https://www.profitablecpmrate.com/gtfhp9z6u?key=af9a967ab51882fa8e8eec44994969ec 2. आध्यात्मिकता का नशा की संगत भाग 1: 12/16/22

।। श्री ऋगवेद और श्री शिव महापुराण के अनुसार शिवजी के अभिषेक सेवा पूजन से लक्ष्मी की प्राप्ति ।।

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश....
 

।। श्री ऋगवेद और श्री शिव महापुराण के अनुसार शिवजी के अभिषेक सेवा पूजन से लक्ष्मी की प्राप्ति ।।

श्री ऋगवेद और श्री शिव महापुराण के अनुसार शिवजी के अभिषेक सेवा पूजन से लक्ष्मी की प्राप्ति शिव अभिषेक में धान्य, बिल्व पत्र वृक्ष , सहित विशेष ,पंचपत्रबिल्व , दर्शनम्...? 


1. बिल्व वृक्ष के आसपास सांप नहीं आते ।

2. अगर किसी की शव यात्रा बिल्व वृक्ष की छाया से होकर गुजरे तो उसका मोक्ष हो जाता है ।

3. वायुमंडल में व्याप्त अशुध्दियों को सोखने की क्षमता सबसे ज्यादा बिल्व वृक्ष में होती है ।

4. चार पांच छः या सात पत्तो वाले बिल्व पत्रक पाने वाला परम भाग्यशाली और शिव को अर्पण करने से अनंत गुना फल मिलता है ।

5. बेल वृक्ष को काटने से वंश का नाश होता है। और बेल वृक्ष लगाने से वंश की वृद्धि होती है।

6. सुबह शाम बेल वृक्ष के दर्शन मात्र से पापो का नाश होता है।

7. बेल वृक्ष को सींचने से पितर तृप्त होते है।







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8. बेल वृक्ष और सफ़ेद आक् को जोड़े से लगाने पर अटूट लक्ष्मी की प्राप्ति होती है।

9. बेल पत्र और ताम्र धातु के एक विशेष प्रयोग से ऋषि मुनि स्वर्ण धातु का उत्पादन करते थे ।

10. जीवन में सिर्फ एक बार और वो भी यदि भूल से भी शिवलिंग पर बेल पत्र चढ़ा दिया हो तो भी उसके सारे पाप मुक्त हो जाते है ।

11. बेल वृक्ष का रोपण, पोषण और संवर्धन करने से महादेव से साक्षात्कार करने का अवश्य लाभ मिलता है।








कृपया बिल्व पत्र का पेड़ जरूर लगाये । 

बिल्व पत्र के लिए पेड़ को क्षति न पहुचाएं।

शिवजी की पूजा में ध्यान रखने योग्य बात:-

श्री ऋगवेद और श्री शिवपुराण के अनुसार भगवान शिव को कौन सी चीज़ चढाने से क्या फल मिलता है । 

किसी भी देवी - देवता का पूजन करते वक़्त उनको अनेक चीज़ें अर्पित की जाती है। 

प्रायः भगवन को अर्पित की जाने वाली हर चीज़ का फल अलग होता है। 

श्री शिव महापुराण में इस बात का वर्णन मिलता है कि भगवन शिव को अर्पित करने वाली अलग - अलग चीज़ों का क्या फल होता है।

श्री ऋगवेद और श्री शिव महापुराण के अनुसार जानिए कौन सा अनाज भगवान शिव को चढ़ाने से क्या फल मिलता है:

1. भगवान शिव को चावल चढ़ाने से धन की प्राप्ति होती है।

2. तिल चढ़ाने से पापों का नाश हो जाताहै।

3. जौ अर्पित करने से सुख में वृद्धि होती है।

4. गेहूं चढ़ाने से संतान वृद्धि होती है।

श्री ऋग्वेद और श्री शिव महापुराण के अनुसार जानिए भगवान शिव को कौन सा रस ( द्रव्य ) चढ़ाने से उसका क्या फल मिलता है।

