सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता, किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश
माता-पिता की सेवा में ही चारो धाम की सेवा भक्ति समाया हुवा है......!
महेश अपनी पत्नी और दोनों बच्चों के साथ मंदिर से घर की ओर अपनी कार में लौट रहा था।
आज वह बहुत उदास था।
उसे अपने माता पिता की याद रह - रह कर सता रही थी।
अचानक उसकी नजर एक बुजुर्ग दंपत्ति पर पड़ी जिनके हाथ में एक चिट्ठी थी और वे किसी युवक से उस चिट्ठी को पढ़ने की प्रार्थना कर रहे थे, लेकिन युवक शायद जल्दी में था इस लिए वह युवक उनकी प्रार्थना को सुनी अनसुनी कर चलता बना।
महेश ने जब यह सब देखा ,तब उसने अपनी कार को साइड में रोका।
कार से नीचे उतर कर उसने उस बुजुर्ग दंपति से वह चिट्ठी ली।
दंपति ने चिट्ठी देते हुए कहा लो बेटा इसे पढ़ दो इसमें मेरे बेटे के घर का पता है ।वह इस शहर मे रहने लगा है और उसने हमको यही रहने के लिए बुलाया है।
महेश ने चिट्ठी पढ़ी चिट्ठी पढ़कर वह हैरान हो गया....!
क्योंकि चिट्ठी में लिखा था 'ये मेरे बुजुर्ग माता - पिता है मैं इनकी सेवा करने में असमर्थ हूं....!
आप जो भी सज्जन यह चिट्ठी पढ़ रहे हैं उन से निवेदन है कि वह मेरे माता - पिता को किसी अनाथ आश्रम में छोड़ दे।'
महेश कुछ देर के लिए अपनी सुध-बुध खो बैठता हे ।
इतने में उसकी पत्नी कार से उतर कर आती हे और दोनों छोटे बच्चे भी साथ में आ जाते हैं।
पत्नी ने उत्सुकतावश पूछा क्या हो रहा है , बहुत देर लगा दी।
महेश ने अपनी पत्नी राधा को सारा वृत्तांत सुनाया ।
यह वृतांत बच्चों ने भी सुना।
राधा ने अपने पति से निवेदन किया कि क्यों ना हम आप दोनों बुजुर्ग माता - पिता को अपने घर ले ले।
यह सुनकर बच्चे भी खुश हो गए और वह भी कहने लगे कि हां अपन इन दोनों को अपने घर ले लेते हैं।
महेश का मन तो पहले से ही उनको घर लेने का था अतः वह राजी राजी उनको अपने घर ले आया।
महेश तो आज मंदिर इसलिए ही गया था कि उसे अपने माता पिता की बहुत याद आ रही थी जो एक वर्ष पहले तीर्थ यात्रा के दौरान बस दुर्घटना में मृत्यु को प्राप्त हो गए थे।
घर आकर महेश और उसकी पत्नी ने उन दोनों बुजुर्ग दंपत्ति को अपना माता पिता ही मान लिया और उनकी सेवा करने लगे।
पूरे परिवार को जैसे नई जिंदगी मिल गई।
महेश के माता पिता की मृत्यु के पश्चात महेश अपने काम पर विशेष ध्यान नहीं दे पा रहा था और उसकी फैक्ट्री अच्छी नहीं चल रही थी।
घाटे पर घाटा हो रहा था।
लेकिन महेश अब अच्छे से काम करने लगा और सब कुछ बढ़िया चलने लगा।
वह रोज़ाना बुजुर्ग माता पिता का आशीर्वाद लेकर अपने काम पर निकलता।
और आशीर्वाद का फल यह रहा कि वह बहुत तेजी से प्रगति करता चला जा रहा था।
इधर इन बुजुर्ग माता पिता के लड़के नरेंद्र जिसने अपना पुश्तैनी मकान बेच दिया था और माता-पिता को घर से अलग किया था ,उसे व्यापार में बहुत अधिक नुकसान हुआ और वह नौकरी की तलाश में भटकता भटकता संयोगवश महेश के पास आजाता है।
महेश ने बुजुर्ग माता-पिता के पास नरेंद्र की तस्वीर देखी थी इसलिए वह नरेंद्र को पहचान जाता हे।
लेकिन महेश नरेंद्र को कुछ नहीं बताता हे और उसे चुप चाप काम पर रख लेता है।
महेश ने नरेंद्र से बहुत अच्छा व्यवहार करता हे। उसका पूरा ख्याल रखता है और उसकी पूरी मदद करता है।
उस दिन बाद महेश उससे पूछता हे.....!
