https://www.profitablecpmrate.com/gtfhp9z6u?key=af9a967ab51882fa8e8eec44994969ec 2. आध्यात्मिकता का नशा की संगत भाग 1: 01/14/25

|| मकर सक्रांति पर्व / धर्म का महापर्व महाकुंभ : / कल्पना-की-समझदारी / छोटा न समझें किसी भी काम को.. ||

|| मकर सक्रांति पर्व  /  धर्म का महापर्व महाकुंभ : / कल्पना-की-समझदारी  / छोटा न समझें किसी भी काम को..  || 

मकर सक्रांति पर्व 

14 जनवरी 2025 मंगलवार संकलित

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इस वर्ष मकर संक्रांति का पर्व 14 जनवरी 2025, मंगलवार के दिन मनाया जाएगा। 

"मकर संक्रांति" का अद्भुत जुड़ाव महाभारत काल से भी है. 



58 दिनों तक बाणों की शैया पर रहने के बाद भीष्म पितामह ने अपने प्राणों का त्यागने के लिए सूर्य के उत्तरायण होने का इंतजार किया था.18 दिन तक चले महाभारत के युद्ध में भीष्म पितामह ने 10 दिन तक कौरवों की ओर से युद्ध लड़ाथा।


मकर संक्रांति सूर्य की उपासना का पर्व है। इस दिन सूर्य धनु राशि से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करते हैं और सूर्य के धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करने पर खरमास की भी समाप्ति हो जाती है और सभी मांगलिक कार्य पुनः शुरू हो जाते हैं। 


पुराणों के अनुसार मकर संक्रांति से सूर्य उत्तरायण होते हैं और ऐसे शुभ संयोग में मकर संक्रांति पर स्नान, दान, मंत्र जप और सूर्य उपासना से अन्य दिनों में किए गए दान-धर्म से अधिक पुण्य की प्राप्ति होती है।


आइए जानते हैं मकर संक्रांति का पुण्य और महापुण्य काल समय-: 

पुण्य काल‌ का समय-: 

  14 जनवरी 2025, मंगलवार,

    सुबह 08:40 से 12:30 तक


महा-पुण्य काल का समय-: 

  14 जनवरी 2025, मंगलवार,

   सुबह 08:40 से 09:04 तक


    •अभिजीत मुहूर्त-: 

   दोपहर12:09 से 12:50 तक


पुण्य - महापुण्य काल का महत्व-: 

मकर संक्रांति पर पुण्य और महापुण्य काल का विशेष महत्व है. धार्मिक मान्यता है कि इस दिन से स्वर्ग के द्वार खुल जाते हैं. मकर संक्रांति के पुण्य और महापुण्य काल में गंगा स्नान, सूर्योपासना, दान, मंत्र जप करने व्यक्ति के जन्मों के पाप धुल जाते है।


स्नान-: 

 मकर सक्रांति वाले दिन सबसे पहले प्रातः किसी पवित्र नदी में स्नान करना चाहिए, यदि यह संभव ना हो सके तो अपने नहाने के जल में थोड़ा गंगाजल डालकर स्नान किया जा सकता है।


सूर्योपासना-: 

प्रातः स्नान के बाद उगते हुए सूर्य नारायण को तांबे के पात्र में जल, गुड, लाल पुष्प, गुलाब की पत्तियां, कुमकुम, अक्षत आदि मिलाकर जल अर्पित करना चाहिए।


मंत्र जप-: 

सूर्य उपासना के बाद में कुछ देर आसन पर बैठकर मंत्र, नाम जप, श्री गीता के पाठ इत्यादि करने चाहिए और अपने इष्ट देवी- देवताओं की भी उपासना करनी चाहिए।


गाय के लिए दान-: 

पूजा उपासना से उठने के बाद गाय के लिए कुछ दान अवश्य निकालना चाहिए, जैसे- गुड, चारा इत्यादि।


पितरों को भी करे याद-: 

इस दिन अपने पूर्वजों को प्रणाम करना ना भूलें, उनके निमित्त भी कुछ दान अवश्य निकालें। 

