सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता, किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश
।। श्री ऋगवेद श्री यजुर्वेद और श्री रामचरित्रमानस आधारित प्रवचन ।।
श्री ऋगवेद श्री यजुर्वेद और श्री रामचरित्रमानस आधारित विस्तृत प्रवचन का एक भाग मेंश्री राम कृपा ही केवलम् में धीरता और सिद्धि की सुंदर रचना पस्तूत किए गए हैं।
धीरके माने यह है कि दुनियामें जो कुछ होता जाता है, उसको जरा सहते चलो ।
इतने असहिष्णु मत बनो कि तेज हवा आज क्यों चल रही है, ईश्वरको गाली देना शुरू कर दो;
तो ईश्वरको गाली देनेमें जब लग जाओगे तब तुम्हें अपने स्वरूपका ज्ञान कैसे होगा ?
बोले…आज वर्षा क्यों हुई ?
आज वर्षा क्यों ना हुई ?
रोज ईश्वरसे जब हर काममें जवाब-तलब ही करते रहोगे कि तुमने ऐसा क्यों नहीं किया और ऐसा तुमने क्यों किया--
अगर ईश्वरसे मतभेद करते रहोगे तो ईश्वर तुम्हें अपना रहस्य नहीं बतलावेगा ।
देखो, यह बात हम तुमको बता देते हैं ।
अगर हमारा - तुम्हारा मतभेद है तो हम कोई - न - कोई बात तुमसे गुप्त रख लेंगे ।
तुम तो ईश्वरसे मतभेद रखते हो तब ईश्वर अपने को तुम्हारे सामने काहेको जाहिर करेगा ?
यह ईश्वरसे मतभेद न रखना माने- ईश्वर जो भी कर रहा है, उसमें मंगल ही है- यह बुद्धि रखना ।
स देवो यदेव कुरुते तदेव मङ्गलाय ।
र्ईश्वर जो कर रहा है उसमें हमारा मङ्गल है।
उसमें हमारा कल्याण है-
कुटिया पर गाय आ गयी कि बहुत बढ़िया दूध देगी !
कोई चुरा ले गया तो बोले गोबर उठाने से जान बची !
मतलब इसका यह है कि बाह्य जो परिस्थितियाँ हैं।
घटनाएँ हैं उनसे यदि तुम क्षण - क्षण पर प्रभावित होते रहोगे और उन्हींके स्वागतमें या उन्हींका विरोध करने में लगे रहोगे तो तुम्हें ईश्वरके बारेमें सोचनेका अवसर ही कब मिलेगा ?
श्रीउड़िया बाबाजी महाराज कहा करते थे-
मैंने पूछा था, स्वयं पूछा था कि सिद्धि क्या है महाराज?
आपके बारेमें लोग बताते हैं कि बड़ी - बड़ी सिद्धियाँ आपको हैं !
तो बोलते कि बर्दाश्त करना सिद्धि है-
सहिष्णुता ही सिद्धि है ।
एक गाली दी और छह महीने की तपस्या गयी !
यह तपस्या ऐसी ही हल्की-फुल्की चीज है ।
एक बार गुस्सा आया ओर छह महीनेके भजनसे बना हुआ शरीरमें जो रस है….!
मनका निर्माण करने वाला, जिससे मनमें मिठास आती है,...!
मधुरता आती है,...!
आनन्द आता है -वह गया !
मनमें ही तो क्रोध आता है न, तो क्रोधकी आगमें भजनका रस भस्म हो गया ।
उन्होंने इसका उदाहरण देकर बताया-
कि देखो, तुम भूख सहनेकी आदत डालो ।
उनके पास अन्नकी सिद्धि थी, ऐसा लोगोंमें प्रसिद्ध था ।
वे बोले कि तुम किसी भी अन्जान - से - अन्जान गॉवमें चले जाओ और तुम्हारे अन्दर केवल भूख सहनेकी शक्ति हो।
पेड़के नीचे बैठ जाओ या मन्दिरपर बैठ जाओ।
लेकिन भूख सहो...!
माँगो मत किसीसे-
अन्न मत माँगो...!
