https://www.profitablecpmrate.com/gtfhp9z6u?key=af9a967ab51882fa8e8eec44994969ec 2. आध्यात्मिकता का नशा की संगत भाग 1: ।। श्री सामवेद और श्री विष्णु पुराण आधारित ।। https://sarswatijyotish.com
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।। श्री सामवेद और श्री विष्णु पुराण आधारित ।।

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

।। श्री सामवेद और श्री विष्णु पुराण आधारित ।।


।। श्री सामवेद और श्री विष्णु पुराण आधारित ब्रज रज से बने लद्दू और संतानों कर रहा है माता पिता की सेवा ।।






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श्री सामवेद और श्री विष्णु पुराण आधारित ब्रज रज से बने लद्दू और संतानों कर रहा है माता पिता की सेवा की सुंदर कहानी ।

ब्रज रज से बने लड्डू 

एक बार ऋषि दुर्वासा बरसाने आए। 

श्री राधारानी अपनी सखियों संग बाल क्रीड़ा में मग्न थी। 





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छोटे छोटे बर्तनों में झूठ मूठ भोजन बनाकर इष्ट भगवान श्री कृष्ण को भोग लगा रही थी।

ऋषि को देखकर राधारानी और सखियाँ संस्कार वश बड़े प्रेम से उनका स्वागत किया।

उन्होंने ऋषि को प्रणाम किया और बैठने को कहा। 





ऋषि दुर्वासा भोली भाली छोटी छोटी कन्यायों के प्रेम से बड़े प्रसन्न हुए और उन्होंने जो आसन बिछाया था उसमें बैठ गए।

जिन ऋषि की सेवा में त्रुटि के भय से त्रिलोकी काँपती है।

वही ऋषि दुर्वासा की सेवा राधारानी एवम सखियाँ भोलेपन से सहजता से कर रही हैं।

ऋषि केवल उन्हें देखकर मुस्कुरा रहे।






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सखियाँ कहती है –

“महाराज ! "

आपको पता है हमारी प्यारी राधा न बहुत अच्छे लड्डू बनाती है। 

हमने भोग अर्पण किया है। 

" अभी  आपको प्रसादी देती हैं। ” 

यह कहकर सखियाँ लड्डू प्रसाद ले आती हैं।

लड्डू प्रसाद तो है, पर है ब्रजरज का बना, खेल खेल में बनाया गया। 

ऋषि दुर्वासा उनके भोलेपन से अभिभूत हो जाते हैं।

हँसकर कहते हैं - 






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“लाली.! 

प्रसाद पा लूँ ? 

क्या ये तुमने बनाया है.?”

सारी सखियाँ कहती हैं - 

“हाँ हाँ ऋषिवर ! 

ये राधा ने बनाया है। 

आज तक ऐसा लड्डू आपने नही खाया होगा।” 

मुंह में डालते ही परम चकित, शब्द रहित हो जाते हैं।

एक तो ब्रजरज का स्वाद, दूजा श्री राधा जी के हाथ का स्पर्श लड्डू। 

“ अमृत को फीका करे, ऐसा स्वाद लड्डू का....! ”

ऋषि की आंखों में आंसू आ जाते हैं। 

अत्यंत प्रसन्न हो वो राधारानी को पास बुलाते हैं। 

और बड़े प्रेम से उनके सिर पर हाथ रखकर उन्हें आशीर्वाद देते हैं - 

“बेटी आज से तुम ‘अमृतहस्ता’ हुई।"

“जगत की स्वामिनी है श्रीजी, उनको किसी के आशीर्वाद की ज़रूरत नहीं फिर भी देव मर्यादा से आशीर्वाद स्वीकार किया।

दुर्वासा ऋषि बोले –  

राधा रानी आप जो बनायोगी वो अमृत के भी अधिक स्वादिष्ट हो जायेगा।

जो भी उस दिव्य प्रसाद को पायेगा उसके यश, आयु में वृद्धि होगी उस पर कोई विपत्ति नहीं आएगी, उसकी कीर्ति त्रिलोकी में होगी।।

ये बात व्रज में फ़ैल गयी आग की तरह की ऋषि दुर्वासा ने राधा जी को आशीर्वाद दिया।

जब मैया यशोदा को जब ये पता चला तो वो तुरंत मैया कीर्तिदा के पास गयी और विनती की आप राधा रानी को रोज हमारे घर नन्द भवन में भोजन बनाने के लिए भेज दिया करे।

वे दुर्वासा ऋषि के आशीर्वाद से अमृत हस्ता हो गयी है और कंस मेरे पुत्र कृष्ण के अनिष्ठ के लिए हर रोज अनेक असुर भेजता है।

