https://www.profitablecpmrate.com/gtfhp9z6u?key=af9a967ab51882fa8e8eec44994969ec 2. आध्यात्मिकता का नशा की संगत भाग 1: 09/25/20

।।श्री यजुर्वेद श्री ऋगवेद और श्री विष्णू पुराण आधारित शुक्राचार्य की उत्पत्ति और श्री अधिक मास यानी मल मास या पुरुषोत्तम मास की कथा ।।

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

।।श्री यजुर्वेद श्री ऋगवेद और श्री विष्णू पुराण आधारित शुक्राचार्य की उत्पत्ति और श्री  अधिक मास यानी मल मास या पुरुषोत्तम मास की कथा ।।


श्री यजुर्वेद श्री ऋगवेद और श्री विष्णू पुराण आधारित शुक्राचार्य की उत्पत्ति और श्री  अधिक मास यानी मल मास या पुरुषोत्तम मास की कथा से हम देखे की भगवान विष्णु ने मारा था शुक्राचार्य की माँ को, बदले की भावना में ही बने दैत्यगुरु!

शुक्राचार्य का नाम तो सबने सुना ही होगा...!

इतना सबको पता ही है की वो दैत्यों और राक्षसो के गुरु थे।





लेकिन ये कोई नही जानता होगा की वो कौन थे काहां से आये थे। 

आज उनका पूरा कच्चा चिटठा खोल रहे है...!

और हम आपको बताते है उनके ऋषि से दैत्यगुरु होने की कथा।

संत रुरु जिन्होंने अपनी होने वाली पत्नी को
अपनी आधी उम्र दे के फिर जीवित किया!

नवग्रहों में शुमार शुक्र ही शुक्राचार्य है...!

शुक्राचार्य ऋषियों में सर्वश्रेष्ठ भृगु ऋषि के पुत्र है...!

भृगुऋषि जिन्हे धरती के सब ऋषियों ने तीनो देवो ( ब्रह्मा विष्णु और महेश ) में कौन सर्वश्रेष्ठ है...!

जांचने की जिम्मेदारी थी ऐसे प्रतापी ऋषि का पुत्र हो के भी शुक्राचार्य दैत्यों के गुरु कैसे बन गए?

बाद बहुत पुरानी है भृगु ऋषि की दो पत्निया थी पहली दक्ष की कन्या थी और दूसरी थी ख्याति जिनसे उन्हें पुत्र मिला शुक्राचार्य। 

इस लिए उनके नाम पे ही शुक्र का नाम शुक्रवार पड़ा...!

पिता ने उन्हें ब्रह्मऋषि अंगरीशी अंग के पास शिक्षा के लिए भेजा।

गर्भवती माँ का राक्षस ने किया उत्पीड़न तो समय से पहले पैदा हुए च्यवन!

अंगऋषि ब्रह्मा के मानस पुत्रो में सर्वश्रेष्ठ थे।

शुक्राचार्य के साथ उनके पुत्र बृहस्पति ( जो बाद में देवो के गुरु बने ) भी पढ़ते थे। 

शुक्राचार्य बृहस्पति की तुलना में काफी होशियार थे...!

लेकिन फिर भी बृहपति को पुत्र होने के चलते ज्यादा अच्छी तरह से शिक्षा नही मिली।

ईर्ष्यावश वो वंहा से दीक्षा छोड़ के सनक ऋषियों और गौतम ऋषि से शिक्षा लेने लगे।

इस दौरान उन्हें प्रेरणा मिली और जब बृहस्पति देवो के गुरु बने तो ईर्ष्या वश वो दैत्यों के गुरु बने। 

दैत्य देवो से नित हारते थे इसलिए उन्होंने ( शुक्राचार्य ) शिव को प्रसन्न कर संजीवनी मन्त्र ( मरे हुए को जीवित करने का मन्त्र ) हेतु तपस्या में बैठ गए।

लेकिन देवो ने मौके का फायदा उठा के दैत्यों का संघार आरम्भ कर दिया...!

शुक्राचार्य को तपस्या में जान दैत्य उनकी माता ख्याति की शरण में चले गए।

ख्याति ने दैत्यों को शरण दी और जो भी देवता दैत्यों को मारने आता वो उसे मूर्छित कर देती या अपनी शक्ति से लकवा ग्रस्त।

ऐसे में दैत्य बलशाली हो गए और धरती पर पाप बढ़ने लगा...!

धरती पे धर्म की स्थापना के लिए भगवान विष्णु ने शुक्राचार्य की माँ और भृगु ऋषि की पत्नी ख्याति का सुदर्शन चक्र से सर काट दैत्यों के संघार में देवो की और समूचे जगत की मदद की। 

इसपे शुक्राचार्य को बेहद खेद हुआ और वो शिव की तपस्या में और कड़ाई से लग गए।

आखिर कार उन्होंने संजीवनी मन्त्र पाया और दैत्यों के राज्य को पुनः स्थापित कर...!

