https://www.profitablecpmrate.com/gtfhp9z6u?key=af9a967ab51882fa8e8eec44994969ec 2. आध्यात्मिकता का नशा की संगत भाग 1: मछेन्द्रनाथ जन्म ( जीवनी ) वर्णन 2/4 , गाय का झूठा गुड़ ,

मछेन्द्रनाथ जन्म ( जीवनी ) वर्णन 2/4 , गाय का झूठा गुड़ ,

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

मछेन्द्रनाथ जन्म ( जीवनी ) वर्णन 2/4 , गाय का झूठा गुड़ , 


4 गुरु नवनाथ पंथ कथा 💥

॥ मछेन्द्रनाथ जीवनी ( जन्म ) वर्णन ' ब '॥  भाग - 4

ॐ नमोनमः शिव गोरख योगी   । 

आदेश आदेश
                 
                शिव जी बोले - 

*" कवि नारायण ! 

आपने मछली के गर्भ में मेरी ज्ञान चर्चा के रहस्य को भली भाँती समझ लिया । 

यह जानकर मुझे अति हर्ष हुआ है । 

कारण, अधिकारी पात्र, मंत्र, तत्व का सदुपयोग ही करता है । 

राक्षस की तरह दुरुपयोग नही करता । 




आप तत्व ज्ञान के अधिकारी है । 

इसे मैं भली - भांति समझता हूँ । 

इस वक़्त आप माता के गर्भ में है । 

इस लिये इतने ही तत्व का सुमरन कीजिये, जब आपका जन्म हो जायेगा 

तब आप विद्या अध्यन के बाद घूमते - घामते बद्रिकाश्रम मेरे पास आना । 

वहाँ मैं परम् सिद्ध भगवान् दत्तात्रेय से दीक्षा दिलाकर उनका शिष्य बनाऊंगा । 

उनके अमर उपदेश को सुनकर आप भी अमर हो जाओगे ।

"*इतने वचन कहकर शिवजी महाराज गौरा पार्वती को जगाकर अंर्तध्यान हो गये ।

कुछ समय के बाद मछली ने गर्भ से अण्डे को जन्म दिया और समुन्द्र किनारे अण्डे को छोड़कर स्वयं समुन्द्र में चली गई । 

अण्डे को देखकर कुछ बगुले आगये । एक बगुले ने अण्डे को चोंच मार दी । 

चोंच का लगना था कि अण्डा फुट गया ; और उसके भीतर से कवि नारायण जोर जोर से रोने लगे । 

तेजस्वी बालक के रोने की आवाज सुनकर बगुले उड़ गये, परन्तु *"बालक ने हुआ- 

हुआ का शब्द दूर - दूर तक पहुच रहा था ।"*

उसी समय कामिक नामक का एक मछेरा मछली पकडंने के लिए उस तरफ आ पहुचा । 

मछेरा निसन्तान था, उसके कोई संतान नही हुई थी ; बिना संतान उसे कुछ अच्छा नही लगता था । 

वह तुरंत बालक के नजदीक जा पहुचा, मछुआरे ने देखा सूर्य के समान तेजस्वी बालक समुन्द्र के किनारे पड़ा है । 

उसने प्रभु कृपा समझ , तुरन्त अपनी गोद में उठा प्यार पुचकार ने पर बालक रोना बन्द कर उसको देखने लगा ।

तब ही आकाशवाणी हुई - 

*" हे कामिक इस तेजस्वी बालक का जन्म मछली के पेट से हुआ है । 

तेरे धन्य भाग्य है जो बालक रूप में तेरी गोद में भगवान कवि नारायण है । 

अब बालक को तू अपने घर ले जाकर अपनी संतान की तरह लालन पालन कर । 

आगे चलकर यह बहुत बड़ा योगी संत होगा । 

इसके साथ तेरा भी नाम अमर हो जायेगा । 

वह हर्षित होकर अपने घर ले चला  । 

घर जाकर शारदत्ता ( उसकी पत्नी ) को बालक को सौप कर, आकाशवाणी और बालक के जन्म की बात बताई और कहा -  

इस बालक नाम ' मत्यसेन्द्र ' ही रखता हूँ क्योंकि यह मछली के गर्भ से प्रकट हुआ हुआ है ।"*

वह गद गद स्वर में बोली - 

मैं सुकुमार बालक को अपने कलेजे का टुकड़ा समझकर पालूंगी, इतना कहकर उसने बालक चाहती से चिपका लिया । 

" प्रभु कृपा से उसके सूखे हुए स्तनों में से दूध की धारा निकल पड़ी ।  

वह बालक को दूध पिलाने लगी "। 

बालक का नाम मत्यसेन्द्रनाथ ही रखा गया । 

धीरे धीरे मछंदर नाथ पांच साल की आयु के हो गए । 

कामिक और शारदत्ता नित्य समुन्द्र तट पर म्छलिया पकडंने जाते थे, वही उनके जीविका का एक मात्र साधन था । 

मछंदरनाथ भी उनके साथ साथ समुन्द्र तट पर जाया करता था ; 

