https://www.profitablecpmrate.com/gtfhp9z6u?key=af9a967ab51882fa8e8eec44994969ec 2. आध्यात्मिकता का नशा की संगत भाग 1: 09/30/20

।। " गौ रक्षा-हमारा परम कर्तव्य " हांजी हांजी कहना इसी गांव में रहना और एक छोटी सी मां .का सुंदर कहानी ।।

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

।। " गौ रक्षा-हमारा परम कर्तव्य " हांजी हांजी कहना इसी गांव में रहना और एक छोटी सी मां .का सुंदर कहानी ।।


गौ रक्षा-हमारा परम कर्तव्य " हांजी हांजी कहना इसी गांव में रहना और एक छोटी सी मां .का सुंदर कहानी की पस्तुति दिए गए है।

हांजी हांजी कहना इसी गांव में रहना की कहानी पर भक्ति या भजन का प्रथम लक्षण है अपने आप में दीनता का भाव आ जाना ।

इसका एक कारण भी है । 

भक्ति क्या है ।




भक्ति है श्रीकृष्ण चरणों की सेवा।

वैष्णवों की सेवा
तुलसी की सेवा
गुरुदेव की सेवा
ग्रंथ की सेवा
गौ माता की सेवा 

अर्थात  :-

सेवा सेवा सेवा और सेवा..!

जब भक्तों का मुख्य कार्य सेवा हो गया तो भक्तों का स्वरूप क्या निकल कर आया । 

एक सेवक का ने कहा भी है कि जीव श्रीकृष्ण का नित्य दास है ।

और जब हम एक सेवक ही होते हैं, हम एक नौकर ही होते हैं, हम एक दास ही होते हैं तो फिर अकड़ किस बात की करनी चहिए।

नौकर या दास या सेवक तो दीन ही होता है
हांजी हांजी कहना इसी गांव में रहना । 

सेवक में अभिमान कैसा, सेवक का गुमान कैसा, सेवक की श्रेष्ठता कैसी, वह तो सभी का सेवक ही है सभी की सेवा ही करनी है ।

यह भाव सदैव एक वैष्णव को पुष्ट करना चाहिए यदि यह भाव दृढ़ता से पुष्ट हो जाएगा तो आप सच मानिए भक्ति का जो प्रथम लक्षण वैष्णवोंमें आता है वह आता है दैन्य ।

 वह आ जाएगा ।

भक्ति का प्रथम लक्षण जो वातावरण में आता है वह आता है क्लेषघ्नी । 

समस्त क्लेशों को नष्ट कर देती है सच्ची भक्ति।

आज कल उल्टा हो रहा है भक्ति प्रारंभ हुई और घर में कलेश प्रारंभ हुए । 

यदि ऐसा है तो हम भक्ति या भजन नहीं कर रहे हैं ।

हम भक्ति के नाम पर नाटक, अहंकार पोषण एवं अपनी श्रेष्ठता का प्रदर्शन कर रहे हैं ।

कर के देखिए अंतर महसूस होगा।

वक्त की कीमत तब तक नहीं समझा मैं स्वास्थ की कीमत भी नहीं समझा जब तक दोनों ही का नाश नहीं हुआ लोगो ने समझाया वक्त बदलता है।

वक्त ने समझाया ये लोग बदलते है।

समझा नहीं तब तक इस जीवन में जब तक मैने इन्हें बदलते न देखा वक्त मूझें या कभी उसे बदलता है।

वे लोग खोलते है आँखें मेरी जिन पे आँख बंद कर मैंने ही भरोसा किया।

शातिर वक्त ने उन्हें बनाया जेबकतरा वक्त गया ख़ुद मुझे से लड़ते झगड़ते अब मैं खुद से सुलह करना चाहता हूँ।

" गौ रक्षा-हमारा परम कर्तव्य की बात  " 

