https://www.profitablecpmrate.com/gtfhp9z6u?key=af9a967ab51882fa8e8eec44994969ec 2. आध्यात्मिकता का नशा की संगत भाग 1: 07/21/20

श्री श्रीमद भागवत की कथा शेरनी के दूध जैसी है.......!

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

श्री श्रीमद भागवत की कथा शेरनी के दूध जैसी है.......!


भागवत की कथा शेरनी के दूध जैसी है........!


भागवत की कथा सूतजी ने शौनक जी को सुनाई, 

उस समय वे सभी यज्ञ करते थे,और यज्ञ से बचे हुए समय में कथा होती थी




अर्थात "कथा गौड़" और यज्ञ प्रधान था. 

दूसरा नारद जी ने जब वेद व्यास जी को सुनाई उस समय
" परोपकार प्रधान " था.और तीसरी जब शुकदेव जी ने राजा परीक्षित को सुनाई,

उस समय कथा के लिए ही

" कथा कही गई " .

कथा ही साधन है कथा ही साध्य है.

भागवत की कथा शेरनी के 1 दूध जैसी है,शेरनी के दूध की ये खासियत होती है कि शेरनी का दूध केवल दो जगह ही ठहर सकता है,

पहला सोने के पात्र या उसके बच्चे के पेट में ही रह सकता है.

इसके अतिरिक्त कही और रखने पर खराब हो जाता है,


इसी तरह भागवत की कथा है,

जिसमे पात्र की प्रधानता है

कथा सुनने का पात्र कौन है? 

कैसा है ? 

ये महत्वपूर्ण है.

जैसे एक संत रोज भिक्षा के लिए जाते थे,

एक स्त्री रोज उन्हें भिक्षा देती एक दिन वह स्त्री संत से बोली -

बाबा! 

आप मुझे कुछ ज्ञान दीजिये ?

संत बोले - 

कल मै तुझे ज्ञान दूँगा.

अगले दिन बाबा भिक्षा लेने आये उस दिन उस उस स्त्री ने खीर बनायीं थी.

संत बोले - 

खीर मेरे इस पात्र में डाल दो,

अब जैसे ही वह स्त्री संत के पात्र में खीर डालने लगी तो क्या देखती है 

संत के पात्र में गोवर भरा है.

तुरंत बोली - 

बाबा! 

इस पात्र में तो गोवर भरा है खीर डालने पर इतनी अच्छी खीर खराब हो जायेगी.

संत बोले - 

यहाँ तो मै तुम्हे समझाना चाहता था,

यदि खीर पात्र में डालनी है तो पहले गोवर हटाना पड़ेगा फिर पात्र को धोना पड़ेगा फिर उसमे खीर रखने पर खराब नहीं होगी.

इसी तरह यदि हमें भगवत चर्चा करनी है उसे अपने जीवन में उतरना है

 तो पहले संसार के विषयों का गोवर जिससे हमारा मन रूपी पात्र गन्दा है,

उस विषय विकार रूपी गोवर को निकलना होगा.

फिर अच्छी तरह संत्संग के जल से धोना होगा 

तभी हमारा मन रूपी पात्र उस भागवत रूपी खीर रखने के लायक होगा,

अन्यथा विषय - विकारों से गंदे हुए मन में यदि कथा डालेगे 

तो कथा सुनने का कोई लाभ नहीं होगा.

जय जय श्री कृष्ण...!

पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 
" Opp. Shri Dhanlakshmi Strits , Marwar Strits, RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
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मछेन्द्रनाथ बन्द्रिकाश्रम तप और दीक्षा वर्णन भाग 5 , सुंदर काव्य रचना

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मछेन्द्रनाथ बन्द्रिकाश्रम तप और दीक्षा वर्णन भाग 5 , सुंदर काव्य रचना


5 गुरु नवनाथ पंथ कथा 💥

॥ मछेन्द्रनाथका बद्रिकाश्रम में तप और दीक्षा वर्णन ॥ भाग - 5


ॐ नमोनमः शिव गोरक्ष योगी   । 

आदेश आदेश

          बालक मछेन्द्र शिव - शिव रटते हुये बद्रिकाश्रम पँहुवे, और वहाँ वन में घोर तपस्या करनी शुरू करदी ;  प्रारम्भ में तो कन्द मूल फल का सेवन किया, उसके बाद सब छोड़कर सिर्फ वायु ( हवा ) सेवन को ही जीविका का आधार माना । 



भक्त ध्रुव की तरह वह बारह वर्ष कठिन तपस्या से विचलित नही हुये । 

सारा शरीर सुख कर ढांचा मात्र रह गया ! 

बालक की घोर तपस्या देख महादेव जी अत्यन्त प्रसन्न हुए और भगवान् दत्तात्रेय को अपने साथ लेकर बद्रिकाश्रम के वन में भागीरथी के तट पर जहाँ मछेन्द्र नाथ तपस्या कर रहे थे दोनो देवता पहुचे ।

भगवान् शँकर तो एक पत्थर की शिला पर अलग बिराज गए और भगवान् दत्तात्रेय जी अकेले मछेन्द्र के सामने जा पहुचे,  जहॉ वो ध्यान पुर्वक तप कर रहे थे । 

मछेन्द्रनाथ की तपस्या देखकर भगवान् दत्तात्रेय जी अवाक रह गए । 

थोड़ी देर पश्चात् भगवान् दत्तात्रेय जी ने मछेन्द्र नाथ से प्रश्न किया कि- 

*"तुम्हारा नाम क्या है और इस  तप का उद्देश्य क्या है ?"* 

भगवान् दत्तात्रेय के प्रश्न का उत्तर देने से पूर्व मछेन्द्रनाथ ने पूछा- *" 

भगवान् ! 