इस दिन पितरों को तर्पण करना भी शुभ होता है। 

इससे पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है।


गरीब व जरूरतमंदों के लिए दान-: 

इस दिन गरीब व जरूरतमंदों को जूते, चप्पल, ( चप्पल - जूते चमड़े के नहीं होने चाहिए ) अन्न, तिल, गुड़, चावल, मूंग, गेहूं, वस्त्र, कंबल, का दान करें। 

ऐसा करने से शनि और सूर्य देव की कृपा प्राप्त होती है।


श्री हनुमान जी की करें उपासना-: 

इस वर्ष मकर संक्रांति मंगलवार के दिन पड़ रही है अतः श्री हनुमान जी की पूजा- उपासना करें, श्री हनुमान जी के सिंदूर का चोला अर्पित करने से हनुमान जी की कृपा भी बनी रहेगी।


परंपराओं का भी रखें ध्यान-:

मकर सक्रांति का त्यौहार मनाने में अलग - अलग क्षेत्रों में अलग - अलग परंपराएं हैं, अतः आप अपनी परंपराओं का भी ध्यान रखें। 

अर्थात अपने क्षेत्रीय रीति - रिवाजों के अनुसार मकर संक्रांति का त्यौहार मनाना चाहिए।


🚩🪔🌞🔱 धर्म का महापर्व महाकुंभ :


आज से प्रयागराज ही सनातन का 'शक्ति-केंद्र', आगामी ४५ दिवस प्रतिदिन लाखों मंत्र, जाप और आहुतियां।




चारों शंकराचार्यों, सभी १३ अखाड़ों के महामंडलेश्वर, जगद्गुरु, पीठाधीश्वरों, हजारों साधु-संतों और सिद्ध योगियों के तप से आलोकित होगा गंगा - यमुना - सरस्वती का संगम।


प्रयाग वही दिव्य स्थान है जहां स्वयं ब्रह्मा जी ने यज्ञ करके सृष्टि का सृजन किया था। 

सूर्य के मकर राशि में प्रवेश से बनने वाले सुयोग में अमृत - आचमन की आकांक्षा लिए देश-दुनिया के करोड़ों तीर्थयात्री प्रयागराज आते हैं।

अमृत लाभ का यह संकल्प इस महापर्व को सनातन ही नहीं, संसार का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन बनाता है।


प्रयागराज, भारतीय संस्कृति, सनातन के अद्वितीय सिद्धांतों और शक्तियों का केंद्र है। 

यह नदियों के साथ ही ईश्वर साधना का अद्वितीय संगम है, जो मानवता को एकता, शांति और भाईचारे का संदेश देता है।

उप्र सरकार ने विश्व के सबसे विशाल धार्मिक समागम के लिए 'महाकुम्भ क्षेत्र' को ७६वां अस्थायी जिला बनाया है। 

४० वर्ग किमी में फैले मेला क्षेत्र में ४० करोड़ से अधिक तीर्थयात्रियों के आने का अनुमान है।

केंद्र और यूपी सरकार ने इसके लिए ६,३८२ करोड़ रु. का बजट रखा है। 

इलाहाबाद का नाम प्रयागराज होने के पश्चात, प्रथम कुम्भ में जिले के बाहरी हिस्से से संगम तक सात लेयर की सुरक्षा व्यवस्था है।

मेले में ५६ थाने, ६० फायर स्टेशन और तीन महिला थाने बनाए गए हैं। 

३७ हजार पुलिसकर्मी, १४ हजार होमगार्ड सहित ५० हजार से ज्यादा सुरक्षाकर्मी तैनात किए गए हैं।

एनएसजी सहित केंद्रीय एजेंसियां भी तैनात हैं। 

२७०० सीसीटीवी कैमरा और ३४० एआई से लैस कैमरे २४ घंटे मेले की निगरानी करेंगे।

सदैव याद रखें: ये मेले नहीं मां भारती के शक्ति केंद्र, अस्मिता, अस्तित्व, पहचान,  है। 

