https://www.profitablecpmrate.com/gtfhp9z6u?key=af9a967ab51882fa8e8eec44994969ec 2. आध्यात्मिकता का नशा की संगत भाग 1: 09/27/20

।। श्री ऋगवेद श्री यजुर्वेद और श्री रामचरित्रमानस आधारित प्रवचन ।।

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

।। श्री ऋगवेद श्री यजुर्वेद और श्री रामचरित्रमानस आधारित प्रवचन ।।



श्री ऋगवेद श्री यजुर्वेद और श्री रामचरित्रमानस आधारित विस्तृत प्रवचन 

ग्रन्थ - मानस चिन्तन-१   ( भाग-३ )

संदर्भ - प्रार्थना!! प्रार्थना के लक्षण।

सुनि बिरंचि मन हरष तन पुलकि नयन बह नीर।

अस्तुति करत जोरि कर सावधान मति धीर।।







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"नयन बह नीर" का तात्पर्य है - ब्रह्मा की आँखों से अश्रुपात हो रहा है। 

अश्रुपात कई प्रकार की भावनाओं को अपने - आप में समेटे हुये है। 

दु:ख और सुख की समान अभिव्यक्ति का यदि कोई संकेत है तो वह है आँसू।

 असमर्थता और व्याकुलता के क्षणों में आँसू बह निकलते ही हैं, पर आनन्दातिरेक के क्षणों में भी आँसू छलक उठते हैं‌

हृदय की भावनाओं को व्यक्त करने के लिये वाणी और नेत्र दो केन्द्र हैं। 

परन्तु वाणी के द्वारा अपनी हृदयगत भावनाओं को प्रगट करने के लिये भाषा का आश्रय लेना पड़ता है। 

भाषा देश - काल की सीमाओं में बँधी हुई है, सम्भव है हमारी भाषा को दूसरे न समझ सकें, किन्तु भावनाओं की अभिव्यक्ति का दूसरा केन्द्र नेत्र इतना सशक्त है कि वह देश - काल की सीमाओं में बँधा हुआ नहीं है।

ईश्वर तक अपनी बात किस माध्यम से पहुँचाना उचित होगा ?

 यदि वाणी के द्वारा भाषा का प्रयोग करें तो वह कौन - सी भाषा है, जो ईश्वर तक अपनी बात पहुँचाने के लिये उपयुक्त होगी ?

 प्रत्येक व्यक्ति अपनी ही भाषा का प्रयोग इसके लिये करे, यह स्वाभाविक है।

पर ईश्वरीय भाषा तो नेत्र के माध्यम से ही पूरी तरह प्रतिफलित होती है। 

यदि आँखों में असमर्थता और प्रीति से भरे अश्रु बोल न पड़े तो ईश्वर हमारी बात अस्वीकार कर सके, यह सम्भव नहीं है। 

आँखों के आँसू इसी असमर्थता और प्रीति के परिचायक हैं।

ब्रह्मा सृष्टि के निर्माता हैं, उनके सामर्थ्य की सीमाएँ बहुत विशाल हैं‌, पर रावण के रूप में जिस महान् संकट का उदय हुआ है, वहाँ वे इस असमर्थता का अनुभव करते हैं। 








उनके आँसुओं में असमर्थता झलक रही है, पर उसमें प्रीति और प्रसन्नता भी मिश्रित हैं।

 उन्हें आनन्द और गौरव की अनुभूति होती है कि इन निर्णायक क्षणों में सृष्टि की बात ईश्वर तक पहुँचाने का सौभाग्य उन्हें मिला है। 

