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जय द्वारकाधीश
।। पुरुषोत्तम मास माहात्म्य / *कंस राजा पे श्री जी ने की कृपा कर के दी अपनी सेवा* ।।
।। श्री पुरुषोत्तम मास की कथा ।।
पुरुषोत्तम मास माहात्म्य
अध्याय - 19
श्रीसूत जी बोले, 'हे तपस्वियो! इस प्रकार कहते हुए श्रीनारायण को मुनिश्रेष्ठ नारद मुनि ने मधुर वचनों से प्रसन्न करके कहा।
हे ब्रह्मन्!तपोनिधि सुदेव ब्राह्मण को प्रसन्न विष्णु भगवान् ने क्या उत्तर दिया सो हे तपोनिधे! कहिये।
श्रीनारायण बोले, 'इस प्रकार महात्मा सुदेव ब्राह्मण ने विष्णु भगवान् से कहा।
भक्तवत्सल विष्णु भगवान् ने वचनों द्वारा सुदेव ब्राह्मण को प्रसन्न करके कहा।
हरि भगवान् बोले, 'हे द्विजराज! जो तुमने किया है उसको दूसरा नहीं करेगा।
जिसके करने से हम प्रसन्न हुए उसको आप नहीं जानते हैं।
यह हमारा प्रिय पुरुषोत्तम मास गया है। स्त्री के सहित शोक में मग्न तुमसे उस पुरुषोत्तम मास की सेवा हुई। हे तपोनिधे!
इस पुरुषोत्तम मास में जो एक भी उपवास करता है, हे द्विजोत्तम!
वह मनुष्य अनन्त पापों को भस्म कर विमान से बैकुण्ठ लोक को जाता है।
सो तुमको एक महीना बिना भोजन किये बीत गया और असमय में मेघ के आने से प्रतिदिन प्रातः मध्याह्न सायं तीनों काल में स्नान भी अनायास ही हो गया।
हे तपोधन! तुमको एक महीना तक मेघ के जल से स्नान मिला और उतने ही अखण्डित उपवास भी हो गये।
शोकरूपी समुद्र में मग्न होने के कारण ज्ञान से शक्ति से हीन तुमको अज्ञान से पुरुषोत्तम का सेवन हुआ।
तुम्हारे इस साधन का तौल कौन कर सकता है ?
तराजू के एक तरफ पलड़े में वेद में कहे हुए जितने साधन हैं उन सबको रख कर और दूसरी तरफ पुरुषोत्तम को रख कर देवताओं के सामने ब्रह्मा ने तोलन किया और सब हलके हो गये, पुरुषोत्तम भारी हो गया।
इसलिये भूमि के रहने वाले लोगों से पुरुषोत्तम का पूजन किया जाता है।
हे तपोधन! यद्यपि पुरुषोत्तम मास सर्वत्र है, फिर भी इस पृथिवी लोक में पूजन करने से फल देने वाला कहा है।
इससे हे वत्स! इस समय आप सब तरह से धन्य हैं, क्योंकि आपने इस पुरुषोत्तम मास में उग्र तथा परम दारुण तप को किया।
मनुष्य शरीर को प्राप्त कर जो लोग श्रीपुरुषोत्तम मास में स्नान दान आदि से रहित रहते हैं वे लोग जन्म-जन्मान्तर में दरिद्र होते हैं।
इसलिये जो सब तरह से हमारे प्रिय पुरुषोत्तम मास का सेवन करता है वह मनुष्य हमारा प्रिय, धन्य और भाग्यवान् होता है।'
श्रीनारायण बोले, 'हे मुने!
जगदीश्वर हरि भगवान् इस प्रकार कह कर गरुड़जी पर सवार होकर शुद्ध बैकुण्ठ भवन को शीघ्र चले गये।
सपत्नीक सुदेव शर्मा पुरुषोत्तम मास के सेवन से मृत्यु से उठे हुए शुकदेव पुत्र को देखकर अत्यन्त दिन - रात प्रसन्न होने लगे।
मुझसे अज्ञानवश पुरुषोत्तम मास का सेवन हुआ और वह पुरुषोत्तम मास का सेवन फलीभूत हुआ।
जिसके सेवन से मृत पुत्र उठ खड़ा हुआ।
आश्चर्य है कि ऐसा मास कहीं नहीं देखा!