रोटी मत माँगो - एक दिन, दो दिन, तीन दिन, चार दिन-
फिर देखना उसी गाँवके लोग तुम्हारे लिए जिन्दगी भरको भोजनका बन्दोबस्त कर देंगे।
कि बाबाजी, तुम यहाँ रहो और तुमको रोटी मिल जायेगी।
और यदि तुम किसीके घर रोटी माँगनेको गये और दाल ठीक नहीं आयी...!
कि साग ठीक नहीं आया और तुमने चार गाली सुना दी।
तो गाँव वाले लोग क्या कहेंगे कि यह बाबाजी बड़े गुस्सावाला है भाई !
इससे जितनी जल्दी पिण्ड छूटे उतना ही अच्छा है।
यह चला जाये यहाँसे !
सहिष्णुतामें सिद्धि है-
बर्दाश्त करने में सिद्धि है...!
उबलनेमें, उफ़ननेमें सिद्धि नहीं है ।
यह जो तुम समझते हो कि हम लड़ाई करके अपना मत सिद्ध कर लेंगे।
वाद-विवाद करके हम अपना प्रयोजन सिद्ध कर लेंगे तो नहीं कर सकोगे ।
आप जिससे अपनी मैत्री बनाये रखना चाहते हैं।
जिसको अपने अनुकूल रखना चाहते हैं।
उसको वाद - विवादमें हरावें नहीं ।
यदि पत्नी चाहती है कि पति हमारे अनुकूल होवे तो वाद - विवादमें उसको हरावे नहीं;
पति यदि चाहता हो कि पत्नी हमारे अनुकूल रहे तो बात - बातमें उसको बेवकूफ सिद्ध न करे।
उसकी समझदारीका आदर करे ।
आपसमें मुस्कुरा करके बोले, एक-दूसरेके सद्भावका आदर करे तब न संगति चलेगी ।
दो मन हमेशा एक सरीखे नहीं हो सकते- कभी नहीं एक सरीखे हो सकते-
यदि एक मन दूसरे मनको सहकर चलनेको तैयार नहीं है तो संसारके व्यवहारमें कभी सफलता नहीं मिल सकती-
बेटेका सहना पड़ेगा...!
पति का सहना पड़ेगा...!
सास का सहना पड़ेगा....!
बाप का सहना पड़ेगा ।
इसी को बोलते हैं सहिष्णुता, धैर्य - मत्वा धीरो न शोचति।
धीर शब्दका अर्थ है...!
कि तुम हो ब्रह्म और तुम्हारे अन्दर यह प्रपञ्च है-
रज्जुमें अभ्यस्त सर्पकी तरह, मालाकी तरह, डंडेकी तरह;
तो जैसे रस्सी - कोई उसको सॉप कहे तो भी सह लेती है और माला कहे तो भो सह लेती है-
माला कहनेसे अभिमान नहीं करती कि मैं सुन्दर हूँ और सर्प कहनेसे विरोध करने नहीं जाती ।
रज्जु जितनी सहिष्णु है उतने सहिष्णु ब्रह्म तुम हो !
🌹🙏जय श्री राम सीताराम राम राम राम🙏🌹
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हिन्दू धार्मिक तीर्थ स्थानों के पण्डे
हिन्दू धार्मिक तीर्थ स्थानों के पण्डे –
क्या कभी आप जगन्नाथपुरी , द्वारका , हरिद्वार, काशी , वाराणसी , बद्रीनाथ या केदारनाथ आदि की यात्रा पर गए हैं???
यहां दक्षिण भारत के धार्मिक तीर्थ यात्रा स्थानों में थोड़ाक ले भागु बहार के इतर जाती के लोग ब्राह्मण पंडा लोगो को दान दक्षिणा पैसा के लिए परेशान करने लग गया तो दक्षिण भारत के ब्राह्मण पंडा लोग प्रत्युत्तर हरेक यात्री लोगो का पैठियो दर पैठियो का नामावली लिखने का काम ज्यादातर बहुत कम ही कर दिया है....
कि यात्री तो नाम लिखवाकर चला जाता है.....
बाद इत्तर जाती के लोकल लोग ब्राह्मण लोगो को बहुत परेशानी करने लग जाता है....
इस लोकल वालो के साथ लड़ाई झगड़े न ही करना पड़े तो यात्री को बुलाकर नामांकन करवाया जाए तो उसका साथ लड़ाई झगड़े करने लग जाता है....