फिर भगवान शिव ने यह कह कर एक नवरस की सृष्टि कर दी थी कि ईश्वर सर्वव्यापक है। 

मानों यहीं खड़ा हुआ वह सारी बातें सुन रहा हो, पर सामने नहीं आता। 

जैसे आँखमिचौली का खेल खेल रहा हो। 

ब्रह्मा की आँखें आँसू बहाती हुई मानो उसी को चारों ओर ढ़ूढ़ रही है।

ब्रह्मा के दोनों हाथ जुड़े हुये हैं।

 यह प्रार्थना द्वारा कर्म के समर्पण का प्रतीक है‌। 

हाथ कर्मशक्ति के प्रतीक हैं। 

हाथ जोड़कर पितामह इसी समग्रता को प्रगट करते हैं।

दोहे में ब्रह्मा के लिये "सावधान" का भी विशेषण दिया गया है।

 किसी श्रेष्ठ पुरुष के सामने होने पर व्यक्ति सावधान हो जाता है।








 महापुरुष की अनुपस्थिति में सजगता भी समाप्त हो जाती है।

 वैसे तो भौतिक दृष्टि से ब्रह्मा के सामने प्रभु नहीं हैं, पर ब्रह्मा की यह सावधानी सच्ची आस्तिक वृत्ति का परिणाम है।

भगवान शिव ने ईश्वर की सर्वव्यापकता का पक्ष प्रस्तुत किया था। 

जिसे ईश्वर की अनुभूति सर्वत्र हो रही है, उसका जीवन में प्रतिक्षण सावधान रहना भी स्वाभाविक ही है। 

जिसका स्वामी सामने खड़ा हो, भले ही वह दृष्टिगोचर न हो, उसके जीवन में प्रमाद का अवसर कहाँ ?

आगे - शेष भाग‌
दोहे का अंतिम शब्द है "मतिधीर"। 
मतिधीर का तात्पर्य है - 
जिसकी बुद्धि स्थिर हो।

।। श्रीगुरु चरन सरोज रज निज मन मुकुर सुधारि ।।

*तांबे का सिक्का*

एक राजा का जन्मदिन था। 

सुबह जब वह घूमने निकला, तो उसने तय किया कि वह रास्ते मे मिलने वाले पहले व्यक्ति को पूरी तरह खुश व संतुष्ट करेगा।








उसे एक भिखारी मिला। 

भिखारी ने राजा से भीख मांगी, तो राजा ने भिखारी की तरफ एक तांबे का सिक्का उछाल दिया।
.
सिक्का भिखारी के हाथ से छूट कर नाली में जा गिरा। 

भिखारी नाली में हाथ डाल तांबे का सिक्का ढूंढ़ने लगा।
.
राजा ने उसे बुला कर दूसरा तांबे का सिक्का दिया। 

भिखारी ने खुश होकर वह सिक्का अपनी जेब में रख लिया और वापस जाकर नाली में गिरा सिक्का ढूंढ़ने लगा।
.
राजा को लगा की भिखारी बहुत गरीब है, उसने भिखारी को चांदी का एक सिक्का दिया।
.
भिखारी राजा की जय जयकार करता फिर नाली में सिक्का ढूंढ़ने लगा।
.
राजा ने अब भिखारी को एक सोने का सिक्का दिया।
.
भिखारी खुशी से झूम उठा और वापस भाग कर अपना हाथ नाली की तरफ बढ़ाने लगा।
.
राजा को बहुत खराब लगा। 

उसे खुद से तय की गयी बात याद आ गयी कि पहले मिलने वाले व्यक्ति को आज खुश एवं संतुष्ट करना है।
.
उसने भिखारी को बुलाया और कहा कि मैं तुम्हें अपना आधा राज - पाट देता हूं, अब तो खुश व संतुष्ट हो ?
.
भिखारी बोला : 


मैं खुश और संतुष्ट तभी हो सकूंगा, जब नाली में गिरा तांबे का सिक्का मुझे मिल जायेगा।
.
हमारा हाल भी उस भिखारी जैसा ही है। 

हमें भगवान ने हमे मानव योनि के रूप में सामाजिक / धार्मिक एवं आध्यात्मिकता रूपी अनमोल खजाना दिया है ।

