|| शुभ श्रावण विशेष : ||
|| धर्माधर्म चक्र ||
1-वृषभरूप धर्म -
इस कालचक्र के ऊपर ब्रह्मचर्य का व्रत धारण किये हुए वृषभाकृतिरूप धर्म है।
यह शिव - लोक से आगे स्थित है तथा सत्य आदि चार पैरों से युक्त है।
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इस वृषभरूप धर्म के आगे का दक्षिण पाद सत्य रूप है...!
वाम पाद शौच ( पवित्रता ) है....!
पीछे का दक्षिण पाद दया है और वाम पाद 'अहिंसा' है....!
अर्थात् धर्म, सत्य, शुचिता, दया और अहिंसा रूप चार पैरों से चलता है।
जहाँ सत्यादि हैं वहाँ धर्म है।
इसके मुख में वेदध्वनि सुशोभित है....!
आस्तिकता की दृष्टि ( नेत्र ) है....!
क्षमारूपी सींग वाला है.....!
शम - रूपी कान हैं।
धर्म के ऊपर कालचक्र नहीं...!
कालातीत शिव - लिङ्ग स्थित है।
धर्म पर कालचक्र का अधिकार नहीं है।
2-महिषारूढ़ अधर्मरूप कालचक्र
सर्वथा कामरूपधारी,नास्तिकता (अनीश्वरवादिता ) अलक्ष्मी ( दरिद्रता ) दुःसङ्ग ( कुसंगति ) वेदविरुद्धाचरण, नित्य क्रोधाग्नि दग्ध, कृष्णवर्ण महिष ( भैंसा ) पर आरूढ़ यह कालचक्र है।
उस महिष का शरीर अधर्ममय है।
उसके चारों चरण ( पैर ) असत्य, अशुचि, हिंसा और निर्घृण हैं।
इस कालचक्र के नीचे कर्म भोग है और इसके ऊपर ज्ञान भोग है।
नीचे कर्ममाया है और ऊपर ज्ञानमाया है।
इस कालरूपी दुस्तर सागर से वे ही पार पा सकते है...!
जो सदाशिव के चरणकमलों में अपने आपको समर्पित कर देते हैं....!
वे इस दुस्तर कर्मभोग व कर्ममाया से परे ज्ञान भोग व ज्ञानमाया को पार कर जाते है।
जो जीव कोटि के सामान्य प्राणी हैं....!
वे इस कालचक्र के नीचे तथा पर कोटि के महापुरुष होते हैं;
वे इस काल चक्र से ऊपर पहुँच जाते हैं।
अधर्म महिषारूढ़ कालचक्र को अर्थात् असत्य अशुचि, हिंसा, निर्घृणा आदि को वे ही पार कर सकते हैं जो सत्य, शुचिता, अहिंसा और दया से युक्त होकर भगवान् शिव की उपासना में संलग्न हैं।
( - शिवपुराण )
|| वृषभध्वज की जय हो ||
🔱!! शिव तत्व विचार- 🔱
शुभ श्रावण
भगवान शिव स्वयं तो पूज्य हैं ही लेकिन उन्होंने प्रत्येक उस प्राणी को भी पूज्य बना दिया जो उनकी शरण में आ गया।
शिव आश्रय लेने पर वक्र चन्द्र अर्थात वो चन्द्रमा जिसमें अनेक विकृतियां, अनेक दोष हैं पर वो भी वन्दनीय बन गए।
जिसे मनुष्यों का जन्मजात शत्रु माना जाता है...!
वही सर्प जब भगवान शिव की शरण लेकर उनके गले का हार बन जाता है...!
तो फिर पूज्यनीय भी बन जाता है।
यह भगवान महादेव के संग का ही प्रभाव है कि शिवजी के साथ - साथ नाग देव के रूप में सर्प को भी सारा जगत पूजता है।
भगवान महादेव अपने आश्रित को केवल पुजारी बनाकर ही नहीं रखते अपितु पूज्य भी बना देते हैं।
हमें भी यथा संभव दूसरों का सम्मान एवं सहयोग करना चाहिए।
जीवन इस प्रकार का हो कि आपसे मिलने के बाद सामने वाले का हृदय उत्साह...!
प्रसन्नता और आनंद से परिपूर्ण हो जाये..।
!! ॐ नमः शिवाय जी !!
जहां अहंकार है वहां भगवान नहीं,
जहां भगवान है वहां अहंकार नहीं।
इस पोस्ट को तब तक बार बार पढ़ना जब तक कही गई बात हृदय में न उतर जाए...!
कभी सोचा है कि जो भगवान सर्वसमर्थ है...!
वो फिर शबरी के घर चल कर क्यों जाता है....!
विदुर के घर साग क्यों खाता है....!