पहले तो यह बताइये की आप कहाँ से पधारे है ?"* 

भगवान् दत्तात्रेय ने कहां - 

*"मेरा नाम दत्तात्रेय है । 

तुम्हारी कठिन तपस्या देखकर तुम्हे वरदान देने के लिए ही तुम्हारे पास आना पड़ा । 

अब जो भी तुम्हारी मनोकामना हो मुझे बताओ ।"*

मछेन्द्रनाथ ने यह जानकर कि ये खुद भगवान् दत्तात्रेय है, अपने दोनों हाथ जोड़कर प्रणामकरके उनके चरण पकड़ लिए और बोले - 

*"यदि प्रभु मेरे ऊपर दयालु है तो मेरे दोषों को क्षमा करके मुझे सर्व गुण सम्पन्न होने का वरदान दे 
।"* मछेन्द्रनाथ के मुख से वचन निकलते ही भगवान् दत्तात्रेय ने उनके सिर पर हाथ रखकर *"तथास्तु"* कहा । 

भगवान् दत्तात्रेय का  मछेन्द्रनाथ के मस्तक पर हाथ रखते ही उनका शरीर पहले तरह की समान हष्ट पुष्ट हो गया । 

उन्हें सारा जगत् शिव ही शिव दिखाई पड़ने लगा । 

फिर *भगवान् दत्तात्रेय ने मछेन्दफनाथ के कान में मंत्र फूंककर "नाथ पंथ की दीक्षा" देकर प्रथम बार अपना शिष्य बनाया और स्वयं गुरु बने ।*

नाथ पंथ की दीक्षा देकर मछेन्द्रनाथ को साथ लेकर भगवान् दत्तात्रेय  वहाँ पहुचे जहॉ पर देवो के देव महादेव शिला पर विराजमान थे । 

मछेन्द्रनाथ भगवान् शँकर को देखकर उनके चरणों में पड़ गये । 

देवादि देव महादेव ने उन्हें उठाकर छाती से लगाकर बोले - 

*"हे दत्तात्रेय जी ! 

इस दिव्य देवधारी तपस्वी बालक को को मैंने समुन्द्र तट के पास मछली के गर्भ में देखा था और इसने गर्भ में ही मेरे द्वारा दिया हुआ, ब्रह्नज्ञान का दिव्य उपदेश सुन लिया था तथा उसके रहस्य की पूर्ण जानकारी प्राप्त करली ।"                                                                                              

         "यह अनोखा बालक कविनारायणं का ही अवतार हैं ; 

अब आप इसे सम्पूर्ण गुप्त विद्याओं की जानकारी प्राप्त कराओ । 

मेरा आशीर्वाद इसके साथ है कि यह आपका चेला समूर्ण संसार में आपका मस्तक ऊंचा कर के अक्षय कीर्ति का अधिकारी बनेगा ।"* 

इतना कह भगवान् शिव शंकर अंर्तध्यान हो कैलाश पर्वत पर जा विराजे । 

और भगवान् दत्तात्रेय ने वेद - वेदांग यंत्र - मंत्र शास्त्रों की सब विद्याओं की शिक्षा दे मछेन्द्रनाथ को प्रवीण कर दिया । उन्हें देश देशान्तरों में घूम - घूमकर प्राणियों के दुःख दूर करने की आज्ञा दी ।

              ॥ ॐ नमोनमः आदिनाथ शिवशम्भु जी ॥
                । आदिगुरु भगवान दत्तात्रेय आदेश ।
( आगे  भाष - 6 पर )

।। सुंदर काव्य रचना ।।

'     *खाली मुठ्ठी बाकी है*


*तीन पहर तो बीत गये,*
*बस एक पहर ही बाकी है।*
*जीवन हाथों से फिसल गया*,
*बस खाली मुट्ठी बाकी है।*
*सब कुछ पाया इस जीवन में,*

*फिर भी इच्छाएं बाकी हैं।*
*दुनिया से हमने क्या पाया,*
*यह लेखा जोखा बहुत हुआ,*
*इस जग ने हमसे क्या पाया,*
*बस यह गणनाएं बाकी हैं।*
*तीन पहर तो बीत गये,*
*बस एक पहर ही बाकी है।*
*जीवन हाथों से फिसल गया,*
*बस खाली मुट्ठी बाकी है।*

*इस भाग दौड़ की दुनिया में,*
*हमको एक पल का होश नहीं,*

*वैसे तो जीवन सुखमय है,*
*पर फिर भी क्यों संतोष नहीं,*

*क्या यूँ ही जीवन बीतेगा?*
*क्या यूँ ही सांसे बंद होंगी?*
*औरों की पीड़ा देख समझ,*
*कब अपनी आँखे नम होंगी?*
*मन के भीतर कहीं छिपे हुए,* 
*इस प्रश्न  का उत्तर बाकी है।*
*तीन पहर तो बीत गये,*
*बस एक पहर ही बाकी है।*
*जीवन हाथों से फिसल गया,*
*बस खाली मुट्ठी बाकी है।*

*मेरी खुशियां,मेरे सपने,*
*मेरे बच्चे,मेरे अपने,*
*यह करते करते शाम हुई,*
*इससे पहले तम छा जाए,*
*इससे पहले कि शाम ढ़ले,*
*दूर परायी बस्ती में,*
*एक दीप जलाना बाकी है।*

*जो भी सीखा इस जीवन में,*
*उसको अर्पण करना भी बाकी है।*

*तीन पहर तो बीत गये,*
*बस एक पहर ही बाकी है।*
*जीवन हाथों से फिसल गया,*

*बस खाली मुट्ठी बाकी है।*
'     *खाली मुठ्ठी बाकी है*
जय जय श्री कृष्ण...!!!

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मछेन्द्रनाथ जन्म ( जीवनी ) वर्णन 2/4 , गाय का झूठा गुड़ ,

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मछेन्द्रनाथ जन्म ( जीवनी ) वर्णन 2/4 , गाय का झूठा गुड़ , 


4 गुरु नवनाथ पंथ कथा 💥

॥ मछेन्द्रनाथ जीवनी ( जन्म ) वर्णन ' ब '॥  भाग - 4

ॐ नमोनमः शिव गोरख योगी   । 

आदेश आदेश
                 
                शिव जी बोले - 

*" कवि नारायण ! 

