद आ जाता था...

( कालिदास ने रघुवंशम में इसका वर्णन किया है )

श्रवण के पिता ने ये श्राप दिया था ।

कि....

''जैसे मैं पुत्र वियोग में तड़प-तड़प के मर रहा हूँ वैसे ही तू भी तड़प-तड़प कर मरेगा.....''

दशरथ को पता था कि ये श्राप अवश्य फलीभूत होगा और इसका मतलब है कि मुझे इस जन्म में तो जरूर पुत्र प्राप्त होगा.... 

( तभी तो उसके शोक में मैं तड़प के मरूँगा )

यानि यह श्राप दशरथ के लिए संतान प्राप्ति का सौभाग्य लेकर आया....

ऐसी ही एक घटना सुग्रीव के साथ भी हुई....

वाल्मीकि रामायण में वर्णन है कि सुग्रीव जब माता सीता की खोज में वानर वीरों को पृथ्वी की अलग - अलग दिशाओं में भेज रहे थे....

तो उसके साथ-साथ उन्हें ये भी बता रहे थे कि किस दिशा में तुम्हें कौन सा स्थान या देश मिलेगा और किस दिशा में तुम्हें जाना चाहिए या नहीं जाना चाहिये....

प्रभु श्रीराम सुग्रीव का ये भगौलिक ज्ञान देखकर हतप्रभ थे...

उन्होंने सुग्रीव से पूछा कि सुग्रीव तुमको ये सब कैसे पता...?

तो सुग्रीव ने उनसे कहा कि...

 ''मैं बाली के भय से जब मारा-मारा फिर रहा था तब पूरी पृथ्वी पर कहीं शरण न मिली... 

और इस चक्कर में मैंने पूरी पृथ्वी छान मारी और इसी दौरान मुझे सारे भूगोल का ज्ञान हो गया....''

अब अगर सुग्रीव पर ये संकट न आया होता तो उन्हें भूगोल का ज्ञान नहीं होता और माता जानकी को खोजना कितना कठिन हो जाता...

इसीलिए किसी ने बड़ा सुंदर कहा है :-

"अनुकूलता भोजन है, प्रतिकूलता विटामिन है और चुनौतियाँ वरदान है और जो उनके अनुसार व्यवहार करें....

वही पुरुषार्थी है...."

ईश्वर की तरफ से मिलने वाला हर एक पुष्प अगर वरदान है.......

तो हर एक काँटा भी वरदान ही समझें....

मतलब.....

अगर आज मिले सुख से आप खुश हो...

तो कभी अगर कोई दुख, विपदा, अड़चन आजाये.....

तो घबरायें नहीं.... 

क्या पता वो अगले किसी सुख की तैयारी हो....

*सदैव सकारात्मक रहें..*
🙏🙏🌹जय श्री राम राम राम सीता राम 🌹🙏🙏

पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
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