लेकिन खास कोई अंगत यात्री पहेचान वाला सीधा पंडा ब्राह्मणों के पास आएगा उसका ही नामकरण होता है....
बाकी सब यात्री के लिए कोई ब्राह्मण अब नामकरण करके इत्तर जाती के लोगो का साथ लड़ाई झगड़े करने से खुश नही है.....
इस लिए इधर इत्तर जाती के लोग ज्यादा पंडा शब्दों का प्रयोग करने लग गया है....
लेकिन इधर तो पंडा मतलब ओरिझनल ब्राह्मण हो ऐसा जरूरी भी नही है....
लेकिन यात्री के पास दान पुण्य के पैसा पडवाने के लिए इत्तर जाती के लोगो ने पंडा शब्द प्रयोग करना शुरू कर दिया है...
जो यहां के ओरिझनल ब्राह्मण पंडा लोग अब ज्यादा यात्री के पास जाता भी नही है....
पूछताछ भी नही करता लेकिन इत्तर जाती के लोग ही यात्री का पास पंडा शब्द का प्रयोग करके यात्री लोगो का आगे पीछे घूमकर खुला लूट जरूर चलाते रहते है....
इधर दक्षिण भारत मे सब ब्राह्मणों को मालूम भी है कि ये लोग गलत कर रहा है...
लेकिन जीवन जोखम में कौन डालेगा ये इत्तर जाती के लोगो को लड़ाई झगड़े करना नॉर्मल आम छोटी सी बात है....
सब लोग भगवान के विश्वास पर दुशरा काम करता रहता है...
लेकिन ये नामकरण का काम तो बहुत कम ही कर दिया है.....
ये अब प्रथा आपको दक्षिण भारत के अलावा किसी भी तीर्थ स्थान पर दिखाई देगा वहां के पण्डे आपके आते ही आपके पास पहुँच कर आपसे सवाल करेंगे...
आप किस जगह से आये है??
मूल निवास?
आदि पूछेंगे और धीरे धीरे पूछते पूछते आपके दादा, परदादा ही नहीं बल्कि परदादा के परदादा से भी आगे की पीढ़ियों के नाम बता देंगे जिन्हें आपने कभी सुना भी नहीं होगा...
और ये सब उनकी सैंकड़ो सालों से चली आ रही किताबो में सुरक्षित है...
विश्वास कीजिये ये अदभुत विज्ञान और कला का संगम है...
आप रोमांचित हो जाते हैं जब वो आपके पूर्वजों तक का बहीखाता सामने रख देते हैं....
आपके पूर्वज कभी वहाँ आए थे और उन्होंने क्या क्या दान आदि किया....
लेकिन आजकल के शहरी इन सब बातों को फ़िज़ूल समझते हैं...
उन्हें लगता है कि ये पण्डे सिर्फ लूटने बैठे हैं जबकि ऐसा नहीं है....
यात्रा के दौरान एक व्यक्ति के पैसे चोरी हो गए थे या गिर गए थे वो बहुत घबरा गया कि घर कैसे जाएगा ।
कहाँ रहेगा खायेगा आदि, तो पण्डे ने तत्काल पूछा कितने पैसे चाहिए आपको??
और पण्डे जी ने ना सिर्फ पैसे दिए बल्कि रहने और खाने की व्यवस्था भी करवाई....
ये तीर्थो के पण्डे हमारी सभ्यता, संस्कृति के अटूट अंग हैं...
इनका अस्तित्व हमारे पर ही है...
अपनी संस्कृति बचाइए और इन्हें सम्मान दीजिये....
वैसे हिन्दुओ के नागरिकता रजिस्टर हैं ये लोग....
पीढ़ियों के डेटा इन्होंने मेहनत से बनाया और संजोया है....
इन्हें मान सम्मान दीजिये.....
जय श्री कृष्ण....!!!
पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:-
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science)
" Opp. Shri Dhanlakshmi Strits , Marwar Strits, RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
सेल नंबर: . + 91- 7010668409 WHATSAPP नंबर : + 91 7598240825 ( तमिलनाडु )
Skype : astrologer85
Web: https://sarswatijyotish.com/
Email: prabhurajyguru@gmail.com
आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद..
नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