https://www.profitablecpmrate.com/gtfhp9z6u?key=af9a967ab51882fa8e8eec44994969ec 2. आध्यात्मिकता का नशा की संगत भाग 1: 07/20/20

।। रुद्राभिषेक पाठ एवं इसके भेद....! ।। श्री यजुर्वेद और ऋग्वेद के अनुसार महाशिवरात्रि एवं शिव नवरात्री महोत्सव ।।

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

।।  रुद्राभिषेक पाठ एवं इसके भेद...! ।। श्री यजुर्वेद और ऋग्वेद के अनुसार महाशिवरात्रि एवं शिव नवरात्री महोत्सव ।।


पूरा संसार अपितु पाताल से लेकर मोक्ष तक जिस अक्षर की सीमा नही ! 

ब्रम्हा आदि देवता भी जिस अक्षर का सार न पा सके उस आदि अनादी से रहित निर्गुण स्वरुप ॐ के स्वरुप में विराजमान जो अदितीय शक्ति भूतभावन कालो के भी काल गंगाधर भगवान महादेव को प्रणाम करते है ।

अपितु शास्त्रों और पुरानो में पूजन के कई प्रकार बताये गए है लेकिन जब हम शिव लिंग स्वरुप महादेव का अभिषेक करते है तो उस जैसा पुण्य अश्वमेघ जैसेयाग्यों से भी प्राप्त नही होता !

स्वयं श्रृष्टि कर्ता ब्रह्मा ने भी कहा है की जब हम अभिषेक करते है तो स्वयं महादेव साक्षात् उस अभिषेक को ग्रहण करने लगते है । 

संसार में ऐसी कोई वस्तु , कोई भी वैभव , कोई भी सुख , ऐसी कोई भी वास्तु या पदार्थ नही है जो हमें अभिषेक से प्राप्त न हो सके! वैसे तो अभिषेक कई प्रकार से बताये गये है । 

लेकिन मुख्या पांच ही प्रकार है ! 


(1) रूपक या षड पाठ - रूद्र के छः अंग कहे गये है इन छह अंग का यथा विधि पाठ षडंग पाठ कहा गया है।

शिव कल्प सूक्त👉  प्रथम हृदय रूपी अंग है 

पुरुष सूक्त👉 द्वितीय सर रूपी अंग है ।

उत्तरनारायण सूक्त👉  शिखा है।

अप्रतिरथ सूक्त👉  कवचरूप चतुर्थ अंग है ।

मैत्सुक्त👉  नेत्र रूप पंचम अंग कहा गया है ।

शतरुद्रिय👉 अस्तरूप षष्ठ अंग कहा गया है।

इस प्रकार - 

सम्पूर्ण रुद्राष्टाध्यायी के दस अध्यायों का षडडंग रूपक पाठ कहलाता है षडंग पाठ में विशेष बात है की इसमें आठवें अध्याय के साथ पांचवे अध्याय की आवृति नही होती है कर्मकाण्डी भाषा मे इसे ही नमक - चमक से अभिषेक करना कहा जाता है। 

(2) रुद्री या एकादशिनि - रुद्राध्याय की  ग्यारह आवृति को रुद्री या एकादिशिनी कहते है रुद्रो की संख्या ग्यारह होने के कारण ग्यारह अनुवाद में विभक्त किया गया है।

(3) लघुरुद्र- एकादशिनी रुद्री की ग्यारह अव्रितियों के पाठ को लघुरुद्र पाठ कहा गया है।

यह लघु रूद्र अनुष्ठान एक दिन में ग्यारह ब्राह्मणों का वरण करके एक साथ संपन्न किया जा सकता है। तथा एक ब्राह्मण द्वारा अथवा स्वयं ग्यारह दिनों तक एक एकादशिनी पाठ नित्य करने पर भी लघु रूद्र संपन्न होहै है।

(4) महारुद्र -- लघु रूद्र की ग्यारह आवृति अर्थात एकादशिनी रुद्री की 121 आवृति पाठ होने पर महारुद्र अनुष्ठान होता है । यह पाठ ग्यारह ब्राह्मणों द्वारा 11 दिन तक कराया जाता है। 

(5) अतिरुद्र - महारुद्र की 11 आवृति अर्थात एकादिशिनी रुद्री की 1331 आवृति पाठ होने से अतिरुद्र अनुष्ठान संपन्न होता है ये 

(1)अनुष्ठात्मक 
(2) अभिषेकात्मक 
(3) हवनात्मक , 

तीनो प्रकार से किये जा सकते है शास्त्रों में इन अनुष्ठानो का अत्यधिक फल है व तीनो का फल समान है। 

