सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता, किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश
आज काल के समय मे सच्चे कथाकार संत और ढोंगी कथाकार असन्त में कितना फर्क है ?.... ( भाग 3 ) प्रारब्ध पहले रचा पीछे रचा शरीर
हमारे हिन्दू धर्म मे तो जैसा हमारा मकान का चार ही कॉर्नर होता है । ऐसा चार ही वेद है ।
यजुर्वेद , अर्थवेद , सामवेद ओर ऋग्वेद है ।
ऐसा ही चार मुख्य दिशा बनती है
पूर्व , उत्तत पश्चिम ओर दक्षिण दिशा मुख्य दिशा है ।
ऐसा ही हमारा हिन्दू समाज चार वर्ण में ब्रह्माजी ने सृष्टि की रचना में किया है कि ब्राह्मण , क्षत्रिय वैश्य और शूद्र है ।
ऐसा हम सब का जीवन भी चारो भाग में बताया जाता है । धर्म अर्थ काम और मोक्ष का भाग भी मिलता है । हमारा हिन्दू शास्त्र का नियम के अनुसार तो ब्राह्मणो का कर्म ही धर्म करना और करवाना वेद का अध्यन करना गुरु का पद वो आज के समय का शिक्षक ही है । जब क्षत्रियो का कर्म राज की रखेवली राजनीति के अनुरूप के राज प्रजा का रक्षण करना कुटुबिक जैसा पूरा से पूरा सब समाज के प्रजा का हित अनुरूप आदर करना हमारे हिन्दू धर्म मे जितना भगवान देवी देवता है सब से सब राजपूत क्षत्रिय यदुवंशी ही है । राजा प्रजा का एक ही वचन के खातिर खुद का घर का त्याग कर शकता है कि मेरी प्रजा ही मेरा परिवार है । मेरी प्रजा का कोई एक आदमी के जीवन मे दुख होगा ठेस पहुच शक्ति है तो मुझे उसका ध्यान रखना उसका वचन का पालन करना वही सही राजधर्म निभा शकता है ।
आज के समय मे भी राज के या राजनीति का काम मे जितना राजपूत क्षत्रिय माहिर होता है उतना दुशरा माहिर कभी नही हो शकता । तिशर खण्ड आता है वैश्य का वैश्य का काम ही प्रजा के लिये उसका जीवन जरूरत का वस्तु का पूर्ण करने का सोना चांदी के आभूषण बनाना और उसको प्रजा से संतोष सुख लेने का होता है । चौथा स्थम शुद्र का प्रजा का पालन पोषण करना प्रजा का सेवा करना प्रजा के हित का लिये अच्छा कार्य करना ये सब खून का ही नाता रिश्ता बन जाता है ।
क्योंकि जो किसी भी व्यक्ति का उसका पूर्वजो से कभी भी खून का बदलाव ही न हुवा होगा तो ये बात तो सो टका सत्य ही होती है कि ब्राह्मण शिक्षक जैसा भी पठाई बच्चो को करवाएगा ऐसा पठाई दुशरा कोई नही करवा शकेगे ।
राजपूत क्षत्रिय का छोटा सा बच्चा होगा तो भी उसका स्वभाव सब प्रजा के लिये घर जैसा ही होगा घर का आदमी के साथ जितना अच्छा वर्तन करेगा उतना ही वर्तन वो प्रजा के किसी भी व्यक्ति के साथ कर शकेगे वो जैसा राज का प्रजा का काम करेगा ऐसा काम दुशरा कोई भी कभी नही कर शकते ।
