https://www.profitablecpmrate.com/gtfhp9z6u?key=af9a967ab51882fa8e8eec44994969ec 2. आध्यात्मिकता का नशा की संगत भाग 1: 07/10/20

आज काल के सच्चे संत कथाकार ओर ढोंगी असन्त कथाकरो में कितना फर्क है....? भाग 2 , भगवान विष्णु के 16 नामों का किस समय कौन से नाम का स्मरण करना चाहिए

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

आज काल के समय मे सच्चे कथाकार संत और ढोंगी कथाकार अस्त में कितना फर्क  ?.... ( भाग 2 ) भगवान विष्णु के 16 नामों का किस समय कौन से नाम का स्मरण करना चाहिए


हमारे हिन्दू धर्म का ही ग्रथ श्रीरामचरितमानस कथा में ही साफ साफ ही भगवान श्री रामचन्द्रजी और ऋषि श्री नारदमुनि के सवांद में साफ साफ ही बता रहे है तो भी समाज के साथ ही जूठी खिलवाड़ करने वाले बनी पैसा ओर वीआईपी सन्मान के पीछे दौड़ लगाने वाले  कथाकरो संतो कितना अभद्रता पूर्व वर्तन कर रहे है क्योंकि उसको शास्त्र के अनुसार तो कथा प्रवचनों तो करना ही नही है । 





उसको तो सिर्फ नतमस्तक उसका पैरो में लेटता रहे । ये ही ओर इसका मन ख़ुर्शी से ही झझुमता रहे के में तीन तो सिर्फ तीन घँटा चार घटा उसे ज्यादा से ज्यादा पांच ही घँटा व्यासपीठ पकड़ लू तो अच्छा अच्छा लोग मेरा पैर में गिर जाए । बाद में जैसा उल्टा सुल्टा शास्त्र का विरुद्ध का कैसा भी प्रवचनों नया नया फिल्मी धुनों पे गीत कीर्तन शायरी कर दु सब लोग मेरी ही वा वा करता रहे के में अच्छा बोलता हूं ।  

निज गुन श्रवन सुनत सकुचाहीं ।
पर गुन सुनत अधिक हरषाहीं ।।
सम सीतल नहि त्यागहि नीति ।
सरल सुभाउ सबहि मन प्रीति ।।
जप तप व्रत दम संजम नेमा ।
गुरु गोविंद विप्र पद प्रेमा ।।
श्रद्धा छमा मयत्री दाया ।
मुदिता मम पद प्रीति अमाया ।।

आज कल तो बस सब कथाकार संत खुद की प्रसंसा सुनकर ही खुश रहता है । क्योंकि आज कल के कथाकरो संत का चेला चपका ज्यादा कथाकरो संतो के आगे पीछे धूमता फिरता रहेगा । जैसा ही कथाकार संत व्यासपीठ पर से थोड़ाक शास्त्र के विरुद्ध ही उल्टा सुल्टा प्रवचनों उलटा नही सीधा कथाकरो का चेला चपाका कथाकरो संतो की प्रसंसा करना शुरू किया ही नही । आज कल के संत कथाकारों को बस एक ही काम है कैसे हिन्दू शास्त्र के विरुद्ध प्रवचनों करके में चमकता शितारो जैसा रोज रोज चमकता ही रहु । जब सच्चे संत कथाकार कभी शास्त्र के नियम विरुद्ध का कोई प्रवचनों करेगा ही नही । सच्चे संत कथाकार स्वभाव से ही अपनी प्रसंसा को सुनकर ही अप्रसन्न हो जाते है ओर अन्यो की प्रसंसा सुनकर ओर उनके गुणोंकी चर्चा सुनकर हर्षित होते है । वे राग - द्वेषसे दूर , तीनो तपो से मुक्त ओर नीतिमे सदैव रत रहते है । आज कल के कथाकारों असन्तो तो बस पांच घटे ज्यादा से ज्यादा समय मे उल्टा सुल्टा नया नया फिल्मी गानों पर कीर्तन शायरिओ शास्त्र के बहार का प्रवचनों , हास्य जोक्स करवा देगा बाद तो घूमने फिरने से फुरसद भी नही निकलेगा । जब सच्चे संत कथाकारों स्वभाव से सरल प्राणिमात्र में प्रीति रखने वाले होते है । जब आज कल के कथाकारों असन्तो को किसी भी गांव में किसी भी जग्या हो या मिलकत हो या कुछ भी वस्तु हो इसको कैसे हड़प किया जाय । उसका लिये ही उसका चेला चपाका काम मे लग जायेगा कि वो साम दाम दंड ओर भेद का प्रयोग करके वस्तु ले लेगा तब ही  प्रश्न रहेगा ।  जब सच्चे सन्त कथाकार तो जप तप में लीन संत कथाकारों इन्द्रियों का दमन करनेवाले ओर ब्राह्मणों के चरणों मे प्रेम रखने वाले होते है । ये आज कल के कथाकारों असन्त तो बस ब्राह्मण ब्रामण कुछ नही है । हमारी अंगत व्यासपीठ है हम जैसा बोलेगे वही होगा बस ब्राह्मण को नही मानना चाहिए हम ब्राह्मण को नही मानता ऐसा उल्टा सुल्टा ज्ञान प्रवचनों करता ही रहेगा । जैसा कि कोई दक्षिण भारत की यात्रा करने के लिये यात्री आता है तो जो शुद्र होगा वो भी यात्री को बोल देगा के हम बड़ा पंडा है । आप हमको ब्रह्म भोजन दो दक्षिणा दो हम आपको आशीर्वाद दे देगा । यात्री तो बहार का होता है वो तो रीत रिवाजों का अनजान होगा उसको क्या पत्ता होगा कि ये म्लेच्छ था कि पंडा था । जब दो तीन रुक जाएगा तो मालूम पड़ जायेगा । लेकिन लुटा गया होता बाद मालूम पड़ेगा तो भी क्या होगा सिर्फ भगवान का नाम लेकर रोने के अलावा कोई रास्ता तो उसका पास बच्चेगा ही नही । 


