https://www.profitablecpmrate.com/gtfhp9z6u?key=af9a967ab51882fa8e8eec44994969ec 2. आध्यात्मिकता का नशा की संगत भाग 1: 02/25/25

महा शिवरात्री

|| शिवरात्री विशेष - ||


 शिवरात्री विशेष -

     
भोलेनाथ का बाल रूप भगवान भोलेनाथ अनादि हैं। 

उनके अलग अलग स्वरुपों का वर्णन विभिन्न ग्रंथों में मिलता है। 

विष्णु पुराण में वर्णित एक कथा में भगवान शिव के बाल रूप का वर्णन किया गया है ।

यह कथा बेहद मनभावन है जिसमे बताया गया है की एक बार ब्रह्म देव को बच्चे की जरूरत थी तथा उन्होंने पुत्र प्राप्ति के लिए बेहद कठोर तपस्या करी। 

उनके तपस्या से प्रसन्न भगवान शिव रोते हुए बालक के रूप में ब्रह्म देव के गोद में प्रकट हुए। 

अपने गोद में एक छोटे से बच्चे को रोते देख जब ब्रह्मा ने उससे रोने का कारण पूछा तो बच्चे ने बड़ी मासूमियत से उत्तर दिया की उसका नाम ब्रह्मा नहीं है इस लिए वह रो रहा है।

तब ब्रह्मा ने भगवान शिव का नाम रूद्र ( रूद्र का अर्थ होता है रोने वाला ) रखा परन्तु इस पर भी शिव रूपी वह बालक चुप नहीं हुआ। 

तब ब्रह्मा ने उन्हें दुसरा नाम दिया परन्तु फिर भी जब वह बालक चुप नहीं हुआ तब ब्र्ह्मा जी उस बालक का नाम देते गए और वह रोता रहा।

जब ब्रह्म देव ने उस बालक को उसका आठवाँ नाम दिया तब वह बालक चुप हुआ इस प्रकार भगवान शिव को ब्रह्म देव के इन आठ नमो ( रूद्र, शर्व, भाव, उग्र, भीम, पशुपति, ईशान और महादेव ) द्वारा जाने जाने लगा।



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शिव पुराण में यह उल्लेखित है की भगवान शिव के ये आठो नाम पृथ्वी पर लिखे गए थे।

शिव के इस प्रकार ब्रह्मा के पुत्र के रूप में जन्म लेने और उनके आठ नाम रखने के पीछे विष्णु पुराण में यह बतलाया गया है की जब धरती, पातल व ब्रह्मांड सभी जल मग्न थे उस समय भगवान ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव के अलावा कोई भी देव या प्राणी विद्यमान नहीं था।

तब सिर्फ़ भगवान विष्णु जल सतह पर अपने शेषनाग पर लेटे हुए थे उस समय उनके नाभि से कमल नाल पर ब्रह्म देव प्रकट हुए।

जब भगवान विष्णु व ब्रह्मा जी सृष्टि के बारे में बात कर रहे तब तभी शिव उनके समाने प्रकट हुए परन्तु ब्रह्मा ने शिव को पहचाने से इंकार कर दिया।

तब शिव के नाराज हो जाने के भय से भगवान विष्णु ने ब्रह्मा को दिव्य दृष्टि प्रदान करी व उन्हें भगवान शिव की याद दिलाई। 

ब्रह्मा जी को अपने गलती का अहसास हुआ और अपने पश्चाताप के लिए उन्होंने भगवान शिव से उनके पुत्र के रूप में जन्म लेने की बात कही। 




शिव ने ब्रह्मा को क्षमा करते हुए उन्हें उनके पुत्र के रूप में जन्म लेने का आशीर्वाद दिया।