सभी साधु - संतोंसे मेरी प्रार्थना है कि अभी गायोंकी हत्या जिस निर्ममतासे हो रही है।

वैसी तो अंग्रेजों व मुसलमानों के साम्राज्य में भी नहीं होती थी ।

अब हम सभी को मिलकर इसे रोकने का पूर्णरुपसे प्रयास करना चाहिये।

इस कार्य को करनेका अभी अवसर है और इसका होना भी सम्भव है ।

गायके महत्वको आप लोगोंको बतायें, क्योंकि आप तो स्वयं दूसरों को बतानेमें समर्थ हैं ।

यदि प्रत्येक महन्तजी व मण्डलेश्वरजी चाहें तो हजारों आदमियोंको गोरक्षाके कार्यहेतु प्रेरित कर सकते हैं ।

आप सभी मिलकर सरकारके समक्ष प्रदर्शन कर शीघ्र ही गोवंशके वधको पूरे देशमें रोकनेका कानून बनवा सकते हैं। 

यदि साधु समाज इस पुनीत कार्यको हिन्दू - धर्मकी रक्षाहेतु शीघ्र कर लें तो यह विश्वमात्र के लिये बड़ा कल्याणकारी होगा ।

आप सभी एकमत होकर यह प्रस्ताव पारित कर प्रदर्शन व विचार करें कि हर भारतीय इस बार अन्य मुद्दोंको दरकिनार कर केवल उसी नेता या दलको अपना मत दे।

जो गोवंश-वध अविलम्ब रोकनेका लिखित वायदा करे तथा आश्वस्त करे कि सत्तामें आते ही वे स्वयं एवं उनका दल सबसे पहला कार्य समूचे देशमें गोवंश-वध बंद करानेका करेगा।

देशी नस्लकी विशेष उपकारी गायोंके वशंतकके नष्ट होनेकी स्थिति पैदा हो रही है।

ऐसी स्थितिमें यदि समय रहते चेत नहीं किया गया तो अपने और अपने देशवासियोंकी क्या दुर्दशा होगी ? 

इसका अन्दाजा मुश्किल है ।

आप इस बातपर विचार करें कि वर्तमानमें जो स्थिति गायोंकी अवहेलना करनेसे उत्पन्न हो रही है।

उसके कितने भयंकर दुष्परिणाम होंगे । 

अगर स्वतन्त्र भारतमें गायोंकी हत्या-जैसा जघन्य अपराध भी नहीं रोका जा सकता तो यह कितने आश्चर्य और दु:खका विषय होगा।

आप सभी भगवान्‌को याद करके इस सत्कार्यमें लग जावें कि हमें तो सर्व प्रथम गोहत्या बन्द करवानी है जिससे सभीका मंगल होगा। 

इससे बढ़कर धर्म-प्रचारका और क्या पुण्य-कार्य हो सकता है ।

पुन: सभीसे मेरी विनम्र प्रार्थना है कि आप सभी शीघ्र ही इस उचित समयमें गायोंकी हत्या रोकने का एक जनजागरण अभियान चलाते हुए सभी गोभक्तों व राष्ट्रभक्तोंको जोड़कर सरकारको बाध्य करके बता देवें कि अब तो गोहत्या बन्द करनेके अतिरिक्त सत्तामें आरुढ़ होने का कोई दूसरा उपाय नहीं है । 

साथ ही यह भी स्पष्ट कर दें कि जनता - जनार्दनने देशमें गोहत्या बंद कराने का दृढ़ संकल्प ले लिया है।

गायके दर्शन, स्पर्श, छाया, हुँकार व सेवासे तो कुटुंब कलेश घर में अच्छी सेवरकत मेहनत की कमाई में अच्छी वृद्धि बरकत सुख शांति समृद्धि 
शरीर निरोगी हुष्ट पुष्ट और कल्याण, सुखद - अनुभव, सद्भाव एवं अन्त:करणकी पवित्रता प्राप्त होती है । 

