https://www.profitablecpmrate.com/gtfhp9z6u?key=af9a967ab51882fa8e8eec44994969ec 2. आध्यात्मिकता का नशा की संगत भाग 1: 07/25/20

अतुलनीय संदेश

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

*अतुलनीय संदेश..*

एक आदमी, जो हमेशा अपने दोस्तों के साथ घुल मिल कर रहता था और उनके साथ बैठकें करता था, अचानक बिना किसी को बताए सबसे मिलना जुलना बंद कर दिया।


कुछ सप्ताह पश्चात् एक बहुत ही ठंडी रात में उस ग्रुप के एक सदस्य ने उससे मिलने का फैसला किया।

वह उस आदमी के घर गया और पाया कि आदमी घर पर अकेला ही था। एक गोरसी में जलती हुई लकड़ियों की लौ के सामने बैठा आराम से आग ताप रहा था। उस आदमी ने आगंतुक का बड़ी खामोशी से स्वागत किया।

दोनों चुपचाप बैठे रहे। केवल आग की लपटों को ऊपर तक उठते हुए ही देखते रहे।

कुछ देर के बाद आगंतुक ने बिना कुछ बोले, उन अंगारों में से एक लकड़ी जिसमें लौ उठ रही थी (जल रही थी) उसे उठाकर किनारे पर रख दिया। और फिर से शांत बैठ गया।

मेजबान हर चीज़ पर ध्यान दे रहा था। लंबे समय से अकेला होने के कारण मन ही मन आनंदित भी हो रहा था कि वह आज अपने ग्रुप के एक मित्र के साथ है।   

लेकिन उसने देखा कि अलग की हुए लकड़ी की आग की लौ धीरे धीरे कम हो रही है। कुछ देर में आग बिल्कुल बुझ गई। उसमें कोई ताप नहीं बचा। उस लकड़ी से आग की चमक जल्द ही बाहर निकल गई।

कुछ समय पूर्व जो उस लकड़ी में उज्ज्वल प्रकाश था और आग की तपन थी वह अब एक काले और मृत टुकड़े से ज्यादा कुछ शेष न था।

इस बीच.. दोनों मित्रों ने एक दूसरे का बहुत ही संक्षिप्त अभिवादन किया, कम से कम शब्द बोले।
जानें से पहले उस सदस्य ने अलग की हुई  बेकार लकड़ी को उठाया और फिर से आग के बीच में रख दिया। वह लकड़ी फिर से सुलग कर लौ बनकर जलने लगी, और चारों ओर रोशनी और ताप बिखेरने लगी।

जब मित्र को छोड़ने के लिए मेजबान दरवाजे तक पहुंचा तो उसने मित्र से कहा : आप मेरे घर आकर मुलाकात करने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद।

आज आपने बिना कुछ बात किए ही एक सुंदर पाठ पढ़ाया है। अब मैं अकेला नहीं हूं। जल्द ही ग्रुप में लौटूंगा।

प्रश्न..
उस सदस्य ने क्यों बुझाया उस एक लकड़ी की आग को..?

बहुत सरल है समझना..
ग्रुप का प्रत्येक सदस्य महत्वपूर्ण होता है। कुछ न कुछ विशेषताएं हर सदस्य में होती है। दूसरे सदस्य उनकी विशेषताओं से उर्जा प्राप्त करते हैं। आग और गर्मी के महत्त्व की सीख लेते हैं और देते हैं।

इस ग्रुप के सभी सदस्य भी लौ का हिस्सा हैं। कृपया.. एक दूसरे की लौ जलाए रखें ताकि एक मजबूत और प्रभावी ग्रुप बने।

 सफलता में एक दूसरे को बधाई संदेश आदि देना भी ग्रुप का एक  महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसे अपनाएं। हम यहां मिलने, सीखने, विचारों का आदान-प्रदान करने या यह समझने के लिए हैं कि हम अकेले नहीं हैं। 

आइए लौ को और भी ज्यादा प्रज्वलित करें। इस ग्रुप के साथ जीवन को और भी सुंदर बनाए।
कोशिक करे केवल सकारात्मक पोस्ट ही डालें ।
🌹🌹🌹🙏🌹🌹🌹
🙏 जय श्री कृष्ण जय श्री कृष्ण जय श्री कृष्ण 🙏
पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 
" Opp. Shri Dhanlakshmi Strits , Marwar Strits, RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
सेल नंबर: . + 91- 7010668409 / + 91- 7598240825 WHATSAPP नंबर : + 91 7598240825 ( तमिलनाडु )
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आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद.. 
नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏

।। सब से बड़ी समस्या , बहुत ही सुंदर साखी ( कथा ) , *श्रीहनुमत्-स्तुति ~ 5*_ ।।

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जय द्वारकाधीश

।। सब से बड़ी समस्या , बहुत ही सुंदर साखी ( कथा )  , *श्रीहनुमत्-स्तुति ~ 5*_  ।।


*आज का प्रेरक प्रसङ्ग*

       !! *सब से बड़ी समस्या* !!

बहुत समय पहले की बात है एक महा ज्ञानी पंडित हिमालय की पहाड़ियों में कहीं रहते थे. लोगों के बीच रह कर वह थक चुके थे और अब ईश्वर भक्ति करते हुए एक सादा जीवन व्यतीत करना चाहते थे. लेकिन उनकी प्रसिद्धि इतनी थी की लोग दुर्गम  पहाड़ियों, सकरे रास्तों, नदी-झरनो को पार कर के भी उससे मिलना चाहते थे, उनका मानना था कि यह विद्वान उनकी हर समस्या का समाधान कर सकता है। 

इस बार भी कुछ लोग ढूंढते हुए उसकी कुटिया तक आ पहुंचे।



पंडित जी ने उन्हें इंतज़ार करने के लिए कहा. तीन दिन बीत गए, 

अब और भी कई लोग वहां पहुँच गए, 

जब लोगों के लिए जगह कम पड़ने लगी तब पंडित जी बोले,” आज मैं आप सभी के प्रश्नो का उत्तर दूंगा, पर आपको वचन देना होगा कि यहाँ से जाने के बाद आप किसी और से इस स्थान के  बारे में  नहीं बताएँगे, 

ताकि आज के बाद मैं एकांत में रह कर अपनी साधना कर सकूँ…..!