बाद वेपारी तो सब लोग आज के समय मे बनकर बैठ जाएगा लेकिन वैश्य बनिया का छोटा सा लड़का होगा वो सिर्फ चार डबा पकड़कर वेपारी बन जायेगा एक ही साल के आसपास पूरी दुकान सामान से खड़ी कर लेगा । दुशरा को वैश्य जवेरी इसका छोटा सा लड़का सोना चांदी के आभूषणों में ऐसा कात्मक आभूषण तैयार कर देगा के दुशरो को ऐसा ही लग जाय के ये नया प्रकार का नई डिज़ाइन का आभूषण मार्किट में आ गया है । जब दुशरा लोगो को आभूषण का डिजाइन शिखने का भी किसी को चार्ज देना पड़ता है । तब चौथा तबका जीवन की जरूरत का मूल हेतु अन्न से बर्धनो से अंजारो से होती है ये ही मूल प्रजा का समाज का रखेवाल होता । जब इस का छोटा सा बच्चा को मालूम होता है कि बेल को कैसे जुताई किया जाता है । खेती के जमीन में धान्य कैसे रोप जाता है । इतना बीज से कितना फसल निकलेगी इस मिटी से बर्धन ऐसा बनेगा । इस लोहे से इतना ही काम हो शकता है । इतना इटो में इतना ही मकान का काम हो पायेगा ।इतना जमीन पर इतना ही मकान ऐसा मकान बन शकता है ।
जब आज के समय मे फ़ार्मशी ऐंजिनियर जैसा कोर्स निकल चुका है । लेकिन पूर्व के समय मे ऐंजिनियर के फ़ार्मशी जैसा कोर्स था ही नही भगवान का दिया हुवा खून का काम पर सब का काम चलता ही रहा था । आज के समय का ऐंजिनियर ओर फ़ार्मशी को कोर्स करने के बाद भी बहुत दिमांग लगाना पड़ता है कि बेल ऐसा जुत्ताय किया जाता है जब खून का बिजनेस में तो छोटा बच्चा को भी मालूम होता है कि बेल ऐसा जुत्ताय जाय ऐसा गाड़ी हल खेती के जमीन पर चलाया जाता है । ऐसा बीज रोपाय किया जाता है । जब इसका छोटा बच्चा मकान को खड़ा ञ्जर लगाकर ही खड़ा कर शकता जब दुशरा को इंजीनियरिंग का कोर्स करना पड़ता है । जब वर्षो पहले का हमारा भारत का ही मुख्य मंदिर द्वारकाधीश का मंदिर या रामेश्वरम मंदिर देखो के आप जगन्नाथ मंदिर या किसी भी पुराणोक्त मंदिर देखलो जब इसका बांधकाम बना हुवा होगा तब कौन लोग ऐंजिनियर का कोर्स करके पैदा ही हुवा होगा वही बांधकाम का काम आज के समय का किसी भी लोग का ऐंजिनियर का पठाई किया हुवे लोगो को कितनी बार तो सोचना ही पड़ेगा कि ये कैसे किया है कि इसमें एक दौरा जितनी भी कमी नही हो शक्ति । ये ही जीवंत उदाहरण है ।
संत तुलशी ने मानस के उत्तरकाण्ड में लिखा है --
संत संग अपवर्ग कर कामी भव कर पंथ ।
कहहि संत कवि कोबिद श्रुति पुरान सदग्रंथ ।।
सच्चे सन्त कथाकारों का संग भवबंधन से मुक्त होने पर होता है और कामी कथाकारों असन्त का संग जन्म मृत्यु का बंधन में बंधे रहनेका मार्ग है । विद्वानों तथा वेद - पुरणादिक ग्रथो का भी ये ही मर है । क्योंकि ब्राह्मण को शुद्र वैश्य क्षत्रिय बनना तो बहुत आशान ही होता है लेकिन क्षत्रिय वैश्य शुद्र को ब्राह्मण बनने के लिये बहुत मुश्केल होता है । ब्राह्मण जनोई निकाल कर कुशङ्ग वयवहार करने लग जाय तो वैश्य क्षत्रिय शुद्र जरूर बन तो