और हम उसे भूलकर संसार रूपी नाली में तांबे के सिक्के निकालने के लिए जीवन गंवाते जा रहे है।

|| जय श्रीमन्नारायण ||

सत्कर्म कर उसे भूल जाना चाहिए अन्यथा व्यक्ति अभिमान से बच नहीं सकेगा। 

अपने दाहिने हाथ से तुम जो कुछ देते हो उसका बाएं हाथ को भी पता नहीं होना चाहिए। 

' नेकी कर दरिया में डाल।’ 

सफल एवं सार्थक जीवन के लिए कर्म जरूरी है, लेकिन उसके साथ विवेक भी जरूरी है। 

कर्म मनुष्य के स्वभाव में निहित है। 

गीता में कहा गया है कि हम कर्म करें, वह हमारा अधिकार है, किंतु फल की इच्छा न करें। 

हमारा शरीर दरवाजा है। 

उस खुले दरवाजे से सभी तरह के कर्मों को करने की प्रेरणा मिलती है। 

एक मनीषी ने लिखा है कि यह शरीर नौका है।

यह डूबने भी लगता है और तैरने भी लगता है, क्योंकि हमारे कर्म सभी तरह के होने से यह स्थिति बनती है। 

इसी लिए बार - बार अच्छे कर्म करने की प्रेरणा दी जाती है, लेकिन ऐसा हो नहीं पाता है। 

हमें यह समझ लेना चाहिए कि जिस प्रकार एक डाल पर बैठा व्यक्ति उसी डाल को काटता है तो उसका नीचे गिर जाना अवश्यंभावी है, ठीक उसी प्रकार गलत काम करने वाला व्यक्ति अंततोगत्वा गलत फल पाता है।

उदाहरण के लिए हम किसी पर क्रोध करते हैं तो उसका प्रत्यक्ष फल हमारी आंखों के सामने आ जाता है। 

हमारा शरीर, हमारा मन, हमारी बुद्धि, सब कुछ उत्तेजित हो उठता है जिससे हमारी शक्ति का अपव्यय होता है।

साथ ही हम उस व्यक्ति को भी क्षुब्ध करते हैं जो हमारे क्रोध का भाजन होता है। 

हम कोई बुरा शब्द मुंह से निकालते हैं तो हमारी जबान गंदी हो जाती है। 

हम चोरी करते हैं तो हमारे भीतर बड़ी अशांति और बेचैनी होती है। 

इस के विपरीत जब हमारे हाथों से कोई अच्छा काम होता है तो तत्काल हमें बड़े ही आत्मिक संतोष और प्रसन्नता की अनुभूति होती है।

मनुष्य के हाथ में कर्तव्य करना है, लेकिन उसका फल नहीं है। 

वह अनेक कारणों तथा परिस्थितियों पर निर्भर करता है। 

सच्चाई यह भी है कि कर्म कराने वाला और कोई है। हम तो निमित्त मात्र हैं। 

हममें से अधिकांश व्यक्ति इस सत्य को भूल जाते हैं। 

एक और महत्वपूर्ण बात यह है कि यदि हम फल की आशा रखते हैं तो अनुकूल फल होने से हमें हर्ष होता है और प्रतिकूल फल होने से विषाद होता है। 

इससे राग और द्वेष पैदा होते हैं।

इसी लिए कहा गया है कि कर्म करो, किंतु तटस्थ भाव से करो। 

हममें से अधिकतर लोग सत्कर्म करके उसका हिसाब रखते हैं। 

यह उचित नहीं है। 

इससे पुण्य क्षीण हो जाता है। 

हाथ से तुम जो कुछ देते हो उसका बाएं हाथ को भी पता नहीं होना चाहिए। 

हमारे यहां भी कहावत है।

‘नेकी कर दरिया में डाल।’