चलिए अपनी - अपनी समस्याएं बताइये"।

यह सुनते ही किसी ने अपनी परेशानी बतानी शुरू की, लेकिन वह अभी कुछ शब्द ही बोल पाया था कि बीच में किसी और ने अपनी बात कहनी शुरू कर दी. सभी जानते थे कि आज के बाद उन्हें कभी पंडित जी से बात करने का मौका नहीं मिलेगा ; 

इस लिए वे सब जल्दी से जल्दी अपनी बात रखना चाहते थे. कुछ ही देर में वहां का दृश्य मछली - बाज़ार जैसा हो गया और अंततः पंडित जी को चीख कर बोलना पड़ा,” 

कृपया शांत हो जाइये ! 

अपनी - अपनी समस्या एक पर्चे पे लिखकर मुझे दीजिये।

सभी ने अपनी - अपनी समस्याएं लिखकर आगे बढ़ा दी. पंडित जी ने सारे पर्चे लिए और उन्हें एक टोकरी में डाल कर मिला दिया और बोले, 

” इस टोकरी को एक - दूसरे को पास कीजिये, 

हर व्यक्ति एक पर्ची उठाएगा और उसे पढ़ेगा. 

उसके बाद उसे निर्णय लेना होगा कि क्या वो अपनी समस्या को इस समस्या से बदलना चाहता है ?” 

हर व्यक्ति एक पर्चा उठाता, उसे पढता और सहम सा जाता। 

एक - एक कर के सभी ने पर्चियां देख ली पर कोई भी अपनी समस्या के बदले किसी और की समस्या लेने को तैयार नहीं हुआ; 

सबका यही सोचना था कि उनकी अपनी समस्या चाहे कितनी ही बड़ी क्यों न हो बाकी लोगों की समस्या जितनी गंभीर नहीं है. 

दो घंटे बाद सभी अपनी - अपनी पर्ची हाथ में लिए लौटने लगे, वे खुश थे कि उनकी समस्या उतनी बड़ी भी नहीं है जितना कि वे सोचते थे।

*शिक्षा*:-

Friends, ऐसा कौन होगा जिसकी Life में एक भी Problem न हो ? 

हम सभी के जीवन में समस्याएं हैं, कोई अपनी Health से परेशान है तो कोई Lack Of Wealth से। हमें इस बात को Accept करना चाहिए कि Life है तो छोटी - बड़ी समस्याएं आती ही रहेंगी, ऐसे में दुखी हो कर उसी के बारे में सोचने से अच्छा है कि हम अपना ध्यान उसके निवारण में लगाएं…! 

और अगर उसका कोई Solution ही न हो तो अन्य Productive चीजों पर Focus करें…! 

हमें लगता है कि सबसे बड़ी समस्या हमारी ही है पर यकीन जानिए इस दुनिया में लोगों के पास इतनी बड़ी - बड़ी Problems हैं कि हमारी तो उनके सामने कुछ भी नहीं…! 

इस लिए ईश्वर ने जो भी दिया है उसके लिए Thankful रहिये और एक खुशहाल जीवन जीने का प्रयास करिये।

सत्संग का क्या महत्व है 

बहुत ही सुंदर साखी ( कथा )


एक संत रोज अपने शिष्यों को गीता पढ़ाते थे। 

सभी शिष्य इससे खुश थे लेकिन एक शिष्य चिंतित दिखा। 

संत ने उससे इसका कारण पूछा। 

शिष्य ने कहा- गुरुदेव, मुझे आप जो कुछ पढ़ाते हैं ।

वह समझ में नहीं आता, मैं इसी वजह से चिंतित और दुखी हूं। 

गुरु ने कहा- कोयला ढोने वाली टोकरी में जल भर कर ले आओ। 

शिष्य चकित हुआ ।

आखिर टोकरी में कैसे जल भरेगा? 

लेकिन चूंकि गुरु ने यह आदेश दिया था ।

इस लिए वह टोकरी में नदी का जल भरा और दौड़ पड़ा लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। 

जल टोकरी से छन कर गिर पड़ा। 

उसने टोकरी में जल भर कर कई बार गुरु जी तक दौड़ लगाई लेकिन टोकरी में जल टिकता ही नहीं था। 

तब वह अपने गुरुदेव के पास गया और बोला- गुरुदेव, टोकरी में पानी ले आना संभव नहीं, कोई फायदा नहीं। 

गुरु बोले- फायदा है। 

टोकरी में देखो। 

शिष्य ने देखा- बार बार पानी में कोयले की टोकरी डुबाने से स्वच्छ हो गई है। 

उसका कालापन धुल गया है। 

गुरु ने कहा- ठीक जैसे कोयले की टोकरी स्वच्छ हो गई और तुम्हें पता भी नहीं चला। 

उसी तरह सत्संग  बार बार सुनने से ही कृपा शुरू हो जाती है । 

भले ही अभी तुम्हारी समझ में नहीं आ रहा है ।

लेकिन तुम सत्संग का लाभ अपने जीवन मे जरुर महसूस करोगे और हमेशा गुरु की कृपा  तुम पर बनी रहेगी ।
🌹 🙏🏻जय श्री कृष्ण🙏🏻🌹