महाभारत में राजा बनकर लड़ने की जगह सारथी बनकर मार्गदर्शन क्यों करता है....!
सुदामा के द्वारिका पहुंचने पर नंगे पैर दौड़ पड़ता है....!
जो भगवान सर्व शक्ति मान है.....!
वो अपने सच्चे भक्त के बस में हो जाता है।
इस का मतलब इतना तो समझ आ ही गया होगा....!
की भगवान सरल लोगों को ही प्राप्त होता है....!
अगर आप में अहंकार है वो किसी भी तरह का हो...!
भगवान आपको प्राप्त नहीं होगा....!
हां इतना जरूर है जब आपका हृदय अहंकार रहित होकर निर्मल हो जायेगा....!
तो उसमें ईश्वर प्रकट रूप में आ जाएंगे....!
और जिसके साथ ईश्वर साक्षात् रूप में हैं...!
उसको फिर किसी चीज की कमी नहीं....!
जहां अहंकार है वहां भगवान नहीं....!
और जहां भगवान है वहां अहंकार नहीं।
कर्म रूपी प्रयास और भगवद् कृपा रूपी प्रसाद का संतुलन ही जीवन की परिपक्वता एवं श्रेष्ठता है।
प्रभु कृपा के बल पर किये गये कर्म का परिणाम जीवन को कभी निराश और हताश नहीं होने देता ।
जीवन में जो लोग केवल पुरुषार्थ पर विश्वास रखते हैं...!
प्रायः उनमे परिणाम के प्रति संतोष बना रहता है और जो लोग केवल भाग्य पर विश्वास रखते हैं....!
उनके अकर्मण्य होने की सम्भावना भी बनी रहती है।
पुरुषार्थ को इस लिए मानो ताकि तुम केवल भाग्य के भरोसे बैठकर अकर्मण्य बनकर जीवन प्रगति का अवसर ना खो बैठें आप और भाग्य को इस लिए मानो ताकि पुरुषार्थ करने के बावजूद मनोवांछित फल की प्राप्ति ना होने पर भी आप उद्विग्नता से ऊपर उठकर संतोष में जी सकें, आप ।
मुदा करात्तमोदकं सदा विमुक्तिसाधकं
कलाधरावतंसकं विलासिलोकरञ्जकम्।
अनायकैकनायकं विनाशितेभदैत्यकं
नताशुभाशुनाशकं नमामि तं विनायकम्।।
जिन्होंने बड़े आनन्द से अपने हाथ में मोदक ले रखे हैं;
जो सदा ही मुमुक्षुजनोंकी मोक्षाभिलाषाको सिद्ध करने वाले हैं;
चन्द्रमा जिनके भालदेश के भूषण हैं;
जो भक्ति भाव में निमग्न लोगों के मन को आनन्दित करते हैं;
जिनका कोई नायक या स्वामी नहीं है;
जो एकमात्र स्वयं ही सबके नायक हैं;
जिन्होंने गजासुर का संहार किया है तथा जो नतमस्तक पुरूषों के अशुभ का तत्काल नाश करने वाले हैं...!
उन भगवान् विनायक को मैं प्रणाम करता हूं।
काशी विश्वनाथ मंदिर में अविमुक्तेश्वर जी के दर्शन का बहुत महत्व है।
अविमुक्तेश्वर लिंग के दर्शन से कई पीढ़ियों के पापों से मुक्ति मिलती है और पुनर्जन्म नहीं होता है...!
ऐसा माना जाता है कि भगवान विश्वनाथ स्वयं प्रतिदिन अविमुक्तेश्वर की पूजा करते हैं।
अविमुक्तेश्वर लिंग के दर्शन से व्यक्ति को कई पीढ़ियों के पापों से मुक्ति मिलती है।
अविमुक्तेश्वर लिंग के दर्शन से पुनर्जन्म नहीं होता है।
शिव - पार्वती संवाद :
शिवजी ने पार्वती को बताया था की इन 4 लोग की बातों पर ध्यान नही देना चाहिए ।
गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित श्रीरामचरित मानस में शिवजी और पार्वती का एक प्रसंग बताया है..!
जिसमें शिवजी 4 ऐसे लोगों के विषय में भी बताते हैं...!
जिनकी बातों पर हमें ध्यान नहीं देना चाहिए।
बातल भूत बिबस मतवारे।
ते नही बोलहि वचन विचारे।।
जिन्ह कृत महामोह मद पाना।
तिन्ह कर कहा करिअ नहिं काना।।
1 पहला व्यक्ति वह है जो वायु रोग यानी गैस से पीड़ित है।
वायु रोग में भयंकर पेट दर्द होता है।
जब पेट दर्द हद से अधिक हो जाता है तो इंसान कुछ भी सोचने - विचारने की अवस्था में नहीं होता है।
ऐसी हालत पीड़ित व्यक्ति कुछ भी बोल सकता है...!
अत: उस समय उसकी बातों पर ध्यान नहीं देना चाहिए।
2 यदि कोई व्यक्ति पागल हो जाए, किसी की सोचने - समझने की शक्ति खत्म हो जाए तो वह कभी भी हमारी बातों का सीधा उत्तर नहीं देता है।
अत: ऐसे लोगों की बातों पर भी ध्यान नहीं देना चाहिए।
3 यदि कोई व्यक्ति नशे में डूबा हुआ है तो उससे ऐसी अवस्था में बात करने का कोई अर्थ नहीं निकलता है।
जब नशा हद से अधिक हो जाता है तो व्यक्ति का खुद पर कोई नियंत्रण नहीं रहता है...!
उसकी सोचने - समझने की शक्ति खत्म हो जाती है...!
ऐसी हालत में वह कुछ भी कर सकता है...!
कुछ भी बोल सकता है।
अत: ऐसे लोगों से दूर ही रहना श्रेष्ठ है।
4 जो व्यक्ति मोह - माया में फंसा हुआ है...!
जिसे झूठा अहंकार है...!
जो स्वार्थी है...!
जो दूसरों को छोटा समझता है....!
ऐसे लोगों की बातों पर भी ध्यान नहीं देना चाहिए।
यदि इन लोगों की बातों पर ध्यान दिया जाएगा तो निश्चित ही हमारी ही हानि होती है ।
ध्याये नित्यं महेशं रजतगिरिनिभं चारूचंद्रां वतंसं।
रत्नाकल्पोज्ज्वलांगं परशुमृगवराभीतिहस्तं प्रसन्नम।।
पद्मासीनं समंतात् स्तुततममरगणैर्व्याघ्रकृत्तिं वसानं।
विश्वाद्यं विश्वबद्यं निखिलभय हरं पञ्चवक्त्रं त्रिनेत्रम्।।
भावार्थ पञ्चमुखी, त्रिनेत्रधारी, चांदी की तरह तेजोमयी...!
चंद्र को सिर पर धारण करने वाले, जिनके अंग - अंग रत्न - आभूषणों से दमक रहे हैं...!
चार हाथों में परशु, मृग, वर और अभय मुद्रा है।
मुखमण्डल पर आनंद प्रकट होता है....!
पद्मासन पर विराजित हैं....!
सारे देव, जिनकी वंदना करते हैं....!
बाघ की खाल धारण करने वाले ऐसे सृष्टि के मूल, रचनाकार महेश्वर का मैं ध्यान करता हूं।
सावन मास की अमावस्या को हरियाली अमावस्या कहते हैं।
इस दिन स्नान, दान और शिव पूजन और पितृों का तर्पण किया जाता है।
इस दिन शिव पूजन का भी विशेष महत्व है...!
क्यों कि यह सावन की अमावस्या है...!
इस दिन भगवान शिव को बेलपत्र, फल आदि अर्पित कर उनका रुद्राभिषेक कराना भी उत्तम रहता है।
इस अमावस्या का नाम ही हरियाली अमावस्या है...!
इस दिन पेड़ लगाने से भी शुभ फल मिलता है।
खास कर आम, आंवला, बड़ का पेड़ आदि लगाने चाहिए।
इस दिन सबसे पहले स्नान करके काले तिल और जल से पितरों का तर्पण देना चाहिए...!
इस से पितर प्रसन्न होते हैं।
इस से पितृ दोष से मुक्ति मिलती है और परिवार में सुख - शांति बनी रहती है।
हरियाली अमावस्या के दिन पितरों के नाम की दीपदान बहुत शुभ माना जाता है।
पितरों के लिए किसी तालाब या पवित्र नदी के किनारे अपने पितरों के नाम का दीपक जरूर जलाएं ।
इस के अलावा शाम के समय आप पीपल के पेड़ के पास भी दीपक जला सकते हैं...!
क्योंकि इसमें ब्रह्मा विष्णु, महेश तीनों देवताओं का वास माना जाता है।
इस से भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की कृपा मिलती है।
हरियाली अमावस्या का मुख्य उद्देश्य पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा देना और प्रकृति के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करना है...!
यह त्योहार हमें याद दिलाता है....!
कि हम प्रकृति के ऋणी हैं और हमें इसे सुरक्षित रखने के लिए पूरा प्रयास करना चाहिए...!
हारीयाली अमावस्या, श्रावणी अमावस्या री आप सगला आर्याव्रत वासीयों ने घणी घणी बधाईयां शुभकामनाएं...!
पंडारामा प्रभु राज्यगुरु
|| अविमुक्तेश्वर महादेव की जय हो ||