https://www.profitablecpmrate.com/gtfhp9z6u?key=af9a967ab51882fa8e8eec44994969ec 2. आध्यात्मिकता का नशा की संगत भाग 1: श्रीरामचरितमानस कथा के सत्य घटना आधरित घटना के प्रसंग...! https://sarswatijyotish.com/India
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श्रीरामचरितमानस कथा के सत्य घटना आधरित घटना के प्रसंग...!

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

श्रीरामचरितमानस कथा के सत्य घटना आधरित घटना के प्रसंग...! 


संतान-हो तो बस ऐसी

 *"ॐ"*

*👩‍🦲⋙ "संतान-हो तो बस ऐसी" ⋘👩‍🦲*


मिश्रा जी के यहाँ पहला लड़का हुआ तो पत्नी ने कहा, 

"बच्चे को गुरुकुल में शिक्षा दिलवाते है, मैं सोच रही हूँ कि, गुरुकुल में शिक्षा देकर उसे धर्म ज्ञाता पंडित योगी बनाऊंगी।"

 



*सन्तोष जी ने, पत्नी से कहा, "पाण्डित्य पूर्ण योगी बना कर इसे भूखा मारना है क्या!* 

*मैं इसे बड़ा अफसर बनाऊंगा ताकि दुनिया में एक कामयाबी वाला इंसान बने।"*

*संतोष जी, सरकारी बैंक में मैनेजर के पद पर थे! पत्नी धार्मिक थी और इच्छा थी कि बेटा पाण्डित्य पूर्ण योगी बने, लेकिन सन्तोष जी नहीं माने।*

*दूसरा लड़का हुआ, पत्नी ने जिद की, सन्तोष जी इस बार भी ना माने, तीसरा लड़का हुआ, पत्नी ने फिर जिद की, लेकिन सन्तोष जी एक ही रट लगाते रहे, "कहां से खाएगा, कैसे गुजारा करेगा, और नही माने।"*

*चौथा लड़का हुआ, इस बार पत्नी की जिद के आगे सन्तोष जी हार गए ।* 

*और अंततः उन्होंने गुरुकुल में शिक्षा दीक्षा दिलवाने के लिए वही भेज ही दिया।*

*अब धीरे धीरे समय का चक्र घूमा ।* 

*अब वो दिन आ गया जब बच्चे अपने पैरों पे मजबूती से खड़े हो गए ।* 

*पहले तीनों लड़कों ने मेहनत करके सरकारी नौकरियां हासिल कर ली, पहला डॉक्टर, दूसरा बैंक मैनेजर, तीसरा एक गोवरमेंट कंपनी मेें जॉब करने लगा।*

*एक दिन की बात है सन्तोष जी, अपनी पत्नी से बोले.....!* 

*"अरे भाग्यवान !* 

*देखा....!* 





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*मेरे तीनो होनहार बेटे सरकारी पदों पे हो गए न, अच्छी कमाई भी कर रहे है, तीनो की जिंदगी तो अब सेट हो गयी, कोई चिंता नही रहेगी अब इन तीनो को।* 

*लेकिन अफसोस मेरा सबसे छोटा बेटा गुुुरुकुल का आचार्य बन कर घर घर यज्ञ करवा रहा है, प्रवचन कर रहा है !* 

*जितना वह छ: महीने में कमाएगा, उतना मेरा एक बेटा, एक महीने में कमा लेगा, अरे भाग्यवान!* 

*तुमने अपनी मर्जी करवा कर बड़ी गलती की, तुम्हे भी आज इस पर पश्चाताप होता होगा, मुझे मालूम है ।* 

*लेकिन तुम बोलती नही हो।"*

*पत्नी ने कहा, "हम मे से कोई एक गलत है ।* 

*और ये आज दूध का दूध पानी का पानी हो जाना चाहिए ।* 

*चलो अब हम परीक्षा ले लेते है चारों की, कौन गलत है कौन सही पता चल जाएगा।"*

*दूसरे दिन, शाम के वक्त पत्नी ने बाल बिखरा कर, अपनी साड़ी का पल्लू फाड़ कर, और चेहरे पर एक दो नाखून के निशान मार कर आंगन मे बैठ गई, और पतिदेव को अंदर कमरे मे छिपा दिया..!*