इस का तात्पर्य यह है कि सत्कर्म करके भी उसे भूल जाना चाहिए। 

अन्यथा व्यक्ति अभिमान से बच नहीं सकेगा।

        || जय श्री श्याम श्रीं कृष्ण ||

पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 
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आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद.. 
नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏

|| श्री ऋगवेद श्री यजुर्वेद और श्री विष्णु पुराण के आधारित एकादशी व्रत विशेष प्रर्वचन कहानी ||

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

|| श्री ऋगवेद श्री यजुर्वेद और श्री विष्णु पुराण के आधारित एकादशी व्रत विशेष प्रर्वचन कहानी   ||


श्री ऋगवेद श्री यजुर्वेद और श्री विष्णु पुराण के आधारित एकादशी व्रत विशेष प्रर्वचन और सत्य कहानी ।

नमो नमस्ते गोविन्द बुधश्रवणसंज्ञक ॥
अघौघसंक्षयं कृत्वा सर्वसौख्यप्रदो भव ।
भुक्तिमुक्तिप्रदश्चैव लोकानां सुखदायकः ॥

संस्कृत शब्द एकादशी का शाब्दिक अर्थ ग्यारह होता है। 

एकादशी पंद्रह दिवसीय पक्ष ( चन्द्र मास ) के ग्यारहवें दिन आती है। 

एक चन्द्र मास ( शुक्ल पक्ष ) में चन्द्रमा अमावस्या से बढ़कर पूर्णिमा तक जाता है।








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और उसके अगले पक्ष में ( कृष्ण पक्ष ) वह पूर्णिमा के पूर्ण चन्द्र से घटते हुए अमावस्या तक जाता है। 

इस लिए हर महीने में एकादशी दो बार आती है।

ऐसा निर्देश हैं कि हर वैष्णव को एकादशी के दिन व्रत करना चाहिये।

इस प्रकार की गई तपस्या भक्तिमयी जीवन के लिए अत्यंत लाभकारी हैं।

मन में भौतिक इच्छा रखने वाले लोगों ने मोक्ष प्राप्त करने के लिए अथवा अपनी उद्देश्य - पूर्ति के लिए प्रत्येक एकादशी को उपवास रखना चाहिए। 

परंतु एकादशी का सच्चा उद्देश्य हैं भगवान्‌ को आनंद प्रदान करना।

हज़ारों अश्वमेध यज्ञ करके और सैकडों वाजपेय यज्ञ करके जो पुण्य प्राप्त होता है।

उस पुण्य की तुलना एकादशी के उपवास द्वारा प्राप्त होने वाले पुण्य के सोलहवे हिस्से के साथ भी नहीं हो सकती।

इस पृथ्वी पर भगवान्‌ पद्मनाभ के दिन के समान ( अर्थात्‌ एकादशी के समान ) शुद्धि प्रदान करने वाला और पाप दूर कर सकने में समर्थ अन्य कोई भी दिन नहीं हैं।

ग्यारह इन्द्रियों के द्वारा ( आँखें, कान, नाक, जीभ और त्वचा यह पाँच ज्ञानेंद्रिय; मुँह, हाथों,पैर, गुदद्वार और जननेंद्रिय यह पाँच कर्मेद्रिय और मन – इन के द्वारा ) किये गये सर्व पाप कर्म हर एक पक्ष की ग्यारहवे दिन को ( एकादशी को ) उपवास करने से नष्ट हो जाते हैं।


अपना पाप नष्ट करने के लिए एकादशी के समान प्रभावी उपाय दूसरा कोई नहीं हैं। 

यदि कोई व्यक्ति केवल दिखावे के लिए एकादशी करता है।

तो भी उस व्यक्ति को मृत्यु के उपरांत यम का दर्शन नहीं होता हैं।

भगवान्‌ श्रीकृष्ण के अवतार महर्षि वेद व्यास ने कहा है –

मेरे दिन ( एकादशी को ) यदि कोई व्यक्ति मुझे थोड़ा भी अन्न अर्पण करता है।

तो वह नरक में जायेगा। 

तो कोई व्यक्ति स्वयं अन्न खाने से उस की क्या गति होगी।

ये कहने की आवश्यकता नहीं हैं।

हमारा मित्र के जीवन की सत्य हकीकत की कहानी।

गुस्से को नियंत्रित करने का एक सुंदर उदाहरण

एक वकील ने सुनाया हुआ एक हृदयस्पर्शी किस्सा : -

" मै अपने चेंबर में बैठा हुआ था, एक आदमी दनदनाता हुआ अन्दर घुसा। "