हमारा मन बहुत चिंतित होता है आपकी बेटी के हाथो से बना हुआ प्रसाद पायेगा तो उनका अनिष्ठ नहीं हो उसकी बल, बुद्धि, आयु में वृद्धि होगी।

फिर कीर्तिजा मैय्या ने श्री राधा रानी जी से कहा – 

आप यसोदा मैया की इच्छा पूर्ति के लिए प्रति दिन नन्द गाँव जाकर भोजन बनाया करो।

उनकी आज्ञा पाकर श्री राधा रानी रोज  कृष्ण के भोजन प्रसादी बनाने के लिए नन्द गाँव जाने लगी।

पिताजी एक माह से बीमार थे। 

उनके व माँ के कई बार फोन आ चुके थे , किन्तु मैं गाँव नहीं जा पाया। 

सच कहूँ तो मैं छुट्टियाँ बचने के मूड में था। उमा का सुझाव था - 

'' बुखार ही तो है , कोई गम्भीर बात तो है नहीं। "

दो माह बाद दीपावली है , तब जाना ही है। 

अब जाकर क्या करोगे। 

सब जानते हैं कि हम सौ किलोमीटर दूर रहते हैं। 

" बार बार किराया खर्च करने में कौन सी समझदारी है। ''

एक दिन माँ का फिर फोन आया। 

माँ गुस्से में थी -

 '' तेरे पिताजी बीमार हैं और तुझे आने तक की फुर्सत नहीं। "

वह बहुत नाराज हैं तुझसे। 

" कह रहे थे कि अब तुझसे कभी बात नहीं करेंगे। ''

उसी दिन ड्यूटी जाते समय मुझे ऑटो रिक्शा ने टक्कर मार दी। 

मेरे बायें पेअर पर प्लास्टर चढ़ाना पड़ा।

उमा ने माँ को फोन कर दिया था। 

दो घंटे में ही पिताजी हॉस्पीटल में आ पहुँचे। 

वह बीमारी की वजह से बहित कमजोर किन्तु दृढ थे। 

मुझे सांत्वना देते हुए बोले - 

'' किसी तरह की चिंता मत करना। "

" थोड़े दिनों की परेशानी है। "

" तू जल्दी ही ठीक हो जायेगा। "

उन्होंने मुझे दस हजार रुपये थमाते हुए कहा -

 '' रख ले , काम आयेंगे। ''

मैं क्या बोलता। 

मुझे स्वयं के व्यवहार पर शर्म आ रही थी।

जीवन के झंझावात में पिताजी किसी विशाल चट्टान की तरह मेरे साथ खड़े थे।

नालायक





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देर रात अचानक ही पिता जी की तबियत बिगड़ गयी। 

आहट पाते ही उनका नालायक बेटा उनके सामने था।

माँ ड्राईवर बुलाने की बात कह रही थी, पर उसने सोचा अब इतनी रात को इतना जल्दी ड्राईवर कहाँ आ पायेगा ?

यह कहते हुये उसने सहज जिद और अपने मजबूत कंधो के सहारे बाऊजी को कार में बिठाया और तेज़ी से हॉस्पिटल की ओर भागा।

बाउजी दर्द से कराहने के साथ ही उसे डांट भी रहे थे धीरे चला नालायक, एक काम जो इससे ठीक से हो जाए।

नालायक बोला

आप ज्यादा बातें ना करें बाउजी, बस तेज़ साँसें लेते रहिये, हम हॉस्पिटल पहुँचने वाले हैं।

अस्पताल पहुँचकर उन्हे डाक्टरों की निगरानी में सौंप, वो बाहर चहलकदमी करने लगा।

बचपन से आज तक अपने लिये वो नालायक ही सुनते आया था।

उसने भी कहीं न कहीं अपने मन में यह स्वीकार कर लिया था की उसका नाम ही शायद नालायक ही हैं ।

तभी तो स्कूल के समय से ही घर के लगभग सब लोग कहते थे की नालायक फिर से फेल हो गया।

नालायक को अपने यहाँ कोई चपरासी भी ना रखे।

कोई बेवकूफ ही इस नालायक को अपनी बेटी देगा। 

शादी होने के बाद भी वक्त बेवक्त सब कहते रहते हैं की इस बेचारी के भाग्य फूटें थे जो इस नालायक के पल्ले पड़ गयी।




हाँ बस एक माँ ही हैं जिसने उसके असल नाम को अब तक जीवित रखा है।

लेकिन पर भी आज अगर उसके बाउजी को कुछ हो गया तो शायद वे भी...!

