सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता, किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश
*#अद्भुत कहानी*
*एक दिन,* *मेरे पिता ने हलवे के 2 कटोरे बनाये और उन्हें मेज़ पर रख दिया।*
*एक के ऊपर 2 बादाम थे,जबकि दूसरे कटोरे में हलवे के ऊपर कुछ नहीं था।*
*फिर उन्होंने मुझे हलवे का कोई एक कटोरा चुनने के लिए कहा...!
क्योंकि उन दिनों तक हम गरीबों के घर बादाम आना मुश्किल था....!
मैंने 2 बादाम वाले कटोरे को चुना!*
मैं अपने बुद्धिमान विकल्प / निर्णय पर खुद को बधाई दे रहा था....!
और जल्दी जल्दी मुझे मिले 2 बादाम हलवा खा रहा था।*
परंतु मेरे आश्चर्य का ठिकाना नही था....!
जब मैंने देखा कि की मेरे पिता वाले कटोरे के नीचे* *8 बादाम* छिपे थे!
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बहुत पछतावे के साथ,मैंने अपने निर्णय में जल्दबाजी करने के लिए खुद को डांटा।
*मेरे पिता मुस्कुराए और मुझे यह याद रखना सिखाया कि,* *आपकी आँखें जो देखती हैं वह हरदम सच नहीं हो सकता,* *उन्होंने कहा कि यदि आप स्वार्थ की आदत की अपनी आदत बना लेते हैं तो आप जीत कर भी हार जाएंगे।*
*अगले दिन, मेरे पिता ने फिर से हलवे के 2 कटोरे पकाए और टेबल पर रक्खे एक कटोरा के शीर्ष पर 2 बादाम और दूसरा कटोरा जिसके ऊपर कोई बादाम नहीं था।*
*फिर से उन्होंने मुझे अपने लिए कटोरा चुनने को कहा।
इस बार मुझे कल का संदेश याद था, इसलिए मैंने शीर्ष पर बिना किसी बादाम कटोरी को चुना।*
*परंतु मेरे आश्चर्य करने के लिए इस बार इस कटोरे के नीचे एक भी बादाम नहीं छिपा था!*
*फिर से,मेरे पिता ने मुस्कुराते हुए मुझसे कहा,* *"मेरे बच्चे,आपको हमेशा अनुभवों पर भरोसा नहीं करना चाहिए, क्योंकि कभी - कभी,जीवन आपको धोखा दे सकता है या आप पर चालें खेल सकता है स्थितियों से कभी भी ज्यादा परेशान या दुखी न हों, बस अनुभव को एक सबक अनुभव के रूप में समझें, जो किसी भी पाठ्यपुस्तकों से प्राप्त नहीं किया जा सकता है।*
*तीसरे दिन,मेरे पिता ने फिर से हलवे के 2 कटोरे पकाए पहले 2 दिन की ही तरह, एक कटोरे के ऊपर 2 बादाम, और दूसरे के शीर्ष पर कोई बादाम नहीं। मुझे उस कटोरे को चुनने के लिए कहा जो मुझे चाहिए था।*
*लेकिन इस बार, मैंने अपने पिता से कहा, *पिताजी, आप पहले चुनें, आप परिवार के मुखिया हैं और आप परिवार में सबसे ज्यादा योगदान देते हैं । आप मेरे लिए जो अच्छा होगा वही चुनेंगे।*
*मेरे पिता मेरे लिए खुश थे।*
*उन्होंने शीर्ष पर 2 बादाम के साथ कटोरा चुना, लेकिन जैसा कि मैंने अपने कटोरे का हलवा खाया! कटोरे के हलवे के एकदम नीचे 4 बादाम और थे।*
*मेरे पिता मुस्कुराए और मेरी आँखों में प्यार से देखते हुए, उन्होंने कहा* *मेरे बच्चे,तुम्हें याद रखना होगा कि, जब तुम भगवान पर सब कुछ छोड़ देते हो, तो वे हमेशा तुम्हारे लिए सर्वोत्तम का चयन करेंगे।*
*और जब तुम दूसरों की भलाई के लिए सोचते हो,अच्छी चीजें स्वाभाविक तौर पर आपके साथ भी हमेशा होती रहेंगी ।*
*#शिक्षा: बड़ों का सम्मान करते हुए उन्हें पहले मौका व स्थान देवें, बड़ों का आदर-सम्मान करोगे तो कभी भी खाली हाथ नही लौटोगे।*
"*अनुभव व दृष्टि का ज्ञान व विवेक के साथ सामंजस्य हो जाये बस यही सार्थक जीवन है।"*🚩🙏
। श्री रामचरित्रमानस प्रवचन ।।
🙏🐘🦜🙏
महाराज दशरथ को जब संतान प्राप्ति नहीं हो रही थी तब वो बड़े दुःखी रहते थे...