【】श्रीसीताराम शरणं मम् 【】*_ 🙏


🌱 *【  ™विनय पत्रिक™   】* 🌱

🏹🎻🪔📝 🦚🦚 📝🪔🎻🏹

_*श्रीहनुमत्-स्तुति ~ 5*_



*राग___धनाश्री*

जयति निर्भरानंद-संदोह कपि-केसरी, केसरी-सुवनभुवनैकभर्ता।

दिव्यभूम्यंजना मंजुलाकर-मणे,
भक्त-संतापचिंतापहर्ता ॥१॥

जयति धर्मार्थ-कामापवर्गद विभो, 
ब्रह्मलोकादि-वैभव-विरागी।

वचन-मानस-कर्म सत्य-धर्मव्रती, जानकीनाथ-चरणानुरागी ॥२॥

जयति विहगेश-बलबुद्धि-वेगाति-मद-मथन, 
मनमथ-मथन, ऊर्ध्वरेता।

महानाटक-निपुन, कोटि-कविकुल-तिलक, गानगुण-गर्व-गंधर्व-जेता ॥३॥

जयति मंदोदरी-केश-कर्षण, विद्यमान-दसकंठ भट-मुकुट मानी।

भूमिजा दुःख-संजात रोषांतकृत-जातना जंतु कृत जातुधानी ॥४॥

जयति रामायण-श्रवण-संजात-रोमांच, लोचन, सजल, शिथिल वाणी।

रामपदपद्म-मकरंद-मधुकर, पाहि, दासतुलसीशरण, शूलपाणी ॥५॥


*हे हनुमान् जी ! 

तुम्हारी जय हो ! 

तुम पूर्ण आनन्द के समूह, वानरों में साक्षात् केसरी सिंह ( बबरशेर ), केशरी के पुत्र और संसार के एकमात्र भरण - पोषण करने वाले हो ।* 

*तुम अञ्जनीरूपी दिव्य भूमि की सुन्दर खानिसे निकली हुई मनोहर मणि हो और भक्तोंके सन्ताप और चिन्ताओं को सदा नाश करते हो ॥१॥*

*हे विभो ! 

तुम्हारी जय हो ! 

तुम धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के देने वाले हो, ब्रह्मलोक तक के समस्त भोग - ऐश्वयों में वैराग्यवान् हो ।* 

 *मन, वचन और कर्म से सत्यरूप धर्म के व्रत का पालन करने वाले हो और श्रीजानकीनाथ रामजी के चरणोंके परम प्रेमी हो ॥२॥*

*तुम्हारी जय हो ! 

तुम गरुड़ के बल, बुद्धि और वेग के बड़े भारी गर्व को खर्व करने वाले तथा कामदेव के नाश करने वाले बाल-ब्रह्मचारी हो।* 

*तुम बडे - बडे नाटकोंके निर्माण और अभिनय में निपुण हो, करोड़ों महाकवियों के कुलशिरोमणि और गान - विद्या का गर्व करने वाले गन्धर्वोंपर विजय पाने वाले हो ॥३॥*

*तुम्हारी जय हो ! 

तुम वीरों के मुकुटमणि, महान् अभिमानी रावण के सामने उसकी स्त्री मन्दोदरी के बाल खींचने वाले हो ।*

 *तुमने श्रीजानकीजी के दुःख को देखकर उत्पन्न हुए क्रोध के वश हो राक्षसियों को ऐसा क्लेश दिया जैसा यमराज पापी प्राणियों को दिया करता है ॥४॥*

*तुम्हारी जय हो ! 

श्रीरामजीका चरित्र सुनते ही तुम्हारा शरीर पुलकित हो जाता है, तुम्हारे नेत्रों में प्रेम के आँसू भर आते हैं और तुम्हारी वाणी गद्गद हो जाती है ।*

*हे श्रीरामके चरण-कमल-पराग के रसिक भौंरे ! 

हे हनुमानरूपी त्रिशूलधारी शिव ! 

यह दास तुलसी तुम्हारी शरण है, इसकी रक्षा करो ॥५॥*

_*शेष [ पद ] अगले भाग में ..............*_

🌻🌿🌻🌿🌻🌿🌻🌿🌻🌿

🙏 _*गोस्वामी श्रीतुलसीदास कृत रामचरित्रमानस रामायण*_ 🙏

🙏 *【 जय जय श्रीसीताराम जी 】* 🙏

।।। शिव ।।। शिव ।।। शिव ।।।।।
पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
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जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏

🍁 शुभ विचार संजीवनी 🍁

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश
  

    🍁 शुभ विचार संजीवनी 🍁


किसी प्रियजन की मृत्यु हो जाय, धन चला जाय तो मनुष्य को शोक होता है।  

ऐसे ही भविष्य को लेकर चिन्ता होती है कि अगर स्त्री मर गई तो क्या होगा ? 

पुत्र मर गया तो क्या होगा ?  

शोक - चिन्ता भी विवेक को महत्व न देने के कारण ही होते हैं।  

संसार में परिवर्तन होना, परिस्थिति बदलना आवश्यक है।  

यदि परिस्थिति नहीं बदलेगी तो संसार कैसे चलेगा ?  

मनुष्य बालक से जवान कैसे बनेगा ?  

मूर्ख से विद्वान कैसे बनेगा ?  

रोगी से निरोग कैसे बनेगा ?  

बीज का वृक्ष कैसे बनेगा ?  

परिवर्तन के बिना संसार स्थिर चित्र की तरह बन जाएगा !  


