https://www.profitablecpmrate.com/gtfhp9z6u?key=af9a967ab51882fa8e8eec44994969ec 2. आध्यात्मिकता का नशा की संगत भाग 1: 08/04/20

।। पुरुषोत्तम मास माहात्म्य / *कंस राजा पे श्री जी ने की कृपा कर के दी अपनी सेवा* ।।

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

।। पुरुषोत्तम मास माहात्म्य / *कंस राजा पे श्री जी ने की कृपा कर के दी अपनी सेवा* ।। 


।। श्री पुरुषोत्तम मास की कथा ।।

            पुरुषोत्तम मास माहात्म्य

                          अध्याय - 19

          श्रीसूत जी बोले, 'हे तपस्वियो! इस प्रकार कहते हुए श्रीनारायण को मुनिश्रेष्ठ नारद मुनि ने मधुर वचनों से प्रसन्न करके कहा। 



हे ब्रह्मन्‌!तपोनिधि सुदेव ब्राह्मण को प्रसन्न विष्णु भगवान्‌ ने क्या उत्तर दिया सो हे तपोनिधे! कहिये।

          श्रीनारायण बोले, 'इस प्रकार महात्मा सुदेव ब्राह्मण ने विष्णु भगवान्‌ से कहा।

 भक्तवत्सल विष्णु भगवान् ने वचनों द्वारा सुदेव ब्राह्मण को प्रसन्न करके कहा।

          हरि भगवान्‌ बोले, 'हे द्विजराज! जो तुमने किया है उसको दूसरा नहीं करेगा। 

जिसके करने से हम प्रसन्न हुए उसको आप नहीं जानते हैं। 

यह हमारा प्रिय पुरुषोत्तम मास गया है। स्त्री के सहित शोक में मग्न तुमसे उस पुरुषोत्तम मास की सेवा हुई। हे तपोनिधे! 

इस पुरुषोत्तम मास में जो एक भी उपवास करता है, हे द्विजोत्तम! 

वह मनुष्य अनन्त पापों को भस्म कर विमान से बैकुण्ठ लोक को जाता है। 

सो तुमको एक महीना बिना भोजन किये बीत गया और असमय में मेघ के आने से प्रतिदिन प्रातः मध्याह्न सायं तीनों काल में स्नान भी अनायास ही हो गया।

          हे तपोधन! तुमको एक महीना तक मेघ के जल से स्नान मिला और उतने ही अखण्डित उपवास भी हो गये। 

शोकरूपी समुद्र में मग्न होने के कारण ज्ञान से शक्ति से हीन तुमको अज्ञान से पुरुषोत्तम का सेवन हुआ। 

तुम्हारे इस साधन का तौल कौन कर सकता है ? 

तराजू के एक तरफ पलड़े में वेद में कहे हुए जितने साधन हैं उन सबको रख कर और दूसरी तरफ पुरुषोत्तम को रख कर देवताओं के सामने ब्रह्मा ने तोलन किया और सब हलके हो गये, पुरुषोत्तम भारी हो गया।

 इसलिये भूमि के रहने वाले लोगों से पुरुषोत्तम का पूजन किया जाता है।

          हे तपोधन! यद्यपि पुरुषोत्तम मास सर्वत्र है, फिर भी इस पृथिवी लोक में पूजन करने से फल देने वाला कहा है। 

इससे हे वत्स! इस समय आप सब तरह से धन्य हैं, क्योंकि आपने इस पुरुषोत्तम मास में उग्र तथा परम दारुण तप को किया। 

मनुष्य शरीर को प्राप्त कर जो लोग श्रीपुरुषोत्तम मास में स्नान दान आदि से रहित रहते हैं वे लोग जन्म-जन्मान्तर में दरिद्र होते हैं।

 इसलिये जो सब तरह से हमारे प्रिय पुरुषोत्तम मास का सेवन करता है वह मनुष्य हमारा प्रिय, धन्य और भाग्यवान्‌ होता है।'

          श्रीनारायण बोले, 'हे मुने!