1. ज्वर ( बुखार ) होने पर भगवान शिव को जलधारा चढ़ाने से शीघ्र लाभ मिलता है। 

सुख व संतान की वृद्धि के लिए भी जलधारा द्वारा शिव की पूजा उत्तम बताई गई है।

2. नपुंसक व्यक्ति अगर शुद्ध घी से भगवान शिव का अभिषेक करे ।

ब्राह्मणों को भोजन कराए तथा सोमवार का व्रत करे तो उसकी समस्या का निदान संभव है।

3. तेज दिमाग के लिए शक्कर मिश्रित दूध भगवान शिव को चढ़ाएं।

4. सुगंधित तेल से भगवान शिव का अभिषेक करने पर समृद्धि में वृद्धि होती है।

5. शिवलिंग पर ईख ( गन्ना ) का रस चढ़ाया जाए तो सभी आनंदों की प्राप्ति होती है।

6. शिव को गंगाजल चढ़ाने से भोग व मोक्ष दोनों की प्राप्ति होती है।

7. मधु ( शहद ) से भगवान शिव का अभिषेक करने से राजयक्ष्मा ( टीबी ) रोग में आराम मिलता है।

श्रीं ऋगवेद और श्री शिव महापुराण के अनुसार जानिए भगवान शिव को कौन का फूल चढ़ाया जाए तो उसका क्या फल मिलता है-

1. लाल व सफेद आंकड़े के फूल से भगवान शिव का पूजन करने पर भोग व मोक्ष की प्राप्ति होती है।

2. चमेली के फूल से पूजन करने पर वाहन सुख मिलता है।

3. अलसी के फूलों से शिव का पूजन करने से मनुष्य भगवान विष्णु को प्रिय होता है।

4. शमी पत्रों (पत्तों) से पूजन करने पर मोक्ष प्राप्त होता है।

5. बेला के फूल से पूजन करने पर सुंदर व सुशील पत्नी मिलती
है।

6. जूही के फूल से शिव का पूजन करें तो घर में कभी अन्न की कमी नहीं होती।

7. कनेर के फूलों से शिव पूजन करने से नए वस्त्र मिलते हैं।

8. हरसिंगार के फूलों से पूजन करने पर सुख-सम्पत्ति में वृद्धि होती है।

9. धतूरे के फूल से पूजन करने पर भगवान शंकर सुयोग्य पुत्र प्रदान करते हैं, जो कुल का नाम रोशनकरता है।

10. लाल डंठलवाला धतूरा पूजन में शुभ माना गया है।

11. दूर्वा से पूजन करने पर आयु बढ़ती है।




 
  



|| शिवजी के समुंद्र मंथन के बाद विष्णु के पैरों में क्यों रहती हैं महालक्ष्मी ||


हम सभी ने भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी के कई चित्र देखें हैं। 

अनेक चित्रों में भगवान विष्णु को बीच समुद्र में शेषनाग के ऊपर लेटे और माता लक्ष्मी को उनके चरण दबाते हुए दिखाया जाता है।

माता लक्ष्मी यूं तो धन की देवी हैं तो भी वे भगवान शिव के मंथन बाद विष्णु के चरणों में ही निवास करती हैं ऐसा क्यों? 

इसका कारण हैं कि भगवान शिव कड़ी मेहनत करने का प्रतीक है और विष्णु कर्म व पुरुषार्थ का प्रतीक हैं और माता लक्ष्मी उन्हीं के यहां निवास करती हैं ।

जो विपरीत परिस्थितियों में भी पीछे नहीं हटते और कर्म व अपने पुरुषार्थ के बल पर विजय प्राप्त करते हैं जैसे कि भगवान विष्णु।

हर व्यक्ति देवी लक्ष्मी की कृपा प्राप्त करने के लिए कई तरह के जतन करता है।

 जिसे धन प्राप्त नहीं होता वह भाग्य को दोष देता है। 

जो नियमित धार्मिक भावना से जन कल्याण की सेवा और सामान्य शिव अभिषेक पूजन करता है मन दिल और स्वभाव से ईमानदारी पूर्वक वर्तन और कड़ी मेहनत से कर्म करता है...! 