" उसके हाथ में कागज़ो का बंडल, धूप में काला हुआ चेहरा, बढ़ी हुई दाढ़ी, सफेद कपड़े जिनमें पांयचों के पास मिट्टी लगी थी।"

उसने कहा : -

" उसके पूरे फ्लैट पर स्टे लगाना है,बताइए, क्या क्या कागज और चाहिए.....! "

" क्या लगेगा खर्चा.....! "

मैंने उन्हें बैठने का कहा : - 

" रग्घू, पानी दे इधर " मैंने आवाज़ लगाई...!

वो कुर्सी पर बैठे...!

उनके सारे कागजात मैंने देखे, उनसे सारी जानकारी ली,आधा पौना घंटा गुजर गया।

" मै इन कागज़ो को देख लेता हूँ फिर आपकी केस पर विचार करेंगे। "

" आप ऐसा कीजिए, बाबा, शनिवार को मिलिए मुझसे। " 

चार दिन बाद वो फिर से आए- 

वैसे ही कपड़े...!

बहुत डेस्परेट लग रहे थे..!

अपने भाई पर गुस्सा थे बहुत...!
 
मैंने उन्हें बैठने का कहा..!

वो बैठे...!

ऑफिस में अजीब सी खामोशी गूंज रही थी।

मैंने बात की शुरवात की " बाबा, मैंने आपके सारे पेपर्स देख लिए।

आप दोनों भाई, एक बहन,माँ - बाप बचपन में ही गुजर गए।

तुम नौवीं पास। 

छोटा भाई इंजिनियर।







आपने कहा कि छोटे भाई की पढ़ाई के लिए आपने स्कूल छोड़ा लोगो के खेतों में दिहाड़ी पर काम किया कभी अंग भर कपड़ा और पेटभर खाना आपको मिला नहीं पर भाई के पढ़ाई के लिए पैसा कम नहीं होने दिया।"

"एक बार खेलते खेलते भाई पर किसी बैल ने सींग घुसा दिए तब लहूलुहान हो गया आपका भाई।

फिर आप उसे कंधे पर उठा कर 5 किलोमीटर दूर अस्पताल लेे गए। 

सही देखा जाए तो आपकी उम्र भी नहीं थी ये समझने की,पर भाई में जान बसी थी आपकी।

माँ बाप के बाद मै ही इन का माँ बाप…..!

ये भावना थी आपके मन में"

"फिर आपका भाई इंजीनियरिंग में अच्छे कॉलेज में एडमिशन ले पाया और आपका दिल खुशी से भरा हुआ था।

फिर आपने मरे दम तक मेहनत की...!

80,000 की सालाना फीस भरने के लिए आपने रात दिन एक कर दिया यानि बीवी के गहने गिरवी रख के, कभी साहूकार कार से पैसा ले कर आपने उसकी हर जरूरत पूरी की।"

"फिर अचानक उसे किडनी की तकलीफ शुरू हो गई, डॉक्टर ने किडनी निकालने का कहा और
तुम ने अगले मिनट में अपनी किडनी उसे दे दी यह कह कर कि कल तुझे अफसर बनना है।

नौकरी करनी है।


कहाँ कहाँ घूमेगा बीमार शरीर लेे के। 

मुझे गाँव में ही रहना है।

ये कह कर किडनी दे दी उसे।"

"फिर भाई मास्टर्स के लिए हॉस्टल पर रहने गया।

लड्डू बने, देने जाओ, खेत में मकई खाने तैयार हुई, भाई को देने जाओ, कोई तीज त्योहार हो, भाई को कपड़े करो।