कालांतर में विष्णु के कान के मल से उतपन्न मधु कैटभ का वध कर ब्रह्म देव को सृष्टि के निर्माण के समय एक बच्चे की जरूरत पड़ी तब ब्रह्म देव को भगवान शिव के आशीर्वाद का ध्यान आया तथा इस प्रकार ब्रह्म देव की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव उनके गोद में बालक के रूप में प्रकट हुए।

      || हर हर महादेव ||

|| शिवरात्रि से पूर्व पढ़ें ||
       
पानिग्रहन जब किन्ह महेसा।
   हियँ हरषे तब सकल सुरेशा।।

वेद मंत्र मुनिवर उच्चरहिं।
 जय जय जय संकर सुर करहिं।।

बाजहिं बाजन बिबिध बिधाना।
 सुमनबृष्टि नभ भै बिधि नाना।।

हर गिरिजा कर भयउ बिबाहू।
   सकल भुवन भरि रहा उछाहू।।
               ( मानस )

माँपार्वती और शिवजी के विवाह की कथा।


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भगवान शिव और पार्वती का विवाह बड़े ही भव्य तरीके से आयोजित हुआ। 

पार्वती जी की तरफ से कई सारे उच्च कुलों के राजा - महाराजा और शाही रिश्तेदार इस विवाह में शामिल हुए, लेकिन शिव की ओर से कोई रिश्तेदार नहीं था, क्योंकि वे किसी भी परिवार से संबंध नहीं रखते। आइये जानते हैं आगे क्या हुआ…।

भगवान शिव की लग्न / शादी में आए
         हर तरह के प्राणी-

जब शिव और पार्वती का विवाह होने वाला था, तो एक बड़ी सुंदर घटना हुई। 

उनकी लग्न / शादी बहुत ही भव्य पैमाने पर हो रही थी। इससे पहले ऐसी लग्न / विवाह शादी कभी नहीं हुई थी। 




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शिव – 

जो दुनिया के सबसे तेजस्वी प्राणी थे – 

एक दूसरे प्राणी को अपने जीवन का हिस्सा बनाने वाले थे। 

उनकी लग्न / विवाह / शादी में बड़े से बड़े और छोटे से छोटे लोग शामिल हुए। सभी देवता तो वहां मौजूद थे ही, साथ ही असुर भी वहां पहुंचे। 

आम तौर पर जहां देवता जाते थे, वहां असुर जाने से मना कर देते थे और जहां असुर जाते थे, वहां देवता नहीं जाते थे।

शिव पशुपति हैं, मतलब सभी जीवों के देवता भी हैं, तो सारे जानवर, कीड़े-मकोड़े और सारे जीव उनकी शादी में उपस्थित हुए।

यह एक शाही लग्न / विवाह / शादी थी, एक राजकुमारी की शादी हो रही थी, इस लिए विवाह समारोह से पहले एक अहम समारोह होना था।

भगवान शिव और देवी पार्वती की वंशावली के बखान की रस्म वर-वधू दोनों की वंशावली घोषित की जानी थी। 

एक राजा के लिए उसकी वंशावली सबसे अहम चीज होती है जो उसके जीवन का गौरव होता है। 

तो पार्वती की वंशावली का बखान खूब धूमधाम से किया गया। 

यह कुछ देर तक चलता रहा। 

आखिरकार जब उन्होंने अपने वंश के गौरव का बखान खत्म किया, तो वे उस ओर मुड़े, जिधर वर शिव बैठे हुए थे।

सभी अतिथि इंतजार करने लगे कि वर की ओर से कोई उठकर शिव के वंश के गौरव के बारे में बोलेगा मगर किसी ने एक शब्द भी नहीं कहा।

भगवान शिव ने धारण किया मौन
          
फिर पार्वती के पिता पर्वत राज ने शिव से अनुरोध किया। 



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‘ कृपया अपने वंश के बारे में कुछ बताइए ’ शिव कहीं शून्य में देखते हुए चुपचाप बैठे रहे। 

वह न तो दुल्हन की ओर देख रहे थे,न ही शादी को लेकर उनमें कोई उत्साह नजर आ रहा था। 

वह बस अपने गणों से घिरे हुए बैठे रहे और शून्य में घूरते रहे। 

वधू पक्ष के लोग बार - बार उनसे यह सवाल पूछते रहे क्योंकि कोई भी अपनी बेटी की लग्न / विवाह / शादी ऐसे आदमी से नहीं करना चाहेगा।

जिसके वंश का अता - पता न हो। 

उन्हें जल्दी थी क्योंकि शादी के लिए शुभ मुहूर्त तेजी से निकला जा रहा था। मगर शिव मौन रहे।

समाज के लोग, कुलीन राजा-महाराजा और पंडित बहुत घृणा से शिव की ओर देखने लगे और तुरंत फुसफुसाहट शुरू हो गई। 

‘ इसका वंश क्या है ? 