इस पर ही परिवारवादी, जातीवादी, सामंतवादी, विभाजनकारी, चाटूकार, नक्सली, वामपंथी, विधर्मी चोट पहुंचा रहे हैं। 

एक रहें सेफ रहें।

कल्पना-की-समझदारी

जमींदार सुदेश की एक कन्या थी । 

उसका नाम कल्पना था । 




एक बार कल्पना सहेलियों के साथ खेल रही थी । 

बातों-बातों में उसने सहेलियों से कहा ,

‘‘मैं उसी लड़के के साथ शादी करूंगी जो हमेशा मेरा कहना मानेगा ।‘‘ 

वहाँ से एक लड़का गुजर रहा था । 

उसने कल्पना की बात सुन ली । 

उसने प्रतिज्ञा की कि वह इसी लड़की से ब्याह रचाएगा और कभी भी इसका कहना नहीं मानेगा । 

उस लड़के का नाम राजवीर था । 

उसके पिता भी जमींदार थे ।

कुछ दिनों के बाद राजवीर ने अपने पिता को कल्पना के पिता के पास विवाह का प्रस्ताव लेकर भेजा । 

कल्पना के पिता इस रिश्ते के लिए राजी हो गए । 

उन दोनों का विवाह हो गया । 

प्रथम मिलन में ही राजवीर ने कल्पना से कहा,

‘‘ एक दिन तू अपनी सहेलियों से कह रही थी कि तू उस लड़के के साथ विवाह करेगी जो हमेशा तेरा कहना मानेगा लेकिन मैं कभी भी तेरा कहना नहीं मानूंगा ।‘‘ 

वह कल्पना को बुरा - भला कहने के साथ मारपीट पर भी उतारू हो गया ।

‘‘मैं आपकी पत्नी हूँ । 

आपको मेरा सम्मान करना चाहिए । 

फिर भी आप मेरे साथ मारपीट करना ही चाहते हैं तो मैं आपको यह अधिकार तब दूंगी जब आप मेहनत से धन कमाकर लाओगे । 

अभी तो आप अपने पिता के धन पर ऐश कर रहे हो ।‘‘ 

कल्पना की यह बात सुनकर राजवीर नौकरी की तलाश में घर से निकल गया ।

राजवीर को रास्ते में आम का एक पेड़ दिखाई दिया । 

उस पेड़ के नीचे कई आम गिरे हुए थे । 

उसने एक आम खाया । 

उस आम की गुठली उसने जैसे ही पेड़ के नीचे की जमीन पर फेंकी वहाँ पर आम का नया पेड़ उग आया । 

उसने बहुत सारे आम एक बोरे में भर लिए और सोचने लगा,

‘‘ वह इन्हें बेचकर बहुत सारा धन कमाएगा ।‘‘ 

आम का बोरा लेकर वह आगे बड़ा ही था कि उसे तीन आदमी मिले । 

उन्होंने आमों के बारे में उससे पूछा । 

राजवीर ने बताया, 

‘‘इन आमों को चूसने के बाद इनकी गुठली को जमीन में रखने पर उनसे नएं पेड़ उग आते हैं ।

‘‘उन तीनों ने राजवीर से शर्त लगाई, ‘‘ 

यदि आम की चुसी गुठली को जमीन में रखने पर आम का पेड़ उगेगा तो वे सारा धन उसे दे देंगे । 

पेड़ नहीं उगने पर राजवीर को अपना सारा धन उन तीनों को देना होगा । राजवीर शर्त हार गया । 

दरअसल आम की चुसी गुठली से नया पेड़ आम के पेड़ के नीचे की ही मिट्टी में उग सकता था । 