वास्तव में मरने वाला ( परिवर्तनशील ) ही मरता है, रहने वाला कभी मरता ही नहीं। 

यह सब का प्रत्यक्ष अनुभव है कि मृत्यु होने पर शरीर तो हमारे सामने पड़ा रहता है, पर शरीर का मालिक ( जीवात्मा ) निकल जाता है।  

यदि इस अनुभव को महत्व दें तो फिर चिन्ता - शौक हो ही नहीं सकते।

।। सुंदर  कहानी ।।

देवों के देव महादेव का वह पवित्र स्थान जहाँ पर आधुनिक विज्ञान और वैज्ञानिक फैल –

कैलाश पर्वत जहाँ जो निवास स्थान है देवो के देव महादेव का – 



जहाँ पर आज तक कोई भी व्यक्ति नहीं पहुँच सका....!

वैसे तो विश्व की सबसे ऊँची चोटी गौरी शंकर ( माउंट एवरेस्ट ) है और जिस पर 7000 हजार लोग अभी तक पहुँच चुके हैं...!

पर क्या कारण है कि उससे छोटे कैलाश पर्वत पर आज तक कोई भी व्यक्ति नहीं पहुँच सका...!

ऐसा नहीं है कि वहाँ पर पहुँचने की कोशिश नहीं की गई...!

वहाँ पर पहुँचने के लिए अनेक प्रयास किये गये....!

परंतु सभी असफल रहे क्योंकि वहाँ पर चढ़ाई करने गए लोगों के साथ कुछ ऐसी घटनाएं हुई जिससे उनके होश उड़ गये...!

वहाँ पर चढ़ाई करने गए लोगों का कहना है कि वहाँ पर चढ़ाई करने के बाद वहाँ पर समय बहुत तेजी से आगे बढ़ने लगता है और अचानक हाथ के नाखून और बाल बहुत बड़े हो जाते हैं...! 

इस के अलावा वहाँ पर हमारे कोई यन्त्र काम नहीं करते और दिशा भ्रम होता है और अगर ज्यादा कोशिश करते हैं तो हमें कोई आभास कराता है कि अब मृत्यु निकट है जिस कारण लोग वापिस आ जातें हैं...!

बहुत से वैज्ञानिक और नासा ने अपनी खोज से ये निष्कर्ष निकाला है कि यह वह स्थान है जहाँ पर विज्ञान फैल है और उन्होंने इस स्थान को धरती का केन्द्र माना है...!

वह कहते हैं कि निश्चय ही यहाँ पर कोई ऐसी शक्ति है जो बहुत अधिक शक्तिशाली है और जिस के सामने विज्ञान कुछ भी नहीं...! 

उनका कहना है कि यह पर्वत प्राकृतिक नहीं है...!

इस का निर्माण किसी शक्ति ने किया है और इस पर्वत के चार मुख हैं जो चारों दिशाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं...!

हमारे वेदों, रामायण, महाभारत में कैलाश का वर्णन है हम आज भी मानसरोवर की यात्रा करते हैं कैलाश पर्वत पर दो झीलें है एक ब्रह्मा द्वारा रचित सूर्य के आकार की पवित्र झील जिसे हम मानसरोवर कहते हैं और दूसरी राक्षस झील जो कि चन्द्र के आकार की है....!

वैज्ञानिको ने यह भी माना है कि इन झीलो का निर्माण किया गया है....!

जब हम मानसरोवर से दक्षिण दिशा की ओर देखते हैं तो एक स्वस्तिक का निर्माण हमें दिखाई देता है जिस का वैज्ञानिक पता लगाने मे नाकाम रहे हैं तथा वह यह पता भी नहीं लगा सके हैं कि मानसरोवर पर जब बर्फ पिघलती है तो डमरू और ओम की ध्वनि कैसे और कहाँ से उत्पन्न होती है जिसे हम साफ सुन सकते हैं....

कैलाश पर्वत वह स्थान है जहाँ पर काल और समय का प्रवेश वर्जित है...!

कैलाश पर्वत के चार मुख हैं...!

पूर्व मे अश्व मुख जो कि क्रिस्टल से निर्मित है...!

पश्चिम में हाथी के समान जो कि रूबी से...! 

उत्तर मे सिंह जो कि स्वर्ण से...! 

और दक्षिण मे मोर जो कि नीलम से निर्मित है... !

कैलाश पर्वत पर हमेशा बिजली चमकती रहती है और जिस के ऊपर से भी कोई जहाज या पक्षी नहीं निकल सकता – ऐसा पवित्र स्थान है देवों के देव महादेव का...!

जहाँ पर आधुनिक विज्ञान फैल है और जिसका वर्णन हमारे वेदों मे विस्तार से है...

🙏🏻हर हर महादेव हर....!🙏🏻
राम !           राम !!        राम!!!
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जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏

🔥बहुत सुन्दर, अच्छा एवं ज्ञान वर्धक प्रसंग...!🔥

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जय द्वारकाधीश

🔥बहुत सुन्दर, अच्छा एवं ज्ञान वर्धक प्रसंग...!🔥

*🔥बहुत सुन्दर, अच्छा एवं ज्ञान वर्धक प्रसंग...🔥*


पहली बात: हनुमान जी जब संजीवनी बूटी का पर्वत लेकर लौटते है तो भगवान से कहते है:- 


'' प्रभु आपने मुझे संजीवनी बूटी लेने नहीं भेजा था, बल्कि मेरा भ्रम दूर करने के लिए भेजा था, और आज मेरा ये भ्रम टूट गया कि मैं ही आपका राम नाम का जप करने वाला सबसे बड़ा भक्त हूँ''।

भगवान बोले:- 

वो कैसे ...?