घर से हॉस्टल 25 किलोमीटर तुम उसे डिब्बा देने साइकिल पर गए।

हाथ का निवाला पहले भाई को खिलाया तुमने।"

"फिर वो मास्टर्स पास हुआ, तुमने गाँव को खाना खिलाया।

फिर उसने उसी के कॉलेज की लड़की जो दिखने में एकदम सुंदर थी से शादी कर ली तुम सिर्फ समय पर ही वहाँ गए।

भाई को नौकरी लगी, 3 साल पहले उसकी शादी हुई, अब तुम्हारा बोझ हल्का होने वाला था।"

"पर किसी की नज़र लग गई आपके इस प्यार को।

शादी के बाद भाई ने आना बंद कर दिया। 

पूछा तो कहता है मैंने बीवी को वचन दिया है।

घर पैसा देता नहीं, पूछा तो कहता है कर्ज़ा सिर पे है।

पिछले साल शहर में फ्लैट खरीदा।

पैसे कहाँ से आए पूछा तो कहता है कर्ज लिया है।

मैंने मना किया तो कहता है भाई, तुझे कुछ नहीं मालूम, तू निरा गवार ही रह गया।

अब तुम्हारा भाई चाहता है गाँंव की आधी खेती बेच कर उसे पैसा दे दे।"

इतना कह के मैं रुका - रग्घू ने लाई चाय की प्याली मैंने मुँह से लगाई -

" तुम चाहते हो भाई ने जो मांगा वो उसे ना दे कर उसके ही फ्लैट पर स्टे लगाया जाए - क्यों यही चाहते हो तुम".....!

वो तुरंत बोला, "हां"

मैंने कहा - हम स्टे लेे सकते है, भाई के प्रॉपर्टी में हिस्सा भी माँग सकते हैं...!

पर…...!

1 ) तुमने उसके लिए जो खून पसीना एक किया है वो नहीं मिलेगा..!

2 ) तुम्हारीे दी हुई किडनी वापस नहीं मिलेगी..!

3 ) तुमने उसके लिए जो ज़िन्दगी खर्च की है वो भी वापस नहीं मिलेगी।

मुझे लगता है इन सब चीजों के सामने उस फ्लैट की कीमत शुन्य है।
 
भाई की नीयत फिर गई, वो अपने रास्ते चला गया अब तुम भी उसी कृतघ्न सड़क पर मत जाओ।

वो भिखारी निकला...!


तुम दिलदार थे।

दिलदार ही रहो…..!

तुम्हारा हाथ ऊपर था..!

ऊपर ही रखो।

कोर्ट कचहरी करने की बजाय बच्चों को पढ़ाओ लिखाओ।

पढ़ाई कर के तुम्हारा भाई बिगड़ गया लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि तुम्हारे बच्चे भी ऐसा करेंगे।"

वो मेरे मुँह को ताकने लगा।

उठ के खड़ा हुआ, सब काग़ज़ात उठाए और आँखे पोछते हुए कहा -

 "चलता हूँ, वकील साहब।" 

उसकी रूलाई फुट रही थी और वो मुझे  दिख ना जाए ऐसी कोशिश कर रहा था।






इस बात को अरसा गुजर गया...!

कल वो...!

अचानक मेरे ऑफिस में आया।

कलमों में सफेदी झाँक रही थी उसके। 

साथ में एक नौजवान था और हाथ में थैली।

मैंने कहा- 

" बाबा, बैठो...! "

उसने कहा, " बैठने नहीं आया वकील साहब, मिठाई खिलाने आया हूँ । "

ये मेरा बेटा, बैंगलोर रहता है, कल आया गाँव।

अब तीन मंजिला मकान बना लिया है वहाँ।

" थोड़ी थोड़ी कर के 10–12 एकड़ खेती खरीद ली अब। "