उससे धन की देवी लक्ष्मी सदैव प्रसन्न रहती हैं और सदैव पैसों की बारिश करती हैं। 

इसी वजह से कहा जाता है कि महालक्ष्मी व्यक्ति के भाग्य से नहीं कर्म से प्रसन्न होती हैं।

महालक्ष्मी सदैव भगवान विष्णु की सेवा में लगी रहती हैं ।

श्री ऋगवेद श्री शिव महापुराण और श्री विष्णु पुराण में कहा है कि जहां - जहां विष्णु और लक्ष्मी का उल्लेख आता है वहां लक्ष्मी श्री हरि के चरण दबाते हुए ही बताई गई हैं।

 विष्णु ने उन्हें अपने पुरुषार्थ के बल पर ही वश में कर रखा है। 

लक्ष्मी उन्हीं के वश में रहती है जो हमेशा सभी के कल्याण का भाव रखता हो।

 समय - समय पर भगवान विष्णु ने जगत के कल्याण के लिए जन्म लिए और देवता तथा मनुष्यों को सुखी किया। 

विष्णु का स्वभाव हर तरह की मोह - माया से परे है। 

वे दूसरों को मोह में डालने वाले हैं। 

समुद्र मंथन के समय उन्होंने देवताओं को अमृत पान कराने के लिए असुरों को मोहिनी रूप धारण करके सौंदर्य जाल में फंसाकर मोह में डाल दिया। 

मंथन के समय ही लक्ष्मी भी प्रकट हुईं। 

देवी लक्ष्मी को प्राप्त करने के लिए देवता और असुरों में घमासान लड़ाई हुई। 

भगवान विष्णु ने लक्ष्मी का वरण किया। 

लक्ष्मी का स्वभाव चंचल है, उन्हें एक स्थान पर रोक पाना असंभव है। 

फिर भी वे भगवान विष्णु के चरणों में ही रहती है।

जब भी अधर्म बढ़ता है तब - तब भगवान विष्णु अवतार लेकर अधर्मियों का नाश करते हैं और कर्म का महत्व दुनिया को समझाते हैं।

इसका सीधा - सा अर्थ यह है कि केवल भाग्य पर निर्भर रहने से लक्ष्मी ( पैसा ) नहीं मिलता।

धन के लिए कर्म करने की आवश्यकता पड़ती है ।

साथ ही हर विपरीत परिस्थिति से लड़ने का साहस भी आपने होना चाहिए। 

तभी लक्ष्मी आपके घर में निवास करेगी।

जो व्यक्ति लक्ष्मी के चंचल और मोह जाल में फंस जाता है लक्ष्मी उसे छोड़ देती है। 

जो व्यक्ति भाग्य को अधिक महत्व देता है और कर्म को तुच्छ समझता है, लक्ष्मी उसे छोड़ देती हैं। 

विष्णु के पास जो लक्ष्मी हैं वह धन और सम्पत्ति है। 

भगवान श्री हरि उसका उचित उपयोग जानते हैं। 

इसी वजह से महालक्ष्मी श्री विष्णु के पैरों में रहती हैं।

काशीक्षेत्रं शरीरं त्रिभुवनजननी व्यापिनी ज्ञानगङ्गा।
भक्तिः श्रद्धा गयेयं निजगुरुचरध्यानयोगः प्रयागः।।
विश्वेशोऽयं तुरीयः सकलजनमनः साक्षिभूतोऽन्तरात्मा।
देहे सर्वं मदीये यदि वसति पुनस्तीर्थमन्यत् किमस्ति।।

(काशीपञ्चक - ५)

अर्थात् : शरीर काशी क्षेत्र है, सर्वव्यापी ज्ञान त्रिभुवन जननी गंगा है...! 