आपने मछली के गर्भ में मेरी ज्ञान चर्चा के रहस्य को भली भाँती समझ लिया । 

यह जानकर मुझे अति हर्ष हुआ है । 

कारण, अधिकारी पात्र, मंत्र, तत्व का सदुपयोग ही करता है । 

राक्षस की तरह दुरुपयोग नही करता । 




आप तत्व ज्ञान के अधिकारी है । 

इसे मैं भली - भांति समझता हूँ । 

इस वक़्त आप माता के गर्भ में है । 

इस लिये इतने ही तत्व का सुमरन कीजिये, जब आपका जन्म हो जायेगा 

तब आप विद्या अध्यन के बाद घूमते - घामते बद्रिकाश्रम मेरे पास आना । 

वहाँ मैं परम् सिद्ध भगवान् दत्तात्रेय से दीक्षा दिलाकर उनका शिष्य बनाऊंगा । 

उनके अमर उपदेश को सुनकर आप भी अमर हो जाओगे ।

"*इतने वचन कहकर शिवजी महाराज गौरा पार्वती को जगाकर अंर्तध्यान हो गये ।

कुछ समय के बाद मछली ने गर्भ से अण्डे को जन्म दिया और समुन्द्र किनारे अण्डे को छोड़कर स्वयं समुन्द्र में चली गई । 

अण्डे को देखकर कुछ बगुले आगये । एक बगुले ने अण्डे को चोंच मार दी । 

चोंच का लगना था कि अण्डा फुट गया ; और उसके भीतर से कवि नारायण जोर जोर से रोने लगे । 

तेजस्वी बालक के रोने की आवाज सुनकर बगुले उड़ गये, परन्तु *"बालक ने हुआ- 

हुआ का शब्द दूर - दूर तक पहुच रहा था ।"*

उसी समय कामिक नामक का एक मछेरा मछली पकडंने के लिए उस तरफ आ पहुचा । 

मछेरा निसन्तान था, उसके कोई संतान नही हुई थी ; बिना संतान उसे कुछ अच्छा नही लगता था । 

वह तुरंत बालक के नजदीक जा पहुचा, मछुआरे ने देखा सूर्य के समान तेजस्वी बालक समुन्द्र के किनारे पड़ा है । 

उसने प्रभु कृपा समझ , तुरन्त अपनी गोद में उठा प्यार पुचकार ने पर बालक रोना बन्द कर उसको देखने लगा ।

तब ही आकाशवाणी हुई - 

*" हे कामिक इस तेजस्वी बालक का जन्म मछली के पेट से हुआ है । 

तेरे धन्य भाग्य है जो बालक रूप में तेरी गोद में भगवान कवि नारायण है । 

अब बालक को तू अपने घर ले जाकर अपनी संतान की तरह लालन पालन कर । 

आगे चलकर यह बहुत बड़ा योगी संत होगा । 

इसके साथ तेरा भी नाम अमर हो जायेगा । 

वह हर्षित होकर अपने घर ले चला  । 

घर जाकर शारदत्ता ( उसकी पत्नी ) को बालक को सौप कर, आकाशवाणी और बालक के जन्म की बात बताई और कहा -  

इस बालक नाम ' मत्यसेन्द्र ' ही रखता हूँ क्योंकि यह मछली के गर्भ से प्रकट हुआ हुआ है ।"*

वह गद गद स्वर में बोली - 

मैं सुकुमार बालक को अपने कलेजे का टुकड़ा समझकर पालूंगी, इतना कहकर उसने बालक चाहती से चिपका लिया । 

" प्रभु कृपा से उसके सूखे हुए स्तनों में से दूध की धारा निकल पड़ी ।  

वह बालक को दूध पिलाने लगी "। 

बालक का नाम मत्यसेन्द्रनाथ ही रखा गया । 

धीरे धीरे मछंदर नाथ पांच साल की आयु के हो गए । 

कामिक और शारदत्ता नित्य समुन्द्र तट पर म्छलिया पकडंने जाते थे, वही उनके जीविका का एक मात्र साधन था । 

मछंदरनाथ भी उनके साथ साथ समुन्द्र तट पर जाया करता था ; 

उन्होंने मछली के गर्भ में भगवान् शिव द्वारा ज्ञान चर्चा सुनी थी । 

इस लिए उन्हें मछलियों के व्यपार से घृणा हो गयी ।  

जब उनसे मछलियों का तड़पना नही देखा जाता, तो वह कुछ दूर मुँह फेर कर बैठे रेत से खेलकर समय बिताया करते । 

एक दिन मतसेन्द्रनाथ वहां से काफी दूर निकल गये ।

               ॥ जय जय गुरु मछेन्द्रनाथ जी ॥
( आगे भाग  - 5 पर )

।। श्री ऋग्वेद प्रवचन और सुंदर सत्य घटना की कहानी ।।

**"गाय का झूठा गुड़"*





*एक शादी के निमंत्रण पर जाना था, पर मैं जाना नहीं चाहता था।*

*एक व्यस्त होने का बहाना और दूसरा गांव की शादी में शामिल होने से बचना..* 

*लेक‌िन घर परिवार का दबाव था सो जाना पड़ा।*

*उस दिन शादी की सुबह में काम से बचने के लिए सैर करने के बहाने दो- तीन किलोमीटर दूर जा कर मैं गांव को जाने बाली रोड़ पर बैठा हुआ था ।* 

*हल्की हवा और सुबह का सुहाना मौसम बहुत ही अच्छा लग रहा था , पास के खेतों में कुछ गाय चारा खा रही थी कि तभी वहाँ एक लग्जरी गाड़ी  आकर रूकी,*

*और उसमें से एक वृद्ध उतरे,अमीरी उसके लिबास और व्यक्तित्व दोनों बयां कर रहे थे।*

*वे एक पॉलीथिन बैग ले कर मुझसे कुछ दूर पर ही एक सीमेंट के चबूतरे पर बैठ गये ।*

 *पॉलीथिन चबूतरे पर उंडेल दी, उसमे गुड़ भरा हुआ था, अब उन्होने आओ आओ करके पास में ही खड़ी ओर बैठी गायो को बुलाया ।* 

*सभी गाय पलक झपकते ही उन बुजुर्ग के इर्द गिर्द ठीक ऐसे ही आ गई जैसे कई महीनो बाद बच्चे अपने मांबाप को घेर लेते हैं ।* 

*कुछ गाय को गुड़ उठाकर खिला रहे थे तो कुछ स्वयम् खा रही थी ।* 

*वे बड़े प्रेम से उनके सिर पर गले पर हाथ फेर रहे थे।*

*कुछ ही देर में गाय अधिकांश गुड़ खाकर चली गई,इसके बाद जो हुआ वो वाक्या हैं जिसे मैं ज़िन्दगी भर नहीं भुला सकता,*