जायेगा लेकिन ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य शुद्र जैसा व्यवहार बुद्धि होशियारी कहा से लायेगा वही तो खून में से तो पैदा होती है वो किसी का ब्राह्मण की भी ताकत तो है नही के क्षत्रिय वैश्य शुद्र जैशी बुद्धि शक्ति पैदा करने की जी हां पूर्वजो का खून ओरिजनल ही होना चाहिए आंतरिक खून के कमी हो तो बन भी जाय । ऐसा ही क्षत्रिय वैश्य शुद्र सब लोग धर्म नियम पूजन पाठ वेदों का पठाई कथाकार तो बन ही जाता है लेकिन ब्राह्मण जैसा वेदों का पाठ कथाकार तो कभी नही बन शकता । खून खून में फर्क तो जरूर हो ही जायेगा । ब्राह्मण राजनीति करने लग जाय तो भी क्षत्रिय जैसा राजनीति कभी नही कर शकता । ब्राह्मण वेपारी बन जाय के जवेरी बन जाय लेकिन ओरिजनल जवेरी वेपारी जैसा व्यवहार वेपारी तो कभी बन ही नही शकता । ब्राह्मण खेती का काम करने के लिये लग जाय तो शुद्र जैसा खेती का जमीन ब्राह्मण का कभी बन ही नही शकता वो कम महेनत में ज्यादा धान्य की उपज ले लेगा तब ब्राह्मण बहुत महेनत करके उसका आधा भाग की आसपास ही उपज ले शकेगे ।
करउ कृपानिधि एक ढिठाई ।
में सेवक तुम्ह जन सुखदाई ।।
है रधुराईनाथजी , में आपके प्रति धृष्टता करते हुए वेद पुराणों में वर्णित संत कथाकारो की महिमा आपके श्रीमुख से सुन्ना चाहता हु । अब भरत ने श्री राम से संत कथाकारों की महिमा सनुनाने का आग्रह कर लिया तब भरत की जिज्ञासा को शांत करने की प्रभु ने आज्ञा दिया है ।
( आगे भाग 4 पर )
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प्रारब्ध पहले रचा पीछे रचा शरीर
श्री ऋग्वेद और श्रीमद्भागवत गीता के अनुसार सुंदर कहानी प्रारब्ध पहले रचा पीछे रचा शरीर..!
एक गुरू जी थे ।
हमेशा ईश्वर के नाम का जाप किया करते थे ।
काफी बुजुर्ग हो गये थे ।
उनके कुछ शिष्य साथ मे ही पास के कमरे मे रहते थे ।
जब भी गुरूजी को शौच; स्नान आदि के लिये जाना होता था।
वे अपने शिष्यो को आवाज लगाते थे और शिष्य ले जाते थे ।
धीरे धीरे कुछ दिन बाद शिष्य दो तीन बार आवाज लगाने के बाद भी कभी आते कभी और भी देर से आते।
एक दिन रात को निवृत्त होने के लिये जैसे ही गुरूजी आवाज लगाते है...!
तुरन्त एक बालक आता है और बडे ही कोमल स्पर्श के साथ गुरूजी को निवृत्त करवा कर बिस्तर पर लेटा जाता है ।
अब ये रोज का नियम हो गया ।
एक दिन गुरूजी को शक हो जाता है कि...!
पहले तो शिष्यों को तीन चार बार आवाज लगाने पर भी देर से आते थे ।
लेकिन ये बालक तो आवाज लगाते ही दूसरे क्षण आ जाता है और बडे कोमल स्पर्श से सब निवृत्त करवा देता है ।
एक दिन गुरूजी उस बालक का हाथ पकड लेते है और पूछते कि सच बता तू कौन है ?
मेरे शिष्य तो ऐसे नही हैं ।
वो बालक के रूप में स्वयं ईश्वर थे...!