भक्ति और श्रद्धा ही गया है....! 

अपने गुरु - चरणों का ध्यान योग प्रयाग है, विश्वनाथ तुरीय, सकल गंगा के मन में साक्षीभूत अंतरात्मा है....! 

यदि मेरे देह में ये सभी बसते हैं तो फिर अन्य तीर्थ और कौनसे हो सकते हैं ? 

((((( बुद्धिमान कौन  ))))

एक गाँव में एक व्यापारी रहता था, उसकी ख्याति दूर दूर तक फैली थी। 

एक बार वहाँ के राजा ने उसे चर्चा पर बुलाया। 

काफी देर चर्चा के बाद राजा ने कहा – 

“महाशय, आप बहुत बड़े सेठ है, इतना बड़ा कारोबार है पर आपका लड़का इतना मूर्ख क्यों है ? 

उसे भी कुछ सिखायें। 

उसे तो सोने चांदी में मूल्यवान क्या है यह भी नहीं पता॥” 

यह कहकर राजा जोर से हंस पड़ा..!
 
व्यापारी को बुरा लगा, वह घर गया व लड़के से पूछा “सोना व चांदी में अधिक मूल्यवान क्या है ?” 

“सोना”, बिना एक पल भी गंवाए उसके लड़के ने कहा।

“तुम्हारा उत्तर तो ठीक है, फिर राजा ने ऐसा क्यूं कहा-? 

सभी के बीच मेरी खिल्ली भी उड़ाई।” 

लड़के के समझ मे आ गया, वह बोला “राजा गाँव के पास एक खुला दरबार लगाते हैं...! 

जिसमें सभी प्रतिष्ठित व्यक्ति  शामिल होते हैं। यह दरबार मेरे स्कूल जाने के मार्ग मे ही पड़ता है। 

मुझे देखते ही बुलवा लेते हैं...! 

अपने एक हाथ में सोने का व दूसरे में चांदी का सिक्का रखकर, जो अधिक मूल्यवान है वह ले लेने को कहते हैं...!

और मैं चांदी का सिक्का ले लेता हूं। 

सभी ठहाका लगाकर हंसते हैं व मज़ा लेते हैं। 

ऐसा तक़रीबन हर दूसरे दिन होता है।” 

“फिर तुम सोने का सिक्का क्यों नहीं उठाते, चार लोगों के बीच अपनी फजिहत कराते हो व साथ मे मेरी भी❓”

लड़का हंसा व हाथ पकड़कर पिता को अंदर ले गया और कपाट से एक पेटी निकालकर दिखाई जो चांदी के सिक्कों से भरी हुई थी। 

यह देख व्यापारी हतप्रभ रह गया। 

लड़का बोला “जिस दिन मैंने सोने का सिक्का उठा लिया उस दिन से यह खेल बंद हो जाएगा। 

वो मुझे मूर्ख समझकर मज़ा लेते हैं तो लेने दें, यदि मैं बुद्धिमानी दिखाउंगा तो कुछ नहीं मिलेगा।”

बनिये का बेटा हुं अक़्ल से काम लेता हूँ...! 

मूर्ख होना अलग बात है व समझा जाना अलग....! 

स्वर्णिम मॊके का फायदा उठाने से बेहतर है, हर मॊके को स्वर्ण में तब्दील करना। 

जैसे समुद्र सबके लिए समान होता है, कुछ लोग पानी के अंदर टहलकर आ जाते हैं, कुछ मछलियाँ ढूंढ पकड़ लाते हैं....! 

व कुछ मोती चुन कर आते हैं।

|| श्रीं लक्ष्मी नारायण भगवान की जय हो ||
पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 
सेल नंबर: . + 91- 7010668409 / + 91- 7598240825 WHATSAPP नंबर : + 91 7598240825 ( तमिलनाडु )
Skype : astrologer85
Web: https://sarswatijyotish.com
आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद.. 
नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏

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