"तुम्हारे माता-पिता कहां है?"
नरेंद्र रोते - रोते बोला मैंने अपने माता-पिता के साथ बहुत अभद्र व्यवहार किया ।
उनको चालाकी से घर से निकाला और घर भी बेच दिया था ।
परमात्मा जाने वह कहां होंगे मैंने उनको ढूंढने की बाद में बहुत कोशिश की लेकिन वह कहीं नहीं मिले और उसका फल भुगत रहा हूं।
लेकिन महेश ने नरेंद्र को धैर्य बंधाते हुए कहा.....!
ऊपर वाला जो भी करता है अच्छे के लिए ही करता है ।
तुम्हें कुछ देर के लिए कुबुद्धि आई उसमें भी एक राज था उसी के कारण मुझे अपने नए माता - पिता मिले ।
और फिर महेश ने नरेंद्र को सारी कहानी सुनाता हे।फिर वह उसे अपने घर ले जाता हे और उसके माता - पिता से मिलवाता हे।
नरेंद्र पश्चाताप की अग्नि में जल रहा था उसका सिर शर्म से झुका हुआ था....!
लेकिन महेश ने उसकी हिम्मत बंधाई और कहा अपने माता - पिता से मिलिए मैंने इनको तुम्हारे बारे में सिर्फ यह बताया है कि यह घर नरेंद्र का ही है और वह काम से बाहर गया है मैं उन का दोस्त हूं और उसके घर में रह रहा हूं।
नरेंद्र अपना काम पूरा करके जल्दी ही लौटेगा।
नरेंद्र भाव विभोर हो जाता है और महेश को गले लगा लेता है।
और बोलता है आप वास्तव में देवता तुल्य हैं।
महेश ने बोला नहीं यह सब परमात्मा की लीला है ।
परमात्मा से मैंने माता - पिता मांगे थे और परमात्मा ने मुझे अपने माता - पिता दे दिए हैं ।
अब मैं इनको नहीं छोड़ सकता हूं ।
यह माता पिता जो अब तुम्हारे साथ साथ मेरे भी हैं , तुम्हें ही रात दिन याद करते रहते थे।
और सावित्री और पप्पू को याद कर करके रोते रहते थे।
अब तुम ऐसा करो अपनी पत्नी सावित्री और अपने बेटे पप्पू को लेकर यही आ जाओ ।
अब मैं माता - पिता के बिना नहीं रह सकता हूं और यह भी नहीं चाहता हूं कि ये माता पिता तुम्हारी और तुम्हारी पत्नी एवं बच्चे की याद में दुखी रहे।
इस लिए तुम अपनी पत्नी और बेटे को भी यहीं ले आओ और हम सब मिल - जुल कर यंही रह लगे।
नरेंद्र ने ऐसा ही किया सारा परिवार इकट्ठा हो गया माता पिता का खुशी का ठिकाना ना रहा ।
लेकिन महेश ने भूल से भी माता-पिता को नरेंद्र की असली कहानी नहीं बताई।
और नरेंद्र को भी सब कुछ बताने के लिए मना किया।
बुराई का फल बुरा ही होता है और भलाई का फल भला ही होता है।
लेकिन जब सुबह का भूला शाम को घर लौट आता है तब उसको भूला नहीं कहते।
।।।।।।।।। जय श्री कृष्ण।।।।।।।।
पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
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-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science)
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नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