*बड़ा बेटा आया पूछा, "मम्मी क्या हुआ?"*

*माँ ने जवाब दिया, "तुम्हारे पापा ने मारा है।"*

*पहला बेटा :- "बुड्ढा, सठिया गया है क्या?* 

*कहां है वो?* 

*बुलाओतो जरा।"*

*माँ ने कहा, "नही है, बाहर गए है!"*

*पहला बेटा - "आए तो मुझे बुला लेना ।* 

*मैं कमरे मे हूँ, मेरा खाना निकाल दो मुझे भूख लगी है!"*

*ये कहकर कमरे मे चला गया।*

*दूसरा बेटा आया, पूछा तो माँ ने वही जवाब दिया।*

*दूसरा बेटा : "क्या पापा पगला गए है ।* 

*इस बुढ़ापे मे, उनसे कहना चुपचाप अपनी बची खुची गुजार ले ।* 

*आए तो मुझे बुला लेना और, माँ मैं बाहर से खाना खाकर आया हूँ सोना है मुझे, अगर आये तो मुझे अभी मत जगाना ।* 

*सुबह खबर लेता हूँ उनकी।"*

*ये कह कर वो भी अपने कमरे मे चला गया।*

*तीसरा बेटा आया, पूछा तो आग बबूला हो गया ।*

*"इस बुढ़ापे मे अपनी औलादो के हाथ से जूते खाने वाले काम कर रहे है!* 

*इसने तो मर्यादा की सारी हदें पार कर दीं।"*

*यह कर वह भी अपने कमरे मे चला गया।*

*संतोष जी, अंदर बैठे-बैठे सारी बाते सुन रहे थे ।* 

*ऐसा लग रहा था कि जैसे उनके पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई हो ।* 

*और उसके आंसू नही रुक रहे थे ।* 

*किस तरह इन बच्चो के लिए दिन रात मेहनत करके पाला पोसा, उनको बड़ा आदमी बनाया ।* 

*जिसकी तमाम गलतियों को मैंने नजरअंदाज करके आगे बढ़ाया!* 

*और ये ऐसा बर्ताव, अब तो बर्दाश्त ही नहीं हो रहा.....!*

*इतने मे चौथा बेटा घर मे ओम् ओम् ओम् करते हुए अंदर आया।*

*माँ को इस हाल मे देखा तो भागते हुए आया ।* 

*पूछा, तो माँ ने अब गंदे गंदे शब्दो मे अपने पति को बुरा भला कहा।*

*तो चौथे बेटे ने माँ का हाथ पकड़ कर समझाया कि "माँ आप पिताजी का प्राण हो, वो आपके बिना अधूरे हैं,---*  

*अगर पिता जी ने आपको कुछ कह दिया तो क्या हुआ ।* 

*मैंने पिता जी को आज तक आपसे बत्तमीजी से बात करते हुए भी नही देखा ।* 

*वो आपसे हमेशा प्रेम से बाते करते थे ।* 

*जिन्होंने इतनी सारी खुशिया दी, आज किसी नाराजगी से पेश आए तो क्या हुआ, हो सकता है ।*

*आज उनको किसी बात को लेकर चिंता रही हो, हो ना हो माँ !* 

*आप से कही गलती जरूर हुई होगी।*

*अरे माँ ! पिता जी, आपका कितना ख्याल रखते है, याद है न आपको, छ: साल पहले जब आपका स्वास्थ्य ठीक नही था,  तो पिता जी ने कितने दिनों तक आपकी सेवा कीे थी ।* 

*वही भोजन बनाते थे, घर का सारा काम करते थे, कपड़े धोते थे ।* 

*तब आपने फोन करके मुझे सूचना दी थी कि मैं संसार की सबसे भाग्यशाली औरत हूँ, तुम्हारे पिता जी मेरा बहुत ख्याल करते हैं।"*

