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जय द्वारकाधीश
।। करवा चौथ की पूजन और कथा / में कौन हूं.... ।।
।। श्री विष्णुपुराण प्रवचन ।।
*इन चीजों के बिना अधूरी है करवा चौथ की पूजन और कथा
करवा चौथ
करवा चौथ दो शब्दों से मिलकर बना है,'करवा' यानि कि मिट्टी का बर्तन व 'चौथ' यानि गणेशजी की प्रिय तिथि चतुर्थी।
प्रेम,त्याग व विश्वास के इस अनोखे महापर्व पर मिट्टी के बर्तन यानि करवे की पूजा का विशेष महत्व है,जिससे रात्रि में चंद्रदेव को जल अर्पण किया जाता है ।
करवा चौथ'....
ये एक ऐसा दिन है जिसका सभी विवाहित स्त्रियां साल भर इंतजार करती हैं और इसकी सभी विधियों को बड़े श्रद्धा-भाव से पूरा करती हैं. करवाचौथ का त्योहार पति-पत्नी के मजबूत रिश्ते, प्यार और विश्वास का प्रतीक है. ( आश्विन ) कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को करवा चौथ का व्रत किया जाता है ।
( आश्विन ) कार्तिक मास की चतुर्थी जिस रात रहती है उसी दिन करवा चौथ का व्रत किया जाता है।
करवा चौथ के त्योहार में पूजापाठ की बहुत ही अहम भूमिका होती है।
महिलाएं सारे दिन निर्जला व्रत रखकर शाम को समूह में पूजा करती हैं।
करवा चौथ की पूजा सामान्य तौर पर अकेले नहीं की जाती है।
हालांकि आज के दौर में कई बार महिलाएं परिवार से दूर रहती हैं तो उन्हें अकेले ही पूजा करनी पड़ती है।
ऐसे में यदि पति भी पूजा में पत्नी के साथ शामिल हों तो यह बहुत ही अच्छा माना जाता है और दोनों के रिश्ते में भी मजबूती आती है।
करवाचौथ की पूजा में इन चीजों का बहुत महत्व होता है।
आइए जानते हैं इनके बारे में…
१ ) : - सींक: मां करवा की शक्ति का प्रतीक
करवाचौथ के व्रत की पूजा में कथा सुनते समय और पूजा करते समय सींक जरूर रखें।
ये सींक मां करवा की उस शक्ति का प्रतीक हैं, जिसके बल पर उन्होंने यमराज के सहयोगी भगवान चित्रगुप्त के खाते के पन्नों को उड़ा दिया था।
( २ ) : - करवा का महत्व
माता का नाम करवा था।
साथ ही यह करवा उस नदी का प्रतीक है, जिसमें मां करवा के पति का पैर मगरमच्छ ने पकड़ लिया था।
आज कल बाजार में पूजा के लिए आपको बेहर खूबसूरत करवे मिल जाते हैं।
( ३ ) : - करवा माता की तस्वीर
करवा माता की तस्वीर अन्य देवियों की तुलना में बहुत अलग होती है।
इनकी तस्वीर में ही भारतीय पुरातन संस्कृति और जीवन की झलक मिलती है।
चंद्रमा और सूरज की उपस्थिति उनके महत्व का वर्णन करती है।
( ४ ) : - दीपक के बिना पूजा नहीं होती पूरी
हिंदू धर्म में कोई भी पूजा दीपक के बिना पूरी नहीं होती।
इस लिए भी दीपक जरूरी है क्योंकि यह हमारे ध्यान को केंद्रित कर एकाग्रता बढ़ाता है।
साथ ही इस पूजा में दीपक की लौ, जीवन ज्योति का प्रतीक होती है।
( ५ ) : - छलनी है पति को देखने को लिए
व्रत की पूजा के बाद महिलाएं छलनी से अपने पति का चेहरा देखती हैं।
इसका कारण करवा चौथ में सुनाई जानेवाली वीरवती की कथा से जुड़ा है।
जैसे, अपनी बहन के प्रेम में वीरवती के भाइयों ने छलनी से चांद का प्रतिविंब बनाया था और उसके पति के जीवन पर संकट आ गया था, वैसे कभी कोई हमें छल न सके।