 जगदीश्वर हरि भगवान्‌ इस प्रकार कह कर गरुड़जी पर सवार होकर शुद्ध बैकुण्ठ भवन को शीघ्र चले गये। 

सपत्नीक सुदेव शर्मा पुरुषोत्तम मास के सेवन से मृत्यु से उठे हुए शुकदेव पुत्र को देखकर अत्यन्त दिन - रात प्रसन्न होने लगे।

          मुझसे अज्ञानवश पुरुषोत्तम मास का सेवन हुआ और वह पुरुषोत्तम मास का सेवन फलीभूत हुआ। 

जिसके सेवन से मृत पुत्र उठ खड़ा हुआ।

 आश्चर्य है कि ऐसा मास कहीं नहीं देखा! 

इस तरह आश्चर्य करता हुआ उस पुरुषोत्तम मास का अच्छी तरह पूजन करने लगा।

 वह सपत्नीक ब्राह्मणश्रेष्ठ इस पुत्र से प्रसन्न हुआ और शुकदेव पुत्र ने भी अपने उत्तम कार्यों से सुदेव शर्मा पिता को प्रसन्न किया।

          सुदेव शर्मा ने पुरुषोत्तम मास की प्रशंसा की तथा आदर के साथ श्रीविष्णु भगवान्‌ की पूजा की और कर्ममार्ग से होने वाले फलों में इच्छा का त्याग कर एक भक्तिमार्ग में ही प्रेम रक्खा।

 श्रेष्ठ पुरुषोत्तम मास को समस्त दुःखों का नाश करने वाला जान कर, उस मास के आने पर स्त्री के साथ जप - हवन आदि से श्रीहरि भगवान्‌ का सेवन करने लगा।

          वह सपत्नीक श्रेष्ठ ब्राह्मण निरन्तर एक हजार वर्ष संसार के समस्त विषयों का उपयोग कर विष्णु भगवान्‌ के उत्तम लोक को प्राप्त हुआ।

          जो योगियों को भी दुष्प्राप्य है, फिर यज्ञ करने वालों को कहाँ से प्राप्त हो सकता है?

 जहाँ जाकर विष्णु भगवान्‌ के सन्निकट वास करते हुए शोक के भागी नहीं होते हैं। 

वहाँ पर होने वाले सुखों को भोग कर गौतमी तथा सुदेव शर्मा दोनों स्त्री - पुरुष इस पृथ्वी में आये। 

वही तुम सुदेव शर्मा इस समय दृढ़धन्वा नाम से प्रसिद्ध पृथिवी के राजा हुये।

          पुरुषोत्तम नाम के सेवन से समस्त ऋद्धियों के भोक्ता हुये। 

हे राजन्‌! यह आपकी पूर्व जन्म की पतिदेवता गौतमी ही पटरानी है। 

हे भूपाल! 

जो आपने मुझसे पूछा था सो सब मैंने कहा और शुक पक्षी तो पूर्वजन्म में जो पुत्र शुकदेव नाम से प्रसिद्ध थे और हरि भगवान्‌ ने जिसको जिलाया था वह बारह हजार वर्ष तक आयु भोग कर बैकुण्ठ को गया। 

वहाँ वन के तालाब के समीप वट वृक्ष पर बैठकर पूर्वजन्म के पिता तुमको आये हुए देखकर मेरे हितों के उपदेश करनेवाले, प्रत्यक्ष मेरे दैवत, विषयरूपी सर्प से दूषित संसार सागर में मग्न, इस प्रकार पिता को देख कर और अत्यन्त कृपा से युक्त वह शुक पक्षी विचार करने लगा कि यदि मैं इस राजा को ज्ञान का उपदेश नहीं करता हूँ तो मेरा बन्धन होता है।

          जो पुत्र अपने पिता को पुन्नाम नरक से रक्षा करता है वही पुत्र है। 

आज मेरा यह श्रुति के अर्थ का ज्ञान भी वृथा हो जायगा। 

इसलिये अपने पूर्वजन्म के पिता का उपकार करूँगा। 

हे राजन्‌ दृढ़धन्वा! 

इस तरह निश्चय करके वह शुक पक्षी वचन बोला।

          हे पाप रहित! राजन्‌! 