हनुमान जी बोले:- 

वास्तव में मुझसे भी बड़े भक्त तो भरत जी है, मैं जब संजीवनी लेकर लौट रहा था तब मुझे भरत जी ने बाण मारा और मैं गिरा, तो भरत जी ने, न तो संजीवनी मंगाई, न वैध बुलाया।

कितना भरोसा है उन्हें आपके नाम पर, उन्होंने कहा कि यदि मन, वचन और शरीर से श्री राम जी के चरण कमलों में मेरा निष्कपट प्रेम हो....! 

यदि रघुनाथ जी मुझ पर प्रसन्न हो तो यह वानर थकावट और पीड़ा से रहित होकर स्वस्थ हो जाए।

उनके इतना कहते ही मैं उठ बैठा।

सच कितना भरोसा है भरत जी को आपके नाम पर।

🔥शिक्षा :- 🔥

हम भगवान का नाम तो लेते है पर भरोसा नही करते, भरोसा करते भी है तो अपने पुत्रो एवं धन पर, कि बुढ़ापे में बेटा ही सेवा करेगा, धन ही साथ देगा।

उस समय हम भूल जाते है कि जिस भगवान का नाम हम जप रहे है वे है...!

पर हम भरोसा नहीं करते।

बेटा सेवा करे न करे पर भरोसा हम उसी पर करते है।

🔥दूसरी बात प्रभु...! 🔥

बाण लगते ही मैं गिरा, पर्वत नहीं गिरा, क्योकि पर्वत तो आप उठाये हुए थे और मैं अभिमान कर रहा था कि मैं उठाये हुए हूँ।

मेरा दूसरा अभिमान भी टूट गया।

🔥शिक्षा :- 🔥

हमारी भी यही सोच है कि, अपनी गृहस्थी का बोझ को हम ही उठाये हुए है।

जबकि सत्य यह है कि हमारे नहीं रहने पर भी हमारा परिवार चलता ही है।

जीवन के प्रति जिस व्यक्ति कि कम से कम शिकायतें है, वही इस जगत में अधिक से अधिक सुखी है।

🔥जय श्री सीताराम जय श्री बालाजी🔥

लेख को पढ़ने के उपरांत जनजागृति हेतु साझा अवश्य करे।

ये राम नाम बहुत ही  सरल सरस ,मधुर,ओरअति मन भावन है मित्रो----- 

जिंदगी के साथ भी ओर जिंदगी के बाद भी
          *⛳जय श्री राम⛳
पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
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नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏

।। श्री नाग देवता पूजन अर्चना अभिषेक एवं प्रार्थना ओर स्तुति...! ।।

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

।। श्री नाग देवता पूजन अर्चना अभिषेक एवं प्रार्थना ओर स्तुति.....! ।।


*ॐ नमःशिवाय*

*सर्वे नागा: प्रीयन्तां मे ये केचित् पृथ्वीतले। 
ये च हेलिमरीचिस्था ये न्तरे दिवि संस्थिता:।। 
ये नदीषु महानागा ये सरस्वतिगामिन:। 
ये च वापीतडागेषु तेषु सर्वेषु वै नम:।।’*




        *अथ  श्रीनागस्तुति:*


           एतैत सर्पा: शिवकण्ठभूषा ।
          लोकोपकाराय भुवं वहन्त: ।।

          भूतै: समेता मणिभूषिताङ्गा: ।
          गृह्णीत पूजां परमं नमो व: ।।

          कल्याणरुपं फणिराजमग्र्यं ।
          नानाफणामण्डलराजमानम् ।।

          भक्त्यैकगम्यं जनताशरण्यं ।
‎           यजाम्यहं न: स्वकुलाभिवृद्ध्यै । ।
         
        ।।अथ सर्पसूक्त ।।

विष्णु लोके च ये सर्पा: वासुकी प्रमुखाश्च ये ।
‎ नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदश्च ।।१।।

रुद्र लोके च ये सर्पा: तक्षक: प्रमुखस्तथा
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।२।।

ब्रह्मलोकेषु ये सर्पा शेषनाग परोगमा:।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।३।।

इन्द्रलोकेषु ये सर्पा: वासु‍कि प्रमुखाद्य:।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।४।।

कद्रवेयश्च ये सर्पा: मातृभक्ति परायणा।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।४।।

इन्द्रलोकेषु ये सर्पा: तक्षका प्रमुखाद्य।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।५।।

सत्यलोकेषु ये सर्पा: वासुकिना च रक्षिता।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।६।।

मलये चैव ये सर्पा: कर्कोटक प्रमुखाद्य।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।७।।

पृथिव्यां चैव ये सर्पा: ये साकेत वासिता।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।८।।

सर्वग्रामेषु ये सर्पा: वसंतिषु संच्छिता।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।९।।

ग्रामे वा यदि वारण्ये ये सर्पप्रचरन्ति च ।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।१०।।

समुद्रतीरे ये सर्पाये सर्पा जंलवासिन:।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।११।।

रसातलेषु ये सर्पा: अनन्तादि महाबला:।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।१२।   

   
।।अथ नवनाग स्तोत्रम ।।

अनन्तं वासुकिं शेषं पद्मनाभं च कम्बलं
शन्खपालं ध्रूतराष्ट्रं च तक्षकं कालियं तथा
एतानि नव नामानि नागानाम च महात्मनं
सायमकाले पठेन्नीत्यं प्रातक्काले विशेषतः
तस्य विषभयं नास्ति सर्वत्र विजयी भवेत
      ।। इति श्री नवनागस्त्रोत्रं ।। 
                               