इस तरह आश्चर्य करता हुआ उस पुरुषोत्तम मास का अच्छी तरह पूजन करने लगा।
वह सपत्नीक ब्राह्मणश्रेष्ठ इस पुत्र से प्रसन्न हुआ और शुकदेव पुत्र ने भी अपने उत्तम कार्यों से सुदेव शर्मा पिता को प्रसन्न किया।
सुदेव शर्मा ने पुरुषोत्तम मास की प्रशंसा की तथा आदर के साथ श्रीविष्णु भगवान् की पूजा की और कर्ममार्ग से होने वाले फलों में इच्छा का त्याग कर एक भक्तिमार्ग में ही प्रेम रक्खा।
श्रेष्ठ पुरुषोत्तम मास को समस्त दुःखों का नाश करने वाला जान कर, उस मास के आने पर स्त्री के साथ जप - हवन आदि से श्रीहरि भगवान् का सेवन करने लगा।
वह सपत्नीक श्रेष्ठ ब्राह्मण निरन्तर एक हजार वर्ष संसार के समस्त विषयों का उपयोग कर विष्णु भगवान् के उत्तम लोक को प्राप्त हुआ।
जो योगियों को भी दुष्प्राप्य है, फिर यज्ञ करने वालों को कहाँ से प्राप्त हो सकता है?
जहाँ जाकर विष्णु भगवान् के सन्निकट वास करते हुए शोक के भागी नहीं होते हैं।
वहाँ पर होने वाले सुखों को भोग कर गौतमी तथा सुदेव शर्मा दोनों स्त्री - पुरुष इस पृथ्वी में आये।
वही तुम सुदेव शर्मा इस समय दृढ़धन्वा नाम से प्रसिद्ध पृथिवी के राजा हुये।
पुरुषोत्तम नाम के सेवन से समस्त ऋद्धियों के भोक्ता हुये।
हे राजन्! यह आपकी पूर्व जन्म की पतिदेवता गौतमी ही पटरानी है।
हे भूपाल!
जो आपने मुझसे पूछा था सो सब मैंने कहा और शुक पक्षी तो पूर्वजन्म में जो पुत्र शुकदेव नाम से प्रसिद्ध थे और हरि भगवान् ने जिसको जिलाया था वह बारह हजार वर्ष तक आयु भोग कर बैकुण्ठ को गया।
वहाँ वन के तालाब के समीप वट वृक्ष पर बैठकर पूर्वजन्म के पिता तुमको आये हुए देखकर मेरे हितों के उपदेश करनेवाले, प्रत्यक्ष मेरे दैवत, विषयरूपी सर्प से दूषित संसार सागर में मग्न, इस प्रकार पिता को देख कर और अत्यन्त कृपा से युक्त वह शुक पक्षी विचार करने लगा कि यदि मैं इस राजा को ज्ञान का उपदेश नहीं करता हूँ तो मेरा बन्धन होता है।
जो पुत्र अपने पिता को पुन्नाम नरक से रक्षा करता है वही पुत्र है।
आज मेरा यह श्रुति के अर्थ का ज्ञान भी वृथा हो जायगा।
इसलिये अपने पूर्वजन्म के पिता का उपकार करूँगा।
हे राजन् दृढ़धन्वा!
इस तरह निश्चय करके वह शुक पक्षी वचन बोला।
हे पाप रहित! राजन्!
जो आपने पूछा सो यह सब मैंने कहा।
अब इसके बाद पापनाशिनी सरयू नदी को जाऊँगा।
श्रीनारायण बोले, 'इस प्रकार बहुत समय तक उस प्रसिद्ध यशस्वी राजा दृढ़धन्वा के पूर्वजन्म का चरित्र कहकर जाते हुए बाल्मीकि मुनि की प्रार्थना कर असंख्य पुण्यवान्, राजाओं का राजा बाल्मीकि मुनि को नमस्कार करता हुआ कुछ बोला।
इति श्रीबृहन्नारदीयपुराणे पुरुषोत्तममासमाहात्म्ये नवदशोऽध्यायः॥१९॥
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"जय जय श्री राधे"
*कंस राजा पे श्री जी ने की कृपा कर के दी अपनी सेवा*
राधा रानी रावल से बरसाना क्यों आयी ?