जो आपने पूछा सो यह सब मैंने कहा। 

अब इसके बाद पापनाशिनी सरयू नदी को जाऊँगा।

          श्रीनारायण बोले, 'इस प्रकार बहुत समय तक उस प्रसिद्ध यशस्वी राजा दृढ़धन्वा के पूर्वजन्म का चरित्र कहकर जाते हुए बाल्मीकि मुनि की प्रार्थना कर असंख्य पुण्यवान्‌, राजाओं का राजा बाल्मीकि मुनि को नमस्कार करता हुआ कुछ बोला।

          इति श्रीबृहन्नारदीयपुराणे पुरुषोत्तममासमाहात्म्ये नवदशोऽध्यायः॥१९॥
                      ----------:::×:::---------- 

                  "जय जय श्री राधे"

*कंस राजा पे श्री जी ने की कृपा कर के दी अपनी सेवा*


राधा रानी रावल से बरसाना क्यों आयी ?
  
जय श्री कृष्णा सभी भक्तों को, आज हम जानेगे की क्या वजह थी जो रावल से बरसाना आना पड़ा?

एक कथा के अनुसार, ब्रह्माजी द्वारा वरदान प्राप्त कर राजा सुचंद्र एवं उनकी पत्नी कलावती कालांतर में वृषभानु एवं कीर्तिदा हुए। 

इन्हीं की पुत्री के रूप नमें राधारानी ने मथुरा के गोकुल - महावन कस्बे के निकट रावल ग्राम में जन्म लिया। 

श्रीराधा के जन्म के संबंध में कहा जाता है कि वृषभानु भाद्रपद शुक्ल अष्टमी को जब एक सरोवर के पास से गुजर रहे थे, तो उन्हें एक कुंज की झुकी वृक्षावलि के पास एक बालिका कमल के फूल पर तैरती हुई मिली, जिसे उन्होंने अपनी पुत्री के रूप में अपना लिया


कथा के अनुसार, बाद में वृषभानु कंस के अत्याचारों से तंग होकर रावल से बरसाना चले गए। 

आइये जानते है उस कथा के बारे में !!

एक बार जब कंस, वृषभानु जी को मारने के लिए अपनी सेना सहित बरसाना की ओर चला तो वह बरसाना की सीमा में घुसते ही स्त्री बन गया और उसकी सारी सेना पत्थर की बन गई। 

जब देवर्षि नारद बरसाना आए तो कंस ने उनके पैरों पर पड़कर सारी घटना सुनाई। 

नारद जी ने इसे राधा जी की महिमा बताई। 

वे उसे वृषभानु जी के महल में ले गए।

कंस के क्षमा मांगने पर राधा ने उससे कहा कि अब तुम यहां छह महीने गोपियों के घरेलू कामों में मदद करो। 

कंस ने ऐसा ही किया। 

छह माह बाद उसने जैसे ही वृषभानु कुंड में स्नान किया, वह अपने पुरुष वेश में आ गया। 

फिर कभी उसने बरसाना की ओर मुड़कर नहीं देखा।

रस साम्राज्ञी राधा रानी ने नंदगांव में नंद बाबा के पुत्र के रूप में रह रहे भगवान श्रीकृष्ण के साथ समूचे ब्रज में आलौकिक लीलाएं कीं, जिन्हें पुराणों में माया के आवरण से रहित जीव का ब्रह्म के साथ विलास बताया गया है।

एक किंवदंती के अनुसार, एक बार जब श्रील नारायण भट्ट बरसाना स्थित ब्रह्मेश्वर गिरि पर गोपी भाव से विचरण कर रहे थे, उन्होंने देखा कि राधा रानी भी भगवान श्रीकृष्ण के साथ विचरण कर रही हैं। 

राधा जी ने उनसे कहा कि इस पर्वत पर मेरी एक प्रतिमा विराजित है, उसे तुम अ‌र्द्धरात्रि में निकालकर उसकी सेवा करो। 

भट्ट जी इस प्रतिमा का अभिषेकादि कर पूजन करने लगे। 

इसके बाद ब्रह्मेश्वर गिरि पर राधा रानी का भव्य मंदिर बनवाया गया, जिसे श्रीजी का मंदिर या लाडिली महल भी कहते हैं।