 वैदिक मन्त्र

   ॐ नमोस्तु सर्पेभ्योयेकेचपृथिवीमनु येsअन्तरिक्षेयेदिवितेब्भ्य: सर्पेब्भ्योनम: ।             याsइषवोयातुधानानांय्येवाव्वनस्प्पतिँरनु । येवावटेषुशेरतेतेब्भ्य: सर्पेब्भ्योनम: ।
येवा मीरोचनेदिवोयेवासूर्य्यस्यरश्मिषु । येषामप्पसुसदस्कृतन्तेब्भ्य: सर्पेब्भ्योनम: ।।


           ।। अथ ग्रह प्रत्याधिदेवता ।।

अनन्त भास्करं विद्यात् सोमं विद्यात् तु वासुकिम् ।
लोहितं तक्षकं विद्यात् बुधं कर्कोटकं स्मृतम् ।।

विद्यात् वृहस्पति पद्मं महापद्मं च भार्गवम् ।
शङ्खपालशतिं विद्यात् राहु कम्बलकं तथा ।
केतुश्च कालीयं विद्यात् इति प्रत्याधि देवता ।।

               ।। अथ ध्यानम ।।

अनन्तपद्म पत्राद्यं फणाननेकतो ज्वलम् ।
‎दिव्याम्बर धरं देवं रत्न कुण्डलमण्डितम् ।।१ ।।

‎नानारत्नपरिक्षिप्तं मुकुटं द्युतिरञ्जितम् ।
‎फणामणिसहश्रोद्यैरसंख्यै पन्नगोत्तमे ।। २ ।।

‎नाना कन्यासहस्त्रेण समन्तात् परिवारितम् ।
‎दिव्याभरण दीप्ताङ्गं दिव्यचन्दन चर्चितम् ।। ३ ।।

‎कालाग्निमिव दुर्धर्षं तेजसादित्य सन्निभम् ।
‎ब्रह्माण्डाधारभूतं त्वां यमुनातीरवासिनम् ।। ४ ।।

‎भजेsहं दोषशान्त्यैत्र पूजये कार्यसाधकम् ।
‎आगच्छ कालसर्पाख्यदोषं मम निवारय ।। ५ ।।

‎  ।। अथ कालसर्प अभिषेक मन्त्र ।।

यो सौ ब्रजधरो देव: आदित्यानां प्रभुर्मत: ।
‎सहस्त्रनयन: शक्रो राहुपीडा व्यपोहतु ।। १ ।।

‎मुखं य सर्व देवानां सप्तार्चि रमितद्युति: ।
‎कालसर्प कृतो दोष तस्य पीडां व्यपोहतु ।। २ ।।

‎य: कर्मसाक्षी लोकानां धर्मो महिष वाहन: ।
‎राहुकाल कृतां पीडा सर्व पीडा व्यपोहतु ।। ३ ।।

‎रक्षोगणाधिप: साक्षान्नीलाञ्जन समप्रभ: ।
‎खड्गहस्तोति भीमश्च ग्रहपीडां व्यपोहतु ।। ४ ।।

‎नागपाशधरोदेव: सदा मकरवाहन: ।
‎सजलाधिपतिर्देवो राहुपीडां व्यपोहतु ।। ५ ।।

‎प्राणरुपोहि लोकानां सदाकृष्ण मृगप्रिय: ।
‎कालसर्पोद्भवां पीडा ग्रहपीडां व्यपोहतु ।। ६ ।।

‎यो सौ निधिपतिर्देव: खड्गशूल गदाधर: ।
‎कालसर्पस्य कलुषं सर्वदोष व्यपोहतु ।। ७ ।।

‎यो साविन्दुधरो देव: पिनाकी वृषवाहन: ।
‎राहु केतु कृतं दोष स नाशयतु शंकर: ।। ८ ।।

‎      ।। अथ जलविसर्जनम् ।।

कालीयो नाम नागोsसौ कृष्णस्य पाद पांशुना ।
‎रक्षा तार्क्षेण सम्प्राप्त: सोsभयं हि ददातु न: ।। १ ।।

‎कालीयो नाम नागोsसौ विषरुपो भयंकर: ।
‎नारायणेन संपृष्टो सदा सं विधधातु न: ।। २ ।।

कालीयो नाम नागोsयं ज्ञातो सर्वे महाबली
अभयं प्राप्त कृष्णेन निर्भयो विचरत्यहि ।। ३ ।।

सो कालीय स्वदोषाच्च निर्भयं कुरु मां सदा ।
अनेन पूजनेनाथ प्रीतो सुखकरो भवेत् ।। ४ ।।

बलिं प्राप्य स्वकीयां हि आशिषं मे प्रयच्छतु ।
‎कालसर्पस्य दोषोsयं शान्तो भवतु सर्वदा ।। ५ ।।

तृप्तो नाग: प्रयच्छं मे धनधान्यादि सम्पद: ।
जले विहर त्वं नाग मां हि शान्तिप्रदो भव ।। ६ ।।        



         ।। अथ नाग आवाहन ।।
            अनन्त नाग मध्यमा

 अनन्तं विप्रवर्गं च रक्त कुंकुम वर्णकम् ।
‎ सहस्त्र फण संयुक्तं तं देवं प्रणमाम्यहम् ।। १ ।।

                शेष नाग पूर्वमा

‎  विप्रवर्गं श्वेतवर्णं सहस्त्रफणसंयुतम् ।
‎ आवाहयाम्यहं देवं शेष वै विश्वरुपिणम् ।। २ ।।
          वासुकी नाग आग्नेयमा

‎ क्षत्रिय पीतवर्णं च फणैर्सप्तशतैर्युतम् ।
‎ युक्तमतुंगकायं च वासुकी प्रणमाम्यहम् ।। ३ ।।

          तक्षक नाग दक्षिणमा

‎वैश्यवर्गं नीलवर्णं फणै: पंचशतैर्युतम् ।
‎ युक्तमुतुंग्कायं च तक्षकं प्रणमाम्यहम् ।। ४ ।।