*इतना सुनते ही, बेटे को गले लगाकर फफक फफक कर रोने लगी ।* 

*सन्तोष जी आँखो मे आंसू लिए सामने खड़े थे।*  

*"अब बताइये क्या कहेंगे आप मेरे फैसले पर", पत्नी ने संतोष जी से पूछा?*

*सन्तोष जी ने तुरन्त अपने बेटे को गले लगा लिया!*

*सन्तोष जी की धर्मपत्नी ने कहा,* 

*"ये शिक्षा इंग्लिश मीडियम स्कूलो मे नही दी जाती।* 

*माँ-बाप से कैसे पेश आना है, कैसे उनकी सेवा करनी है।* 

*ये तो गुरुकुल ही सिखा सकते हैं जहाँ वेद गीता रामायण जैसे ग्रन्थ पढाये जाते हैैं ।* 





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*संस्कार दिये जाते हैं।* 

*अब सन्तोष जी को एहसास हुआ-* 

*जिन बच्चो पर लाखो खर्च करके, डिग्रीया दिलाई वे सब जाली निकले ।* 

*असल में ज्ञानी तो वो सब बच्चे है ।*

*जिन्होंने जमीन पर बैठ कर पढ़ा है ।* 

*मैं कितना बड़ा नासमझ था ।*

*फिर दिल से एक आवाज निकलती है ।*

*काश मैंने चारो बेटो को गुरुकुल में शिक्षा दीक्षा दी होती।"*

                           *ॐतत्सतॐ*
                  





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सत्य घटना आधारित एक प्रसंग ....!


एक पंडित जी  रामायण कथा सुना रहे थे।  

लोग आते और आनंद विभोर होकर जाते। 

पंडित जी का नियम था रोज कथा शुरू  करने से पहले " आइए हनुमंत जी  बिराजिए " कहकर हनुमान जी का आह्वान करते थे, फिर एक घण्टा प्रवचन करते थे।

वकील साहब हर रोज कथा सुनने आते। 

वकील साहब के भक्तिभाव पर एक दिन तर्कशीलता हावी हो गई।

उन्हें लगा कि महाराज रोज "आइए हनुमंत जी बिराजिए " कहते हैं तो क्या हनुमान जी सचमुच आते होंगे!

अत: वकील साहब ने पंडित जी से पूछ ही डाला- 

महाराज जी, आप रामायण की कथा बहुत अच्छी कहते हैं।

हमें बड़ा रस आता है परंतु आप जो गद्दी प्रतिदिन हनुमान जी को देते हैं उसपर क्या हनुमान जी सचमुच बिराजते हैं?

पंडित जी  ने कहा…! 

हाँ यह मेरा व्यक्तिगत विश्वास है कि रामकथा हो रही हो तो हनुमान जी अवश्य पधारते हैं। 

वकील ने कहा… !

महाराज ऐसे बात नहीं बनेगी। 

हनुमान जी यहां आते हैं इसका कोई सबूत दीजिए । 

आपको साबित करके दिखाना चाहिए कि हनुमान जी आपकी कथा सुनने आते हैं।

महाराज जी ने बहुत समझाया कि भैया आस्था को किसी सबूत की कसौटी पर नहीं कसना चाहिए यह तो भक्त और भगवान के बीच का प्रेमरस है, व्यक्तिगत श्रद्घा का विषय है । 

आप कहो तो मैं प्रवचन करना बंद कर दूँ या आप कथा में आना छोड़ दो।

लेकिन वकील नहीं माना, वो कहता ही रहा कि आप कई दिनों से दावा करते आ रहे हैं। 

यह बात और स्थानों पर भी कहते होंगे.....!

इस लिए महाराज आपको तो साबित करना होगा कि हनुमान जी कथा सुनने आते हैं।

इस तरह दोनों के बीच वाद - विवाद होता रहा।

मौखिक संघर्ष बढ़ता चला गया। 

हार कर पंडित जी महाराज ने कहा…! 

