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जय द्वारकाधीश
मछेन्द्रनाथ बन्द्रिकाश्रम तप और दीक्षा वर्णन भाग 5 , सुंदर काव्य रचना
5 गुरु नवनाथ पंथ कथा 💥
॥ मछेन्द्रनाथका बद्रिकाश्रम में तप और दीक्षा वर्णन ॥ भाग - 5
ॐ नमोनमः शिव गोरक्ष योगी ।
आदेश आदेश
बालक मछेन्द्र शिव - शिव रटते हुये बद्रिकाश्रम पँहुवे, और वहाँ वन में घोर तपस्या करनी शुरू करदी ; प्रारम्भ में तो कन्द मूल फल का सेवन किया, उसके बाद सब छोड़कर सिर्फ वायु ( हवा ) सेवन को ही जीविका का आधार माना ।
भक्त ध्रुव की तरह वह बारह वर्ष कठिन तपस्या से विचलित नही हुये ।
सारा शरीर सुख कर ढांचा मात्र रह गया !
बालक की घोर तपस्या देख महादेव जी अत्यन्त प्रसन्न हुए और भगवान् दत्तात्रेय को अपने साथ लेकर बद्रिकाश्रम के वन में भागीरथी के तट पर जहाँ मछेन्द्र नाथ तपस्या कर रहे थे दोनो देवता पहुचे ।
भगवान् शँकर तो एक पत्थर की शिला पर अलग बिराज गए और भगवान् दत्तात्रेय जी अकेले मछेन्द्र के सामने जा पहुचे, जहॉ वो ध्यान पुर्वक तप कर रहे थे ।
मछेन्द्रनाथ की तपस्या देखकर भगवान् दत्तात्रेय जी अवाक रह गए ।
थोड़ी देर पश्चात् भगवान् दत्तात्रेय जी ने मछेन्द्र नाथ से प्रश्न किया कि-
*"तुम्हारा नाम क्या है और इस तप का उद्देश्य क्या है ?"*
भगवान् दत्तात्रेय के प्रश्न का उत्तर देने से पूर्व मछेन्द्रनाथ ने पूछा- *"
भगवान् !
पहले तो यह बताइये की आप कहाँ से पधारे है ?"*
भगवान् दत्तात्रेय ने कहां -
*"मेरा नाम दत्तात्रेय है ।
तुम्हारी कठिन तपस्या देखकर तुम्हे वरदान देने के लिए ही तुम्हारे पास आना पड़ा ।
अब जो भी तुम्हारी मनोकामना हो मुझे बताओ ।"*
मछेन्द्रनाथ ने यह जानकर कि ये खुद भगवान् दत्तात्रेय है, अपने दोनों हाथ जोड़कर प्रणामकरके उनके चरण पकड़ लिए और बोले -
*"यदि प्रभु मेरे ऊपर दयालु है तो मेरे दोषों को क्षमा करके मुझे सर्व गुण सम्पन्न होने का वरदान दे
।"* मछेन्द्रनाथ के मुख से वचन निकलते ही भगवान् दत्तात्रेय ने उनके सिर पर हाथ रखकर *"तथास्तु"* कहा ।
भगवान् दत्तात्रेय का मछेन्द्रनाथ के मस्तक पर हाथ रखते ही उनका शरीर पहले तरह की समान हष्ट पुष्ट हो गया ।
उन्हें सारा जगत् शिव ही शिव दिखाई पड़ने लगा ।
फिर *भगवान् दत्तात्रेय ने मछेन्दफनाथ के कान में मंत्र फूंककर "नाथ पंथ की दीक्षा" देकर प्रथम बार अपना शिष्य बनाया और स्वयं गुरु बने ।*
नाथ पंथ की दीक्षा देकर मछेन्द्रनाथ को साथ लेकर भगवान् दत्तात्रेय वहाँ पहुचे जहॉ पर देवो के देव महादेव शिला पर विराजमान थे ।
मछेन्द्रनाथ भगवान् शँकर को देखकर उनके चरणों में पड़ गये ।
देवादि देव महादेव ने उन्हें उठाकर छाती से लगाकर बोले -
*"हे दत्तात्रेय जी !