        कर्कोटक नाग नैऋत्यमा

शूद्रवर्गं श्वेतवर्णं शतत्रयफणैर्युतम् ।
‎युक्तमुत्तुंगकायं च कर्कोटं च नमाम्यहम् ।। ५ ।।

      शंखपाल नाग पश्चिममा

शंखपालं क्षत्रीयं च पत्र सप्तशतै: फणै: ।
‎ युक्तमुत्तुंग कायं च शिरसा प्रणमाम्यहम् ।। ६ ।।
        नील नाग वायव्यमा

‎ वैश्यवर्गं नीलवर्णं फणै: पंचशतैर्युतम् ।
‎युक्तमत्तुंगकायं च तं नीलं प्रणमाम्यहम् ।। ७ ।।
      कम्बलक नाग उत्तरमा

 कम्बलं शूद्रवर्णं च शतत्रयफणैर्युतम् ।
‎ आवाहयामि नागेशं प्रणमामि पुन: पुन: ।। ८ ।।

        महापद्म नाग इशानमा

वैश्यवर्गं नीलवर्णं पत्रं पंच शतैर्युतम् ।
‎युक्तमत्तुंग कायं च महापद्मं नमाम्यहम् ।। ९ ।।

 ‎              उत्तरमा राहु
             दक्षिणमा केतु 
‎ पुन: इशानमा मनसा देवी को स्थापना गर्नुपर्नेछ

 *श्रीनागशान्तिस्तोत्रम्*

श्री गणेशाय नमः ।
श्री हाटकेश्वराय नमः ।

आरक्तेन शरीरेण रक्तान्तायतलोचनः ।
महाभोगकृताटोपः शङ्खाब्जकृतलाञ्छनः ॥ १॥

अनन्तो नागराजेन्द्रः शिवपादार्चने रतः ।
महापापविषं हत्वा शान्तिमाशु करोतु मे ॥ २॥

सुश्वेतेन तु देहेन सुश्वेतोत्पलशेखरः ।
चारुभोगकृताटोपो हारचारुविभूषणः ॥ ३॥

वासुकिर्नाम नागेन्द्रो रुद्रपूजापरो महान् ।
महापापं विषं हत्वा शान्तिमाशु ( शान्तिं आशु ) करोतु मे ॥ ४॥

अतिपीतेन देहेन विस्फुरद्भोगसम्पदा ।
तेजसाचाऽतिदीप्तेन कृतः स्वस्तिकलाञ्छनः ॥ ५॥

नागराट् तक्षकः श्रीमान्नागकोट्यासमन्वितः ।
करोतु मे महाशान्तिं सर्वदोषविषावहः ॥ ६॥

अतिकृष्णेन वर्णेन स्फुटो विकटमस्तकः ।
कण्ठे रेखात्रयोपेतो घोरदंष्ट्रायुधोद्यतः ॥ ७॥

कर्कोटको महानागो विषदर्पबलाऽन्वितः ।
विषशस्त्राग्निसन्तापं हत्वा शान्तिं करोतु मे ॥ ८॥

पद्मवर्णेन देहेन चारुपद्मायतेक्षणः ।
पञ्चबिन्दुकृताभासो ग्रीवायां शुभलक्षणः ॥ ९॥

ख्यातः पद्मो महानागो हरपादार्चने रतः ।
करोतु मे महाशान्तिं महापापं विषक्षयम् ॥ १०॥

पुण्डरीकनिभेनाऽपि देहेनाऽमिततेजसा ।
शङ्खशूलाब्जरुचिरैर्भूषितो मूर्ध्नि सर्वदा ॥ ११॥

महापद्मो महानागो नित्यं पशुपतौ रतः ।
विनिर्धूत(विनिहत्य) विषं घोरं शान्तिमाशु करोतु मे ॥ १२॥

श्यामेन देहभारेण श्रीमत्कमललोचनः ।
विषदर्पबलोन्मत्तो ग्रीवायामेकरेखया ॥ १३॥

शङ्खपालः श्रिया दीप्तः शिवपादाब्जपूजकः ।
महाविषं महापापं हत्वा शान्तिं करोतु मे ॥ १४॥

अतिगौरेण देहेन चन्द्रार्धकृतमस्तकः ।
दीप्तभोगकृताटोपः शुभलक्षणलक्षितः ॥ १५॥

कुलिको नागराजेशो नित्यं हरपरायणः ।
अपहृत्य विषं घोरं करोतु मम शान्तिकम् ॥ १६॥

अन्तरिक्षे च ये नागा ये नागाः स्वर्गसंस्थिताः ।
गिरिकन्दरदुर्गेषु ये नागा भूमिसंस्थिताः ॥ १७॥

पाताले ये स्थिता नागाः सर्वेप्यन्ये समाहिताः ।
रुद्रपादार्चने शान्ताः कुर्वन्तु मम शान्तिकम् ॥ १८॥

नागिन्यो नागपत्न्यश्च तथा कन्याः कुमारिकाः ।
शिवभक्ताः सुमनसः शान्तिं कुर्वन्तु मे सदा ॥ १९॥

यदिदं नागसंस्थानं कीर्तनाच्छ्रवणादपि ।
न तं सर्पा विहिंसन्ति न विषं क्रमते सदा ॥ २०॥

चिन्तितं सिध्यते(लभ्यते) नित्यं तथा पापपरिक्षयः ।
सिद्धिमाशु प्रयच्छन्ति सर्वविघ्न विवर्जिताः ॥ २१॥