गायके घी, दूध, दही, मक्खन व छाछ से शरीरकी पुष्टि होती है व निरोगता आती है ।

गोमूत्र व गोबर से पञ्चगव्य और विविध औषधियाँ बनाकर काममें लेनेसे अन्न, फल व साग - सब्जियोंको रासायनिक विषसे बचाया जा सकता है । 

गायोंके खुरसे उड़नेवाली रज भी पवित्र होती है; जिसे गोधूलि-वेला कहते हैं, उसमें विवाह आदि शुभकार्य उचित माना जाता है । 

जन्मसे लेकर अन्तकालतकके सभी धार्मिक संस्कारोंमें पवित्रताहेतु गोमूत्र व गोबरका बड़ा महत्व है ।

गाय की महिमा तो आप और हम जितनी बतायें उतनी ही थोड़ी है, आश्चर्य तो यह है सब कुछ जानते हुए भी गायोंकी रक्षामें हमारे द्वारा विलम्ब क्यों हो रहा है ?

गायकी रक्षा करनेसे भौतिक विकासके साथ - साथ आर्थिक, व्यावहारिक, सामाजिक, नैतिक, सांस्कृतिक एवं अनेकों प्रकारके विकास सम्भव हैं।

लेकिन गायकी हत्यासे विनाशके सिवाय कुछ भी नहीं दिखता है ।

अत: अब भी यदि हम जागें तो गोहत्याको सभी प्रकारसे रोककर मानवको होनेवाले विनाशसे बचा सकते हैं_

गो - सेवा, रक्षा, संवर्धन तथा गोचर भूमिकी रक्षा करनेसे पूरे संसारका विकास सम्भव है ।

आज गोवध करके गोमांस के निर्यातसे जो धन प्राप्त होता है उससे बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है ।

इस लिये ऐसे गोहत्यासे प्राप्त पापमय धनके उपयोग से कथित विकास ही विनाशकारी हो रहा है । 

यह बहुत ही गम्भीर चिन्ताका विषय है ।

अन्तमें सभी साधु समाजसे मेरी विनम्र प्रार्थना है कि अब शीघ्र ही आप सभी और जनता मिलकर गोहत्या बन्द कराने का दृढ़ संकल्प लेनेकी कृपा करें तो हमारा व आपका तथा विश्वमात्रका कल्याण सुनिश्चित है । 

इसी में धर्मकी वास्तविक रक्षा है और धर्म - रक्षामें ही हम सबकी रक्षा है ।

{ ‘कल्याण’ वर्ष-७८, अंक ४, ऊपर से मै पुजारी प्रभु राज्यगुरु ने पूरा लेख लिये है }

आशा करता हूँ कि प्रभु राज्यगुरु की यह दर्द भरी प्रार्थना आपके हृदयको गौमाताकी वर्तमान - स्थिति दूषित वायु पदुष्ण कोरोना जैसा विविध विचित्र रोगों से व्यथित करके, आपके हृदयमें करुणा, दया और सेवा का भाव पैदा करके आपको गौ-सेवाके लिये प्रेरित करें । 

परम श्रद्धेय पुजारी पंडित प्रभु राज्यगुरु  के विचार

प्रश्न—गोरक्षाके लिये क्या करना चाहिये?

उत्तर— गायों की रक्षाके लिये उनको अपने घरोंमें रखना चाहिये और उनका पालन करना चाहिये। 

गायके ही दूध - घीका सेवन करना चाहिये, भैंस आदिका नहीं।

गायों की रक्षाके उद्देश्यसे ही गोशालाएँ बनानी चाहिये, दूधके उद्देश्यसे नहीं।

जितनी गोचर - भूमियाँ हैं, उनकी रक्षा करनी चाहिये तथा सरकारसे और गोचर-भूमियाँ छुड़ाई जानी चाहिये। 