रुद्राष्टाध्यायी के प्रत्येक अध्याय मेँ - प्रथमाध्याय का प्रथम मन्त्र "गणानां त्वा गणपति गुम हवामहे " बहुत ही प्रसिद्ध है । यह मन्त्र ब्रह्मणस्पति के लिए भी प्रयुक्त होता है।

द्वितीय एवं तृतीय मन्त्र मे गायत्री आदि वैदिक छन्दोँ तथा छन्दो में प्रयुक्त चरणो का उल्लेख है । पाँचवे मन्त्र "यज्जाग्रतो से सुषारथि" पर्यन्त का मन्त्रसमूह शिवसंकल्पसूक्त कहलाता है। इन मन्त्रोँ का देवता "मन"है इन मन्त्रो में मन की विशेषताएँ वर्णित हैँ। परम्परानुसार यह अध्याय गणेश जी का है।

द्वितीयाध्याय मे सहस्रशीर्षा पुरुषः से यज्ञेन यज्ञमय तक 16 मन्त्र पुरुषसूक्त से है, इनके नारायण ऋषि एवं विराट पुरुष देवता है। 17 वे मन्त्र अद्भ्यः सम्भृतः से श्रीश्च ते लक्ष्मीश्च ये छः मन्त्र उत्तरनारायणसूक्त रुप मे प्रसिद्ध है।
द्वितीयाध्याय भगवान विष्णु का माना गया है।

तृतीयाध्याय के देवता देवराज इन्द्र है तथा अप्रतिरथ सूक्त के रुप मे प्रसिद्ध है। 

कुछ विद्वान आशुः शिशानः से अमीषाज्चित्तम् पर्यन्त द्वादश मन्त्रो को स्वीकारते हैं तो कुछ विद्वान अवसृष्टा से मर्माणि ते पर्यन्त 5 मन्त्रो का भी समावेश करते है। 

इन मन्त्रो के ऋषि अप्रतिरथ है। 

इन मन्त्रो द्वारा इन्द्र की उपासना द्वारा शत्रुओ स्पर्शाधको का नाश होता है।

प्रथम मन्त्र "ऊँ आशुः शिशानो .... का अर्थ देखेँ त्वरा से गति करके शत्रुओ का नाश करने वाला, भयंकर वृषभ की तरह, सामना करने वाले प्राणियोँ को क्षुब्ध करके नाश करने वाला। 

मेघ की तरह गर्जना करने वाला। 

शत्रुओं का आवाहन करने वाला, अति सावधान, अद्वितीय वीर, एकाकी पराक्रमी, देवराज इन्द्र शतशः सेनाओ पर विजय प्राप्त करता है।

चतुर्थाध्याय मे सप्तदश मन्त्र है जो मैत्रसूक्त के रुप मे प्रसिद्ध है। 

इन मन्त्रो मे भगवान सूर्य की स्तुति है " ऊँ आकृष्णेन रजसा " मे भुवनभास्कर का मनोरम वर्णन है। यह अध्याय सूर्यनारायण का है ।

पंचमाध्याय मे 66 मन्त्र है यह अध्याय प्रधान है, इसे शतरुद्रिय कहते है।

 "शतसंख्यात रुद्रदेवता अस्येति शतरुद्रियम्। इन मन्त्रो मे रुद्र के शतशः रुप वर्णित है।

 कैवल्योपनिषद मे कहा गया है कि शतरुद्रिय का अध्ययन से मनुष्य अनेक पातको से मुक्त होकर पवित्र होता है। 

इसके देवता महारुद्र शिव है। 

षष्ठाध्याय को महच्छिर के रुप मेँ माना जाता है। प्रथम मन्त्र मे सोम देवता का वर्णन है। 

प्रसिद्ध महामृत्युञ्जय मन्त्र "ऊँ त्र्यम्बकं यजामहे" इसी अध्याय मे है। इसके देवता चन्द्रदेव है।

सप्तमाध्याय को जटा कहा जाता है । 

उग्रश्चभीमश्च मन्त्र मे मरुत् देवता का वर्णन है। 

इसके देवता वायुदेव है।

अष्टमाध्याय को चमकाध्याय कहा जाता है । 

इसमे 29 मन्त्र है। 

प्रत्येक मन्त्र मे "च "कार एवं "मे" का बाहुल्य होने से कदाचित चमकाध्याय अभिधान रखा गया है । 

इसके ऋषि "देव"स्वयं है तथा देवता अग्नि है। प्रत्येक मन्त्र के अन्त मे यज्ञेन कल्पन्ताम् पद आता है।

रुद्री के उपसंहार मे "ऋचं वाचं प्रपद्ये " इत्यादि 24 मन्त्र शान्तयाध्याय के रुप मे एवं "स्वस्ति न इन्द्रो " इत्यादि 12 मन्त्र स्वस्ति प्रार्थना के रुप मे प्रसिद्ध है।      