*इति श्रीनागशान्तिस्तोत्रं सम्पूर्णम्*
 *श्रीनागदेवताष्टोत्तरशतनामावलिः* 

ॐ अनन्ताय नमः ।
ॐ आदिशेषाय नमः ।
ॐ अगदाय नमः ।
ॐ अखिलोर्वेचराय नमः ।
ॐ अमितविक्रमाय नमः ।
ॐ अनिमिषार्चिताय नमः ।
ॐ आदिवन्द्यानिवृत्तये नमः ।
ॐ विनायकोदरबद्धाय नमः ।
ॐ विष्णुप्रियाय नमः ।
ॐ वेदस्तुत्याय नमः ॥ १०॥

ॐ विहितधर्माय नमः ।
ॐ विषधराय नमः ।
ॐ शेषाय नमः ।
ॐ शत्रुसूदनाय नमः ।
ॐ अशेषपणामण्डलमण्डिताय नमः ।
ॐ अप्रतिहतानुग्रहदायाये नमः ।
ॐ अमिताचाराय नमः ।
ॐ अखण्डैश्वर्यसम्पन्नाय नमः ।
ॐ अमराहिपस्तुत्याय नमः ।
ॐ अघोररूपाय नमः ॥ २०॥

ॐ व्यालव्याय नमः ।
ॐ वासुकये नमः ।
ॐ वरप्रदायकाय नमः ।
ॐ वनचराय नमः ।
ॐ वंशवर्धनाय नमः ।
ॐ वासुदेवशयनाय नमः ।
ॐ वटवृक्षार्चिताय नमः ।
ॐ विप्रवेषधारिणे नमः ।
ॐ त्वरितागमनाय नमः ।
ॐ तमोरूपाय नमः ॥ ३०॥

ॐ दर्पीकराय नमः ।
ॐ धरणीधराय नमः ।
ॐ कश्यपात्मजाय नमः ।
ॐ कालरूपाय नमः ।
ॐ युगाधिपाय नमः ।
ॐ युगन्धराय नमः ।
ॐ रश्मिवन्ताय नमः ।
ॐ रम्यगात्राय नमः ।
ॐ केशवप्रियाय नमः ।
ॐ विश्वम्भराय नमः ॥ ४०॥

ॐ शङ्कराभरणाय नमः ।
ॐ शङ्खपालाय नमः ।
ॐ शम्भुप्रियाय नमः ।
ॐ षडाननाय नमः ।
ॐ पञ्चशिरसे नमः ।
ॐ पापनाशाय नमः ।
ॐ प्रमदाय नमः ।
ॐ प्रचण्डाय नमः ।
ॐ भक्तिवश्याय नमः ।
ॐ भक्तरक्षकाय नमः ॥ ५०॥

ॐ बहुशिरसे नमः ।
ॐ भाग्यवर्धनाय नमः ।
ॐ भवभीतिहराय नमः ।
ॐ तक्षकाय नमः ।
ॐ लोकत्रयाधीशाय नमः ।
ॐ शिवाय नमः ।
ॐ वेदवेद्याय नमः ।
ॐ पूर्णाय नमः ।
ॐ पुण्याय नमः ।
ॐ पुण्यकीर्तये नमः ॥ ६०॥

ॐ पटेशाय नमः ।
ॐ पारगाय नमः ।
ॐ निष्कलाय नमः ।
ॐ वरप्रदाय नमः ।
ॐ कर्कोटकाय नमः ।
ॐ श्रेष्ठाय नमः ।
ॐ शान्ताय नमः ।
ॐ दान्ताय नमः ।
ॐ आदित्यमर्दनाय नमः ।
ॐ सर्वपूज्याय नमः ॥ ७०॥

ॐ सर्वाकाराय नमः ।
ॐ निराशायाय नमः ।
ॐ निरञ्जनाय नमः ।
ॐ ऐरावताय नमः ।
ॐ शरण्याय नमः ।
ॐ सर्वदायकाय नमः ।
ॐ धनञ्जयाय नमः ।
ॐ अव्यक्ताय नमः ।
ॐ व्यक्तरूपाय नमः ।
ॐ तमोहराय नमः ॥ ८०॥

ॐ योगीश्वराय नमः ।
ॐ कल्याणाय नमः ।
ॐ वालाय नमः ।
ॐ ब्रह्मचारिणे नमः ।
ॐ शङ्करानन्दकराय नमः ।
ॐ जितक्रोधाय नमः ।
ॐ जीवाय नमः ।
ॐ जयदाय नमः ।
ॐ जपप्रियाय नमः ।
ॐ विश्वरूपाय नमः ॥ ९०॥

ॐ विधिस्तुताय नमः ।
ॐ विधेन्द्रशिवसंस्तुत्याय नमः ।
ॐ श्रेयप्रदाय नमः ।
ॐ प्राणदाय नमः ।
ॐ विष्णुतल्पाय नमः ।
ॐ गुप्ताय नमः ।
ॐ गुप्तातराय नमः ।
ॐ रक्तवस्त्राय नमः ।
ॐ रक्तभूषाय नमः ।
ॐ भुजङ्गाय नमः ॥ १००॥

ॐ भयरूपाय नमः ।
ॐ सरीसृपाय नमः ।
ॐ सकलरूपाय नमः ।
ॐ कद्रुवासम्भूताय नमः ।
ॐ आधारविधिपथिकाय नमः ।
ॐ सुषुम्नाद्वारमध्यगाय नमः ।
ॐ फणिरत्नविभूषणाय नमः ।
ॐ नागेन्द्राय नमः ॥ १०८॥

*इति नागदेवताष्टोत्तरशतनामावलिः*

            *ॐ नमःशिवाय*
*हर हर महादेव*
।।।।।।।*जय महाकाल*।।।।।।।
पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
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-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 
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नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
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महाभारत की कथा का सार

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