सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता, किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश
।। बहुत अति सुंदर कहानी ।।
*बीना विचारे कुछ करेगे तो न माया मिले न राम मिले*
किसी गाँव में दो दोस्त रहते थे।
एक का नाम हीरा था और दूसरे का मोती ।
दोनों में गहरी दोस्ती थी और वे बचपन से ही खेलना - कूदना, पढना - लिखना हर काम साथ करते आ रहे थे।
जब वे बड़े हुए तो उन पर काम - धंधा ढूँढने का दबाव आने लगा ।
लोग ताने मारने लगे कि दोनों निठल्ले हैं और एक पैसा भी नही कमाते।
एक दिन दोनों ने विचार - विमर्श कर के शहर की ओर जाने का फैसला किया ।
अपने घर से रास्ते का खाना पीना ले कर दोनों भोर होते ही शहर की ओर चल पड़े।
शहर का रास्ता एक घने जंगल से हो कर गुजरता था।
दोनों एक साथ अपनी मंजिल की ओर चले जा रहे थे ।
रास्ता लम्बा था सो उन्होंने एक पेड़ के नीचे विश्राम करने का फैसला किया ।
दोनों दोस्त विश्राम करने बैठे ही थे की इतने में एक साधु वहां पर भागता हुआ आया ।
साधु तेजी से हांफ रहा था और बेहद डरा हुआ था।
मोती ने साधु से उसके डरने का कारण पूछा।
साधु ने बताय कि-
आगे के रास्ते में एक डायन है और उसे हरा कर आगे बढ़ना बहुत मुश्किल है ।
मेरी मानो तुम दोनों यहीं से वापस लौट जाओ।
इतना कह कर साधु अपने रास्ते को लौट गया।
हीरा और मोती साधु की बातों को सुन कर असमंजस में पड़ गए ।
दोनों आगे जाने से डर रहे थे।
दोनों के मन में घर लौटने जाने का विचार आया ।
लेकिन लोगों के ताने सुनने के डर से उन्होंने आगे बढ़ने का निश्चेय किया।
आगे का रास्ता और भी घना था और वे दोनों बहुत डरे हुए भी थे ।
कुछ दूर और चलने के बाद उन्हें एक बड़ा सा थैला पड़ा हुआ दिखाई दिया ।
दोनों दोस्त डरते हुए उस थैले के पास पहुंचे।
उसके अन्दर उन्हें कुछ चमकता हुआ नज़र आया।
खोल कर देखा तो उनकी ख़ुशी का कोई ठिकाना ही न रहा ।
उस थैले में बहुत सारे सोने के सिक्के थे ।
सिक्के इतने अधिक थे कि दोनों की ज़िंदगी आसानी से पूरे ऐश - ओ - आराम से कट सकती थी ।
दोनों ख़ुशी से झूम रहे थे ।
उन्हें अपने आगे बढ़ने के फैसले पर गर्व हो रहा था।
साथ ही वे उस साधु का मजाक उड़ा रहे थे कि वह कितना मूर्ख था जो आगे जाने से डर गया।
अब दोनों दोस्तों ने आपस में धन बांटने और साथ ही भोजन करने का निश्चेय किया।
दोनों एक पेड़ के नीचे बैठ गए ।
हीरा ने मोती से कहा कि वह आस - पास के किसी कुएं से पानी लेकर आये।
ताकि भोजन आराम से किया जा सके।
मोती पानी लेने के लिए चल पड़ा।
मोती रास्ते में चलते - चलते सोच रहा था कि अगर वो सारे सिक्के उसके हो जाएं तो वो और उसका परिवार हमेशा राजा की तरह रहेगा ।
मोती के मन में लालच आ चुका था।
वह अपने दोस्त को जान से मर डालने की योजना बनाने लगा ।
पानी भरते समय उसे कुंए के पास उसे एक धारदार हथियार मिला।
उसने सोचा की वो इस हथियार से अपने दोस्त को मार देगा और गाँव में कहेगा की रास्ते में डाकुओं ने उन पर हमला किया था ।
मोती मन ही मन अपनी योजना पर खुश हो रहा था।
वह पानी लेकर वापस पहुंचा और मौका देखते ही हीरा पर पीछे से वार कर दिया ।
देखते - देखते हीरा वहीं ढेर हो गया।
मोती अपना सामान और सोने के सिक्कों से भरा थैला लेकर वहां से वापस भागा।
कुछ एक घंटे चलने के बाद वह एक जगह रुका।
दोपहर हो चुकी थी और उसे बड़ी जोर की भूख लग आई थी ।
उसने अपनी पोटली खोली और बड़े चाव से खाना-खाने लगा।
लेकिन ये क्या ?