( ६ ) : - लोटे का यह है अर्थ
चंद्रदेव को अर्घ्य देने के लिए जरूरी होता है लोटा।
पूजा के दौरान लोटे में जल भरकर रखते हैं।
यह जल चंद्रमा को हमारे भाव समर्पित करने का एक माध्यम है।
वैसे भी हर पूजा में कलश को गणेशजी के रूप में स्थापित किया जाता है।
( ७ ) : - थाली है शुभ
पूजा की सामग्री, दीये, फल और जल से भरा लोटा रखने के लिए जरूरी होती है एक थाली की।
इसी में दीपक रखकर मां करवा की आरती उतारते हैं।
सच्चे मन से माता से आशीर्वाद मांगें।
करवा चौथ व्रत के नियम
महिलाएं सुबह सूर्योदय के बाद पूरे दिन भूखी-प्यासी रहती हैं. दिन में शिव, पार्वती और कार्तिक की पूजा की जाती है ।
शाम को देवी की पूजा होती है ।
जिसमें पति की लंबी उम्र की कामना की जाती है ।
चंद्रमा दिखने पर महिलाएं छलनी से पति और चंद्रमा की छवि देखती हैं. पति इसके बाद पत्नी को पानी पिलाकर व्रत तुड़वाते हैं।
करवा चौथ में सोलह श्रृंगार
इस दिन महिलाएं सोलह श्रृंगार करती हैं।
सोलह श्रृंगार में माथे पर लंबी सिंदूर अवश्य हो क्योंकि यह पति की लंबी उम्र का प्रतीक है।
सिन्दूर,मंगलसूत्र, मांग टीका, बिंदिया ,काजल, नथनी, कर्णफूल, मेहंदी, कंगन, लाल रंग की चुनरी, बिछिया, पायल, कमरबंद, अंगूठी, बाजूबंद और गजरा ये 16 श्रृंगार में आते हैं।
करवा चौथ व्रत विधि
व्रत के दिन प्रातः स्नानादि करने के पश्चात यह संकल्प बोलकर करवा चौथ व्रत का आरंभ करें-
"मम सुख सौभाग्य पुत्रपौत्रादि सुस्थिर श्री प्राप्तये करक चतुर्थी व्रतमहं करिष्ये।''
* दीवार पर गेरू से फलक बनाकर पिसे चावलों के घोल से करवा चित्रित करें।
इसे वर कहते हैं।
चित्रित करने की कला को करवा धरना कहा जाता है।
* आठ पूरियों की अठावरी बनाएं।
हलुआ बनाएं।
पक्के पकवान बनाएं।
* पीली मिट्टी से गौरी बनाएं और उनकी गोद में गणेशजी बनाकर बिठाएं।
* गौरी को लकड़ी के आसन पर बिठाएं।
चौक बनाकर आसन को उस पर रखें।
गौरी को चुनरी ओढ़ाएं।
बिंदी आदि सुहाग सामग्री से गौरी का श्रृंगार करें।
* जल से भरा हुआ लोटा रखें।
* वायना ( भेंट ) देने के लिए मिट्टी का टोंटीदार करवा लें।
करवा में गेहूं और ढक्कन में शक्कर का बूरा भर दें।
उसके ऊपर दक्षिणा रखें।
* रोली से करवा पर स्वस्तिक बनाएं।
* गौरी - गणेश और चित्रित करवा की परंपरानुसार पूजा करें।
पति की दीर्घायु की कामना करें।
"नमः शिवायै शर्वाण्यै सौभाग्यं संतति शुभाम्।
प्रयच्छ भक्तियुक्तानां नारीणां हरवल्लभे॥'
* करवा पर 13 बिंदी रखें और गेहूं या चावल के 13 दाने हाथ में लेकर करवा चौथ की कथा कहें या सुनें।
* कथा सुनने के बाद अपनी सासुजी के पैर छूकर आशीर्वाद लें और करवा उन्हें दे दें।
* तेरह दाने गेहूं के और पानी का लोटा या टोंटीदार करवा अलग रख लें।
* रात्रि में चन्द्रमा निकलने के बाद छलनी की ओट से उसे देखें और चन्द्रमा को अर्घ्य दें।
* इसके बाद पति से आशीर्वाद लें।
उन्हें भोजन कराएं और स्वयं भी भोजन कर लें।
बाकी व्रत रखने की सबकी आपनी-अपनी
परम्परायें और विधि है ।
आप अपनी कुल परम्परा के अनुसार पूजा करें I
जब चंद्र को अर्घ्य दें तो यह मंत्र बोलें....