राधा रानी की श्रीकृष्ण में अनन्य आस्था थी। 

वह उनके लिए हर क्षण अपने प्राण तक न्योछावर करने के लिए तैयार रहती थीं। विभिन्न पुराण, धार्मिक ग्रंथ एवं अनेक विद्वानों की पुस्तकें उनकी यशोगाथा से भरी पड़ी हैं।

राधा कृपा कटाक्ष स्तोत्र में कहा गया है कि अनंत कोटि बैकुंठों की स्वामिनी लक्ष्मी, पार्वती, इंद्राणी एवं सरस्वती आदि ने राधा रानी की पूजा - आराधना कर उनसे वरदान पाया था। 

राधा चालीसा में कहा गया है कि जब तक राधा का नाम न लिया जाए, तब तक श्रीकृष्ण का प्रेम नहीं मिलता।
।।।।।।।।। जय श्री कृष्ण ।।।।।।।
पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 
" Opp. Shri Dhanlakshmi Strits , Marwar Strits, RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
सेल नंबर: . + 91- 7010668409 / + 91- 7598240825 WHATSAPP नंबर : + 91 7598240825 ( तमिलनाडु )
Skype : astrologer85
Email: prabhurajyguru@gmail.com
आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद.. 
नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏

।।🌹 जीने की कला / परम अर्थ 🌹।।

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

।। सुंदर कहानी ।।

।।🌹  जीने की कला / परम  अर्थ  🌹।।

*जीने की कला....!*


एक शाम माँ ने दिनभर की लम्बी थकान एवं काम के बाद जब डिनर बनाया तो उन्होंने पापा के सामने एक प्लेट सब्जी और एक जली हुई रोटी परोसी। 


मुझे लग रहा था कि इस जली हुई रोटी पर कोई कुछ कहेगा। 

परन्तु पापा ने उस रोटी को आराम से खा लिया परन्तु मैंने माँ को पापा से उस जली रोटी के लिए ।

"साॅरी" 

बोलते हुए जरूर सुना था। 

और मैं ये कभी नहीं भूल सकता जो पापा ने कहा

 "प्रिये, मुझे जली हुई कड़क रोटी बेहद पसंद है।"

देर रात को मैने पापा से पूछा, क्या उन्हें सचमुच जली रोटी पसंद है?

उन्होंने मुझे अपनी बाहों में लेते हुए कहा - 

तुम्हारी माँ ने आज दिनभर ढ़ेर सारा काम किया, और वो सचमुच बहुत थकी हुई थी। 

और...

वैसे भी...

एक जली रोटी किसी को ठेस नहीं पहुंचाती परन्तु कठोर-कटू शब्द जरूर पहुंचाते हैं।

तुम्हें पता है बेटा - 

जिंदगी भरी पड़ी है अपूर्ण चीजों से...

अपूर्ण लोगों से... 

कमियों से...

दोषों से...

मैं स्वयं सर्वश्रेष्ठ नहीं, साधारण हूँ और शायद ही किसी काम में ठीक हूँ।

मैंने इतने सालों में सीखा है ।

कि 

एक दूसरे की गलतियों को स्वीकार करो...
अनदेखी करो... 
और चुनो... 
पसंद करो...
आपसी संबंधों को सेलिब्रेट करना।"

मित्रो, जिदंगी बहुत छोटी है... 

उसे हर सुबह दु:ख... 

पछतावे... 

खेद के साथ जागते हुए बर्बाद न करें। 

जो लोग तुमसे अच्छा व्यवहार करते हैं ।

उन्हें प्यार करो ओर जो नहीं करते उनके लिए दया सहानुभूति रखो।

किसी ने क्या खूब कहा है!

 मेरे पास वक्त नहीं उन लोगों से नफरत करने का जो मुझे पसंद नहीं करते, क्योंकि मैं व्यस्त हूँ उन लोगों को प्यार करने में जो मुझे पसंद करते हैं।"

तो मित्रो, जिदंगी का आनंद
लीजिये...उसका लुत्फ़ उठाइए...उसकी समाप्ति... उसका अंत तो निश्चित है......।

 अतः आप सब स्वस्थ रहें ।

 सुखी रहें एवं समृद्ध रहें, साथ ही अपने काम में व्यस्त रहें एवं मस्त रहे।

जय श्री कृष्ण...!