सरकारकी गोहत्या - नीतिका कड़ा विरोध करना चाहिये और वोट उनको ही देना चाहिये, जो पूरे देशमें पूर्णरूपसे गोहत्या बंद करनेका वचन दें।

खेती करनेवाले सज्जनोंको चाहिये कि वे गाय, बछड़ा, बैल आदिको बेचे नहीं।

गाय और माय बेचनेकी नहीं होती।

जबतक गाय दूध और बछड़ा देती है, बैल काम करता है, तबतक उनको रखते हैं। 

जब वे बूढ़े हो जाते हैं, तब उनको बेच देते हैं— यह कितनी कृतघ्नताकी।

 पाप की बात है! 

गाँधीजीने ‘नवजीवन’ अखबारमें लिखा था कि ‘बूढ़ा बैल जितना घास ( चारा ) खाता है उतना गोबर और गोमूत्र पैदा कर देता है अर्थात् अपना खर्चा आप ही चुका देता है।’

जो गायों और बैलोंको बेचते हैं, उनको यह हत्या लगती है! 

अतः अपनी पूरी शक्ति लगाकर हर हालतमें गायोंकी रक्षा करना, उनको कत्लखानोंमें जानेसे रोकना तथा उनका पालन करना, उनकी वृद्धि करना हमारा परम कर्तव्य है।

प्रश्न — लोगोंमें गोरक्षाकी भावना कम क्यों हो रही है?

उत्तर — गायके कलेजे, मांस, खून आदिसे बहुत - सी अँग्रेजी दवाइयाँ बनती हैं। 

उन दवाइयोंका सेवन करनेसे गायके मांस, खून आदिका अंश लोगोंके पेटमें चला गया है।

जिससे उनकी बुद्धि मलिन हो गयी है और उनकी गायके प्रति श्रद्धा, भावना नहीं रही है।

लोग पाप से ज्यादा पैसा कमाते हैं और उन्हीं पैसों का अन्न खाते हैं, फिर उनकी बुद्धि शुद्ध कैसे होगी और बुद्धि शुद्ध हुए बिना सच्ची, हितकर बात अच्छी कैसे लगेगी?

स्वार्थ बुद्धि अधिक होनेसे मनुष्य की बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है, बुद्धि तामसी हो जाती है, फिर उसको अच्छी बातें भी विपरीत दीखने लगती हैं। 

आज कल मनुष्योंमें स्वार्थ - भावना बहुत ज्यादा बढ़ गयी है, जिससे उनमें गोरक्षाकी भावना कम हो रही है।

जैसे भगवान्‌की सेवा करने से त्रिलोकीकी सेवा होती है, ऐसे ही निष्कामभावसे गायकी सेवा करनेसे विश्वमात्रकी सेवा होती है; क्योंकि गाय विश्वकी माता है।
गायकी सेवासे लौकिक और पारलौकिक — दोनों तरहके लाभ होते हैं। 

गायकी सेवासे अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष — ये चारों पुरुषार्थ सिद्ध होते हैं। 

रघुवंश भी गायकी सेवासे ही चला था।

अब थोड़ा इस पर विचार डाले कि हमारे हाथ की बात क्या है।

हमारे करने योग्य सर्वप्रथम कोई कार्य इस संबंध में यह होना चाहिए कि जन - जन को गाय के और भैंस के दूध का शरीर पर पड़ने वाला प्रभाव समझाया जाय।

गांधीजी ने खादी का महत्व समझाने के लिए प्रबल आन्दोलन किया था और मोटी और महंगी खादी के दूरगामी परिणामों की जानकारी कराते हुए गले उतारा था। 

साथ ही उत्पादन का कारगर तंत्र खड़ा किया था।

तब कहीं खादी ने जड़ पकड़ी थी। 

इस से सौ वर्ष पूर्व चाय के व्यापारियों ने उसका प्रचार करने के लिए घर-घर जाने और बनी हुई चाय एक पैसे में बेचने तथा एक पैकिट चाय मुफ्त देने का व्यापक क्रम चलाया था। 