यह बोल क्यों नहीं रहा है ? ' 

' हो सकता है कि इसका परिवार किसी नीची जाति का हो और इसे अपने वंश के बारे में बताने में शर्म आ रही हो।’

नारद मुनि ने इशारे से बात समझानी चाही-




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फिर नारद मुनि, जो उस सभा में मौजूद थे।

ने यह सब तमाशा देखकर अपनी वीणा उठाई और उसकी एक ही तार खींचते रहे। 

वह लगातार एक ही धुन बजाते रहे – 

टोइंग टोइंग टोइंग। 

इससे खीझकर पार्वती के पिता पर्वत राज अपना आपा खो बैठे। 

‘ यह क्या बकवास है ? 

हम वर की वंशावली के बारे में सुनना चाहते हैं मगर वह कुछ बोल नहीं रहा। ' 

क्या मैं अपनी बेटी की शादी ऐसे आदमी से कर दूं ? 

और आप यह खिझाने वाला शोर क्यों कर रहे हैं ? 

' क्या यह कोई जवाब है ? ’ 

नारद ने जवाब दिया...!

‘ वर के माता - पिता नहीं हैं। ’ 

राजा ने पूछा, ‘ क्या आप यह कहना चाहते हैं कि वह अपने माता - पिता के बारे में नहीं जानता ?’

नारद ने सभी को बताया कि
    भगवान स्वयंभू हैं-

इनके माता-पिता ही नहीं हैं। 

इनकी कोई विरासत नहीं है। 

इनका कोई गोत्र नहीं है। 

इसके पास कुछ नहीं है। 

' इनके पास अपने खुद के अलावा कुछ नहीं है।’ 

पूरी सभा चकरा गई। 

पर्वत राज ने कहा, ‘हम ऐसे लोगों को जानते हैं जो अपने पिता या माता के बारे में नहीं जानते। 

ऐसी दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति हो सकती है। 

मगर हर कोई किसी न किसी से जन्मा है। 

' ऐसा कैसे हो सकता है कि किसी का कोई पिता या मां ही न हो।’ 

नारद ने जवाब दिया...!

‘ क्योंकि यह स्वयंभू हैं। 

इन्होंने खुद की रचना की है। ' 

इनके न तो पिता हैं न माता। 

इनका न कोई वंश है, न परिवार। 

यह किसी परंपरा से ताल्लुक नहीं रखते और न ही इनके पास कोई राज्य है। 

इनका न तो कोई गोत्र है, और न कोई नक्षत्र। 

न कोई भाग्यशाली तारा इनकी रक्षा करता है। 

यह इन सब चीजों से परे हैं। 

यह एक योगी हैं और इन्होंने सारे अस्तित्व को अपना एक हिस्सा बना लिया है। 

इनके लिए सिर्फ एक वंश है – 

ध्वनि। 

आदि, शून्य प्रकृति ने जब अस्तित्व में आई, तो अस्तित्व में आने वाली पहली चीज थी – 

ध्वनि। 

इनकी पहली अभिव्यक्ति एक ध्वनि के रूप में है। 

ये सबसे पहले एक ध्वनि के रूप में प्रकट हुए। 

उसके पहले ये कुछ नहीं थे। 

' यही वजह है कि मैं यह तार खींच रहा हूं।’
     
  || शिव विवाह की अग्रिम बधाई ||

प्रयागराज महाकुंभ अमृत स्नान मानव शरीरों का महासमुद्र बना हुआ है, लगता है कि पूरा विश्व उमड़ पड़ा है। 

जहां तक दृष्टि जाती है वहां तक नरमुंड ही नरमुंड दिखते हैं। रात भी दिन बनी हुई है। 

कारों बसों व समस्त वाहनों के मीलों लंबे झूंड रुकने का नाम ही नहीं ले रहे। 

धन्य हैं प्रशासन, सुरक्षा, पुलिस वाले जो इतनी कठिन परिस्थितियों में कार्य कर रहे हैं ।