*हुआ यूँ कि गायो के गुड़ खाने के बाद जो गुड़ बच गया था वो बुजुर्ग उन टुकड़ो को उठा उठा कर खाने लगे ।* 

*मैं उनकी इस क्रिया से अचंभित हुआ पर उन्होंने बिना किसी परवाह के कई टुकड़े खाये और अपनी गाडी की और चल पड़े।*

*मैं दौड़कर उनके नज़दीक पहुँचा और बोला श्रीमानजी क्षमा चाहता हूँ पर अभी जो हुआ उससे मेरा दिमाग घूम गया ।* 

*क्या आप मेरी इस जिज्ञासा को शांत करेंगे कि आप इतने अमीर होकर भी गाय का झूठा गुड क्यों खाया ??*

*उनके चेहरे पर अब हल्की सी मुस्कान उभरी उन्होंने कार का गेट वापस बंद करा और मेरे कंधे पर हाथ रख वापस सीमेंट के चबूतरे पर आ बैठे, और बोले ये जो तुम गुड़ के झूठे टुकड़े देख रहे हो ना बेटे मुझे इनसे स्वादिष्ट आज तक कुछ नहीं लगता।*

*जब भी मुझे वक़्त मिलता हैं मैं अक्सर इसी जगह आकर अपनी आत्मा में इस गुड की मिठास घोलता हूँ।*

*मैं अब भी नहीं समझा श्री मान जी आखिर ऐसा क्या हैं इस गुड में ???*

   *वे बोले ये बात आज से कोई 40 साल पहले की हैं उस वक़्त मैं 22 साल का था घर में जबरदस्त आंतरिक कलह के कारण मैं घर से भाग आया था ।* 

*परन्तू दुर्भाग्य वश ट्रेन में कोई मेरा सारा सामान और पैसे चुरा ले गया।* 

*इस अजनबी से छोटे शहर में मेरा कोई नहीं था ।* 

*भीषण गर्मी में खाली जेब के दो दिन भूखे रहकर इधर से उधर भटकता रहा, और शाम को भूख मुझे निगलने को आतुर थी।*

*तब इसी जगह ऐसी ही एक गाय को एक महानुभाव गुड़ डालकर चले गए ।* 

*यहाँ एक पीपल का पेड़ हुआ करता था तब चबूतरा नहीं था ।* 

*मैं उसी पेड़ की जड़ो पर बैठा भूख से बेहाल हो रहा था ।* 

*मैंने देखा कि गाय ने गुड़ छुआ तक नहीं और उठ कर वहां से चली गई ।* 

*मैं कुछ देर किंकर्तव्यविमूढ़ सोचता रहा और फिर मैंने वो सारा गुड़ उठा लिया और खा लिया।* 

*मेरी मृतप्रायः आत्मा में प्राण से आ गये।*

 *मैं उसी पेड़ की जड़ो में रात भर पड़ा रहा, सुबह जब मेरी आँख खुली तो काफ़ी रौशनी हो चुकी थी ।* 

*मैं नित्यकर्मो से फारिक हो किसी काम की तलाश  में फिर सारा दिन भटकता रहा पर दुर्भाग्य मेरा पीछा नहीं छोड़ रहा था ।* 

*एक और थकान भरे दिन ने मुझे वापस उसी जगह निराश भूखा खाली हाथ लौटा दिया।*

*शाम ढल रही थी ।* 

*कल और आज में कुछ भी तो नहीं बदला था ।* 

*वही पीपल, वही भूखा मैं और वही गाय।*

*कुछ ही देर में वहाँ वही कल वाले सज्जन आये और कुछ गुड़ की डलिया गाय को डालकर चलते बने ।* 

*गाय उठी और बिना गुड़ खाये चली गई ।* 

*मुझे अज़ीब लगा परन्तू मैं बेबस था सो आज फिर गुड खा लिया।*

     *और वही सो गया ।* 

*सुबह काम तलासने निकल गया ।* 

*आज शायद दुर्भाग्य की चादर मेरे सर पे नहीं थी सो एक ढ़ाबे पर मुझे काम मिल गया।* 

*कुछ दिन बाद जब मालिक ने मुझे पहली पगार दी तो मैंने 1 किलो गुड़ ख़रीदा और किसी दिव्य शक्ति के वशीभूत 7 km पैदल पैदल चलकर उसी पीपल के पेड़ के नीचे आया।*

*इधर उधर नज़र दौड़ाई तो गाय भी दिख गई ।* 

*मैंने सारा गुड़ उस गाय को डाल दिया ।* 

*इस बार मैं अपने जीवन में सबसे ज्यादा चौंका क्योकि गाय सारा गुड़ खा गई ।*

 *जिसका मतलब साफ़ था की गाय ने 2 दिन जानबूझ कर मेरे लिये गुड़ छोड़ा था,*

*मेरा हृदय भर उठा उस ममतामई स्वरुप की ममता देखकर, मैं रोता हुआ बापस ढ़ाबे पे पहुँचा,और बहुत सोचता रहा ।* 

*फिर एक दिन मुझे एक फर्म में नौकरी भी मिल गई ।* 

*दिन पर दिन मैं उन्नति और तरक्की के शिखर चढ़ता गया,*

*शादी हुई बच्चे हुये आज मैं खुद की पाँच फर्म का मालिक हूँ ।* 

*जीवन की इस लंबी यात्रा में मैंने कभी भी उस गाय माता को नहीं भुलाया ।* 

*मैं अक्सर यहाँ आता हूँ और इन गायो को गुड़ डालकर इनका झूँठा गुड़ खाता हूँ,* 

*मैं लाखो रूपए गौ शालाओं में चंदा भी देता हूँ ।* 

*परन्तू मेरी मृग तृष्णा मन की शांति यही आकर मिटती हैं बेटे।*

*मैं देख रहा था वे बहुत भावुक हो चले थे, समझ गये अब तो तुम,*

*मैंने सिर हाँ में हिलाया, वे चल पड़े,गाडी स्टार्ट हुई और निकल गई ।* 

*मैं उठा उन्ही टुकड़ो में से एक टुकड़ा उठाया मुँह में डाला वापस शादी में शिरकत करने सच्चे मन से शामिल हुआ।*