थोड़ा खाना खाते ही मोती के मुँह से खून आने आने लगा और वो तड़पने लगा।
उसे एहसास हो चुका था कि जब वह पानी लेने गया था तभी हीरा ने उसके खाने में कोई जहरीली जंगली बूटी मिला दी थी ।
कुछ ही देर में उसकी भी तड़प - तड़प कर मृत्यु हो गयी।
अब दोनों दोस्त मृत पड़े थे और वो थैला यानी माया रूपी डायन जस का तस पड़ा हुआ था।
जी हाँ दोस्तों उस साधु ने एकदम ठीक कहा था कि आगे डायन है ।
वो सिक्कों से भरा थैला उन दोनों दोस्तों के लिए डायन ही साबित हुआ ।
ना वो डायन रूपी थैला वहां होता न उनके मन में लालच आता और ना वे एक दूसरे की जाना लेते।
*शिक्षा*
दोस्तों! यही जीवन का सच भी है ।
हम माया यानी धन-दौलत - सम्पदा एकत्रित करने में इतना उलझ जाते हैं कि अपने रिश्ते - नातों तक को भुला देते हैं ।
माया रूपी डायन आज हर घर में बैठी है ।
इसी माया के चक्कर में इंसान हैवान बन बैठा है ।
हमें इस प्रेरक कहानी से ये सीख लेनी चाहिए की हमें कभी भी पैसे को ज़रुरत से अधिक महत्त्व नहीं देना चाहिए और अपनी दोस्ती…
अपने रिश्तों के बीच में इसको कभी नहीं लाना चाहिए.
और हमारे पूर्वज भी तो कह गए हैं-
माया के चक्कर में दोनों गए, न माया मिली न राम
इस लिए हमें हमेशा माया के लोभ व धन के लालच से बचना चाहिए और ज्यादा ना सही पर कुछ समय भगवान् की अराधना में ज़रूर लगाना चाहिए।
आप कितने परिपक्बता हैं ?
एक बार आदि शंकराचार्य जी से एक प्रश्न किया कि "परिपक्वता" का क्या अर्थ है..?
तब आदि शंकराचार्य ने "परिपक्वता" की कुल 12 परिभाषाएं दी, उन्होंने उत्तर दिया :-
1. परिपक्वता वह है -
जब आप दूसरों को बदलने का प्रयास करना बंद कर दें, इसके बजाय स्वयं को बदलने पर ध्यान केन्द्रित करें।
2. परिपक्वता वह है –
जब आप दूसरों को, जैसे हैं, वैसा ही स्वीकार करें।
3. परिपक्वता वह है –
जब आप यह समझे कि प्रत्येक व्यक्ति उसकी अपनी सोच अनुसार सही हैं।
4. परिपक्वता वह है –
जब आप "जाने दो" वाले सिद्धांत को सीख लें।
5. परिपक्वता वह है –
जब आप रिश्तों से लेने की उम्मीदों को अलग कर दें और केवल देने की सोच रखे।
6. परिपक्वता वह है –
जब आप यह समझ लें कि आप जो भी करते हैं, वह आपकी स्वयं की शांति के लिए है।
7. परिपक्वता वह है –
जब आप संसार को यह सिद्ध करना बंद कर दें कि आप कितने अधिक बुद्धिमान है।
8. परिपक्वता वह है –
जब आप दूसरों से उनकी स्वीकृति लेना बन्द कर दे।
9. परिपक्वता वह है –
जब आप दूसरों से अपनी तुलना करना बंद कर दें।
10. परिपक्वता वह है –
जब आप स्वयं में शांत है।
11. परिपक्वता वह है –
जब आप जरूरतों और चाहतों के बीच का अंतर करने में सक्षम हो जाए और अपनी चाहतो को छोड़ने को तैयार हों।
12. आप तब परिपक्वता प्राप्त करते हैं –
जब आप अपनी ख़ुशी को सांसारिक वस्तुओं से जोड़ना बंद कर दें।
*सदैव प्रसन्न रहिये।*
*जो प्राप्त है, पर्याप्त है।।*
★★
!!!!! शुभमस्तु !!!
🙏हर हर महादेव हर...!!
जय माँ अंबे ...!!!🙏🙏
पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:-
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science)
" Opp. Shri Dhanlakshmi Strits , Marwar Strits, RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
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नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