रुद्राभिषेक प्रयुक्त होने वाले प्रशस्त द्रव्य व उनका फल 
🔸
1. जलसे रुद्राभिषेक -- वृष्टि होती है 

2. कुशोदक जल से -- समस्त प्रकार की व्याधि की शांति 

3. दही से अभिषेक -- पशु प्राप्ति होती है 

4. इक्षु रस -- लक्ष्मी की प्राप्ति के लिए 

5. मधु (शहद)-- धन प्राप्ति के लिए यक्ष्मारोग (तपेदिक)।

6. घृत से अभिषेक व तीर्थ जल से भी -- मोक्ष प्राप्ति के लिए।

7. दूध से अभिषेक -- प्रमेह रोग के विनाश के लिए पुत्र प्राप्त होता है ।

8. जल की की धारा भगवान शिव को अति प्रिय है अत: ज्वर के कोपो को शांत करने के लिए जल धरा से अभिषेक करना चाहिए।

9. सरसों के तेल से अभिषेक करने से शत्रु का विनाश होता है।यह अभिषेक विवाद मकदमे सम्पति विवाद न्यालय में विवाद को दूर करते है।

10.शक्कर मिले जल से पुत्र की प्राप्ति होती है ।

11. इतर मिले जल से अभिषेक करने से शारीर की बीमारी नष्ट होती है ।

12. दूध से मिले काले तिल से अभिषेक करने से भगवन शिव का आधार इष्णन करने से सा रोग व शत्रु पर विजय प्राप्त होती है ।

13.समस्त प्रकार के प्रकृतिक रसो से अभिषेक हो सकता है ।

सार --उप्प्युक्त द्रव्यों से महालिंग का अभिषेक पर भगवान शिव अत्यंत प्रसन्न होकर भक्तो की तदन्तर कामनाओं का पूर्ति करते है ।

अत: भक्तो को यजुर्वेद विधान से रुद्रो का अभिषेक करना चाहिए ।

विशेष बात : रुद्राध्याय के केवल पाठ अथवा जप से ही सभी कम्नावो की पूर्ति होती है 

रूद्र का पाठ या अभिषेक करने या कराने वाला महापातक रूपी पंजर से मुक्त होकर सम्यक ज्ञान प्राप्त होता है और अंत विशुद्ध ज्ञान प्राप्त करता है ।
।। हर हर महादेव हर...।।

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।। श्री यजुर्वेद और ऋग्वेद के अनुसार महाशिवरात्रि एवं शिव नवरात्री महोत्सव ।।



हमारे वेदों पुराणों के अनुसार महाशिवरात्रि एवं शिव नवरात्रि महोत्सव" ।

"वर्ष में दो बार ही; श्री रामनाथस्वामी रामेश्वरम भगवान् को हल्दी अर्पित की जाती हैं।"

प्रथम 

महा / फाल्गुन मास में माता पार्वती के साथ भगवान श्री रामेश्वरम महादेव श्री रामनाथस्वामी महादेव हल्दी अर्पित का उत्सवम ।

दुशरा 

आषाढ़ /श्रावण कृष्ण पक्ष पंचमी से आषाढ़ /श्रावण कृष्ण पक्ष चतुदर्शी शिवरात्री माता गंगा जी के साथ भगवान श्री रामेश्वरम महादेव श्री रामनाथस्वामी महादेव गंगा और हल्दी अर्पित का उत्सवम ।

श्री रामनाथस्वामी ज्योतिर्लिंग मंदिर में महाशिवरात्रि के पहले शिव नवरात्रि का पर्व मनाया जाता है, ज्योतिषाचार्य पं. प्रभु राज्यगुरु ने बताया कि इस दौरान पूरे 9 दिन तक महाकाल के दरबार में देवाधिदेव महादेव और माता पार्वती के विवाहोत्सव का उल्लास रहता है।

श्री महादेव रामनाथस्वामी महाराज के दरबार में भगवान महदेव रामनाथस्वामी और माता पार्वती के विवाह उत्सव का उल्लास; 

शिव नवरात्रि के प्रथम दिवस से बिखरने लगता है।

*शैव मतानुसार;-*

महाशिवरात्रि के 9 दिन पूर्व अर्थात; 

महा / फाल्गुन कृष्ण पक्ष पंचमी से महा / फाल्गुन कृष्ण पक्ष चतुर्दशी महाशिवरात्रि तक शिव नवरात्रि या रामेश्वरम महादेव  रामनाथस्वामी की नवरात्रि का 9 दिन का उत्सव बताया गया है।

मान्यतानुसार; श्री महादेव रामेश्वरम / श्री रामनाथस्वामी भगवान को हल्दी अर्पित नहीं की जाती। 