यह बात उन तीनों को मालूम थी । 

शर्त हारने पर उन तीनों ने राजवीर का सारा पैंसा और आम ले लिए । 

राजवीर उदास होकर रोने लगा ।

रात होने लगी । 

राजवीर को दूर उजाला दिखाई दिया । 

वह उसी दिशा में आगे बढ़ता गया । 

वहाँ एक बुढ़िया का घर था । 

राजवीर ने बुढ़िया से कहा ,

‘‘ मुझे तीन आदमियों ने ठग लिया । 

मैं बहुत थका हुआ हूँ । 

मुझे ठहरने के लिए जगह मिलेगी ? ‘‘ 

बुढ़िया नेक दिल की थी । 

उसका कोई बच्चा भी नहीं था । 

उसने राजवीर को अपने साथ रख लिया । 

वह कोल्हू के तेल का व्यापार करती थी । 

राजवीर ने उसके व्यापार में हाथ बंटाना शुरू कर दिया ।

आम के पेड़ वाले रास्ते से गुजरे राजवीर को काफी समय हो गया था । 

राजवीर को ठगने वाले वे तीनों आदमी अब किसी और की तलाश में थे । 

अचानक उन्हें एक घुड़सवार आता हुआ दिखाई दिया ।

उसके हाथ में तलवार थी । 

उन तीन ठगों ने घुड़सवार से भी वही शर्त लगा ली । 

उसने थैले से एक आम निकाला, उसको चूसा । 

दूसरे थैले से थोड़ी मिट्टी निकाली और जमीन पर रख दी । 

चुसे आम को उस जमीन पर रखने से आम का एक पेड़ उग आया । 

दरअसल दूसरे थैले में रखी मिट्टी आम के पेड़ के नीचे की मिट्टी थी । 

तीनों ठग शर्त हार गए । 

शर्त के मुताबिक उनका पूरा सामान घुड़सवार ने ले लिया ।

घुड़सवार आगे बढ़ता गया । 

उसे भी बुढ़िया के घर का उजाला दिखाई दिया । 

वह उसी दिशा में आगे बढ़ा । 

थोड़ी देर बाद वह बुढ़िया के घर पहुंच गया । 

बुढ़िया बोली, 

‘‘ चलो, एक रात के लिए तुम भी यहाँ रुक जाओ ।‘‘ 

घुड़सवार की मुलाकात वहाँ राजवीर से हुई । 

उसने राजवीर से पूछा, 

‘‘ क्या तुम मेरे साथ काम करोगे ? 

तुम्हें काफी धन दिया जाएगा ।‘‘ 

राजवीर ने उसके साथ काम करने की हामी भर ली । 

दूसरे दिन घुड़सवार और राजवीर ने बुढ़िया से विदा ले ली ।

राजवीर घुड़सवार के साथ एक महल में पहुंचा । 

वहाँ बहुत सारे लोग काम कर रहे थे । 

घुड़सवार ने राजवीर को भी उन लोगों के साथ काम पर लगा लिया । 

बुढ़िया के साथ रहकर राजवीर के बाल बहुत बड़े हो गए थे । 

घुड़सवार ने उसके बाल छोटे करवा दिए । 

दाड़ी और नाखूनों को कटवा कर छोटा कर दिया । 

राजवीर को हर काम के लिए अलग - अलग कपड़े घुड़सवार द्वारा दिए जाते रहे । 

घर से निकले बहुत दिन हो गए थे। 

राजवीर ने सोचा ,

‘‘ अब मेरे पास बहुत धन हो गया है। 

अब मुझे घर चला जाना चाहिए । 

मैं अब कल्पना पर रौब भी दिखा सकता हूँ ।‘‘

राजवीर ने घुड़सवार से घर जाने की आज्ञा मांगी । 

वह अपने घर की ओर चल पड़ा । 

उसे घुड़सवार भी उसी दिशा की ओर जाता हुआ दिखाई दिया ।

घर पहुंच कर राजवीर अपनी पत्नी से शेखी बघारते हुए बोला, 

‘‘ इस बीच मैंने बहुत अच्छी नौकरी की । 

मैंने कई लोगों को नौकरी भी दी । 

तुमने कहा था जब मैं मेहनत से धन कमाकर लाऊंगा तब मैं तुम्हारे साथ मारपीट कर सकता हूँ ।‘‘ 

ऐसा कहकर वह कल्पना को पीटने के लिए आगे बड़ा । 

कल्पना बोली, 

‘‘ स्वामी! 