*सचमुच वो कोई साधारण गुड़ नहीं था।*

 *उसमे कोई दिव्य मिठास थी जो जीभ के साथ आत्मा को भी मीठा कर गई थी।*

*घर आकर गाय के बारे जानने के लिए कुछ किताबें पढ़ने के बाद जाना कि.....,*

*गाय गोलोक की एक अमूल्य निधि है, जिसकी रचना भगवान ने मनुष्यों के कल्याणार्थ आशीर्वाद रूप से की है।*

*ऋग्वेद में गौ को‘अदिति’ कहा गया है।*

*‘दिति’ नाम नाश का प्रतीक है और ‘अदिति’ अविनाशी अमृतत्व का नाम है।*

*अत: गौ को ‘अदिति’ कहकर वेद ने अमृतत्व का प्रतीक बतलाया है।*
                 
*🙏जय माताजी🙏*

पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
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मछेन्द्रनाथ के जन्म ( जीवनी ) के वर्णन भाग 1 / 3 , एक बेटी का पिता ,

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
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मछेन्द्रनाथ के जन्म ( जीवनी ) के वर्णन भाग 1 / 3 , एक बेटी का पिता , 


3 💥 नवनाथ पंथ कथा 💥

॥ मछेन्द्रनाथ जीवनी ( जन्म ) वर्णन ' अ '॥   भाग - 3

ॐ नमोनमः शिव गोरक्ष योगी   । आदेश आदेश ।

           आदि गुरु दत्तात्रेय के बाद सबसे महत्वपृर्ण नाम आचार्य मत्यसेन्द्रनाथ का है जो कौल मार्ग के प्रथम पर्वतक थे...!

इतिहासवेता मत्सेयन्द्र ( का नाम मीननाथ - मछेन्द्रनाथ भी है ) का समय विक्रम की आठवीं शताब्दी मानते है । 




देवपाल का राज्यकाल 809 से 849 ई. तक है । 

शँकर द्विग्यविजय नामक ग्रँथ 200 इस ० से पूर्व मत्यसेन्द्र पैदा हुए थे । 

मछेन्द्रनाथजी की स्थिति आठवी शताब्दी का प्र्रारम्भ माना जा सकता । 

प्रथम तो मछेन्द्रनाथजी द्वारा लिखित " कौल ज्ञान निर्णय " ग्रँथ का या लिपिका निश्चित रूप से सिद्ध कर देता है कि  मछेन्द्रनाथ ग्यारहवीं शताब्दी के पूर्ववर्ती है ।

मछेन्द्रनाथ  ब्रजयनी सिद्धो में एक मीनपा है ।

भगवान दत्तात्रेयजी ने गुरु मछेन्द्रनाथजी को गुरु मंत्र देकर शिष्य बनाया था स्वयं गुरु बने । 

नाथ पंथ की दीक्षा देकर भगवान दत्तात्रेय उन्हें लेकर देवो के देव महादेव के पास ले गये । 

भगवान शँकरजी कहा - 

हे दत्तात्रेयजी ! 

इस देवधारी तपस्वी बालक को अपने " नाथ पंथ " की दीक्षा देकर उचित कार्य किया, अब आप इसे सम्पूर्ण गुप्तज्ञानकी जानकारी प्राप्त कराये । 

मेरा आशीर्वाद सदा इसके साथ है कि यह आपका चेला सम्पूर्ण संसार मे आपका मस्तक ऊंचा करके, अक्षय कीर्ति का अधिकारी बनेगा ।

            भगवान दत्तात्रेय जी ने वेद वेदांग यंत्र - मन्त्र शास्त्रो की सब विद्याओं में मछेन्द्रनाथजी प्रवीण किया था ।


" मछेन्द्रनाथ की जीवनी "

              सृष्टि रचते समय होनहार बस कामातुर अवस्था में ब्रह्मा का जी वीर्य निकलकर छिटकता हुआ अनेकानेक तीर्थ स्थलोंपर जा गिरा । 

जिससे अट्ठासी हजार ऋषि मुनियों का जन्म हुआ । 

उसी वीर्य का कुछ अंश समुन्द्र में जा गिरा, जिसे एक बड़ी मछली निगल गयी । 

जिसके प्रभावसे मछली गर्भवती हो गयी । 

उसी मछली के गर्भ में भगवान् कवि नारायणं के जीव का प्रवेश हुआ । 

उसी नदी के किनारे *" माँ गौरा पार्वती के साथ बैठे देवो के देव महादेव ज्ञान चर्चा कर रहे थे । 

जिसे भगवान् कवि नारायण ने गर्भवती मछली के उदर में ही सुनकर हुँकारा भरा । 

हुँकारा सुनकर भगवान् शंकर को शक हुआ और निंद्रा - मग्न पार्वती से पूछा- 

" उमा ! 

मेरा उपदेश तुम्हारी समझ में आ रहा है  ? " । 

माँ गोरा - पार्वती के स्थान पर मछली के गर्भ से ही हुंकार् की जगह उत्तर मिला । 

कि - 

"आपने अनेक शास्त्रों का रहस्य खोलकर समझाया है । 

जिसका सारांश ये है कि सारा ब्रह्माण्ड शिव ही शिव है । 

शिव के अलावा और कुछ नही है ।"*

समुन्द्र के जल के भीतर से मनुष्य की वाणी सुन और पार्वती जी को सोता देख भगवान् महादेव भी हैरान हुये कि " इस घनघोर वीरान में किसी मनुष्य के आने की हिम्मत पड़ ही नही सकती । 

ना यहाँ किसी मनुष्य के चरण चिन्ह है, फिर मेरी गूढ़ ज्ञान चर्चा सुनकर कौन मुझे उत्तर दे रहा है ?" 

यह सोच भगवान शंकर नें योग माया द्वारा जान लिया कि हमारे करीब ही जल में एक मछली पड़ी है । 

उसके गर्भ में कवि नारायण है ।

      ॥ ॐ नमो शिव शम्भू - त्रिदेव आदिगुरु दत्तात्रेय जी ॥
  ( आगे भाग  - 4 पर )

एक बेटी का पिता:

एक पिता ने अपनी बेटी की सगाई करवाई~~!!