"करकं क्षीरसंपूर्णा तोयपूर्णमयापि वा।
ददामि रत्नसंयुक्तं चिरंजीवतु मे पतिः॥"
।। ॐ_सोम_सोमाय_नम:॥"
करवा चौथ व्रत कथा
बहुत समय पहले इन्द्रप्रस्थपुर के एक शहर में वेदशर्मा नाम का एक ब्राह्मण रहता था।
वेदशर्मा का विवाह लीलावती से हुआ था जिससे उसके सात महान पुत्र और वीरावती नाम की एक गुणवान पुत्री थी।
क्योंकि सात भाईयों की वीरावती केवल एक अकेली बहन थी जिसके कारण वह अपने माता-पिता के साथ-साथ अपने भाईयों की भी लाड़ली थी।
जब वह विवाह के लायक हो गयी तब उसकी शादी एक उचित ब्राह्मण युवक से हुई।
शादी के बाद वीरावती जब अपने माता-पिता के यहाँ थी तब उसने अपनी भाभियों के साथ पति की लम्बी आयु के लिए करवा चौथ का व्रत रखा।
करवा चौथ के व्रत के दौरान वीरावती को भूख सहन नहीं हुई और कमजोरी के कारण वह मूर्छित होकर जमीन पर गिर गई।
सभी भाईयों से उनकी प्यारी बहन की दयनीय स्थिति सहन नहीं हो पा रही थी।
वे जानते थे वीरावती जो कि एक पतिव्रता नारी है चन्द्रमा के दर्शन किये बिना भोजन ग्रहण नहीं करेगी चाहे उसके प्राण ही क्यों ना निकल जायें।
सभी भाईयों ने मिलकर एक योजना बनाई जिससे उनकी बहन भोजन ग्रहण कर ले।
उनमें से एक भाई कुछ दूर वट के वृक्ष पर हाथ में छलनी और दीपक लेकर चढ़ गया।
जब वीरावती मूर्छित अवस्था से जागी तो उसके बाकी सभी भाईयों ने उससे कहा कि चन्द्रोदय हो गया है और उसे छत पर चन्द्रमा के दर्शन कराने ले आये।
वीरावती ने कुछ दूर वट के वृक्ष पर छलनी के पीछे दीपक को देख विश्वास कर लिया कि चन्द्रमा वृक्ष के पीछे निकल आया है।
अपनी भूख से व्याकुल वीरावती ने शीघ्र ही दीपक को चन्द्रमा समझ अर्घ अर्पण कर अपने व्रत को तोड़ा।
वीरावती ने जब भोजन करना प्रारम्भ किया तो उसे अशुभ संकेत मिलने लगे।
पहले कौर में उसे बाल मिला, दुसरें में उसे छींक आई और तीसरे कौर में उसे अपने ससुराल वालों से निमंत्रण मिला।
पहली बार अपने ससुराल पहुँचने के बाद उसने अपने पति के मृत शरीर को पाया।
अपने पति के मृत शरीर को देखकर वीरावती रोने लगी और करवा चौथ के व्रत के दौरान अपनी किसी भूल के लिए खुद को दोषी ठहराने लगी।
वह विलाप करने लगी।
उसका विलाप सुनकर देवी इन्द्राणी जो कि इन्द्र देवता की पत्नी है ।
वीरावती को सान्त्वना देने के लिए पहुँची।
वीरावती ने देवी इन्द्राणी से पूछा कि करवा चौथ के दिन ही उसके पति की मृत्यु क्यों हुई ।
और अपने पति को जीवित करने की वह देवी इन्द्राणी से विनती करने लगी।
वीरावती का दुःख देखकर देवी इन्द्राणी ने उससे कहा कि उसने चन्द्रमा को अर्घ अर्पण किये बिना ही व्रत को तोड़ा था ।
जिसके कारण उसके पति की असामयिक मृत्यु हो गई।
देवी इन्द्राणी ने वीरावती को करवा चौथ के व्रत के साथ - साथ पूरे साल में हर माह की चौथ को व्रत करने की सलाह दी ।
और उसे आश्वासित किया कि ऐसा करने से उसका पति जीवित लौट आएगा।
इसके बाद वीरावती सभी धार्मिक कृत्यों और मासिक उपवास को पूरे विश्वास के साथ करती।
अन्त में उन सभी व्रतों से मिले पुण्य के कारण वीरावती को उसका पति पुनः प्राप्त हो गया।
🙏🌹जय माँ अंबे 🌹🙏
।। मैं कौन हूँ... ।।
एक था भिखारी !
रेल सफ़र में भीख़ माँगने के दौरान एक सूट बूट पहने सेठ जी उसे दिखे।
उसने सोचा कि यह व्यक्ति बहुत अमीर लगता है, इससे भीख़ माँगने पर यह मुझे जरूर अच्छे पैसे देगा।
वह उस सेठ से भीख़ माँगने लगा।
भिख़ारी को देखकर उस सेठ ने कहा.....!
“ तुम हमेशा मांगते ही हो, क्या कभी किसी को कुछ देते भी हो? ”
भिख़ारी बोला, “ साहब मैं तो भिख़ारी हूँ, हमेशा लोगों से मांगता ही रहता हूँ, मेरी इतनी औकात कहाँ कि किसी को कुछ दे सकूँ? ”
सेठ:- जब किसी को कुछ दे नहीं सकते तो तुम्हें मांगने का भी कोई हक़ नहीं है।
मैं एक व्यापारी हूँ और लेन - देन में ही विश्वास करता हूँ, अगर तुम्हारे पास मुझे कुछ देने को हो तभी मैं तुम्हे बदले में कुछ दे सकता हूँ।
तभी वह स्टेशन आ गया जहाँ पर उस सेठ को उतरना था, वह ट्रेन से उतरा और चला गया।
इधर भिख़ारी सेठ की कही गई बात के बारे में सोचने लगा।
सेठ के द्वारा कही गयीं बात उस भिख़ारी के दिल में उतर गई।
वह सोचने लगा कि शायद मुझे भीख में अधिक पैसा इसी लिए नहीं मिलता क्योकि मैं उसके बदले में किसी को कुछ दे नहीं पाता हूँ।
लेकिन मैं तो भिखारी हूँ, किसी को कुछ देने लायक भी नहीं हूँ।
लेकिन कब तक मैं लोगों को बिना कुछ दिए केवल मांगता ही रहूँगा।
बहुत सोचने के बाद भिख़ारी ने निर्णय किया कि जो भी व्यक्ति उसे भीख देगा तो उसके बदले मे वह भी उस व्यक्ति को कुछ जरूर देगा।
लेकिन अब उसके दिमाग में यह प्रश्न चल रहा था कि वह खुद भिख़ारी है तो भीख के बदले में वह दूसरों को क्या दे सकता है?
इस बात को सोचते हुए दिनभर गुजरा लेकिन उसे अपने प्रश्न का कोई उत्तर नहीं मिला।
दूसरे दिन जब वह स्टेशन के पास बैठा हुआ था तभी उसकी नजर कुछ फूलों पर पड़ी जो स्टेशन के आस - पास के पौधों पर खिल रहे थे, उसने सोचा, क्यों न मैं लोगों को भीख़ के बदले कुछ फूल दे दिया करूँ।
उसको अपना यह विचार अच्छा लगा और उसने वहां से कुछ फूल तोड़ लिए।
वह ट्रेन में भीख मांगने पहुंचा। जब भी कोई उसे भीख देता तो उसके बदले में वह भीख देने वाले को कुछ फूल दे देता।
उन फूलों को लोग खुश होकर अपने पास रख लेते थे।
अब भिख़ारी रोज फूल तोड़ता और भीख के बदले में उन फूलों को लोगों में बांट देता था।
कुछ ही दिनों में उसने महसूस किया कि अब उसे बहुत अधिक लोग भीख देने लगे हैं।
वह स्टेशन के पास के सभी फूलों को तोड़ लाता था।
जब तक उसके पास फूल रहते थे तब तक उसे बहुत से लोग भीख देते थे।
लेकिन जब फूल बांटते बांटते ख़त्म हो जाते तो उसे भीख भी नहीं मिलती थी,अब रोज ऐसा ही चलता रहा।
एक दिन जब वह भीख मांग रहा था तो उसने देखा कि वही सेठ ट्रेन में बैठे है जिसकी वजह से उसे भीख के बदले फूल देने की प्रेरणा मिली थी।
वह तुरंत उस व्यक्ति के पास पहुंच गया और भीख मांगते हुए बोला, आज मेरे पास आपको देने के लिए कुछ फूल हैं, आप मुझे भीख दीजिये बदले में मैं आपको कुछ फूल दूंगा।
सेठ ने उसे भीख के रूप में कुछ पैसे दे दिए और भिख़ारी ने कुछ फूल उसे दे दिए।
उस सेठ को यह बात बहुत पसंद आयी।
सेठ:- वाह क्या बात है..?
आज तुम भी मेरी तरह एक व्यापारी बन गए हो, इतना कहकर फूल लेकर वह सेठ स्टेशन पर उतर गया।
लेकिन उस सेठ द्वारा कही गई बात एक बार फिर से उस भिख़ारी के दिल में उतर गई। वह बार - बार उस सेठ के द्वारा कही गई बात के बारे में सोचने लगा और बहुत खुश होने लगा।
उसकी आँखे अब चमकने लगीं, उसे लगने लगा कि अब उसके हाथ सफलता की वह चाबी लग गई है जिसके द्वारा वह अपने जीवन को बदल सकता है।
वह तुरंत ट्रेन से नीचे उतरा और उत्साहित होकर बहुत तेज आवाज में ऊपर आसमान की ओर देखकर बोला, “मैं भिखारी नहीं हूँ, मैं तो एक व्यापारी हूँ..!
मैं भी उस सेठ जैसा बन सकता हूँ..!
मैं भी अमीर बन सकता हूँ!
लोगों ने उसे देखा तो सोचा कि शायद यह भिख़ारी पागल हो गया है, अगले दिन से वह भिख़ारी उस स्टेशन पर फिर कभी नहीं दिखा।
एक वर्ष बाद इसी स्टेशन पर दो व्यक्ति सूट बूट पहने हुए यात्रा कर रहे थे।
दोनों ने एक दूसरे को देखा तो उनमे से एक ने दूसरे को हाथ जोड़कर प्रणाम किया और कहा....!
“ क्या आपने मुझे पहचाना?”
सेठ:- “नहीं तो ! शायद हम लोग पहली बार मिल रहे हैं।
भिखारी:- सेठ जी.. आप याद कीजिए, हम पहली बार नहीं बल्कि तीसरी बार मिल रहे हैं।
सेठ:- मुझे याद नहीं आ रहा, वैसे हम पहले दो बार कब मिले थे?
अब पहला व्यक्ति मुस्कुराया और बोला:
हम पहले भी दो बार इसी ट्रेन में मिले थे, मैं वही भिख़ारी हूँ जिसको आपने पहली मुलाकात में बताया कि मुझे जीवन में क्या करना चाहिए और दूसरी मुलाकात में बताया कि मैं वास्तव में कौन हूँ।
नतीजा यह निकला कि आज मैं फूलों का एक बहुत बड़ा व्यापारी हूँ और इसी व्यापार के काम से दूसरे शहर जा रहा हूँ।
आपने मुझे पहली मुलाकात में प्रकृति का नियम बताया था...!
जिसके अनुसार हमें तभी कुछ मिलता है, जब हम कुछ देते हैं।
लेन देन का यह नियम वास्तव में काम करता है, मैंने यह बहुत अच्छी तरह महसूस किया है, लेकिन मैं खुद को हमेशा भिख़ारी ही समझता रहा, इससे ऊपर उठकर मैंने कभी सोचा ही नहीं था और जब आपसे मेरी दूसरी मुलाकात हुई तब आपने मुझे बताया कि मैं एक व्यापारी बन चुका हूँ।
अब मैं समझ चुका था कि मैं वास्तव में एक भिखारी नहीं बल्कि व्यापारी बन चुका हूँ।
भारतीय मनीषियों ने संभवतः इसीलिए स्वयं को जानने पर सबसे अधिक जोर दिया और फिर कहा -
सोऽहं
शिवोहम !!
समझ की ही तो बात है...
भिखारी ने स्वयं को जब तक भिखारी समझा, वह भिखारी रहा |
उसने स्वयं को व्यापारी मान लिया, व्यापारी बन गया |
जिस दिन हम समझ लेंगे कि मैं कौन हूँ...
अर्थात मैं भगवान का अंश हूॅ।
फिर जानने समझने को रह ही क्या जाएगा ?
जयहिंद जयगुरूदेव ।
पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:-
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science)
" Opp. Shri Dhanlakshmi Strits , Marwar Strits, RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
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नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