इस ख़याल के आते ही उसकी आँखे छलक गयी और वो उनके लिये हॉस्पिटल में बने एक मंदिर में प्रार्थना में डूब गया। 

प्रार्थना में शक्ति थी या समस्या मामूली , डाक्टरों ने सुबह सुबह ही बाऊजी को घर जाने की अनुमति दे दी।

घर लौटकर उनके कमरे में छोड़ते हुये बाऊजी एक बार फिर चीखें, " छोड़ नालायक ! "

" तुझे तो लगा होगा कि बूढ़ा अब लौटेगा ही नहीं। "

उदास वो उस कमरे से निकला, तो माँ से अब रहा नहीं गया।

" इतना सब तो करता है, बावजूद इसके आपके लिये वो नालायक ही है ? "

विवेक और विशाल दोनो अभी तक सोये हुए हैं उन्हें तो अंदाजा तक नही हैं की रात को क्या हुआ होगा .....!

बहुओं ने भी शायद उन्हें बताना उचित नही समझा होगा ।

यह बिना आवाज दिये आ गया और किसी को भी परेशान नही किया 

भगवान न करे कल को कुछ अनहोनी हो जाती तो ?

और आप हैं की ?

उसे शर्मिंदा करने और डांटने का एक भी मौका नही छोड़ते ।

कहते कहते माँ रोने लगी थी इस बार बाऊजी ने आश्चर्य भरी नजरों से उनकी ओर देखा और फिर नज़रें नीची करली माँ रोते रोते बोल रही थी अरे, क्या कमी है हमारे बेटे में ?

हाँ मानती हूँ पढाई में थोङा कमजोर था ....!




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तो क्या ?

क्या सभी होशियार ही होते हैं ?

वो अपना परिवार, हम दोनों को, घर - मकान, पुश्तैनी कारोबार, रिश्तेदार और रिश्तेदारी सब कुछ तो बखूबी सम्भाल रहा है।

जबकि बाकी दोनों जिन्हें आप लायक समझते हैं।

वो बेटे सिर्फ अपने बीबी और बच्चों के अलावा ज्यादा से ज्यादा अपने ससुराल का ध्यान रखते हैं ।

कभी पुछा आपसे की आपकी तबियत कैसी हैं ?

और आप हैं की ....!

बाऊजी बोले सरला तुम भी मेरी भावना नही समझ पाई ?

मेरे शब्द ही पकङे न ?

क्या तुझे भी यहीं लगता हैं की इतना सब के होने बाद भी इसे बेटा कह के नहीं बुला पाने का, गले से नहीं लगा पाने का दुःख तो मुझे नही हैं ?

क्या मेरा दिल पत्थर का हैं ?

हाँ सरला सच कहूँ दुःख तो मुझे भी होता ही है, पर उससे भी अधिक डर लगता है कि कहीं ये भी उनकी ही तरह " लायक " ना बन जाये।

इस लिए मैं इसे इसकी पूर्णताः का अहसास इसे अपने जीते जी तो कभी नही होने दूगाँ ....!

माँ चौंक गई .....!

ये क्या कह रहे हैं आप ?

हाँ सरला ...!

यहीं सच हैं...!

अब तुम चाहो तो इसे मेरा स्वार्थ ही कह लो।

" कहते हुये उन्होंने रोते हुए नजरे नीची किये हुए अपने हाथ माँ की तरफ जोड़ दिये जिसे माँ ने झट से अपनी हथेलियों में भर लिया। "

और कहा अरे ...!

अरे ये आप क्या कर रहे हैं....!
 
मुझे क्यो पाप का भागी बना रहे हैं ।





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मेरी ही गलती हैं मैं आपको इतने वर्षों में भी पूरी तरह नही समझ पाई ......!

और दूसरी ओर दरवाज़े पर वह नालायक खड़ा खङा यह सारी बातचीत सुन रहा था वो भी आंसुओं में तरबतर हो गया था। 

उसके मन में आया की दौड़ कर अपने बाऊजी के गले से लग जाये पर ऐसा करते ही उसके बाऊजी झेंप जाते, यह सोच कर वो अपने कमरे की ओर दौड़ गया।

कमरे तक पहुँचा भी नही था की बाऊजी की आवाज कानों में पङी...!

अरे नालायक ......!

वो दवाईयाँ कहा रख दी गाड़ी में ही छोड़ दी क्या ?

कितना भी समझा दो इससे एक काम भी ठीक से नही होता ....!

नालायक झट पट आँसू पौछते हुये गाड़ी से दवाईयाँ निकाल कर बाऊजी के कमरे की तरफ दौङ गया ।।
                           🙏🙏

जय श्री कृष्ण.....!!






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पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 
" Opp. Shri Dhanlakshmi Strits , Marwar Strits, RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
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नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏

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