उन्होंने गुरूजी को स्वयं का वास्तविक रूप दिखाया।
गुरूजी रोते हुये कहते है :
हे प्रभु आप स्वयं मेरे निवृत्ति के कार्य कर रहे है।
यदि मुझसे इतने प्रसन्न हो तो मुक्ति ही दे दो ना ।
प्रभु कहते है कि जो आप भुगत रहे है वो आपके प्रारब्ध है ।
आप मेरे सच्चे साधक है।
हर समय मेरा नाम जप करते है।
इस लिये मै आपके प्रारब्ध भी आपकी सच्ची साधना के कारण स्वयं कटवा रहा हूँ।
गुरूजी कहते है कि क्या मेरे प्रारब्ध आपकी कृपा से भी बडे है।
क्या आपकी कृपा...!
मेरे प्रारब्ध नही काट सकती है ।
प्रभु कहते है कि, मेरी कृपा सर्वोपरि है।
ये अवश्य आपके प्रारब्ध काट सकती है।
लेकिन फिर अगले जन्म मे आपको ये प्रारब्ध भुगतने फिर से आना होगा ।
यही कर्म नियम है ।
इस लिए आपके प्रारब्ध स्वयं अपने हाथो से कटवा कर इस जन्म - मरण से आपको मुक्ति देना चाहता हूँ।
ईश्वर कहते है:
प्रारब्ध तीन तरह के होते है ।
मन्द, तीव्र तथा तीव्रतम ।
मन्द प्रारब्ध मेरा नाम जपने से कट जाते है ।
तीव्र प्रारब्ध किसी सच्चे संत का संग करके श्रद्धा और विश्वास से मेरा नाम जपने पर कट जाते है।
पर तीव्रतम प्रारब्ध भुगतने ही पडते है।
लेकिन जो हर समय श्रद्धा और विश्वास से मुझे जपते हैं।
उनके प्रारब्ध मैं स्वयं साथ रहकर कटवाता हूँ और तीव्रता का अहसास नहीं होने देता हूँ ।
क्षमा करें लेख में अगर कही त्रुटी हो तो।
श्री कृष्ण गोविन्द हरे मुरारे हे नाथ नारायण वासुदेवा।
पित मात स्वामी सखा हमारे हे नाथ नारायण वासुदेवा।।
राजाधिराज महाराज द्वारिकाधीश भगवान की जय...!
श्री भगवान के शुद्ध भक्तों की जय।
श्री कृष्ण गोविन्द हरे मुरारे हे नाथ नारायण वासुदेवा।
किसी कुल में जन्म से और पद से कोई बड़ा होता तो कंस बड़ा होता .......!
वह कृष्ण का मामा भी था और राजा भी ...!
कर्म से बड़े कृष्ण हुए जो योगेश्वर कर्म योगी और भगवान हुए हैं…..!
वंश में जन्म लेने से कोई हैसियत नहीं बनती....!
कर्म से हासिल मुकाम से ऊँचे होते है…..!
जो बड़े कहे जाने का दंभ भरते हैं उन के पूर्वजों ने गढ़ क़िले राज थापे थे…..!
अब कोई ऐसी ही उपलब्धि हासिल करो तो आपकी बड़ाई है....!
वर्ना लोग आपके पूर्वजों का सम्मान करते है आपका नहीं....!
यह समझ लें....!
जिस कुल में जन्म लिया है वो आपके पूर्वजों की पुण्याई है....!
आप की आने वाली पीढ़ियाँ आप के कर्मों से ऊँची नीची कही जाएगी.. याद रखें…..!
कर्म जिसके अच्छे है तो किस्मत उसकी दासी है।
दिल अगर साफ़ है तो घर मे मथुरा काशी है ll
हमारा जीवन भोगमय नहीं योगमय होना चाहिए।
सफलता अकेले नहीं आती वह अपने साथ अभिमान को लेकर भी आती है और यही अभिमान हमारे दुखों का कारण बन जाता है।
ऐसे ही असफलता भी अकेले नहीं आती...!