तुम अगर मेरे साथ मारपीट घर के अन्दर करोगे तो किसी को पता भी नहीं चल पाएगा । 

किसी को खबर भी नहीं होगी कि तुमने इतना धन कमाया है। 

इस लिए आज आराम कर लो । 

कल सुबह सारे गाँव वालों को बुलाकर 

मुझे उनके सामने पीटना ।‘‘

राजवीर उसकी बातों में आ गया । 

दूसरे दिन उसने सभी गाँव वालों को बुला लिया । 

वहाँ बहुत भीड़ जमा हो गई । 

जैसे ही राजवीर ने पत्नी पर हाथ उठाने की कोशिश की, वह बोली, 

‘‘ स्वामी! 

मैंने तुम्हें कहा था कि तुम मेरे साथ मारपीट तभी कर सकते हो जब तुम अपनी मेहनत से धन कमाकर लाओगे लेकिन तुमने जितना भी धन कमाया वह सब उस घुड़सवार की बदौलत ।‘‘

‘‘ कौन घुड़सवार ?‘‘ - 

आश्चर्य से राजवीर बोला।

‘‘वही घुड़सवार जो तुम्हें कोल्हू के तेल का व्यापार करने वाली बुढ़िया के घर से वापस लाया । 

वही घुड़सवार जिसने तुम्हारे बाल, दाढ़ी और नाखून बनाकर तुम्हें जानवर से इन्सान बनाया ।‘‘- 

कल्पना बोली।

‘‘तुम घुड़सवार को कैसे जानती हो ?‘‘- 

राजवीर ने प्रश्न किया ।

प्रश्न को सुनकर कल्पना ने एक थैले से कटे बाल, नाखून और कपडे निकाल कर कहा ,

‘‘पहचानो, यह सब तुम्हारे ही हैं ? 

मैंने घुड़सवार का वेश धारण कर अपने पिता की एक जागीर में तुम्हें नौकरी दी । 

नहीं तो तुम जीवन भर कोल्हू के तेल का ही व्यापार करते ।‘‘

भीड़ के सामने राजवीर शर्मशार हो गया । 

उसके हृदय की दुष्टता मिट गई थी । 

वह कल्पना के पैरों में गिर पड़ा । 

कल्पना उसे उठाती हुई बोली,

‘‘ तुम्हारी जगह मेरे पैरों में नहीं बल्कि मेरे हृदय में है..!!‘‘

   🙏🏽🙏🏾🙏🏻जय श्री कृष्ण🙏🏿🙏🏼🙏


छोटा न समझें किसी भी काम को..


एक बार भगवान अपने एक निर्धन भक्त से प्रसन्न होकर उसकी सहायता करने उसके घर साधु के वेश में पधारे। 

उनका 

यह भक्त जाति से चर्मकार था और निर्धन होने के बाद भी बहुत दयालु और दानी प्रवृत्ति का था। 

वह जब भी किसी साधु-संत को नंगे पाँव देखता तो अपने द्वारा गाँठी गई जूतियाँ या चप्पलें बिना दाम लिए उन्हें पहना देता। 

जब कभी भी वह किसी असहाय या भिखारी को देखता तो घर में जो कुछ मिलता, उसे दान कर देता। 

उसके इस आचरण की वजह से घर में अकसर फाका पड़ता था। 

उसकी इन्हीं आदतों से परेशान होकर उसके माँ-बाप ने उसकी शादी करके उसे अलग कर दिया, ताकि वह गृहस्थी की ज़िम्मेदारियों को समझे और अपनी आदतें सुधारे। 

लेकिन इसका उस पर कोई असर नहीं हुआ और वह पहले की ही तरह लोगों की सेवा करता रहा। 

भक्त की पत्नी भी उसे पूरा सहयोग देती थी।

ऐसे भक्त से प्रसन्न होकर ही भगवान उसके घर आए थे, ताकि वे उसे कुछ देकर उसकी निर्धनता दूर कर दें तथा भक्त और अधिक ज़रूरतमंदों की सेवा कर सके। 

भक्त ने द्वार पर साधु को आया देख अपने सामथ्र्य के अनुसार उनका स्वागत सत्कार किया। 

