सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता, किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश
।। श्री यजुर्वेद और श्री पद्मपुराण , श्री विष्णुपुराण के अनुसार महा मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी वर्त फल ।।
हमारे वेदों पुराणों के अनुसार माघ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी “जया एकादशी” कहलाती है ।
माघ माह में आने वाली इस एकादशी में भगवान श्री विष्णु के पूजन का विधान है।
एकादशी तिथि को भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय है ।
इस दिन व्रत और पूजा नियम द्वारा प्रत्येक मनुष्य भगवान श्री विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त किया जा सकता है.।
जया एकादशी का व्रत रखा जाएगा।
वैष्णवों में एकादशी को अत्यंत ही महत्वपूर्ण माना गया है ।
इसी के साथ हिन्दू धर्म के लिए एकादशी तिथि एवं इसका व्रत अत्यंत पुण्यदायी माना जाता है।
नारदपुराण में एकादशी तिथि के विषय में बताया गया है ।
कि किस प्रकार एकादशी व्रत सभी पापों को समाप्त करने वाला है और भगवान श्री विष्णु का सानिध्य प्राप्त करने का एक अत्यंत सहज सरल साधन है ।
एकादशी व्रत के के दिन सुबह स्नान करने के बाद पुष्प, धूप आदि से भगवान विष्णु की पूजा करना चाहिए।
जया एकादशी की तिथि: के महातम...!
ज्योतिष के अनुसार इस दिन रवि योग और त्रिपुष्कर योग बन रहा है।
ऐसे में यदि कोई भी इस दिन व्रत रखता है और भगवान विष्णु जी की पूजा करता है तथा जया एकादशी की व्रत कथा का श्रवण मात्र कर लेता है ।
तो उसके जन्म - जन्मातंर के दुख - विपदाएं दूर होकर उसे सुख - सौभाग्य और मोक्ष की प्राप्ति होती हैं।
जया एकादशी कथा...!
जया एकादशी की कथा को पढ़ना और सुनना अत्यंत ही उत्तम होता है ।
पद्मपुराण में वर्णित जया एकादशी महिमा की एक कथा का आधा फल इस व्रत कथा को सुनने मात्र से ही प्राप्त हो जाता है.।
जया एकादशी के विषय में जानने की इच्छा रखते हुए युधिष्ठिर भगवान मधूसूदन ( श्री कृष्ण ) से कथा सुनाने को कहते हैं ।
युधिष्ठिर कहते हैं की हे भगवान माघ शुक्ल पक्ष को आने वाली एकादशी किस नाम से जानी जाती है और इस एकादशी व्रत करने की विधि क्या है ।
आप इस एकादशी के माहात्म्य को हमारे समक्ष प्रकट करने की कृपा करिए।
आप ही समस्त विश्व में व्याप्त है।
आपका न आदि है न अंत, आप सभी प्राणियों के प्राण का आधार है ।
आप ही जीवों को उत्पन्न करने वाले ।
पालन करने और अंत में नाश करके संसार के बंधन से मुक्त करने वाले हैं ।
ऎसे में आप हम पर भी अपनी कृपा दृष्टि डालते हुए संसार का उद्धार करने वाली इस एकादशी के बारे में विस्तार से कहें ।
हम इस कथा को सुनने के लिए आतुर हैं।
युधिष्ठिर के इन वचनों को सुनकर भगवान श्री कृष्ण प्रसन्न भाव से उन्हें एकादशी व्रत की महिमा के विषय में बताते हुए कहते हैं ।
कि - हे... !
कुन्ति पुत्र माघ माह के शुक्ल पक्ष को आने वाली एकादशी, जया एकादशी होती है ।
अपने नाम के अनुरुप ही इस एकादशी को करने पर व्यक्ति को समस्त कार्यों में जय की प्राप्ति होती है।
व्यक्ति अपने कार्यों को सफल कर पाता है।
इस जया एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति को ब्रह्म हत्या के पाप से भी मुक्ति प्राप्त हो जाती है।
मनुष्य अपने पापों से मुक्त हो कर मोक्ष को प्राप्त करता है ।
इस एकादशी के प्रभाव से कष्टदायक योनियों से मुक्ति पाता है ।
जया एकादशी व्रत को विधि - विधान से करने पर मनुष्य मेरे सानिध्य एवं परमधाम को पाने का अधिकारी बनता है.