🌹 परम  अर्थ  🌹


प्राचीन   वेदकालीन   कहानी   है  !   और  प्रसिद्ध    भी   है  !   ध्रुव    तपस्या   करता   था  !   बालक  था   और   भगवान   का   ध्यान  ,  भक्ति    करता   था  !  एक   दिन   उसे   भगवान   प्रसन्न   हुए  ! 

भगवान   उसके   सामने   खड़े  हुए   ,  लेकिन   वह   तो   आंखे   बंद   करके   चिंतन   कर  रहा  था  !  ध्रुव    ने  आंखे  बंद   होने  से   भगवान   को   देखा   नही   !  प्रभु  ने   अपने  शंख   से   उसके   गाल   पर   धीरे  से   स्पर्श   किया  !   और  ध्रुव   की  वाणी   एकदम   स्फुरीत   हुई  ! 


इस   तरह   मनुष्य   जब   मनपुर्वक   , आद्रर्ता  से  चिंतन   करता  है   ,  तब   परम   वाक शक्ति   स्फूर्त  होती   है  !  उसको   पता   भी  नही   चलता   की  यह   शक्ति    कहासे   आई  !   वह  परमेश्वर   के   स्पर्श  से   स्फुरीत   हुई  ! इस   तरह   जहाँ   ईश्वर   का  स्पर्श   हुवा  , वहा    साहित्य   शक्ति   ,   काव्य   शक्ति   प्रगट  हुई    ऐसा   सत्पुरुषो    का   अनुभव   है   ! 

राम   हरी  

🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺
पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 
" Opp. Shri Dhanlakshmi Strits , Marwar Strits, RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
सेल नंबर: . + 91- 7010668409 / + 91- 7598240825 WHATSAPP नंबर : + 91 7598240825 ( तमिलनाडु )
Skype : astrologer85
Email: prabhurajyguru@gmail.com
आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद.. 
नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏

💐💐💐श्राद्ध में कभी स्त्री को श्राद्ध नहीं खिलाया जाता। / सुंदर कहानी 💐💐💐

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

💐💐💐श्राद्ध में कभी स्त्री को श्राद्ध नहीं खिलाया जाता। /  सुंदर कहानी 💐💐💐

🙏 *स्त्री को श्राद्ध नहीं खिलाया जा सकता* ✍️


*एकादशी के दिन श्राद्ध नहीं होता*❓

शास्त्र की आज्ञा है कि एकादशी के दिन श्राद्ध नहीं करना चाहिये। 



पुष्कर खंड में भगवान शंकर ने पार्वती जी को स्पष्ट रूप से कहा है, जो एकादशी के दिन श्राद्ध करते हैं तो श्राद्ध को खाने वाला और श्राद्ध को खिलाने वाला और जिस के निमित्त वह श्राद्ध हो रहा है वह पितर, तीनों नर्क गामी होते हैं। 

उसके लिए ठीक तो यही होगा कि वह उस दिन के निमित्त द्वादशी को श्राद्ध करें।

तो हमारे महापुरुषों का कहना है कि अगर द्वादशी को श्राद्ध नहीं करें और एकादशी को करना चाहें तो पितरों का पूजन कर निर्धन ब्राह्मण को केवल फलाहार करावें । 

भले ही वह ब्राह्मण एकादशी करता हो या ना करता हो। 

लेकिन हमें उस दिन उसे फलाहार ही करवाना चाहिए।

*श्राद्ध में कभी स्त्री को श्राद्ध नहीं खिलाया जाता।


आज कल एक प्रचलन है पिताजी का श्राद्ध है तो पंडित जी को खिलाया और माता जी का श्राद्ध है तो ब्राह्मणी को खिलाया; यह शास्त्र विरुद्ध है। 

स्त्री को श्राद्ध का भोजन करने की आज्ञा नहीं है ।

क्योंकि वह जनेऊ धारण नहीं कर सकती, उनको अशुद्ध अवस्था आती है, वह संकल्प नहीं करा सकती, तो ब्राह्मण को ही श्राद्ध का भोजन कराना चाहिए ।