विरति विवेक विनय विग्याना ।
बोध जथारथ वेद पुराना ।।
दंभ मान मद करहि न काक ।
भूलि न देहि कुमारग पाउ ।।

है ऋषिवर ! जब सच्चे संत कथाकार वैराग्य, ज्ञान , नम्रता ओर विज्ञान के साक्षात स्वरूप होते है । जब आजके कथाकारों असन्त को तो बस जो उसका मन से अच्छा लग जाय वो हड़प करने के लिये कितना भी प्रयोग करना पड़े तो भी पीछे नही हटता  उस आज कल के कथाकारों असन्तो के पास शायरिओ फिल्मी गीतों का उल्टा सुल्टा कीर्तन ओर उल्टा सुल्टा जोक्स के अलावा तो उसके पास कोई ज्ञान ही नही होता । जब सच्चे संत कथाकारों के पास तो सिर्फ शास्त्र वेद पुराणों का भरपूर ज्ञान का भंडार ही रहता है । जब आज काल के कथाकारों असन्तो के पास तो राजकीय ज्ञान एवं शास्त्र पुराण वेद के अलावा का ज्ञान से भरपूर होता है । जब आज काल के कथाकार असन्त छल -कपट , पाखंड , आव भाव देखाव का अंहकार से मुक्त भी नही होते क्योंकि उसको वीआईपी आश्रम,  वीआईपी मान सन्मान ओर ऐसी मोटर कार के बिना पैर भी नही रखते । जब सच्चे संत कथाकार तो छल - कपट , पांखड ओर अहंकार से मुक्त हो कर सादगीपूर्ण जीवन गुजार लेंगे । आज कल के कथाकारों असन्तो के मन तो पाप धर्म जैसा कुछ नही बस पैसा मिल रहा है कि नही काम हो या न हो हम पांच क्लाक तक टाइम पास तो कर ही दिया तो उसका इतना पैसा तो अचूक मिलना ही चाहिए । किसी का भला हो या बुरा हो वो कभी नही सोचेगे बस पैसा का ही सोचेगे । जब सच्चे संत कथाकार तो पाप के मार्ग पर कभी नही देखेगे करोड़ो रुपिया को ठुकरा देने में भी कभी पीछे नही हटेगा लेकिन पाप का मार्ग के किसी का अधूरा काम करना तो स्वप्ना में भी नही सोचेगे । 

( आगे भाग 3 पर )

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भगवान विष्णु के 16 नामों का किस समय कौन से नाम का स्मरण करना चाहिए 

श्री ऋगवेद श्री विष्णु पुराण से महत्वपूर्ण उल्लेख पूर्ण लेख 

श्री ऋगवेद श्री विष्णु पुराण से भगवान विष्णु के 16 नामों का किस समय कौन से नाम का स्मरण करना चाहिए ।



_भगवान विष्णु के १६ नामों का एक  श्लोक के द्वारा जानते हैं।

कि मनुष्य को किस किस अवस्थाओं में भगवान विष्णु को किस किस नाम से स्मरण करना चाहिए,_..!