*लड़का बड़े अच्छे घर से था!*

*तो पिता बहुत खुश हुए!*

*लड़के ओर लड़के के माता पिता का स्वभाव~~!!*

*बड़ा अच्छा था!*

*तो पिता के सिर से बड़ा बोझ उतर गया~~!!*

*एक दिन शादी से पहले!*

*लड़के वालो ने लड़की के पिता को खाने पे बुलाया~~!!*

*पिता की तबीयत ठीक नहीं थी~~!!*

*फिर भी वह ना न कह सके!*
*लड़के वालो ने बड़े ही आदर सत्कार से उनका स्वागत किया~~!!*

*फ़िर लडकी के पिता के लिए चाय आई~~!!*

*शुगर कि वजह से लडकी के पिता को चीनी वाली चाय से दुर रहने को कहा गया था~~!!*
*लेकिन लड़की के होने वाली ससुराल घर में थे तो चुप रह कर चाय हाथ में ले ली~~!!*

*चाय कि पहली चुस्की लेते ही वो चोक से गये!चाय में चीनी बिल्कुल ही नहीं थी~~!!*

*और इलायची भी डली हुई थी!*

*वो सोच मे पड़ गये कि ये लोग भी हमारी जैसी ही चाय पीते हैं~~!!*

*दोपहर में खाना खाया वो भी बिल्कुल उनके घर जैसा दोपहर में आराम करने के लिए दो तकिये पतली चादर!उठते ही सोंफ का पानी पीने को दिया गया~~!!*

*वहाँ से विदा लेते समय उनसे रहा नहीं गया तो पुछ बैठे मुझे क्या खाना है~~!!*

*क्या पीना है!मेरी सेहत के लिए क्या अच्छा है!*

*ये परफेक्टली आपको कैसे पता है!*
.
*तो बेटी कि सास ने धीरे से कहा कि कल रात को ही आपकी बेटी का फ़ोन आ गया था~~!!*

*ओर उसने कहा कि मेरे पापा स्वभाव से बड़े सरल हैं!*

*बोलेंगे कुछ नहीं प्लीज अगर हो सके!*

*तो आप उनका ध्यान रखियेगा!*
.
*पिता की आंखों मे वहीँ पानी आ गया था~~!!*

*लड़की के पिता जब अपने घर पहुँचे तो घर के हाल में लगी अपनी स्वर्गवासी माँ के फोटो से हार निकाल दिया~~!!*

*जब पत्नी ने पूछा कि ये क्या कर रहे हो!*

*तो लडकी का पिता बोले-मेरा ध्यान रखने वाली मेरी माँ इस घर से कहीं नहीं गयी है~~!!*

*बल्कि वो तो मेरी बेटी!*

*के रुप में इस घर में ही रहती है!*

*और फिर पिता की आंखों से आंसू झलक गये ओर वो फफक कर रो पड़े~~!!*

*दुनिया में सब कहते हैं ना!*
*कि बेटी है~~!!*

*एक दिन इस घर को छोड़कर चली जायेगी!*

*मगर मैं दुनिया के सभी माँ-बाप से ये कहना चाहता हूँ~~!!*

*कि बेटी कभी भी अपने माँ-बाप के घर से नहीं जाती~~!!*
*बल्कि वो हमेशा उनके दिल में रहती है~~!!*
*मित्रों दोस्तों यकीन करो*
*कि बेटियां परिवार पर बोझ नही होती......!*
 
*‼️ राध्धे-राध्धे ‼️*

पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
-: 25 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 
" Opp. Shri Dhanlakshmi Strits , Marwar Strits, RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
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आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश, करें...धन्यवाद.. 
नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏

प्रथम गुरु त्रिदेव ( ब्रह्मा विष्णु और महेश ) उर्फ़े दत्तात्रेय माता सती अनसूयाजी का वर्णन 2 , सच्चे साधु के लक्षण , भगवान् बहुत ही दयालु है , शांतिदूत का दायित्व

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

प्रथम गुरु त्रिदेव ( ब्रह्मा विष्णु और महेश ) उर्फ़े दत्तात्रेय माता सती अनसूयाजी का वर्णन 2 , सच्चे साधु के लक्षण  , भगवान् बहुत ही दयालु है , शांतिदूत का दायित्व 


2💥 नवनाथ पंथ कथा 💥

॥ प्रथम गुरु दत्तात्रेय ( त्रिदेव ) और अनुसूईयाजी वर्णन ॥ - 2

ॐ नमोनमः शिव गोरक्ष योगी   । आदेश आदेश

        " ब्रहमा, विष्णु और महेश " तीनो देव महर्षि अत्रि के आश्रम पर पहुंचे । 

तीनों देव मुनि वेष में थे । 

उस समय महर्षि अत्रि अपने आश्रम पर नहीं थे । 

अतिथि के रूप में आये हुए त्रिदेवों का सती अनसूया ने स्वागत - सत्कार करना चाहा, किंतु त्रिदेवों ने उसे अस्वीकार कर दिया ।

 सती अनसूया ने उनसे पूछा- 

‘मुनियों! मुझसे कौन सा अपराध हो गया, जो आप लोग मेरे द्वारा की हुई पूजा को ग्रहण नहीं कर रहें हैं ?’ 

मुनियों ने कहा- 

देवि ! 

यदि आप बिना वस्त्र के हमारा आतिथ्य करें तो हम आपके यहाँ भिक्षा ग्रहण करेंगें । 

यह सुनकर सती अनसूया सोच में पड़ गयी । 

उन्होने ध्यान लगाकर देखा तो सारा रहस्य उनकी समझ में आ गया । 

वे बोलीं- " 

मैं आप लोगों का विवस्त्र होकर आतिथ्य करूंगी । 

यदि मैं सच्ची पतिव्रता हूँ और मैनें कभी भी काम भाव से किसी पर - पुरूष का चिन्तन नहीं किया हो तो आप तीनों छह - छह माह के बच्चे बन जायें "। 

           " पतिव्रता अनुसूयाजी का इतना कहना था कि त्रिदेव छह छह माह के बच्चे बन गये । 

माता ने विवस्त्र होकर उन्हें अपना स्तनपान कराया और उन्हें पालने में खेलने के लिए डाल दिया ।"

        इस प्रकार " त्रिदेव माता अनसूया के वात्सल्य प्रेम के बंदी बन गये ।" 

इधर जब तीनों देवियों ने देखा कि हमारे पति तो आये ही नहीं तो वे चिन्तित हो गयीं । 

आखिर तीनों अपने पतियों का पता लगाने के लिये चित्रकूट गयीं । 

संयोग से वहीं नारद जी से उनकी मुलाकात हो गयी । 

त्रि - देवियों ने उनसे अपने पतियों का पता पूछा । 

नारद ने कहा कि 

" वे लोग तो आश्रम में बालक बनकर खेल रहे हैं ।" 

त्रि - देवियों ने अनसूया जी से आश्रम में प्रवेश करने की आज्ञा मांगी । 

अनसूया जी ने उनसे उनका परिचय पूछा । 

त्रिदेवियों ने कहा- 

‘ माता जी ! 