पर ऐसे समय में उनको एक ही बात से हौंसला मिलता था जो कभी उन्हें आशाहीन नहीं होने देता था...
और वह था श्रवण के पिता का श्राप....
दशरथ जब-जब दुःखी होते थे तो उन्हें श्रवण के पिता का दिया श्राप याद आ जाता था...
( कालिदास ने रघुवंशम में इसका वर्णन किया है )
श्रवण के पिता ने ये श्राप दिया था ।
कि....
''जैसे मैं पुत्र वियोग में तड़प - तड़प के मर रहा हूँ वैसे ही तू भी तड़प-तड़प कर मरेगा.....!''
दशरथ को पता था कि ये श्राप अवश्य फलीभूत होगा और इसका मतलब है कि मुझे इस जन्म में तो जरूर पुत्र प्राप्त होगा....!
( तभी तो उसके शोक में मैं तड़प के मरूँगा )
यानि यह श्राप दशरथ के लिए संतान प्राप्ति का सौभाग्य लेकर आया....
ऐसी ही एक घटना सुग्रीव के साथ भी हुई....
वाल्मीकि रामायण में वर्णन है कि सुग्रीव जब माता सीता की खोज में वानर वीरों को पृथ्वी की अलग - अलग दिशाओं में भेज रहे थे....
तो उसके साथ - साथ उन्हें ये भी बता रहे थे....!
कि किस दिशा में तुम्हें कौन सा स्थान या देश मिलेगा और किस दिशा में तुम्हें जाना चाहिए या नहीं जाना चाहिये....!
प्रभु श्रीराम सुग्रीव का ये भगौलिक ज्ञान देखकर हतप्रभ थे...!
उन्होंने सुग्रीव से पूछा कि सुग्रीव तुमको ये सब कैसे पता...?
तो सुग्रीव ने उनसे कहा कि...!
''मैं बाली के भय से जब मारा - मारा फिर रहा था तब पूरी पृथ्वी पर कहीं शरण न मिली...!
और इस चक्कर में मैंने पूरी पृथ्वी छान मारी और इसी दौरान मुझे सारे भूगोल का ज्ञान हो गया....''
अब अगर सुग्रीव पर ये संकट न आया होता तो उन्हें भूगोल का ज्ञान नहीं होता और माता जानकी को खोजना कितना कठिन हो जाता...!
इसी लिए किसी ने बड़ा सुंदर कहा है :-
"अनुकूलता भोजन है, प्रतिकूलता विटामिन है और चुनौतियाँ वरदान है और जो उनके अनुसार व्यवहार करें....
वही पुरुषार्थी है...."
ईश्वर की तरफ से मिलने वाला हर एक पुष्प अगर वरदान है.......
तो हर एक काँटा भी वरदान ही समझें....
मतलब.....
अगर आज मिले सुख से आप खुश हो...
तो कभी अगर कोई दुख, विपदा, अड़चन आजाये.....
तो घबरायें नहीं....
क्या पता वो अगले किसी सुख की तैयारी हो....!