उस प्रचार ने बढ़ते - बढ़ते आज चाय को जन जीवन का अंग बना दिया है।

जन साधारण को गाय के दूध घी की महत्ता समझाई जाय। 

किसान को कहा जाय कि वह बछड़ों के बिना कृषि और यातायात परिवहन की समस्या हल न कर सकेगा। 

इस लिए गौपालन उसके जीवन मरण का प्रश्न है। 

उसे श्रद्धा ही नहीं सावधानी पूर्वक अर्थ व्यवस्था को ध्यान में रखते हुए नए सिरे से रुचिपूर्वक अपनाना चाहिए और तदनुरूप ही पशु पालने की नई नीति निर्धारित करनी चाहिए।

यह अर्थ प्रधान युग है। 

इसमें जो उपयोगी है उसका विकास और संरक्षण किया जाता है और जो प्रत्यक्षतः उतना उपयोगी नहीं दीखता उसे रास्ते से हटा दिया जाता है। 

वृद्ध पशुओं का अन्तिम आश्रय मात्र कसाईखाना ही रह गया है। 

उन निठल्ले पर खर्च करने के लिए किसी का मन नहीं होता। 

यह अर्थ लाभ यदि मनुष्य ने अपनी बिरादरी पर भी प्रयुक्त करना शुरू कर दिया तो समझना चाहिए वृद्धों और वृद्धाओं की, अपंगों और निराश्रितों की भी खैर नहीं।

गौ - वध बन्द करने के लिए प्रयत्न तो किया जाना चाहिए, पर साथ ही यह भी ध्यान रखना चाहिए कि उपयोगिता और अर्थ लाभ की दृष्टि से ही उन्हें सहज और चिरस्थाई सुरक्षा मिल सकती है।

हम सच्चे हृदय से परमात्मा से प्रार्थना करें तो वह प्रार्थना अवश्य सुनी जाएगी,,

सच्चे हृदय से प्रार्थना जो भक्त सच्चा गाए हैं।

भक्तवत्सल कान में वह पहुंच झट ही जाए हैं।

और साथ ही जितने अंश में परमात्मा ने हमें सबल बनाया है और हम विश्व में उपद्रव फेलानी वाली कोरोना जैसी भयंकर बीमारियों से मुक्त करने में हम सक्षम हैं।

उसका सदुपयोग कर गौ रक्षा और गोपालन करें।

एक छोटी सी मां।

एक छोटी सी मां की कहानी देखे तो मां का कोई रूप भी नहीं होगा वो मां जन्नी होगी छोटी या बड़ी बहन भी मां का स्थान निर्धारित कर शक्ति है।

एक दीन - हीन आठ - दस वर्ष की लड़की से दुकान वाला बोला कि...!

" छुटकी जा देख तेरा छोटा भाई रो रहा है तुमने दूध नहीं पलाया क्या ? "

" नहीं सेठ जी मैंने तो सुबह ही दूध पिला दिया था "

" अच्छा तू जा, जाकर देख में ग्राहक संभालता हूं। "

एक ग्राहक सेठ से - 

" अरे भाई ये कौन लड़की है जिसे तुमने इतनी छूट दे रखी है। "

" परसों सारे ग्लास तोड़ दिये , कल एक आदमी पर चाय गिरा दी और तुमने इसे कुछ नहीं कहा। "

सेठ - " भाई साहब ये वो लड़की है , जो शायद तुम्हें आज के कलयुग में देखने को ना मिले। "

ग्राहक - " मैं समझा नहीं "

सेठ " चलो तुम्हें शुरू से बताता हूं। 

एक दिन दुकान पर बहुत भीड़ थी और कोई नौकर भी नहीं था । 

ये लड़की,अपने छोटे भाई को गोद में लिए काम मांगने आई " और इसकी शर्त सुनेगा . इसने शर्त रखी।" 