श्री राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे।
सहस्रनाम तत्तुल्यं, रामनाम वरानने ॥
जया एकादशी कथा इस प्रकार है-।
एक समय स्वर्ग के देवता देवराज इंद्र नंदन वन में अप्सराओं व गंधर्वों के साथ विहार कर रहे थे।
वहां पर पुष्पवती नामक गंधर्व कन्या, माल्यवान नामक गंधर्व पर मोहित हो जाती है ।
माल्यवान भी पुष्पवती के रुप सौंदर्य से आकर्षित हो जाता है ।
दोनों एक दूसरे के प्रेम में वशीभूत होने के कारण अपने संगीत एवं गान कार्य को सही से नहीं कर पाने के कारण इंद्र के कोप के भागी बनते हैं।
उनके सही प्रकार के गान और स्वर ताल के बिगड़ जाने के कारण इंद्र का ध्यान भंग हो जाता है और वह क्रोध में आकर उन्हें श्राप दे देते हैं ।
इंद्र ने उन दोनों गंधर्वों को स्त्री - पुरुष के रूप में मृत्यु लोक में जाकर पिशाच योनी में जन्म लेने का श्राप दे दिया ।
इंद्र के श्राप के प्रभाव स्वरुप वह दोनों दु:खी मन से हिमालय के क्षेत्र में जाकर अपना जीवन बिताने लगते हैं ।
वह अत्यंत कष्ट में जीवन व्यतीत करने लगते हैं।
किसी भी वस्तु का उन्हें आभास भी नहीं हो पाता है।
रुप, स्पर्श गंध इत्यादि का उन्हें बोध ही नहीं रह पाता है।
अपने कष्टों से दुखी वह हर पल अपनी इस योनी से मुक्ति के मार्ग की अभिलाषा रखते हुए जीवन बिता रहे होते हैं ।
तब माघ मास में शुक्ल पक्ष की जया नामक एकादशी का दिन भी आता है।
उस दिन उन दोनों को पूरा दिन भोजन नही मिल पाता है ।
बिना भोजन किए वह संपूर्ण दिन व्यतीत कर देते हैं ।
भूख से व्याकुल हुए रात्रि समय उन्हें निंद्रा भी प्राप्त नहीं हो पाती है ।
उस दिन जया एकादशी के उपवास और रात्रि जागरण का फल उन्हें प्राप्त होता है और अगले दिन उसके प्रभाव स्वरुप वह पिशाच योनी से मुक्ति प्राप्त करते हैं।
इस प्रकार श्रीकृष्ण, कथा संपन्न करते हैं ।
वह युधिष्ठिर से कहते हैं कि जो भी इस एकादशी के व्रत को करता है और इस कथा को सुनता है उसके समस्त पापों का नाश होता है।
जया एकादशी के व्रत से भूत - प्रेत - पिशाच आदि योनियों से मुक्ति प्राप्त होती है।
इस एकादशी के व्रत में पूजा, दान, यज्ञ, जाप का अत्यंत महत्व होता है ।
अत: जो मनुष्य जया एकादशी का व्रत करते हैं वे अवश्य ही मोक्ष को प्राप्त होते हैं।
जया एकादशी व्रत विधि....!
जया एकादशी का व्रत करने के लिए ।
दशमी तिथि की रात्रि से ही व्रत के नियमों का ध्यान रखना चाहिए ।
दशमी तिथि से ही ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए समस्त तामसिक वस्तुओं का त्याग करना चाहिए।
अगले दिन एकादशी तिथि समय सुबह स्नान करने के बाद पुष्प, धूप आदि से भगवान विष्णु की पूजा करना चाहिए।
इस दिन शुद्ध चित्त मन से भगवान श्री विष्णु का पूजन करना चाहिए.दिन भर व्रत रखना चाहिए ।
अगर निराहार नहीं रह सकते हैं तो फलाहार का सेवन करना चाहिए ।'
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय' इस द्वादश मंत्र का जाप करना चाहिए.विष्णु के सहस्रनामों का स्मरण करना चाहिए ।
सामर्थ्य अनुसार दान करना चाहिए।
इसी प्रकार रात्रि के समय में भी व्रत रखते हुए श्री विष्णु भगवान का भजन किर्तन करते हुए जागरण करना चाहिए ।
अगले दिन द्वादशी को प्रात:काल समय ब्राह्मणों को भोजन करवाना चाहिए और स्वयं भी भोजन करके व्रत संपन्न करना चाहिए।
श्रीद्वादशनाम पञ्जरस्तोत्रम्।
पुरस्तात् केशवः पातु चक्री जाम्बूनदप्रभः।
पश्चान्नारायणः शङ्खी नीलजीमूतसन्निभः॥
इन्दीवरदलश्यामो माधवोर्ध्वं गदाधरः।
गोविन्दो दक्षिणे पार्श्वे धन्वी चन्द्रप्रभो महान्॥
उत्तरे हलभृद्विष्णुः पद्मकिञ्जल्कसन्निभः।
आग्नेय्यामरविन्दाभो मुसली मधुसूदनः॥
त्रिविक्रमः खड्गपाणिर्निरृत्यां ज्वलनप्रभः।