मै उसके चेहरे से टपकते हुए खुशी को महसूस कर रहा था।

"वकील साहब, आपने मुझे कहा -  कोर्ट कचहरी के चक्कर में मत लगो। "

जबकि गाँव में सब लोग मुझे भाई के खिलाफ उकसा रहे थे।

मैंने उनकी नहीं, आपकी बात सुन ली और मैंने अपने बच्चो को लाइन से लगाया और भाई के पीछे अपनी ज़िंदगी बरबाद नहीं होने दी।

" कल भाई भी आ कर पाँव छू के गया,माफ कर दे मुझे ऐसा कह गया। "

मेरे हाथ का पेडा हाथ में ही रह गया।
 
मेरे आंसू टपक ही गए आखिर....!

गुस्से को योग्य दिशा में मोड़ा जाए तो पछताने की जरूरत नहीं पड़े कभी...!

जीवन की वास्तविक शांति कैसे मिलती है।
                                                                
एक राजा था जिसे पेटिंग्स से बहुत प्यार था। 

एक बार उसने घोषणा की कि जो कोई भी उसे एक......!

ऐसी " पेंटिंग बना कर " देगा जो " शांति को दर्शाती हो " तो वह उसे मुंह माँगा इनाम देगा।

फैसले के दिन एक से बढ़ कर एक चित्रकार इनाम जीतने की लालच में अपनी - अपनी पेंटिंग्स लेकर राजा के महल पहुंचे। 

राजा ने एक - एक करके सभी पेंटिंग्स देखीं और उनमे से दो को अलग रखवा दिया।

अब इन्ही दोनों में से एक को इनाम के लिए चुना जाना था।

पहली पेंटिंग एक .......!

" अति सुन्दर शांत झील की थी !! " 

उस झील का पानी इतना साफ़ था कि उसके अन्दर की सतह तक नज़र आ रही थी !! 

और उसके आस - पास मौजूद " हिमखंडों की छवि उस पर ऐसे उभर रही थी मानो कोई दर्पण रखा हो ..!! " 

ऊपर की और नीला आसमान था जिसमे रुई के गोलों के सामान सफ़ेद बादल तैर रहे थे।

जो कोई भी इस पेटिंग को देखता उसको यही लगता कि " शांति को दर्शाने के लिए इससे अच्छी पेंटिंग हो ही नहीं सकती !! "

दूसरी पेंटिंग में भी पहाड़ थे, पर वे बिलकुल रूखे, बेजान , वीरान थे और इन पहाड़ों के ऊपर " घने गरजते बादल थे जिनमे बिजलियाँ चमक रही थीं…..! " 

घनघोर वर्षा होने से नदी उफान पर थी….!

" तेज हवाओं से पेड़ हिल रहे थे…..! "

और पहाड़ी के एक ओर स्थित....!

" झरने ने रौद्र रूप धारण कर रखा था।"

जो कोई भी इस पेटिंग को देखता यही सोचता कि भला इसका ......!

"शांति” से क्या लेना देना… ?"

इसमें तो बस अशांति ही अशांति है।

सभी आश्वस्त थे कि पहली पेंटिंग बनाने वाले चित्रकार को ही इनाम मिलेगा  !!

तभी राजा अपने सिंहासन से उठे और ऐलान किया कि ......!

 " दूसरी पेंटिंग बनाने वाले चित्रकार को वह मुंह माँगा इनाम देंगे। "

हर कोई आश्चर्य में था! 

पहले चित्रकार से रहा नहीं गया, वह बोला, “ लेकिन महाराज उस पेटिंग में ऐसा क्या है ? "
 
जो आपने उसे इनाम देने का फैसला लिया….!

" जबकि हर कोई यही कह रहा है कि मेरी पेंटिंग ही शांति को दर्शाने के लिए सर्वश्रेष्ठ है?"