औषधे चिंतयते विष्णुं ,
भोजन च जनार्दनम |
शयने पद्मनाभं च
विवाहे च प्रजापतिं ||

युद्धे चक्रधरं देवं
प्रवासे च त्रिविक्रमं |
नारायणं तनु त्यागे
श्रीधरं प्रिय संगमे ||

दु:स्वप्ने स्मर गोविन्दं
संकटे मधुसूदनम् |
कानने नारसिंहं च
पावके जलशायिनाम ||

जल मध्ये वराहं च 
पर्वते रघुनन्दनम् |
गमने वामनं चैव
सर्व कार्येषु माधवम् |

षोडश एतानि नामानि
प्रातरुत्थाय य: पठेत ।
सर्व पाप विनिर्मुक्ते,
विष्णुलोके महियते ।।



(१) औषधि लेते समय - विष्णु ;

(२) भोजन के समय - जनार्दन ;

(३) शयन करते समय - पद्मनाभ :

(४) विवाह के समय - प्रजापति ;

(५) युद्ध के समय - चक्रधर ; 

(६) यात्रा के समय - त्रिविक्रम ;

(७) शरीर त्यागते समय - नारायण; 

(८) पत्नी के साथ - श्रीधर ;

(९) नींद में बुरे स्वप्न आते समय - गोविंद ;

(१०) संकट के समय - मधुसूदन ;

(११) जंगल में संकट के समय - नृसिंह ;

(१२) अग्नि के संकट के समय - जलाशयी ;

(१३) जल में संकट के समय - वाराह ;

(१४) पहाड़ पर संकट के समय - रघुनंदन;

(१५) गमन करते समय - वामन; 

(१६) अन्य सभी शेष कार्य करते समय - माधव

हरे राम् हरे राम् राम् राम् हरे हरे।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे !!

ॐ विष्णुवै नमः 

भास्करस्य यथा तेजो मकरस्थस्य वर्धते।
तथैव भवतां तेजो वर्धतामिति कामये!!

उदारता,दान और धर्म परायणता के पर्व !
 मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएं!!

उत्तरायण होते सूर्य की कृतज्ञ वंदना का यह पर्व,आपके जीवन में सूर्य की सात्विक ऊर्जा की तरह उन्नति और सुख - समृद्धि लेकर आए।

आदित्येहनि_संक्रान्तौ_ग्रहणे_सूर्यचन्द्रयोः |
  उपवासो न कर्तव्यःपुत्रिणांगृहिणांतथा ||
        (👉जैमिनी)

रविवार के दिन संक्रान्ति और सूर्य चन्द्र के ग्रहण में पुत्रवालें गृहस्थी को व्रत नहीं करना चाहिये।

अतः पुत्र रहितों गृहस्थीयों के लिए ही उपवास कहा हैं..!!

ये १५ मंत्र जो, हर माता - पिता को अपने बच्चों को रोज सिखाना चाहिए:-

१. "महादेव"

          ॐ त्र्यम्बकं यजामहे, 
           सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् ,
           उर्वारुकमिव बन्धनान्,
           मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् !!

२. "श्रीगणेश"

              वक्रतुंड महाकाय, 
              सूर्य कोटि समप्रभ 
              निर्विघ्नम कुरू मे देव,
              सर्वकार्येषु सर्वदा !!

३. "श्रीहरि विष्णु"

           मङ्गलम् भगवान विष्णुः,
           मङ्गलम् गरुणध्वजः।
           मङ्गलम् पुण्डरी काक्षः,
           मङ्गलाय तनो हरिः॥

४. "श्री ब्रम्हाजी"

             ॐ नमस्ते परमं ब्रह्मा,
              नमस्ते परमात्ने ।
              निर्गुणाय नमस्तुभ्यं,
              सदुयाय नमो नम:।।

५. "श्रीकृष्ण"

               वसुदेवसुतं देवं,
               कंसचाणूरमर्दनम्।
               देवकी परमानन्दं,
               कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम।

६. "श्रीराम"

              श्री रामाय रामभद्राय,
               रामचन्द्राय वेधसे ।
               रघुनाथाय नाथाय,
               सीताया पतये नमः !