वायव्यां वामनो वज्री तरुणादित्यदीप्तिमान्॥
ऐशान्यां पुण्डरीकाभः श्रीधरः पट्टसायुधः।
विद्युत्प्रभो हृषीकेशो ह्यवाच्यां दिशि मुद्गरी॥
हृत्पद्मे पद्मनाभो मे सहस्रार्कसमप्रभः।
सर्वायुधः सर्वशक्तिः सर्वज्ञः सर्वतोमुखः॥
इन्द्रगोपकसङ्काशः पाशहस्तोऽपराजितः।
स बाह्याभ्यन्तरं देहं व्याप्य दामोदरः स्थितः॥
एवं सर्वत्रमच्छिद्रं नामद्वादशपञ्जरम्।
प्रविष्टोऽहं न मे किञ्चिद्भयमस्ति कदाचन॥
भयं नास्ति कदाचन ॐ नम इति॥
इति श्रीद्वादशनामपञ्जरस्तोत्रं सम्पूर्णम्।
॥श्रीभागवतसूत्र॥
आदौ देवकिदेविगर्भजननं गोपीगृहे वर्धनम् मायापूतनजीवितापहरणं गोवर्धनोद्धारणम् ॥
कंसच्छेदनकौरवादिहननं कुंतीसुतां पालनम् एतद्भागवतं पुराणकथितं श्रीकृष्णलीलामृतम्॥
॥गीतास्तव॥
पार्थाय प्रतिबोधितां भगवता नारायणेन स्वयम् व्यासेनग्रथितां पुराणमुनिना मध्ये महाभारते। अद्वैतामृतवर्षिणीं भगवतीमष्टादशाध्यायिनीम् अम्ब त्वामनुसन्दधामि भगवद्गीते भवेद्वेषिणीम्॥
।| देवी मां वरदान ||
एक लोक कथा के अनुसार पुराने समय में एक दंपत्ति को संतान सुख नहीं मिल पा रहा था।
दोनों ने देवी मां को मनाने के लिए तप किया।
माता प्रसन्न हुई और उस दंपत्ति से कहा कि मेरे पास दो पुत्र हैं।
एक पुत्र हजार साल तक जिएगा...!
लेकिन वह मूर्ख होगा...!
दूसरा पुत्र अल्पायु होगा,...!
लेकिन बहुत बुद्धिमान होगा।
तुम दोनों को कौन सा पुत्र चाहिए।
पति - पत्नी ने कहा कि माता हमें दूसरा पुत्र दे दीजिए।
कुछ समय के बाद पति - पत्नी के घर एक पुत्र ने जन्म लिया।
जब वह पांच साल का हो गया तो पति पत्नी को चिंता होने लगी कि हमारा पुत्र अल्पायु है।
पता नहीं किस दिन अनर्थ हो जाएगा।
पति ने अपने पुत्र को उच्च शिक्षा देने के लिए गुरुकूल में भेज दिया।
उस लड़के ने पूरी शिक्षा ग्रहण कर ली।
जब वह 16 साल का हुआ तो उसका विवाह एक सुंदर और संस्कारी कन्या से हो गया।
विवाह के दिन ही यमराज नाग का रूप धारण करके उस लड़के को डंसने पहुंच गए।
मौका मिलते ही सांप ने लड़के को डंस लिया और उसकी मृत्यु हो गई।
ये देखकर उसकी पत्नी ने नाग को उठाया और एक कमंडल में बंद कर दिया।
वह लड़की देवी मां भक्त और तपस्वी थी।
जब ये बात सभी देवी - देवताओं को मालूम हुई तो उन्होंने देवी मां से निवेदन किया कि वे यमराज को स्वतंत्र करवाएं।
उनके बिना सृष्टि का संचालन रुक गया है।
लड़की के सामने देवी मां प्रकट हुई और उन्होंने लड़की से नाग को आजाद करने के लिए कहा।
लड़की ने कहा कि इन्हें मेरे पति के प्राण लौटाने होंगे, तभी मैं इन्हें स्वतंत्र करूंगी।
सभी देवी - देवता उस लड़की के सतीत्व के आगे हार गए और इस बात का वचन दे दिया।
लड़की ने कमंडल से नाग को बाहर निकाल दिया।
नाग के आजाद होते ही वहां यमराज प्रकट हो गए।
यमराज ने लड़की की भक्ति और सतीत्व की प्रशंसा की और उसके पति पुन: जीवन दान दे दिया।
कथा की सीख-
इस कथा की सीख यह है कि स्त्री अपने पति की बड़ी से बडी परेशानी को भी दूर कर सकती है।
शास्त्रों की मान्यता है।
कि पत्नी की शुभ कामों से पति का भाग्य उज्जवल होता है, बाधाएं खत्म होती हैं।
इसी लिए स्त्रियां अपने पति की लंबी उम्र और सौभाग्य के लिए व्रत-उपवास करती हैं।
*|| देवी मां की जय हो ||*
!!!!! शुभमस्तु !!!
🙏हर हर महादेव हर...!!
जय माँ अंबे ...!!!🙏🙏
पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:-
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science)
" Opp. Shri Dhanlakshmi Strits , Marwar Strits, RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
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नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