ब्राह्मण के साथ ब्राह्मणी आ जाए उनकी पत्नी आ जाए साथ में बच्चे आ जाएं कोई हर्ज नहीं पर अकेली ब्राह्मणी को भोजन कराना शास्त्र विरुद्ध है।

 *पितरों को पहले थाली नहीं देवें,* 

पित्तृ पूजन में पितरों को कभी सीधे थाली नहीं देनी चाहिए। 

वैष्णवों में पहले भोजन बना कर पृथम ठाकुर जी को भोग लगाना चाहिए, और फिर वह प्रसाद पितरों को देना चाहिए, कारण क्या है वैष्णव कभी भी अमनिया वस्तु किसी को नहीं देगा। 

भगवान का प्रसाद ही अर्पण करेगा और भगवान का प्रसाद पितरों को देने से उनको संतुष्टि होगी। 

इस लिए पितरों को प्रसाद अर्पण करना चाहिए । 

पित्तृ लोक का एक दिन मृत्यु लोक के 1 वर्ष के बराबर होता है । 

यहां 1 वर्ष बीतता है पितृ लोक में 1 दिन बीतता  है । 

केवल श्राद्ध ही नहीं अपने पितरों के निमित्त श्री गीता पाठ, श्री विष्णु सहस्त्रनाम, श्री महा मंत्र का जप और नाम स्मरण अवश्य करना चाहिए। 

पितृ कर्म करना यह हमारा दायित्व है । 

जब तक यह पंच भौतिक देह है तब तक इस संबंध में जो शास्त्र आज्ञा और उपक्रम है उनका भी निर्वाह करना पड़ेगा | 

 जय श्री कृष्णा....!!! ! 🚩

💐💐💐 सुंदर कहानी 💐💐💐

        *दूसरों पर टीका टिप्पणी करने से पहले, यदि आप अपने दोष देखें, और उन्हें दूर करें, तो आप अधिक सुखी रहेंगे।*

         आपने मनुष्यों की यह मनोवृत्ति व्यवहार में देखी होगी, कि लोग दूसरों की जितनी चर्चा करते हैं, उन पर जितनी टीका टिप्पणी करते हैं, उतना अपने विषय में विचार नहीं करते, कि "हम कौन हैं? कहाँ से आए हैं, कहाँ जाएंगे? हमें क्या करना चाहिए, इत्यादि।" 

            *बहुत से लोग वर्षों तक इसी बहस में पड़े रहते हैं, कि "ईश्वर है या नहीं? 

            परंतु अपने बारे में यह नहीं सोचते कि हम भी मनुष्य हैं या नहीं?"*
        
            हम यह नहीं कहते,  कि ईश्वर आदि  विषयों पर सोचना नहीं चाहिए, या विचार विमर्श नहीं करना चाहिए। हम तो यह कहते हैं, कि ऐसे विषयों पर भी सोचना चाहिए, खूब सोचना चाहिए। 

            परंतु उस से पहले स्वयं अपने विषय में यह अवश्य सोचना चाहिए, कि *" हम कौन हैं, कहां से आए हैं, हम संसार में क्यों आए हैं? यहाँ हमारा अधिकार कितना है, हमारा कर्तव्य क्या है? 

            क्या हम अपने कर्तव्य का पालन कर रहे हैं या नहीं? 

            क्या यही हमारा पहला और अंतिम जन्म है, या इसके बाद कोई और भी जन्म होगा? "*

       
            कहने को तो आप और हम मनुष्य हैं। 

            " पर मनुष्य कहते किसे हैं," शायद इतना भी ठीक से नहीं जानते। 

            *सिर्फ मनुष्य का शरीर धारण कर लेने मात्र से कोई व्यक्ति मनुष्य नहीं कहलाता। 

            जैसे खिलौने के रूप में लकड़ी की गाय बना देने से वह वास्तविक गाय नहीं कहलाती। 

            वह लकड़ी की गाय न तो चारा खाती है, न ही दूध देती है। 

            सिर्फ नाम मात्र की गाय होती है।*
        
            इसी प्रकार से केवल शरीर धारण कर लेने से कोई मनुष्य नहीं कहलाता। 

            *वेदों के अनुसार, वास्तव में मनुष्य तो वही कहलाता है, जो मनन करके, विचार करके काम करे। 