हम तो आपकी बहुएँ हैं । 

आप हमें क्षमा कर दें और हमारे पतियों को लौटा दें ।‘ 

अनसूया जी का हृदय द्रवित हो गया । 

अनुसूयाजी का ह्रदय द्रवित हो गया, उन्होंने मन्त्र द्वारा जल छिड़कर उन्हें पर्व रूप कर उनकी पूजा अर्चना करी । 

तब तक ऋषि अत्रि भी आश्रम आ गये । 

तो माता अनुसुईया ने सारी बात विस्तार से उनके समुख रखी, जिसे सर्वज्ञानी ऋषि अत्रि पहले से जानते थे ।

             ऋषि अत्रि ने मंत्रो के द्वारा तीनो देवो को एक रूप में परिवर्तित कर एक बालक का रूप दे दिया जिसके तीन मुख एवं छः हाथ थे अपने पति को इस रूप में देख तीनो देवियो पछतावा होता है और ऋषि अत्रि एवं माता अनुसुईया से छमा माँग अपने पतियों को वापस देने का आग्रह करती है ऋषि अत्रि तीनो देवो को उनका मूर्त रूप दे देते है ।

             *" तब तीनो देवो ने अपने आशीर्वाद के द्वारा दत्तात्रेय भगवान को बनाते है जो तीनों देवो का रूप कहलाते है इस प्रकार माता अनुसुईया परीक्षा में सफल हुई और उन्हें तीनो देवो के समान के पुत्र की प्राप्ति हुई । "*

             
भगवान दत्तात्रेयजी ने गुरु मछेन्द्रनाथजी को गुरु मंत्र देकर शिष्य बनाया था स्वयं गुरु बने । 

नाथ पंथ की दीक्षा देकर भगवान दत्तात्रेय उन्हें लेकर देवो के देव महादेव के पास ले गये । 

भगवान शँकरजी कहा - 

हे दत्तात्रेयजी ! 

इस देवधारी तपस्वी बालक को अपने " नाथ पंथ " की दीक्षा देकर उचित कार्य किया, अब आप इसे सम्पूर्ण गुप्तज्ञानकी जानकारी प्राप्त कराये । 

मेरा आशीर्वाद सदा इसके साथ है कि यह आपका चेला सम्पूर्ण संसार मे आपका मस्तक उँच्चा करके, अक्षय कीर्ति का अधिकारी बनेगा ।

            भगवान दत्तात्रेय जी ने वेद वेदांग यंत्र-मन्त्र शास्त्रो की सब विद्याओं में मछेन्द्रनाथजी प्रवीण किया था ।

                    ॥ ॐ नाथ देवाय नमो नमः ॥
                 आदेश ...आदेश....!
(आगे  - 3 पर  मछेन्द्रनाथ जीवनी वर्णन )

सच्चे साधु के लक्षण

एक बार की बात है। 

एक संत अपने एक शिष्य के साथ किसी नगर की ओर जा रहे थे। 
.
रास्ते में चलते-चलते रात हो चली थी और तेज बारिश भी हो रही थी। 

संत और उनका शिष्य कच्ची सड़क पर चुपचाप चले जा रहे थे। 
.
उनके कपड़े भी कीचड़ से लथपथ हो चुके थे। 

मार्ग में चलते-चलते संत ने अचानक अपने शिष्य से सवाल किया - 'वत्स, क्या तुम बता सकते हो कि वास्तव में सच्चा साधु कौन होता है ?
.
संत की बात सुनकर शिष्य सोच में पड़ गया। 

उसे तुरंत कोई जवाब नहीं सूझा। 
.
उसे मौन देखकर संत ने कहा - सच्चा साधु वह नहीं होता, जो अपनी सिद्धियों के प्रभाव से किसी रोगी को ठीक कर दे या पशु-पक्षियों की भाषा समझ ले। 
.
सच्चा साधु वह भी नहीं होता, जो अपने घर-परिवार से नाता तोड़ पूरी तरह बैरागी बन गया हो या जिसने मानवता के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया हो।
.
शिष्य को यह सब सुनकर बहुत आश्चर्य हो रहा था। 

वह तो इन्हीं गुणों को साधुता के लक्षण मानता था। 
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उसने संत से पूछा - गुरुदेव, तो फिर सच्चा साधु किसे कहा जा सकता है ? 
.
इस पर संत ने कहा - वत्स, कल्पना करो कि इस अंधेरी, तूफानी रात में हम जब नगर में पहुंचें और द्वार खटखटाएं। 
.
इस पर चौकीदार हमसे पूछे - कौन है ? 

और हम कहें - दो साधु। 
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इस पर वह कहे - मुफ्तखोरो ! चलो भागो यहां से। 

न जाने कहां-कहां से चले आते हैं। 
.
संत के मुख से ऐसी बातें सुनकर शिष्य की हैरानी बढ़ती जा रही थी।
.
संत ने आगे कहा - सोचो, इसी तरह का व्यवहार और जगहों पर भी हो। 

हमें हर कोई उसी तरह दुत्कारे, अपमानित करे, प्रताड़ित करे। .

