https://www.profitablecpmrate.com/gtfhp9z6u?key=af9a967ab51882fa8e8eec44994969ec 2. आध्यात्मिकता का नशा की संगत भाग 1: 10/04/20

।। श्री ऋगवेद श्री यजुर्वेद और श्री रामचरित्रमानस आधारित सुंदर प्रवचन ।।

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

।। श्री ऋगवेद श्री यजुर्वेद और श्री रामचरित्रमानस आधारित सुंदर प्रवचन ।।


श्री ऋगवेद श्री यजुर्वेद और श्री रामचरित्रमानस आधारित सुंदर प्रवचन


श्री ऋगवेद श्री यजुर्वेद और श्री रामचरित्र मानस आधारित सुंदर प्रवचन में लक्ष्मण गीता प्रसंग भाग ३।

हम विचार कर रहे थे लक्ष्मण गीता प्रसंग पर जीव आचार्य लक्ष्मण जी महाराज निषाद राज को गीता सुनाते हुए कह रहे हैं ।

सपने होई भिखारी नृप रंक नाकपति होई। जागे लाभ न हानि कछु तिमि प्रपंच जियं जोई।।

विषाद की मनोभूमि शांति का वरण करना चाहती है और शांति पाने के लिए मन के सारे विकार दूर होनी चाहिए।

मोह सकल व्याधिन कर मूला।।

विकार ग्रस्त मन विषाद उत्पन्न करता है । 

मोह के वशीभूत होकर प्राणी शंकालु और भयग्रस्त हो जाता है।

हम जिन्हें अपना मानते हैं उनके प्रति आसक्त हो जाते हैं । 



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यही परिस्थिति कुरूक्षेत्र के मैदान में अर्जुन की भी हो गई रथ को बीच में लेजाकर   हथियार डाल देते हैं और कहते हैं 

निमित्तानि च पश्यामि विपरीतानि केशव।
ने च श्रेयोअनुपश्यामि हत्वा स्वजन माहवे।।

हे केशव मैं समय को विपरीत देख रहा हूं तथा युद्ध में अपने ही बंधु बांधवों पर मैं कैसे बाण चलाऊंगा ।  

न काक्षये विजयं कृष्ण ने च राज्यं सुखानि। 
च किं नो राज्येन गोविंद किं भोगैरजीवितेन ।।

हे गोविन्द मै युद्ध नहीं चाहता न विजय प्राप्त करना चाहता हूं।

ऐसे राज्य की मुझे आवश्यकता नहीं है 

अर्थात : -

अर्जुन मोह ग्रस्त हो जाते हैं और आगे क्या होता है।

" कुछ लोगों के पूर्व जन्मों के संस्कार ऐसे होते हैं, कि उन में स्वार्थ अधिक होता है। "

परोपकार की भावना कम होती है। 

यह स्थिति अच्छी नहीं है। 

" यदि ऐसा हो तो इसे ठीक करना चाहिए। "

प्रत्येक व्यक्ति को अपना परीक्षण निरीक्षण स्वयं करना चाहिए।

कि " मेरे संस्कार विचार कैसे हैं? " 

परीक्षण निरीक्षण करने से पता चल जाएगा कि आपके संस्कार कैसे हैं? 

" यदि आपको सेवा परोपकार दान दया आदि शुभ कर्मों में रुचि हो, दूसरों का दुख देकर आपके मन में उनके प्रति सहानुभूति होती हो, उनका दुख दूर करने में आप कुछ पुरुषार्थ करते हों, तब तो बहुत अच्छा है। " 

" यदि ऐसी स्थिति न हो, तो ऐसी स्थिति बनाएं। "

ऐसा कार्य करने से दूसरों को भी लाभ होगा, और आपको भी ईश्वर की ओर से आनंद मिलेगा।

यदि इसके विपरीत आपकी स्थिति ऐसी हो।

कि " केवल अपना ही स्वार्थ सिद्ध करने में आपको रुचि हो। "

"तो यह स्थिति दूसरों के लिए भी दुखदायक होगी, और स्वयं आपके लिए भी। " 

सुखी होने के लिए ईश्वर की नियम व्यवस्था को समझने का प्रयत्न करें।

ईश्वर की नियम व्यवस्था यह है।


कि " जो व्यक्ति दूसरों का उपकार करेगा, ईश्वर उसीको सुख देगा। " 

अब आप इस नियम के अनुसार गंभीरता से विचार करें। 

" यदि आप सुख प्राप्त करना चाहते हैं, तो अपना स्वार्थ छोड़ें, उसे कम करें। "

" अपने बुरे संस्कारों का विरोध स्वयं करें। "

" तथा ईश्वर और विद्वानों की सहायता से अपने अंदर उत्तम संस्कारों को जगाएं / बढ़ाएं। " 

" सुखी होने का यही सबसे बड़ा उपाय है। "

" जब तक व्यक्ति स्वयं नहीं सुधरना चाहता, तब तक संसार में उसे कोई भी नहीं सुधार सकता। "

" इस लिए स्वयं अपने अंदर सुधार करने की इच्छा उत्पन्न करें। "

" तभी आपका सुधार होगा। " 

" और आपको सुधरा हुआ देखकर कोई दूसरा भी सोचेगा, कि "यह व्यक्ति परोपकारी है, और बड़ा सुखी है,तो मैं भी ऐसा बनने का प्रयत्न करूं। "

" अतः परिवार के सदस्यों अथवा मित्रों आदि के साथ व्यवहार करते समय परोपकारी भावना से ही व्यवहार करें,स्वार्थी भावना से नहीं..!! "

" भगवान की आज्ञा में ही जीवन की यात्रा "

अभाव में भी खुश रहना सीखो क्योंकि जिसको रोने की आदत पड़ जाए तो वह सबकुछ पाने के बाद भी रोता ही रहता है। 

जीवन क्षणभंगुर है, एक क्षणिक विश्राम के बाद यात्रा तो इससे आगे भी होनी है। 

जीवन को क्षणभंगुर समझने का मतलब यह नहीं कि कम से कम समय में ज्यादा से ज्यादा विषयोपभोग कर लिया जाए।

जीवन को क्षणभंगुर समझने का अर्थ यह है।

कि  फिर दुबारा अवसर मिले न मिले इस लिए इस अवसर का पूर्ण लाभ लेते हुए इसे सदकर्मों में व्यय किया जाए। 

अपने जीवन उत्थान के लिए निरंतर प्रयासरत रहा जाए।

जीवन को ढोओ मत जिओ। 

पल पल उत्सव मनाओ, आनन्द मनाओ। 

हर स्थिति में खुश रहने का प्रयास करो। 

यहाँ सदैव एक जैसी स्थितियां तो किसी की भी नहीं रहती इस लिए परिस्थितियों की स्वीकृति के साथ जीवन यात्रा का आनंद लेना सीखिए।

अगले अंक में सियाबर रामचंद्र की जय
प्रस्तुतकर्ता - प्रभु राज्यगुरु
🌹जय राम राम राम सीताराम 🌹

पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 
" Opp. Shri Dhanlakshmi Strits , Marwar Strits, RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
सेल नंबर: . + 91- 7010668409 WHATSAPP नंबर : + 91 7598240825 ( तमिलनाडु )
Skype : astrologer85
Web : https://sarswatijyotish.com/
Email: prabhurajyguru@gmail.com
आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद.. 
नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏

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