सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता, किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश
❄ ऋणमुक्ति हेतु शिव के सत्तर उत्तम मंत्र...! / सुंदर मार्मिक कहानी / संत कर्म - बंधन कैसे काटते हैं ? ❄
❄ ऋणमुक्ति हेतु शिव के सत्तर उत्तम मंत्र...! ❄
हर मासिक शिवरात्रि को सूर्यास्तत के समय किसी भी शिवालय मे बैठकर या अपने घर मे बैठकर अपने गुरुदेव का स्मरण करके शिवजी का स्मरण करते हुये इन 17 मंत्र का जप करें -
1) ॐ शिवाय नम:
2) ॐ सर्वात्मने नम:
3) ॐ त्रिनेत्राय नम:
4) ॐ हराय नम:
5) ॐ इन्द्र्मुखाय नम:
6) ॐ श्रीकंठाय नम:
7) ॐ सद्योजाताय नम:
8) ॐ वामदेवाय नम:
9) ॐ अघोरह्र्द्याय नम:
10) ॐ तत्पुरुषाय नम:
11) ॐ ईशानाय नम:
12) ॐ अनंतधर्माय नम:
13) ॐ ज्ञानभूताय नम:
14) ॐ अनंतवैराग्यसिंघाय नम:
15) ॐ प्रधानाय नम:
16) ॐ व्योमात्मने नम:
17) ॐ युक्तकेशात्म रूपाय नम:
उक्त मंत्रों का जप करने के पश्चात अपने इष्ट को और गुरु को प्रणाम कर शिव गायत्री मंत्र पढ़ें -
" ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रूद्र: प्रचोदयात् "
जिनके सिर पर कर्जा है वो शिवजी को प्रणाम करते हुये उक्त मंत्रों के जप के बाद उनसे प्रार्थना करें कि -
मेरे सिर से ये भार उतर जाये ,
मैं निर्भार जीवन जी सकूं,
भक्ति मे आगे बढ़ सकूं ,
केवल समस्या को याद न करता रहूँ।
।।।। शिव ।।। शिव ।।। शिव ।।।
।। सुंदर मार्मिक कहानी ।।
बुध्द ने कहा मैत्री करो किसी ने पूछा भी बुध्द को कि आप प्रेम क्यों नही कहते ?
इस पर बुद्ध ने कहा मैत्री प्रेम से बहुत गहरी बात है प्रेम बांधता है मैत्री मुक्त करती है।
प्रेम मालिक बन सकता है पर मित्रता किसी को बांधती नही किसी की मालिक नही बनती।
और प्रेम इसी लिए भी बंधन वाला हो जाता है की प्रेमियो का आग्रह होता है हमारे अतिरिक्त और प्रेम किसी से भी नही, लेकिन मित्रता का कोई आग्रह नही होता।
एक आदमी के हजारों मित्र हो सकते है लाखो मित्र हो सकते है।
क्यों की मित्रता बड़ी व्यापक गहन अनुभूति है।
जीबन की सब से गहरी केन्द्रीयता से वह उत्पन होती है।
जय श्री कृष्ण......
*🙏🏻संत कर्म - बंधन कैसे काटते हैं?*🙏
*गुरु गोविन्द सिंह जी,*
एक बार दशम पातशाही श्री गुरु गोबिन्द सिंह जी का दरबार सजा हुआ था। कर्म - फल के प्रसंग पर पावन वचन हो रहे थे कि जिसकी जो प्रारब्ध है उसे वही प्राप्त होता है कम या अधिक किसी को प्राप्त नहीं होता क्योंकि अपने किये हुये कर्मों का फल जीव को भुगतना ही पड़ता है।
वचनों के पश्चात मौज उठी कि जिस किसी को जो वस्तु की आवश्यकता हो वह निःसंकोच होकर माँग सकता है उसे हम आज पूरा करेंगे।
एक श्रद्धालु ने हाथ जोड़ कर प्रार्थना की कि प्रभु मैं बहुत गरीब हूँ। मेरी तमन्ना है कि मेरे पास बहुत सा धन हो जिससे मेरा गुज़ारा भी चल सके और साधु सन्तों की सेवा भी कर सकूँ उसकी भावना को देखकर श्री गुरु गोबिन्द सिंह जी ने शुभ आशीर्वाद दिया कि तुझे लखपति बनाया और ऐसे ही दूसरे गुरुमुखों ने भी मांगा।
उसी गुरुमुख मण्डली में सत्संग में एक फकीर शाह रायबुलारदीन भी बैठे थे। उसकी उत्सुकता को देखकर अन्तर्यामी गुरुदेव ने पूछा रायबुलारदीन आपको भी कुछ आवश्यकता हो तो निसन्देह निसंकोच होकर कहो, उसने हाथ जोड़कर खड़े होकर प्रार्थना की कि प्रभु मुझे तो किसी भी सांसारिक वस्तु की कामना नहीं है। परन्तु मेरे मन में एक सन्देह उत्पन्न हो गया है। अगर आपकी कृपा हो तो मेरा सन्देह दूर कर दें, प्रार्थना है कि प्रभु अभी-अभी आपने वचन फरमाये हैं कि प्रारब्ध से कम या अधिक किसी को नहीं मिलता अपने कर्मों का फल प्रत्येक जीव को भुगतना ही पड़ता है तो मेरे मन में सन्देह हुआ कि अभी जिसे आपने लखपति होने का आशीर्वाद दिया है, जब इनकी तकदीर में नहीं है तो आपने कहां से दे दिये?