उन्होंने मछली के गर्भ में भगवान् शिव द्वारा ज्ञान चर्चा सुनी थी । 

इस लिए उन्हें मछलियों के व्यपार से घृणा हो गयी ।  

जब उनसे मछलियों का तड़पना नही देखा जाता, तो वह कुछ दूर मुँह फेर कर बैठे रेत से खेलकर समय बिताया करते । 

एक दिन मतसेन्द्रनाथ वहां से काफी दूर निकल गये ।

               ॥ जय जय गुरु मछेन्द्रनाथ जी ॥
( आगे भाग  - 5 पर )

।। श्री ऋग्वेद प्रवचन और सुंदर सत्य घटना की कहानी ।।

**"गाय का झूठा गुड़"*





*एक शादी के निमंत्रण पर जाना था, पर मैं जाना नहीं चाहता था।*

*एक व्यस्त होने का बहाना और दूसरा गांव की शादी में शामिल होने से बचना..* 

*लेक‌िन घर परिवार का दबाव था सो जाना पड़ा।*

*उस दिन शादी की सुबह में काम से बचने के लिए सैर करने के बहाने दो- तीन किलोमीटर दूर जा कर मैं गांव को जाने बाली रोड़ पर बैठा हुआ था ।* 

*हल्की हवा और सुबह का सुहाना मौसम बहुत ही अच्छा लग रहा था , पास के खेतों में कुछ गाय चारा खा रही थी कि तभी वहाँ एक लग्जरी गाड़ी  आकर रूकी,*

*और उसमें से एक वृद्ध उतरे,अमीरी उसके लिबास और व्यक्तित्व दोनों बयां कर रहे थे।*

*वे एक पॉलीथिन बैग ले कर मुझसे कुछ दूर पर ही एक सीमेंट के चबूतरे पर बैठ गये ।*

 *पॉलीथिन चबूतरे पर उंडेल दी, उसमे गुड़ भरा हुआ था, अब उन्होने आओ आओ करके पास में ही खड़ी ओर बैठी गायो को बुलाया ।* 

*सभी गाय पलक झपकते ही उन बुजुर्ग के इर्द गिर्द ठीक ऐसे ही आ गई जैसे कई महीनो बाद बच्चे अपने मांबाप को घेर लेते हैं ।* 

*कुछ गाय को गुड़ उठाकर खिला रहे थे तो कुछ स्वयम् खा रही थी ।* 

*वे बड़े प्रेम से उनके सिर पर गले पर हाथ फेर रहे थे।*

*कुछ ही देर में गाय अधिकांश गुड़ खाकर चली गई,इसके बाद जो हुआ वो वाक्या हैं जिसे मैं ज़िन्दगी भर नहीं भुला सकता,*

*हुआ यूँ कि गायो के गुड़ खाने के बाद जो गुड़ बच गया था वो बुजुर्ग उन टुकड़ो को उठा उठा कर खाने लगे ।* 

*मैं उनकी इस क्रिया से अचंभित हुआ पर उन्होंने बिना किसी परवाह के कई टुकड़े खाये और अपनी गाडी की और चल पड़े।*

*मैं दौड़कर उनके नज़दीक पहुँचा और बोला श्रीमानजी क्षमा चाहता हूँ पर अभी जो हुआ उससे मेरा दिमाग घूम गया ।* 

*क्या आप मेरी इस जिज्ञासा को शांत करेंगे कि आप इतने अमीर होकर भी गाय का झूठा गुड क्यों खाया ??*

*उनके चेहरे पर अब हल्की सी मुस्कान उभरी उन्होंने कार का गेट वापस बंद करा और मेरे कंधे पर हाथ रख वापस सीमेंट के चबूतरे पर आ बैठे, और बोले ये जो तुम गुड़ के झूठे टुकड़े देख रहे हो ना बेटे मुझे इनसे स्वादिष्ट आज तक कुछ नहीं लगता।*

*जब भी मुझे वक़्त मिलता हैं मैं अक्सर इसी जगह आकर अपनी आत्मा में इस गुड की मिठास घोलता हूँ।*

*मैं अब भी नहीं समझा श्री मान जी आखिर ऐसा क्या हैं इस गुड में ???*

   *वे बोले ये बात आज से कोई 40 साल पहले की हैं उस वक़्त मैं 22 साल का था घर में जबरदस्त आंतरिक कलह के कारण मैं घर से भाग आया था ।* 

*परन्तू दुर्भाग्य वश ट्रेन में कोई मेरा सारा सामान और पैसे चुरा ले गया।* 

*इस अजनबी से छोटे शहर में मेरा कोई नहीं था ।* 

*भीषण गर्मी में खाली जेब के दो दिन भूखे रहकर इधर से उधर भटकता रहा, और शाम को भूख मुझे निगलने को आतुर थी।*