“आओ मेरे साथ!”, राजा ने पहले चित्रकार को अपने साथ चलने के लिए कहा। 

दूसरी पेंटिंग के समक्ष पहुँच कर राजा बोले, “झरने के बायीं ओर हवा से एक तरह झुके इस वृक्ष को देखो…...! "

देखो इसकी डाली पर बने इस " घोसले को " देखो - देखो " कैसे एक चिड़िया " इतनी कोमलता से, इतने " शांत भाव व प्रेम से पूर्ण होकर " अपने " बच्चों को भोजन करा रही है…" !!

फिर राजा ने वहां उपस्थित सभी लोगों को समझाया-

" शांत होने का मतलब ये नही है " कि आप ऐसे स्थिति में हों...…!

जहाँ कोई शोर नहीं हो… !!

कोई समस्या नहीं हो…...!

जहाँ कड़ी मेहनत नहीं हो…...!

जहाँ आपकी परीक्षा नहीं हो…...!

" शांत होने का सही अर्थ " है ......!

कि आप हर तरह की अव्यवस्था, अशांति, अराजकता के बीच हों और फिर भी आप शांत रहें !!

अपने काम पर केन्द्रित रहें…..!

अपने लक्ष्य की और अग्रसित रहें।

अब सभी समझ चुके थे ...!

कि दूसरी पेंटिंग को राजा ने क्यों चुना है ?

इस जीवन में हर कोई अपनी जिदंगी में शान्ति चाहता है !!

पर अक्सर हम शांति को कोई बाहरी वस्तु समझ लेते हैं, और उसे दूरस्थ और विस्तारित छुटियों  में ढूंढते हैं।

जबकि शांति पूरी तरह से हमारे अन्दर की चीज है !!

और सत्य यही है कि तमाम दुःख-दर्दों, तकलीफों और दिक्कतों के बीच भी....!

"शांत रहना ही असल में शांत होना है......!!"

एक बार मनन अवश्य करें..!!

 जय जय श्री राधे राधे...!

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एक छोटा सा बच्चा अपने दोनों हाथों में एक एक एप्पल लेकर खड़ा था

उसके पापा ने मुस्कराते हुए कहा कि
“बेटा एक एप्पल मुझे दे दो”

इतना सुनते ही उस बच्चे ने एक एप्पल को दांतो से कुतर लिया.

उसके पापा कुछ बोल पाते उसके पहले ही उसने अपने दूसरे एप्पल को भी दांतों से कुतर लिया

अपने छोटे से बेटे की इस हरकत को देखकर बाप ठगा सा रह गया और उसके चेहरे पर मुस्कान गायब हो गई थी…

तभी उसके बेटे ने अपने नन्हे हाथ आगे की ओर बढाते हुए पापा को कहा….

“पापा ये लो.. 

ये वाला ज्यादा मीठा है.

शायद हम कभी कभी पूरी बात जाने बिना निष्कर्ष पर पहुंच जाते हैं..

किसी ने क्या खूब लिखा है:

नजर का आपरेशन....,

तो सम्भव है....!

पर नजरिये का नही..!!! 👌💯

🍁🍁 फर्क सिर्फ सोच का
होता है…..
वरना...., 
वही सीढ़ियां ऊपर भी जाती है....,
और निचे भी आती है 🍁🍁

“जीत हासील करनी हो तो काबिलियत बढाओ....,
शेर खुद अपनी ताकत से राजा कहलाता है,
जंगल में कभी चुनाव नही होते”।

🙏हर हर महादेव हर...!!
जय माँ अंबे ...!!!🙏🙏

पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
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सेल नंबर: . + 91- 7010668409 / + 91- 7598240825 WHATSAPP नंबर : + 91 7598240825 ( तमिलनाडु )
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जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏

aadhyatmikta ka nasha

भगवान शिव ने एक बाण से किया था :

भगवान शिव ने एक बाण से किया था : तारकासुर के तीन पुत्रों को कहा जाता है त्रिपुरासुर, भगवान शिव ने एक बाण से किया था तीनों का वध : तीनों असुर...

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