इस दिव्य देवधारी तपस्वी बालक को को मैंने समुन्द्र तट के पास मछली के गर्भ में देखा था और इसने गर्भ में ही मेरे द्वारा दिया हुआ, ब्रह्नज्ञान का दिव्य उपदेश सुन लिया था तथा उसके रहस्य की पूर्ण जानकारी प्राप्त करली ।"
"यह अनोखा बालक कविनारायणं का ही अवतार हैं ;
अब आप इसे सम्पूर्ण गुप्त विद्याओं की जानकारी प्राप्त कराओ ।
मेरा आशीर्वाद इसके साथ है कि यह आपका चेला समूर्ण संसार में आपका मस्तक ऊंचा कर के अक्षय कीर्ति का अधिकारी बनेगा ।"*
इतना कह भगवान् शिव शंकर अंर्तध्यान हो कैलाश पर्वत पर जा विराजे ।
और भगवान् दत्तात्रेय ने वेद - वेदांग यंत्र - मंत्र शास्त्रों की सब विद्याओं की शिक्षा दे मछेन्द्रनाथ को प्रवीण कर दिया । उन्हें देश देशान्तरों में घूम - घूमकर प्राणियों के दुःख दूर करने की आज्ञा दी ।
॥ ॐ नमोनमः आदिनाथ शिवशम्भु जी ॥
। आदिगुरु भगवान दत्तात्रेय आदेश ।
( आगे भाष - 6 पर )
।। सुंदर काव्य रचना ।।
' *खाली मुठ्ठी बाकी है*
*तीन पहर तो बीत गये,*
*बस एक पहर ही बाकी है।*
*जीवन हाथों से फिसल गया*,
*बस खाली मुट्ठी बाकी है।*
*सब कुछ पाया इस जीवन में,*
*फिर भी इच्छाएं बाकी हैं।*
*दुनिया से हमने क्या पाया,*
*यह लेखा जोखा बहुत हुआ,*
*इस जग ने हमसे क्या पाया,*
*बस यह गणनाएं बाकी हैं।*
*तीन पहर तो बीत गये,*
*बस एक पहर ही बाकी है।*
*जीवन हाथों से फिसल गया,*
*बस खाली मुट्ठी बाकी है।*
*इस भाग दौड़ की दुनिया में,*
*हमको एक पल का होश नहीं,*
*वैसे तो जीवन सुखमय है,*
*पर फिर भी क्यों संतोष नहीं,*
*क्या यूँ ही जीवन बीतेगा?*
*क्या यूँ ही सांसे बंद होंगी?*
*औरों की पीड़ा देख समझ,*
*कब अपनी आँखे नम होंगी?*
*मन के भीतर कहीं छिपे हुए,*
*इस प्रश्न का उत्तर बाकी है।*
*तीन पहर तो बीत गये,*
*बस एक पहर ही बाकी है।*
*जीवन हाथों से फिसल गया,*
*बस खाली मुट्ठी बाकी है।*
*मेरी खुशियां,मेरे सपने,*
*मेरे बच्चे,मेरे अपने,*
*यह करते करते शाम हुई,*
*इससे पहले तम छा जाए,*
*इससे पहले कि शाम ढ़ले,*
*दूर परायी बस्ती में,*
*एक दीप जलाना बाकी है।*
*जो भी सीखा इस जीवन में,*
*उसको अर्पण करना भी बाकी है।*
*तीन पहर तो बीत गये,*
*बस एक पहर ही बाकी है।*
*जीवन हाथों से फिसल गया,*
*बस खाली मुट्ठी बाकी है।*
' *खाली मुठ्ठी बाकी है*
जय जय श्री कृष्ण...!!!
पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:-
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science)
" Opp. Shri Dhanlakshmi Strits , Marwar Strits, RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
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नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏
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