मैं तो कहता हूं कि यदि इतने लोग एक ही दिन में दिल्ली महानगर में आ जायें तो दिल्ली चरमरा जाएगी। 
मैं तो कहूंगा कि यह भगवान भोलेनाथ का चमत्कार ही है कि यह सम्भव हो पा रहा है।

क्योंकि यह किसी मानव के बस का कार्य नहीं है। 

यह काम तो कोई महाशक्ति ही योगी जी से करवा रही है और कोई महाशक्ति ही हम को भी वहां ले कर जा रही है अन्यथा यह काम असम्भव सा काम प्रतीत होता है।

भगवान शिव को कोटि कोटि धन्यवाद और नमन जो उसने मुझे यह शक्ति दी और मैं वहां पहुंच पाया और त्रिवेणी में डुबकी लगा पाया।

।। जय श्री राम ।।

विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों को भारत की अर्थव्यवस्था में प्रयागराज महाकुम्भ का अदृश्य योगदान समझ ही नहीं आयेगा और उन्होंने इसे factor in ही नहीं किया होगा। 

प्रयागराज महाकुंभ भारत की अर्थव्यवस्था में और GDP में कम से कम 0.5% से 1% की बढ़ोतरी देगा!

यह महाकुंभ हज़ारों कारों, टैक्सियों, मोटर साइकल वालों, रेहड़े रिक्शा वालों, बैटरी रिक्शा वालों और अन्तराज्यीय ट्रांसपोर्ट सेक्टरों, खाने पीने वालों को Direct Employment दे रहा है और अर्थव्यवस्था में liquidity flow inject कर रहा है और हज़ारों लाखों लोगों की अर्थव्यवस्था को सीधे सुधार रहा है।

यह महाकुंभ FMCG सेक्टर को भी directly सदृढ़ कर रहा है, जिससे indirectly FMCG सेक्टर में भी तेज़ी से सुधार होगा और वहां भी व्यवसाय, रोज़गार बढ़ेगा।

इस प्रकार यह प्रयागराज महाकुंभ भारत की अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान करेगा जो कि विश्व बैंक के एक्सपर्ट और अर्थशास्त्री factor in करना भूल गये थे कि ये महाकुंभ भारत के GDP को 0.5% से 1% की बढ़ोतरी देगा।

विरोधियों, विपक्षियों, जाहिलों, गिद्धों की जलन, कुढ़़न, सड़न, फिसलन , घिसड़न स्वाभाविक है।

आदिदेव महादेव मंदिर - चौमुख नाथ मंदिर 

 महाशिवरात्रि विशेष

पन्ना जिले के सलेहा क्षेत्र में अवस्थित चौमुख नाथ मंदिर अपनी विशिष्ट वास्तुकला के लिए प्रसिद्ध है।

इस मंदिर का निर्माण पांचवीं-छठीं शताब्दी के मध्य माना जाता है।

मंदिर के गर्भगृह में भगवान शिव की अद्वितीय प्रतिमा विराजमान है।

जो उनके चार स्वरूपों का प्रतिनिधित्व करती हैं।

एक ही पत्थर से निर्मित इस प्रतिमा का एक मुख विषग्रहण को चित्रित करता है।

जबकि दूसरा समाधि में लीन है।

तीसरा मुख दूल्हे की छवि दिखाता है और चौथे मुख पर अर्धनारीश्वर की छवि प्रकट होती है।

*मेरी संस्कृति…मेरा देश…
पंडारामा प्रभु राज्यगुरु का हर हर महादेव 
🚩जय हो सनातन धर्म की 
      ।।🏹 जय श्री राम ।।
      🧘‍♂️🙏🏻🕉️🙏🏻🌞

aadhyatmikta ka nasha

महाभारत की कथा का सार

महाभारत की कथा का सार| कृष्ण वन्दे जगतगुरुं  समय नें कृष्ण के बाद 5000 साल गुजार लिए हैं ।  तो क्या अब बरसाने से राधा कृष्ण को नहीँ पुकारती ...

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