अपनी माँ का बदला लिया....!

तब से शुक्राचार्य का भगवान विष्णु से छत्तीस का आंकड़ा हो गया और वो उनके शत्रु बन गए।

भृगु ऋषि ने भगवान विष्णु को इसपे श्राप दिया की तुम्हे बार बार पृथ्वी में जाके गर्भ में रह कष्ट भोगना पड़ेगा चूँकि उन्होंने एक स्त्री का वध किया।

उससे पहले भगवान प्रकट हो के ही अवतार लेते थे...!

जैसे की वराह, मतस्य, कुर्म और नरसिंह...!

लेकिन उसके बाद उन्होंने परशुराम राम कृष्ण बुद्ध रूप में जन्म लिया...!

तो माँ के पेट में कोख में रहने की पीड़ा झेलनी पड़ी थी।

बाद में शुक्राचार्य से बृहस्पति के पुत्र ने संजीवन विधा सिखकर उनका पतन किया।

||  शुक्राचार्य जी महाराज की जय हो ||

अधिकमास की वार्ता ...!


एक घर मे दोई सास बहू रहती थी । 

सास ने बहु से कहा , बहु अब कल सी अधिकमास लग रहा है तो मैं सुबह से अधिकमास नहाउंगी रोज । 

तो बहु ने कहा माताजी ये अधिकमास कई होय म्हारे भी बताओ तो सास बोली कि जिस महीने संक्रांति नही होती वो अधिकमास होता और इसको पुरषोत्तम मास भी कहते है । 

पुरषोत्तम मास में सुबह सूर्योदय के पहले उठी ने नारायण , तरायण और परायण करना चाहिए । 

तो बहु बोली माँ नारायण , तरायण और परायण कैसो करणु । 

तो सास बोली कि सुबह सूर्योदय के पहले उठी ने तालाब में नहानु उसके बाद नारायण यानी सूर्य नारायण को पानी चढ़ाओ और ध्रुव तारा को दर्शन करो , 

परायण मतलब की रामायण को मास परायण करो...!

बहु ने कहा कि माँ मैं भी करूंगी तो सास बोली नही नही तू भी करेगी तो घर को सुबह को काम कुन करेगा । 

तो बहु भी बिचारि डर गई ।

दूसरे दिन सासुजी तो 4 बजे उठी ने तालाब में गया नहाने तो बहु भी पीछे ही उठ गयी और मटके के निचे का कुंडा का पानी भरा उससे नहा ली । 

और जल्दी जल्दी नारायण , तरायण कर लिया । 

सब जल्दी जल्दी ही कर लिया कि कहि सासुजी आ गयी तो लड़ेगी । 

ऐसे करते करते दो तीन दिन निकले । 

साथ मे काम भी करती । 

रोज कुएं का पानी भरने जाती  । 

गुंडी बेड़ा से पानी भी भरती ।

एक दिन कुएं का पानी लेने गयी तो उससे बेड़ा नही उठ रहा था रोज तो उठा कर ले जाती थी आज क्यों नही उठा पा रही मैं...!

बहु सोच में पड़ गयी । 

उसने इधर उधर देखा तो एक नोजवान लड़का दिखाई दिया...!

तो उसने उसे बुलाया और कहा भाई मुझे ये गुंडी बेड़ा उठवा दो रोज उठा लेती हूं पर आज नही उठा पा रही...!

तो नोजवान ने उसकी मदद की और साथ मे कहता चला गया कि...!

 " सासु नहाव उण्ड और बहू नहाव कुण्ड " 

एक दिन, 2 दिन , रोज ही ये नियम बन गया कि बहु से बेड़ा नही उठता और वही लड़का उसकी मदद करता और वही बोलता चला जाता कि   

सासु नहाव उण्ड और बहू नहाव कुण्ड..!

एक दिन बहु ने उससे पूछा कि भाई तो ऐसा क्यों बोलता है तो वह बोला कि तुम रोज नहाती हो ना कुंडे के पानी से । 

बहु ने पूछा कि तुझे कैसे पता और क्या नाम है तुम्हारा ? 

तो वह बालक मधुर मुस्कान से बोला मेरा नाम ही दामोदर है । 

और कहते ही अपना विराट रूप दिखा दिया । 

बहु तो देखते ही रह गयी और भगवान के श्री चरणों मे गिर गयी और कहने लगी । 

माफ करना प्रभु....!

मैने अज्ञानता वश  आपको नही पहचाना...!