वापस जाते समय साधू भक्त को  पारस पत्थर देते हुए बोले- 

इसकी सहायता से तुम्हें अथाह धन संपत्ति मिल जायेगी और तुम्हारे सारे कष्ट दूर हो जाएँगे। 

तुम इसे सँभालकर रखना। इस पर भक्त बोला- 

फिर तो आप यह पत्थर मुझे न दें। 

यह मेरे किसी काम का नहीं। 

वैसे भी मुझे कोई कष्ट नहीं है। 

जूतियाँ गाँठकर मिलने वाले धन से मेरा काम चल जाता है। 

मेरे पास राम नाम की संपत्ति भी है, जिसके खोने का भी डर नहीं। 

यह सुनकर साधु वेशधारी भगवान लौट गए।

इसके बाद भक्त की सहायता करने की कोई कोशिशों में असफल रहने पर भगवान एक दिन उसके सपने में आए और बोले-

प्रिय भक्त! 

हमें पता है कि तुम लोभी नहीं हो। 

तुम कर्म में विश्वास करते हो। 

जब तुम अपना कर्म कर रहे हो तो हमें भी अपना कर्म करने दो। 

इस लिए जो कुछ हम दें, उसे सहर्ष स्वीकार करो। 

भक्त ने ईश्वर की बात मान ली और उनके द्वारा की गई सहायता और उनकी आज्ञा से एक मंदिर बनवाया और वहाँ भगवान की मूर्ति स्थापित कर उसकी पूजा करने लगा।

एक चर्मकार द्वारा भगवान की पूजा किया जाना पंडितों को सहन नहीं हुआ। 

उन्होने राजा से इसकी शिकायत कर दी। 

राजा ने भक्त को बुलाकर जब उससे पूछा तो वह बोला-

मुझे तो स्वयं भगवान ने ऐसा करने को कहा था। 

वैसे भी भगवान को भक्ति प्यारी होती है, जाति नहीं। 

उनकी नज़र में कोई छोटा - बड़ा नहीं, सब बराबर हैं।

राजा बोला-क्या तुम यह साबित करके दिखा सकते हो? 

भक्त बोला-

क्यों नहीं। 

मेरे मंदिर में विराजित भगवान की मूर्ति उठकर जिस किसी के भी समीप आ जाए, वही सच्चे अर्थों में उनकी पूजा का अधिकारी है। 

राजा तैयार हो गया। 

पहले पंडितों ने प्रयास किए लेकिन मूर्ति उनमें से किसी के पास नहीं आई। 

जब भक्त की बारी आई तो उसने एक पद पढ़ा-

"देवाधिदेव आयो तुम शरना,

कृपा कीजिए जान अपना जना।' 

इस पद के पूरा होते ही मूर्ति भक्त की गोद में आ गई। यह देख सभी को आश्चर्य हुआ। 

राजा और रानी ने उसे तुरंत अपना गुरु बना लिया।

इस भक्त का नाम था रविदास। 

जी हाँ, वही जिन्हें हम संत रविदास जी या संत रैदास जी के नाम से भी जानते हैं। 

जिनकी महिमा सुनकर संत पीपा जी, श्री गुरुनानकदेव जी, श्री कबीर साहिब जी, और मीरांबाई जी भी उनसे मिलने गए थे। 

यहाँ तक कि दिल्ली का शासक सिकंदर लोदी भी उनसे मिलने आया था। 

उनके द्वारा रचित पदों में से 39 को "श्री गुरुग्रन्थ साहिब' में भी शामिल किया गया है।

लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि इन सबके बाद भी संत रविदास जीवन भर चमड़ा कमाने और जूते गाँठने का काम करते रहे,क्योंकि वे किसी भी काम को छोटा नहीं मानते थे।

जिस काम से किसी के परिवार का भरण - पोषण होता हो,वह छोटा कैसे हो सकता है।

    🙏🏼🙏🏿🙏🏻जय श्री कृष्ण🙏🏾 पंडारामा प्रभु राज्यगुरू ( द्रविड़ ब्राह्मण ) 🙏

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