*तब इसी जगह ऐसी ही एक गाय को एक महानुभाव गुड़ डालकर चले गए ।* 

*यहाँ एक पीपल का पेड़ हुआ करता था तब चबूतरा नहीं था ।* 

*मैं उसी पेड़ की जड़ो पर बैठा भूख से बेहाल हो रहा था ।* 

*मैंने देखा कि गाय ने गुड़ छुआ तक नहीं और उठ कर वहां से चली गई ।* 

*मैं कुछ देर किंकर्तव्यविमूढ़ सोचता रहा और फिर मैंने वो सारा गुड़ उठा लिया और खा लिया।* 

*मेरी मृतप्रायः आत्मा में प्राण से आ गये।*

 *मैं उसी पेड़ की जड़ो में रात भर पड़ा रहा, सुबह जब मेरी आँख खुली तो काफ़ी रौशनी हो चुकी थी ।* 

*मैं नित्यकर्मो से फारिक हो किसी काम की तलाश  में फिर सारा दिन भटकता रहा पर दुर्भाग्य मेरा पीछा नहीं छोड़ रहा था ।* 

*एक और थकान भरे दिन ने मुझे वापस उसी जगह निराश भूखा खाली हाथ लौटा दिया।*

*शाम ढल रही थी ।* 

*कल और आज में कुछ भी तो नहीं बदला था ।* 

*वही पीपल, वही भूखा मैं और वही गाय।*

*कुछ ही देर में वहाँ वही कल वाले सज्जन आये और कुछ गुड़ की डलिया गाय को डालकर चलते बने ।* 

*गाय उठी और बिना गुड़ खाये चली गई ।* 

*मुझे अज़ीब लगा परन्तू मैं बेबस था सो आज फिर गुड खा लिया।*

     *और वही सो गया ।* 

*सुबह काम तलासने निकल गया ।* 

*आज शायद दुर्भाग्य की चादर मेरे सर पे नहीं थी सो एक ढ़ाबे पर मुझे काम मिल गया।* 

*कुछ दिन बाद जब मालिक ने मुझे पहली पगार दी तो मैंने 1 किलो गुड़ ख़रीदा और किसी दिव्य शक्ति के वशीभूत 7 km पैदल पैदल चलकर उसी पीपल के पेड़ के नीचे आया।*

*इधर उधर नज़र दौड़ाई तो गाय भी दिख गई ।* 

*मैंने सारा गुड़ उस गाय को डाल दिया ।* 

*इस बार मैं अपने जीवन में सबसे ज्यादा चौंका क्योकि गाय सारा गुड़ खा गई ।*

 *जिसका मतलब साफ़ था की गाय ने 2 दिन जानबूझ कर मेरे लिये गुड़ छोड़ा था,*

*मेरा हृदय भर उठा उस ममतामई स्वरुप की ममता देखकर, मैं रोता हुआ बापस ढ़ाबे पे पहुँचा,और बहुत सोचता रहा ।* 

*फिर एक दिन मुझे एक फर्म में नौकरी भी मिल गई ।* 

*दिन पर दिन मैं उन्नति और तरक्की के शिखर चढ़ता गया,*

*शादी हुई बच्चे हुये आज मैं खुद की पाँच फर्म का मालिक हूँ ।* 

*जीवन की इस लंबी यात्रा में मैंने कभी भी उस गाय माता को नहीं भुलाया ।* 

*मैं अक्सर यहाँ आता हूँ और इन गायो को गुड़ डालकर इनका झूँठा गुड़ खाता हूँ,* 

*मैं लाखो रूपए गौ शालाओं में चंदा भी देता हूँ ।* 

*परन्तू मेरी मृग तृष्णा मन की शांति यही आकर मिटती हैं बेटे।*

*मैं देख रहा था वे बहुत भावुक हो चले थे, समझ गये अब तो तुम,*

*मैंने सिर हाँ में हिलाया, वे चल पड़े,गाडी स्टार्ट हुई और निकल गई ।* 

*मैं उठा उन्ही टुकड़ो में से एक टुकड़ा उठाया मुँह में डाला वापस शादी में शिरकत करने सच्चे मन से शामिल हुआ।*

*सचमुच वो कोई साधारण गुड़ नहीं था।*

 *उसमे कोई दिव्य मिठास थी जो जीभ के साथ आत्मा को भी मीठा कर गई थी।*

*घर आकर गाय के बारे जानने के लिए कुछ किताबें पढ़ने के बाद जाना कि.....,*

*गाय गोलोक की एक अमूल्य निधि है, जिसकी रचना भगवान ने मनुष्यों के कल्याणार्थ आशीर्वाद रूप से की है।*

*ऋग्वेद में गौ को‘अदिति’ कहा गया है।*

*‘दिति’ नाम नाश का प्रतीक है और ‘अदिति’ अविनाशी अमृतत्व का नाम है।*

*अत: गौ को ‘अदिति’ कहकर वेद ने अमृतत्व का प्रतीक बतलाया है।*
                 
*🙏जय माताजी🙏*

पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
-: 25 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 
" Opp. Shri Dhanlakshmi Strits , Marwar Strits, RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
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जय द्वारकाधीश....
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