गुरु गोबिन्द सिंह जी ने सेवक द्वारा एक कोरा कागज़ मोहर वाली स्याही मँगवाई और अपनी अँगुली की छाप उतार कर रायबुलारदीन से फरमाया कि बताओ इस अँगूठी के अक्षर उल्टे हैं कि सीधे?
उसने उत्तर दिया कि उल्टे हैं सच्चे पादशाह, फिर स्याही में डुबो कर कोरे कागज़ पर मोहर छाप दी अब पूछा बताओ अक्षर उल्टे हुये है कि सीधे।
उत्तर दिया कि महाराज अब सीधे हो गये हैं।
वचन हुये कि तुम्हारे प्रश्न का तुम्हें उत्तर दे दिया गया है, उसने विनय की भगवन मेरी समझ में कुछ नहीं आया।
गुरु गोबिन्द सिंह जी ने फरमाया जिस प्रकार छाप के अक्षर उल्टे थे लेकिन स्याही लगाने से छापने पर वह सीधे हो गये हैं। इसी तरह ही जिस जीव के भाग्य उल्टे हों और अगर उसके मस्तक पर सन्त सत्गुरु के चरण कमल की छाप लग जाये तो उसके भाग्य सीधे हो जाते हैं।
सन्त महापुरुषों की शरण में आने से जीव की किस्मत पल्टा खा जाती है।
*कहते हैं ब्रह्मा जी ने चार वेद रचे इसके बाद जो स्याही बच गई वे उसे लेकर भगवान के पास गये उनसे प्रार्थना की कि इस स्याही का क्या करना है?*
*भगवान ने कहा इस स्याही को ले जाकर सन्तों के हवाले कर दो उनको अधिकार है कि वे लिखें या मिटा दें या जिस की किस्मत में जो लिखना चाहें लिख दें।*
इसलिये जो सौभाग्यशाली जीव सतगुरु की चरण शरण में आ जाते हैं। सतगुरु के चरणों को अपने मस्तक पर धारण करते हैं। सभी कार्य उनकी आज्ञा मौजानुसार निष्काम भाव से सेवा करते हैं सुमिरण करते हैं निःसन्देह यहाँ भी सुखपूर्वक जीवन व्यतीत करते हैं और कर्म बन्धन से छूटकर आवागमन के चक्र से आज़ाद होकर मालिक के सच्चे धाम को प्राप्त करते हैं।
संतो के वचन हैं नाम बड़ी ऊँची दौलत है, भाग्य से मिलता है, जो भाग्य से मिला है तो इसकी कदर करो।
बुल्लेशाह ने भी कहा है:-
असाँ ते वख नहीं, देखन वाली अख नहीं।
बिना शौह थी दूजा कख नहीं।।
पूर्ण सतगुरु नाम दान के दिन से ही हमारी सम्भाल करने लगते हैं।
गुरु जब नाम देता है तो हमारे अंदर ही बैठता है।
उसी पल से वह हमें आदर्श इंसान बनाने के लिये हमसे प्रेम करना शुरू कर देता है और तब तक संभाल करता है जब तक कि हम प्रभु की गोद में नहीं पहुंचते।
*हमें उन पर भरोसा बनाये रखना है और बाकी सब उनका काम है जी।*🙏🏻🙏🏻🙏🏻
।।।। शिव ।।। शिव ।।। शिव ।।।
पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:-
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science)
" Opp. Shri Dhanlakshmi Strits , Marwar Strits, RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
सेल नंबर: . + 91- 7010668409 / + 91- 7598240825 WHATSAPP नंबर : + 91 7598240825 ( तमिलनाडु )
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आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद..
नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏
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