हनुमान जी हैं या नहीं उसका सबूत कल दिलाऊंगा।

कल कथा शुरू हो तब प्रयोग करूंगा।

जिस गद्दी पर मैं हनुमानजी को विराजित होने को कहता हूं आप उस गद्दी को आज अपने घर ले जाना। 

कल अपने साथ उस गद्दी को लेकर आना और फिर मैं कल गद्दी यहाँ रखूंगा।

मैं कथा से पहले हनुमानजी को बुलाऊंगा, फिर आप गद्दी ऊँची उठाना। 

यदि आपने गद्दी ऊँची कर दी तो समझना कि हनुमान जी नहीं हैं। 

वकील इस कसौटी के लिए तैयार हो गया।

पंडित जी  ने कहा…! 

हम दोनों में से जो पराजित होगा वह क्या करेगा, इसका निर्णय भी कर लें ?

यह तो सत्य की परीक्षा है।


वकील ने कहा- 

मैं गद्दी ऊँची न कर सका तो वकालत छोड़कर आपसे दीक्षा ले लूंगा।

आप पराजित हो गए तो क्या करोगे? 

पंडित जी  ने कहा…! 

मैं कथावाचन छोड़कर आपके ऑफिस का चपरासी बन जाऊंगा।

अगले दिन कथा पंडाल में भारी भीड़ हुई जो लोग रोजाना कथा सुनने नहीं आते थे,वे भी भक्ति, प्रेम और विश्वास की परीक्षा देखने आए। 

काफी भीड़ हो गई। 

पंडाल भर गया। 

श्रद्घा और विश्वास का प्रश्न जो था।

पंडित जी  महाराज और वकील साहब कथा पंडाल में पधारे...! 

गद्दी रखी गई।





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पंडित  जी ने सजल नेत्रों से मंगलाचरण किया और फिर बोले " आइए हनुमंत जी बिराजिए " ऐसा बोलते ही पंडित जी  के नेत्र सजल हो उठे ।

मन ही मन पंडित जी  बोले…! 

प्रभु ! 

आज मेरा प्रश्न नहीं बल्कि रघुकुल रीति की पंरपरा का सवाल है।

मैं तो एक साधारण जन हूँ।

मेरी भक्ति और आस्था की लाज रखना।

फिर वकील साहब को निमंत्रण दिया गया आइए गद्दी ऊँची कीजिए। 

लोगों की आँखे जम गईं । 

वकील साहब खड़े हुए।

उन्होंने गद्दी उठाने के लिए हाथ बढ़ाया पर गद्दी को स्पर्श भी न कर सके ! 

जो भी कारण रहा, उन्होंने तीन बार हाथ बढ़ाया, किन्तु तीनों बार असफल रहे।

पंडित  जी देख रहे थे, गद्दी को पकड़ना तो दूर वकील साहब गद्दी को छू भी न सके।

तीनों बार वकील साहब पसीने से तर - बतर हो गए।

वकील साहब पंडित जी महाराज के चरणों में गिर पड़े और बोले महाराज गद्दी उठाना तो दूर, मुझे नहीं मालूम कि क्यों मेरा हाथ भी गद्दी तक नहीं पहुंच पा रहा है।

अत: मैं अपनी हार स्वीकार करता हूँ।          

कहते है कि श्रद्घा और भक्ति के साथ की गई आराधना में बहुत शक्ति होती है। 

मानो तो देव नहीं तो पत्थर।

प्रभु की मूर्ति तो पाषाण की ही होती है लेकिन भक्त के भाव से उसमें प्राण प्रतिष्ठा होती है तो प्रभु बिराजते है।

श्री राम जी की जय.....!





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हे नाथ!हे मेरे नाथ!!आप कृपा के सागर है!!!
पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 
" Opp. Shri Dhanlakshmi Strits , Marwar Strits, RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
सेल नंबर: . + 91- 7010668409 / + 91- 7598240825 WHATSAPP नंबर : + 91 7598240825 ( तमिलनाडु )
Skype : astrologer85
Email: prabhurajyguru@gmail.com
आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद.. 
नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏

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