जय श्री कृष्णा सभी भक्तों को, आज हम जानेगे की क्या वजह थी जो रावल से बरसाना आना पड़ा?
एक कथा के अनुसार, ब्रह्माजी द्वारा वरदान प्राप्त कर राजा सुचंद्र एवं उनकी पत्नी कलावती कालांतर में वृषभानु एवं कीर्तिदा हुए।
इन्हीं की पुत्री के रूप नमें राधारानी ने मथुरा के गोकुल - महावन कस्बे के निकट रावल ग्राम में जन्म लिया।
श्रीराधा के जन्म के संबंध में कहा जाता है कि वृषभानु भाद्रपद शुक्ल अष्टमी को जब एक सरोवर के पास से गुजर रहे थे, तो उन्हें एक कुंज की झुकी वृक्षावलि के पास एक बालिका कमल के फूल पर तैरती हुई मिली, जिसे उन्होंने अपनी पुत्री के रूप में अपना लिया
कथा के अनुसार, बाद में वृषभानु कंस के अत्याचारों से तंग होकर रावल से बरसाना चले गए।
आइये जानते है उस कथा के बारे में !!
एक बार जब कंस, वृषभानु जी को मारने के लिए अपनी सेना सहित बरसाना की ओर चला तो वह बरसाना की सीमा में घुसते ही स्त्री बन गया और उसकी सारी सेना पत्थर की बन गई।
जब देवर्षि नारद बरसाना आए तो कंस ने उनके पैरों पर पड़कर सारी घटना सुनाई।
नारद जी ने इसे राधा जी की महिमा बताई।
वे उसे वृषभानु जी के महल में ले गए।
कंस के क्षमा मांगने पर राधा ने उससे कहा कि अब तुम यहां छह महीने गोपियों के घरेलू कामों में मदद करो।
कंस ने ऐसा ही किया।
छह माह बाद उसने जैसे ही वृषभानु कुंड में स्नान किया, वह अपने पुरुष वेश में आ गया।
फिर कभी उसने बरसाना की ओर मुड़कर नहीं देखा।
रस साम्राज्ञी राधा रानी ने नंदगांव में नंद बाबा के पुत्र के रूप में रह रहे भगवान श्रीकृष्ण के साथ समूचे ब्रज में आलौकिक लीलाएं कीं, जिन्हें पुराणों में माया के आवरण से रहित जीव का ब्रह्म के साथ विलास बताया गया है।
एक किंवदंती के अनुसार, एक बार जब श्रील नारायण भट्ट बरसाना स्थित ब्रह्मेश्वर गिरि पर गोपी भाव से विचरण कर रहे थे, उन्होंने देखा कि राधा रानी भी भगवान श्रीकृष्ण के साथ विचरण कर रही हैं।
राधा जी ने उनसे कहा कि इस पर्वत पर मेरी एक प्रतिमा विराजित है, उसे तुम अर्द्धरात्रि में निकालकर उसकी सेवा करो।
भट्ट जी इस प्रतिमा का अभिषेकादि कर पूजन करने लगे।
इसके बाद ब्रह्मेश्वर गिरि पर राधा रानी का भव्य मंदिर बनवाया गया, जिसे श्रीजी का मंदिर या लाडिली महल भी कहते हैं।
राधा रानी की श्रीकृष्ण में अनन्य आस्था थी।
वह उनके लिए हर क्षण अपने प्राण तक न्योछावर करने के लिए तैयार रहती थीं। विभिन्न पुराण, धार्मिक ग्रंथ एवं अनेक विद्वानों की पुस्तकें उनकी यशोगाथा से भरी पड़ी हैं।
राधा कृपा कटाक्ष स्तोत्र में कहा गया है कि अनंत कोटि बैकुंठों की स्वामिनी लक्ष्मी, पार्वती, इंद्राणी एवं सरस्वती आदि ने राधा रानी की पूजा - आराधना कर उनसे वरदान पाया था।
राधा चालीसा में कहा गया है कि जब तक राधा का नाम न लिया जाए, तब तक श्रीकृष्ण का प्रेम नहीं मिलता।
।।।।।।।।। जय श्री कृष्ण ।।।।।।।
पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
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-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science)
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जय द्वारकाधीश....
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