            अपने कर्तव्य का गंभीरतापूर्वक चिंतन करे। 

            फिर उस कर्तव्य का पूरी शक्ति से पालन करे। 

            बिना विचार किए, कोई काम न करे।* 
       
            वास्तविक मनुष्य तो वही है, जो पहले अपने संबंध में ऊपर लिखे प्रश्नों पर विचार  करे। 

            उन विचारों पर ठीक से आचरण करे। 

            उसके बाद ईश्वर के संबंध में भी विचार करे। 

            जैसा ईश्वर का सच्चा स्वरूप हो, उसको जानकर उसके आदेश निर्देश का पालन करे, तथा अपने जीवन को सफल बनाए।
          

            अब हम विचार करते हैं कि मनुष्य का कर्तव्य क्या है? 

            *वेदों और ऋषियों के अनुसार मनुष्य वही है, जो अपनी आत्मा के समान सबकी आत्मा को समझे। 

            जैसे मुझे सुख अच्छा लगता है, ऐसे ही सबको सुख अच्छा लगता है। 

            जैसे मैं अपने सुख की प्राप्ति के लिए प्रयत्न करता हूं, ऐसे ही मैं दूसरों को भी सुख प्राप्त कराने के लिए प्रयत्न करूँ। 

            जैसे मैं अपने दुख दूर करने का पूरा प्रयास करता हूं, ऐसे ही मैं दूसरों के दुखों को भी दूर करने का पूरा प्रयास करूँ। 

            ऐसा सोचने और करने वाला व्यक्ति ही वास्तव में मनुष्य है। 

            अन्यथा तो वह नाम मात्र का ही मनुष्य है, जैसे लकड़ी की गाय।*
      
            तो वास्तविक मनुष्य, दूसरे दीन हीन कमजोर रोगी मनुष्यों की सहायता करे। 

            जो मुसीबत में हैं, उन्हें मुसीबत से बाहर निकाले। 

            उनकी मदद करे। 

            यह मनुष्य का पहला कर्तव्य है। 

            और यह सब कर्तव्य पालन करते हुए, फिर उसका दूसरा कर्तव्य यह भी है कि, वह ईश्वर का भी चिंतन करे,  कि *ईश्वर है अथवा नहीं? हमारा ईश्वर के प्रति क्या कर्तव्य है? 

            हम उसका पालन कर रहे हैं या नहीं? 

            ईश्वर से हमें क्या क्या लाभ हो सकते हैं? 

            क्या क्या हानियाँ हो सकती हैं।? 

            उसके लिए हमें क्या करना होगा? 

            इत्यादि.* सब विचार विमर्श करके फिर ईश्वर के प्रति कर्तव्य पालन करे। 

            और उससे पूरा पूरा लाभ उठाए। 

            संसार के जड़ पदार्थों रोटी कपड़ा मकान धन सम्पत्ति इत्यादि से भी पूरा लाभ उठाए। 

            और जीवन के लक्ष्य मोक्ष को समझते हुए उसे प्राप्त करने का प्रयत्न करे।  
      
            ऐसा करने से तो आप लोग सुखी रहेंगे। 

            जीवन को सार्थक बनाएंगे। 

            और सब दुखों से छूटकर ईश्वर के उत्तम आनंद ( मोक्ष ) को भी प्राप्त कर सकेंगे।
-।।।।।।। जय श्री कृष्ण ।।।।।।।
पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 
" Opp. Shri Dhanlakshmi Strits , Marwar Strits, RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
सेल नंबर: . + 91- 7010668409 / + 91- 7598240825 WHATSAPP नंबर : + 91 7598240825 ( तमिलनाडु )
Skype : astrologer85
Email: prabhurajyguru@gmail.com
आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद.. 
नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏

aadhyatmikta ka nasha

महाभारत की कथा का सार

महाभारत की कथा का सार| कृष्ण वन्दे जगतगुरुं  समय नें कृष्ण के बाद 5000 साल गुजार लिए हैं ।  तो क्या अब बरसाने से राधा कृष्ण को नहीँ पुकारती ...

aadhyatmikta ka nasha 1