शुद्धो बुद्धो नित्यमुक्तो भक्तराजो जयद्रथ:
प्रलयोअमितमायश्च मायातीतो विमत्सर:।
मायाभर्जितरक्षाश्च मायानिर्मितविष्टप:
मायाश्रय: निर्लेपो मायानिर्वर्तक: सुखम्।।
सबको पवित्र करने वाले, ज्ञानवान,सदा मुक्तस्वरूप, भगवत् भक्तों में देदीप्यमान...!
आक्रमण में जय प्राप्त करने वाले, शत्रुओं के लिए प्रलयंकर...!
अनन्त माया जानने वाले,सर्वथा मायाजाल से रहित, ईर्ष्या से रहित....!
अपनी माया से राक्षसों को जला देनेवाले, माया से भुवनों की सृष्टि करने वाले...!
माया का आश्रय लेने वाले...!
निरासक्त रहनेवाले....!
मायाशक्ति द्वारा कार्य करने वाले एवं सुख स्वरूप' श्री हनुमानजी को बार-बार प्रणाम है।
|| हनुमानजी महाराज की जय हो ||
सनातन धर्म में निर्गुण निराकार परब्रह्म परमात्मा को पाने की योग्यता बढ़ाने के लिए अनेक प्रकार की उपासनाएँ चलती हैं।
उपासना माने उस परमात्म - तत्व के निकट आने का साधन।
ऐसे उपासना करने वाले लोगों में विष्णुजी के साकार रूप का ध्यान - भजन, पूजन - अर्जन करने वाले लोगों को वैष्णव कहा जाता है और शक्ति की उपासना करने वाले लोगों को शाक्त कहा जाता है।
बंगाल में कलकत्ता की ओर शक्ति की उपासना करने वाले शाक्त लोग अधिक संख्या में हैं।
‘श्रीमद देवी भगवत’ शक्ति के उपासकों का मुख्य ग्रन्थ है।
उस में जगदम्बा की महिमा है।
शक्ति के उपासक नवरात्रि में विशेष रूप से शक्ति की आराधना करते हैं।
इन दिनों में पूजन - अर्जन, कीर्तन, व्रत-उपवास, मौन, जागरण आदि का विशेष महत्त्व होता है।
नवरात्रि को तीन हिस्सों में बाँटा जा सकता है।
उसमें पहले तीन दिन तमस को जीतने की आराधना के हैं।
दूसरे तीन दिन रजस को और तीसरे दिन सत्त्व को जीतने की आराधना के हैं।
आखरी दिन दशहरा या दस महाविद्या के हैं।
वह सात्विक, रजस और तमस तीनों गुणों को यानि महिषासुर को मारकर जीव को माया की जाल से छुड़ाकर शिव से मिलाने का दिन है।
जिस दिन महामाया ब्रह्मविद्या आसुरी वृतियों को मारकर जीव के ब्रह्मभाव को प्रकट करती हैं, उसी दिन जीव की विजय होती है इस लिए उसका नाम ‘विजयादशमी या दस महाविद्या’ है।
हजारों - लाखों जन्मों से जीव त्रिगुणमयी माया के चक्कर में फँसा था,आसुरी वृतियों के फँदे में पड़ा था।
जब महामाया जगदम्बा की अर्चना - उपासना आराधना की तब वह जीव विजेता हो गया।
माया के चक्कर से, अविद्या के फँदे से मुक्त हो गया, वह ब्रह्म हो गया।
विजेता होने के लिए बल चाहिए।
बल बढ़ाने के लिए उपासना करनी चाहिए।
उपासना में तप, संयम और एकाग्रता आदि जरूरी है।
यही पावन नवरात्रि महापर्व का रहस्य है।
|| जय हो मां जगत जननी ||
*सदैव सकारात्मक रहें....!*
🙏🙏🌹जय श्री राम राम राम सीता राम 🌹🙏🙏
पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science)
" Opp. Shri Ramanatha Swami Covil Car Parking Ariya Strits , Nr. Maghamaya Covil Strits , V.O.C. Nagar , RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
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आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद..
नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏

