https://www.profitablecpmrate.com/gtfhp9z6u?key=af9a967ab51882fa8e8eec44994969ec 2. आध्यात्मिकता का नशा की संगत भाग 1: ।। श्रीरामचरित्रमानस प्रर्वचन / जीवन का रहस्य ।।

।। श्रीरामचरित्रमानस प्रर्वचन / जीवन का रहस्य ।।

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

।।  श्रीरामचरित्रमानस प्रर्वचन  / जीवन का रहस्य ।।

*🌷।। श्रीरामचरित्रमानस प्रर्वचन ।। 🌷*

सारे शास्त्रों की मान्यता है कि ईश्वर सर्वव्यापक है , सर्वत्र विद्यमान है । 



यद्यपि यह व्याख्या तत्त्वतः सत्य भले ही हो पर इससे व्यक्ति के अन्तःकरण की समस्याओं का समाधान नहीं होता है । 

यह प्रश्न गोस्वामीजी रामकथा के प्रारम्भ में करते हुए कहते हैं कि ―


*अस प्रभु हृदय अछत अबिकारी।*

*सकल जीव जग दीन दुखारी।।* 


ऐसा ईश्वर जो प्रत्येक व्यक्ति के अन्तःकरण में अविकारी के रूप में विद्यमान है , उसके रहते हुए भी व्यक्ति की दीनता और दरिद्रता में कोई अन्तर दिखायी नहीं देता है । 


इसका समाधान देते हुए गोस्वामीजी ने नाम - वन्दना प्रसंग में रत्न का दृष्टान्त दिया ।


 उन्होंने कहा कि केवल होना ही यथेष्ट नहीं है , अपितु उसे प्रकट करने से ही वह उपयोगी होगा ।


 तुलसीदासजी का वाक्य यही है कि ―


*सोउ प्रगटत जिमि मोल रतन तें।* 


रत्न आपके पास हो या मार्ग में कहीं पड़ा हुआ मिल जाय पर अगर आपको यह लग रहा हो कि ' यह एक काँच का टुकड़ा है और उसे खिलौना या शोभा के रूप में रख लें , तो रत्न पास होने पर भी उसके द्वारा आप उपयुक्त सुख प्राप्त नहीं कर सकते हैं । 

इस लिये आवश्यकता इस बात की है कि कोई रत्न - पारखी जौहरी मिले जो यह बता सके कि यह काँच का टुकड़ा नहीं बल्कि कीमती रत्न है । 

तब आप उसका अन्तर देखेंगे । 

यद्यपि वही रत्न पहले भी था पर ज्ञान के अभाव में उस समय व्यक्ति को उसमें किसी विशेष प्रकार के आनन्द की अनुभूति नहीं हो रही थी और ज्ञान होते ही हमारे जीवन में प्रसन्नता परिलक्षित होने लगी ।

पर समस्या एक यह भी है कि ' क्या केवल ज्ञान से ही समाधान हो जायगा ? 

क्योंकि हो सकता है , उस रत्न का मूल्य लाखों में हो , पर यदि वह व्यक्ति भूखा है तो उसे यह सोचकर भूख  से छुटकारा नहीं मिलेगा कि ' इस रत्न का मूल्य लाख रुपये है । '

 रत्न पास होने पर भी ठण्ड लगने पर न तो उसके शीत का निवारण होगा , न भूख मिटेगी और न दरिद्रता ही मिटेगी ।

*******शेष कल********

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🌺👏🌺जय सियाराम🌺👏🌺

।। जीवन का रहस्य ।।


यह संसार एक झूठ का बहुत बड़ा खेल है। 

इस संसार की सारी की सारी लीला हर मानव आत्मा को यहां फंसा कर रखने के उद्देश्य से रची गई है। 

कहीं यह मानव की आत्मा सच्चे परमात्मा की तरफ़ ना लग जाए। 

इस लिए यह शरीर के प्रलोभन बनाए गए हैं। 

ताकि मानव शरीर की आत्मा इन सभी बातों में फंसी रहे। 

क्योंकि सिर्फ मानव शरीर की आत्मा को परमात्मा से मिलने का , परमात्मा के द्वारा ही बनाया गया नियम है। 

यह ताकत या सुविधा देवताओं को भी नही है। 

हालांकि उनके पास मानव शरीर से ज्यादा उम्र और रिद्धि - सिद्धि होती हैं। 

चौरासी लाख योनियों में से निकल कर जब आत्मा मानव शरीर में आती है तो साथ में किसी जगह से इस के साथ मन जुड़ जाता है। 

इस मन का मानव शरीर में आने का सिर्फ एक ही उद्देश्य है और वह है आत्मा को परमात्मा की तरफ़ जाने से रोकना ताकि जीव कर्मों के चक्कर में हमेशा फंसा रहे। 

अब इन कर्मों के कारण हर मानव को अलग अलग कर्मो का सामना करना पड़ता है। 

उन कर्मों के कारण हर आदमी अलग अलग हालात को देखते हुए जीता है। 

घर में एक आत्मा को मानव शरीर मिलता है 



तो हम सभी यह सोचते हैं कि यह मेरा है परन्तु इस दुनिया में कोई भी हमारा नही होता है। 

वह आत्मा अपने कर्मो के कारण एक मानव शरीर धारण करके हमारे साथ घर में या नजदीक में जन्म लेती है। 

हम समझते हैं कि यह मेरा है। 

जबकि जीव अपने और हमारे कर्मो के कारण हम सभी के साथ जुड़ता है। 

यही रिश्ता मेरा मेरे माता-पिता, भाई बहन, जीवन साथी और बच्चों से होता है। 

हर जीव अपने कर्मो के अनुसार हमारे साथ रहता है। 

हम इस सफर में अपने मन की चाल बाज़ी के कारण इन सभी जीवों को अपने से जोड़ते जाते हैं। 

जबकि कोई भी सच्चा जोड़ होता नही है। 

अब इन सभी चीजों को हम अपना समझते जाते हैं और सच्चाई की बात यह है कि हम सभी एक - दूसरे से कर्मों के कारण मिलते हैं। 

कोई भी रिश्ता permanent नही है। 

यह सभी कुछ एक दिन हम से संपर्क तोड़ कर अपने अगले सफ़र पर चले जाते हैं।  

हम भी ऐसे ही जायेंगे। 

अब हम मानव जिस के साथ जुड़ते हैं उसको अपना मानते हैं। 

जब यह सम्बन्ध जो सच्चाई में कभी नहीं था परन्तु मैं उसको इस तरह देखते लगता हूं और जब यह सम्बन्ध किसी एक का सफ़र ख़त्म होने पर टूटता है तब मुझे अपना निजी नुकसान लगता है, परन्तु हर मानव अपना सफर पूरा करने के बाद यहां से चला जाता है। 

यह जो हमारी सोच है यह हमें सच्चाई को समझने नही देती है। 

उसके ऊपर मन एक बहुत बड़ी ताकत अन्दर बैठा है। 

सच्चे संत महात्मा हमें कभी यह नहीं कहते कि मेरे पीछे चलो। 

वे हमेशा यह कहते हैं भाई तेरा बहुत बड़ा नुक़सान हो रहा है। 

तू इस रंगमंच में फंसकर अपना बहुत ही ज्यादा कीमती समय गलत दिशा में लगा रहा है। 

यह संदेश संत हमें धीरे धीरे अपने सत्संग में बताते हैं, की भक्ति करनी है तो अपने शरीर के अंदर जाने का रास्ता किसी भी पूर्ण मुर्शिद से जा कर सीख और उस रास्ते पर तरक्की कर और अपने कर्मो को एक ऊंचे स्थान या मंडल पर पहुंच कर साफ़ कर तब तेरी जन्म और मृत्यु से जान छूटे गी। 

नही तो चौरासी लाख योनियों और नरक तैयार हैं भाई। 

यही बात Lord Jesus Christ ने बताई, पंजाब में से गुरुओं ने बताई, हिन्दू व मुस्लिम संत महात्माओं ने बताई परन्तु हम समझने के लिए तैयार नही है। 

हम तो उनके जाने के बाद उनकी शिक्षा को बाहर के रहने सहन से जोड़ कर अलग अलग धर्म पैदा करने लग जाते हैं। 

सच्चाई की शिक्षा भूल जाते हैं। 

गुरु अर्जुन देव जी महाराज जी पंजाब के संतों में पांचवें स्थान पर गुरु गद्दी पर बैठे थे। 

साफ़ साफ़ कहा है कि, लाख चौरासी योन बनाई, मानव को प्रभु ने दी बड़ाई। 

इस पौड़ी से जो नर चूकें, फिर आवें जावें दुःख पायेंगा।।  

बड़ाई मतलब इजाजत, आवें जावें मतलब चौरासी लाख योनियों में जन्म और मृत्यु का आना जाना।। 

परमात्मा की भक्ति में कोई खास लिबास नही चाहिए, सिर्फ मानव शरीर चाहिए, इच्छा चाहिए ( यह भी बहुत जरूरी है ) और पूर्ण मुर्शिद या सतगुरु चाहिए। 

जो कबीर साहब, गुरु नानक देव महाराज जी,  और सभी महात्माओं के बताये हुए रास्ते का रहस्य समझा सके। 

पंडित, मौलवी, पादरी और गुरुद्वारों के पाईं संतों की वाणी की व्याख्या नहीं कर सकते हैं जी।। 

जितनी मर्जी कथाएं या कहानियां सुन लो जी, कोई लाभ नही होगा जी। 

जब तक खुद नही पाया मुक्त्ति नही होगी जी।  

संत महात्मा ही सही राह बता सकते हैं जी।। आदर सहित।।  🙏जय मुरलीधर🙏जय गोपाला🙏
पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 
" Opp. Shri Dhanlakshmi Strits , Marwar Strits, RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
सेल नंबर: . + 91- 7010668409 / + 91- 7598240825 WHATSAPP नंबर : + 91 7598240825 ( तमिलनाडु )
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आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद.. 
नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏

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