वह भी अपने साथ निराशा को लेकर आती है और निराशा प्रगति पथ में एक बड़ी बाधा उत्पन्न कर देती है।
सफलता व असफलता से कुछ सीख लेना एक योगी का लक्षण है।
प्रकृति ने प्रत्येक मनुष्य को जीवन जीने के दो मार्ग दिए हैं।
हम अपने जीवन को योगी बनाकर जिएं अथवा भोगी बनाकर ये व्यक्ति के स्वयं के ऊपर निर्भर है।
दुख, कटुवचन और अपमान सहने की क्षमता का विकास तथा सुख, प्रशंसा और सम्मान पचाने की सामर्थ्य ही गृहस्थ धर्म का योग भी है।
अत: हर स्थिति का मुस्कराकर सामना करने की क्षमता, किसी भी स्थिति को अच्छी या बुरी न कहकर समभाव में रहते हुए।
अपने कर्तव्य पथ पर लगातार आगे बढ़ने का कौशल, यही जीवन का योग है।
योगमय जीवन ही योगेश्वर तक पहुंचाता है।
झुक कर जीना सीखो ताकि दूसरों के आशीर्वाद भरे हाथ सहजता से आपके सिर तक पहुँच सके बिना झुके विवाद तो मिल जाएगा।
किन्तु आशीर्वाद नहीं।
पर्वत आपके आत्मविश्वास से अधिक नहीं है।
क्योंकि पर्वत की चोटी पर पहुंचने पर यह आपके पैरों के नीचे होता है।
संपत्तियां, उपलब्धियाँ, प्रतिष्ठा, सम्मान और पद कुछ भी मायने नहीं रखता अगर आप खुश़ नहीं हैं।
इस जिंदगी की सबसे पहली जरूरत है...!
आपका ख़ुश रहना क्योकि...!
आत्मविश्वास आपको विजेता बनाता है..!
मिट्टी का गीलापन जिस तरह से...!
पेड की जड़ को पकड कर रखता है...।
ठीक उसी तरह शब्दों का मीठापन...!
मनुष्य के रिस्तो को पकडकर रखता है...।
मौन, क्रोध की सर्वोत्तम चिकित्सा है।
जीवन का रहस्य केवल आनंद नहीं बल्कि अनुभव के माध्यम से सीखना है।
मन की एकाग्रता ही समग्र ज्ञान है।
सच को कहने के हजारों तरीके हो सकते हैं और फिर भी सच तो वही रहता है।
दिल और दिमाग के टकराव हो तो दिल की सुनो।
अगर संसार में कहीं कोई पाप है तो वह है दुर्बलता।
दुर्बलता पाप है...!
दुर्बलता मृत्यु के समान है।
कभी मत सोचो कि आत्मा के लिए कुछ असंभव है।
ऐसा सोचना सबसे बड़ा अधर्म है।
केवल उन्हीं का जीवन, जीवन है जो दूसरों के लिए जीते हैं।
अन्य सब तो जीवित होने से अधिक मृत हैं।
जितना बड़ा संघर्ष होगा...!
जीत उतनी ही शानदार होगी।
ज्ञान का प्रकाश सभी अंधेरों को खत्म कर देता है।
हम जो बोते हैं वो काटते हैं।
हम स्वयं अपने भाग्य के निर्माता हैं।
यदि भाग्य में परिवर्तन लाना चाहते हैं।
तो विचारों में परिवर्तन लाना सीखिये।
क्योंकि आपके विचार आपके कर्म बनेंगे, और आपके कर्म ही आपका भाग्य।।
★★
!!!!! शुभमस्तु !!!
🙏हर हर महादेव हर...!!
पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:-
-: 25 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science)
" Opp. Shri Dhanlakshmi Strits , Marwar Strits, RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
सेल नंबर: . + 91- 7010668409 / + 91- 7598240825 WHATSAPP नंबर : + 91 7598240825 ( तमिलनाडु )
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आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद..
नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश..
जय जय परशुरामजी..🙏🙏🙏