इस पर भी यदि हम नाराज न हों, उनके प्रति जरा-सी भी कटुता हमारे मन में आए और हम उनमें भी प्रभु के ही दर्शन करते रहें, तो समझो कि यही सच्ची साधुता है। 
.
साधु होने का मापदंड है - हर परिस्थिति में समानता और सहजता का व्यवहार।
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इस पर शिष्य ने सवाल किया - लेकिन इस तरह का भाव तो एक गृहस्थ में भी हो सकता है। 

तो क्या वह भी साधु है ? 
.
संत ने मुस्कराते हुए कहा - बिलकुल है, जैसा कि मैंने पहले ही कहा कि सिर्फ घर छोड़कर बैरागी हो जाने से ही कोई साधु नहीं हो जाता। 
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साधु वही है, जो साधुता के गुणों को धारण करे। 

और ऐसा कोई भी कर सकता है।

भगवान् बहुत ही दयालु है:

एक राजा का फलों का एक विशाल बगीचा था। 

उसमें तरह-तरह के फल लगते थे।

उस बगीचे की सारी देख-रेख एक किसान‌‌ अपने परिवार के साथ करता था।

और वो किसान हर दिन बगीचे के ताजे फल लेकर राजा‌ के राजमहल में जाता था।

एक दिन किसान ने पेड़ों पर देखा।

कि नारियल, अनार, अमरूद और अंगूर आदि पक कर‌‌ तैयार हो रहे हैं।

*फिर वो किसान सोचने लगा- कि आज कौन सा फल‌ राजा को अर्पित करूं?*

*और उसे लगा कि आज राजा को अंगूर अर्पित करने चाहिएं,*

क्योंकि वो बिल्कुल पक कर तैयार हैं।

फिर उसने अंगूरों की टोकरी भर ली और राजा को देने चल पड़ा।

किसान जब राजमहल में पहुंचा ।

तो राजा किसी दूसरे ख्याल में खोया हुआ था और थोड़ी सा नाराज भी लग रहा था। 

किसान ने रोज की तरह मीठे रसीले अंगूरों की टोकरी राजा के सामने रख दी।

और थोड़ी दूरी पर बैठ गया।

अब राजा उन्ही ख्यालों में टोकरी में से अंगूर उठाता।

एक खाता और एक खींचकर किसान के माथे पर निशाना साधकर फेंक देता।

राजा का अंगूर जब भी किसान के माथे या शरीर पर लगता था।

 *तो किसान कहता---* 

*ईश्वर बड़ा ही दयालु है।*

राजा फिर और जोर से अंगूर फेंकता था। 

*और किसान फिर वही कहता---* 

*ईश्वर बड़ा ही दयालु है।*

थोड़ी देर बाद जब राजा को एहसास हुआ।

कि वो क्या कर रहा है और प्रत्युत्तर क्या आ रहा है। 

तो वो संभलकर बैठ गया और फिर 

*किसान से कहा---* 

*मैं तुम्हें बार-बार अंगूर मार रहा हूं, और ये अंगूर तुम्हें लग भी रहे हैं ।* 

पर फिर भी तुम बार-बार यही क्यों कह रहे हो--- 

ईश्वर बड़ा ही दयालु है।*

किसान बड़ी ही नम्रता से बोला- राजा जी! 

बाग में आज नारियल, अनार, अमरुद और अंगूर आदि फल तैयार थे । 

पर मुझे भान हुआ कि क्यों न मैं आज आपके लिए अंगूर ले चलूं। 

अब लाने को तो मैं नारियल, अनार और अमरुद भी ला सकता था । 

पर मैं अंगूर लाया।

*यदि अंगूर की जगह नारियल, अनार या अमरुद रखे होते ।* 

*तो आज मेरा हाल क्या होता?*

*इसीलिए मैं कह रहा था-* 
*ईश्वर बड़ा ही दयालु है।*

तात्पर्य------

*इसी प्रकार ईश्वर हमारी भी कई मुसीबतों को बहुत ही हल्का करके हमें उबार लेते हैं ।*

*पर ये तो हम ही कृतघ्न प्राणी हैं जो धन्यवाद न करते हुए।*

 *उल्टा उन्हें ही गलत ठहरा देते हैं।*

मेरे साथ ही ऐसा क्यूं हुआ? 

मेरा क्या कसूर था आदि आदि ?

*परम पिता परमात्मा को असंख्य कोटि-कोटि प्रणाम, नमन एवं धन्यवाद ।* 

*उनकी अहेतु की हर कृपा के लिए 🙇🙏💐🚩*

शांतिदूत का दायित्व :

शांतिदूत का दायित्व और बल,बुद्धि,विवेक के साथ राम - अंगद संवाद.....

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श्रीरामजी ने कहा था:-
अंगद दूत का बड़ा दायित्व होता है।

शत्रु को भरी सभा मे अपने स्वामी का संदेश सुनाना और अपनी बात से सहमत करवाना।अपने स्वामी की शक्ति का इस प्रकार बखान करना कि अपने स्वामी का सम्मान भी बना रहे और सामने सुनने वाले को अपना निरादर भी न लगे।आत्मसंयम दूत का सबसे बड़ा गुण है अंगद।
तुम क्या उद्देश्य लेकर जा रहे हो इसे भलीभांति समझ लो।रावण सम्मान के साथ सीता को वापस पहुँचा दे।रक्तपात और संघार की स्थिति न आने पाए।यही उद्देश्य है हमारा।तुम हमारी ओर से शांति दूत बनकर जा रहे हो बालिकुमार।

"शांति सन्देशा राम का,ले जाओ युवराज।
एक अवसर दो शत्रु को,वीरोचित यह काज।।"

दूत का एक और भी कर्तव्य होता है बालिकुमार...शत्रु के सामने अपने दल की शक्ति और अपनी सेना के बलाबल का वर्णन इस चतुराई से करे कि शत्रु अंदर ही अंदर दहल जाए।

जाओ विजयी भव।

'शांतिदूत ने राम का,लेकर शांति सन्देश।

असत,अधर्म,अनीति के,गढ़ में किया प्रवेश।।'

फिर गदा बाहर फेक दी अंगद ने....बाहर

"शत शत दल पीछे अंगद चला है ऐसे निर्भयसिंग जैसे हाथियों के दल में।

साहस अपार लिए राम का आधार लिए कूद पड़े जैसे कोई सागर अटल में।

रोके न किसी के रोके बढ़ता ही चला जाए सूर्य का प्रकाश जैसे घने जंगल में।

राम जी की सेना में है बड़े बड़े योद्धा पर अंगद सा एक न विवेक बुद्धि बल में।।"

••••आज की रामायण का प्रमुख अंश...
पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
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महाभारत की कथा का सार

महाभारत की कथा का सार| कृष्ण वन्दे जगतगुरुं  समय नें कृष्ण के बाद 5000 साल गुजार लिए हैं ।  तो क्या अब बरसाने से राधा कृष्ण को नहीँ पुकारती ...

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