ऐसा इस लिए क्योंकि; हल्दी स्त्री सौंदर्य प्रसाधन में प्रयोग की जाती है ।

और शास्त्रों के अनुसार शिवलिंग पुरुषत्व का प्रतीक है।

एक अन्य कारण यह भी है कि; हल्दी गर्म होती है ।

और महादेव को शीतल पदार्थ अर्पित किये जाते हैं।

किन्तु इन 9 दिनों मे बाबा रामेश्वरम महादेव रामनाथस्वामी को नित्य हल्दी, केशर, चन्दन का उबटन, सुगंधित इत्र, ओषधी, फलो के रस आदि से स्नान करवाया जाता है।

जिस प्रकार विवाह के दौरान दूल्हे को हल्दी लगाई जाती है। 

उसी प्रकार भगवान श्री महादेव रामेश्वरम / श्री रामनाथस्वामी को भी हल्दी लगाई जाती है।

9 दिनों तक सांयकाल को केसर व हल्दी से भगवान श्री रामेश्वरम महादेव जी / श्री रामनाथस्वामी  जी का अनूठा श्रृंगार किया जाएगा। 

पुजारी पं. प्रभु राज्यगुरु ने बताया कि भगवान महादेव को हल्दी लगाकर, दूल्हा बनाएंगे। 

भक्तों को 9 दिन तक भगवान महादेव रामनाथस्वामी अलग - अलग रूपों में दर्शन देंगे।

शिव नवरात्रि के 9 दिन दूल्हा स्वरूप में होने वाले राजाधिराज बाबा महादेव रामनाथस्वामी के श्रृंगार के दर्शन करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

श्री महाशिवरात्रि के दिन भगवान श्री रामनाथस्वामी का सेहरा सजाया जाता है ।

किन कारणों से भेरों बने काशी के कोतवाल।

जब सभी साधु संतो और देवताओ के समक्ष ब्रह्माजी का पांचवा शीश शिव के बारे में गलत शब्द बोल रहा था तब एक दिव्य शिवलिंग से एक बालक भैरव का जन्म हुआ जिसका उद्देश्य ब्रह्माजी के झूठे अहंकार को ख़त्म करना था।

जब भैरव ने अपने नाखुनो से ब्रह्मा का पांचवा शीश काट कर अपने हाथ में धारण कर लिया तब शिवजी प्रकट हुए | 

उन्होंने भैरव को बताया की तुम ब्रह हत्या पाप के भागी हो | और इस पाप ले लिए तुम्हे भी आम व्यक्ति की तरह दुःख भोगना पड़ेगा।

अत: इस पाप से मुक्ति के लिए तुम्हे त्रैलोक्य का भ्रमण करना पड़ेगा | 

जिस स्थान पर यह शीश तुम्हारे हाथ से स्वत: ही छुट जायेगा वही पर तुम इस पाप से मुक्त हो जाओगे |

यह कह कर भगवान शिव ने एक अत्यंत तेजस्वी और विकराल रुपी कन्या को प्रकट किया जो अपने लम्बी लाल जीभ से रक्त का पान कर रही थी | 

उसके हाथ में खप्पर में खून भरा था और दुसरे हाथ में अति तीक्ष्ण तलवार थी | 

यह कन्या ब्रह हत्या ही थी जिसे शिव ने भैरव के पीछे छोड़ दिया था | 

जो इन्हे कही भी सुख पूर्वक बेठने नहीं देगी |

भैरव शिव आदेश अनुसार और अपने पापो की मुक्ति के लिए तीनो लोको की यात्रा पर निकल पड़े | 

अनंत काल तक यह यात्रा चलती रही और ब्रह हत्या नामक वह कन्या उनका पीछा करती रही | 

एक दिन भैरव जी काशी नगरी में प्रवेश कर गये | 

उस नगरी में उस कन्या का प्रवेश करना शिव आदेश के अनुसार मना था |

और इस तरह उस कन्या से इनका पीछा छुट गया | 

काशी मे गंगा तट पर एक स्थान पर भैरव से ब्रह्माजी का शीश छुट गया और वे हमेशा के लिए इस पाप से मुक्त हो गये | 

यह स्थान कपाल मोचन के नाम से प्रसिद्ध हुआ |

भगवान शिव ने अपने परम धाम काशी में ही भैरव को कोतवाल का पद प्रदान कर दिया | 

काशी में आज भी भैरव का वास है | 

इसके अलावा रामेश्वरम नगरी में काल भैरव का प्रसिद्ध मंदिर है |

         !!!!! शुभमस्तु !!!

🙏हर हर महादेव हर...!!

पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
-: 25 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 
" Opp. Shri Dhanlakshmi Strits , Marwar Strits, RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
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नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏

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