७. "माँ दुर्गा"

            ॐ जयंती मंगला काली,
            भद्रकाली कपालिनी ।
            दुर्गा क्षमा शिवा धात्री,
            स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु‍ते।।

८. "माँ महालक्ष्मी"

            ॐ सर्वाबाधा विनिर्मुक्तो,
            धन धान्यः सुतान्वितः ।
            मनुष्यो मत्प्रसादेन,
            भविष्यति न संशयःॐ ।

९. "माँ सरस्वती"

            ॐ सरस्वति नमस्तुभ्यं,
             वरदे कामरूपिणि।
             विद्यारम्भं करिष्यामि,
             सिद्धिर्भवतु मे सदा ।।

१०. "माँ महाकाली"

             ॐ क्रीं क्रीं क्रीं,
             हलीं ह्रीं खं स्फोटय,
             क्रीं क्रीं क्रीं फट !!

११. "हनुमान जी"

          मनोजवं मारुततुल्यवेगं,
          जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठं।
          वातात्मजं वानरयूथमुख्यं,
          श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये॥

१२. "श्री शनिदेव"

             ॐ नीलांजनसमाभासं,
              रविपुत्रं यमाग्रजम ।
              छायामार्तण्डसम्भूतं, 
              तं नमामि शनैश्चरम् ||

१३. "श्री कार्तिकेय"

        ॐ शारवाना-भावाया नम:,
         ज्ञानशक्तिधरा स्कंदा ,
         वल्लीईकल्याणा सुंदरा।
          देवसेना मन: कांता,
          कार्तिकेया नामोस्तुते ।

१४. "कालभैरव जी"

          ॐ ह्रीं वां बटुकाये,
          क्षौं क्षौं आपदुद्धाराणाये,
          कुरु कुरु बटुकाये,
          ह्रीं बटुकाये स्वाहा।

१५. " माँ गायत्री"

            ॐ भूर्भुवः स्वः,
            तत्सवितुर्वरेण्यम् 
            भर्गो देवस्य धीमहि 
            धियो यो नः प्रचोदयात् ॥

भक्ति के रूप सनातन धर्म में भक्ति के अनेकों प्रकार बताये गए है।

जिनमे से निम्न  नव प्रकार मुख्य हैं।

जिसे नवधा भक्ति कहते हैं।

श्रवणं कीर्तनं विष्णोः स्मरणं पादसेवनम्।
अर्चनं वन्दनं दास्यं सख्यमात्मनिवेदनम् ॥

१ / श्रवण--

उदाहरण :- परीक्षित

२ / कीर्तन--

उदाहरण :- शुकदेव

३ / स्मरण--

उदाहरण :- भक्त प्रह्लाद

४ / पदसेवन--

उदारहण :- माँ लक्ष्मी 

५ / अर्चन--

उदाहरण :- राजा पृथु

६ / दास्य-- 

उदाहरण :- भगवान हनुमानजी स्वयं 

७ / वंदन--

उदाहरण:- अक्रूर 

८ / सख्य-- 

उदारहण :-अर्जुन

९ / आत्मनिवेदन-- 

उदाहरण :- राजा बलि

भक्ति के इन्हीं नौ प्रकारों को नवधा भक्ति कहते हैं।

भगवान श्री राम ने माँ शबरी को नवधा भक्ति का उपदेश दिया था।

क्या आत्म ज्ञान होता ही है?

आत्मज्ञान में समयक् सिद्धि प्राप्त किए हुए जीवनमुक्त योगी को यही फल मिलता है।

कि वह अपने आत्मा के नित्यानंदरस का बाहर भीतर निरंतर आस्वादन करें।

*वैराग्य का फल बोध है।

बोध का फल उपरति ( विषयों से उदासीनता ) तथा उपरति का फल यही है।

कि आत्मानंद के अनुभव से चित शांत हो जाए।

आत्म शांति के बिना उपरति, उपरति के बिना 

बोध और बोध के बिना वैराग्य निष्फल है। 

विषयों से निवृत्त हो जाना ही परम तृप्ति है। 

वही साक्षात अनुपम आनंद है।

प्रारब्ध वश प्राप्त हुए दुखों से विचलित ना होना आत्म ज्ञान का सबसे बड़ा फल है।

भ्रान्ति के समय पुरुष ने जो नाना प्रकार के निंदनीय कर्म किए हैं।

उन्हीं को ज्ञान हो जाने पर वह विवेक पूर्वक कर सकता है।

★★

         !!!!! शुभमस्तु !!!




पंडित प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
-: 25 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 
" Opp. Shri Dhanlakshmi Strits , Marwar Strits, RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
सेल नंबर: . + 91- 7010668409 / + 91- 7598240825 WHATSAPP नंबर : + 91 7598240825 ( तमिलनाडु )
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आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद.. 
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जय द्वारकाधीश.....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏

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