इधर सासु माँ को भी बीस , पच्चीस दिन हो गए तो उसने बहु से कहा कि कल मैं अधिकमास का जोड़ा जिमाउंगी तो कल 5 पकवान बनाना । 

अब बहु तो चिंता में पड़ गयी कि अधिकमास तो मैं भी कर रही हु मैं जोड़ा कहा से जिमाउंगी...!

सोचते हुए रात गयी सुबह वैसे ही नारायण , तरायण किया और पानी लेने गयी कुएं पर । 

देखा तो दामोदर वही था तो उसको अपनी समस्या बताई । 

अब दामोदर ने कहा की बहन चिंता क्यों कर रही है मै हु ना मैं आ जाऊँगा जोड़ा जीमने...!

तो बहु बोली मैं कैसे बुलाने  आऊँगी तो दामोदर ने कहा कुछ नही 2 थाली परोस कर तुलसी वृन्दावन में रख देना और घंटी बजा देना तो मैं आ जाऊँगा । 

बहु बोली ठीक है ।

अब दूसरे दिन भी जल्दी नारायण , तरायण किया और 5 पकवान बना लिये सासु जी से कहा कि बुला लाओ , भोजन तैयार है ।


सास ने भी जोड़े कोआगे बिठाया और थाली परोस दी । 


बहु भी पीछे के दरवाजे से तुलसी वृन्दावन में 2 थाली लेकर गयी और गरुड़ घंटी बजा दी...! 

राधा कृष्ण आ गए बहु के लिए जोड़ा जीमने...!

रसोई में बैठे भोजन करने लगे ।

बहु भाग भाग कर आगे सास जी के जोड़े को भी परोस रही और रसोई में बैठे दामोदर राधा को भी परोस रही । 

आगे बहु ने देखा कि सासु माँ ने तो जोड़े को टका ( पैसा ) कपड़ा सब दे रही तो अंदर आकर सोचने लगी कि मैं दामोदर को क्या दूंगी तो भगवान समझ गए । 

प्रभु ने कहा तुलसी लाकर मेरे हाथ मे पर अर्पण करो । 

तो बहु झट झट तुलसी का पत्ता लाई और राधा दामोदर के हाथ पर रख दिया तो देखा कि तुलसी तो सोने का टका बन गयी ।

मजे में दोनो जोड़े जिम लिए और चले गए ।

अब सासु जी ने कहा कि चल बहु  अपन दोनो भी भोजन करते है ।

तो इधर रसोई में देखा तो 2 थाली भरी हीरे , मोती , माणिक , कलश भी सोने का  हो गया और जाते हुए भगवान के पद चिन्ह मिले ।

सासु जी को आश्चर्य हुआ बहु से पूछा तो बहु ने पूरी बात बताई ।

सास बोली बहु तू बड़ी भागवान है...!

तेरे लिए भगवान श्री जय जय श्री कृष्ण स्वयं राधा के साथ आये। 

सास , बहु दोनो  का अधिकमास संपन्न हुआ ।

 कयता , सुनता , हुंकार भरता , कहानी पड़ता सभी बहनों को पुरषोत्तम मास सफल होय...!


। श्रीमद्भागवत प्रवचन ।।

यदि कोई यह कहता है कि उसने अपने जीवन में कभी कोई गलती नहीं की, तो इसका मतलब हुआ कि उसने अपने जीवन में कुछ हटके नहीं किया, नया नहीं किया। 



गलती करना कोई बुरी बात नहीं, एक गलती को बार-बार करना बुरी बात है। 

कोई भी गलती आप दो बार नहीं कर सकते, अगर आप गलती दोहराते हैं तो फिर ये गलती नहीं आपकी इच्छा है। 
 
🌼उपलब्धि और आलोचना दोनों बहिन हैं। 

उपलब्धियाँ बढेंगी तो निश्चित ही आपकी आलोचना भी बढ़ेगी। 

लोग निंदा करते हैं या प्रशंसा ये महत्वपूर्ण नहीं है, महत्वपूर्ण ये है कि जिम्मेदारियाँ ईमानदारी से पूरी की गई हैं या नहीं ?

🌼और एक बात ! 

जिस काम को करने में डर लगे, उसी को करने का नाम साहस है। 

मनुष्य अपने विश्वास से निर्मित होता है, जैसा वह विश्वास करता है, वैसा बन जाता है। 

खुद पर भरोसा रखो। 

छोड़ो ये बात कि लोग क्या कहेंगे ? 

लोगों की परवाह किये बिना अपने विचारों को सृजन का रूप दे दो ताकि हर कोई कह सके ।

"" मान गए आपको "।
जय श्री कृष्ण !!

बोलो राधे क्रष्ण 🙏🏻🙏🏻🌹🌹💐💐

पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 
" Opp. Shri Dhanlakshmi Strits , Marwar Strits, RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
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आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद.. 
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जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏

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