मुझे काम के पैसे नहीं चाहिए, बस काम के बीच में मेरा भाई रोया तो मैं भाई को पहले देखूंगी। 

सुबह , दोपहर , शाम , रात चार टाइम दूध चाहिए।

रहने के लिए मैं इसी होटल के किचन पर रहूंगी।

खाने के लिए जो बचेगा, उसे खा लूंगी, मेरे भाई के रोने पर आप चिल्लाओगे नहीं।

अगर कुछ काम बच गया तो मेरे भाई के सोने के बाद मैं रात को होटल के सारे काम कर दूंगी, अगर मंजूर हो तो बताओ।

 ग्राहक -" फिर तुमने क्या कहा। 

 सेठ _ 

" मैं तो हंस पड़ा और कहा कि कुछ पैसों की खास डिमांड वगैरह तो इसने कहा - " 

बस इतना ही , कि मुझे काम मिले, मैं सड़को पर भीख नही माँगना चाहती और ना ही अपने भाई को भिखारी बनाना चाहती हूं। 

दिल लगाकर काम करूंगी।

उसे पढा़ऊँगी , बड़ा आदमी बनाऊंगी। 

" उतने में छुटकी आ गई। "

सेठ जी उसने चड्डी में सुसु कर दिया था इस लिए रो रहा था ।

अब सो गया है, अब नहीं रोयेगा । 

मैं अब काम पर लगती हूं . . .।

ग्राहक - 

" तुमने उसे फिर क्यों कुछ नहीं बोला? " 

सेठ मुस्कुराते हुए -

 " अरे जनाब , आप बस किताबों में ही पढ़ते हो क्या अच्छी चीजें . . ? 

जरा इस को देखा तो ,नन्ही सी जान, छोटी सी उमर , काम करना चाहती है।

हाथ फैलाना नहीं , कोई तो होना चाहिए ना , उसे अपने पैरों पर खड़े करने के लिए ।

शायद बंसीवाले ने  यह काम मुझे सौंपा है कि मैं उसे एक रास्ता दिखाऊं और फिक्र इस बात की है ना कि वो ग्लास ही तोड़ती है।

विश्वास नहीं तोड़ेगी और जरा ये भी तो सोच , बच्ची कहाँ जाती।

यहीं पड़ी है दोस्त, जब तक प्रभु की मर्जी है , मैं कौन होता हूं  उसकी कहानी में उसका लिखा बदलने वाला . . . ।

छुटकी फिर दौड़ते हुए उस ग्राहक की चाय गिराते हुए बोली -

 " सेठ भाई रो रहा है , आप आर्डर लो इस बार ग्राहक भी हंस पड़ा और कहने लगा। "

"जाइये सेठजी , महारानी ने आदेश दिया है लग जाइए  काम पर।"

दोनों मुस्कुराने लगे, वहीं छुटकी अपने छोटे भाई को संभालने में लग गयी...!!!

!!बहुत ही सुन्दर एवम् प्रेरणा दायक कहानी!!

जय मुरलीधर
जय द्वारकाधीश
 धन्यवाद।🙏🏻🙏🏻
🙏🙏🙏【【【【【{{{{ (((( मेरा पोस्ट पर होने वाली ऐडवताइस के ऊपर होने वाली इनकम का 50 % के आसपास का भाग पशु पक्षी ओर जनकल्याण धार्मिक कार्यो में किया जाता है.... जय जय परशुरामजी ))))) }}}}}】】】】】🙏🙏🙏

पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 
" Opp. Shri Dhanlakshmi Strits , Marwar Strits, RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
सेल नंबर: . + 91- 7010668409 WHATSAPP नंबर : + 91 7598240825 ( तमिलनाडु )
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आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद.. 
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जय द्वारकाधीश....
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